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तीन विलक्षण जिन बिम्ब
लेखक-श्री नीरज जैन
इस महादेश में प्रचलित अनेक धर्मों में परस्पर जो चिह्न अंकित है, दोनों मोर दो कमलपुष्प बने हैं जिनके साम्य और समन्वय प्रारम्भ से ही रहा है उसके अनेक ऊपर २२+२२ इंच की पद्मासन श्रीवत्स चिह्नांकित भगउदाहरण प्रायः सभी धर्मों के शास्त्रों, स्तोत्रों तथा क्रिया- वान आदिनाथ की मनोज्ञ मूर्ति है। कलाप में बहुतायत से प्राप्त होते ही हैं पर इस प्रकार के इस मूर्ति की सुन्दर जटाओं का अद्वितीय संयोजन ही साम्य एवं समन्वय का चित्रण मूर्त रूप में भी यत्र तत्र इसकी विशेषता है। यहां केशराशि का संयोजन सीरा दिखाई दे जाता है और उससे हमारी सैकड़ो-हजारों वर्ष पहाड़ की गुफा में स्थित जैन प्रतिमाओं की तरह प्रारम्भ प्राचीन सरल-सामाजिक एवं उदार धार्मिक दृष्टि का पता होता है तथा ऊपर जटाओं का बहुत कलात्मक गुंथन करके चलता है।
कलाकार ने स्पष्ट ही भुमरा के एकमुख शिव या नचना पुरातत्त्व विशेषज्ञ तथा पर्यटक श्री मुनि कान्तिसागर ने के चतुर्मुख शिव की जटाओं की प्रतिकृति प्रस्तुत करने का "खण्डहरों का वैभव" में एक ऐसे पाषाण खण्ड का उल्लेख प्रयास किया है । इन दोनों शिव मूर्तियों की जटामों से इस किया हैं जिसमें एक साथ शिव और भगवान आदि नाथ जटा-जूट संयोजन का साम्य इतना स्पष्ट है कि कलाकार का अंकन किया हुआ उन्हें मिला था ।
की इस अद्भुत प्रेरणा का स्रोत उजागर हो उठा है । जटाओं पुरातत्व दर्शन की लालसा में भ्रमण करते हुए मुझे की तीन तीन अलकें कानों के पीछे से पाकर कन्धों पर भी कुछ ऐसी विलक्षण प्रतिमानों का दर्शन करने का लहराती दिखाई गई हैं और शेष जटाएं पीठ की ओर सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिन्हें देखकर उस युग की वैचारिक झूलती चली गई हैं तीर्थंकर प्रतिमाओं में इस प्रकार का सरलता और धार्मिक उदारता पर गर्व करने का मन हो केशराशि-संयोजन निश्चित ही अद्यावधि अनुपलब्ध है। उठता है। ऐसी मूर्तियों में से तीन की चर्चा में इस लेख में मूर्ति के पार्श्व भाग में गोमुख यक्ष और देवी चक्रेश्वरी कर रहा हूँ।
का स्पष्ट अंकन है। प्रभामण्डल में कमल की प्राकृति दिखाई दो प्रतिमाएं पन्ना जिले के सिद्धनाथ नामक स्थान से गई है जिसके दोनों ओर हाथ में पुष्पमाल लिए उड़ते हुए कुछ समय पूर्व लाकर सलेहा के जैन मन्दिर में रख दी गई विद्याधर अंकित हैं। इन विद्याधरों का अवलम्बन लेकर है। यह सिद्धनाथ अवश्य ही कभी जैन केन्द्र रहा होगा स्थित की गई चौकी पर दोनों ओर से एक एक हाथी सूंड में जैसा कि उस स्थान के नाम से और इन मनोहर सविशेष घट लेकर भगवान का अभिषेक करते हुए दिखाए गए हैं। मूर्तियों से स्पष्ट हो जाता है। इस स्थल पर खोज किये जाने हाथियों के शरीर की मरोड़ तथा घटों की स्थिति सुन्दर की आवश्यकता है। मूर्तियों का विवरण इस प्रकार है:- बन पड़ी है। इन हाथियों के बीच में एक सुन्दर छत्र का भी आदिनाथ के गूंथे हुए जटा जूट
अंकन है जिसे त्रैलोक्यनाथ की तीनलोक-परमेश्वरता बताने यह २७ इंच चौड़े और ४० इंच ऊँचे पाषाण फलक के अभिप्राय से तीन भागों में प्रदर्शित किया गया है। पर युगादि देव की पद्मासनस्थ प्रतिमा है । नीचे सिंहासन में महेश्वर का तीसरा नेत्र युगादिदेव के मस्तक पर दोनों मोर दो वहिर्मुख सिंह और बीच में धर्मचक्र का अंकन इसी मन्दिर में सिद्धनाथ से ही लाई गई यह एक और है। यह धर्मचक्र बुद्ध शिल्प की प्रतिकृति है तथा गुप्तकाल प्रतिमा है जिसका प्राकार १४४१८ इंच है। भगवान की प्रतिमाओं में अधिकतर पाया जाता हैं। मध्य कालीन आदिनाथ की यह प्रतिमा-वृषभ-चिह्नांकित है। यद्यपि मूर्तियों में इसका अंकन यदा कदा ही हुआ है। पीठिका के इसका केश-संयोजन साधारण गुच्छकों के माध्यम से दर्शाया ऊपर से झूलती हुई झालर पर पुष्पमाल भौर वृषभ का गया है परन्तु कंधेपर जटामों का अंकन दर्शनीय है। इस