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आप्तवाणी-८
प्रश्नकर्ता : फिर भी आकार तो होगा न?
दादाश्री : वह निराकारी आकार है, निरंजन - निराकारी आकार है । वह जैसा आपकी कल्पना में है, वैसा आकार नहीं है । उसका 'स्वाभाविक' आकार है।
आत्मा, देह में कहाँ पर नहीं है?
प्रश्नकर्ता : यह जो आत्मा है, उसका एक्स-रे में या किसी भी मशीन से फोटो भी नहीं आता ।
दादाश्री : हाँ, आत्मा तो बहुत सूक्ष्म है, इसलिए वह हाथ में नहीं आ सकता न! केमरे में नहीं आता और आँखों से भी नहीं दिखता, दूरबीन से भी नहीं दिखता, किसी भी चीज़ से दिखे नहीं, आत्मा ऐसी सूक्ष्म वस्तु है ।
प्रश्नकर्ता : इसलिए आश्चर्य होता है कि आत्मा कहाँ पर होगा? दादाश्री : इस आत्मा के आरपार अंगारा चला जाए, फिर भी उसे अंगारा छुए नहीं, आत्मा इतना अधिक सूक्ष्म है ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन इस शरीर में आत्मा का स्थान कौन-सा है?
दादाश्री : ऐसा है, आत्मा इस शरीर में कौन-सी जगह पर नहीं है? इस बाल में आत्मा नहीं है और ये नाखून हैं न, जितने नाखून काट देते हैं न, उतने भाग में आत्मा नहीं है । इस शरीर में बाकी सभी जगह पर आत्मा है। अत: कौन-से स्थान में आत्मा है ऐसा पूछने की ज़रूरत नहीं है, कौन-से स्थान में आत्मा नहीं है, ऐसा पूछना चाहिए ।
इन बालों में, जो बाल हम काट लेते हैं न, उनमें आत्मा नहीं है । नींद में किसीने बाल काट लिए तो हमें कुछ पता नहीं चलता, इसलिए उसमें आत्मा नहीं है और जहाँ पर आत्मा है न, वहाँ तो यह पिन चुभोएँ तो तुरन्त ही पता चल जाता है।
प्रश्नकर्ता : सामान्य रूप से, आत्मा तो दिमाग़ में होता है न? और इन ज्ञानतंतुओं के कारण ही पिन चुभोने पर वह पता चलता है न?