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वृहद
पण्डित राजेश आनन्द
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[ पद् हस्त रेखा शास्त्र
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सैकड़ों हस्त रेखा चित्रों सहित
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मनुष्य के हाथ की रेखाएं भूत, वर्तमान और भविष्य का
दर्पण होती हैं और यही रेखाएं मनुष्य के चरित्र, मानसिक स्थिति, शारीरिक दशा, विवाह, व्यवसाय, संतान के अतिरिक्त जीवन में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं, सम्पन्नता या दरिद्रता की स्थिति
आदि का बोध कराती हैं। मामूली सा चिन्ह, त्रिकोण, यव, चतुष्कोण व त्रिशुल तारे जैसे सूक्ष्म चिन्हों का हाथ में होने का क्या शुभ-अशुभ, आयु
के किस दौर में पड़ता है, इन सभी विषयों पर व्यापक व विस्तृत प्रकाश डाला गया है तथा शारीरिक लक्षणों की भी जानकारी दी गई है। रेखाएं कर्म से बदलती रहती हैं, अपने भाग्य व भविष्य के प्रति रेखाओं के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर उद्यम करके आप अपनी रेखाएं बदल भी सकते हैं।
आवश्यकता केवल ध्यान व एकाग्रता से इस पुस्तक को पढ़कर समझने की है। यदि आप भविष्य व वर्तमान का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपके लिए यह
अनमोल व दुर्लभ पुस्तक है।
नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत
समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें.
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हस्तरेखाओं द्वारा भविष्य तथा भविष्य में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं, व्यवसाय, चरित्र, धन स्थिति, विवाह, सन्तान व उन्नति-अवनति का बोध कराने वाला एक अनमोल व दुर्लभ ग्रंथ। सैकड़ों रेखा चित्रों सहित।
वृहद्
हस्त रेखा शास्त्र
लेखक पण्डित राजेश आनन्द
प्रकाशकः गोल्ड बुक्स (इण्डिया) 4537, दाईवाड़ा, नई सड़क, दिल्ली- 110006.
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प्रकाशक: गोल्ड बुक्स (इण्डिया) 4537, दाईवाड़ा, नई सड़क, दिल्ली -110006
वितरकः पवन पॉकेट बुक्स 4537, दाईवाड़ा, नई सड़क, दिल्ली -110006
© सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
मूल्यः चालीस रुपये (40-00)
मुद्रक: मेनका पब्लिशर्स एण्ड प्रिन्टर्स C-71, सेक्टर-58, नोएडा
चेतावनी भारतीय कॉपी राइट एक्ट के अन्तर्गत इस पुस्तक में समाहित सारी सामग्री (रेखा चित्रों सहित) के सर्वाधिकार 'गोल्ड बुक्स (इण्डिया)' के पास सुरक्षित हैं। इसलिए कोई व्यक्ति संस्था या समूह इस पुस्तक की पाठ्य सामग्री व चित्र आदि आशिक या पूर्ण रूप से तोड़-मरोड़कर हिन्दी या किसी अन्य भाषा में प्रकाशित नहीं कर सकता। उल्लंघन करने वाले, कानूनी तौर पर हर्जे-खर्चे व हानि के स्वयं जिम्मेदार होंगे।
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विषय सूची 1. हस्तरेखा ज्ञान क्या है2. हाथ का विस्तृत ज्ञान 11 - कम खुलने वाला अंगूठा - समकोण हाथ
13 - टोपाकार अंगूठा - चमसाकार हाथ
16 - पतला अंगूठा - दार्शनिक हाथ
18 - अधिक खुलने वाला अंगूठा - आदर्शवादी हाथ
20 - चपटा (चौड़ा) अंगूठा - कलाकार हाथ
22 - गांठदार व बिना गांठ का अंगूठा - कौणिक हाथ
24 - दण्डाकार या गोल अंगूठा - विरुद्ध कौणिक हाथ
25 - दो अंगूठे - नौकाकार हाथ
26 5. उंगलियां - छोटा हाथ
27 - सीधी उंगलियां - भारी व चौड़ा हाथ
27 - छोटी उंगलियां - पतला हाथ
29 - लम्बी उंगलियां - अधिक रेखाओं वाला हाथ 31 - मोटी उंगलिया -- क्रियात्मक हाथ
32 - पतली उंगलियां - नरम कोमल हाथ
32 - कोमल या लचीली उंगलियां - कठोर हाथ
33 - कठोर या न झुकने वाली उंगलियां -- व्यापारिक हाथ
35 - प्रथम उंगली (लम्बी) - उत्तम व्यापारिक हाथ
35 - प्रथम उंगली (छोटी) - मध्यम व्यापारिक हाथ
35 - दूसरी उंगली 3. अन्य प्रकार के हाथ व हाथों - तीसरी उंगली के रंग
37 - चौथी उंगली - गुलाबी हाथ
37 - चौथी या बुध की उंगली (छोटी) - पीला हाथ
37 - चौथी या बुध की उंगली (टेढ़ी) - लाल हाथ
38 - शनि व सूर्य की उंगली (बराबर) -- नीला हाथ
38 6. नाखून - गहरा लाल या काला हाथ 38 - नाखूनों के रंग - दाग धब्बे वाला हाथ
39 - लम्बे नाखून - ठंडा हाथ
4) - छोटे नाखून - गरम हाथ
4) - चौड़े नाखून - खाली हाथ
4) - पतले नाखून 4. अंगूठा
41 - मोटे नाखून - लम्बा अंगूठा
42 - नाखूनों में चन्द्र - छोटा अंगूठा
43 - चन्द्र रहित नाखून - मोटा अंगूठा
43 - नाखूनों में दाग - कठोर या न झुकने वाला अंगूठा 44 - नालीदार (रेखायुक्त) नाखून - झुकने वाला अंगूठा
44 - लम्बे संकरे नाखून
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- भद्दे नाखून
00 14. क्रास या गुणा (x) का चिन्ह 98 - चपटे नाखून
66 15. जाली - चतुष्कोणाकार नाखून 66 16. धब्बे या गड्ढे
99 - त्रिकोणाकार नाखून
17. मणिबंध
100 - बृहस्पति या प्रथम उंगली का नाखून 67
100 - शनि या दूसरी उंगली का नाखून
67 19. रेखाओं के विषय में कुछ - सूर्य या तीसरी उंगली का नाखून । 67 अन्य बातें
102 - बुध या चौथी उंगली का नाखून 67 20. हाथ में आयु गणना
105 - अंगूठे का नाखून
68 - मस्तिष्क रेखा पर आयु गणना - दो या अधिक नाखूनों का समन्वय
- हृदय रेखा पर आयु गणना 105 7. ग्रहों का संक्षिप्त विवरण 69 - जीवन रेखा पर आयु गणना 106 - ग्रहों के स्वतंत्र वर्ष
- दायें हाथ में आयु गणना 107 - बृहस्पति ग्रह
71 - बायें हाथ में आयु गणना - शनि ग्रह
73 - उंगलियों पर वर्ष गणना, - सूर्य ग्रह 76 आयु गणना
107 - बुध ग्रह 77. 21. जीवन रेखा
108 - चन्द्र ग्रह
79 - निर्दोष जीवन रेखा (गोलाकार) 109 - मंगल ग्रह 80 - दोषयुक्त जीवन रेखा
110 - शुक्र ग्रह
- जीवन रेखा का निकास 8. मुद्रिकाएं
- बृहस्पति से निकलने वाली - बृहस्पति मुद्रिका
जीवन रेखा - शनि मुद्रिका
- मंगल से उदित जीवन रेखा 112 - सूर्य मुद्रिका
- बृहस्पति और मंगल के बीच - शुक्र मुद्रिका
से उदित जीवन रेखा 9. चतुष्कोण
- जीवन रेखा का अन्त
113 10. त्रिकोण
- चन्द्रमा पर जीवन रेखा का अन्त 113 11. डमरू
- सीधी जीवन रेखा
114 12. सितारा
- अधूरी जीवन रेखा
116 13. तिल
- दोहरी जीवन रेखा
119 - शनि पर तिल
- मोटी जीवन रेखा - शुक्र पर तिल
- पतली जीवन रेखा - बृहस्पति पर तिल
- देर से आरम्भ होने वाली - सूर्य पर तिल
जीवन रेखा
123 - बुध पर तिल
96 - जीवन रेखा में कुठार रेखा 123 - चन्द्रमा पर तिल
- मुड़ी हुई जीवन रेखा - अंगूठे के पास वाले मंगल पर तिल 96
- टूटी हुई जीवन रेखा - जीवन रेखा पर तिल
- जीवन रेखा बृहस्पति के अन्य स्थान पर तिल 97 नीचे टूटी हुई
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- जीवन रेखा शनि के नीचे टूटी हुई 128 - देर से आरम्भ होने वाली - जीवन रेखा सूर्य के नीचे या
मस्तिष्क रेखा ___ अंत में टूटी हुई
128 - मोटी मस्तिष्क रेखा - जीवन रेखा में द्वीप 128 - टूटी मस्तिष्क रेखा
163 - सूर्य के नीचे जीवन रेखा में द्वीप 130 - मस्तिष्क रेखा में द्वीप - जंजीराकार जीवन रेखा 131 - मस्तिष्क रेखा के अन्त में द्वीप 165 - जीवन रेखा में रोमांच
131 - मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप 166 22. द्विभाजित जीवन रेखा 132 - मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप 166 - जीवन रेखा शुक्र में द्विभाजित 132 - मस्तिष्क रेखा के आरम्भ या - जीवन रेखा बीच में द्विभाजित 133 बृहस्पति के नीचे द्वीप
167 - जीवन रेखा की शाखा चन्द्रमा पर 133 - टेढ़ी-मेढ़ी मस्तिष्क रेखा 168 23. मस्तिष्क रेखा
134 - मस्तिष्क रेखा को काटने - निर्दोष मस्तिष्क रेखा 135 वाली रेखाएं
169 - दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा 137 24. भाग्य रेखा
170 - दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा (आरम्भ में) 14) - उत्तम भाग्य रेखा - शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष 141 - शाखान्वित भाग्य रेखा - मस्तिष्क रेखा का निकास __- जीवन रेखा से निकलने वाली
(जीवन रेखा से कम जडा हआ) 142 भाग्य रेखा - मस्तिष्क रेखा का निकास
- भाग्य रेखा का जीवन रेखा के (जीवन रेखा से अलग) 144 पास से निकलना
175 - मस्तिष्क रेखा का निकास
- भाग्य रेखा का शनि क्षेत्र से (बृहस्पति से)
146 निकलना - मस्तिष्क रेखा का अन्त
- भाग्य रेखा का मस्तिष्क (चन्द्रमा पर)
रेखा से निकलना
178 - मस्तिष्क रेखा का अन्त
- भाग्य रेखा का चन्द्रमा से निकलना 179 (चन्द्रमा पर एकदम मुड़कर) 151 - भाग्य रेखा का मंगल से निकलना 180 - मस्तिष्क रेखा का अन्त
- भाग्य रेखा का हृदय रेखा से (मंगल पर) 152 निकलना
181 - मस्तिष्क रेखा का अन्त (सूर्य पर) 154 - भाग्य रेखा का सूर्य रेखा से - मस्तिष्क रेखा का अन्त
निकलना
182 __ (बुध पर या उसकी ओर) 154 - जीवन रेखा से छोटी भाग्य - लम्बी मस्तिष्क रेखा 155 रेखाएं निकलना ।
183 - छोटी मस्तिष्क रेखा
156 - भाग्य रेखा का अन्त शनि पर 184 - दोहरी मस्तिष्क रेखा
157 - भाग्य रेखा का अन्त बृहस्पति पर 184 - शाखान्वित मस्तिष्क रेखा
- भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर 185 ... मस्तिष्क रेखा में छोटी-छोटी - भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास 186 शाखाएं
- पतली भाग्य रेखा .- मस्तिष्क रेखा में रोमांच
- टूटी भाग्य रेखा
187 (नीचे की ओर)
159 - भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा 188
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150
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25. हृदय रेखा
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समानान्तर व सटी हुई भाग्य रेखा
भाग्य रेखा में द्वीप
भाग्य रेखा के आरम्भ में द्वीप
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भाग्य रेखा के आरम्भ में बड़ा द्वीप 191
चन्द्रमा पर भाग्य रेखा में द्वीप
192
भाग्य रेखा के मध्य या अन्त
में द्वीप
मस्तिष्क रेखा पर रुकी भाग्य रेखा
भाग्य रेखा को काटने वाली रेखाएं
अधूरी भाग्य रेखा
भाग्य रेखा रहित हाथ
उत्तम हृदय रेखा
दोषपूर्ण हृदय रेखा
टूटी हृदय रेखा
दोहरी हृदय रेखा
हृदय रेखा का निकास
हृदय रेखा का मंगल से निकलना
हृदय रेखा का बुध से निकलना
हृदय रेखा का अन्त शनि के नीचे हृदय रेखा का अन्त शनि पर हृदय रेखा का अन्त शनि और बृहस्पति की उंगली के बीच में हृदय रेखा का अन्त बृहस्पति की उंगली के पास
हृदय रेखा का अन्त बृहस्पति की ओर अर्थात हृदय रेखा का बृहस्पति को देखना हृदय रेखा का अन्त सीधा बृहस्पति पर
सूर्य पर ( अर्थात छोटी हृदय रेखा)
हृदय रेखा उंगलियों के पास हृदय रेखा में द्वीप हृदय रेखा में बुध के नीचे द्वीप हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप हृदय रेखा में शनि के नीचे द्वीप हृदय रेखा के अन्त में बृहस्पति पर द्वीप
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206
मोटी हृदय रेखा
- द्विभाजित हृदय रेखा
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हृदय रेखा या उसकी शाखा मस्तिष्क पर
रोमांचित हृदय रेखा
टेढ़ी या झुकी हुई हृदय रेखा
हृदय रेखा में त्रिकोण
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26. उभय रेखाएं
जीवन रेखा व मस्तिष्क
रेखा का लम्बा जोड़
हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा
समानान्तर
समानान्तर हृदय व मस्तिष्क रेखा
हृदय रेखा और मस्तिष्क
रेखा अधिक दूर
हृदय व मस्तिष्क रेखा
पास-पास
27. अन्य महत्वपूर्ण रेखाओं
का विस्तृत ज्ञान विशेष भाग्य रेखा
28. अन्तर्ज्ञान, स्वास्थ्य व
बुध रेखा अन्तर्ज्ञान रेखा या
देवी - बुद्धि रेखा स्वास्थ्य रेखा
बुध या व्यापार रेखा
मंगल रेखा
29. राहु रेखा
30. मत्स्य रेखा
207
208 31. विवाह रेखा
208 32. बृहस्पति रेखा या
209
इच्छा रेखा
210
211
213
33. शुक्र रेखा
34. चन्द्र रेखा
35. सूर्य रेखा 214 36. विलासकीय रेखा
215
215
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219
220
221
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222
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हस्तरेखा ज्ञान क्या है ?
हस्त लक्षणों का ज्ञान कितना पुराना है, अनुमान नहीं लगाया जा सकता। ज्योतिष का वर्णन उस सर्वशक्तिमान के नेत्रों के रूप में वेदों में पाया जाता है। हस्तरेखा द्वारा ही देवर्षि नारद ने भक्तों के भाग्योदय किए हैं। महाभारत में उंगलियों का अग्रभाग मोटा होना व्यक्ति के जीवन में अस्थिर होने का लक्षण दर्शाया गया है। संसार के प्रत्येक देश में किसी न किसी प्रकार से ज्योतिष ज्ञान पाया जाता है। व्यक्ति कहीं हाथ की रेखाओं, कहीं शरीर के लक्षणों या केवल अंगूठे को देखकर जिज्ञासा को शान्त करता है। पुराणों, शास्त्रों व जनसंकुलन में अनेक शकुनों का पाया जाना भी व्यक्ति की निरन्तर व अतीतकालीन भविष्य विषयक जिज्ञासा का चिन्ह है। अतः पता नहीं कब से इस सम्बन्ध में विचार होता रहा है। इसी जिज्ञासा के शमन का परिणाम ही ज्योतिष है, जिसका आधार खगोल के आश्चर्यजनक ग्रह, करतल, मस्तक व पादतल की रेखाएं रमल, शकुन व श्वास-क्रिया आदि हैं। ... ज्योतिष का ध्येय मानव कल्याण है। अत: परमार्थ को सर्वोपरि रखकर भविष्य बताना ही उत्तम है, क्योंकि इसके अभ्यास में अनेक स्थल ऐसे आते हैं कि हस्तरेखाविद् को व्यक्ति का पूर्ण विश्वास प्राप्त होता है। जिसका अनेक प्रकार से दुरूपयोग भी किया जा सकता है जो कि इस ईश्वरीय विद्या का ही दुरूपयोग है। अत: ज्योतिषी को चरित्र, व्यवहार, वाणी के विषय में विशेष संयम व सतर्कता की आवश्यकता होती है। । इसी के अभाव में आज यह ज्ञान बाजारू बन गया है और अनेक अनर्गल बातें इस विषय में प्रचलित हैं। ज्योतिष का, सही मार्गदर्शन, कार्य का दिशानिर्धारण व भविष्य के विषय में सतर्कता ही केवल उपयोगी है, जिसके फलस्वरूप परिश्रम की बचत व रक्षा की सम्भावना रहती है। वैसे तो ज्योतिष का ध्येय ही मानव कल्याण है, तो भी यह कला व्यक्ति विशेष के जीवन का विश्लेषण करती है। ___'एक फल, एक लक्षण' इस कहावत को ज्योतिष विद्या ने नकारते हुए सिद्ध किया है कि एक फल की पुष्टि अनेक लक्षणों से होती है।
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कई बार हाथ में रेखा या किसी लक्षण-विशेष की उपस्थिति के न होने के कारण, असमंजस का सामना करना पड़ता है। परन्तु एक ही लक्षण पर निर्भर न रहकर एक ओर तो अन्य लक्षणों द्वारा भी उसी फल की प्राप्ति हो जाती है, दूसरी ओर उसी लक्षण की निश्चितता का भी ज्ञान होता है। इसी कथन को ध्यान में रखकर हाथ में जो कुछ भी देखा जाए, सावधानी से देखा जाना चाहिए ताकि हाथ के सभी गुण, दोष, अन्य लक्षण व रेखाओं में दोष आदि दृष्टिगत हो सकें। हाथों में निम्न लक्षणों का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है
आरम्भ में कई बार निराशाजनक फलों की प्राप्ति हो सकती है। इसमें हाथ दिखाने वाले का असहयोग या कोई अन्य कारण हो सकता है। परन्तु इससे हतोत्साहित न होकर पुनः प्रयत्न करना श्रेयष्कर होता है। हमें विश्वास है कि आपको सफलता ही नहीं पूर्ण सफलता हाथ लगेगी।
अन्त में यही कहा जा सकता है कि निरन्तर प्रयत्न व अनुभव से प्राप्त ज्ञान ही महत्वपूर्ण है। अतः निरन्तर प्रयत्न व क्रियात्मक अध्ययन ही ज्ञान की कुन्जी है।
- लेखक
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हाथ का विस्तृत ज्ञान
हस्त रेखा विद्वानों का कार्य हाथ से आरम्भ होता है, सबसे पहले हाथ ही उनकी दृष्टि में आता है। अतः हाथ का भली प्रकार परीक्षण व निरीक्षण तथा समुचित ज्ञान उनके लिए अत्यावश्यक है। हाथ का आकार, लम्बाई, चौड़ाई, आकृति, रंग, उसका झुकाव, हाथ के अंगों की बनावट आदि सभी कुछ सोचकर अपना कार्य आरम्भ करता है। सबसे पहले हाथ के आकार पर ध्यान देना आवश्यक है। हाथ सात प्रकार के होते हैं। ये सात प्रकार उस समय होते हैं जब किसी अन्य प्रकार का मिश्रण न हो। मानसिक मनोवृत्ति वाले व्यक्ति के कार्य का दृष्टिकोण देखने के लिए हाथ के विषय में जानना अति आवश्यक है। हम इस अध्याय में हाथ के मुख्य प्रकार तथा उसके अन्य लक्षणों के विषय में विचार करेंगे। पाठकों को भी यह राय दी जाती है कि भली-भांति हाथ का प्रकार समझकर ही फलादेश आरम्भ करें, क्योंकि एक ही रेखा अलग-अलग प्रकार के हाथों में अलग-अलग प्रकार से फल देती है। समकोण हाथ में जो रेखा एक फल देगी, वही रेखा चमसाकार हाथ में दूसरा फल देती है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में मानसिक मनोवृत्ति, आदत, पसन्द तथा वातावरण अलग होते हैं। इस प्रकार हाथ के प्रकार के विषय में विस्तार तथा निश्चित रूप से जान लेना बहुत आवश्यक है।
हाथ कुल मिलाकर चार उंगलियों- तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) मध्यमिका (दूसरी), अनामिका (तीसरी), कनिष्ठा (चतुर्थ या छोटी), अंगूठे तथा हथेली को मिलाकर कहा जाता है। उपरोक्त उपांगों की बनावट (मोटाई, लम्बाई, गठन) के अनुसार ही फल बताया जा सकता है। यह माना जाता है कि हाथ जितना चौड़ा, भारी, मोटा, सुन्दर, गुदगुदा, चिकना या सुडौल होता है, उतना ही उत्तम होता है, तथा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। इसके विपरीत पतला, काला, भद्दा तथा टेढ़ा-मेढ़ा हाथ न्यूनाधिक समस्याओं तथा दुर्भाग्य का लक्षण है (चित्र-1)।
तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली)- पहली उंगली जिसे तर्जनी कहते हैं, बृहस्पति की उंगली कहलाती है। इसके नीचे का उभार बृहस्पति कहलाता है। यह जीवन रेखा से ऊपर तथा उंगलियों की ओर होती है।
माध्यमिका (दूसरी उंगली)- दूसरी उंगली शनि की उंगली कहलाती है। इसके
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नीचे शनि ग्रह का स्थान होता है। ज्यादातर हाथों में शनि दबा हुआ होता है। शनि का स्थान हृदय रेखा तक होता है।
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त्रिकोण
डमरू * सितारा X गुणक - जाली
'माणेबन्य
चित्र-1
अनामिका (तीसरी उंगली)- तीसरी उंगली सूर्य की उंगली कहलाती है। इसके नीचे और हृदय रेखा से ऊपर सूर्य ग्रह का स्थान होता है।
