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मध्यान्म-दर्शन
के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि परमात्मा गधाम तक गमनक लिए परमात्मा जिन मार्ग से गए है और अपने धाम नर पर हैं, उन मार्ग को पहले भन्नीमानि देश ले, अन्नर में उन पर पायगाना ली दृष्टि से वीतरागभाव अथवा गुदात्मभाष गा पापर अनारामा म परमात्मपथ का दर्शन करने के लिए, पूर्णतगा जन्नुस।
जगत् में मिन-भिन धर्मों और पा, मन-मनालगे ममन्द पुरय परमात्म-प्राप्ति के अलग-अलग मार्ग बनाने ह । नकार गिनानु मारक वाम्नविक मार्ग को छोड कर एक या दूग माग का पता , मान कर जब उद्देश्य से बिन्द्र उमगे नतीन नामन जाते हैं या पीनगाजिक बदले गग, १ प और मोह को भूल नल्या नजर आनी गागिन समय होता है नो माश्रत पश्चात्ताप या Tई बार मानध्यान में जाता ! वार माधब गजगी बुद्धि पी दोर लगा पर कालि द्वारा अपन, नानु प्रगट करके उन] मार्ग (उत्पथ) पर चट गता है, फिर पत्रराता है, उनमें पिंड छुडाने के लिए छपटाता है और मोहनीयानं को प्रवनना कारण वीतराग परमात्मा द्वारा अन्यन्त या प्रापित गन्यग्दर्शन-जान नन्दिप (मोक्ष) मार्ग को प्राप्त नहीं कर पाता । मान्दिया बुद्धि मीर हृदय पानमा नय करके चलने के बजाय वह केवन बुद्धि पर भरोमा म पर चलता है तिर पतन से मार्ग पर चट जाना है, या ठोकर खा जाता है !
तीनरी वान भक्तिरस की दृष्टि में यह है कि जने प्रेमी या विरहिणी स्त्री अपने पति के आने की बाट जोहती रहती है, इसी प्रकार परमात्मा के माय मच्ची प्रीति करने वाला परमात्मप्रेमी नाधक भी परमात्मा में (उनके स्वधाम में पहुंच जाने के वारण) विरह हो जाने से जन्तरात्मा में उनके पधाने (शुद्ध आन्मभाव के आने) की बाट जोहता= प्रतीक्षा करता रहता।
इन सब दृप्टियो ने विशुद्ध आत्मभाव का पथिक साधक नर्वप्रथम पन्मात्मा के उस विशुद्ध और वास्तविक मार्ग को देखने-नानने और भलीभांति हदयगम परने के लिए आतुर-उत्सुक है। वह परमात्म-पथ के दर्शन-चारीकी में अवलो वन, वन्ने, वृद्धि और हदय मे निरीक्षण-परीक्षण गन्ने के लिए नन्न हो कर खडा है । बह जागृत हो कर जन्तरहृदय ने पुकार उठना है-'पथटो निहालु रे