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आपके समय में अनेक ग्रन्थों की रचना हुई, और मूर्तियों की प्रतिष्ठा का कार्य भी हुम्रा, किन्तु तब तक राज्याश्रय में कमी भा गई थी ।
भानुकीति — भट्टारक गुणभद्र के पट्टधर थे । यह अपने समय के अच्छे विद्वान थे। इनकी लिखी हुई रविव्रत कथा तो मेरे अवलोकन में आई है। परन्तु अन्य रचनामों का अभी पता नहीं चल सका । इनका परिचयात्मक पद्य राजमल के जंबूस्वामिचरित से यहां दिया गया है । यह वि० की १७ वीं शताब्दी के विद्वान थे ।
कुमारसेन -- भानुकीर्ति के पट्टधर थे। बड़े ही सौम्य प्रकृति, व्रताचरण में निरत, काम-सेना के विजेता थे । दयालु और प्रभावशाली थे । इनके समय में अनेक ग्रन्थ लिखे गये, जो यत्र-तत्र भण्डारों में उपलब्ध होते हैं ।
इस तरह इस गुर्वावली के जिन थोड़े से विद्वानों का परिचय ज्ञात हो सका है, उसे विद्वानों के विचारार्थं प्रस्तुत किया हैं, यदि उन विद्वानों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारी हो, तो उससे मुझे सूचित करने की कृपा करें ।
गुर्वावली
प्रणम्य बीरं परमात्म-सुदरं,
गुणैः पवित्रं विशदं स्वभावनः । अहं गुरूणां बर-नाम-पद्धति, परा प्रवक्ष्यामि विमुक्तहेतवे ॥१॥ त्रयोऽपि तस्याऽनु बभूवुरंत्यका, केवलज्ञानविमुक्तहेतवे ।
मुनीन्द्र चन्द्रो भुवि गौतनो परी, धर्म- जम्बधृतनानी ततोऽनु विष्णुनायोजन प्रबुद्धविष्णोर्भुवि नन्दिमित्रकः । बभूव तस्मादपराजितो गणि
स्ततश्च गोवर्द्धननामकः सुधीः ॥३॥ सुभद्रबाहुः परमो बभूव्यस्तमेव 'नोमीह गुणौघमन्दिरं । इमे वश: पंच यतीन्द्रनायका, श्चतुर्द्दशस्थान सुपूर्वधारका:
प्रका
१. तमोव इति स्तमोव ख- प्रति पाठः ।
॥२॥
॥४॥
वर्ष १५
इनो विशाखो गुणसार्थधारको,
सुनागसेनो
. बभूव च प्रौष्ठिलनाम सुन्दरः । गुणाग्रणीः क्षत्रियसाह्वयोजन, जयनामकोऽभवत् ॥ ५ ॥ पुनश्च सिद्धार्थमुनिर्जगन्नुतो, गुणगरिष्ठो धृतिषेणाह्वयः । प्रभून्मुनीन्द्रो विजयश्च बुद्धिमान्, स-गंगदेवो
वरधर्मसेनकः || ६ ||
अभी
बभूवुर्दश पूर्वधारिणः
समस्त विद्यांबुधिरारगाः पराः । सुमव्य राजीव- सुबोध कारिणी, जिनेन्द्रधर्माद्विनिवासगामिनः ||७||
ततोऽनि नक्षत्रमुनिर्महातपाः महामुनीन्द्रो जयपालसंज्ञकः । मौ च पांडवसेनाभिध ततो बभूवाऽनु च कंससाह्वयः ॥ ८ ॥ एकादशाङ्गविद्यानां पारगाः स्युवंश इमे । श्रीमतुविधेने माथुरे पुष्कर ह्वये || || सुभद्रश्च यशोद्रो भद्रबाहुर्महायशाः । लोहार्यश्चेत्यमी ज्ञेयाः प्रथमाङ्गाधिपारगाः ॥ १० ॥ जयसेनो जगत्त्राता वीरसेनस्तथैव च । ब्रह्मसेनो विशुद्धात्मा रुद्रसेनस्ततोऽभवत् ॥ ११॥ भद्रसेन स्तमो भानु कीर्ति सेनो विशुद्धधीः । जयकीत्तिस्तपोमूर्ति विश्वकीर्तिस्तथाऽजनि ॥१२॥ ततोप्यभय कीर्तिर्योऽभूत्सेनो विदुषां पतिः । भावीतिर्यशस्फूर्तिः विश्वचन्द्रो गणाग्रणीः ॥ १३ ॥ यतोभयादिचन्द्रोऽथ माघचन्द्रोऽघभंजकः । नेमिचन्द्रो ननोशेष विद्यावर-नराधिपः ॥ १४ ॥ पूज्यो विनयचन्द्रोभूद् बालचन्द्रो गणाधिपः । त्रिभुवनादिचन्द्रश्च रामचन्द्रस्तथा गणिः ||१५|| पद-वाप्रमाणेषु यो हि प्रावीण्यमागतः । मान्यो विजयचन्द्रोऽसौ विदुषांवरमण्डले ।। १६ ।।.
यशः कीर्तिशोमूर्तिरभय कीर्तिरनुत्तमः । महासेनो कलासेनः कुंदकीर्ति सुनिर्मलः ॥ १७॥ २. धर्माद्रि इति धर्माहि ख प्रति पाठः ।