कनिष्ठा (चौथी उंगली)- चौथी उंगली बुध की उंगली कहलाती है। इसके नीचे उभरा हुआ स्थान बुध ग्रह का स्थान होता है। यह हृदय रेखा से ऊपर होता है। हृदय रेखा से ठीक नीचे बुध पर्वत के साथ विपरीत मंगल अर्थात बुध वाला मंगल स्थित होता है।
इस मंगल के नीचे कलाई की ओर लम्बा व उभरा स्थान चन्द्रमा का होता है। यह स्थान शुक्र से कलाई के पास मिलता है तथा एक गहराई इन दोनों को अलग करती है। इन ग्रहों के घेरे के बीच हथेली के मध्य स्थान में गहराई होती है। इसमें उंगलियों तथा कलाई की ओर दो स्थान राहु तथा केतु के होते हैं।
ध्यान रहे, कि कुछ ग्रह ऊपर से कम उठे होते हैं, परन्तु ग्रह की गांठ तीखी या नुकीली होती हैं। नुकीली गांठ उत्तम और बड़ी गांठ मध्यम मानी जाती हैं। अतः गाठों की भी परीक्षा अवश्य करनी चाहिए।
शनि की उंगली से लेकर नीचे कलाई तक शनि क्षेत्र कहलाता है। इसी में राहु, केतु का स्थान होता है। इनका कोई स्वतन्त्र स्थान नहीं होता। शनि क्षेत्र ही राहु व केतु का स्थान है। इनका फलादेश भी शनि के समान ही होता है। ग्रहों का स्थान उभरा और नुकीला भी हो तो उस ग्रह का उत्तम लक्षण है।
अंगूठा-अंगूठे का हाथ में बड़ा महत्व होता है। अंगूठा पतला, लम्बा, सुडौल व सुन्दर होना उत्तम माना जाता है। इसके विपरीत मोटा, छोटा, टोपाकार आदि अंगूठां
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अच्छा नहीं माना जाता। अंगूठे के मूल में जीवन रेखा तक शुक्र पर्वत का स्थान है। इसकी स्थिति का भी ठीक प्रकार से निरीक्षण करना चाहिए।
शुक्र से तर्जनी उंगली की ओर मस्तिष्क रेखा से नीचे मंगल का स्थान होता है। यह मंगल अंगूठे वाला मंगल कहा जाता है। यह जीवन रेखा के घेरे में होता है। ___अंगूठे वाले मंगल से बुध वाले मंगल को मिलाने वाला क्षेत्र मंगल क्षेत्र कहा जाता है, जो हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा के बीच का भाग है। परन्तु जब हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होती है तो मस्तिष्क रेखा के ऊपर का भाग मंगल क्षेत्र कहा जाता
= समकोण हाथ== समकोण हाथ को सर्वोत्तम हाथ माना जाता है। समाज के विशिष्ट व्यक्तियों के हाथ प्रायः इसी प्रकार के होते हैं। इस हाथ की आकृति चौकोर होती है। हथेली, उंगलियां, अंगूठा आदि सभी चौकोर होते हैं। उंगलियां पीछे से मांसल तथा उत्तरोत्तर पतली होती जाती हैं, फलस्वरूप उंगलियों के बीच में छिद्र नहीं होते। छिद्र न होना इस हाथ की मुख्य पहचान है। नाखून वाले भाग पर मांस कम हो जाता है। देखने में यह हाथ सुन्दर होता है। नाखून में पाये जाने वाले चन्द्र बड़े व त्रिकोण प्रकार के होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आकृति भी चौकोर ही होती है, विशेषतया इनका मस्तिष्क चौकोर होता है। सारा शरीर मांसल, हृष्ट पुष्ट व कोमल होता है। देखने में ऐसे व्यक्ति सुन्दर होते हैं। इस हाथ में कोई भी ग्रह विशेष प्रधान नहीं होता, सभी ग्रह उभरे हुए नज़र आते हैं। परन्तु शुक्र और बृहस्पति उन्नत दिखाई देते हैं।
पूर्ण समकोण हाथ में न ही जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा कटी-फटी होती है, न ही हृदय रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है। इस हाथ की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी या तिरछी नहीं होती और भाग्य रेखा पूर्ण होती है। अन्य सभी रेखाएं भी पूर्ण ही होती हैं, अधूरी नहीं। इस प्रकार का हाथ समकोण हाथ कहलाता है।
ऐसे व्यक्ति भावी, उच्च विचार, उच्च रहन सहन वाले, धनी, सचरित्र, कुटुम्ब वाले, उन्नत, प्रसिद्ध, धैर्यवान व बुद्धिमान होते हैं। इनकी परख शक्ति बहुत अच्छी होती है। ऐसे व्यक्तियों को जीवन में सभी प्रकार का सुख मिलता है। यह बात दूसरी है कि अन्य रेखाओं के प्रभाव से इसमें कमी रही हो, परन्तु अधिकतर ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण सुखी रहते हैं।
समकोण हाथ में बृहस्पति प्रधान होता है। बृहस्पति बुद्धि व शासन का प्रतीक है, अतः ऐसे व्यक्तियों में शासन की योग्यता व बुद्धिमत्ता उत्तम कोटि की पायी जाती है। इनमें अपने परिवार को उन्नत करने की आकांक्षा होती है। ये रूढ़िवादी होते
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हैं, समाज में प्रचलित आचार-विचार व प्रथाओं का सम्मान करते हैं। इनमें नम्रता कूट कूटकर भरी होती है। ये स्वाभिमानी होते हैं और बहुत कम व्यक्ति नौकरी करते देखे जाते हैं। स्वभावतः ही ये स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे व्यक्ति डाक्टर, वकील, वैद्य, उद्योगपति आदि होते हैं। ये प्रकृति प्रेमी, धर्म शास्त्र व अन्य शास्त्र के ज्ञाता होते हैं। ऐसे व्यक्ति पहाड़ों या ठंडे प्रदेशों में व्यापार करना या रहना बहुत पसन्द करते हैं। ये प्रायः उदार होते हैं। मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा के पास में होने पर हो सकता है कि धन के विषय में अधिक सोचने वाले हों, परन्तु विवाह, भोज तथा दान में दिल खोलकर खर्च करते हैं। धर्मशाला, स्कूल, मन्दिर-मस्जिद आदि भी ऐसे व्यक्ति अवश्य बनवाते हैं या इनके परिवार में कोई न कोई ऐसा कार्य करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति अपनी स्वार्थ सिद्धि करते हुए दूसरों की भलाई करते हैं। स्वभाव के ये गम्भीर होते हैं। अन्त में ये गृह त्याग करते हैं। साधु भले ही न बने, अन्तिम आयु में एकान्तवासी और ईश्वर चिन्तन करते हैं। प्रायः देखा गया है कि अन्तिम आयु में इन्हें बिना जीवन साथी के रहना पड़ता है। कष्ट आते हैं, परन्तु प्रभु कृपा से दूर हो जाते हैं और सम्मान भी निर्विघ्न बना रहता है।
समकोण हाथ वाले व्यक्ति हमेशा सावधान होते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरों की सलाह और अपने विचारों की सहमति के पश्चात् ही कोई कार्य करते हैं। ये शरीर के कोमल होते हैं और इन्हें गर्मी में अधिक गर्मी तथा सर्दी में अधिक सर्दी लगती है। ये परिवार के लिए त्याग करते हैं और सदैव ही सम्मिलित परिवार के समर्थक होते हैं। यह बात दूसरी है कि परिवार जनों के लिए इन्हें सम्मिलित परिवार छोड़ना पड़े, परन्तु ऐसे परिवारों में लम्बे समय तक सम्मिलित परिवार चलता देखा गया है। हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होने पर जीवन भर सम्मिलित परिवार चलता रहता है।
__समकोण हाथ यदि भारी भी हो तो ऐसे व्यक्ति दानी व प्रभावशाली होते हैं। लोगों को शिक्षा दिलाना, उपचार कराना आदि कार्य करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने स्वभाव से दूसरों के झगड़े, चाहे वे परिवार के हों या गांव या देश के, निपटा देते हैं। उच्च अधिकारी जो एक देश का दूसरे देश में प्रतिनिधित्व करते हैं, इसी प्रकार के हाथ वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वयं झगड़ा करना पसन्द नहीं करते, जब तक मजबूरी न हो झगड़े या मुकद्दमेबाजी से दूर रहते हैं।
__ ऐसे व्यक्ति असभ्यता से नहीं लड़ते । यदि कोई लड़ाई-झगड़ा होता भी है, तो सभ्यता से होता है। इनकी सन्तान में लड़के अधिक होते हैं। इनकी सन्तान में पहला बच्चा क्रोधी, दूसरा चालाक व बातूनी तथा तीसरा चुप रहने वाला होता है। सभी सन्तानें चतुर व बुद्धिमान होती हैं। समकोण हाथ वाले व्यक्ति के लिए एक विशेष बात यह है कि संख्या के विषय में सोचते हुए सम संख्या नियम लागू होता है अर्थात जो भी
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कार्य इनके हाथ में होते हैं। वे 2,4,6,8 आदि सम संख्याओं में होते हैं। 1,3,5, में नहीं, जैसे लड़के होंगे तो 2,4,6, काम में साझीदार होंगे तो 2,4,6,8, आदि। इनके परिवार में लड़कों की संख्या अधिक रहती है। मामा के परिवार में भी लड़के अधिक होते हैं। स्वंय की ससुराल में भी, इस प्रकार से बताना चाहिए। यदि पत्नी का हाथ समकोण की बजाए चमसाकार हो तो सन्तान संख्या 1,3,5 भी हो सकती है। इनके परिवार और रिश्तेदारों में खूब बनती है। ऐसे व्यक्ति धनवान और सुखी होते हैं, लेकिन ध्यान रहे, मामा और पिता के परिवार में 1-2, व्यक्ति नालायक भी होते हैं। इस सम्बन्ध में विचार करते समय मस्तिष्क व हृदय रेखा पर विचार कर लेना चाहिए। मस्तिष्क रेखा मंगल रेखा की ओर जाती है तो चाचा और मामा का स्वभाव तेज होता है। हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो मामा व चाचा आलसी व आवारा होते हैं। जीवन रेखा के अन्त में द्वीप हो तो चाची व मामी क्लेश करने वाली होती हैं, साथ ही उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता।
