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छवीसवां अध्ययन सामाचारी (संघीय जीवन की पद्धति)
श्लोक १ अध्ययन का उपक्रम ।
२४ सामाचारी के दस अंगों के नाम-निर्देश। ५-७ सामाचारी का प्रयोग कब और कैसे। ८ - १०
प्रतिलेखन के बाद गुरु के आदेशानुसार चर्या का
प्रारम्भ ।
११ दिन के चार भागों में उत्तर- गुणों की आराधना । १२ प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में भिक्षाचरी और चौथे में पुनः स्वाध्याय का विधान । १३-१५ पौरुषी - विधि और वर्ष भर की तिथियों के वृद्धि-क्षय का परिज्ञान ।
१६ प्रतिलेखन का समय-विधान ।
१७ रात्रि के चार भागों में उत्तर- गुणों की आराधना । १८ प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुनः स्वाध्याय का विधान ।
१६,२० नक्षत्रों द्वारा रात्रि का काल ज्ञान ।
२१- २५ प्रतिलेखना विधि ।
२६, २७ प्रतिलेखना के दोषों के प्रकारों का वर्जन ।
२८ प्रतिलेखना के प्रशस्त और अप्रशस्त विकल्प । २६, ३० प्रतिलेखना में कथा आदि करने वाले का छह कार्यों का विराधक होना।
अट्ठाईसवां अध्ययन
अध्ययन का उपक्रम ।
श्लोक १ २ मार्गों का नाम-निर्देश ।
३ मार्ग को प्राप्त करने वाले जीवों की सुगति ।
४, ५ ज्ञान के पांच प्रकार ।
६ द्रव्य, गुण और पर्याय की परिभाषा ।
७ द्रव्य के छह प्रकारों का नाम-निर्देश ।
८ छह द्रव्यों की संख्या परकता ।
६ धर्म, अधर्म और आकाश के लक्षण ।
१०-१२ काल, जीव और पुद्गल के लक्षण ।
१३ पर्याय के लक्षण ।
१४ नौ तत्त्वों के नाम-निर्देश ।
पृ० ४०८-४२९
३१ तीसरे प्रहर में भिक्षा तथा छह कारणों से भिक्षा का विधान ।
३२ छह कारणों का नाम निर्देश ।
३३ छह कारणों से भिक्षा न करने का विधान ।
३४ छह कारणों का नाम निर्देश ।
३५ भिक्षा के लिए अर्ध-योजन तक जाने का विधान ।
३६ चौथे प्रहर में स्वाध्याय का विधान ।
३७ शय्या की प्रतिलेखना।
३८ उच्चार भूमि की प्रतिलेखना। कायोत्सर्ग का विधान ।
३६-४१ दैवसिक अतिचारों का प्रतिक्रमण ।
१५ सम्यक्त्व की परिभाषा ।
१६ सम्यक्त्व के दस प्रकारों का नाम-निर्देश ।
१७, १८ निसर्ग रुचि की परिभाषा ।
१६ उपदेश - रुचि की परिभाषा । २० आज्ञा-रुचि की परिभाषा ।
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सत्तावीसवां अध्ययन खलुंकीय (अविनीत की उद्दण्डता का चित्रण) श्लोक १ गर्ग मुनि का परिचय ।
२ वाहन वहन करते हुए बैल की तरह योग- वहन करने वाले मुनि का संसार स्वयं उल्लंघित ।
३-७ अविनीत बैल का मनोवैज्ञानिक स्वभाव-चित्रण । अयोग्य बैल की तरह दुर्बल शिष्य द्वारा धर्म यान को
काल प्रतिलेखना ।
रात्री के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में स्वाध्याय का विधान ।
४४ असंयत व्यक्तियों को न जगाते हुए स्वाध्याय का
निर्देश |
४५ काल की प्रतिलेखना ।
४६ कायोत्सर्ग का विधान । ४७-४६ रात्रिक अतिचारों का प्रतिक्रमण । ५० कायोत्सर्ग में तप ग्रहण का चिन्तन ।
५१ तप का स्वीकार और सिद्धों का संस्तव ।
५२ सामाचारी के आचारण से संसार सागर का पार ।
पृ० ४३०-४३७
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१४, १५ १६ १७
भग्न करना।
६-१३ अविनीत शिष्य का स्वभाव-चित्रण | आचार्य के मन में खेद खिन्नता ।
मोक्ष मार्ग गति (मोक्ष के मार्गों का निरूपण)
गली - गर्दभ की तरह कुशिष्यों का गर्गाचार्य द्वारा बहिष्कार । गर्गाचार्य का शील-सम्पन्न होकर विहरण करना ।
पृ० ४३८-४६३
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२१ सूत्र - रुचि की परिभाषा । २२ बीज-रुचि की परिभाषा ।
अभिगम रुचि की परिभाषा । विस्तार - रुचि की परिभाषा । २५ क्रिया- रुचि की परिभाषा । २६ संक्षेप रुचि की परिभाषा ।
२७ धर्म- रुचि की परिभाषा ।
२८ सम्यक्त्व का श्रद्धान।
२६ सम्यक्त्व और चारित्र का पौर्वापर्य सम्बन्ध ।
३० दर्शन, ज्ञान और चारित्र से ही मुक्ति की सम्भवता ।
३१ सम्यक्त्व के आठ अंगों का निरूपण ।
३२, ३३ चारित्र के पांच प्रकार ।
३४ तप के दो प्रकार ।
३५ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का परिणाम ।
३६ संयम और तप से कर्म - विमुक्ति ।
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