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भ. महावीर मौरमा जीवन वर्शन
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तब तो यह बिल्कुल ही नष्ट-भ्रष्ट हो गई थी और अब महावीर की स्मृति अपनी ही जन्मभूमि में २५०० वर्ष तो जीर्ण शीर्ष बुद्धा की भांति बिल्कुल ही उपेक्षित है। बाद भी उनके सम्बन्धियों एवं वंशजों द्वारा माज भी
माधुनिक भारतीय गणराज्य ने वैशाली संघ की एकता सुरक्षित है। से बहुत कुछ सीखा है तथा वज्जीसंघ की एकता हमारे
भारत के सांस्कृतिक इतिहास में महावीर का समय प्रजातन्त्र की प्रमुख प्राधार शिला है और अहिंसा निश्चय ही प्रतिभा, मानसिक विकास एवं सूझ-बूझ का जो पंचशील का प्राण है हमारी नीति निर्धारण की मूल वग था, उनके समकालीनों में केशकंबली, मक्खली केन्द्र विन्दु है। हमारी केन्द्रीय सरकार हिन्दी को राज
गोशाल, पकुद्ध कच्चायन, पूरणकश्यप, संजय वेलट्ठिपुत्त भाषा बनाकर मगध शासन की नीति का अनुकरण कर रही और तथागत बद्ध प्रभूति जैसी धार्मिक पुण्य विभूतियां थीं। है, जिसने वर्ग विशेष की भाषा की अपेक्षा जन साधारण भ० महावीर'ने अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकरों से बहुत कुछ सीखा की भाषा को ही प्रतिष्ठा एवं गौरव प्रदान किया था।
एवं पाया था। उन्हें धर्म और दर्शन की एक सुव्यवस्थित सम्राट अशोक के सभी लेख प्राकृत में ही उपलब्ध हैं परम्परा ही उत्तराधिकार में नहीं प्राप्त हुई थी, अपितु जो तत्कालीन जन भाषा थी। हमारे प्रधान मन्त्री पं०
सुसंगठित साधु संघ एवं उनके सच्चे अनुयायी भी मिले नेहरू को भी प्रियदर्शी सम्राट अशोक की भांति अपने थे। वे उस दर्शन एवं धर्म का सक्रिय प्रयोग करते थे जिसे उच्चाधिकारियों की अपेक्षा जनता जनार्दन से मिलना भगवान महावीर तथा उनके शिष्यों ने प्रचलित किया। अत्यधिक रुचिकर है। इस रूप में वैशाली को उपेक्षित
रूप में वशाली को उपक्षित म बुद्ध और भ० महावीर समकालीन थे। उनका नहीं कहा जा सकता है और आजकल तो केन्द्रीय शासन, विहार (प्रचार क्षेत्र भी एक ही था और वहां के राजवंश विहार शासन, भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति साहू शांतिप्रसाद एवं शासक दोनों के ही भक्त थे। इन दोनों ने मानव के जी और वैशाली संघ के उत्साही सदस्य डा. जगदीशचन्द्र
मानवीय रूप पर ही विशेष बल दिया था और जनता माथुर आदि के सत्प्रयत्नों के फलस्वरूप वैशाली का उत्थान जनार्दन को उनकी अपनी ही भाषा में उच्च नैतिक आदर्श हो रहा है विहार शासन ने जैन और प्राकृत साहित्य के
सिखाये थे। जिनसे व्यक्ति मात्र का प्राध्यात्मिक धरातल अध्ययन के लिए यहाँ एक स्नातकोत्तर संस्था की स्थापना
ऊँचा उठा एवं सामाजिक दृढ़ता में योग मिला । ये पादर्श, की है आशा है यह ज्ञान और अध्ययन का विशाल केन्द्र
भावी पीढ़ी के लिए प्राच्य अथवा मागध धर्म के श्रेष्ठ प्रतिबन जावेगी!
निधि सिद्ध हुए और श्रमण संस्कृति के नाम से विख्यात कालचक्र की प्रबल गति एवं राजनतिक परिवर्तनों हुए। सौभाग्य से तत्सम्बन्धी मूल साहित्य प्राज भी हमें के कारण वैशाली सर्वथा ध्वंस हो गई और हम भारत- उपलब्ध है । प्रारम्भिक बौद्ध और जैन साहित्य के तुलनावासी भी उसके अतीत वैभव एवं महत्व को भुला बैठे, त्मक अध्ययन से दोनों में एक अद्भुत समानता तथा पर आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि वैशाली ने धार्मिक एवं नैतिक चेतना प्राप्त होती है, जो न केवल अपने सुयोग्य सपूतों को अब तक भी नही भुलाया है २००० वर्ष पूर्व ही उपादेय थी अपितु प्राज भी भनेकों वैशाली के जैन व बौद्ध स्मारकों में वहा के स्थानीय मूल उलझन भरी मानवीय समस्याओं के सुलझाने का एकमात्र निवासी सिंह व नाथक्षत्रिय लोगों द्वारा अधिकृत एक उप- साधन है। म. गांधी ने जो सत्य और अहिंसा की ली जाऊ खेत भी एक बड़े महत्वपूर्ण स्मारक के रूप में भाज (ज्योति) जगाई उसकी पृष्ठभूमि में भ० महावीर एवं भी विद्यमान है लोग इसे जोतते बोते नहीं हैं। क्योंकि म. बुद्ध के नैतिक प्रादर्श ही तो हैं। पाली भाषा में जो उनके यहां वंश परम्परा से यह धारणा प्रचलित है कि इस निसंथ सिद्धांत का विवरण मिलता है वह जैन और बौद्ध के पवित्र भूमि पर भगवान महावीर प्रवतरित हए थे, प्रतः पारस्परिक सम्बन्धों के निर्णय में प्रत्यधिक सहायक है। इस पुण्य भूमि को जोतना बोना नहीं चाहिए। भारत के भ. महावीर और म० बुद्ध में इतनी अधिक समानता धार्मिक इतिहास में यह एक अद्भुत घटना है जो भगवान थी कि प्रारम्भ में तो यूरोपीय विद्वान् दोनों को एक ही