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अनेकान्त
वर्ष १५ वर्तमान में चम्पा नगरी भागलपुर के एक किनारे पर में सातवीं शताब्दी में शिवपूजा का घर-घर प्रचार था।' स्थित है। इसका स्टेशन नाथनगर है। चीनी यात्री हर्षचरित्र में थानेश्वर में होने वाली उपज, पशुसम्पत्ति, ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में चम्पा की समृद्धि का धनसंपत्ति एवं उसके सांस्कृतिक वैभव का सुन्दर वर्गान जिक्र किया है।
किया है। इसमें सन्देह नही कि सातवी-पाठबी शताब्दी २०. जयपुर-हरिभद्र ने इस नगर को अपरविदेह के साहित्य मे इस नगर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। में बतलाया है । इसका वर्णन करते हुए लिखा है कि "अपरविदेह खेत्ते अपरिमिय गुणणिहाण तियसपुरवराणु
३. दन्तपुर -महाभारत के अनुसार दन्तपुर कलिग गारि उज्जाणा रामभूसियं समत्थमे इणि तिलयभूयं जयउरं
3 को राजधानी थी। इसे दन्तकर भी कहा गया है। नाम नयर ति"-अपरविदेह क्षेत्र में अपरिमित गुणों का २४. पाटलापथ'--इस नगर की स्थिति का परिज्ञान भाण्डार इन्द्रपुरी का अनुकरण करने वाला उद्यान और विवधतीर्थकल्प से होता है । इस ग्रन्थ में पाटला मे नेमिपारामों से विभूपित समस्त पृथ्वी का तिलक स्वरूप नाथ जिनालयके होने का उल्लेख है। हमारा अनुमान है जयपुर नाम का नगर है । इस वर्णन से भी ज्ञात होता कि सौराष्ट्र में कही इस नगर की स्थिति रही होगी। है कि उक्त जयपुर वर्तमान जयपुर से भिन्न है।
२५. पाटलीपुत्र'--गंगा के तट पर अवस्थित यह २१. टंकनपुर'-हमारा अनुमान है कि यह टक्कन
बहुत प्रसिद्ध पुराना नगर है । जैन साहित्य में बताया गया पुर होना चाहिए । टक्कनपुर के स्थान में टंकनपुर लिखा।
गया है कि कुणिक के परलोक गमन के उपरान्त उसका गया है। इसकी स्थिति विपाशा और सिन्धु नदी के मध्य
पुत्र उदायी चम्पा का शासक नियुक्त हुया । वह भी अपने भाग का प्रदेश टक्क या वाहीक कहा जाता था। शाकल
पिता के सभास्थान, श्रीड़ास्थान, शयनस्थान प्रादि को या स्यालकोट टक्क देश की राजधानी थी। इसमें भद्र
देखकर, पूर्व स्मृति जाग्रत हो जाने से उद्विग्न रहता था। और पारदृ देश भी सम्मिलित थे। राजतरंगिणी मे टक्क
उसने प्रधान प्रामात्यो की अनुमति से नूतननगर निर्माणार्थ की स्थिति चन्द्रभागा या चिनाव के तट पर मानी गई है।
प्रवीण नैमित्तिको को अदिश दिया। भ्रमण करते-करते कुवलयमाला के अनुसार वाहीक या पञ्चनद देश टक्क
वे गंगा के तट पर प्राय । गुलाबी पुप्पों से सुसज्जित कहा जाता था।
छवियुक्त पालि वृक्षों को दबकर वे पाश्चर्यान्वित हुए। २२. थानेश्वर'-प्राचीन कुरुक्षेत्र का यह एक
तर की टहनी पर चाप नामक पक्षी मुंह खोले बैठा था। भाग था। कुरुक्षेत्र में पानीपत, सोनपत, और थानेश्वर
कीड़े स्वयं उसके गुह में या पड़ने थे। इस घटना को तक का भूभाग शामिल था। इस का एक अन्य नाम स्थाणु
देखकर ये लोग सोचने लगे कि यहां पर नगर का तीर्थ भी मिलता है। सातवी शताब्दी में इसे सम्राट हर्प
निर्माण होने से राजा को लक्ष्मी की प्राप्ति होगी । फलतः की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ है। महाकवि
उस स्थान पर नगर का निर्माण कराया, जिसका नाम बाणभट्ट ने इस नगर का बड़ा हृदय-ग्राह्य वर्णन किया है।
पाटलिपुत्र रखा गया ।' वर्तमान में यह नगर पटना के वहाँ मुनियों के तपोवन, वेश्यानी के कामायतन, लासकों
नाम से प्रसिद्ध है और विहार की राजधानी है। संस्कृत की संगीतशालाएं, विद्यार्थियों के गुरुकुल, विदग्धों की
____ साहित्य मे पाटलिपुत्र बहुत प्रिय नगर रहा है। विट् गोष्ठियाँ, चारणों के महोत्सव समाज थे। शस्त्रोपजीवी, गायक, विद्यार्थी, शिल्पी, व्यापारी, बन्दी, बौद्ध भिक्षु ३. डा० वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा सम्पादित मादि सभी प्रकार के लोग वहा थे। थानेश्वर के इलाके
हर्ष चरित एक सांस्कृतिक अध्ययन पृ०५५ ६. वही, पृ० ७५
४. सम० पृ० ५२६ १. सम० पृ० १७२
५. वही, पृ० ७१३ २. वही, पृ० १८१
६. वही, पृ० ३३६