समकोण हाथों में 42 वां वर्ष ठीक नहीं होता। इन हाथों में जन्म तिथि में 7 व उसके गुणक जोड़कर प्राप्त होने वाले वर्ष उन्नति के होते हैं, जैसे किसी की जन्म तिथि 23 जनवरी हो तो,- 23+7=30, 37, 44 और 51 वर्ष जीवन में उन्नति के होते हैं। यही नियम चमसाकार व आदर्शवादी हाथ में लागू किया जाना चाहिए। समकोण हाथों में रेखाएं व अन्य प्रकार के दोष फल नहीं करते अर्थात् अनुमान की अपेक्षा खराब फल कम होते हैं और अच्छे फल अनुमान से अधिक। ऐसे व्यक्ति के परिवार में सभी की आयु लम्बी होती है, परन्तु वंश में एक दो जवान मौतें भी होती हैं। बड़ी आयु में इन व्यक्तियों को वायु व पित्त का प्रभाव हो जाता है। प्रायः ऐसे व्यक्तियों को रक्तचाप या हृदयरोग जैसी बीमारियां बड़ी उम्र में देखी जाती हैं। बृहस्पति प्रधान होने के कारण इनके बाल शीघ्र सफेद हो जाते हैं। घर में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होता जिसके बाल सफेद न हों। लगभग 35 वर्ष की आयु में ही बाल सफेद होने आरम्भ होते हैं। परन्तु कभी-कभी 16 वर्ष की आयु में ही बाल सफेद होते देखे जाते हैं। इनके वंश में एक-दो व्यक्ति का वंश भी नहीं चलता, परन्तु ऐसे उदाहरण बहुत कम होते हैं। दो विवाह भी परिवार या वंश में कोई न कोई अवश्य करता है। ऐसे व्यक्तियों का चोरी से नुकसान होता है और उधार भी डूबता है। सम्पत्ति सम्बन्धी झगड़े भी कुछ न कुछ अवश्य रहते हैं, परन्तु इनमें सफलता नहीं होती।
ऐसे व्यक्ति स्पष्ट रूप से किसी का भी विरोध नहीं करते। दूसरे से सहमत होने के पश्चात् ही ये अपनी सम्पत्ति उन्हें विरोध के रूप में देते हैं। खुलकर विरोध या किसी की बात काटने को ये असभ्यता मानते हैं, अत: अधिकतर समन्वयात्मक दृष्टिकोण से काम चलाते हैं। इनके निर्णय स्पष्ट व निश्चित होते हैं। अपनी उपरोक्त
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आदत के कारण इनका विरोध नहीं होता और इनके सम्पर्क में आने वाले सभी व्यक्ति इनसे प्रसन्न रहते हैं।
चमसाकार हाथ
चमसाकार हाथ चमचे के समान होते हैं। इनकी उंगलियां भी आगे से चमचे के आकार की अर्थात् चौड़ी होती हैं। इन हाथों की उंगलियों के बीच में छिद्र पाये जाते हैं। कभी-कभी ऐसे हाथ कलाई की ओर से तथा कभी उंगलियों के पास से अधिक चौड़े देखे जाते हैं। इनमें उंगलियां विशेष टेडी-मेडी नहीं होती। विशेष टेडीमेडी उंगलियां हाथ की उत्तमता बढ़ाती हैं। इनमें मंगल व बृहस्पति प्रधान होते हैं। शनि ऊपर से बैठा हुआ तथा नीचे से नुकीला होता है। बुध की उंगली टेढ़ी होती है। हाथ न बडा, न छोटा और समकोण हाथ से मिलता-जुलता होता है। इन हाथों की जीवन रेखा में कोई न कोई दोष अवश्य होता है। हाथ भारी होने पर भी उंगलियों में छिद्र होते हैं। इन व्यक्तियों के कन्धे पर प्रायः तिल पाया जाता है। हाथ में हृदय रेखा की कोई न कोई शाखा मस्तिष्क रेखा से अवश्य मिलती है। इस लक्षण के अनुसार भी भुजाओं पर तिल होता है, भुजाओं से तात्पर्य कन्धे के आस-पास से है। चमसाकार हाथ में भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकलती है। यदि भाग्य रेखा, जीवन रेखा से अलग निकली हुई हो तो किसी न किसी रेखा के द्वारा इसका सम्बन्ध जीवन रेखा से अवश्य देखा जाता है। इनके गले में भी बायीं ओर तिल होता है। इन हाथों में अन्तर्ज्ञान रेखा, सूर्य रेखा, मंगल रेखा व अन्य भाग्य रेखाएं बाद में पैदा होती हैं। पहले रेखाएं बहुत कम होती हैं और जीवन बनने के साथ-साथ ही रेखाएं भी बनती हैं और अन्तिम समय में प्रायः सभी रेखाएं उपस्थित रहती हैं।
जिन लोगों के हाथ चमसाकार होते है, वे क्रांतिकारी, जल्दबाज व गरम स्वभाव के पाये जाते हैं। दबाव में रहना इनके वश में नहीं। ये पूर्णतया स्वनिर्मित होते हैं और सभी कार्य अपने पैरों पर खड़े होकर करना पसन्द करते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरों पर आश्रित नहीं रहते। प्रारम्भ में सम्भव है कि ये दूसरों से सहायता लें, परन्तु अन्त में स्वयं अपने पुरूषार्थ व प्रभाव से जीवन बनाते हैं। आरम्भ में इनका प्रभाव दूसरों पर कम पड़ता है, परन्तु जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, प्रभावशाली होते जाते हैं। बचपन में इन्हें रोने की आदत अधिक होती है, क्योंकि ये भावुक होते हैं। इनके जीवन में परिवर्तन अधिक होते हैं। जीवन में उतार-चढ़ाव चलता ही रहता है और पूर्वायु में संघर्षमय जीवन व्यतीत होता है। ऐसे व्यक्तियों को पारिवारिक शान्ति कम मिलती है तथा सहायता का तो किसी भी प्रकार से प्रश्न नहीं उठता। इनका अपने परिवार के व्यक्तियों से सैद्धान्तिक मतभेद रहता है। ऐसे व्यक्ति सबसे पहले अपने घर में
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क्रान्ति करते हैं। भाग्य रेखा में बड़ा द्वीप होने पर इन्हें मौत जैसी परिस्थिति से संघर्ष करना पड़ता है और ये घरेलू जीवन से लगभग ऊब जाते हैं। तत्पश्चात् बहुत उन्नति करते हैं और वंश की प्रतिष्ठा को चार चांद लगाने वाले होते हैं। इनमें भावुकता व प्रकृति प्रेम भी देखा जाता है। जीवन में जब तक सफलता नहीं मिलती, तो नहीं मिलती, परन्तु जब सफल होने का अवसर आता है तो स्वतः ही सफलता इनके कदम चूमती
ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी, तत्पश्चात् स्वतन्त्र व्यवसाय करते हैं। व्यवहारिक होने के साथ-साथ ये स्पष्टवक्ता व अक्खड़ होते हैं। परन्तु परेशान शीघ्र हो जाते हैं। इनके मस्तिष्क में कोई प्रश्न आने पर जब तक वह प्रश्न हल नहीं हो जाता, तब तक मन अशान्त रहता है अर्थात् विशेष क्रियाशील होते हैं। ___ चमसाकार हाथ दो प्रकार के देखने में आते हैं। एक तो ऐसे, जिनकी चौड़ाई कलाई के पास अधिक होती है। दूसरे ऐसे हाथ होते हैं जो उंगलियों के पास चौड़े होते हैं और कलाई के पास चौड़ाई में कमी होती है। वैसे तो चमसाकार हाथ वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों अन्य खोज करने वाले व्यक्तियों तथा ऐसे व्यक्तियों के होते हैं, जो किसी न किसी प्रकार की विशेषता रखते हैं, परन्तु जो हाथ पीछे से चौड़े होते हैं उनका लाभ स्वयं को तथा उनके परिवार को होता है और जो हाथ उंगलियों के पास अर्थात् मध्य से चौड़े होते हैं, उनका लाभ स्वयं को तो होता ही है बल्कि मानव समाज के लिए विशेषतया होता है। ऐसे व्यक्तियों की खोज से सारा संसार लाभान्वित होता है।
___ चमसाकार हाथ में विषम संख्या सिद्धान्त लागू होता है अर्थात् साझीदारी, सन्तान, साले-साली आदि की संख्या 1,3,5,7,9 आदि होती है, सम नहीं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान का स्वभाव तेज होता है, तीसरा बच्चा बातूनी होता है। बच्चे होशियार होते हैं और कुछ समय इनसे अलग रहते हैं। सन्तान की शादी के पश्चात् इनकी पत्नी व सन्तान के विचार नहीं मिलते। बच्चे योग्य तो होते हैं, मगर अध्ययन में रूचि नहीं होती, खेल-कूद, आदि में अधिक रूचि लेते हैं। पढ़ाई में 1-2 वर्ष खराब करते हैं। किसी बच्चे को झुठ बोलने व चोरी करने की भी आदत हो जाती है। बच्चे घर से भागने की चेष्टा करते हैं या कुछ समय के लिए चले जाते हैं। हाथ अधिक पतला या काला होने पर ऐसे व्यक्तियों को सन्तान के विषय में विशेष परेशानी का सामना करना पड़ता है। आरम्भ में इनकी सन्तान ऐसी लगती है कि जैसे पेट भी नहीं भर सकेगी, परन्तु इसका उल्टा हो जाता है। चमसाकार हाथ वाले व्यक्ति जीवन के उत्तरार्द्ध में अधिक उन्नति करते हैं। पूर्वार्द्ध में इनका जीवन ज्वार भाटा जैसा परिवर्तनशील होता है, मानसिक शान्ति कम मिलती है। ऐसे व्यक्ति विचार व कार्य दोनों ही दृष्टि से क्रान्तिकारी होते हैं। देश के लिए क्रान्ति करने व जीवन की आहुति देने वाले व्यक्ति इसी प्रकार के होते हैं।
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समकोण हाथ की तरह चमसाकार हाथ में भी जन्म तिथि में (7) जोड़कर इनके जीवन में उन्नति के अवसर बताये जा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी और बाद में अपना स्वतन्त्र व्यापार करते हैं। व्यापार में इनकी रूचि खेती या खाने आदि के काम में होती है। ये हाथ बिना भाग्य रेखा के भी वैसा ही फल देते हैं जैसा कि भाग्य रेखा होने पर । चमसाकार हाथ में मोटी उंगलियों पर व्यक्ति को अचानक धन मिलने की सम्भावना होती है। ऐसे व्यक्तियों को अपने किसी मकान में धन गढ़ा होने की आशंका होती है। मोटी उंगलियां होने पर यदि अन्तर्ज्ञान रेखा हो तथा सूर्य और शनि की उंगलियां बराबर हों तो ऐसे व्यक्ति चरस, लाटरी, जुए आदि में रूचि रखते हैं, परन्तु सफलता कम मिलती है। पतली उंगलियां होने पर इस तरह का शौक नहीं होता, परन्तु एक बार जीवन में ऐसा करते हैं और सफलता मिलती है।
चमसाकार हाथ वाले व्यक्तियों के परिवार में एक साथ तीन व्यक्ति उन्नति करते हैं। समकोण हाथ की तरह इनका प्रभाव अपने साथी, पड़ोसी, मित्रों आदि पर भी पड़ता है।
दार्शनिक हाथ
इस हाथ की लम्बाई अधिक होती है। ऐसे हाथ अन्य सब हाथों से विशेष लम्बे और उंगलियों की गांठें उन्नत और निकली हुई होती हैं और नाखून भी लम्बे होते हैं। ऐसे हाथ के व्यक्ति विचारक होते हैं। उनमें बुद्धि और ज्ञान का महत्व धन से अधिक होता है। धन की परवाह न करके ये लोग विचार प्रधान या मानसिक विकास सम्बन्धी कार्यों में विशेष रूचि लेते हैं। उन लोगों से जो केवल धन अर्जित करने में संलग्न रहते हैं, इनका मार्ग अलग होता है | चाहे उन्हें कठिनाइयां सहनी पड़ें, परन्तु ये विचार प्रधान बौद्धिक गवेषणा में ही लिप्त
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रहते हैं। इनकी विचारधारा में रहस्यवाद की गहरी छाप होती है। वे चाहे ग्रन्थ लिखें या उपदेश करें, काव्य लिखें, सभी पर दार्शनिक दृष्टिकोण या आत्मिक अन्वेषण का रंग चढ़ा होता है।
