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काष्ठासंघ के लाटबागड गएको र्याली
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समय वि० सं० १९२३ है और वासवमुनि को वहाँ सहस्रकीर्ति के पांच शिष्यों में से एक प्रकट किया है। यदि ये । वही वासवसेन हों तो इनका समय वि० की ११वी शताब्दी हो सकता है ।
यशोधरचरित की एक प्रति वि० सं० १५८१ की लिखी हुई धारा जैन सिद्धान्त भवन में मौजूद है, जो रामसेनान्वयी भ० रनकीति के प्रपट्टधर भ० लखमसेन के पट्टधर भ० धर्मसेन के समय लिखी गई है । कवि प्रभंजन से हरिषेण बाद के विद्वान हैं । यदि प्रस्तुत हरिषेण कथाकोश के कर्त्ता हों, जिसका रचनाकाल शक सं० ८५३ (वि० ६-६ ) है तो वासवसेन का समय विक्रम की ११वीं शताब्दी का पूर्वार्ध हो सकता है।
रामसेन - यह काष्ठासंघ नन्दीतटगण के विद्वान थे । दर्शनसार के अनुसार इन्होंने सं. ६५३ में माथुर संघ की स्थापना की थी । परन्तु स० १०५० के आचार्य अमितगति ने इनका कोई उल्लेख नहीं किया । रामसेन नाम के अनेक विद्वान विविध संपो या गणन् गच्छादि में हुए हैं। उन सबके सम्बन्ध में यहाँ प्रकाश डालना सम्भव नहीं है ।
माधवसेन -इस नाम के भी कई विद्वान हो गए हैं। उनमें एक माधवसेन प्रतापसेन के पट्टवर थे और दूसरे भावुर सच के जो नेमिपेण के शिष्य थे और अमितगति के गुरु थे। इनका समय विक्रम की ११वी शताब्दी का पूर्वार्ध है ।"
जयसेन - इस नाम के सात विद्वानों का पता चला है, उनमें एक जयसेन नागडसंघ के विद्वान मुनि पूर्णचंद्र के शिष्य थे। दूसरे जयसेन इसी संघ के विद्वान भावसेन के शिष्य थे, जो धर्मरत्नाकर के कर्त्ता हैं। जिनका समय वि०सं० १०५५ है । " शेप जयसेन लाडबागड़ संघ के नहीं ज्ञात होते ।
धर्मसेन का परिचय गत किरण में दिया जा चुका है। धर्मसेन नाम के कई विद्वान हो चुके है। एक दशपूर्व के पाठी विद्वान थे, दूसरे धर्मसेन शान्तिषेण के तीसरे गुरु, विमलसेन के शिष्य और चौथे भ० लक्ष्मीसेन के शिष्य
१. देखो, सुभाषितरत्नसन्दोह प्रशस्ति । २. वागेन्द्रव्योमसोम-मिते संवत्सरे शुभे । (१०४५) ग्रंथोंऽयं सिद्धतां यातः सवलीकरहाट के धर्मरत्नाकर
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और पाँचवें धर्मसेनाचार्य चन्द्रिकाबाट वंश के थे। यहाँ गुर्वावलीकार को कौन से धर्मसेन विवक्षित हैं। उपरोक्त हैं । या अन्य यह विचारणीय हैं।
संभवसेन सूरि, बामसेन, केशवसेन, चारित्रसेन और महेन्द्रसेन इन पांच विद्वानों का नामोल्लेख गुर्वावली में किया गया है। इनमें से लाडबागड गण के विद्वान मलयकीर्ति ने अपनी मूलाचार की प्रशस्ति में केशवसेन सूरि को नय प्रमाणनिक्षेप और हेत्वाभासादि के द्वारा वादियों का विजेता प्रकट किया है। इससे वे बड़े विद्वान जान पड़ते हैं ।
भट्टारक सम्प्रदाय में संभवसेन दामसेन और केशवसेन का नामोल्लेख नहीं है । और चारित्रसेन को 'चित्रसेन' लिखा है जो किसी भूल का परिणाम जान पड़ता है। दिल्ली पंचायती मंदिर के गुच्छक नं०६ में स्थित गद्य पट्टावली में चारित्रसेन का नाम अंकित है । जैसा कि उसके निम्न वाक्यों से प्रकट है
"तदन्वये श्रीमल्लाट वर्गटगच्छवंशप्रतापप्रकटन याव जीव बोधोपवास कातरनी रसाहारेणा तापनयोगसमुद्ध रणधीरश्रीचारित्रसेन देवानां यश्च लाटवर्गटदेशे प्रतिबोधं विधाय मिध्यात्वमतनिरसनं पर्क। ततः पुन्नागच्छ इति भाडागारे स्थितं लोके लाटवर्गट नामाभिधानं पृथिव्यां प्रथित प्रकटीबभूव ।"
'भट्टारक सम्प्रदाय' में पृष्ठ २५२ पर पट्टावली के लेखांक ६३१ में जो अंश छपा है । उसमें 'चित्रसेन' छपने के साथ ही ४ अशुद्धियां और भी है।
प्रस्तुत चारिवमेन की मलयकीति ने मुनाचार प्रशस्ति में खूब प्रशंसा की है । यथा
चारित्रसेनः कुशलो मीमांसावनितापतिः । वेदवेदांगतत्त्वज्ञ योगी योगविदाम्बरः ॥
अनेकान् वर्ष १२ ०४ अनन्तकीर्ति - यह भी उस काल के कड़े विद्वान थे । इनका समय और गुरुपरम्परा का ठीक निश्चय नहीं हो
सका ।
३. देखो, जैनिज्म इन माउस इन्द्रिया ०११४-१३८ । ४. जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह पृ० ३१ ।