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म. महावीर और उनका जीवन दर्शन
पुरोहितों का कोई स्थान न था । यह युग तो जैन तीर्थकर ३. मौल उत्तर में) एक समृद्धशाली राजषानी थी, इसके नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, प्राजीवक सम्प्रदाय के पास-पास ही कुण्डपुर या क्षत्रियकुण्ड के महाराज सिवार्य गोशाल, सांख्य दर्शन के कपिलऋषि एवं बौद्धधर्म के पोर उनकी महारानी त्रिशला (प्रियकारिणी) की कोख से प्रवर्तक महात्मा बुद्ध के प्रतिनिधित्व का काल था। भ. महावीर जन्मे थे। अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं एवं ____स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश में विशेषतया गुणों के कारण ही शातपुत्र, वैशालीय, वर्द्धमान और सन्मति शिक्षित वर्ग में भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को प्रादि नामों से प्रसिद्ध थे। उनकी माता त्रिशला चेटक वंश नवीन रूप में डालने के प्रति विशेष जागरूकता दिखाई दे से सम्बन्धित थी, जो विदेह का सर्वशक्तिमान् लिच्छवि रही है । बड़े हर्ष की बात है कि इस प्रसंग में महावीर शासक था, जिसके संकेत पर मल्लवंशीय एवं लिच्छवि पौर बुद्ध को बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति से स्मरण किया जाता लोग मर मिटने को तैयार रहते थे। है और उनके महत्व को प्रांका जाने लगा है । पर पाश्चर्य महावीर के विवाह के सम्बन्ध में एक परम्परा उन्हें तो यह है कि ऐसे महापुरुषों को, जिन्होंने अपनी शिक्षामों बाल ब्रह्मचारी बतलाती है पर दूसरी के अनुसार उनका एवं उपदेशों द्वारा इस देश को नैतिकता एवं मानवता के विवाह यशोदा से हुआ था और उनसे प्रियदर्शना नामकी क्षेत्र में इतना अधिक महान् और समृद्ध बनाया, फिर भी पुत्री उत्पन्न हुई थी। राजपुत्र होने के कारण महावीर के अपनी ही भूमि में उन्हें कुछ समय के लिए भुला दिया तत्कालीन राजवंशों से बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। उनसे अपेक्षा गया। दूसरी सबसे अधिक खटकने वाली बात यह है कि की गई थी कि वे अपने पिता के राज्य का अधिकारपूर्वक महावीर और बुद्ध का महत्व एवं उनके साहित्य का जो उपभोग करें, पर उन्होंने वैसा नहीं किया। ३० वर्ष के मूल्यांकन हम लोग सदियों पूर्व स्वयं अच्छी तरह कर सकते होते ही उन्होंने राजकीय भोगोपभोगों का परित्याग कर थे वह सब अब पश्चिमी विद्वानों द्वारा हुआ और हम प्रसुप्त डाला और प्राध्यात्मिक शांति की खोज के लिए मुनि दीक्षा दशा में पड़े रहे। जैन और बौद्ध साहित्य के क्षेत्र में धारण कर ली इस प्रकार जीवन की कठिनतम समस्यामों पश्चिमी विद्वानों की बहुमूल्य सेवाओं ने हमारी पाखें को सफलता पूर्वक कैसे हल करना चाहिए, इसका एक खोल दी है और आज हम इस स्थिति में हो सके हैं कि सर्वश्रेष्ठ मादर्श उन्होंने तत्कालीन जगत के समक्ष प्रस्तुत हम अपनी विभूतियों को पहचान सकें।
किया। २४ वें तीर्थंकर भ० महावीर म० बुद्ध के समकालीन आध्यात्मिक शांति एवं पवित्रता के मार्ग में राग एवं थे, उनके विचार एवं सिद्धांत भारतीय प्राच्य संस्कृति के
व सिद्धात भारतीय प्राच्य संस्कृति के संग्रह की प्रवृत्तियाँ बड़ी बाधक थी, पर उन्होंने प्रादर्श अनुकूल थे। भ० महावीर एवं उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरों ने रूप से सहर्ष उन सबका परित्याग कर दिया, स्वयं निग्रंप जो भी उपदेश दिये थे वे सब प्राज जैन दर्शन के नाम से बन गए और दैगम्बरी वेष धारण कर साधना और तपश्चविख्यात हैं, पर आज वे हमारे जीवन में सक्रिय रूप से रण में तल्लीन हो गए। इस बीच उन्हें जो-जो कष्ट भोगने नहीं उतरे हैं, जिनका जैन साहित्य में विभिन्न भाषामों पड़े उनका विस्तृत वर्णन आचारांगशास्त्र में मिलता है। द्वारा विवेचन किया गया था।
लोग उन्हें गालियां देते थे, बच्चे उन पर पत्थर फेंकते थे। भारतीय दर्शन एवं संस्कृति के इतिहास में विहार इस प्रकार बंगाल के पूर्वी भाग में उन्होंने बड़ी बड़ी यातप्रान्त का बड़ा महत्व है । म बुद्ध, भ. महावीर, राजर्षि नायें सहीं। १२ वर्ष की कठोरतम यातनामों के पश्चात् जनक जैसी पुण्य विभूतिगों को प्रदान करने का श्रेय इसी महावीर प्रपनी शारीरिक दुर्बलतानों पर विजय प्राप्त कर विहार की पावन पुण्य भूमि को है । मीमांसा, न्याय एवं सके और समय तथा स्थान की दूरी को लांघते हुए शुद्ध वैशेषिक जैसे श्रेष्ठ दर्शनों की बहुमूल्य भेंट देने वाली एवं पूर्णज्ञान की उपलब्धि कर केवली या सर्व कहलाये। मिथिला का गौरव भी तो विहार प्रान्त ही को प्राप्त होता उन दिनों श्रेणिक बिंबसार राजगृही के शासक थे, भगवान है। लगभग २५०० वर्ष पूर्व वैशाली (वसाढ़ पटवा से महावीर की सर्व प्रथम देशना (दिव्य-ध्वनि) रामगृही