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किरण २
जैन-साहित्य में मथुरा
धर्मपत्नियों की प्रादर्श धर्म-भक्ति से प्रभावित होकर उन्हीं नगर में विद्युच्चर वा अंजनचोर नाम के महा भयङ्कर के साथ राजा उदितोदय ने, उसके मन्त्री ने तथा चौर्यकर्म दस्यु एवं उसके पांचसौ साथियों के जीवन में महान् में संलग्न स्वगंखुर ने भी संसार का त्याग करके प्राचार्य क्रान्ति घटित हुई। उन सबने दस्यु वृत्ति का ही त्याग नहीं श्रीधर एवं प्रायिका ऋषभा के निकट मुनिव्रत धारण किया, वे सब संसार छोड़कर साधु बन गए और मथुरा किया था।
नगर के बाहिर ही एक उद्यान में दुर्धर तपश्चरण में लीन __भगवान महावीर की शिष्य परम्परा में उनके निर्वाण होकर घोर उपसर्ग सहन करते हुए सद्गति को प्राप्त हुए से ६२ वर्ष पश्चात् (अर्थात् ई०पू० ४६५ में) मोक्ष लाभ और उनकी स्मृति में उक्त स्थान पर ५०१ स्तूप बना दिए करने वाले अन्तिम केवलि जम्बू स्वामी की पवित्र तपो- गए। ये स्तूप मध्यकाल तक अपनी जीर्ण शीर्ण अवस्था में भूमि इसी मथुरा नगर का चौरासी नामक स्थान रहा है विद्यमान रहते आये बताये जाते हैं जैसा कि पांडे राजमल्ल
और एक जनश्रुति के अनुसार उन्होंने इसी स्थान पर ही जी और पं० जिनदास जी के जम्बूस्वामी चरित्रो से सूचित निर्वाण लाभ किया था। उन महामुनि के प्रभाव से इसी होता है।
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व्यवस्थापक-'अनेकान्त
वीर-सेवा-मन्दिर २५ दरियागंज, दिल्ली-६