Book Title: Anekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 221
________________ वीर-सेवा-मन्दिर और "अनेकान्त" के सहायक १०००) श्री मिश्रीलाल जी धर्मचन्द जी जैन, कलकत्ता ५००) श्री रामजीवनदाम जी सरावगी, कलकत्ता ५००) श्री गजराज जी मरावगी, कलकत्ता ५०० ) श्री नथमल जी सेठी, कलकत्ता ५००) श्री वैजनाथ जी धर्मचन्द जी, कलकत्ता ५००) श्री रतनलाल जी भाकरी, कलकत्ता २५१) ग० वा० हरम्बचन्द जी जैन, राँची २५१) श्री समरचन्द जी जैन ( पहाड़या), कलकत्ता २५१) श्री स० मि धन्यकुमार जी जैन, कटनी २५१) मेट मोहनलाल जी जन कलकत्ता मै मुन्नालाल द्वारकादाम, कलकत्ता २५०) श्री वीर जो गोजी कलकला २५०) श्री मन्दिरदान जी जैन कता २१) श्री मपई कु· दननान जी कटनी २५०) श्री महावीरप्रसाद जी अग्रवाल, कलकत्ता २५०) श्री बी० प्रा० सी० जैन, कलकत्ता २५०) श्री रामस्वरूप जो नेमिचन्द, कलकत्ता १५० ) श्री बजरंगलाल जी चन्द्रकुमार, कलकत्ता १५०) श्री चम्पालाल जी सरावगी, कलकत्ता १५०) श्री जगमोहन जी सरावगी, कलकता १५०) श्री कस्तूरचन्द जी श्रानन्दीलाल, कलकत्ता १५०) श्री कन्हैयालाल जी सीताराम, कलकत्ता १५०) श्री पं० बाबूलाल जी जैन, कलकत्ता १५०) श्री मालीराम जी सरावगी, कलकत्ता १५०) श्री प्रतापमल जी मदनलाल जी पांड्या, कलकत्ता १५०) श्री भागचन्द्र जी पाटनी, कलकत्ता १५०) श्री शिखरचन्द जी सरावगी, कलकत्ता १०) श्री सुरेन्द्रनाथ जी नरेन्द्रनाथ, कनकला १००) श्री रूपचन्द जी जैन, कलकत्ता १००) श्री बद्रीप्रसाद जी श्रात्माराम, पटना १०१) थी मारवाड़ी दि० जैन समाज, व्यावर १०१) श्री दिगम्बर जैन समाज, केकडी 'नेकान्त' के ग्राहक बनें 'कान' पुराना स्थानि प्राप्त शोध-पत्र है। अनेक विद्वानों और समाज के प्रतिव्यक्तियों का अभिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो सकता सकता है जब उसमें घाटा न हो और इसके लिए ग्राहक सन्या का बढ़ना अनिवार्य है । हम विद्वानो, प्रोफेसरों, विद्यार्थियों, सेटियों, शिक्षा-प्रेमियों, शिक्षा-संस्थानों, संस्कृत विद्यालयों कालेजों और धन में प्रभावना में श्रद्धा रखने वालों से निवेदन करते हैं कि ही अनेकान्त के प्राय इससे समूची जैन समाज में एक शोध-पत्र प्रतिष्ठा और गौरव के साथ चल सकेगा। भारत के अन्य शोध पत्रों की तुलना में उसका समुन्नत होना यावश्यक है | व्यवस्थापक श्रनेकान्त

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