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किर
पिंजरा धोबी ले गया और लड़की ( सोरठ) को कुम्हार । कुम्हार ने उसे अपने घर में रखी जहां वह बड़ी हुई, धर्म-ध्यान करती, कुम्हार के लिए भोजन पकाती और आनन्द से रहती ।
धर्म स्थानों में व्याप्त सोरठ की कहानी
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एक दिन वहाँ वनजारों की बालदें आई, वणजारे दोनों भाई थे। पहले छोटे भाई ने आकर कुम्हार के वहाँ बालद छोड़ी बाद में बड़े भाई ने दोनों भाइयों की निगाहें सोरठ पर पड़ीं। उन्होंने सोचा कि कुम्हार के घर ऐसी सुन्दर कन्या यह कौन है ? उन्होंने कुम्हार को कहा'कुम्हार भाई, जरा पानी तो पिलाओ, प्यास लगी है, तुम्हारे यहां यह कौन बाई है, जरा पानी तो मंगवा दो ।' कुम्हार ने सोरठ से पानी लाने को कहा। सोरठ पानी भर लाई । वणजारों ने जब पीने के लिए अपना धोबा (हाथ फैलाये) मांडा तो सोरठ ने कहाचांगल्यां तो धारी झणकारी रे, पाणी गयो रे पाताल |
तरसां तो थाने नहीं लागी रे बीर । जनजार्थ माय
राजी हो गया ।
वणवारों ने कुम्हार को सोरठ के साथ शादी करने के लिए कहा। कुम्हार इस बात पर सोरठ की शादी करा दी। सोरठ के लिए दोनों भाई आपस में झगड़ने लगे। दोनों उसे अपनी-अपनी बताने लगे। उन्हें लड़ते देख एक राहगीर ने कहा कि कुछ ही दूर एक नगरी है वहां का पटेल अच्छा न्याय करता है सो वहाँ चले जाओ ।
दोनों चले, कुछ ही धागे राजा मिला, उधर से पटेल की पुत्री मिली । वणजारों ने पटेल के लिए कहा -- इस पर लड़की ने कहा- 'उन्हें धंधे हुए बारह महीने होने आये हैं ।'
दूसरा दरवाजा मिला जिसमें पटेल की पत्नी घाती हुई मिली। पूछने पर उसने कहा- 'उन्हें मरे पूरा वर्ष होने आया है।' तीसरे दरवाजे पटेल का पुत्र मिलाउसने कहा- 'उन्हें बहरे हुए बारह वर्ष होने पाए हैं।' चौवे दरवाजे पर स्वयं पटेल हो मिल गए। बणजारों ने अपनी बात कह सुनाई, साथ ही दरवाजों पर घटित घटना
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भी कह सुनाई। कारण पूछते हुए उत्तर में पटेल ने कहा'लड़की ने मुझे अंधा कहा कारण कि उसकी मैंने अभी तक शादी नहीं की है, यद्यपि वह पूर्ण यौवना हो गई है। पत्नी से मेरी बोल बात नहीं है, इसलिए उसने मेरा मरना कहा । पुत्र की बात मैं सुनी अनसुनी कर देता हूँ इसलिए उसने मुझे बहरा कहा।' अन्त में पटेल ने वणजारों के न्याय के लिए नगरी के राजा का नाम बताया । वणजारे राजा के पास गये और सारी बात कह सुनाई। राजा ने कहा - 'तुम दोनों बेवकूफ हो इसके साथ तो मैं स्वयं शादी करूँगा ।' नौकर को आज्ञा दी गई। चंवरी बनाई गई । विवाह की तैयारी हो गई । सोरठ बोलीलांड जस्यो तो गौर नहीं जी कांई, गोर जसी नहीं खांड ।
नाम लेतां तो बामण मरे जी कांई, मुख देखता उसका बाप ।
नौकर ने राजा से अर्ज किया परन्तु राजा ने सोरठ की एक भी बात न सुनी। चंवरी की ओर राजा ने प्रस्थान किया ।
तब सोरठ ने कहा
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गोर दे तो खांड नहीं जी कोई
खांड जस्यो गोर
एक कारण है देखियो जी कोई
बेटी परणे बाप |
यह सुन राजा ने नौकरों से कहा- 'निकालो ! निकालो !! इसे ।'
जाते समय सोरठ ने कहा
मलणो है तो भलो दादा जी,
नीतर मलणो आगे अवतार । नहीं पीयर भी सासरी जी कोई नहीं मांय मुख्यार |
वणजारे उसे ले गये और एक नवखंडी हवेली में उसे रख दी। वहाँ उसके लिए एक दासी की व्यवस्था कर दी ।
एक दिन राजा का भानजा 'वीज्या' उधर से निकला । सोरठ की घोर अचानक उसकी दृष्टि गई। उसने पर श्राकर मामा (राजा) से कहा कि यदि मैं एक प्रत्यन्त