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ही सुन्दर लड़की लाकर दूं तो तुम मुझे क्या दोगे ? राजा कहलवाया कि सोरठ को सूचना दो कि उसका मामा ने कहा-पाधी गद्दी यानी आधा राज्य ।।
पाया है। सोरठ ने कहलवाया कि मेरा कोई मामा नहीं वीज्या सोरठ को प्राप्त करने के लिए जोगी की है। वीज्या बाहर से चिल्लाया-'चल ! मेरे साथ चल । पोशाक धारण कर देवी के मंदिर में पहुंचा और सोरठ नही तो तुम्हारी दासी लीलावती को पीटूंगा और टुकड़ेकी प्राप्ति की प्रार्थना करने लगा। मंदिर में वोज्या के टुकड़े कर डालूंगा।' इस पर सोरठ बोली-'दासी को भजन इतनी मस्ती और भक्ति भरे लग रहे थे कि सुनने मत पीट, मैं ही तुम्हारे साथ चलने को तत्पर हूँ।' वालों की खासा भीड़ सी इकट्ठी हो गई। मंदिर के पास
xxx ही बावड़ी थी जहाँ सोरठ की दासी पानी भरने पाई,
प्रागे-मागे वीज्या, उसके पीछे-पीछे सोरठ विलाप उसने भी वीज्या के भजन सुने । हवेली पाकर सोरठ से सारी बात कह सुनाई। सोरठ ने उस जोगी को अपने
करती हुई धीरे-धीरे चल रही है। बीज्या तेज भागता
हुमा हर्ष के मारे फूला मामा के पास पहुंचा और शुभ यहां बुलाने के लिए कहा। दासी गई जोगी को बुला लाई। जोगी ने अच्छे-अच्छे भजन सुनाए । ज्यों ही सोरठ
संवाद कह सुनाया । सोरठ रास्ते में ही सखियों के ठिकाने उसे भिक्षा देने लगी कि उसने कहा
रुक गई। साध्वियों के दर्शन कर साध्वी बनने की भावना
आई। साध्वियों ने कहा-'तुम्हें दीक्षा दिलाने वाला अनधन लछमी म्हारे पन्त धणी पो बाई जी
कौन है ?' बोरा भरपा रे भंडार । थारा तो हि बड़ा रो हार देवो नी बाई जी,
सोरठ ने उत्तर दिया-पाज्ञा देने वाले भी पाप है दो दन पेरे म्हारी जोगड़ी।
मारने वाले भी पाप है सोरठ ने उसे खूब डांटा और वहाँ से भगा दिया ।
और तारने वाले भी आप हैं।' जोगी (वीज्या) ने नई तरकीव सोची। एक दिन वह ऊंट सोरठ ने दीक्षा धारण की। वीज्या महल में सोरठ पर सवार होकर सोरठ का मामा बनकर पाया । दासी से के पाने के स्वप्न देखता रह गया।
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व्यवस्थापक अनेकान्त