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सीरा पहाड़ के प्राचीन जैन गुफा मन्दिर
- श्री नीरज जैन -
नाग वंशीय शासक परम शेव थे, अपने अधिष्ठाता स्थान तक फैला हुमा है, जहां उसके दूसरे सिरे पर वाकादेव को मस्तक पर धारण करके उनके भारवाहक बनने टक काल के प्रति प्रसिद्ध चतुर्मुख शिव और पार्वती के कारण वे "भार शिव" भी कहलाए, भारशिवों का उत्तरा- मन्दिर अवस्थित हैं, यहां का चतुर्मुख शिव लिंग, जो धिकार उनकी पुत्री की संतति होने के कारण कालांतर में चम्बुकनाव के नाम से विख्यात है, मूर्तिकला का अपने वाकाटकों को प्राप्त हुमा, संक्षेप में यही भारतीय इतिहास ढंग का एक ही उदाहरण है। यहाँ के भी अनेक अनुपम के उस महत्वपूर्ण काल की कथा है जो कुषाण काल और कलावशेष तथा शिलालेख प्रयाग और रामवन में सुरगुप्त काल के बीच की ऐतिहासिक लड़ी के रूप में जाना क्षित हैं । जाता है वाकाटकों के शासनकाल में भारतीय मूर्तिकला में
पहिली बार इन स्थानों का भ्रमण करते हुए सहज ही
यह प्रश्न मेरे मन में उठा कि जिस काल में भूमरा तथा बड़े महत्त्वपूर्ण पौर कतिपय विस्मयकारी विकास हुए हैं,
नचना के उन अद्भुत मंदिरों का निर्माण हो रहा था उस युग तक मूर्तिकला मनुष्य की धार्मिक श्रद्धा का केन्द्र
उस समय इन स्थानों पर जैन मूर्तियों एवं मंदिरों का होने के अतिरिक्त मानव-मन के सौंदर्य-बोध की अभि
निर्माण अपने क्रमिक विकास की किस स्थिति में था ? व्यक्ति का एक प्रमुख साधन भी बन चुकी थी। उसके
मेरी इस जिज्ञासा का सप्रमाण, विस्तृत और सटीक समापूर्व, यद्यपि बौद्धों में भगवान बुद्ध की मूर्ति बनाने का निषेध
धान मुझे नचना के पास ही सीरा पहाड़ और सिद्धनाथ था, तो भी भिन्न-भिन्न जातकों का प्रश्रय लेकर बौद्ध मठों
में प्राप्त भी हो गया । सिद्धनाथ का जैन स्थापत्य एक पौर विहारों को अलंकृत करने का मार्ग दृढ़ निकाला गया
प्रथक् लेख का विषय था जो "तीन विलक्षण जिन बिम्ब" था। ऐसी स्थिति में शव कैसे सन्तोष करते ? अतः उन्होंने
शीर्षक से अनेकांत के जुलाई ६२ के अङ्क में जा चुका है, शिव लिंग में शिव मुख की प्राकृति उत्कीर्ण करने की प्रथा
प्रस्तुत लेख में केवल सीरा पहाड़ पर प्रकाश डालना ही का प्रारम्भ किया। सतना के पास नकटी की खोह का
मेरा अभीष्ट है। एक मुख शिव लिंग-जो प्रयाग के संग्रहालय में वर्तमान है-इस काल का उत्कृष्ट उदाहरण है, उससे भी अधिक नचना के चतुर्मुख शिव एवं पार्वती मंदिरों के कोटर उत्कृष्ट और मनोरम एकमुख शिवलिंग भूमरा के मंदिर से लगा हुवा, कमल पुष्पाच्छादित एक सुन्दर सरोवर है, में प्रवस्थित है। स्व. श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने भार जिसकी दक्षिण मोर विन्ध्य की एक सुन्दर शाखा पूर्वकुल बाबा नाम से उस मंदिर का वृहत् अनुसंधान किया पश्चिम खड़ी हुई है, यही सीरा पहाड़ है, तालाब के उस था, यह मंदिर परसमनियां पहाड़ पर सतना से पेंतीस मील मोर सामने से ही ऊपर जाने के लिए मार्ग है और कुछ दूर जंगल में स्थित है । इसके भी अधिकांश अवशेष प्रयाग दूर तक सीढ़ियां भी बनी हुई हैं पर चढ़ाई सुगम नहीं है, संग्रहालय में तथा रामवन (सतना) के तुलसी संग्रहालय पर जाने पर एक प्रति विशाल शिला खंड के नीचे प्रकृति में सुरक्षित हैं। शिवमुख की ये प्राकृतियां इतनी सुन्दर, निर्मित दो गुफाएं मिलती हैं, उन दोनों गुफामों में जैन 'सजीव प्रौर कलापूर्ण असित हुई हैं कि समूची और बड़ी- प्रतिमाएं विराजमान हैं, पहिली गुफा में एक मूर्ति है और बड़ी देव प्रतिमाएं भी उनकी तुलना में उन्नीस ही प्रतीत दूसरी में पाठ, दोनों गुफाएं पहिले सामने की ओर से खुली होती हैं।
थीं पर बाद में उनमें दरवाजा छोड़कर ईंटों की दीवार भूमरा का यही पहाड़ सीधा नागोद के नचना नामक उठा दी गई है।