________________
छंद या' चाल जोगीरासो, रोडक या रोला पाइता कहा रच्यो पर-पद में, न तेरो पद यहै, क्यों दुख सहै। और गीतिका ये मुख्य छंद हैं।
अब "दौल" होहु सुखी स्वपद रचि दाव मत चूको यहै ॥ तत्त्वोपदेश की विशेषता
कविवर के इस शिक्षा वाक्य को हमेशा ही गुनगुनाते कविवर ने तत्वोपदेश में प्राचीन सूक्तियों को किस रहना चाहिए । कवि ने इसमें अपना हृदय उड़ेल दिया है। प्रकार प्रात्मसात् किया है, उन्हें कितने अच्छे ढंग से यदि प्रातःकाल ही स्वस्थ मन होकर एकान्त स्थान में अपना लिया है यह देखिये
स्वर साधना पूर्वक गीति में इस ग्रन्थ का पाठ किया जाय दुःखादिभेषि नितरामभिवाञ्छसि सुखमतोऽहमप्यात्मन् । मोर चितन किया जाय तो स्वानुभूति का वचनातीत दुःखापहारि सुखकरमनुशास्मि तवाऽनुमतमेव ॥ मानन्द मिलता है। हमें मनुष्य भव पाकर ऐसे ग्रन्थों के
आत्मानुशासन (गुणभद्र भदंत कृत २ रा पद्य) सहारे से जीवन को सफल बनाना चाहिये । जे त्रिभुवन में जीव अनन्त सुख चाहे दुखतै भयवन्त ।
छहढाला का व्यापक प्रचार तातै-दुख हारी सुखकार कह सीख गुरु करुणाधार ॥ छहढाला १ली ढाल १ पद्य
कुछ वर्षों पहले तत्त्वार्थसूत्र-भक्तामर स्तोत्र का पंचमहन्वयजुत्ता धम्मे सुक्के वि संठिया णिच्चं ।
दैनिक पाठ के रूप में जैसा दि० समाज में प्रचार था, णिज्जियसयलपमाया उक्किद्रा अंतरा होंति ॥१८५।।
वर्तमान में उससे भी ज्यादा प्रचार छहढाला का है। क्या सावयगुणेहिं जुत्ता पमत्तविरदा य मज्झिमा होति ।
गृहस्थ श्रावक और क्या त्यागीवर्ग सभी के पठन मनन अविरयसम्माइद्री होति जहण्णा जिणिदपयभत्ता १६६ का विषय बना हुमा है। खासकर समाज के सभी परी.
-स्वामि कार्तिकेयाऽनुप्रेक्षा क्षालयों द्वारा पठन-क्रम (कोर्स) में निहित होने के कारण उत्तम, मध्यम, जघन्य विविध हैं अन्तर पातय ज्ञानी । प्रतिवर्ष शिक्षालयों में इसकी अनिवार्य शिक्षा चालू है। द्विविध संगविन सुद्धपयोगी मुनि उत्तम निजध्यानी॥ काठियावाड़ में संत श्री कहानजी स्वामी के यहाँ भी इस मव्यम अन्तर प्रातम है जे देशव्रती अनगारी। ग्रंथ का व्यापक प्रचार है। जघन कहे अविरत समदृष्टी तीनों शिव-मगचारी ॥
विशिष्ट संस्करण छहढाला ३ रीढाल, ४५ पद्य
अब तक इस ग्रंथ पर हिन्दी गुजराती भाषा में अनेक लेखवृद्धि के भय से ये दो ही. उदाहरण सूचना के
टीका, अनुवाद विवेचन, प्रादि को लिये हुए कई लिये यहाँ लिखे हैं । यह समूचा ग्रन्थ प्राध्यात्मिक संत जैन
संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अभी अभी 'सिंघई बन्धु' ऋषियों के प्रवचन-सागर का मन्थन करके उढ़त किया
देवरी (सागर) द्वारा इस ग्रंथ का चित्रमय विशिष्ट गया है और ममृत जैसा सुख कारक है। यह भौतिकवाद
संस्करण प्रकाश में लाया गया है। इस संस्करण की के युग में गुजरते हुए माज के विषयाभिमुखी पामर प्राणी
विशेषता इस प्रकार हैके लिये परम शांति को प्रदान करने वाला है। प्रतएव
ग्रंथ के प्रायः प्रत्येक पद्य के साथ कल्पित चित्र की श्री विनोबा जी जैसे राष्ट्र के सन्तों द्वारा अभिनन्दित हुपा
तहमा योजना हुई है। जिससे बालकों को और सर्वसाधारण को है । इसकी यह मन्तिम शिक्षा सुषुप्त मानव के उद्बोधन के
ग्रंथ का भाव समझने में बड़ी सहूलियत हो गई है। ग्रंथ लिये पर्याप्त है। देखिये
की संकलन शैली में मूलपाठ, चित्र, कठिन शब्दार्थ, अर्थ यह राग भाग दहै सदा तातें समामृत सेहये।
पौर भावार्य यह क्रम बरता गया है। ढालों के अन्त में चिरभजे विषयकषाय, प्रवतो त्यागि निज-पद बेइये॥
विद्यार्थियों और स्वाध्याय प्रेमियों के लिए कई उपयोगी १.० जिनदास की अप्रकाशित सुप्रसिद्ध रचना निर्देशन तथा विशेष अर्थ भी जोड़े गये हैं। परिशिष्ट 'क' 'जोगीरासों' इसी छंद में निबद्ध हुई है प्रतः दि. जैनों में में कुछ जैन पारिभाषिक शब्दोंका सुबोध लक्षणसंग्रह दिया इस छंद का नाम 'चाल जोगीरासो' माजरूढ़ हो गया है। गया है
नगारा।