Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 319
________________ फिरल ६ शिलालेख श्रेष्ठी पापा की मृत्यु का उल्लेख करता है' । पापा वही व्यक्ति हो सकता है जिसने शांतिनाथ का जैन मंदिर बनाया था। १११३ ६० का शिलालेख सेठी साहिल की मृत्यु का उल्लेख करता है । साहिल पापा का भ्राता हो सकता है। इस मंदिर के दर्शन के लिए अनेक श्रावक तथा जैन श्राचार्य आया करते थे । १०४७ ई० का एक शिलालेख एक यात्री के नाम का उल्लेख करता है। इस स्थान पर जैन आचार्य भी रहा करते थे । यहाँ पर अनेक जैन माचायों को भी निषद्या या निषेधिकायें है। एक वि० सं० २०६६ को है जिस दिन प्राचार्य श्री भानदेव के शिष्य श्रीमंतदेव स्वर्गलोक पधारे थे। भाषायं का मुख अध्ययन स्थिति में है । पुस्तक खुली अवस्था में ठूणी पर रखी हुई है जो कि पढ़ने के लिए डेस्क का काम देती थी। पास के चबूतरे पर देवेन्द्र प्राचार्य का नाम खुदा हुआ है और उनका समय संवत् ११८० दिया हुआ है। अन्य पर कुमुदचन्द्र ग्राम्नाय के भट्टारक कुमारसेन का नाम दिया हुआ है जिनका स्वर्गवास सं० १२८६ में यहाँ हुआ था । सात सलाकी पहाड़ी के स्तम्भ का २००६ ई० का शिला लेख नेमिदेवाचार्य और बलदेवाचार्य का उल्लेख करता है । इमी स्तम्भ पर १२४२ ई० के शिलालेख में मूलसंघ और देवसंघ का उल्लेख है । झालरापाटन का प्राचीन बंधव शान्तिनाथ का यह मंदिर किसी समय बहुत ही सुंदर रहा होगा। वर्तमान मन्दिर का जीर्णोद्वार हुआ प्रतीत होता है। इस मंदिर में एक बड़ा शास्त्र भंडार भी है जिसमें एक हजार के लगभग हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ भी हैं । यहाँ शान्तिनाथ मन्दिर की कुछ मूर्ति-लेख दिये जाते हैं जो मूलसंघ । प्रतिमाओं के सरस्वतीगच्छ, १. अनेकांत १२, पृ० १२५ । २. एनुअल रिपोर्ट राजपूताना म्यूजियम अजमेर, १९१२१३, पृ० ७ ३. वही । ४. एनल्स एण्ड एन्टिक्वीटीज आफ राजस्थान, जिल्द २, पृ० ७६२ । ५. एनुअल रिपोर्ट राजपूताना म्यूजियम, अजमेर, १९१२१३, पृ० ७ । २०१ बलात्कारगण के भट्टारक सकलकीर्ति और उनके शिष्यों द्वारा प्रतिष्ठित है। नगर में और भी अनेक मंदिर विद्यमान हैं। और ऐलक पन्नालाल जी द्वारा स्थापित सरस्वती भवन भी है, जिसमें ग्रन्थों का अच्छा संग्रह है। सेठ लालचन्द सेठी जी, उज्जैन जो विनोदीराम बालचन्द फर्म के मालिक है. उन्हीं की संरक्षकता में उक्त भवन चल रहा है। १. संवत् १४६० वर्षे माघवदि १२ गुरौ भ० श्री सकलकीर्ति, (व) हूमड दोशी मेघा श्रेष्ठी अर्चति । २. सं० १४९२ वर्ष वैशालवदी १ सोमे श्री मूलचे भ० श्री पद्मनन्दिदेवास्तत्पट्टे भ० श्री सकलकीति हमद ज्ञातीय......... ३. सं १५०४ वर्षे फागुन सुदी ११ श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ श्री भुवनकीर्ति देवा हूमड़ ज्ञातीय श्रेष्ठि खेता भार्या लाखू तयोः पुत्राः ... । ४. सं०] १.३५ पौषवदी १३ बुधे श्री मूलचे भ० श्री सकलकीर्ति भ० श्री भुवनकीर्ति भ० श्री ज्ञानभूषण गुरूपदेशात् हू० श्रेष्ठि पदमा भार्या भाऊ सुत आसा भा० कडू सुत कान्हा भा० कुंदेरी भ्रातृ धना भा० वहनूं एते चतुर्विंशतिकां नित्यं प्रणमंति । देशात् ५. पार्श्वनाथ प्रतिमा - सं० १६२० वैशाखसुदी ६ बुधे श्री मूलसंधे बलात्कारगणे हरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दा चार्यान्वये म० श्री पद्मनन्दिदेवास्तत्पट्टे सकलकी तिदेवास्तत्पट्टे श्रीभुवनकीर्तिदेवास्तत्पट्टे श्री ज्ञानभूषणदेवास्तत्पट्टे श्रीविजयकीतिदेवास्तत्पट्टे सुमतिकीर्तिगुरुप जातीय वेदिरगोत्रे, संघवी देवा भा० देवाभदे तत्सुत संभवी परवत भार्या परमलदे तत्भ्रातृ सं० हीरा भा० कोडमदे तत्भ्रातु सं० हरषा भा० कश्मादे सुत लहुआ भा० मिन्ना, भ्रातृ लाडण भा० ललितादे सुतं थापर सं० जेमल भा० जेताही भ्रा० डूंगर भा० धनादे भ्रा० जगमा सं० हीमा भा० बलादे एतैः सह संघवी जीवादी सागवाडा वासूव नित्यं प्रणमति । (यह मूर्ति सागवाडा में प्रतिष्ठित हुई थी और झालरापाटन के शान्तिनाथ मंदिर में विराजमान है।) इस मंदिर की मूलनामक प्रतिमा का लेख अभी तक प्रकाश में नहीं आया है, वह एक प्राचीन मूर्ति है। धीर

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