Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 305
________________ दिग्विजय २६६ पाया और उसने महाराज के सामने उपस्थित होने की दिग्विजय कर डालिए। ये झगड़े हमेशा के लिये बन्द हो प्राज्ञा चाही। वह अयोध्या से लगते हुए एक छोटे से राज्य जाएंगे।" वैजयंती का राजदूत था। इसी बीच बाहुबली बोल उठे, "भैया को तो सदा भरत का अभिनंदन करने के लिए राज दरबार दिग्विजय के स्वप्न पाते हैं।" सुसज्जित किया गया था। भाट और चारण विरदावलियाँ भरत ने उलाहने से बाहुबली की मोर देखा। गा रहे थे। प्रतिहारी ने बीच ही में वैजयंती के राजदूत के महाराज ऋषभदेव ने कहा, "भरत, प्रभी दिग्विजय पाने का समाचार सुनाया। का समय नहीं पाया । यह वैजयन्ती का बढ़ाया हुमा हाथ ___ महाराज ने उसे उपस्थित करने की प्राज्ञा दी। कवि- थामने का समय है।" तामों का पाठ रोक दिया गया। राजदूत ने महाराज के "प्राज्ञा दीजिए, देव, "प्राज्ञाकारी भरत बोला।"भरत सामने आकर भूमि तक झुककर दंडवत् की। "राजामों में वैजयन्ती के सम्मान की रक्षा करेगा।" श्रेष्ठ, इक्ष्वाकुवंश दीपक, महामंडलेश्वर, महाराज ऋषभ- महाराज ऋषभदेव ने पुत्र को प्रशंसा की दृष्टि से देखा। देव की जय । यह दास वैजयंती की ओर से सैनिक शक्ति "अभी तो राह की धूल भी तुम्हारे शरीर से नहीं झरी, की सहायता की याचना करता है।" भरत हम तुम्हारे उत्साह से प्रसन्न हैं । किन्तु एक अवसर "सैनिक सहायता !" महाराज ने आश्चर्य करते हुए अपने छोटे भाई को भी तो दो।" पूछा। 'दूत, तुम किसी संकट की सूचना दे रहे हो ?" महाराज ऋषभदेव की बात सुनकर बाहुवली जैसे चोंक "हां, देव", राजदूत ने निवेदन किया। “रतनपुर के उठे । एक पूर्व स्मृति उनके मानस पटल पर चित्र की तरह मंडलेश्वर राजा वज्रबाहु ने वैजयंती पर अपने पंजे फैलाए खिंच गई। वाराणसी नगरी का महापुष्करिणी का मेला हैं । वैजयंती नरेश अयोध्यापति की सुनीति में अपना असीम था। जगह-जगह के नन्हें-नन्हें बालक बालिकामों, सजीली विश्वास प्रकट करते है, और इस बुरी घड़ी में अयोध्या की मूंछों वाले युवकों और श्वेत दाढ़ियों वाले वृद्धों का सम्मिप्रबल सेनाओं की सहायता की मांग करते हैं।" लन था । महागंगा अपने प्रबल वेग के साथ बही चली जा "महाराज वनबाह ने पाक्रमण किया है ?" महाराज रही थी। उस महा मेले में स्थान-स्थान के राजकुमार और ऋषभदेव ने पूछा । "कारण ?" राजकुमारियां पाई हुई थीं। उनके साथ पाए हुए रक्षकों "वैजयंती की प्रान इसका कारण है, देव । महाराज की साज-सज्जा अनुपम थी। कुछ पुण्य लूटने के लिए पद्मसेन अपनी पुत्री का विवाह कोशांबी के युवराज से तो पाए थे, तो कुछ उस मेले का एक वर्ष में आने वाले पानन्द करना चाहते हैं । यह विवाह महाराज वज्रबाहु को पसन्द लूटने । उन्हीं में बाहुबली भी था। तब एक दिन उस मेले नहीं है । वह जबरदस्ती हमारी राजकुमारी का हरण करना की भारी धकापेल में एक ओर से विकट शोर सुनाई चाहते हैं । हम मर मिटेंगे, देव, मगर ऐसा नहीं होने देंगे।" दिया। एक लड़की डूब रही थी। उसके पीछे अपनी जान की परवाह न करके एक लड़का कूदा था। फिर हल्का ऐसे ही अवसरों पर भरत के धर्य का बांध टूट पड़ता सा स्फुरण लेकर बाहुबली स्वयं महागंगा में गोते लगा रहा था। राजदूत की बात सुनकर वह विहंस उठा । था, और सबके बाद में सैकड़ों अच्छे-अच्छे तैराक रक्षक महाराज ऋषभदेव ने पुत्र के मुंह की मोर देख कर कूद पड़े थे। महागंगा का उद्याम वेग उस लड़की, उस कहा, 'कुछ कहना चाहते हो, भरत ?" लड़के और बाहुबली को उन रक्षकों की पहुँच के बाहर ले "हाँ, देव", भरत ने कहा।" मैं पहले भी कितनी ही गया था। जीवन-मरण की बाजी थी। उससे भी अधिक बार निवेदन कर चुका हूँ जिस दिन किसी बड़ी मछली दूसरे के जीवन को बचाने की बाजी थी। उस लड़के ने का जी चाहता है छोटी मछली को दबोच लेती है। इन उस लड़की को पकड़ लिया। किन्तु एक छोटे से भंवर ने मछलियों के सिर पर एक मगर की जरूरत है । एक बार उन दोनों को एक साथ अपनी लपेट में लिया और पानी

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