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अनेकान्त
वर्ष १५
दो-तीन आदिम जातियों के सम्बन्ध में किताबें लिखी हैं, हुए वह कीड़ों-मकोड़ों को अपने पैर के नीचे आने से बचाजिसमें उन्होंने अफ्रीका के जंगलों में अपने जीवन की कथा वेगा, यहाँ तक कि वह रात को खिड़कियां बन्द करके लैम्प सुनाई है। ये पुस्तकें मानव-प्रकृति और विज्ञान के गंभीर की रोशनी में काम करना पसंद करेगा, बजाय इसके कि रहस्यों से परिपूर्ण हैं । इन पुस्तकों की विक्री से तथा जब खिड़की खोलकर परवानों को लैम्प पर आकर जलने दे।" कभी-बहुत दिनों बाद वह यूरोप आते हैं, तब वहां एक बार एक पालतू हिरन ने उनके वर्षों के परिश्रम से संगीत का कन्सर्ट बजाकर जो पैसा कमाते हैं, उसमें अपना, लिखित एक ग्रंथ को ही चबा डाला, पर स्वाइटजरसाहब अपने परिवार का तथा अस्पताल का खर्च चलाते हैं।" उस पर बिलकुल नाराज न हुए। सिर्फ इतना ही कहाप्रथम महायुद्ध के दिनों में वह बन्दी बना लिए गए "अरे भलेमानस, तू नहीं जानता कि तूने यह क्या कर
डाला है !" १६१५ की वसंत ऋतु में वह एक छोटे-से स्टीमर दीनवन्धु ऐण्ड ज ने अपने एक लेख में लिखा हैद्वारा नदी की यात्रा कर रहे थे । आस-पास वन का दृश्य "जब मेरी स्वाइटजर से भेंट हुई तो उन्होंने फौरन ही था और उन्होंने देखा कि प्रकृति में चारों ओर संघर्ष चल मेरे समस्त हृदय पर अधिकार कर लिया। मैने कभी रहा है । पेड़-पौधे तथा जंगल के जीव अपने जीवन को उनके समान बच्चों की-सी स्वाभाविक स. लता का श्रादमी कायम रखने के लिए परस्पर संघर्ष कर रहे हैं। उसी नहीं देखा । सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि वह अंग्रेजी समय एक विचार उनके मन में आया-"क्या हम लोग नहीं जानते है और मेरा जर्मन अथवा फ्रेंच का ज्ञान बहुत एक-दूसरे का विनाश करके ही जीवित रह सकते है ?" अल्प है । खैर, किसी तरह हम लोगों ने इस मुश्किल को उस समय उनके हृदय में बड़ी दुविधा उत्पन्न हो गई। हल किया। हम लोगों की बातचीत शुरू से आखिर तक वह इस प्रश्न को हल नहीं कर पा रहे थे। दो दिन तक गांधीजी के सम्बन्ध में ही थी। उनका स्टीमर चलता रहा और उनका दिमाग भी चक्कर ।
"भारत की परिस्थिति ने उन पर गहरा प्रभाव डाला काटता रहा । तीसरे दिन शाम को, जबकि सूर्यास्त का
था। उन्होंने मुझसे कहा-'आपका और मेरा देश बहुतबड़ा सुन्दर दृश्य उनके सामने उपस्थित था, एक साथ
कुछ एक-सा है। हम दोनों के देशों को पराजय उठानी पड़ी
है और दोनों ही के देश आजकल पीड़ित है।" उनके मस्तिष्क में एक उज्जवल विचार उत्पन्न हुआ
"मैंने उन्हें महात्मा जी के पाश्चर्यजनक अस्त्र अहिंसा 'सर्व जीव दया' (रेववेंस फार लाइफ) मानों उन्हें जीवन
की बातें बताई । स्वाइटजर के वैज्ञानिक भाव जाग्रत हो दर्शन की कुंजी ही मिल गई ! तबसे वह समस्तसंसार में
गये और उन्होंने 'जन-धर्म और अहिंसा' शब्द के वास्तअपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध हो चुके हैं। उन्होंने इस
विक अर्थ प्रादि के विषय में जानने की इच्छा प्रकट की। सिद्धांत का गम्भीर मनन किया है और वह कुछ निश्चित
उन्होंने यह भी पूछा कि भारत के धार्मिक जीवन में इस परिणामों पर भी पहुँचे है। उनके सिद्धांत का सार यह सिद्धांत का प्रभाव कितना है? है-"प्रत्येक प्राणी का जीवन पवित्र है और उसकी रक्षा
"मगर थोड़ी ही देर बाद हम लोग घूम-फिरकर करना हमारा कर्तव्य है।" पर क्या हम हिमा से पूर्णतया पुनः महात्मा जी के विषय पर पहुँच गये। सवाल पूछतेबच सकते हैं ? एल्बर्ट स्वाइटजर का मत है-"कभी-कभी ।
पूछते उनकी तबीयत ही नहीं भरती थी। वह बराबर हिसा हमें करनी ही पड़ती है। अपने मरीजों को बचाने के पन..usन करते जाने
प्रश्न-पर-प्रश्न करते जाते थे। हमारे दुभाषिया महाशय को लिए हमें कीटाणुओं को नष्ट करना पड़ता है। लेकिन मेरी बात उन्हें समझाने में विशेष कठिनाई होती थी। बिना किसी कारण के हमें यह अनाचार हरगिज नहीं स्वाइटजर को इस बात की बड़ी खुशी थी कि मैं महात्मा करना चाहिए । दुनिया में कोई चीज इतनी छोटी नहीं हैं जी के साथ रख सका और उनके निजी मित्र की हैसि. कि जो हमारी प्रेम पात्र न बन सके । सच्चा अहिंसावादी
यत से उनकी बातें बता सकता है। बार-बार वह यही किसी पेड़ की पत्तियों को भी नहीं काटेगा । मार्ग में चलते कहते थे हम बड़े भाग्यवान हैं।"