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अज्ञात हिन्वी जन कवि टेकचन्द व उनकी रचनाएँ गया । इन्दौर से फिर संयोगवश ये 'भाडलनगर' पहुंचे। बिसपतवार सुहावनों, हर्ष करन कू प्राय । वहां भी शास्त्र चर्चा प्रेमी धार्मिकजनोंकी मंडलीका मच्छा ता दिन ग्रन्थ पूरन भयो, सो सुख को वरनाय ।। योग मिला और उसकी प्रेरणा से "बुद्धि प्रकाश" अन्य को इति श्री पुण्यास्रव विधाने केशवनन्दि दिव्य मुनि वहीं पूर्ण किया। कवि का तीसरा ग्रन्थ मालवा के राय- शिष्य रामचन्द्र मुमुक्षु विरचिते तत् अनुसारे साधर्मी वचसेनगढ़ में रचा गया है, सम्भव है वे भाडलनगर से राय- निका ठई, ताके अनुसार छन्द चौपाई, ढाल साहपुरे मध्ये सेनगढ़ पहुँचे हों। इस तरह मालव प्रदेश के इन्दौर, भाडल- टेकचन्द सावर्मी करी। लेखन प्रशस्ति के तीन दोहे इस गढ़ और रायसेनगढ़ इन तीनों स्थानों में कवि टेकचन्द का प्रकार है। ठहरना हुआ और वहाँ रहते समय इन्होंने दो ग्रन्थों का श्री साधर्मी टेकचन्द, उपगारी गुण पूर । निर्माण किया। इससे पूर्व शाहपुरामें रहते हुए भी वे एक भाडलपुर मन्दिर थकी, राजत शोभा पूर ॥ विस्तृत ग्रन्थ बना चुके थे । कविके तीनों ग्रन्थोंका संक्षिप्त सभा चतुर गुणपूर है, लाला प्रासाराम । परिचय निम्न प्रकार से है
तिलोकचन्द शुभ प्रणति जिन, जपे निरन्तर नाम। १. पुण्यात्रव कथा-कोश (भाषा)-संस्कृत भाषा के
चतुर आदि भायन घन, घरयो धर्म दिढपाठ । इस कथा कोप की रचना मुनि केशवनन्दि के शिष्य राम
निस दिन शास्त्र विचारिके, पूजा करि हर्ष बाढ ॥ चन्द्र मुमुक्षु' ने की थी। उसकी 'वचनिका' नामक हिन्दी
लेखक कृष्ण ब्राह्मण ॥श्री श्री ॥ संवत् १८२६ जेठ भाषा-टीका संवत् १७७७ में पंडित दौलतराम ने बनाई
कृष्ण ११ बुधवार । पत्र ३३६ ।। थी। उसी के आधार से चौपाई प्रादि हिन्दी छन्दों में
ग्रन्थ के प्रारम्भ में साधर्मी धनराम के प्रागरे में कवि टेकचन्द ने यह पद्यानुवाद संवत् १८२२ की फागुन ।
रचित इस ग्रन्थ की वचनिका का उल्लेख है पर वह अभी सुदी ११ बृहस्पतिवार को शाहपुरा में रहते हुए पूरा
तक कही प्राप्त नहीं हुई है। किया । कवि की यह सबसे बड़ी रचना है। इस ग्रन्थ का
२. बुद्धि प्रकाश-वास्तव में यह कवि की फुटकर परिमाण करीब बारह हजार श्लोकों का है। इसमें ६६
रचनात्रों का संग्रह-ग्रन्थ जान पड़ता है। जैन धर्म सम्बन्धी कथायें हैं। इस ग्रन्थ की संवत् १८२६ की लिखी हुई ।
कई रचनाओं के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में "कृपण दाता की प्रति प्राप्त कर उसकी लेखन प्रशस्ति सम्वाद (पद्य २०२, भाडलपुर में रचित)।" सात व्यसन से यह विदित होता है कि कवि उस समय भाडलपुर के राज' (पद्य २५५, संवत् १८२७ श्रावण सुदी १४, भाडलमन्दिर में विराजमान थे। लाला आसाराम तिलोकचन्द पुर) चेतनकर्मचरित्र (पद्य २२७), 'अक्षरबत्तीसी' के लिए कृष्ण ब्राह्मण ने इस प्रति को लिखा था। कवि (पद्य ४८), 'गुरु परीक्षा,' 'ढाल गण' आदि फूटकर ने प्रशस्ति में अपना परिचय भी दिया है, जिसका साराश रचनाएं संगृहीत हैं। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में 'पुण्यास्रव ऊपर दिया जा चुका है। यहाँ केवल अन्तिम अंश ही कथा कोश भाषा' की प्रशस्ति की भांति कवि ने अपना दिया जा रहा है जिसमें ग्रंथ रचने के समय का उल्लेख है। विस्तृत परिचय दिया है जिसका संक्षिप्त सारांश ऊपर
दिया जा चुका है। इन्दौर में रहते हुए इस ग्रंथ का संवत् अष्टादस शत' जानि, ऊपर बीस दोय.
प्रारम्भ हुआ था और संवत् १८२६ की जेठ सुदी ८ को फिरि आनि ।
भाडलपुर में यह ग्रंथ समाप्त हया । इस ग्रंथ की ६५ पत्रों फागुन सुदि ग्यारस निशि मांहि, कियो समापत
की प्राप्त प्रति, संवत् १८२८ की प्रथम मासाढ़ सुदी ११ उर हुलसांहि ।।५।।
रविवार को रामप्रसाद दुबे की लिखी हुई है। ग्रंथ की १. पुण्यास्रव कथा-कोश की एक प्रति का लेखन, काल समाप्ति १८२६ में हो गयी थी पर इसमें जो 'सप्त व्यसन सं० १५८४ दिया हुआ है, इससे पूर्व ही रामचन्द्र मुमुक्षु राज' रचना है, वह उसके चौदह महीने बाद की है । अतः को होना चाहिए।
सभव है १८२८ में जब यह प्रति लिखी गई तब इस ग्रंथ