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आप्तवाणी-८
मानते हो वह संसारी बन गया है और वह 'मिकेनिकल' है । इसीलिए जब पेट्रोल डालो तो चलता है, नहीं तो बंद हो जाता है। इस नाक को दबाकर रखे न तो आधे घंटे में या घंटे में 'मशीन' बंद हो जाती है । इसलिए लोग ‘मिकेनिकल' आत्मा को आत्मा मानते हैं । मूल आत्मा को देखा नहीं, मूल आत्मा का एक शब्द भी सुना नहीं और 'मिकेनिकल' को ही स्थिर करते हैं, परन्तु 'मिकेनिकल' कभी भी स्थिर नहीं हो सकता ।
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यानी ये बाल काटते हैं और ये जो नाखून बढ़े हुए है, वहाँ पर आत्मा नहीं है। जहाँ पर नाखून कटने से जलन होती है, वहाँ पर आत्मा है। बाकी, आत्मा पूरी ही बॉडी में है।
प्रश्नकर्ता : परन्तु योगशास्त्र में तो ऐसा कहते हैं कि यहाँ पर ब्रह्मरंध्र में आत्मा है।
दादाश्री : वह सारा योगशास्त्र उनके लिए काम का है । आपको सच जानना है? लौकिक जानना है या अलौकिक जानना है? दो तरह का ज्ञान है, एक लौकिक में चलता है और दूसरा वास्तविक ज्ञान। आपको वास्तविक ज्ञान जानना है या लौकिक ?
प्रश्नकर्ता : दोनों जानने हैं।
दादाश्री : यदि लौकिक जानना हो तो आत्मा का स्थान हृदय में है और अलौकिक जानना हो तो आत्मा पूरे शरीर में है । लौकिक जानना हो तो यह दुनिया भगवान ने बनाई है और अलौकिक जानना हो तो दुनिया भगवान ने नहीं बनाई है।
प्रश्नकर्ता : ऐसा भी कहते हैं कि हृदय में अँगूठे जितना आत्मा
है।
दादाश्री : नहीं, उन सब बातों में कोई तथ्य नहीं है।
कहाँ मान्यता और कहाँ वास्तविकता
प्रश्नकर्ता : लेकिन उपनिषद में यह वाक्य आता है, 'अंगुष्ठ मात्र