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• अनेकान्त
बर्ष १५
श्रीपाल चरित्र
काल श्रावण वदी १२ रविवार सं० १६६५ है । इसके २१ इसके लेखक म. सकलकीति है। इसकी पत्र संख्या पत्र तथा १०१८ श्लोक हैं। यह प्रति चतुर्मुनि के शिष्य ३६ लिपिकाल फागन सुदी २ रविवार सं० १६४३ हैं और जीवण ऋषि ने "योगेपछा नगर में लिखी थी। जिन० कोश ७ परिच्छेदों के ८०४ श्लोकों में समाप्त होता है। इसकी पृ० ३२० आमेर सूची पृ० ११६ अन्त में लेखक की प्रशस्ति दो प्रतियां हैं 'क' प्रति में ४८ पत्र हैं लिपि काल आदि है जो जै० म०प्र० सं० में पृ० १०६ पर प्रकाशित है। कुछ भी उल्लिखित नहीं है । इसका विवरण जि० र० को. ३६८ आमेर सूची पृ० १५६ पर मिलता है।
इसके लेखक श्री वासवसेन हैं जिन्होंने इसे सं०१५८५ राज. सू०२१०१६, २३३ में समाप्त किया था। इसमें पाठ सर्ग हैं । देखो जिन० २० श्रीपाल चरित्र
कोश पृ. ३२० (सका रचनाकाल विचारणीय है ?) इसके लेखक श्री श्रुतसागर हैं, इसकी पत्र संख्या १५
यशोधर चरित्र मूल है। अन्त में लेखक ने प्रशस्ति लिखी है जो जै० ग्र० प्र०
इसके लेखक श्री भ० सकलकीति हैं। इसमें ६६ पत्र पृ० १६ पर प्रकाशित है । दूसरी सूचियों में इसका उल्लेख
तथा ८ सर्ग है । इसका लिपिकाल मगसिर सुदी १० बुधनहीं मिलता है।
वार सं० १७४७ है । श्लोक ७६० हैं इस प्रति में लिपिधन्यकुमार चरित
काल की निम्न प्रशस्ति है।" श्री मूलसंघे नंद्याम्नाये बला
कारगणे सरस्वती गच्छे कुन्दकुंदाम्नागे भ० जगत्भूषण इसके लेखक भ० सकलकीति है इसकी पत्रसंख्या ३६
तत्पट्टे विश्वभूपण तत्पट्टे गोलालारान्वय ब्रह्म श्री विनयहै यह ६ अधिकारों के ८५० श्लोकों में लिखा गया है इसका लिपि काल आसोज सुदी १ सं० १६२१ है यह
सागर तन्शिष्य प. हरिकिशन स्वयमेव लिखापितं धर्मोप
करणं" इसका विवरण निम्न प्रतियों में मिलता है। जिन मा० अनंतकीति देव के शिष्य ब. रायमल्ल ने अपने पढने
रत्नकोष पृ० ३२० xvii आमेर सूची १ पृ० ११६ प्रशस्ति के लिए लिखी थी इसका विवरण जिनरत्न कोश पृष्ठ १८७ Y तथा आमेर भंडार सूची पृ० ७५ पर मिलता है । ?
संग्रह पृ० ५३ राज० सूची ३ पृ० ३६,७५,२१७ राज.
सूची २, २२८, ९८८ । इसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो गया है पर मूल अप्र
पद्म चरित्र-टिप्पण काशित है।
इसके लेखक मुनि श्रीचन्द है। यह प्राचार्य रविषण धन्य कुमार चरित
के संस्कृत पद्मचरित के पदों का टिप्पण है जो संस्कृत गद्य इसके लेखक का नामोल्लेख नहीं है यह संस्कृत गद्य
के ५८ पत्रों में लिखा गया है, इसका रचनाकाल सं. में ३७ से ५१ पत्र अर्थात् १३ पत्रों में लिखा गया था
१०८७ है और लिपिकाल पौष वदी ५ रविवार सं० १८७४ ऐसा प्रतीत होता है इसके साथ कोई और ग्रन्थ लिखा
है। ग्रंथ के अंत में टिप्पणकार की निम्न प्रशस्ति है। गया होगा जिसकी पत्र संख्या इसी में चली आई । अंतिम
"लाट (ड)वागडि थी प्रवचनसेन पंडितात्थद्मचरित प्रशस्ति में भ० लक्ष्मीचन्द तत्पट्टे श्री अभयचन्दैः ब्रह्म
स्सको बलात्कारगण श्री श्रीनंद्यावार्य सत्कवि शिष्येण श्री मतिसागर पटनार्थ दत्तं । भ० देवेन्द्रकीर्ति श्री धर्मचन्द
श्रीचन्द्र मुनिना, श्रीमद्विक्रमादित्य संवत्सरे सप्तशीत्यधिक श्री धर्मभूषण भ. देवेन्द्रकीर्ति संबंधि भ० श्री कुमुदचन्द्र
वर्ष सहस्र श्रीमद्धारायां श्रीमतो भोजराजे भोजदेवस्य पद्म संबंधि इत्यादि लिखा है।
चरिते तस्य टिप्पणं (श्रीचन्द्रमुनिना कृतं समाप्तम्) ।" यशोधर चरित्र
लिपिकार की निम्न प्रशस्ति हैं "श्री मूलसंघे बलात्कारगणे इसके लेखक सरस्वती गच्छ में रामसेन के उत्तरा
सरस्वतीगच्छ कुन्दकुदाम्नाये लिखी लसकर मध्ये लेखक
दोष शोधनात् पंडितस्य" । इसकी प्रशस्ति "ज० ग्र० प्र० धिकारी भीमसेन के शिष्य "श्री सोमकीति" है इसका स० में प०१६३ पर प्रकाक्षित है इसका विवरण "जि. रचनाकाल पौष कृष्णा ५ रवौ सं० १५३६ है तथा लिपि- र० को० के पृ० २३३ix पर मिलते हैं। क्रमशः]
7 भ० देवेन्द्रको श्री कुमुदचन्द्र वर्ष सहतस्य टिप्पणं ( है "श्री मूलसंबर मध्ये लेखक