Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 267
________________ गुर्वावली नन्दीतट गच्छ लेखक-पं० परमानन्द शास्त्री, बिल्ली गुर्वावली प्रस्तुत गुर्वावली काष्ठासंघ के नन्दीतटगच्छ की है। विजयसेन, स्वर्णकीति, भानुकीति, संभसेन, विख्यातकीति, इस गच्छ का उदय 'नन्दीतट ग्राम' से हुआ है। भाचार्य लघुराजकीति, नंदकीति, चारुकीर्ति, विश्वसेन, देवकीर्ति, देवसेन के अनुसार भ० कुमारसेन ने काष्ठासंघ की स्थापना ललितकीति, श्रुतकीति, जयसेन, उदयसेन, गुणदेवसूरि, की थी। इस गच्छ का दूसरा नाम 'विद्यागण' भी मिलता जिनसेन, सूर्यकीर्ति, अश्वसेन, श्रीकीति, चारुसेन, शुभकीति, है, जो सरस्वती गच्छ का ही अनुकरण मात्र है। इसका कीर्तिदेव, भवांतसेन, लोककीति, त्रिलोककीर्ति, अमरकीति, तीसरा नाम 'रामसेनान्वय' भी है। नांदेड से ही नन्दीतट कमलसेन, सुरसेन, विजयकीर्ति, रामकीर्ति, उदयकीर्ति, राज गच्छ का उदय हमा है। यह गुर्वावली इसी नन्दीतटगच्छ कीति, कुमारसेन, पप्रकीति, पनसेन, भुवनकीति, विख्यातकी है । इसका उदय कब और कैसे हुआ? यह विचारणीय कीति भावसेन, रत्नकीर्ति, लक्ष्मसेन, धर्मसेन भीमसेन, है। भट्टारक सम्प्रदाय में इम गच्छ के कुछ विद्वान् भट्टा- विजयसेन, कमलकीति, रत्नकीति, महेन्द्रसेन, विशालकीर्ति, रकों का परिचय दिया गया है, पर उसमें भी यह नहीं और विश्वभूषण । बतलाया जा सका कि उक्त 'नन्दीतटगच्छ' का उदय और जान पड़ता है कि ऊपर के नामों में से कितने ही नाम अभ्युदय एवं ह्रास कब हुआ है ? गुर्वावली में बतलाया अन्य पट्टावलियों के गण-गच्छादि के होंगे, पर उनका गया है कि रामसेन से इस गच्छ की परम्परा चली है जो यथार्थ परिचय न होने से उनके सम्बन्ध में विशेष प्रकाश नरसिंहपुरा जाति के संस्थापक थे। पर वे कब हुए, प्ररि डालना सम्भव नहीं है। उनका जन्म स्थान कहाँ है, उनके गुरु कौन थे, और उन्होंने नरसिंहपुरा जाति की स्थापना कहां और कब की, यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका। इसके जानने का भी कोई वृषभादिवीरपयंतान् नत्वा तीर्थकृतस्त्रिधा । साधन प्राप्त नहीं है । नन्दीतटगच्छ की सूचक प्रशस्तियाँ स-गणेशानहं वक्ष्ये गुरुणामावली मुदा ॥१॥ और मूर्तिलेख प्रादि सभी अर्वाचीन हैं, उनका समय १६वीं वृष वृषभसेनाद्याः सिंहसेनादयोऽजितं । १७वीं शताब्दी है । अतः उपलब्ध सामग्री भी उसके इति- संभवं चारुषेणाद्याः वजनाभि पुरस्सरां ॥२॥ वृत्त पर ठीक प्रकाश नहीं डालती। कपिध्वजं चामराद्याः सुमति पद लांच्छनं । ___ इस गुर्वावली के कुछ पद्य प्रतिष्ठासार और अन्य ये बच चमरस्पृष्टाः मुपावं बलिपूर्वकं ॥३॥ गुर्वावलियों में भी पाये जाते हैं। महावीर की अङ्गश्रुत चंद्रप्रभं दत्तमुत्क्षी पुष्पदन्तं समाश्रिता । परम्परा के बाद जिन विद्वानों और प्राचार्यों तथा भट्टारकों विदर्भाद्या शीतलेशं मुनिगार पुरस्मरा ॥४॥ का उल्लेख किया गया है। उनके नाम इस प्रकार है कंथु प्रधानाः श्रेयान्सं धर्माद्या द्वादशं जिनं । रामसेन (नरसिंहपुरा जाति के संस्थापक) नेमसेन, विमलं मेरू पौलस्त्या जयाद्याश्चतुर्दशम् ॥५॥ नरेन्द्रसेन, वासवसेन, महेन्द्रसेन, आदित्यसेन, सहस्रकीर्ति श्रुति धर्म त्वरिष्टसेनाद्या शांति चक्रा युधादयः । कीर्ति, देवकीति, मारसेन, विजयकीर्ति, केशवसेन, महासेन, स्वयंभू प्रमुखा कुंथु कू भार्याद्यास्तरप्रभुं ॥६॥ मेघसेन, वणसेन, विजयसेन, हरिसेन, चरित्रसेन, वीरसेन, मल्लि विशाखप्रमुखा मल्याद्या मुनिसुव्रतं । मेरुसेन, शुभंकरसेन,जयकीति, चन्द्रसेन,सोमकीर्ति, लघुसहस्र- नमीशं सुप्रसन्नात्मा वरदत्त पुरस्सरा ॥७॥ कीति, महाकीति, यशःकीति' गुणकीर्ति पद्मकीर्ति, भुवन- नेमि पाश्वं स्वयंभूवा-द्या गौतमांद्याश्च सन्मति । कीति, मल्लकीति, मदनकीति, मेरूकीर्ति, गुणसेन, रत्नकीर्ति, तेभ्यो गणघरेशेभ्यो दत्तो?यं पुनः पुनः ॥८॥

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