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अनेकान्त
आर
है। मैं पापको भी दुखी नहीं करना चाहती। इसलिए जीतना चाहते हो । परन्तु याद रक्खो । पाप का फल कभी मापकी सलाह के अनुसार यही ठीक है कि कौशाम्बी का अच्छा नहीं होता। अब तुम्हारा भला इसी में है कि सकप्रबन्ध कर दिया जाय ।
शल घर लौट जाओ। यदि मेरी सलाह न जंचे तो यहीं प्रबन्ध के लिए दो बातों का उपाय करना आवश्यक पड़े-पड़े कोट की दीवालों से सिर पीटते रहो। दो वर्ष बाद है-एक तो यह कि जिसमें शत्रुदल नगर में प्रवेश न करें, देखा जायगा। दूसरा यह कि नगर के घेर लेने पर सेना को और नाग- मैं आशा करती हूँ कि तुम्हें सुबुद्धि प्राप्त होगी और रिकों को भोजन का कष्ट न हो, इसलिए माप नगर के तुम इस अमूल्य मानव जीवन को नष्ट न करोगे। चारों ओर मजबूत कोट बनवा दें और कम से कम एक
हिताकांक्षी साल के लिए भोजन सामग्री एकत्रित कर दें। एक साल
मृगावती के बाद फिर देखा जायगा। आपके इस काम में मैं और
चण्डप्रद्योत की आँखें लाल हो गई । वह ओंठ चबाने मेरे आदमी आपकी मदद करेंगे । अगर अच्छी तरह काम लगा और घर-घूर कर कौशाम्बी का कोट देखने लगा, किया गया तो एक महीने में ही सब काम हो जायगा। लेकिन बस उस समय कौशाम्बी अजेय थी। उसके बाद मझे बिवाह करने में कोई ऐतराज न रहेगा। इसी समय उज्जयिनी से दूत पाया। उसने समाचार
आपकी दिया कि राजधानी में प्रशान्ति मची है। इसी से चण्ड
मृगावती प्रद्योत को शीघ्र लौटना पड़ा। पत्र पढ़ कर चण्डप्रद्योत को बहुत शान्ति मिली। चण्डप्रद्योत लज्जित होकर घर आया। लज्जा के महीने भर के भीतर कोट तैयार हो गया। मृगावती ने कारण वह अपनी रानी के पास भी नहीं जा सकता था। इसके लिए दिन रात परिश्रम किया। सीसा मिला-मिला परन्तु इस तरह कब तक गुजर होगी, यही सोच कर वह कर कोट की दीवालें ववमय बना दी गई । शस्त्रास्त्र भी अन्त.पुर में गया। परन्तु वहाँ रानी का पता न था। बहत तैयार करवाये। मृगावती ने एक साल के बदले दो चण्डप्रद्योत ने आश्चर्य के साथ सखियों से पूंछा-रानी साल के लायक भोजन सामग्री एकत्रित कर ली। बीसों कहाँ है ? नए कुएँ खुदवा डाले । नए सैनिकों की भर्ती की गई और "वे तो गई।" उनको सिखा पढ़ा कर योग्य सैनिक बनाया गया। सब "कहाँ ?" काम हो जाने के बाद महारानी ने जाने का निश्चय किया इस प्रश्न के उत्तर में उन्होने मांसू बहा दिए और प्रजा में हाहाकार मच गया। चण्डप्रद्योत के शिविर में सभी सिसक सिसक कर रोने लगीं। प्रानन्द-भेरी वजने लगी।
राजा ने घबराहट के साथ पूछा-देहान्त हो गया ? ठीक समय पर चण्डप्रद्योत दूल्हा की तरह सज धज "नहीं महाराज! देहान्त नहीं हो गया, परन्तु जो कर मृगावती के स्वागत के लिए खड़ा था। इसी समय कुछ हुआ वह देहान्त के बराबर ही है।' कोट के ऊपर से एक तीर पाया और चण्डप्रद्योत के मुकुट तो ठीक ठीक कहो न, क्या बात है ? में लगा। मुकुट टूट कर जमीन पर गिर पड़ा। सभी "महाराज! आपके प्रस्थान के पीछे एक दिन महासामन्त चिल्ला उठे हाय ! हाय ! यह कैसा अपशकुन रानी ने छिपकर विषपान का उद्योग किया, किन्तु हम हुधा ? तीर के साथ यह पत्र भी था
लोगों की नजर पड़ गई और यह कार्य न हो पाया। चण्डप्रद्योत !
उसके कुछ दिन वाद न मालूम वे कहां चली गई। बिस्तरों तुम मनुष्य नहीं राक्षस हो। तुम एक अबला को पर आपके नाम का यह पत्र पड़ा मिला था। अपना शिकार बनाना नाहते हो। अपनी शक्ति का दुरु- चण्डप्रद्योत पत्र पढ़ने लगा। पयोग करना चाहते हो। पशु हृदय से नारी-हृदय को महाराज !