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गए। "वहीं अनेकान्त को स्थायित्व प्रदान करने एवं संचालक असमर्थ रहे। इसी कारण न तो पत्र के ग्राहक ही सुचारु रूप से चलाने के लिए संरक्षकों और सहायकों का बढ़े और न इसको लेखकों का ही सहयोग मिला। मायोजन करना और उन्हें पत्र सदा भेंट स्वरूप वर्तमान में प्राचीन साहिन्यान्वेपण को महत्त्वपूर्ण दिया जाना तय हुआ । बाबू नन्दलाल सरावगी (श्री छोटे स्थान दिया जाने लगा है एवं समाज में विभिन्न स्थानों लाल जी के अनुज) की १५००) रु. की सहायता ने इस पर-जयपुर, आगरा, वाराणसी एटा प्रादि-अनेक मायोजनको विशेष प्रोत्साहन दिया। कलकत्ता मे १३ विद्वान अन्वेषणकार्य में लगे हुये है उनकी शोधपूर्ण रचसंरक्षक एवं सहायक बन गये।
नाओं-लेखों एवं प्रबन्धों के प्रकाशन के लिए समाज संरक्षकों एवं सहायकों से प्राप्त स्थायी फण्ट के लिए में साधन सम्पन्न संस्थाओं एवं पत्रों का प्रायः अभाव ही सारी रकम ६५६६)रु. १०३, ११ वे एवं १२ वें वर्ष के है अत: ऐसी स्थिति में वीर सेवा मंदिर (समंतभद्राश्रम) घाटे में पूरी कर दी गई और फिर भी 8-) का द्वारा अनेकांत का पुन. संचालन मागत योग्य ही है। घाटा पूरा नही हो मका। स्थायी फण्ड की रकम चालू अन्त मे श्री मुख्तार सा. की उन सेवामों को याद खर्च में लगाकर पत्र का स्थायित्व समाप्त कर दिया करना जरूरी है जो उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा पत्र को गया। चालू खर्च न तो वीर सेवा मन्दिर ने ही और न की। बाबू छोटेलाल जी जैन ने भी समय २ पर मुख्तार सा० के ट्रस्ट ने ही वहन किया। १३ वें वर्ष में न केवल स्वयं आर्थिक महायता दी अपितु औरों से भी १४९२ )एव १४ वर्ष में ५५००) रु. से अधिक दिलाई एवं पत्र का सम्पादन भी कुछ समय वहन किया । का घाटा रहा । अतः जुलाई मन् ५७ से पत्र बन्द ही हो अब बाबू छोटेलाल जी की ही प्रेरणा और उनके अध्यगया।
वसाय का परिणाम है कि "अनेकांत' का पुनः दर्शन हो इम प्रकार पत्र ने अपनं १४ वर्ष का समय २८ वर्षों रहा है। मे पूर्ण किया है। पत्र में लगातार घाटा लगना रहा जिस अंत में इस भावना के माथ लेख ममाप्त कर रहा हूँ के कारण पत्र चालू नहीं रखा जा सका फिर भी यह तथ्य कि यह पत्र स्थायित्व प्राप्त करे एवं जैन समाज ही नही सत्य है कि इस पत्र ने दिगम्बर जैन समाज में इतिहास अपितु, भारत के गोध पत्रों में अग्रगण बने एवं जैन
और माहित्यान्वेपण को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया । किन्तु माहित्य एवं संस्कृति की पुरानन सामग्री को प्रकाश में फिर भी समाज की साहित्यिक अभिरुचि बनाने में इसके लाता रहे । एव मौलिक साहित्य-सृजन का स्रोत बने ।
वीर मेवा मन्दिर और "अनेकान्त" के महायक १०००) श्री मिश्रीलाल जी धर्मचन्द जी जैन, कलकत्ता २५०) श्री बी० मार० मी० जैन, कलकत्ता ५००) श्री रामजीवनदास जी मरावगी, कलकत्ता २५०) श्री रामस्वरूप जी नेमिचन्द, कलकत्ता ५००) श्री गजराज जी सरावगी, कलकत्ता
१५०) श्री बजरंगलाल जी चन्द्रकुमार, कलकत्ता ५००) श्री नथमल जी सेठी, कलकत्ता
१५०) श्री चम्पालाल जी मरावगी, कलकत्ता ५००) श्री बैजनाथ जी धर्मचन्द जी, कलकत्ता
१५०) श्री जगमोहन जी सरावगी, कलकत्ता ५००) श्री रतनलाल जी झांझरी, कलकत्ता
१५.०) श्री कस्तूरचन्द जी अानन्दीलाल, कलकत्ता २५१) श्री रा. बा. हरबचन्द जी जैन, रांची
१५०) श्री कन्हैयालाल जी मीताराम, कलकना २५.१) श्री अमरचन्द जी जैन (पहाड़या), कलकत्ता १५०) श्री प० बाबूलाल जी जैन, कलकत्ता २५.१) श्री स० मि. धन्यकुमार जी जैन, कटनी १५०) श्री मालीगम जी मरावगी, कलकत्ता २५०) श्री वशीधर जी जुगलकिशोर जी, कलकता १५०) श्री प्रतापमल जी मदनलाल जी पाडया, कलकत्ता २५०) श्री जुगमन्दिरदाग जी जैन, कलकत्ता
१५०) श्री भागचन्द जी पाटनी, कलकत्ता २५०) श्री सिंघई कुन्दनलाल जी, कटनी
१५.०) श्री शिवरचन्द जी सगवगी, कलकत्ता १०) श्री महावीरप्रमाद जी अग्रवाल, कलकना
१५०) श्री मुरेन्द्रनाथ जी नरेन्द्रनाथ, कनकना १००) श्री म्पचन्द जी जैन. कलकना