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पतियान दाई (एक भूला बिसरा जैन मन्दिर)
नीरज जैन
मध्य प्रदेश के सतना जिले में सतना नगर से दक्षिण- बार अनमोल मूर्तियां ढोकर ले जाने वाले तथा कथित पुरापश्चिम लगभग ६ मील पर सिन्दुरिया पहाड़ नाम से एक तत्व ज्ञाता अन्वेषकों ने अद्यावधि न केवल इस महत्वपूर्ण सुन्दर पहाड़ी है जिसका विस्तार पूर्व-पश्चिम है। स्थान की घोर उपेक्षा की है वरन् इस मन्दिर की एकमात्र ___उसी पहाड़ी के एक सधारण ऊँचे टीले पर एक भग्न सुन्दर देवी-मूर्ति भी स्थानांतरित करके इस स्थान को मंदिर का छोटा परन्तु पुर्ण सुरक्षित और सुन्दर गर्भालय अस्तित्व-विहीन बना देने के प्रयास में भी संकोच नहीं खड़ा है जिसे पास पास के लोग 'डुबरी की मढ़िया' या किया। 'पतियान दाई' के नाम से जानते हैं।
यह तो इस गर्भग्रह की निर्माण शैली का प्रभाव है कि पुरातत्त्व की चर्चा में इस मन्दिर का उल्लेख शक्ति अपना सर्वस्व खोकर भी आज तक यह खण्डहर अपनी मंदिर के नाम से किया गया है और इस क्षेत्र से एकाधिक गौरव गरिमा से मस्तक उठाए खड़ा हुआ है, और यद्यपि awwwmamannmaan amummmmmmmsww के अनुयायी यतियों की तपश्चर्या की ओर संकेत करते हुए।
यहाँ से जो देवी-मूर्ति उठाकर ले जाई गई है, वह देख पाने ईस्वी प्रथम शती के सुप्रसिद्ध जैन प्राचार्य वट्टकेरिने अपने
का सौभाग्य मुझे अभी तक बात नहीं हुआ परन्तु फिर 'मूलाचार' ग्रन्थ में कहा है, "गिरि गुफामों और वनों में ।
भी इन्हीं अवशेषों में मुझे ऐसे प्रमाण प्राप्त हो गए हैं रहते हुए ये यतिजन यद्यपि भेड़िया, रीछ, बाघ, चीता, मग ।
जिनके आधार पर मैं इसे जैन मन्दिर कहने का साहस कर भैसा, वराह, सिंह, हाथी आदि जंगली पशुओं से घिरे रहते
पा रहा हूँ। हैं; उनकी भयानक चीख-चिंघाड़ों को भी सुनते रहते हैं। यह समूचा मन्दिर बाहर से ६॥ फुट लम्बा, ६॥ फुट परन्तु ये निर्भय बने हुए कभी भी अपने स्वरूप से विच- चौड़ा भोर ७॥ फुट ऊँचा है। यह ऊंचाई सीढ़ी के ऊपर लित नहीं होते :" योगियों के तपस्वी जीवन का यही से लेकर छत की ऊपरी कोर तक की है । भीतर से इस वर्णन 'महाभारत' में दिया हया है। यही कारण है कि गर्भालय की लम्बाई साढ़े चार फुट चौड़ाई पांच फुट, एवं ३ ब्राह्मण ग्रंथों में समस्त जीवों के प्रति मंत्री भाव रखने ऊचाई ६ फुट रह जाता है। चारो दीवारों को के कारण ये 'भूतपति', और पशुओं के मध्य में रहने के इंच मोठे चौकोर शिला खण्ड से ढक कर छत का निर्माण कारण 'पशुपति' नाम से प्रसिद्ध थे।
किया गया है जिसने इस बनावट को बहुत अधिक मजबूत
कर दिया है । इस स्थान को इसी दशा में अब तक सुर१. एयंतम्मि वसंता वय-वग्ध-तरच्छ (च्छु) अच्छ
क्षित रखने में सचमुच इस छत के शिला खण्ड का योग भल्लाणं ।
महत्त्वपूर्ण है। आगुंजिय मासरियं सुणंति सदं गिरिगुहासु । मूलाचार अनगारभावनाधिकार गाथा २४ ।
मंदिर का सामना उत्तर की ओर है और उसी भोर २. महाभारत शान्तिपर्व अध्याय १६२ ।
उसका एक मात्र द्वार है जो केवल दो फुट चौड़ा और ३. ऋषभो व पशूनामधिपतिःताण्ड्यब्राह्मण
साढ़े तीन फुट ऊँचा है। द्वार के दोनों ओर सवा फुट ऊंची १६-१२-३
गंगा यमुना की मूर्तियां कलश लिए हुए-भावपूर्ण मुद्रा में -ऋषभो व पशूनां प्रजापतिः-शतपथ ब्राह्मण
अंकित हैं । दोनों देवियों के वाहन के रूप में मकर और ५-२-५-१७
कूर्म का स्पष्ट अंकन है। इन मूर्तियों के एक हाथ में कलश