Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 326
________________ साहित्य-समीक्षा महंत प्रवचन जिस भांति तुलसी ने विनय पत्रिका में लिखा कि ज्ञान सम्पादक-०नसुखदास न्यायतीर्थ, प्रकाशक उत्तम है, किन्तु वह भगवान् की भक्ति से प्राप्त हो सकता प्रारमोदय प्रन्थमाला, जयपुर, सितम्बर १९६२, पृष्ठ है, वैसे ही उनसे लगभग ८ शताब्दी पूर्व शिवकोटि ने संख्या-१६८, मूल्य ३.५० न०पैं। भगवती पाराधना में लिखा था, "विधिपूर्वक बोये हुए अहत् प्रवचन एक 'संकलन' है। इसमें प्राचार्य कुन्द बीज की जैसे वर्षा से उत्पत्ति होती है, वैसे ही महंन्त कुन्द, स्वामी वट्टकेरि, स्वामी कात्तिकेय आदि के प्राचीन इत्यादिकों की भक्ति से ज्ञान, चारित्र, दर्शन और तप का ग्रन्थों से महत्वपूर्ण गाथाभों को चुनकर रखा गया है। उन प्रादुर्भाव होता है।" उन्होंने अपने इस मत को अनेक गाथानों को १८ विषयों में विभक्त कर दिया है, एक-एक गाथाओं में पुष्ट किया है। उनका कथन है कि 'निर्वाण के विषय का एक-एक अध्याय है । १६ वा अध्याय 'विविध' बीज रत्नत्रय' की सिद्धि भक्ति-रहित मनुष्य को नहीं हो/ है, अर्थात् उसमें अनेक विषयों का सम्मिश्रण है। प्रत्येक सकती। जिन-भक्ति से मुक्ति मिलती है। गाथा के नीचे हिन्दी अनुवाद दिया गया है । उसकी विशे- इन गाथाओं को चुनते समय एक-दूसरा दृष्टिकोण और षता है कि वह मूलगाया को प्रासान हिन्दी में स्पष्ट कर था, जिसका स्वागत होना ही चाहिए, वह था व्यापकता का देता है। साधारण पाठक सहज ही समझ सकते हैं.. निर्वाह । व्यापकता का अर्थ है सांप्रदायिक संकीर्णता से निकल प्राकृत भाषा में लिखे गये ग्रंथों को पढ़ना-समझना, कर बाहर आ जाना । अर्हत् प्रवचन की उपयोगिता मानव इनमें से उत्तम मंशों को छांटना, क्रम में बाँटना, फिर :क्रम में बांटना. फिर मात्र के लिये है, केवल जन कहलाने वाले के लिए ही नहीं। उनका अनुवाद करके रखना अत्यधिक परिश्रम-साध्य है। स्वयं सम्पादक के शब्दों में यह एक ऐसी तत्त्व मीमांसा है, पं० चैनसुखदास जी ने यह सब कुछ किया। समाज इन्हें जो सभी सम्प्रदायों को स्वीकार हैं। जैनधर्म में सबसे भली भांति जानती है। मैं उनके इस प्रयास का प्रादर अधिक विश्वजनीन सत्य है। सम्पादक ने उसे ठीक-से करता हूँ। समझा, प्रस्तुत किया। हम उसकी सफलता की कामना करते हैं। गाथाओं का चुनाव करते समय सम्पादक का मुख्ष दृष्टिकोण यह ही रहा कि वे मानव के नित्य जीवन में लोक विभागः उपयोगी हों। नित्य जीवन का तात्पर्य है-प्रतिदिन माने रचयिता-श्री सिंहसरपि, सम्पावक-पं. बालचन्द बाली समस्यायें, उनका चरित्रपरक समाधान, अन्य जीवों सिमान्त शास्त्री, प्रग्यमाला सम्पावक-डा. मा. ने. से उदारतापूर्ण सम्बन्ध, दूसरों की निन्दा से विरक्ति, उपाध्ये। और ग.हीरालाल जैन, प्रकाशक-जैन संस्कृति कर्तव्य पालन, भगवान की भक्ति मादि । 'मंगल' के बाद संरक्षक संघ, सोलापुर, सन् १९६२६०, पृष्ठ-संल्याही 'जीव अथवा भात्मा' शीर्षक से दूसरा अध्याय है । इसमें ५२, २५६, मूल्य-१० रुपये : मात्मा की विशेषतायें बताने वाली गाथायें रखी गई है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस ग्रंथ में लोक के सभी 'मात्मा' पर अध्ययन करने वाले विद्यार्थी इनकी विशेषता विभागों का वर्णन है। वे विभाग ११ हैं-जम्बूद्वीप भांक सकते हैं। ११ वा अध्याय भक्ति से सम्बन्धित हैं। विभाग, लवण समुद्र विभाग, मानुष क्षेत्र विभाग, समुद्र जैन पाचार्यों ने मानव जीवन की शान्ति के लिये भक्ति विभाग, काल विभाग, ज्योतिलोंक विभाग, भवनवासिलोक की उपयोगिता स्वीकार की है। उन्होंने ज्ञान को तो महत्ता विभाग, अपोलोक विभाग, व्यन्तरलोक विभाग, स्वर्ग दी ही है, भक्ति को भी कम नहीं माना। दोनों का ऐसा विभाग और मोक्ष विभाग। यह क्रम भगवान् महावीर ने समन्वय जनश्रत में देखने को मिलता है, अन्यत्र नहीं। अपने समवशरण में लोक का निरूपण करते हुए निर्धारित

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