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________________ (३७) उनतीसवां अध्ययन : सम्यक्त्व-पराक्रम (साधना-मार्ग) पृ० ४६४-५०२ श्लोक १ अध्ययन का उपक्रम । सम्यक्त्व-पराक्रम का अर्थ तथा ३६ शरीर-प्रत्याख्यान के परिणाम। संवेग से अकर्मता तक के ७३ विषयों का नाम-निर्देश । ४० सहाय-प्रत्याख्यान के परिणाम। २ संवेग के परिणाम। ४१ भक्त-प्रत्याख्यान के परिणाम। ३ निर्वेद के परिणाम। ४२ सद्भाव-प्रत्याख्यान के परिणाम। ४ धर्म-श्रद्धा के परिणाम। ४३ प्रतिरूपता के परिणाम। ५ गुरु-धार्मिक-शुश्रुषा के परिणाम। ४४ वैयावृत्त्य के परिणाम। ६ आलोचना के परिणाम। ४५ सर्व-गुण-सम्पन्नता के परिणाम। ७ निन्दा के परिणाम। ४६ वीतरागता के परिणाम। ८ गर्दा के परिणाम। ४७ क्षमा का परिणाम। ६ सामायिक का परिणाम। ४८ मुक्ति के परिणाम। १० चतुर्विंशतिस्तव का परिणाम। ४६ ऋजुता के परिणाम। ११ वन्दना के परिणाम। ५० मृदुता के परिणाम। १२ प्रतिक्रमण के परिणाम । ५१ भाव-सत्य के परिणाम। १३ कायोत्सर्ग के परिणाम। ५२ करण-सत्य के परिणाम। १४ प्रत्याख्यान का परिणाम। ५३ योग-सत्य के परिणाम। १५ स्तव-स्तुति-मंगल के परिणाम। ५४ मनो-गुप्तता के परिणाम। १६ काल-प्रतिलेखना का परिणाम। ५५ वाकू-गुप्तता के परिणाम। १७ प्रायश्चित्त के परिणाम। ५६ काय-गुप्तता के परिणाम। १८ क्षमा करने के परिणाम । ५७ मनःसमाधारणा के परिणाम। १६ स्वाध्याय का परिणाम ५८ वाक्-समाधारणा के परिणाम। २० वाचना के परिणाम। ५६ काय-समाधारणा के परिणाम। २१ प्रतिपृच्छा के परिणाम। ६० ज्ञान-सम्पन्नता के परिणाम। २२ परिवर्तना का परिणाम। ६१ दर्शन-सम्पन्नता के परिणाम। २३ अनुप्रेक्षा के परिणाम। ६२ चारित्र-सम्पन्नता के परिणाम। २४ धर्मकथा के परिणाम। ६३ श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २५ श्रुताराधना के परिणाम। ६४ चक्षु-इन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २६ एकाग्र-मनःसन्निवेश का परिणाम। ६५ घ्राणेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २७ संयम का परिणाम। ६६ जिहेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २८ तप का परिणाम। ६७ स्पर्शेन्द्रिय-निग्रह का परिणाम। २६ व्यवदान के परिणाम । ६८ क्रोध-विजय का परिणाम। ३० सुख-शात के परिणाम। ६६ मान-विजय का परिणाम। ३१ अप्रतिबद्धता के परिणाम। ७० माया-विजय का परिणाम । ३२ विविक्त-शयनासन-सेवन के परिणाम । ७१ लोभ-विजय का परिणाम। ३३ विनिवर्तना के परिणाम। ७२ प्रेम, द्वेष और मिथ्या-दर्शन-विजय के परिणाम। ३४ संभोज-प्रत्याख्यान के परिणाम। ७३ केवली के योग-निरोध का क्रम। शेष चार कर्मों के क्षय ३५ उपधि-प्रत्याख्यान के परिणाम। का क्रम। ३६ आहार-प्रत्याख्यान के परिणाम। ७४ कर्म-क्षय के बाद जीव की मोक्ष की ओर गति, स्थिति ३७ कषाय-प्रत्याख्यान के परिणाम। का स्वरूप-विश्लेषण। उपसंहार। ३८ योग-प्रत्याख्यान के परिणाम। तीसवां अध्ययन : तपो-मार्ग-गति (तपो-मार्ग के प्रकारों का निरूपण) पृ० ५०३-५३१ श्लोक अध्ययन का प्रारम्भ। ७ तप के प्रकार २ महाव्रत और रात्रि-भोजन-विरति से जीव की ८ बाह्य-तप के छह प्रकार। आश्रव-विरति। ६ इत्वरिक अनशन। ३ समित और गुप्त जीव की आश्रव-विरति। १०,११ इत्वरिक तप के छह प्रकार। ४ अर्जित कर्मों के क्षय के उपाय। १२,१३ अनशन के दो प्रकार। ५,६ तालाब के दृष्टांत से तपस्या द्वारा कर्म-क्षय का निरूपण। १४-२४ अवमौदर्य के प्रकार। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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