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मराठी में बैन साहित्य
२५५ १७. जिनसागर
में इन्होंने सम्यग्दर्शन के शिष्य में पाठ कथाएँ बतलाई हैं। __ये कारंजा के भट्टारक देवेन्द्रकीति के शिष्य थे। इन्होंने हनुमान पुराण इनकी दूसरी रचना है।' शक १६५६ में जीवंधर पुराण लिखा। इन छोटी रच- २१.माधुनिक समय नामों की संख्या ३० है जिनमें छः व्रत कथाएँ, तीन अन्य उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध से मराठी साहित्य में कई कथाएं, चार पूजा पाठ, सात स्तोत्र, सात प्रारतियाँ और आधुनिक प्रवृत्तियां शुरू हुई। शोलापुर से सेठ हीराचन्द तीन स्फुट रचनाएं शामिल हैं। इन रचनाओं की ज्ञात नेमचन्द दोशी ने जैन बोधक मासिक पत्र शुरू किया तथा तिथियां शक १६४६ से शक १६६० तक हैं।
रत्न करण्ड आदि आदि ग्रंथों के मराठी रूपान्तर प्रकाशित १८. महतिसागर
किए। ये भी कारंजा के भट्टारक देवेन्द्रकीति (उपर्युक्त
जैन बोधक के अगले सम्पादक पं० कल्लप्पा निटवे देवेन्द्रकीति के प्रशिष्य) के शिष्य थे। प्रादिनाथ पंच ने महापुराण, देवागम की वसुनन्दिवृत्ति, पंचास्तिकाय, कल्याणिक कथा, रविवार व्रत कथा आदि छोटी रचनाओं
द्वादशानुप्रेक्षा आदि कई ग्रन्थों के मराठी रूपान्तर प्रसिद्ध के अतिरिक्त इन्होंने कई पदों की रचना की है। इनका
किये । स्वतन्त्र मराठी रचनाओं में कवि रणदिवे का नाम समय अठारवीं सदी का अन्तिम तथा उन्नीसवीं सदी का
उल्लेखनीय है । इधर कुछ वर्षों से शोलापुर की जीवराज प्रारम्भिक भाग है।
ग्रन्थ माला ने मराठी जैन साहित्य के कुछ प्राचीन ग्रंथों
को प्रकाशित किया है तथा कई प्राचीन कथाओं के सुन्दर १९. रत्नकोति
माधुनिक मराठी रूपान्तर प्रकाशित किए हैं। ये कारंजा के भट्टारक सिद्धसेन के शिष्य थे। इन्होंने
२२. समारोप सन् १८१३ में उपदेश रत्नमाला की रचना की। भट्टारक
मराठी जैन साहित्य का उपर्यक्त विवरण दिग्दर्शन के सकल भूषण की संस्कृत रचना षट्कर्मोपदेश रत्नमाला का
तौर पर लिखा है । जिनकी एक या दो छोटी रचनायें ही यह रूपान्तर है।
प्राप्त हैं ऐसे कई कवियों का इसमें समावेश नहीं है। २०. दयासागर
आधुनिक समय के भी सभी अनुवादकों या लेखकों का ये भी उन्नीसवीं सदी के लेखक हैं। धर्मामृत पुराण वर्णन करना सम्भव नहीं हुआ। तथापि इस परिचय से १. सभी रचना में कामता मराठीतर भाषी जैन विद्वान् कुछ लाभ उठा सकेंगे ऐसी ग्रन्थमाला १९५६ शोलापुर ।
प्राशा है: २. महति काव्य कुंज नामक संग्रह में प्रकाशित। ३. जिनदास चवड़े, वर्धा द्वारा प्रकाशित ।
क्या तू महान् बनना चाहता है। यदि हाँ तो अपनी पाशा लतानों पर नियन्त्रण रख, उन्हें बेलगाम प्रश्व के समान मागे न बढ़ने दें। मानव की महत्ता इच्छामों के बमन में है, गुलाम बनने में नहीं। एक दिन मायेगा, जब तेरी इच्छाएं ही तेरी मृत्यु का कारण बनेंगी। हम सबको अपने हाथ की पाँचों अंगुलियों की तरह रहना चाहिए, हाथ की अंगुलियो सब एकसी नहीं होती, कोई छोटी, कोई बड़ी, किंतु जब हम हाथ से किसी वस्तु को उठाते हैं तब हमें पाँचों हो अगुलियां इकट्ठी होकर सहयोग देती
-विनोबा