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अनेकान्त
वर्ष १५
की प्रतिमा है और एक अन्य प्रतिमा में कोई यक्ष और पांचवीं प्रतिमा यक्ष और यक्षी की है। विशेष यक्षी खड़े हुये हैं।
लक्षणों के प्रभाव में इन यक्ष-यक्षी को पहचाना नहीं जाता चतुविशतिपट्ट को भून नायक प्रतिमा मादि तीर्थकर किन्तु सम्भवतः वे तीर्थकर नेमिनाथ के यक्ष-पक्षी गोमेध भगवान ऋषभनाथ की है। वे चौकी पर रक्खे कमल ओर अम्बिका हैं । कुन सवा नौ इंच ऊंची इस धातु प्रतिपर अर्ध पद्मासन में ध्यानस्थ बैठे हुए हैं । उनके केशों के मा में यक्ष-पक्षी विभग मुद्रा में खड़े हैं । उनके हाथों में लट कंधों पर लटक रहे है, छाती पर श्रीवत्स लांछन है, बिजौरा तथा कमल हैं । दोनों के तन पर नाना प्रकार के पाखें अर्धनिमीलित और नासिका पर जमी हुई हैं। गले प्राभूषण हैं। कार स्थित तीर्थकर प्रतिमा को चिन्ह के पर तीन रेखाएं अंकित करके कलाकार ने कम्बुग्रीव के अभाव में पहचान सकना संभव नहीं है। प्रादर्श की योजना की है। तीर्थकर के दोनों मोर क्रमशः
तृतीय समूह-ग्यारहवों से लेकर तेरहवीं शती खड़े सौधर्मेन्द्र और ईशानेन्द्र चंवर ढोर रहे हैं । तीन ओर भग्य तेईस तीर्थकरों की छोटी-छोटी प्रतिमाएं है, नीचे इस समूह की प्रतिमाएँ पश्चात्कालीन है और वे यक्ष गोमुख और यक्षी चक्रेश्वरी है। चौकी पर नवग्रहों ग्यारहवीं शताब्दी के मन्तिम चरण से लेकर तेरहवीं की योजना है। कार की भोर 'गुणप' का नाम उत्कीर्ण शताब्दी तक की हो सकती हैं। इस समूह में कुल सत है जो संभवतः प्रतिमा दान करने वाले की सूचना देता है। प्रतिमाएं हैं किन्तु उनमें से महत्वपूर्ण केवल दो-तीन ही है।
अम्बिका की प्रतिमा लक्षण में तो ऊपर की प्रतिमानों कुछ प्रतिमाएं लाछन के अभाव में पहचानी नहीं जती जैसी ही है किन्तु कारीगरी में उनसे श्रेष्ठ है। छ: इञ्च किन्तु दो प्रतिमाएं क्रमशः प्रादिनाथ और नेमिनाथ की ऊंची इस प्रतिमा में अम्बिका खड़ी हुई है। उसका केश- हैं। अ.दिनाथ की प्रतिमा पर वृषभ का चिन्ह है और गुन्थन निराले ढंग का और ध्यान देने योग्य है। ऐसा नेमिनाथ की प्रतिमा को उनकी यक्षी अम्बिका के द्वारा केश गुन्थन अत्यन्त कम मिलता है ।
पहचाना जाता है । समूह की प्रायः सभी प्रतिमाएं बनावट सरस्वती की प्रतिमा देखते ही बनती है वह इतनी में अपेक्षाकृत हीन कोटि की हैं और प्रतिमा-शास्त्र की सुन्दर और भावपूर्ण है कि दर्शक देखते ही रह जाता है। दृष्टि से भी उनमें कोई नवीनता नहीं है। प्रलंकरणों से दूर रख कर भी कलाकार ने इस प्रतिमा
चतुर्य समूह को इतना सुघड़ और सजीव रच दिया है कि तुलना करने के लिए तत्कालीन कोई कृति ही नहीं दिखाई पड़ती। चौथे समूह की कुछ प्रतिमाएं तो रुचिकर है किन्नु सरस्वती जिनवाणी का मूर्त रूप है । वही देवी इस प्रतिमा अन्य साधारण ही कही जा सकती है । इन में प्रादिनाथ में ललितासन में कमल पर मासीन है। उसके तन पर और नेमिनाथ की प्रतिमाएं ढंग की बनी हैं। इनमें से कोई माभूषण नहीं है । उसके एक हाथ में पोथी और कुछ मूर्तियों पर सोने का मुलम्मा था किन्तु अब केवन दूसरे हाथ में वत्तिका है। प्रोखों पर चांदी का मुलम्मा उसके चिन्ह मात्र ही बच रहे हैं। इस समूह में द्विमूर्तिका था । चौकी पर एक संक्षिप्त लेख है जिससे विदित होता और सर्वताभद्रिका प्रतिमा के अलावा एक घण्टी, एक है कि यह प्रतिमा 'पूर्णवसदि' नामक मंदिर में प्रतिष्ठापित पंचमेरु, एक चौकी तथा गायका स्तनपान करते हए वत्स की गई थी।
की आकृति भी है।