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आप्तवाणी-८
प्रमाण'- तेरे हृदय में आत्मा का प्रतिबिंब देखना हो तो ऐसा ध्यान कर कि तुझे 'अंगुष्ठ मात्र प्रमाण में' दिखे।
दादाश्री : यह साइन्टिफिक बात नहीं है। अगर साइन्टिफिक होती तो मैं आगे बढ़ता। यह तो एक खास स्तरवाले को स्थिर करने का साधन है। बिल्कुल गलत भी नहीं है, गलत तो कैसे कह सकते हैं? जो वस्तु किसी व्यक्ति को स्थिर कर सकती है, उसे गलत तो कह ही नहीं सकते न! यानी यह जो हृदय है न, उसके अंदर स्थूल मन है, यानी वहाँ की धारणा है। इस हृदय में यदि धारण करो न, तो फिर आगे बढ़ा जा सकता है। और आगे कौन बढ़ने नहीं देता? बुद्धि आगे नहीं बढ़ने देती और हृदय की धारणा आगे बढ़ने दे, ऐसी है। मोक्ष में जाना हो तो हृदय की हेल्प चलेगी। यानी दिल के काम की ज़रूरत है। बुद्धि से नहीं चलेगा।
यानी यह तो सब, अंगूठे जैसा कहकर लोगों को घबरा कर रख दिया। आत्मा तो देहप्रमाण है। आत्मा पूरा ही देहप्रमाण है और उस पर कर्मों की वळगणा चिपकी हुई है। वह किस तरह से? कि पेड़ की डाली हो, और उस पर लाख चिपक जाती है न? उसी तरह ये कर्म सब चिपक गए हैं। अनंत प्रदेशों में अनंत कर्म चिपके हुए हैं। तो जिस प्रदेश में कर्म खुला, वहाँ का ज्ञान प्रकट हो जाता है। इन तमाम डॉक्टरी प्रदेशों का ज्ञान खुल जाए तो आपको डॉक्टरी ज्ञान हो जाता है, किसीको वकील का ज्ञान हो जाता है। जिसके जो प्रदेश खुल गए, उसे वहाँ का ज्ञान प्रकट हो जाता
अब आत्मा तो पूरा ही है। उसमें से अगर पैर या और कुछ कट जाए तो आत्मा उतना 'शॉर्ट' हो जाता है। बाकी इस हृदय में तो सिर्फ मन का स्थान है, मन का स्थूल स्थान है। मन हृदय में प्रकट होता है। इस सूक्ष्म मन का स्थान यहाँ कपाल से ढाई इंच अंदर है। और स्थूल मन का स्थान हृदय में है।
भाजन के अनुसार संकोच-विकास होता है प्रश्नकर्ता : आत्मा कट सकता है क्या?