ऐसे हाथ इंग्लैंड में प्रसिद्ध पादरियों और धार्मिक नेताओं के होते हैं और भारत में विचारवादियों और योगियों के होते हैं। ऐसे व्यक्ति गम्भीर होते हैं। वे कम बोलते हैं और उनकी चित्रवृति अन्तर्मुखी होती है। इनमें गौरव की भावना विशेष रूप से होती है और छोटी सी बात पर भी सोच-विचार कर बोलते हैं। धैर्य भी इनमें पर्याप्त मात्रा में होता है। यदि धार्मिकता की ओर अन्य लक्षणों से अधिक प्रवृत्ति मालूम हो तो ऐसे व्यक्तियों में प्रायः धर्मान्धता होती है। उंगलियों में गांठों का विकसित होना विचारक होने की प्रवृत्ति प्रकट करता है। प्रत्येक बात का विश्लेषण करना उनका स्वभाव होता है। उंगलियों के अग्रभाग चतुष्कोणाकृति या कुछ नुकीले होने से इनमें आत्मिक स्फुर्ति होती है। वर्गाकार उंगलियों के होने पर धैर्य तथा कुछ नुकीली उंगलियों के होने पर आत्म त्याग की भावना होती है। ऐसे व्यक्तियों के घर में लड़कियों का जन्म अधिक होता है। परन्तु यदि बृहस्पति बहुत अच्छा हो तो आरम्भ से ही लड़के रहते हैं अन्यथा, लड़कियां ही अधिक होती हैं। ऐसे हाथ में शुक्र, बृहस्पति और शनि ग्रह उठे होने के कारण पुत्र सन्तान कम होती है। जैसे 2,3 लड़कियां और एक लड़का। ऐसे व्यक्तियों को 8,10,12 तक सन्तानें हो सकती हैं।
ऐसे व्यक्ति मुसीबत के समय नास्तिक हो जाते हैं, परन्तु इनकी रूचि स्वभावतः ही ईश्वर चिन्तन की ओर होती है। ऐसे व्यक्ति संकल्पः विकल्प युक्त होते हैं, परन्तु इनका कार्य करने का ढंग उतार-चढ़ाव से रहित होता है। आगे बढ़ने पर बढ़ते ही रहते हैं। ऐसे व्यक्ति धन का विशेष संचय नहीं कर पाते, न ही बिना सोचे-समझे कोई काम कर सकते हैं। इनकी परोपकार में रूचि रहती है। दान व धार्मिक कार्यो आदि में व्यय करते हैं। परन्तु जो भी करते हैं, रो-रोकर करते हैं और ऐसे कार्य भी विलम्ब से पूरे होते हैं। हाथ में दोष न होने पर ऐसे व्यक्ति लम्बी यात्राएं व व्यापार तथा समुद्री यात्राएं करते हैं। हाथ दोषपूर्ण होने पर ऐसा सम्भव नहीं हो पाता।
ऐसे व्यक्ति सम्मान का बहुत ख्याल रखते हैं। ये साधु, लग्नशील, समाज सेवी व धार्मिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति सफाई पसन्द, मिलनसार व प्राकृतिक सौन्दर्य के उपासक होते हैं। इनमें संघर्ष करने की हिम्मत होती है और संघर्ष के पश्चात् ही इन्हें जीवन में शान्ति मिलती है। संघर्ष में इनकी जीत भी होती है। 35, 40 और कभी-कभी 48 वर्ष तक संघर्ष करना पड़ता है। ये स्वाभाविक, सैद्धान्तिक और प्रेमी होते हैं। हाथ में दोष होने पर ऐसा समय आ जाता है कि इन्हें भूखा भी रहना पड़ता है, फिर भी
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सन्तोष से रहते हैं। परिस्थितिवश इच्छाओं का दमन कर डालते हैं और अवसर आने पर सभी इच्छाओं को पूर्ण कर लेते हैं।
= आदर्शवादी हाथ
यह हाथ लम्बा, कम चौड़ा और भारी होता है। इसकी आकृति भी समकोण हाथ जैसी लम्बी होती है, परन्तु उंगलियां कुछ भारी होती हैं। उंगलियों में छिद्र नहीं होते । शुक्र और चन्द्रमा बड़ा दिखाई देता है। इन हाथों की विशेष पहचान यह है कि अंगूठा छोटा दिखाई देता है और जीवन रेखा में कोई न कोई दोष अवश्य होता है। बृहस्पति, बुध व शनि उन्नत होने पर ये अपने सिद्धान्त के पक्के होते हैं। जीवन रेखा में दोष होने पर भी ऐसे व्यक्तियों को सन्तान अधिक होती है। इन हाथों में टूटीफूटी या अधूरी जीवन रेखा सन्तान दोष करती है, वह धन पर प्रभाव नहीं करती। __ ऐसे व्यक्तियों के परिवार में स्त्रियां लोभी व होशियार होती हैं। कोई न कोई विधवा अवश्य रहती है। जीवन रेखा दोषपूर्ण व बुध दबा होने पर ऐसे व्यक्ति के परिवार के लोग लालची व बातूनी होते हैं। ये अपने आपको सबसे अधिक बुद्धिमान मानते हैं, हालांकि काम मूर्खतापूर्ण करते हैं। इसी कारण इनके घर के झगड़े देर से सुलझते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरों को सीधे दिखाई देते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ सोच
चित्र-3 समझकर काम करना चाहिए, इनकी प्रवृत्ति चोरी व सीनाजोरी वाली होती है। बृहस्पति और शनि उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति स्वाभिमानी व धार्मिक होते हैं।
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तीर्थ यात्राएं अधिक करते हैं। स्वयं का रहन-सहन बढ़िया और दूसरों के साथ भी बर्ताव अच्छा होता है। मगर परिवार में सैद्धान्तिक मतभेद रहता है। इन्हें कई-कई काम बदलने पड़ते हैं और खर्च करने की आदत के कारण बचत देर से होती है। ऐसे व्यक्ति सम्पत्ति में अधिक विश्वास करते हैं, नकद में नहीं। यद्यपि ये बचाने की इच्छा नहीं करते तो भी इनकी सम्पत्ति बनाने की इच्छा अवश्य रहती है। उंगलियां लम्बी होने पर तो सबसे पहले ऐसे व्यक्ति मकान की समस्या ही सुलझाते हैं। हाथ में उत्तम लक्षण होने पर उसका लाभ ऐसे व्यक्तियों को देर से मिलता है, क्योंकि बनाई गयी सम्पत्ति से दूर रहते हैं। सूर्य दबा होने पर ऐसे व्यक्ति घर छोड़ कर नहीं जाना चाहते, इस कारण भी इनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता। ऐसे व्यक्ति विदेश यात्रा पसन्द नहीं करते। ये स्वच्छ कपड़े पहनने वाले तथा अच्छा काम करने वाले होते हैं।
स्त्रियों का हाथ आदर्शवादी होने पर ऐसी स्त्रियों में नखरे बहुत होते हैं। मन से ऐसी स्त्रियां वासनाओं से ओत-प्रोत होते हुए भी इन्हें विचारों से व्यक्त नहीं करतीं। आकर्षण भी इसी प्रकार गुप्त रखती हैं। दाम्पत्य सुख के समय भी ये नाटकीय ढंग अपनाती हैं। पुरूष होने पर ऐसे पुरूष उपरोक्त प्रकार से ही स्त्री को तंग करते हैं।
बृहस्पति बैठा तथा बृहस्पति की उंगली विशेष छोटी होने पर आचरण पर बारबार कलंक लगता है। ऐसी स्त्रियां बलात्कारी अवस्था में बेइज्जती के कारण अपनी बुराई को गुप्त रखने वाली होती हैं। बृहस्पति तीखा या उभरा होने पर ऐसे व्यक्तियों के परिवार में से कोई व्यक्ति सेना, विशेषतया जल सेना में रूचि लेता है। बृहस्पति सुन्दर होने पर इसका लाभ भी उठाता है। इन हाथों में भी जन्म तिथि 7 जोड़कर जैसे पहले बताया गया है, वर्ष अच्छा रहता है। ऐसे व्यक्तियों के कार्य में अधिक साझेदार नहीं होते। या तो परिवार के व्यक्ति होते हैं या अधिक से अधिक दो साझी होते हैं। ये मित्र भी अधिक नहीं बनाते, परन्तु जिससे मित्रता करते हैं, जीवन भर निभाते हैं। क्रोधी तो होते हैं, परन्तु बोलते नहीं। ऐसे व्यक्ति हानि उठाने के बावजूद भी साझा नहीं तोड़ते। बृहस्पति व बुध तीखा व उभरा होने पर ऐसे व्यक्ति उत्तम प्रकार के सैद्धान्तिक व साहित्यकार होते हैं। हल्की या इधर-उधर की बातें लिखना नहीं जानते। जो भी लिखते हैं ठोस, मौलिक एवं उत्तम प्रकार से लिखते हैं। इनके साहित्य का विद्वानों में आदर होता है। आदर्श हाथों में भी जैसा स्वयं का कठिन या शुभ समय होता है, वैसा ही मित्र, सम्बन्धियों और पड़ोसियों आदि का भी होता है। ऐसे व्यक्तियों की ससुराल में साला, साली आदि में से कोई न कोई बीमार रहता है। ससुराल का परिवार बड़ा होता है और मामा का परिवार छोटा। मामा के पास पैसा अधिक होता है, परन्तु उससे लाभ नहीं होता। बृहस्पति, बुध व शनि उन्नत होने पर ये अपने सिद्धान्त
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के पक्के होते हैं। इनसे देश, जाति, समाज भी उतना ही लाभान्वित होता है, जितना कि स्वयं का परिवार ।
जीवन रेखा में दोष होने या नहीं होने पर भी ऐसे व्यक्तियों के सन्तान अधिक होती है। बच्चे आरम्भ में बड़े स्वस्थ दिखाई देते हैं परन्तु बाद में उनके स्वास्थ्य में गिरावट आ जाती है। बड़े होकर फिर स्वस्थ हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान को खूनी पेचिश, निमोनिया, रक्तदोष व टायफाइड बुखार अधिक होता है। जीवन और मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर विशेष रूप से ऐसा फल कहा जा सकता है। दोष कम या नहीं होने पर तीन या पांच बच्चे होते हैं, नहीं तो एक या दो सन्तान देखी जाती हैं। उनमें भी पुत्र मुश्किल से जीवित रहता है। इनकी सन्तान को भी सन्तान के विषय में चिन्ता रहती है। इनकी लड़कियां मासिक धर्म के दोष के कारण मोटी हो जाती हैं। सन्तान उत्पत्ति के पश्चात् घर में उन्नति होती है, स्वभाव भी सन्तान का कुछ तेज होता है।
इन हाथों में अधूरी या टूटी जीवन रेखा सन्तान दोष करती है, वह धन पर प्रभाव नहीं करती। स्वयं के भाई-बहन अधिक होते हैं, परन्तु जीते कम हैं। पुत्र की पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। मासिक धर्म के दोष, गर्भ गिरना, मृत सन्तान होना या सन्तान न होना आदि समस्याएं सामने आती हैं। बच्चों की सन्तान का स्वास्थ्य भी कमजोर होता है और लड़कियां अधिक होती हैं। ऐसे व्यक्तियों के बचपन में मां-बाप, दादा-दादी और किसी की मृत्यु होती है। हाथ में विशेष दोष होने पर पूरा परिवार ही स्वाहा हो जाता है। मरने वाले बीमार होकर मरते हैं। ऐसे व्यक्तियों के वंश में क्षय, प्रजनन कष्ट, लकवा, अतिसार या मस्तिष्क के रोग से मृत्यु होती है। अचानक और जवान मौत भी होती है। बच्चे व जवान दोनों ही मरते हैं। वंश में कई दुःखद घटनाएं होती हैं। ऐसे व्यक्तियों को आरम्भ में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार का संघर्ष किसी विशेष व्यक्ति की मृत्यु के बाद धन के कारण होता है, परन्तु इनका काम हमेशा चलता रहता है । अन्त में इन लोगों के पास धन की कमी नहीं रहती । इनके माता-पिता या दादा की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है, परन्तु किसी एक भाई या बहन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती । वंश में कोई स्त्री या पुरुष दो विवाह करते हैं। मध्यायु के पश्चात् ऐसे व्यक्ति उन्नति करते हैं।
