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अनेकान्त
वर्ष १५
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हो जाते हैं। स्त्रियों को ऐसा दंड दिया जाता है कि जिससे मैं कहती हूँ कि मार मगावती का ध्यान छोड़ो। एक स्त्री उनका यह जन्म ही नहीं, अनेक जन्म नष्ट हो जाते हैं। के रहो तो दूसरा विवाह भी न करना चाहिये, फिर परकिन्तु पुरुष उस पाप को खुल्लमखुल्ला करते हैं। फिर भी स्त्री हरग तो महापाप है। वे अपनी नाम-मात्र की पत्नियों से पूछते हैं कि इतनी 'मच्छा ! अब मैं तुम से शिक्षा नहीं लेना चाहता।' नाराज क्यों हो गई हो? अर्थात् पुरुषों के ऐसे पाप भी तो मैं भी यह कहती हूँ कि स्त्री को अपने जीवन पर स्त्रियों की नाराजी के लिये पर्याप्त कारण नहीं हैं ! पूर्ण अधिकार है। किसी बन्धन में रहना 'न रहना' उसकी
राजमहिषी के स्वभाव को चण्डप्रद्योत अच्छी तरह इच्छा पर निर्भर है।' जानता था। उसका हृदय कोमल था, उसमें प्रेम था, परंतु इतना कहकर राजमहिषी चली गई। चण्डप्रद्योत साथ में तेज भी था। वह खरी बात कहने वाली थी। अांखें फाड़कर पत्थर की मूत्ति की तरह स्तब्ध खड़ा रह इतना होने पर भी उसके मुंह से इतनी कड़ी बात कभी गया । न निकली थी। आज की बातें सुनकर चण्डप्रद्योत के पाश्चर्य का ठिकाना न रहा। लेकिन आज उसके पास कौशाम्बी नरेश शतानिक बहुत दिनों से बीमार थे। कुछ उत्तर न था। वह थोड़ी देर चुप रहकर फिर उनकी पत्नी मृगावती में जितना सौन्दर्य था उससे भी बोला
अधिक पति प्रेम था। बीमारी की हालत में रानी ने पति "स्त्रियों को पुरुषों के साथ इतनी स्पर्धा न करनी की दिन-रात सेवा की, फिर भी बीमारी न घटी। यह चाहिये।
देखकर मृगावती को अपना भविष्य अन्धकारपूर्ण मालूम 'क्यों ? क्या उन्हें सुख दुःख नहीं होता? क्या उनके । होने लगा। महाराज की हालत भी नाजुक हो गई थी। प्राण नहीं है ?'
मृगावती को ही राज्य का कारबार देखना पड़ता था। चण्डप्रद्योत ने कड़ककर कहा-प्राण तो पशुओं के राजकुमार अभी बिल्कुल बालक ही था। अगर महाराज भी होते है।
की तबियत कुछ अच्छी होने लगती तो मृगावती को कुछ 'तो स्त्रियां पशु हैं ?'
पाशा भी होती। परन्तु अवस्था बिल्कुल उल्टी थी। अब की बार चण्डप्रद्योत कुछ लज्जित सा हो गया। इस समय दासी ने आकर खबर दी कि राजा चण्डमनुष्य किसी को पशु समझ सकता है। परन्तु उसी के प्रद्योत का एक दूत पाया है। सामने उसे पशु कहना कठिन है। वह अपने स्वार्थ और 'क्या कहता है।' क्रूरता को नंगा नहीं करना चाहता । इसीलिये चण्डप्रद्योत 'एक पत्र लाया है।' ने कुछ नम्र होकर कहा-फिर भी यह तो मानना ही 'दूत के ठहरने का प्रबन्ध कर और पत्र इधर ला।' पड़ेगा कि स्त्रियों को पुरुषों के काम में हस्तक्षेप न करना रानी मृगावती की आजा के अनुसार कार्य किया गया। चाहिये।
पत्र महाराज के नाम पर था। रानी ने ही वह पत्र पड़कर यह मैं मानती हूँ कि स्त्री और पुरुष का कार्यक्षेत्र सुनाया। जुदा-जुदा है। युद्ध क्षेत्र में जाकर आप कहाँ पर सेना खड़ी करें और कहाँ पर न करें-इस विषय में में हस्तक्षेप नहीं "कौशाम्बी नरेश श्री शनानिक को प्रचण्ड विक्रमकर सकती। इसी प्रकार गृह प्रबन्ध के काम में आप शाली महाराजाधिराज श्री चण्डप्रद्योत जी सूचित करते हैं हस्तक्षेप नही कर सकते । योग्यता होने पर सिर्फ एक दूसरे कि आपके पास जो रमणीरत्न मृगावती है, उसे महाराज को सलाह या सहायता दे सकते हैं। परन्तु जिन कार्यों से की सेवा में शीघ्र ही उपस्थित करें। सर्वोत्कृष्ट रत्नों का स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध में खटाई पड़ सकती है, उनके विषय स्वामी सर्वोत्कृष्ट शक्तिधारी राजा ही हो सकता है। में एक दूसरे को हस्तक्षेप करने का अधिकार है । इमीलिये इसीलिये आपको उस रमणीरत्न के रखने का कोई अधि