Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 278
________________ २४३ विषय-सूची भूल-सुधार विषय कार्तिकेयानुप्रेक्षा एक अध्ययन नामक लेख के अनुवादक-प्रो० कुन्दनलाल जैन एम० ए० है, श्री भर-जिन-स्तवन भूल से उनका नाम वहां रह गया है । कार्तिकेयानुप्रेक्षा : एक अध्ययन -डा. ए. एन उपाध्ये एम० ए० डीलिट् अनेकान्त को सहायता अनुवादक-प्रो० कुन्दनलाल जैन, एम० ए० २४४ मराठी जैन साहित्य-डा. विद्याधर जोहरा पुरकर ११) श्रीमान् ला० सुमेरचन्द जी सुपुत्री चि० संतोप एम. ए. पी. एच. डी. २५३ ॥ वाला जैन के विवाहोपलक्ष में । मध्यकालीन जैन हिन्दी-काव्य में प्रेमभाव ७) चि० विनयकुमार जैन सुपुत्र ला० मनमोहनदास -डा. प्रेमसागर एम० ए० पी० एच० डी. २ जी के विवाहोपलक्ष में प्राप्त, मा० श्री महाराजप्रसाद जी धर्मस्थानों में व्याप्त सोरठ की कहानी केशिल देहरादून द्वारा -महेन्द्र भनावत एम० ए० ६) श्रीमान् ला० श्यामलाल जी ठेकेदार देहली द्वारा दिग्विजय (ऐतिहासिक उपन्यास) अपनी ध०प० श्री चम्पादेवी के स्वर्गवास पर निकाले -मानन्दप्रकाश जैन जम्बुप्रसाद जैन २६७ हुए १५००) के दान में से प्राप्त । दातारों को साभार धन्यवाद, नवागढ़ (एक महत्वपूर्ण मध्यकालीन जैन तीर्थ मैनेजर अनेकान्त। -श्री नीरज जैन झालरापाटन का एक प्राचीन वैभव अनेकान्त की सहायता के चार मार्ग -डा. कैलाशचन्द जैन एम० ए० पी० एच० डी० २७६ १. अनेकान्त वीर सेवा-मन्दिर का ख्याति प्राप्त शोधजैन परिवारों के वैष्णव बनने सम्बन्धी वृत्तान्त पत्र है । जैन समाज को चाहिए कि वह विवाह, पर्व और -श्री अगरचन्द नाहटा २८२ महोत्सवों आदि पर अच्छी सहायता प्रदान करे। ज्ञात वंश -श्री पं० वेचरदास जी दोशी २८६ २. पाँच सौ, दो सौ इक्यावन और एक सौ एक प्रदान साहित्य-समीक्षा -डा. प्रेमसागर जैन २८८ कर संरक्षक, सहायक और स्थायी सदस्य बनकर अनेकांत की आर्थिक समस्या दूर कर उसे गौरवास्पद बनाएं। ३. अनेकान्त को भारतीय विश्वविद्यालयों, जैन जैनेतर कालेजों, संस्कृत विद्यालयों, पाठशालाओं, हायर सेकेण्डरी । स्कूलों और लायबेरियों तथा पुस्तकालयों को पानी ओर से फ्री भिजवाएं। ४. जो सज्जन अनेकान्त के ५ सदस्य बनाकर उनका सम्पादक-मण्डल ३०) मूल्य भिजवाएंगे, उन्हें अनेकान्त एक वर्ष तक फ्री डॉ० प्रा० ने० उपाध्ये भेजा जावेगा। -व्यवस्थापक श्री रतनलाल कटारिया अनेकान्त का वार्षिक मूल्य छः रुपया है। डॉ. प्रेमसागर जैन अत: प्रेमी पाठकों से निवेदन है कि वे छह रुपया ही मनीग्रार्डर से निम्न पते पर भेजें। श्री यशपाल जैन मैनेजर अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिये सम्पादक मंडल 'अनेकान्त' वीर-सेवा-मंदिर उत्तरदायी नहीं है। २१ दरियागंज,दिल्ली - 'अनेकान्त' वीर-सेवा-मंदिर

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