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किरह
प्राचार्य मेमियन सिद्धान्त-मावती की बिम्बयोगमा
रहा है । अतः निम्न तथ्य दृष्टिगत होते हैं।
है, जब लालिमा का सर्वथा प्रभाव हो जाता है और वस्त्र १. सम्यक्त्वादि गुण महनीय हैं ।
• पूर्ण श्वेत निकल पाता है। इसी प्रकार लोभकषाय का २. इन गुणों की अनुपलब्धता-सम्यक्त्वादि गुण सूक्ष्म अस्तित्व दसवें गुण-स्थान में है, पर बारहवें गुणस्थान सर्वत्र उपलब्ध नहीं होते।
में लोभ का प्रभाव हो जाता है और पात्मा पूर्ण स्वच्छ ३. सम्यक्त्वादि गुण अन्तरंग और बहिरंग को उज्ज्वल निकल आती है। बनाते हैं तथा इनके प्रकाश से रागात्मिक वृत्ति का मनो- कवककलजुबजलं -ग्यारहवें उपशान्त कषाय नामक वैज्ञानिक प्रक्रिया प्रदान, विलियन, मार्गान्तरीकरण और गुणस्थान में होने वाले भावों की निर्मलता को स्पष्ट करने शोष द्वारा परिष्करण होता है।
के लिए कतकफलयुक्त जल अथवा शरत्कालीन सरोवर के ४.मात्मा के वास्तविक उपादेय गुण ये सम्यक्त्वादि जल में बिम्ब की योजना की गयी है। निर्मली डालकर ही हैं और ये ही प्रात्मा के भूषण हैं।
स्वच्छ किया गया जल ऊपर से स्वच्छ दिखलायी पड़ता गलियतिमिरेहि'-तिमिर अन्धकार सघन और है, पर गन्दगी उसके नीचे दबी रह जाती है । इसी प्रकार कृष्णवर्ण का होता है, जब इसके कई परत एकत्र हो जाते शरत्कालीन तालाब का जल ऊपर से निर्मल दिखलायी हैं और इसकी सघनता बढ़ जाती है, तो रूपदर्शन का पड़ता है, पर थोड़ा ही बाह्य निमित्त मिलते ही गन्दा हो प्रभाव हो जाता है । अज्ञान के इसी स्वरूप की अभिव्यंजना जाता है, नीचे दबी हुई गन्दगी ऊपर आ जाती है। यह के निमित्त तिमिर बिम्ब की योजना की गयी है। प्रज्ञान बिम्ब शुद्धपरिणामों की तह में स्थित कषाय प्रवृत्तिके पूर्णतः नष्ट होने पर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है उपशान्त कषाय का स्पष्टीकरण करता है। और उस समय दिव्य मालोक छा जाता है। अन्धकार के फलिहामलमायणबयसमचित्तो'-'स्फटिक के पात्र में नष्ट होने पर भी प्रखण्ड प्रकाश व्याप्त हो जाता है। रखा हुमा निर्मल जल' प्रत्यधिक या पूर्णत: निर्मलता का तिमिर बिम्ब अज्ञान के समस्त स्वरूप की पूर्णतया अभि- बिम्ब उपस्थित करता है। क्षीणकषाय गुणस्थान में समस्त व्यञ्जना करता है।
विकारों के निकल जाने से प्रात्मप्रवृत्ति बिल्कुल निर्मल हो धुदको भयवत्वं सूक्ष्मसाम्पराय नामक दसवें गुण- जाती है। समस्त मोहनीय कर्म का विनाश होने से प्रत्यंत स्थान में सूक्ष्मलोभ के रहने से होने वाली भात्मवृत्ति को शुद्ध परिणति उत्पन्न होती है। इस बिम्ब द्वारा निम्न चित्र धुले लाल वस्त्र के बिम्ब द्वारा उद्घाटित किया गया है। उपस्थित होते हैं। लाल रंग से रंगे वस्त्र के धुलवा देने पर भी उसमें हल्की १. निर्मल वस्तु निर्मल पात्र में अत्यधिक निर्मल सी लालिमा लगी रह जाती है । इसी प्रकार संज्वलन लोभ प्रतीत होती है । प्रात्मा स्वभावतः निर्मल है। मोहनीय कर्म के अवशेष रहने पर दसवें गुण-स्थान में यञ्चित् राग- के विनाश से प्रात्मा के भोपाधिक विकार भी नष्ट हो जाते वृत्ति लगी रह जाती है। इस बिम्ब द्वारा निम्न तथ्य हैं। जिससे प्रात्मा पूर्णतः निर्मल प्रतीत होने लगती है। दृष्टिगत होते हैं।
२. निर्मल जल के समान चित्त को निर्मल कहने से १. लाल रंग के पक्के होने के समान लोभकषाय का हमारे नेत्रों के समक्ष दो दृश्य उपस्थित होते हैं। पहला स्थायित्व ।
दृश्य तो यह है कि प्रतीन्द्रिय संवेदन के अतिरिक्त अन्य २. लाल घुले वस्त्र की हल्की लालिमा के समान दसवें किसी ब्यापार की अवस्थिति नहीं है । मूलवृत्तियाँ-क्षुषादि गुण-स्थान में संज्वलनलोभ का अस्तित्व ।
की वृत्ति, जिनकी उत्पत्ति से चित्त में विकार उत्पन्न होता ३. उत्तरोत्तर लाल वस्त्र के धुलवाने पर भी उसकी है, समाप्त हो चुकी है। सहज क्रियामों द्वारा होने वाली लालिमा कम होती जाती है और एक ऐसी स्थिति माती मानसिक प्रतिक्रियाएं भी नहीं रही हैं। दूसरा चित्र यह १.जीवकाण्ड गा० ५४
३. वही गाथा ६१ २. वही गाथा ५९
४. वही गाथा ६२