कलाकार हाथ
इस हाथ में उंगलियां नुकीली होती हैं तथा लम्बी दिखाई देती हैं। ऐसे हाथ में नाखून बड़े होते हैं तथा सूर्य की उंगली विशेष सीधी होती है। इनकी आकृति समकोण हाथ से कुछ मिलती-जुलती होती है। सूर्य, मंगल और शनि उत्तम होते हैं। वास्तव
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में सूर्य और शनि ग्रह ही प्रधान होते
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ऐसे व्यक्तियों को कला में रूचि होती है और ये आलोचना करने में. निपुण होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आलोचना भी सत्य व ठोस होती है। हाथ बड़ा होने पर तथा विशेष भाग्य रेखा होने पर इन्हें कलात्मक कार्य में विशेष रूचि होती है और प्रसिद्धि मिलती है। ऐसे व्यक्ति चित्रकार, नर्तक, गायक या उत्तम कोटि के वादक होते हैं। सरल साहित्य लिखने वालों के हाथों में भी ऐसे लक्षण पाये जाते हैं। ये भावुक और अत्यन्त कल्पनाशील होते हैं, परन्तु इनकी कल्पना कोरी कल्पना नहीं होती, साहित्यकारों में इसका आदर होता है। हाथ जितना उत्तम कोटि का होगा, व्यक्ति उतनी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। ऐसे व्यक्ति के रहन-सहन, खान-पान से लेकर रतिक्रिया तक सभी कार्य कलात्मक होते हैं। घर की सजावट आदि में ऐसे व्यक्ति किसी सीमा तक रूचि रखते हैं, परन्तु प्रायः घर की ओर से लापरवाह देखे जाते हैं। पत्नी व सन्तान पर ऐसे व्यक्ति उपेक्षावृत्ति रखते हैं, जिसका कारण समयाभाव होता है। शुक्र उन्नत होने पर ऐसे व्यक्तियों में स्त्रियों के सम्र्पक में आने पर चरित्र दोष आ जाता है तथा कई बार तो अनेकों से इनके अनैतिक सम्बन्ध पाये जाते हैं। स्त्रियों का हाथ इस प्रकार का होने पर ऐसी स्त्रियां भावुक व दूसरों के प्रभाव में आने वाली होती हैं। बृहस्पति या चन्द्र उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति समय के विचार से सरल व शुद्ध होते हैं तथा दूसरे व्यक्तियों को भी ऐसा ही समझते हैं। अतः सांसारिक दृष्टि से निरीह कहे जा सकते हैं। सूर्य विशेष उन्नत होने पर इन्हें ख्याति मिलती है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति प्रसिद्धि के योग्य ही होते हैं। किसी के सम्पर्क में आते ही इनके कला सम्बन्धी गुण प्रकट हो जाते हैं। अपनी कला की प्रशंसा सुनकर इनकी भूख भाग जाती है। ऐसे व्यक्ति कला के लिए जीते हैं और अन्त तक सफल रहते हैं। सफलता व प्रसिद्धि का परिणाम हाथ के अन्य लक्षणों पर निर्भर करता है।
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ऐसे व्यक्तियों को धुम्रपान, शराब या कोई न कोई शौक अवश्य पाया जाता है, जिसे ये प्रेरणा-स्रोत कहते हैं। दस्तकार व्यक्तियों के हाथ में भी ऐसे ही चिन्ह होते हैं। इस दशा में मंगल प्रधान होता है। मंगल प्रधान होना व्यक्ति की कलात्मकता में क्रियात्मकता का समावेश करता है। मंगल व चन्द्र उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति की सन्तान योग्य होती हैं। इनके स्वयं तथा सन्तान के अध्ययन काल में रुचि न होने के कारण रुकावट आती है। अधिकतर ऐसे व्यक्तियों के हाथ कोमल ही देखे जाते हैं। ये शरीर के भी कोमल होते हैं और स्वभाव के भी। किसी बात को ये बहुत अधिक महसूस करते हैं तथा जरा-सी बात को लेकर सम्बंध बिगड़ने तक की नौबत पहुंच जाती है। तो भी ऐसे व्यक्ति समय पड़ने पर परिवार वालों की सहायता करते हैं। इनके जीवन में स्थिरता देर से आती है तथा जीवन का कुछ समय ऐसे व्यक्तियों को इधरउधर घूमकर बिताना पड़ता है। बहुत अधिक परेशान होने के पश्चात् ही यह अपने कार्य में सफल हो पाते हैं और संघर्षपूर्ण के जीवन बिताते हैं ।
कौणिक हाथ
कौणिक हाथ में उंगलियां अंगूठे की ओर झुकी होती हैं, अर्थात उंगलियों
का स्वाभाविक झुकाव अंगूठे की ओर होता है। इस हाथ में बृहस्पति विशेष प्रधान होता है और बृहस्पति की उंगली लम्बी होती है। ग्रहों में शुक्र अधिक उन्नत दिखाई देता है, परन्तु वास्तव में शुक्र का उठा होना इसकी कोई विशेष पहचान नहीं है।
इस हाथ की बनावट चमसाकार, समकोण या आदर्शवादी किसी भी प्रकार की हो सकती है, परन्तु उंगलियों का झुकाव बृहस्पति की ओर होने पर हम इसे कौणिक ही कहते हैं। कई बार इस प्रकार के हाथ पीछे से भारी और आगे से पतले देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति बुद्धिवादी होते हैं । उत्तम बुद्धि होने के नाते अवसर परख कर काम करते हैं, अत: बहुत ही उन्नति करते हैं। हाथ जितना ही भारी होता है, इनका बौद्धिक व आर्थिक स्तर उतना ही अधिक ऊंचा पाया जाता है। हाथ पतला होने पर ऐसे व्यक्ति गलत कार्य करने वाले व कठोर होने पर अक्खड़ होते हैं। हाथ कैसा भी हो, ये धनी अवश्य होते हैं। ऐसे हाथ कोमल होने पर ये बहुत ही चतुर होते हैं और इनके पूर्वज व अगली पीढ़ियां बुद्धिजीवी होती हैं। ऐसे व्यक्ति अपने परिवार में विशेष बौद्धिकता का विकास करते हैं और अपने वंश का नाम ऊंचा करते हैं। हाथ में रेखाएं कम या जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा अलग होने पर ये बुद्धिमान तो होते हैं, परन्तु जल्दबाज होते हैं। ऐसे व्यक्ति बड़े उद्योग स्थापित करते हैं। ये उद्योग साझेदारी में ही होते हैं। कौणिक हाथ में साझीदार बराबर काम करने वाला होता है। कौणिक हाथ कठोर होने
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पर ऐसे व्यक्ति विश्वास अधिक करते हैं और इनके मस्तिष्क की उपज का लाभ दूसरे साझीदार उठाकर धनी हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति के 2,4,6, जैसे भी स्तर का हाथ हो, कम पाये जाते हैं। शेष लक्षण हाथ के अन्य लक्षणों को देखकर बताने चाहिएं। गोलाकार जीवन रेखा होने पर उंगलियां पतली हो तो ऐसे व्यक्तियों को पैतृक सम्पत्ति का लाभ अधिक होता है, परन्तु मोटी हों तो बंटवारे में हानि रहती है।
= विरूद्ध कौणिक हाथ
इस हाथ में उंगलियां बुध की उंगली की ओर झुकी होती हैं और बुध प्रधान होता है। साधारणतया ये हाथ कठोर होते हैं।
ऐसे व्यक्तियों में बुद्धिमानी, विवेकशीलता और स्पष्टवादिता कूट-कूटकर भरी होती है। फलस्वरूप इन्हें किसी भी कार्य का श्रेय या यश नहीं मिलता। मित्रों, परिवारजनों तथा अन्य लोगों से इनका सदैव विरोध रहता है। यहां तक कि पत्नी तथा ससुराल वालों से भी ऐसे व्यक्तियों का विरोध रहता है। ऐसे व्यक्ति परिवार की सभ्यता को छोड़कर उससे अलग-थलग चलते हैं और उसी प्रकार अपना जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को संघर्ष अधिक करना पड़ता है, क्योंकि इन्हें सहयोग के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता। पैतृक सम्पत्ति भी ऐसे व्यक्तियों को नहीं मिलती। ऐसे व्यक्ति 30, 41 व 43 वर्ष के पश्चात् धनी होते हैं। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये धनी हो जाते हैं और सफल होने के पश्चात् परिवार वालों की भी सहायता करते हैं। पहले जितना कष्ट उठाते हैं, बाद में उतना ही आनन्द भी लेते हैं।
मस्तिष्क रेखा मोटी होने पर ऐसे व्यक्तियों को नितम्ब की हड्डी का आप्रेशन कराना पड़ता है तथा इनके परिवार में सभी भाई-बहनों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। ऐसे व्यक्ति अपनी पत्नी के चरित्र पर सन्देह करते हैं।
विरूद्ध कौणिक हाथ होने पर इन्हें चोरी से हानि होती है। इनके एक से अधिक व्यापार पाए जाते हैं। कुछ व्यापार साझे में और कुछ स्वतन्त्र होते हैं। मां को प्रजनन समय में कष्ट होता है और उसी कारण उसकी मृत्यु होती है। सौतेली मां होने पर उसका भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। पिता मेहनती व स्वभाव से कठोर होता है। उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं होता। ऐसे हाथों में एक बात विशेष होती है कि ऐसे व्यक्तियों के पूरे वंश में ही तीन पीढ़ियों में स्त्रियों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। ऐसे व्यक्तियों को परिस्थिति वश चाहे आरम्भ में नौकरी करनी पड़े, परन्तु रूचि व्यापार में होती है। अवसर मिलने पर यह नौकरी छोड़ कर व्यापार में आ जाते हैं और ठेकेदारी या कारखानदारी जैसा कार्य करते हैं। इस प्रकार के हाथ अक्सर कठोर ही होते हैं। परन्तु
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नरम होने पर इन्हें इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता, जितना कि कठोर होने पर करना पड़ता है। अतः भली-भांति परीक्षण करके ऐसे हाथ का फलादेश करना चाहिए।
