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आप्तवाणी-८
दादाश्री : नहीं, पूरे शरीर में आत्मा है। दिमाग़ में तो दिमाग़ होता है, वह तो मशीनरी है और वह सब तो अंदर की ख़बर देनेवाले साधन हैं। आत्मा तो पूरे शरीर में उपस्थित है। यहाँ पैर में ज़रा-सा काँटा लगा कि तुरन्त पता चल जाता है न?
यानी यह जो दिखता है न वह फोटो आत्मा का है। सिर्फ इतना ही कि उसके ऊपर परत चढ़ गई हैं। वर्ना, फोटो वही का वही है। आत्मा का फोटो फिर वही का वही रहता है।
अतः इस शरीर में जहाँ-जहाँ पिन चुभोएँ और पता चलता है, वहाँ पर आत्मा है। रात को भी ज़रा-सी पिन चुभोएँ तो पता चल जाता है न?। बाकी इस शरीर में जहाँ-जहाँ पिन लगाने से जो दर्द होता है, दुःख होता है, उसे जो जानता है, वह आत्मा है। वर्ना आत्मा के चले जाने के बाद हम पिन चुभोते रहें, फिर भी चंदूलाल बोलेंगे नहीं, थोड़ा भी हिलेंगे-डुलेंगे नहीं।
प्रश्नकर्ता : आत्मा को दुःख होता है, ऐसा हम कह सकते हैं?
दादाश्री : आत्मा को दुःख नहीं होता। इस बर्फ पर अंगारे डालेंगे तो क्या बर्फ जल जाएगा?
प्रश्नकर्ता : बाल काटने से हमें दर्द नहीं होता, यानी वहाँ पर आत्मा नहीं है?
दादाश्री : नहीं। प्रश्नकर्ता : और जहाँ पर दर्द होता है, वहाँ पर आत्मा है? दादाश्री : हाँ, वहाँ पर आत्मा है।
प्रश्नकर्ता : तो यदि सुख-दुःख का असर होता है, तो आत्मा संसारी बन गया?
दादाश्री : नहीं। आत्मा संसारी नहीं बनता। आत्मा मूल स्वरूप में ही है। आपका माना हुआ आत्मा संसारी बन गया है, जिसे आप आत्मा