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अनेकान्त
वर्ष १५
कुमारसेन-इस नाम के अनेक विद्वान हुए हैं। उनमें थे।' प्रस्तुत प्रभाचन्द्र कौन थे और उनकी गुरु परम्परा से गुर्वावलीकार को कौनसे कुमारसेन अभिप्रेत हैं। यह और समय क्या है ? यह विचारणीय है। कुछ ज्ञात नहीं होता।
प्रकलंकदेव-यह देवसंघ के प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान माऽपारं यशो लोके प्रभाचन्द्रोदयोज्ज्वलम् ।
थे, इनका समय विक्रम की ८वीं-6वीं शताब्दी बतलाया गुरोः कुमारसेनस्य विचरत्यजितात्मकम् ॥ जाता है। इस नाम के अनेक विद्वान हुए है, पर उनकी
अतः इनका समय उक्त हरिवंशपुराण कर्ता जिनसेन से यहाँ विवक्षा नहीं है।। पूर्ववर्ती है। जिनसेन ने अपना हरिवंशपुराण शक संवत्
वीरसेनवहीं हैं जिनका परिचय अन्यत्र प्रकाशित ७०५ (वि० सं० ८४०) में बनाया है। अतः कुमारसेन
है और जो घवला जयधवला टीका तथा सिद्धभूपद्धति का समय पाठवीं शताब्दी का उत्तरार्ध होना चाहिए।
जैसे ग्रन्थों के टीकाकार हैं। . दूसरे कुमारसेन वे हैं, जो कुमारसेन भट्टारक के नाम
अमितसेनगुर्वावलीकारने वीरसेन के बाद इनका से प्रसिद्ध थे, शक सं० ८२२ (वि० सं० ९५७) में
स्मरण किया है, यह पुन्नाटसंघीय विद्वान थे और सत्यवाक्य कोङ्गणिवर्मधर्म महाराजाधिराज ने जो कुवलाल
जयसेनाचार्य के शिष्य थे। शतवर्ष-जीवी, जिनशासन में नगर के स्वामी थे, और श्रीमत्पेय॑नाडि ऐरेयप्परस ने
वात्सल्य रखने वाले तपस्वी, शास्त्रदान-दाता, और वाणी सफेद चावल, मुक्तश्रम, और घी सदा के लिए चुंगी कर से
से ज्ञान के प्रकाशक थे। इनका समय विक्रम की ८वीं मुक्त कर पेय॑नाडिवाडि के लिए दिया था, इससे इनका
शताब्दी जान पड़ता है। समय १०वी शताब्दी जान पड़ता है (जैन लेख संग्रह भा० २ प० १६०)
जिनसेन-गुर्वावलीकारने दोनों जिनसेनों को एक तीसरे कुमारसेन वे हैं, जो जिनसेन के शिष्य विनयसेन समझकर उल्लेख किया जान पड़ता है और उसे ही दूसरी द्वारा दीक्षित थे और जो काष्ठासंबी थे, जिनका उल्लेख पट्टावली में हरिवंश (पुराण) का कर्ता भी लिखा है । जो दर्शनसार ग्रंथ में भी किया गया है, सम्भवतः गुर्वावली में
विचारणीय है। दोनों जिनसेन सम सामयिक होते हुये भी प्रतापकीर्ति ने इन्हीं का उल्लेख किया हो।।
भिन्न-भिन्न थे और उनकी रचनाएँ भी जुदी-जुदी
उपलब्ध है। 'चौथे कुमारसेन वे हैं, जो द्रविलमंघ नन्दिगण के विद्वान अजितसेन के सहधर्मा कुमारसेन मुनीन्द्र थे । जो दुरितकुल वासवसेन–यह बागडान्वय के विद्वान थे। इनकी का नाश करने वाले थे, और स्मर रूपी मत हस्ती के एक कृति 'यशोधर चरित' उपलब्ध है। जो अभी अप्रकाकुंभस्थल को विदारने वाले सिंह थे। इनकी प्रसिद्धि शित है । इसमें कवि ने अपने से पूर्ववर्ती कवि प्रभंजन और प्राधुनिक गणधर के रूप में थी। इनका समय शक सं० हरिषेणका उल्लेख किया है । इनसे इनका समय उत्तरवर्ती REE (वि० सं० ११३४) है, अर्थात् ये १२ वी शताब्दी है। एक वासवसेन मुनि का उल्लेख मुनि श्रीचन्द्र ने अपने के विद्वान थे। देखो, जैन ले० सं० भा० २ लेख नं० २५८ 'रयण करंडसावयायार' की प्रशस्ति में किया है। जिनका प्रभाचन्द्र-नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। परन्तु
१. "चित्रकूटदुर्गे राजा नरवाहनसभायां विकटदुर्जययहाँ गर्वावलीकार को उन प्रभाचन्द्र की विवक्षा है, जिन्होंने शैववादिवन्दवनदहनदावानल विविधाचार ग्रन्थकर्ता श्रीमत् चित्रकट दुर्ग में राजा नरवाहन की सभा में विकट दुर्जय प्रभाचन्द्रदेवानाम्।" (गद्य पट्टावली, प्रतापकीति, पंचायती विवादिवन्द को जीता था और जो आचार ग्रन्थों के कर्ता
मन्दिर दिल्ली गु० ६) १. प्रभवं क्रमतः कीर्ति ततोऽनुत्तरवाग्मिनं ।
२. "क्रमयमलकमलमधुकर धवल-महाधवलवृन्दपुराण लिखितं तस्य संप्राप्यः रवेर्यत्नोयमुद्गतः । पद्म चरित सर्ग४२ हरिवंशप्रभृतिकोटित्रयग्रंथकर्ता तत्पट्टालंकार श्री जिनसेनाकित्तिहरेण अनुत्तरवाएं-स्वयंभू पउम चरिउ ।
चार्याणाम् । (देखो वही पट्टावली गु० नं०६)