नौकाकार हाथ
नौकाकार हाथ में उंगलियां पूरी न खुलकर नाव जैसी आकृति बनाती हैं और यह हाथ कठोर होता है। अंगूठा कम खुलता है और मस्तिष्क रेखा में दोष होता है। ऐसे व्यक्ति विश्वास अधिक करते हैं तथा विश्वास में हानि उठाते हैं। ये सीधे, सरल, स्पष्टवक्ता तथा दानी होते हैं, परन्तु यदि कोई इनसे मांगे तो इन्हें बुरा लगता है। कितनी भी कठिन परिस्थिति होने पर इन्हें झूठ बोलना पसन्द नहीं होता। ये व्यवहार कुशल होते हैं और लोगों को अपना बनाने में चतुर होते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरों की बात का अनुमोदन करके भी उनका विरोध करते हैं, अर्थात् विरोध करते समय अपने विचार सलाह के रूप में रखते हैं। ऐसे व्यक्ति शीघ्र ही अपनी स्थिति ठीक कर लेते हैं। धन कमाने के विषय में इनकी रूचि अधिक होती है, अतः इस कार्य में शीघ्रता करते हैं, फलस्वरूप सट्टा, जुआ आदि कार्यों में पड़ जाते हैं और हानि उठाते हैं। वास्तव में ऐसे व्यक्तियों को जुआ व सट्टा आदि कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा सब ढेर हो जाता है।
व्यापार में जाने पर ऐसे व्यक्ति धनी होते हैं, परन्तु ये जोखिम उठाना पसन्द नहीं करते। लम्बी मस्तिष्क रेखा होने पर निश्चित ही ऐसा कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव कठोर होता है। परन्तु खुलकर विरोध नहीं करते। हां, घर में पत्नी अथवा बच्चों की आलोचना करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की पत्नियों को मस्तिष्क रोग, गर्भपात, मासिक धर्म के रोग होते हैं तथा पहली सन्तान के जन्म के समय कोई न कोई कठिनाई आती है। ऐसे व्यक्तियों के सम्बन्धी अच्छे नहीं मिलते।
ऐसे व्यक्तियों की लड़की को विवाह के बाद ससुराल में मानसिक अशान्ति रहती है। हाथ में दोष होने पर तलाक तक बात पहुंच जाती है। ऐसे व्यक्तियों में पेट खराब होना, आंख में रोग होना या गठिया, गुर्दे अथवा मूत्र सम्बन्धी कोई न कोई रोग अवश्य पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों की रूचि अचानक धन प्राप्ति की ओर अधिक होती है। अतः इन्हें इस सम्बन्ध में विशेष धैर्य से काम लेने की सलाह देनी चाहिए अन्यथा जीवन में कई बार कष्ट उपस्थित होते हैं। धन मिल जाने पर ऐसे व्यक्ति आसमान में उड़ते हैं।
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छोटा हाथ =
जसा कि नाम से ही प्रकट है कि छोटा हाथ, अन्य हाथों की अपेक्षा छोटे आकार का होता है, परन्तु सुन्दर और गुदगुदा होता है। ये हाथ दो प्रकार के होते हैं, एक तो छोटे और भारी तथा दूसरे छोटे और पतले। ऐसे हाथ को हम प्रशासक हाथ भी कहते हैं। इन हाथों में अंगूठा पूरा खुलता है व लम्बा होता है।
ये सच है कि छोटे हाथ वास्तव में समझदार तथा बुद्धिजीवी व्यक्तियों के होते हैं। हाथ छोटा होकर पतला होने पर व्यक्ति में दोष का लक्षण माना जाता है। उत्तम छोटे हाथ में उंगलियां छोटी, हाथ भारी व गुलाबी, ग्रह उठे हुए तथा भाग्य रेखाएं अनेक होती हैं। ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं। अवसर को समझ कर काम में लेते हैं। जिस व्यक्ति के साथ जैसा व्यवहार करना होता है, वैसा ही करते हैं। __ ऐसे व्यक्ति मर्मज्ञ होते हैं। बुध की उंगली टेढ़ी होने या उसका नाखून छोटा होने पर इन गुणों में वृद्धि हो जाती हैं। हाथ देखते समय अंगूठे व उंगलियों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। हाथ काला होने पर गुण, दोषों में परिवर्तित हो जाते हैं।
बृहस्पति या शनि की उंगली लम्बी होने पर या मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होने पर ये स्वतन्त्र विचारक होते हैं और अपने ही बल पर चलकर सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि छोटे हाथ वाले व्यक्ति जीवन में बहुत शीघ्र सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति नकद में विश्वास करते हैं। अतः ऐसे कार्यों में ही पैसा खर्च करते हैं, जिनसे शीघ्र लाभ होता हो।
ऐसे व्यक्ति अपने उद्देश्य हमेशा ही सामने रखते हैं और जो कुछ भी कार्य करते हैं, उसी दृष्टिकोण से करते हैं। असफलता मिलने पर या सफलता में विलम्ब होने पर घबराते नहीं, फिर से आरम्भ करके सफलता प्राप्त करने में विश्वास करते
___ शनि और बृहस्पति की उंगलियां बड़ी हों, हाथ भारी या बड़ा हो, लम्बा हो, छोटा हो तथा मस्तिष्क रेखा में दोनों ओर शाखा हो तो व्यक्ति महान लेखक, प्रधान सम्पादक, विशेष साहित्य की रचना करने वाला तथा अन्वेषक होता है।
= भारी व चौड़ा हाथ ==
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शरीर के आकार के अनुमात में भारी (आकार में बड़ा) गुदगुदा, लम्बा व चौड़ा हाथ होने पर हम इसे भारी हाथ कहते हैं। देखते ही ऐसे हाथों का पता लग जाता है। हाथ में अन्य गुण जैसे उंगलियां पतली, हाथ नरम, भाग्य रेखा एक से अधिक
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आदि होने पर ऐसे व्यक्ति धनी, सफल तथा प्रसिद्ध होते हैं। या तो आरम्भ से ही ऐसे व्यक्तियों को धन, सम्पत्ति का सुख होता है अन्यथा शीघ्र ही स्वयं इसका निर्माण कर लेते हैं। अच्छी भाग्य रेखाएं भारी हाथ में ही समरूप फल करती हैं। पतले हाथ में अच्छी रेखाओं का फल उलटा होता है, जैसे भारी हाथ में बहुत सुन्दर भाग्य रेखाएं व्यक्ति को विशेष धनी बनाती हैं, परन्तु पतले हाथ में उत्तम रेखाएं कम फल कारक होती हैं।
ऐसे व्यक्ति धनी होते हैं। जीवन रेखा घुमावदार, मस्तिष्क रेखा अच्छी होने पर बहुत ही उत्तम फल होता है, सारा जीवन आराम से बीतता है। हाथ कठोर होने पर धनी तो रहते हैं, परन्तु जीवन में कोई न कोई समस्या खड़ी ही रहती है, अत: मानसिक शान्ति देर से मिलती है। हृदय रेखा बृहस्पति की उंगली के पास होने, भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर ऐसे व्यक्ति दान देते हैं, जैसे शिक्षा दिलाना, धर्मशाला बनवाना, मंदिर-मस्जिद आदि का निर्माण करना। भारी हाथ होने पर कठोर हो या अंगूठा कम खुले तो व्यक्ति क्रोधी होता है, परन्तु हाथ कोमल होने पर क्रोध पर नियन्त्रण पाता है। ऐसे व्यक्ति जान-बूझकर आवश्यकतानुसार क्रोध करते हैं।
इस प्रकार के हाथों में मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर होना, मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से होना, बुध की उंगली छोटी या अधिक तिरछी होना व्यक्ति में पाशविकता का लक्षण है। कत्ल, चोरी, बलात्कार आदि ऐसे ही व्यक्ति करते हैं। परन्तु ऐसे व्यक्ति अधिक बार इस प्रकार के कार्य नहीं कर पाते, क्योंकि बौद्धिक विकास कम होने के कारण पकड़े जाते हैं।
भारी हाथ रेखाओं के दोषों में कमी करता है और जीवन रेखा के दोषों को हाथ का भारीपन किसी हद तक कम कर देता है। भारी हाथ वाला व्यक्ति यदि रेखाओं में विशेष दोष नहीं हो तो व्यापार ही करता है। परन्तु अंगूठा कम खुलने की दशा में ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी और बाद में व्यापार करते हैं। जीवन रेखा में सीधापन या मस्तिष्क रेखा में टेढ़ापन या द्वीप आदि दोष होने पर मध्यायु के पश्चात् उन्नति करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों का परिवार बड़ा होता है और सभी की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है, फलस्वरूप परिवार में प्रत्येक व्यक्ति उन्नति की ओर अग्रसर होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों के बीच में तब तक नहीं बोलते जब तक कि बात इन पर नहीं आ पड़ती। स्वयं भी दूसरों के द्वारा अपने कार्य में हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते। ऐसे व्यक्ति हानि किसी को भी नहीं पहुंचाते, क्योंकि इनमें मानवता अधिक होती है। इनका स्वभाव शासन करने का होता है। अपने से छोटों पर तो अंकुश चलता ही है, कभी-कभी बड़ों पर भी इस स्नेहास्त्र का प्रयोग कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति निरन्तर सफल होते देखे
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जाते हैं।
भारी हाथ होने पर यदि कोमल भी हो तो अधिक खर्च करने की आदत होती है। अनेक भाग्य रेखाएं होने पर ऐसे व्यक्तियों के परिवार का खर्च अधिक होता है। ऐसे उदार हृदय व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का विशेषभाग जनहित के लिए दान करते हैं। ___ भारी हाथ होने पर यदि मस्तिष्क रेखा या उंगलियां मोटी हों तो जीवन शान्ति से नहीं बीतता, झंझट रहते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वयं जीवन बनाते हैं और इन्हें सम्पत्ति सम्बन्धी झगड़ों का सामना करना पड़ता है। व्यापारी होने पर व्यापार सम्बन्धी और नौकरी होने पर नौकरी सम्बन्धी झगड़े होते हैं। ऐसे व्यक्ति धनी वंश में पैदा होते हैं। पिता या दादा की आर्थिक स्थिति व प्रभाव उत्तम होते हैं।
