Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 250
________________ २२० एक ने पैर पकड़ कर उठा लिया और इस तरह लादकर चारों तरफ से घिरा था। राजा को समझने में देर न लमी, वे राजमहल में पहुँचे। राजा ने कहा-यह क्या ! वह रानी के कमरे की ओर भागा। 'महाराज! न तो यह बोलता है, न हिलता-जुलता रानी अभी तक बिस्तर पर पड़ी थी। राजा ने उसे है। 'राजा ने क्रूरतापूर्वक हँसते हुए कहा-अच्छा जरा आवाज देकर जगाया परन्तु रानी ने कुछ भी उत्तर न इसकी मरम्मत कर दो।' दिया। राजा ने भर्राई हुई आवाज में कहा-'यह रिझाने सिपाही, भूखे, भेड़िए की तरह ट पड़े। शोर होने का समय नहीं है । मैं मौत के मुंह में फंस गया है। सिर्फ लगा । रानी के कानों तक भी यह समाचार पहुँचा । उसका अन्तिम भेंट करने पाया हूँ। अबकी बार भी रानी न बोली। कोमल हृदय पिघल उठा। वह दौड़ कर नीचे आई। 'अच्छा ! इतना क्रोध !' 'इतना अभिमान ।' यह कार्तिकेय का शरीर खून से लथपथ हो रहा था। रानी ने कहकर वह कमरे से बाहर हो गया परन्तु कमरे से चिल्लाकर कहा-परे यह क्या करते हो। यह तो मेरा बाहर कोई दूसरा आदमी था ही नहीं। नीचे बहुत से भाई कार्तिकेय है। राजा एक क्षण के लिए चौंका, परन्तु आदमियों की मावाज पा रही थी। राजा ने दौड़कर बीच दूसरे ही क्षण उसने कहा-कोई भी हो। जो राज-द्रोही के दो तीन दरवाजे बन्द कर दिये। फिर मन ही मन है उसकी यही दशा होना चाहिये रानी ने कुछ न सुना। गुनगुनाया-रानी, मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया है । खन से स्नान किए हये अपने भाई से लिपट कर रोने परन्तु अन्तिम समय में तुम मुझसे बात भी न करो, यह लगी। तो समस्त अपमानों का बहुत अधिक प्रतिशोध है। उसकी राजा ने कठोरता से कहा-राज शासन में आड़े पाने भाँखों से प्रांसू बहने लगे। उमने एक बार रानी को का तुझे कुछ अधिकार नहीं है। गुलाम की तरह रहना तो हाथ पकड़कर उठाने का विचार किया। इसलिए कमरे में रह। इसके बाद राजा ने रानी का हाथ पकड़कर दूसरी पहुँचा । रानी का हाथ पकड़ा परन्तु वह बिलकुल ठंडा था, तरफ ढकेल दिया, और चिल्लाकर कहा- हटामो इसको ! नाड़ी बन्द थी। गनी तो कभी की स्वर्ग चली गई थी। पांसू बरसाती हुई दासियों ने रानी को अपने हाथों पर राजा रानी का मिर अपनी गोद में रखकर आँसू बहाने रक्खा और भीतर ले गई। लगा इतने में एक जोर के धक्के से कमरे के किवाड़ टूटकर गिर पड़े और पाँच सात प्रादमियों ने कमरे में प्रवेश किया। बाकी लोग बाहर खडे रहे । राजा ने ग्रामू भरी आँखों से राजमहल के बाहर कार्तिकेय का अर्धमृतक शरीर एक कम्बल से ढक कर डाल दिया गया था जिसे कि तुरन्त उनकी तरफ देखा और नजर फेंककर फिर रानी का मुह देखने लगा। प्रागन्तुकों में से एक ने कहा-रोहेड राज्य ही कुछ लोग उठा ले आये थे। रात्रि भर खूब परिचर्या की प्रजा की तरफ से तुम को गिरफ्तार करता हूँ। होती रही परन्तु सफलता के चिन्ह न थे। दूसरी तरफ रात्रि भर लोकसभा की बैठक होती रही थी। सब काम राजा ने कुछ उत्तर न दिया। दूसरा बोला-तुमने प्रजा के पूज्य व्यक्ति का वध चुपचाप हो रहा था। रोहेड़नगर एक तरह से शान्त था किया है। परन्तु यह शान्ति ऐसी थी जैसे तूफान आने के पहले समुद्र तीसरा बोला-तुमको मृत्युदण्ड दिया जायगा । में होती है। राजा ने कुछ उत्तर न दिया । वह उठा और उसने हथकड़ी पहिनने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिये। प्रात:काल जब राजा सोकर उठा तब उसे राजमहल बिलकुल शान्त मालूम हुआ । नौकरों को पुकारा परन्तु कार्तिकेय की अवस्था बहत खराब थी बीच-बीच में कोई उत्तर नही । राजा पहिले क्रुद्ध हुआ, फिर चिन्तातुर। वे वेहोश हो जाते थे । जिस समय प्रजा के मुग्वियों ने वह उठा। विड़की में से बाहर नजर डाली। राजमहल राजा को लाकर वहाँ खड़ा किया उस समय वे बेहोश थे।

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