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उनतीसवां अध्ययन : सम्यक्त्व-पराक्रम (साधना-मार्ग)
पृ० ४६४-५०२ श्लोक १ अध्ययन का उपक्रम । सम्यक्त्व-पराक्रम का अर्थ तथा ३६ शरीर-प्रत्याख्यान के परिणाम।
संवेग से अकर्मता तक के ७३ विषयों का नाम-निर्देश । ४० सहाय-प्रत्याख्यान के परिणाम। २ संवेग के परिणाम।
४१ भक्त-प्रत्याख्यान के परिणाम। ३ निर्वेद के परिणाम।
४२ सद्भाव-प्रत्याख्यान के परिणाम। ४ धर्म-श्रद्धा के परिणाम।
४३ प्रतिरूपता के परिणाम। ५ गुरु-धार्मिक-शुश्रुषा के परिणाम।
४४ वैयावृत्त्य के परिणाम। ६ आलोचना के परिणाम।
४५ सर्व-गुण-सम्पन्नता के परिणाम। ७ निन्दा के परिणाम।
४६ वीतरागता के परिणाम। ८ गर्दा के परिणाम।
४७ क्षमा का परिणाम। ६ सामायिक का परिणाम।
४८ मुक्ति के परिणाम। १० चतुर्विंशतिस्तव का परिणाम।
४६ ऋजुता के परिणाम। ११ वन्दना के परिणाम।
५० मृदुता के परिणाम। १२ प्रतिक्रमण के परिणाम ।
५१ भाव-सत्य के परिणाम। १३ कायोत्सर्ग के परिणाम।
५२ करण-सत्य के परिणाम। १४ प्रत्याख्यान का परिणाम।
५३ योग-सत्य के परिणाम। १५ स्तव-स्तुति-मंगल के परिणाम।
५४ मनो-गुप्तता के परिणाम। १६ काल-प्रतिलेखना का परिणाम।
५५ वाकू-गुप्तता के परिणाम। १७ प्रायश्चित्त के परिणाम।
५६ काय-गुप्तता के परिणाम। १८ क्षमा करने के परिणाम ।
५७ मनःसमाधारणा के परिणाम। १६ स्वाध्याय का परिणाम
५८ वाक्-समाधारणा के परिणाम। २० वाचना के परिणाम।
५६ काय-समाधारणा के परिणाम। २१ प्रतिपृच्छा के परिणाम।
६० ज्ञान-सम्पन्नता के परिणाम। २२ परिवर्तना का परिणाम।
६१ दर्शन-सम्पन्नता के परिणाम। २३ अनुप्रेक्षा के परिणाम।
६२ चारित्र-सम्पन्नता के परिणाम। २४ धर्मकथा के परिणाम।
६३ श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २५ श्रुताराधना के परिणाम।
६४ चक्षु-इन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २६ एकाग्र-मनःसन्निवेश का परिणाम।
६५ घ्राणेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २७ संयम का परिणाम।
६६ जिहेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २८ तप का परिणाम।
६७ स्पर्शेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २६ व्यवदान के परिणाम ।
६८ क्रोध-विजय का परिणाम। ३० सुख-शात के परिणाम।
६६ मान-विजय का परिणाम। ३१ अप्रतिबद्धता के परिणाम।
७० माया-विजय का परिणाम । ३२ विविक्त-शयनासन-सेवन के परिणाम ।
७१ लोभ-विजय का परिणाम। ३३ विनिवर्तना के परिणाम।
७२ प्रेम, द्वेष और मिथ्या-दर्शन-विजय के परिणाम। ३४ संभोज-प्रत्याख्यान के परिणाम।
७३ केवली के योग-निरोध का क्रम। शेष चार कर्मों के क्षय ३५ उपधि-प्रत्याख्यान के परिणाम।
का क्रम। ३६ आहार-प्रत्याख्यान के परिणाम।
७४ कर्म-क्षय के बाद जीव की मोक्ष की ओर गति, स्थिति ३७ कषाय-प्रत्याख्यान के परिणाम।
का स्वरूप-विश्लेषण। उपसंहार। ३८ योग-प्रत्याख्यान के परिणाम। तीसवां अध्ययन : तपो-मार्ग-गति (तपो-मार्ग के प्रकारों का निरूपण)
पृ० ५०३-५३१ श्लोक अध्ययन का प्रारम्भ।
७ तप के प्रकार २ महाव्रत और रात्रि-भोजन-विरति से जीव की
८ बाह्य-तप के छह प्रकार। आश्रव-विरति।
६ इत्वरिक अनशन। ३ समित और गुप्त जीव की आश्रव-विरति।
१०,११ इत्वरिक तप के छह प्रकार। ४ अर्जित कर्मों के क्षय के उपाय।
१२,१३ अनशन के दो प्रकार। ५,६ तालाब के दृष्टांत से तपस्या द्वारा कर्म-क्षय का निरूपण। १४-२४ अवमौदर्य के प्रकार।
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