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वर्ष १५
गुरुवार संवत् १८०५ में यह नवरस युक्त ग्रंथ पूर्ण किया ४. जीवंधर चरित्र रइधू अपभ्रंश जैसा कि निम्न पंक्तियों से ज्ञात होया है--
५. जीवंधर चरित्र नथमलविलाला हिन्दी "बांच्यो महापुराण बीस हजार सिलोका
६. जीवंधर चरित्र पन्नालाल जाकै अन्ति अनूप वीर चरित जु गुण थोका"
उक्त रचनाओं के अतिरिक्त डा. वेलंकर ने अपने जाम कथा रसाल स्वामि जीवंधर केरी जिनरत्नकोश में निम्न रचनाओं के नाम और गिनाये हैं :सुनिकर हर भव्य स्तुति कीनीजु पनेरी ॥
१. जीवंधर चरित्र
भाष्कर कवि तबै बोलियो अग्रवाला वासी काला डहर को
२. जीवंधर चरित्र
ब्रह्मय्या चतुर चतुरभुज नाम चरंची ग्रंथ ५६ सिव सहरको ३. जीवंधर चरित्र
सुचन्द्रचार्य जो 8 ग्रंथ अनूप देश भाषा के माहीं
पंडित दौलतराम कासलीवाल ने गुणभद्राचार्य कृत बांचे बहुतहि लोक या महैं संस नाहीं॥ संस्कृत के उत्तरपुराण में वर्णित जीवंधर की कथा के सब गिरथ की बनिन आवै तो इह जीवंधर तनी। आधार पर जीवनधर चरित्र लिखा है । यह ग्रन्थ किसी का अवसिमेव करनी सूभाषा प्रथीराज इह भनी। अनुवाद नहीं है बल्कि कवि की स्वतंत्र मौलिक रचना सुनी चतुरमुख बात सोहि दौलत उरधरी है। इसे हिन्दी का प्रबन्धकाव्य कहा जाय तो प्रत्युक्ति सेठ बेलजी सुघर जाति हुँमड हितकारी ॥ नहीं होगी। इसमें घटनाओं का अच्छा कम है तथा नाना सागवाड है वास श्रवण की लगन घनेरी
भावों का रसात्मक अनुभव कराने वाले प्रसंगों का समासब साधरमी लोक धरै श्रद्धा श्रुत केरी ॥ वेश है इस काव्य में ७२५ पद्य हैं तथा दोहा, चौपाई, तिन नै प्राग्रह करि कहि फुनि दौलत के मन बसी वेसरीछन्द, अरिल्ल, बडदोहा भुजंगप्रयात आदि अनेक छंदों संस्कृत ते भापा कीनी, इह कथा है नौ रसी।। का प्रयोग हुआ है। सम्पूर्ण काव्य ५ अध्यायों में विभक्त ठारह से जु पंच पापाढ़ सुमासा।
है जिनमें विरह, मिलन, युद्ध वर्णन, नगरवर्णन प्रादि सभी तिथि दोइज गुरुवार पक्ष सुकल जुसुभ भासा ।। प्रकार के वर्णन हैं। इस कथा का नायक जीवधर कुमार तीज पहर मु एह ग्रंथ सुभ पूरण हुो।
है जो धीरोदात्त प्रकृति का है तथा प्रतिनायक काष्टांगार श्री जिनधर्म प्रभाव सकल भव भ्रम ते जूवो॥ है। कथा में नायक प्रतिनायक का विरोध बराबर चलता अन्य रचनाएं तया इस रचना को विशेषता रहता है। नायक जीबंधर प्रतिनायक काष्ठांगार को मार ___ अन्य महापुरुषों के जीवन की तर.. जीवंधर कुमार का कर अपने पिता का खोया हुअा राज्य प्राप्त करता है और जीवन चरित्र भी जैन समाज में अपनी अनेक विशेषताओं अन्त में संसार रो विरक्त होकर सम्पूर्ण कर्मों को नष्ट कर के कारण महत्वपूर्ण एवं जनप्रिय रहा है। उनका जीवन मोक्ष प्राप्त करता है । सम्पूर्ण काव्य की कथा बड़ी रोचक श्मसान में जन्म होने से लेकर अनेक कौतूहल पूर्ण घटनाओं है तथा पाठकों की उसे पढ़ने की जिज्ञासा बनी रहती है। के साथ मानवता की चरम सीमा पर पहुँचता है तथा वे इसका कथानक सजीव होने के साथ २ जीवन को स्पर्श अन्त में केवल ज्ञान प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त करते हैं। करने वाला भी है। इसलिये ऐसे महान पुरुषों का जीवन चरित्र संस्कृत, अप- कवि ने हृदय को छूने वाली सीधी-साधी जन-साधारण म्रश हिन्दी आदि कितनी ही भाषाओं में निबद्ध किया की भाषा में जीवंधर के जीवन की सम्पूर्ण घटनाओं का हुमा मिलता है। अब तक जीवन्धर के जीवन से सम्बन्धित रोचक वर्णन किया है। पूरे काव्य में ऐसा लगता है मानों राजस्थान के भण्डारों में निम्न रचनाएं प्राप्त हो चुकी है। कवि पाठकों से कविता में साधारण बातचीत करता चलता
१. जीवंधरचम्पू हरिचन्द्र संस्कृत है-साधारण से साधारण पढ़ा-लिखा भी कवि के अभि२. जीवंधर चरित्र शुभचन्द्र
प्राय को समझने में सफल होता है। ३. क्षत्र चूड़ामणि वादीसिह
राजा रानी एवं पुरोहित का परिचय देखिये :