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________________ (३६) छवीसवां अध्ययन सामाचारी (संघीय जीवन की पद्धति) श्लोक १ अध्ययन का उपक्रम । २४ सामाचारी के दस अंगों के नाम-निर्देश। ५-७ सामाचारी का प्रयोग कब और कैसे। ८ - १० प्रतिलेखन के बाद गुरु के आदेशानुसार चर्या का प्रारम्भ । ११ दिन के चार भागों में उत्तर- गुणों की आराधना । १२ प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में भिक्षाचरी और चौथे में पुनः स्वाध्याय का विधान । १३-१५ पौरुषी - विधि और वर्ष भर की तिथियों के वृद्धि-क्षय का परिज्ञान । १६ प्रतिलेखन का समय-विधान । १७ रात्रि के चार भागों में उत्तर- गुणों की आराधना । १८ प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुनः स्वाध्याय का विधान । १६,२० नक्षत्रों द्वारा रात्रि का काल ज्ञान । २१- २५ प्रतिलेखना विधि । २६, २७ प्रतिलेखना के दोषों के प्रकारों का वर्जन । २८ प्रतिलेखना के प्रशस्त और अप्रशस्त विकल्प । २६, ३० प्रतिलेखना में कथा आदि करने वाले का छह कार्यों का विराधक होना। अट्ठाईसवां अध्ययन अध्ययन का उपक्रम । श्लोक १ २ मार्गों का नाम-निर्देश । ३ मार्ग को प्राप्त करने वाले जीवों की सुगति । ४, ५ ज्ञान के पांच प्रकार । ६ द्रव्य, गुण और पर्याय की परिभाषा । ७ द्रव्य के छह प्रकारों का नाम-निर्देश । ८ छह द्रव्यों की संख्या परकता । ६ धर्म, अधर्म और आकाश के लक्षण । १०-१२ काल, जीव और पुद्गल के लक्षण । १३ पर्याय के लक्षण । १४ नौ तत्त्वों के नाम-निर्देश । पृ० ४०८-४२९ ३१ तीसरे प्रहर में भिक्षा तथा छह कारणों से भिक्षा का विधान । ३२ छह कारणों का नाम निर्देश । ३३ छह कारणों से भिक्षा न करने का विधान । ३४ छह कारणों का नाम निर्देश । ३५ भिक्षा के लिए अर्ध-योजन तक जाने का विधान । ३६ चौथे प्रहर में स्वाध्याय का विधान । ३७ शय्या की प्रतिलेखना। ३८ उच्चार भूमि की प्रतिलेखना। कायोत्सर्ग का विधान । ३६-४१ दैवसिक अतिचारों का प्रतिक्रमण । १५ सम्यक्त्व की परिभाषा । १६ सम्यक्त्व के दस प्रकारों का नाम-निर्देश । १७, १८ निसर्ग रुचि की परिभाषा । १६ उपदेश - रुचि की परिभाषा । २० आज्ञा-रुचि की परिभाषा । Jain Education International ४२ ४३ सत्तावीसवां अध्ययन खलुंकीय (अविनीत की उद्दण्डता का चित्रण) श्लोक १ गर्ग मुनि का परिचय । २ वाहन वहन करते हुए बैल की तरह योग- वहन करने वाले मुनि का संसार स्वयं उल्लंघित । ३-७ अविनीत बैल का मनोवैज्ञानिक स्वभाव-चित्रण । अयोग्य बैल की तरह दुर्बल शिष्य द्वारा धर्म यान को काल प्रतिलेखना । रात्री के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में स्वाध्याय का विधान । ४४ असंयत व्यक्तियों को न जगाते हुए स्वाध्याय का निर्देश | ४५ काल की प्रतिलेखना । ४६ कायोत्सर्ग का विधान । ४७-४६ रात्रिक अतिचारों का प्रतिक्रमण । ५० कायोत्सर्ग में तप ग्रहण का चिन्तन । ५१ तप का स्वीकार और सिद्धों का संस्तव । ५२ सामाचारी के आचारण से संसार सागर का पार । पृ० ४३०-४३७ - १४, १५ १६ १७ भग्न करना। ६-१३ अविनीत शिष्य का स्वभाव-चित्रण | आचार्य के मन में खेद खिन्नता । मोक्ष मार्ग गति (मोक्ष के मार्गों का निरूपण) गली - गर्दभ की तरह कुशिष्यों का गर्गाचार्य द्वारा बहिष्कार । गर्गाचार्य का शील-सम्पन्न होकर विहरण करना । पृ० ४३८-४६३ २३ २४ २१ सूत्र - रुचि की परिभाषा । २२ बीज-रुचि की परिभाषा । अभिगम रुचि की परिभाषा । विस्तार - रुचि की परिभाषा । २५ क्रिया- रुचि की परिभाषा । २६ संक्षेप रुचि की परिभाषा । २७ धर्म- रुचि की परिभाषा । २८ सम्यक्त्व का श्रद्धान। २६ सम्यक्त्व और चारित्र का पौर्वापर्य सम्बन्ध । ३० दर्शन, ज्ञान और चारित्र से ही मुक्ति की सम्भवता । ३१ सम्यक्त्व के आठ अंगों का निरूपण । ३२, ३३ चारित्र के पांच प्रकार । ३४ तप के दो प्रकार । ३५ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का परिणाम । ३६ संयम और तप से कर्म - विमुक्ति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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