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राजदूत ने हर्ष से अपना सिर नवाया और उसने इकहरे स्वर में जय घोष किया "महामण्डलेश्वर, मनोध्यापति, महाराज ऋषभदेव की जय कुमार भरत कुमार बाहुबली की जय।"
महाराज ने श्राशीर्वाद का हाथ उठाया और सिर नीचा किए उसे ग्रहण करता हुआ वह राजसभा के मुखद्वार से बाहर निकल गया ।
विजय
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एक विशाल सेनानी बनकर बाहुबली ने वैजयंती की मोर कूच किया।
परिस्थिति के झोंके मनुष्य को क्या क्या नाच नचाते हैं, बाहुबली यही सोचते चले जा रहे थे एक घोर वह अपार सेना के सेनापति थे, एक अथाह बल अपने साथ लिए वह चल रहे थे, जिसका अर्थ था कि यदि उनके मित्र ने उनकी नीति अनीति की परवाह न की तो वह अपने बल का, अपनी सेना का प्रयोग करेंगे यही सबसे पहला व्यव हार होगा, जो अपने मित्र के लिए करेगा । धिक्कार है ऐसी मित्रता पर बाहुबली ने सोचा क्या बचबाहु उनके समझाने से नीति को समझ जाएगा ! यह प्रश्न बार बार उनके मस्तिष्क में साकर उन्हें विचलित कर रहा था।
वैजयन्ती अभी दूर थी, बाहुबली की सेनाएं बिना उचित विधाम के ही निरन्तर कूप पर कूच करती जा रही थीं। दूर दूर तक प्रगाध वन दिखाई दे रहा था । हरियाली का नाम निशान नहीं था । बाहुबली के मन के आंदोलन से होड़ करता हुआ वनस्थली का झंझावात धूल और गुब्बार को अपने साथ उड़ाये लिये जा रहा था ।
सूर्य के ताप की अपनी हथेलियों की नोट करते हुए बाहुबली ने एकबार वन को दूर तक देखा। उनके पीछे साँप की तरह बल खाती हुई सेनाओं की पंक्तियाँ चली प्रा रही थीं। सहसा उन्हें बहुत दूर पर कुछ प्राकृतियां दिखा दीं । क्या ये आकृतियाँ मनुष्यों की ही हो सकती हैं ? उन्होंने अपने मुख्य अङ्गरक्षक वीरसिंह को मंगुली से दिखा कर पूछा, "देखते हो, वीरसिंह, मनुष्य ही तो लगते ३१"
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"कौन हो सकते हैं? वीरसिंह, देखो तो मागे
बढकर ।"
वीरसिंह का प्रश्व तेजी से श्रागे को झपटा । कुछ ही देर में वह पांखों से मोल होकर उन लोगों के पास जा पहुँचा। बीस पच्चीस अश्वारोहियों के बीच में चार-पांच पालकियां थीं। उसे देखते ही उन भश्वारोहियों ने अपनी अपनी म्यानों से तलवारें खींच ली । दल के नायक ने डॉट कर पूछा, "कौन हो तुम ?"
"यही मैं पूछना चाहता है, कौन हो तुम लोग ? धीर इन पालकियों में क्या है ? कहाँ जा रहे हो ? कहाँ से आये हो ?" वीरसिंह ने उतने ही तेज स्वर में नायक से प्रश्न पर प्रश्न किया ।
"युवक तेरे इतने सवालों का ही दे सकती हैं। भाग जा, नहीं तो ने कहा ।
जवाब लोहे की जबान वार सम्भाल, "नायक
"जो भी तुम लोग हो, तुम्हारा इरादा कुछ बुरा मालूम होता है। सुनो, में अयोध्या के राजकुमार महामान्य श्री बाहुबली का अङ्गरक्षक हूँ। हमारी सेनाएं वैजयन्ती की सहायता के लिये जा रही है, वह देखो । यदि तुमने मेरे प्रश्नों का उचित उत्तर नहीं दिया, तो तुम्हारी चमड़े की जबानें खींच ली जाएंगी और इन लोहे की जवानों के टुकड़े टुकड़े कर दिये जायेंगे 'बोलो, कौन हो तुम लोग ?"
किसकी जवान खिचेगी और किसकी जबानों के टुकड़े टुकड़े होंगे इसका निर्णय होने के लिए वीरों की प्रथा के अनुसार तलवारें एक दूसरे की ओर भी कि तभी बीच की कुछ अधिक सजी हुई पालकी में से एक तीव्र किंतु सुरीला स्वर सुनाई पड़ा;
"नायक, झगड़ा न करो, उनसे बता दो हम कौन हैं।" पलक मारते ही सब तलवारें म्यानों में चली गई, नायक ने अपने इस छोटे से दस का परिचय दिया;
वैजयंती का छोटा सा गढ़ चारों धोर से घिर गया या शत्रु का घेरा दिन पर दिन संकुचित होता जा रहा था, अन्न और पानी का अभाव सामने अपना कराल गाल
संकट अपने पंजे दिखा रहा था, कौशांबी और अयोध्या दोनों जगह सहायता का संदेश
"हाँ, कुमार, मनुष्य ही मालूम होते हैं," वीरसिंह ने फाड़े खड़ा था, माता हुआ भलीभांति दृष्टि दौड़ा कर कहा ।