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किरण
बारडोलीकेसन्त कुमुवचन
अगर तगर तर तिदुक ताला, सरल सोपारी तरल तमाला ॥ बदरी वकुल मदाड बोजोरी, जाई दुई जंबु जंभीरी। चंदन चंपक चाउ रउली, वर वासंती वटवर सोली। रायणरा जंबु सुविशाला, वाडिम बमणो द्वाष रसाला। फूला सुगुल्ल अमूल्ल गुलाबा, नीपनी बाली निबुक निवा। करणपर कोमल संत सुरंगी, नालीपरी दोशे प्रति चंगी। पाडल पनश पलाश महाधन,
लवली लोन लवंग लताधन ।। बाहुबलि के द्वारा अधीनता स्वीकार न किये जाने पर दोनों पोर की विशाल सेनायें एक दूसरे के सामने प्रा डटीं। लेकिन जब देवों एवं राजाओं ने दोनों भाइयों को ही चरम शरीरी जानकर यह निश्चय किया कि दोनों ओर की सेनामों में युद्ध न होकर दोनों भाइयों में ही जलयुद्ध मल्लयुद्ध एवं नेत्रयुद्ध हो जावे और उनमें जो भी जीत जावे उसे ही चक्रवति मान लिया जावे। इस वर्णन को कवि के शब्दों में पढ़िये:
अन्य युद्ध त्यारे सहु वेढा, नोर नेत्र मल्लाह व परंढ्या । जो जीते ते राजा कहिये, तेहनी प्राण बिनय सुं वहीये । एह विचार करीन नरवर, चल्या सहु साथे महर भर ।
हो हो कार करिते पाया, वछो बच्छ पख्या ले राया। हरकारे पधारे पाडे बलगा बलग करी ते पारे। पग पडघा पोहोदी-तल बाजे, करकडता तरुवर से माने । नाठा बनचर प्राठा कायर, छूटा मपगल फूटा सापर । गह गडता गिरिवर ते पडीमां, फूत फरंता फरिणपति उरीमा। गढ गडगडीमा मंदिर पगेमा, बिग बंतीव मक्या चल चलीग्रा। जन खलभली प्रावाल कछलीमा, भय-भीर अवला कलमलीग्रा। तोपण ले घरणी धवईके,
लड पडता पडता नदि चूकें। उक्त रचना आमेर शास्त्र भंडार के गुटका सं० ५२ में पत्र संख्या ४० से ४८ पर है।
इसका दूसरा नाम ऋषभ विवाहलो भी। यह छोटा सा खण्ड-काव्य है, जिसमें ११ ढालें हैं। प्रारम्भ में ऋषभदेव की माता को १६ स्वप्नों का आना, ऋपभदेव का जन्म होना तथा नगर में विभिन्न उत्सवों का प्रायोजन किया गया है । फिर ऋषभ के विवाह का वर्णन है । अंत की ढाल में उनका वैराग्य धारण करके निर्वाण प्राप्त करना भी बतला दिया गया है।
कुमुदचन्द्र ने इसे भी संवत् १६७८ में घोषानगर में रचा था। रचना का एक वर्णन देखिए:
कछ महाकछ रायरे, जेहन जग जश गायरे। तस कुंपरी रूपं सोहेरे, जोतां जनमन मोहे रे। सुन्दर वेणी विशाल रे, अरष शशी सम भाल रे। नयन कमलदल छाजे रे, मुख पूरणचन्द्र राजे रे। नाक सोहे तिलनु फूल रे, घर सुरंग तणु नहि भूल रे।
ऋषभदेव के विवाह में कौन-कौन सी मिठाइयां बनी थीं, उसका भी रसास्वादन कीजिये:
चाल्या मल्ल प्रसाडे बलीमा, सुर नर किन्नर जोवा मलीना। काछया काछ कशी कड तारणी, बोले बांगर बोली वाणी । भुजा दंड मन खंड समाना, तातावंखारे
नाना।