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अनेकान्त
और सम्प्रदाय विशेष के धर्म में करके न सीमित हम उनक वास्तविक अध्ययन नहीं कर सकते वे सम्प्रदायगत संकी । र्णता, समाजगत कुरीतियों तथा खण्डन-मण्डल के अन्तः सार शून्य झंझटों से पृथक् एक ऐसे जाज्वल्यमान प्रकाश स्तम्भ थे, जिन्होंने मानव मात्र में एक जीवन स्पन्दित होते देखा । कुछ समय के पश्चात् समष्टि ने भी आपके उदात्त भावों से स्वयं में सुखी और सम्मान्य जीवन के चिन्ह अनुभव किए।
'संस्कृति' राज्य के विद्वानों द्वारा अनेक अर्थ किए गए हैं। यहां उन सब की चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। यहां 'संस्कृति' शब्द के आधार पर जो उसकी सर्वमान्य परिभाषा बन सकती है उसी को लेकर हम कविवर बनारसीदास की सांस्कृतिक देन का अध्ययन कर रहे हैं।
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'सब्' उपसर्ग पूर्वक 'कृ' धातु में 'सुट' का आगम करके 'क्तिम् ' प्रत्यय लगाकर संस्कृति शब्द बनता है इसका अर्थ है सम् अर्थात् समभाव और सदाचारपूर्वक किए गए कृति अर्थात् कार्य ।
वर्ष १५
होती है अन्तिम रूप में विश्व मानव की संस्कृति एक ही । कहीं जायगी, फिर भी हम विश्लेषण की दृष्टि से और विभिन्न देशों की प्राचार-विचार की पद्धति की भिन्न २ दृष्टियों से सम्पूर्ण विश्व की संस्कृति को ६ वर्गों में विभक्त कर सकते हैं
"माक्सफोर्ड डिक्शनरी में संस्कृति (कल्चर) शब्द की यह व्याख्या है मस्तिष्क, रुचि और भाचार-व्यवहार की शिक्षा और बुद्धि इस रीति से शिक्षित और शुद्धीकरण की अवस्था, सभ्यता का बौद्धिक पक्ष, विश्व की सर्वोत्कृष्ट ज्ञात और निर्दिष्ट कथित वस्तुओं से स्वयं को परिचित करना ।
संस्कृति शब्द के उल्लिखित इन अर्थों से हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जीवन को शुद्ध और परिमार्जित ( प्रन्तः वाह्य से) करना ही संस्कृति का आशय है। वेशभूषा और बाह्याचार आदि की अपेक्षा संस्कृति मानव जीवन के आत्म-शोधन की ओर ही अधिक मतसर १. To adorn, grace, decorate, (2) to refine, polish, (3) to Conserate bly repeating mantras, (4) to purify a person by seriptual ceremonies, to perform purificatory apre many over a person, (5) to cultivate, educate, train, (6) make ready," proper, equip, fitout (7) to cook (8) to purify cleanse (9) to collect, to heap togatfior.
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१-कार्य (भारतीय) संस्कृति । २-अनार्य (अफ्रीकी),
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३- मंगोल (चीनी, जापानी,, ४- इसी (रूस की साम्यवादी)
५- इस्लामी (अरबी, फारसी)
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१. २."
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६ - ईसाई ( यूरो- अमरीकी)
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जहाँ तक भारतीय संस्कृति की बात है वह एक है। फिर भी सूक्ष्म दृष्टि से प्रान्त, नगर, ग्राम, माति, कुटुम्ब और व्यक्ति की संस्कृति अपनी कुछ मौलिक विशेषताओं के साथ अलग-अलग है इस महान देश की विभिन्न प्रकार की संस्कृति का मूलाधार अध्यात्म ही है। यह इसी प्रकार ""है जैसे एक सूत्र में गुंथे हुए अनेक पुष्प अपनी अनेकता लिए हुए भी माला के रूप में एक अद्वितीय ऐक्य का प्रादर्श प्रस्तुत करते हैं" संस्कृति मनुष्य की विविध साधनाओंों की मर्वोत्तम परिणति है। धर्म के समान मह भी प्रविरोधी वस्तु है। वह समस्त दृश्यमान विरोधों में सामंजस्य स्थापित करती है। भारतीय जनता की विविध साधनाओं की सबसे सुन्दर परिणति को ही भारतीय संस्कृति कहा जा सकता है ।" संस्कृति के सम्बन्ध में इतना सभी विद्वान मानते हैं कि मानव समाज की श्रेष्ठ सामनाएं ही उस देश की संस्कृति हैं। श्रेष्ठ सामनाएं क्या है ? इस सम्बन्ध में विभिन्न देशों की पृथक् २ मान्यताएँ हो सकती हैं 1. पाश्चात्य संस्कृति भोग-प्रधान है। भौतिक विकास को उसमें सर्वाधिक मान्यता है। पूर्वीय और विशेषतः भारतीय संस्कृति त्याग-प्रधान है। इसमें माध्यात्मिक विकास को ही सर्वाधिक मान्यता दी गई है। पाश्चात्य संस्कृति स्म है। सभ्यता ( वरचा विकास) के अधिक कि है । सभ्यता की जहाँ तक बात है वह "मनुष्य कि प्रयोजनों को सहज सभ्य बनने का विधान है और
के फूल०८ डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी "० ०३. बा० हजारीप्रसाद द्विवेदी