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अनेकान्म
वर्ष १५
__ भगवान महावीर, राजचन्द्र तथा महात्मा गान्धी, इन या भाड़े के टटुओं से नही कराये जा सकते और न तीन भारतीयों और विलियम लायड गैरिसन, टालस्टाय महीने दो महीने में एक बृहद् ग्रंथ तैयार करने वाले जादूतथा एलबर्ट स्वाइटज़र इन तीन विदेशी अहिंसा-प्रेमियों के गरों से। उनके लिए एक खास साधना और एक विशेष रेखाचित्र साथ-साथ छपाये जा सकते हैं। पुस्तक को श्रद्धा की जरूरत है और ये चीजें बाजार में किसी भाव चित्रित तो करना ही होगा।
नही मिलतीं कि कोई मनचला खरीद लावे। बड़ा ग्रन्थ जन-समाज लाखों रुपये प्रतिवर्ष दान में खर्च करता भले ही देर में तैयार हो पर छोटे-छोटे ट्रेक्ट तो प्रकाशित रहता है और मेलों पर भी लाखों का ही व्यय होता है, किये ही जा सकते हैं । पर उच्चकोटि के प्रचारकार्य की प्रायोजना उसके द्वारा
विनीत, प्रायः नहीं होती। ऐसे पवित्र कार्य अर्थलोलुप लेखकों से
बनारसीदास चतुर्वेदी
देवगढ़ को जैन प्रतिमाएं सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित करने में यहां के कलाकार कितने
पटु थे। (पृष्ठ २७ का शेष)
देवगढ़ की मूर्तिकला को देखकर यह बात स्पष्ट हो निर्मित कनौज तथा पूर्वी राजस्थान की प्रतिमाओं में मिलती जाती है कि यहाँ धर्म को निप्प्राण या जटिलरूप में दिखाने हैं । बाहुबलि की ११वीं शती की प्रतिमा भी अत्यंत प्रभा- की बात नहीं है, बल्कि उसे जीवंत रूप में प्रकट किया वोत्पादक है।
गया है। विविध मनोरंजक अलंकरणों, आकर्षक भावउत्तर मध्यकाल में अलंकरण के साथ सौम्यता एवं
भंगिमाओं एवं मानन्दपूर्ण अभिव्यक्तियों द्वारा धर्म एवं कला
को यहाँ शाश्वतरूप प्रदान किया गया है । इन प्रतिमाओं मृदुलता का जो समन्वय भारतीय कला में हुआ उसका जीता-जागता रूप हमें देवगढ़ की बहुसंख्यक तीर्थकर एवं
के देखने से दर्शक के सामने धर्म का प्राणमय, उदात्त एवं अन्य प्रतिमाओं में मिलता है। सरस्वती, अंबिका, पद्मा
मानन्दमय रूप उपस्थित हो जाता है। वती, चक्रेश्वरी आदि अनेक देवियों के मूर्त रूप भी यहाँ
भारतीय विविध राजवंशों गुप्त, गुर्जर प्रतीहार, दर्शनीय हैं। विभिन्न जिन प्रतिमाओं एवं शासन देवियों
चंदेल, बुन्देला आदि एवं जनसाधारण के द्वारा संरक्षित
प्रद्धित देवगढ़ की यह अपार कलाराशि हमारे लिए एक के नाम भी उत्कीर्ण मिले हैं। ये सूचना पट्ट बहुत उपयोगी हैं।
अत्यन्त गौरव की वस्तु है। इस कलाराशि का समुचित
अध्ययन अनुसंधान आवश्यक है। लेखक के द्वारा इस मंदिरों में गंगा-यमुना, पत्रावली, पशु-पक्षी आदि के सम्बन्ध में एक विस्तृत विवरण तैयार किया जा रहा है, जो जो बहसंख्यक अलंकरण मिलते हैं उनसे इस बात का पता निकट भविष्य में ही प्रकाशित होगा। आशा है इससे एक चलता है कि अलंकरण के विभिन्न भारतीय अभिप्रायों को कमी की पूर्ति कुछ अंशों में सम्भव हो सकेगी।