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(३८) २५ भिक्षाचर्या की परिभाषा।
३२ विनय। २६ रस-विवर्जन।
३३ वैयावृत्त्य। २७ कायक्लेश।
३४ स्वाध्याय और उसके प्रकार। २८ विविक्त-शयनासन।
३५ ध्यान। २६,३० आन्तरिक-तप के भेदों का नाम-निर्देश।
३६ कायोत्सर्ग। ३१ प्रायश्चित्त।
३७ तप के आचरण से मुक्ति की संभवता। इकतीसवां अध्ययन : (चरण-विधि का निरूपण)
पृ० ५३२-५४९ श्लोक १ अध्ययन का उपक्रम।
१३ गाथा षोडशक और सतरह प्रकार के असंयम में यत्न २ असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति का विधान।
करने से संसार-मुक्ति। ३ राग और द्वेष के निरोध से संसार-मुक्ति।
१४ अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य, उन्नीस ज्ञात-अध्ययन और ४ तीन दण्डों, गौरवों और शल्यों के त्याग से संसार-मुक्ति।
बीस असमाधि-स्थानों में यत्न करने से संसार-मुक्ति। ५ उपसर्ग-सहन करने से संसार-मुक्ति।
१५ इक्कीस सबल दोष, बाईस परीषहों में यत्न करने से ६ विकथा, कषाय, संज्ञा और आर्त्त-रौद्र ध्यान के वर्जन
संसार-मुक्ति। से संसार-मुक्ति।
१६ सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययन और चौबीस प्रकार के ७ व्रत और समितियों के पालन से, इन्द्रिय-विजय और
देवों में यत्न करने से संसार-मुक्ति। क्रियाओं के परिहार से संसार-मुक्ति।
१७ पच्चीस भावनाओं और छब्बीस उद्देशों में यत्न करने ८ छह लेश्या, छह काय और आहार के छह कारणों में
से संसार-मुक्ति। यत्न करने से संसार-मुक्ति।
१८ साधु के सत्ताईस गुण और अठाईस आचार-प्रकल्पों में ६ आहार-ग्रहण की सात प्रतिमाओं और सात भय-स्थानों
यत्न करने से संसार-मुक्ति । में यत्न करने से संसार-मुक्ति।
१६ उनतीस पाप-प्रसंगों और तीस प्रकार के मोह-स्थानों में १० आठ मद-स्थान, ब्रह्मचर्य की नौ गुप्ति और दस प्रकार
यत्न करने से संसार-मुक्ति। के भिक्षु-धर्म में यत्न करने से संसार-मुक्ति।
२० सिद्धों के इकतीस आदि-गुण, बत्तीस योग-संग्रह और ११ उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं और भिक्षु की बारह
तेतीस आशातना में यत्न करने से संसार-मुक्ति। प्रतिमाओं में यत्न करने से संसार-मुक्ति।
२१ इन स्थानों में यत्न करने वाले का शीघ्र संसार-मुक्त १२ तेरह क्रियाओं, चौदह जीव-समुदायों और पन्द्रह
होना। परमाधार्मिक देवों में यत्न करने से संसार-मुक्ति। बतीसवां अध्ययन : प्रमाद-स्थान (प्रमाद के कारण और उनका निवारण)
पृ० ५५०-५६८ श्लोक १ अध्ययन का प्रारम्भ।
३५-४७ शब्दासक्ति हिंसा, असत्य, चौर्य और दुःख का हेतु। २ एकान्त सुख के हेतु का प्रतिपादन।
शब्द-विरति शोक-मुक्ति का कारण। ३ मोक्ष-मार्ग का प्रतिपादन।
४८-६० गन्ध-आसक्ति हिंसा, असत्य, चौर्य तथा दुःख का हेतु। ४ समाधि की आवश्यक सामग्री।
गन्ध-विरति शोक-मुक्ति का कारण। ५ एकल-विहार की विशेष विधि।
६१-७३ रस-आसक्ति हिंसा, असत्य, चौर्य तथा दुःख का हेतु। ६ तृष्णा और मोह का अविनाभाव सम्बन्ध ।
रस-विरति शोक-मुक्ति का कारण। ७ कर्म-बीज का निरूपण।
७४-८६ स्पर्श-आसक्ति हिंसा, असत्य, चौर्य तथा दुःख का हेतु। * दुःख-नाश का क्रम।
स्पर्श-विरति शोक-विमुक्ति का हेतु। ६,१० राग-द्वेष और मोह के उन्मूलन का उपाय।
८७-६६ भाव-आसक्ति हिंसा, असत्य, चौर्य तथा दुःख का हेतु। ११ प्रकाम-भोजन ब्रह्मचारी के लिए अहितकर।
भाव-विरति शोक-विमुक्ति का हेतु। १२ विविक्त शय्यासन और कम भोजन से राग-शत्रु का १०० रागी पुरुष के लिए इन्द्रिय और मन के विषय दुःख के पराजय।
हेतु, वीतराग के लिए नहीं। १३-१८ ब्रह्मचारी के लिए स्त्री-संसर्ग-वर्जन का विधान।
१०१ समता या विकार का हेतु तद्विषयक मोह है, काम-भोग १६,२० किंपाक-फल की तरह काम-भोग की अभिलाषा दुःख
नहीं। का हेतु।
१०२,१०३ काम-गुण आसक्त पुरुष अनेक विकार–परिणामों द्वारा २१ मनोज्ञ विषय पर राग और अमनोज्ञ विषय पर द्वेष न
करुणास्पद और अप्रिय। करने का उपदेश।
१०४ तप के फल की वांछा करने वाला इन्द्रिय-रूपी चोरों का २२-३४ रूप-आसक्ति हिंसा, असत्य, चौर्य और दुःख का हेतु।
वशवर्ती। रूप-विरति शोक-मुक्ति का कारण।
१०५ विषय-प्राप्ति के प्रयोजनों के लिए उद्यम।
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