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आप्तवाणी-८
है', यही सिद्ध करता है कि जीभ है ही अंदर। समझ में आया न? इसलिए यह शंका है। यह वाक्य ही विरोधाभासी है। लोग कहते हैं, 'जब मनुष्य का निधन होता है, तब उसमें जीव जैसी कोई वस्तु नहीं रहती', ये शब्द खुद ही शंका उत्पन्न करते हैं, उसे शंका हुई है। यह शंका ही सिद्ध कर देती है कि जीव है वहाँ पर। ___मैं साइन्टिस्टों के पास बैतूं न, तो उन सभी को तुरन्त समझा दूँ कि यह जीव बोल रहा है। तू भला, तेरी नई शंकाएँ खड़ी कर रहा है? यानी जीव तो देहधारी में है ही। और यह 'जीव निकल जाता है' ऐसा उदाहरण नहीं देते हम लोग?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : और यहाँ पर इन्जेक्शन देना पड़ता है न, तब क्यों सुन्न करना पड़ता है? किसलिए सुन्न करना पड़ता है? ।
प्रश्नकर्ता : दर्द और असर नहीं हो, इसलिए।
दादाश्री : उस जीव को उतने भाग में से हटाने के लिए ‘इन्जेक्शन' देना पड़ता है, जीव को हटाने के लिए सुन्न करते हैं। जब तक जीव रहे, तब तक 'ऑपरेशन' की वेदना सहन नहीं हो पाती, समझ में आया आपको?
आत्मा की अस्ति! कौन-से लक्षण से? दादाश्री : चेतन और जड़ में कोई फ़र्क होगा क्या? चेतन के गुणधर्म होंगे?
प्रश्नकर्ता : अवश्य। दादाश्री : क्या-क्या गुणधर्म हैं?
प्रश्नकर्ता : चेतन हिल-डुल सकता है, उसे लागणी (भावुकतावाला प्रेम, लगाव) होती है।
दादाश्री : हिलना-डुलना, वह तो मशीनरी भी कर सकती है। स्कूटर, एन्जिन, गाड़ियाँ वगैरह चलते-फिरते हैं ही न! और ये बनाए हुए