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बारडोली के जैन सन्त कुमुदचन्द्र
डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल एम० ए० पी-एच० डी० बारडोली गुजरात का प्रसिद्ध नगर है। सन् १९२१ ने उनकी निम्न शब्दों में प्रशंसा की है :में यहां स्व० सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत की स्वत- कला बहोत्तर अंग रे, सीयले जीत्यो अनंग, न्त्रता के लिये सत्याग्रह का बिगुल बजाया था और बाद
माहंत मुनी मूलसंघ के सेवो सुरतरू जी। में वहीं की जनता द्वारा उन्हें 'सरदार' की उपाधि दी सेवो सज्जन प्रानंद धनि कुमुदचन्द मुणिद, गई थी। माज से ३५० वर्ष पूर्व यह नगर अध्यात्म का __रतनकीरति पाटि चंद के गछपति गुणनिलो जी। केन्द्र था । यहाँ पर ही सन्त कुमुदचन्द्र अपने गुरु भ० रत्न
जीवों की रक्षा करने के कारण लोग उन्हें दया का कीति एवं जनता द्वारा भट्टारक के पद पर मभिषिक्त किये
वृक्ष कहते थे। विद्यावल से उन्होंने अनेक विद्वानों को गए थे। इन्होंने वहां के निवासियों की धार्मिक चेतना
अपने वश में कर लिया था। उनकी कीर्ति चारों ओर फैल जाग्रत की एवं उन्हें सच्चरित्रता, त्याग तथा संयम अपनाने
गयी थी तथा राजा-महाराजा एवं नवाब उनके प्रशंसक के लिए बल दिया।
बन गये थे। ___ सन्त कुमुदचन्द्र वाणी से मधुर, शरीर से सुन्दर तथा
कुमुदचन्द्र का जन्म गोपुर ग्राम में हमा था। पिता मन से स्वच्छ थे। जहाँ भी उनका विहार होता जनता
का नाम सदाफल एवं माता का नाम पद्माबाई था । इन्होंने पीछे हो जाती। उनके शिष्यों ने अपने गुरू की प्रशंसा में
मोढ वंश में जन्म लिया था। इनका जन्म का नाम क्या विभिन्न पद लिखे हैं। संयमसागर ने उनके शरीर को
था, इसके विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन वे बत्तीस लक्षणों से सुशोभित, गम्भीर बुद्धि के धारक तथा
धारक तथा जन्म से होनहार थे। वादियों के पहाड़ को तोड़ने वाले वज़ के समान कहा है
बचपन से ही ये उदासीन रहने लगे और युवावस्था से ते बहु कूखि उपनो वीर रे, बत्तीस लक्षण सहित शरीर रे।
पूर्व ही इन्होंने संयम धारण कर लिया। इन्द्रियों के ग्राम बुद्धि बहोत्तरिछे गंभीर रे, वादी नग खंडन व सम धीर रे॥
को उजाड़ दिया तथा कामदेवरूपी सर्प को जीत लिया। उनके दर्शनमात्र से ही प्रसन्नता होती थी। वे पांच
अध्ययन की पोर इनका विशेष ध्यान था। ये रात-दिन महाबत तेरह प्रकार के चारित्र को धारण करने वाले एवं
व्याकरण, नाटक, न्याय, मागम एवं छन्द अलंकार शास्त्र बाईस परीषह को सहने वाले थे। एक दूसरे शिष्य धर्म
प्रादि का अध्ययन किया करते थे। गोम्मटसार आदि सागर ने उनकी पात्रकेशरी जंबुकुमार, भद्रबाहु एवं गौतम ... गणघर से तुलना की है। उनके विहार के समय कुंकम ४. मोढ वंश शृंगार शिरोमणि, साह सदाफल तात रे । छिड़कने तथा मोतियों का चौक पूरने एवं बघावा-गाने के जायो यतिवर जुग जयवंतो, पद्माबाई सोहात रें। लिए भी कहा जाता था। उनके एक और शिष्य गणेश ५. बालपणे पिणे संयम लीघो, घरीयो वेराग । १. पंचा महावत पाले चंग रे, त्रयोदश चरित्र के अभंग रे।
इन्द्रिय गाम उजारया हेला, जीत्यो मद नाग रे ॥ बावीस परीसा सहे मंगि रे, दरशन दीठे रंग रे॥ X
६. महनिशि छंद व्याकर्ण नाटिक भणे, ..
. २. पात्रकेशरी सम जाणियेरे, जाणों वे जंबुकुमार। न्याय मागम अलंकार। ___ भद्रबाहु यतिवर जयो, कलिकाले रे गोयम अवतार वे ॥
वादी गज केसरी विरुद बार वहे, X X
X ३. सुंदरि रे सहु भावो, तो कंकम छडो देवगवो।
सरस्वती गच्छ सिणगारर ।। वारू मोतिये चोक पूरावो, रूडा सह गुरुकुमुदचंद नेबषावे
-गीत धर्मसागर कृत