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अज्ञात हिन्दी जैन कवि टेकचन्द व उनकी रचनाएँ
लेखक-श्री अगरचन्द नाहटा
मध्यप्रदेश विशेषतः मालवा में जन-धर्म का प्रचार दो और वहां की कुछ प्रतियां तो अन्य स्थानों में चली गई। ढाई हजार वर्षों से चलता पा रहा है, पर इस प्रदेश में सारांश यह है कि वे ज्ञान-भंडार सुरक्षित नहीं रह सके। रचित प्राचीन जैन-साहित्य की जानकारी बहुत ही कम दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथ-भंडार उस सम्प्रदाय के मन्दिरों है, क्योंकि प्राचीन ग्रन्थों में वे ग्रन्थ कब और कहाँ रचे गये, में रहते हैं और श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथ भंडार इसका स्पष्ट उल्लेख प्रायः नहीं मिलता। मध्यकाल में उपाश्रयों में। इसलिए इन दोनों प्रकार के ज्ञान ही ग्रन्थों के अन्त में विस्तृत प्रशस्तियाँ दी जाने लगी थीं, भंडारों की खोज सम्यक प्रकार से की जाय तो मध्यप्रदेश जिनमें ग्रन्थकार का संक्षिप्त परिचय, ग्रन्थ रचना का समय के साहित्य और इतिहास की अवश्य ही बहुमूल्य सामग्री व स्थानका उल्लेख पाया जाता है। मालव प्रदेश-उज्जयिनी प्रकाश में आयगी।
और धाग नगरी व मांडवगढ़ में जैन धर्मावलम्बियों का तीन वर्ष पूर्व एक जैन मुनिराज के प्रयत्न से हमारे काफी प्रभाव था। इन स्थानों के सम्बन्ध में जैन ग्रन्थों में 'अभय जैन ग्रन्थालय' में मध्यप्रदेश के एक दिगम्बर शास्त्र अनेक उल्लेख मिलते है और इन स्थानों में रहते हुए जन भंडार की कुछ हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त हुई। इनमें विद्वानों ने अनेक ग्रन्थ भी लिखे है।
'टेकचन्द' नामक एक जैन कवि की तीन रचनाएँ विशेष प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश के साथ-साथ जैन विद्वानों रूप से उल्लेखनीय हैं, क्योंकि अब तक इस कवि एवं इस ने हिन्दी साहित्य की भी महान् सेवा की है। सैकड़ों जैन की रचनामों की जानकारी सर्वथा अज्ञात थी। प्राप्त कवियों की छोटी मोटी हजारों हिन्दी रचनाएँ, आज भी रचनाप्रो के अनुसार कवि के पूर्वज, राजस्थान के जयपुर प्राप्त हैं । दिगम्बर संप्रदाय के कवियों ने तो अपभ्रंश-काल नगर के निवासी थे। कवि ने अपने दो ग्रन्थों की प्रशस्तियों के बाद हिन्दी को ही प्रधान रूप से अपनाया और श्वेता- में अपना 'आवश्यक-परिचय' दिया है। उनके अनुसार म्बर कवियों ने राजस्थानी व गुजराती भाषा को । क्योंकि सवाई जयपुर के महाराजा जयसिंह के समय 'दीपचन्द' श्वेताम्बर सम्प्रदाय का प्रचार राजस्थान व गुजरात में ही नामक कवि के दादा, वहाँ रहते थे। वे बड़े धर्म श्रद्धालु अधिक रहा है।
और पागम तत्त्वों के जानकार थे। उनके 'रामकृष्ण' मध्य प्रदेश बहुत विशाल प्रान्त है और उसके अनेक नामक पुत्र हुआ। संयोगवश वे जयपुर को छोड़कर मेवाड़ ग्राम-नगरों में काफी संख्या में जैन-धर्मावलम्बी निवास के शाहपुरा में जाकर बस गए। उस समय वहाँ के राजा करते हैं। उनके रचित साहित्य का परिमाण भी बड़ा उम्मेदसिंह व मंत्री खुशालचन्द थे। रामकृष्ण कवि टेकहोना चाहिए। पर उघर के हस्त-लिखित ग्रंथ-भण्डारों की चन्द के पिता थे। बाल्यावस्था में कवि में धार्मिक भावना खोज अभी तक नहीं हो पायी इसलिए इस प्रान्त में रचित की कमी थी। अतः वे विविध व्यसनों में भासवत थे। जैन साहित्य की जानकारी प्रद्यावधि बहुत ही कम प्रकाश बहुत काल बीत जाने के बाद कोई ऐसा सुयोग मिला कि में पा पाई है। राजस्थान और गुजरात में तो ग्रंथ भंडार जिनवाणी और जैनधर्म के प्रति इनकी श्रद्धा उमड़ पड़ी। प्रायः सुरक्षित हैं और वहां के निवासियों ने समय-समय पर कर्मयोग से (सम्भवतः व्यापार आदि आजीविका के लिए) सैंकड़ों व हजारों प्रतियाँ लिखकर एवं लिखवाकर उन शाहपुरा को छोड़कर ये मालवे के इन्दौर नगरमें भाये और भंडारों को समृद्ध बनाया है। मांडवगढ़, धारा प्रादि के वहाँ कुछ समय रहना हुआ। वहाँ रहते हुए वहाँ की कई समृद्धिशाली श्रावकों ने भी ग्रन्थ भंडार स्थापित किए धार्मिक मंडली से इन्हें ग्रन्थ बनाने की प्रेरणा मिली और थे, पर मुसलमानी पाक्रमणों के समय वे नष्ट-भ्रष्ट हो गए 'बुद्धि प्रकाश' नामक संग्रह ग्रन्थ का कुछ अंश वहाँ रचा