________________
आप्तवाणी-८
था न? आपका ज्ञान तो था ही आपके अंदर, लेकिन वे प्रकट कर देते हैं। उसी प्रकार 'ज्ञानीपुरुष' के पास आपकी खुद की शक्तियाँ प्रकट हो सकती हैं। अनंत शक्तियाँ हैं, लेकिन वे शक्तियाँ ऐसे के ऐसे दबी हुई पड़ी हैं। वे शक्तियाँ हम खुली कर देते हैं। जबरदस्त शक्तियाँ दबी हुई हैं! वे सिर्फ आपमें अकेले में नहीं हैं, जीव मात्र में ऐसी शक्तियाँ हैं, लेकिन क्या करें? यह तो लेयर्स पर लेयर्स (आवरण) डाले हुए हैं सारे!
प्रश्नकर्ता : आत्मा की शक्ति और शारीरिक शक्ति, इन दोनों में कोई संबंध है क्या?
दादाश्री : इन दोनों की शक्तियाँ अलग ही हैं। प्रश्नकर्ता : वे दोनों एक-दूसरे पर असर डालते हैं?
दादाश्री : डालते ही हैं न! इस शारीरिक शक्ति के कारण तो वह आत्मा की शक्ति बंद हो जाती है। शारीरिक शक्ति अधिक होती है तो पाशवता बढ़ती है।
प्रश्नकर्ता : और आत्मा की शक्ति अधिक हो तो? दादाश्री : पाशवता कम होती है और मनुष्यपन उत्पन्न होता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मा की शक्ति को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को क्या प्रयत्न करना चाहिए?
दादाश्री : आत्मा की शक्ति अंदर है ही। आत्मा की शक्ति, वह तो परमात्मापन की शक्ति है। बाकी उस परमात्मा में एक सेका हुआ पापड़ तोड़ने की भी शक्ति नहीं है और यों अनंत शक्तियों के वे मालिक हैं!
प्रश्नकर्ता : हमें तो इन सबका मेल नहीं बैठता।
दादाश्री : वह मेल बैठना ही चाहिए। जब तक मेल नहीं बैठता न, तब तक समझने में फ़र्क है ज़रा! यदि मेल नहीं बैठे न, तो वह ज्ञान ही नहीं है, जब अज्ञान हो, तभी मेल नहीं बैठता। वर्ना मेल बैठना ही चाहिए, परन्तु उसके लिए थोड़ा 'टाइम' निकालकर हमें परिचय करना पड़ेगा।