हाथ भारी होने पर कोमल हो तो ऐसे व्यक्तियों की सन्तान भी चतुर व धनी होती है, परन्तु हाथ कठोर होने पर अध्ययन काल में इनकी सन्तान अपने समय का सदुपयोग नहीं करती, अत: शिक्षा में असन्तोष रहता है। अन्यथा प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाली होती है। किसी प्रतियोगिता में भी ऐसे व्यक्तियों की सन्तान सफल होती हैं। जीवन रेखा में दोष होने पर सन्तान के अध्ययन काल में रूकावट होती है। हाथ भारी होने पर ऐसे व्यक्तियों की पत्नी का भार बढ़ जाता है। जीवन रेखा गोल होने या अधूरी होने पर इस प्रकार की समस्याएं विशेष रूप से सामने आती हैं। हाथ कठोर या उंगलियां मोटी होने पर सम्बन्धियों से बिगाड़ रहता है और कन्या को विवाह के पश्चात् ससुराल में मानसिक तनाव रहता है। इनकी पुत्र-वधु का स्वभाव भी इतना अच्छा नहीं होता, जितना कि ऐसे व्यक्ति आशा करते हैं। पुत्रवधु कुछ स्वार्थी व आलसी होती है। उसका स्वास्थ्य नरम रहता है। देखने में आया है कि सबसे बड़े लड़के की पत्नी ही उपरोक्त स्वभाव की पाई जाती है।
कुछ हाथ मोटे व भारी होने पर भी निकृष्ट फलकारक होते हैं। ऐसे हाथ मोटे, भद्दे व मोटी उंगलियों वाले होते हैं। इनकी उंगलियां बहुत छोटी व मोटी देखी जाती हैं। अंगूठा भी छोटा व मोटा होता है। हाथ में रेखाएं कम होती हैं और जो होती हैं वे बहुत मोटी या अस्पष्ट और मिटी हुई सी पाई जाती हैं। ऐसे व्यक्ति छोटा कार्य करने वाले होते हैं जैसे घरेलू नौकरी, मजदूरी आदि। ये शारीरिक श्रम में भी कुशल होते हैं।
पतला हाथ
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पतला हाथ, जो कि आकार में छोटा, मांसहीन व कठोर, ऊबड़-खाबड़, काले-कलूटे या लाल रंग का दिखाई देता है तथा शरीर के अनुपात में छोटा व बेडौल होकर बड़ा लगता है। इस प्रकार का हाथ पतला हाथ कहलाता है।
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ऐसे व्यक्ति निकृष्ट मनोवृत्ति के होते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में दु:खी रहते हैं। बहुत सुन्दर भाग्य रेखा ऐसे व्यक्तियों को हानि करती है। झंझट पैदा करना, एक-दूसरे को लड़ाना, बिना मतलब झगड़ेबाजी करना, दूसरों के समझौते कराने में अपना समय नष्ट करना व बेकार विवाद करना इनका मुख्य कार्य होता है। नशीली वस्तुओं का सेवन, अप्राकृतिक रति आदि ऐसे व्यक्तियों की आदत होती है।
पतला हाथ होने पर उंगलियां छोटी, मस्तिष्क रेखा मोटी तथा छोटी या लम्बी, मंगल से निकली हुई, हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर, अंगूठा मोटा, छोटा या कम खुलने वाला होने पर ऐसे व्यक्ति बेहद साहसी तथा अत्यन्त क्रोधी होते हैं। कत्ल करने वाले या पीछे से वार करने वाले व्यक्तियों के हाथ में ऐसे ही लक्षण पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति क्रोध में आकर अनैतिक कार्य कर डालते हैं। ऐसे व्यक्तियों को किसी गिरोह के अन्दर रहकर ही गुजारा करना पड़ता है। पतले हाथ वाले व्यक्ति हमेशा ही नौकरी करते देखे जाते हैं या फिर निकृष्ट कोटि के कार्य। इन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता है और उसके पश्चात् भी सफलता नहीं मिलती। जीवन में यश, आराम व शान्ति नहीं मिलती। अपनी गलतियों से दुःखी रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों का रोजगार भी नहीं चलता, मजदूरी या छोटे कार्य जैसे बर्तन मांजना या कपड़े धोना आदि करते हैं। हाथ मोटा होने पर उंगलियां मोटी, छोटी व रेखाएं कम तथा हाथ पतला होने पर अधिक रेखाएं, उंगलियां तिरछी हो तो निकृष्ट कोटि का हाथ कहलाता है। ऐसे हाथ निम्न स्तर के व्यक्तियों के होते हैं, जिनमें बुद्धि की कमी देखी जाती है।
पतले हाथ वाले व्यक्ति बुद्धिमत्ता के लक्षण होने पर बुद्धिमान तो होते हैं, परन्तु इनकी बुद्धि विपरीत दिशा में कार्य करती है। पतले हाथ में दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर जड़ मूर्ख होते हैं, क्योंकि एक से अधिक मस्तिष्क रेखा उत्तम हाथ में ही उत्तम फल देती है। अन्यथा पात्रता न होने के कारण व्यक्ति में मस्तिष्क विकार पैदा हो जाता है। उत्तम रेखा इंन हाथों में रोटी का सहारा बनाने के अतिरिक्त कोई और फल नहीं करती।
उंगलियां भारी या छोटी और टेढ़ी हों तो चोर व चुगलखोर होते हैं, इनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। परिवार से दूर रहना पड़ता है। जीवन में सभी तरह के काम करते हैं, जैसे घर से भाग कर चले जाना, स्त्रियों से अनैतिक कार्य कराना, झूठा खाना, स्त्री व पुरुष में मध्यस्थता कराना आदि।
ऐसे व्यक्ति की मां, बहन आदि भी दुराचारिणी होती हैं। इनकी सन्तान कमजोर तथा रोगी होती है। सन्तान में भी स्वयं के गुण पाये जाते हैं, अर्थात् ऐसे व्यक्तियों को सन्तान से सुख नहीं मिलता।
पतले हाथ में जितनी ही अधिक रेखाएं होती हैं, उतना ही दरिद्री होती है और
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जितनी ही कम रेखाएं होती हैं उतना ही साहसिक व गलत कार्य करने वाला। पतला हाथ होने पर अंगूठा कम खुलता हो और मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो ऐसे व्यक्ति दुश्मनी रखते हुए भी शत्रु का कुछ बिगाड़ नहीं सकते, पीछे से उसकी बुराई करते रहते हैं। पतले हाथ में उंगलियां छोटी व अंगूठा कम खुलता हो तो ऐसे व्यक्ति मुंह-फट नंग व बदतमीज होते हैं। छोटी-सी बात पर ही मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं और सम्मान के ग्राहक बन जाते हैं।
अधिक रेखाओं वाला हाथ
अधिक रेखाओं वाले हाथ का व्यक्ति देर में सफलता प्राप्त करता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति बहुत अधिक सोचता है, फलस्वरूप इसे किसी भी कार्य के निर्णय करने में देर लगती है। वैसे भी ऐसा व्यक्ति सोचते-सोचते किसी समस्या को अधिक बढ़ा लेता है। और इसे जीवन में अशान्ति ही मिलती है। ऐसे व्यक्ति को सनकी तथा बहमी भी कह सकते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत कल्पनाशील होते हैं। मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा की ओर जाने की दशा में कल्पना की हद हो जाती है।
ऐसे व्यक्ति के हाथ में रेखाएं जितनी अधिक होती हैं, दूसरी मुख्य रेखाओं का फल उतना ही कम होता है। अतः रेखाओं का परिमाण देखने के पश्चात् यह निश्चित कर लेना चाहिए कि किस प्रकार की रेखाएं फल करने वाली हैं। ऐसे हाथों में केवल बड़ी व मुख्य रेखाओं का ही फल होता है। छोटी-छोटी रेखाएं विशेष महत्व नहीं रखती। अधिक-अधिक रेखाओं के बारे में यह कह देना आवश्यक है कि कई बार तो किन्ही हाथों में इतनी अधिक रेखाएं देखी जाती हैं कि रेखाओं का जाल सा बना होता है, परन्तु इन हाथों की मुख्य रेखाएं मोटी होती हैं। यदि मुख्य रेखाएं भी मोटी नहीं हों तो फल बताने में बड़ी कठिनाई होती है। ऐसी अवस्था में सावधानी की आवश्यकता पड़ती है। अधिक रेखाएं केवल कोमल हाथों में ही पायी जाती हैं। कठोर हाथ में अधिक रेखाएं प्रायः नहीं होती। ये व्यक्ति कोमल, तुनक मिजाज, अधिक महसूस करने वाले, छोटी सी बात को बड़ी बनाने वाले और चिन्ता करने वाले होते हैं। इनके जीवन में परेशानी ही परेशानी रहती है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति छोटी-सी आपत्ति को भी पहाड़ समझते हैं और घबराते अधिक हैं। इस अवस्था में शुक्र पर मोटी रेखाएं अधिक होने पर इन व्यक्तियों को अधिक रक्तचाप हो जाता है। ऐसे हाथों में स्वास्थ्य की समस्याएं अधिक आती हैं। अत: अन्य लक्षणों के साथ समन्वय करने के बाद फल कहना चाहिए। हाथ भारी होने पर फलों में कमी और पतला होने पर उपरोक्त फलों में अधिकता देखी जाती है।
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=क्रियात्मक हाथ =
बहुत से हाथों में बहुत कम रेखाएं होती हैं। यहां तक देखा गया है कि केवल तीन या चार मुख्य रेखाओं को छोड़कर अन्य रेखाएं दिखाई नहीं देतीं। ऐसे हाथों को क्रियात्मक हाथ की संज्ञा दी जाती है। ऐसे हाथों पर निर्णय लेना बहुत कठिन हो जाता है। इस दशा में बहुत छोटी रेखा भी बहुत अधिक महत्व रखती है। ऐसे हाथों में रेखाओं का झुकाव, दिशा, मोटापन, पतलापन आदि लक्षणों को देखकर निर्णय किया जाता है। ऐसे छोटे-छोटे लक्षण विशेष महत्व रखते हैं जो कि अधिक रेखाओं वाले हाथों में विशेषता नहीं रखते। 60 प्रतिशत व्यक्तियों के हाथ इसी प्रकार की रेखाओं वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति जल्दबाज होते हैं और निर्णय करने में देरी नहीं करते।
ऐसे व्यक्ति का हाथ कठोर होने पर उसे क्रोध अधिक आता है। इनकी मांग मुंह से निकलते ही पूरी न होने पर बिगड़ पड़ते हैं और घर का वातावरण खराब कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति किसी की भी परवाह नहीं करते। यहां तक कि मां-बाप से भी इनकी नहीं बनती। ऐसे व्यक्ति बेईमान नहीं होते, परन्तु बुध की उंगली तिरछी या छोटी होने पर जैसा समय देखते हैं, वैसा ही काम करना पसन्द करते हैं। ऐसे व्यक्ति का यदि अंगूठा कम खुलता हो तो स्वभाव के चिड़चिड़े होते हैं, परन्तु अंगूठा अधिक खुलने पर ये सहनशील होते हैं। बुरा तो अवश्य लगता है, परन्तु सहन कर लेते हैं।
स्त्री होने पर यदि हाथ में रेखाएं कम हों तो विवाह के बाद मानसिक शान्ति में बाधा होती है। मस्तिष्क रेखा पतली होने पर ऐसे व्यक्ति प्रबन्धन व देखभाल का काम करने वाले होते हैं। अतः अधिक सन्तान उत्पन्न नहीं करते। कठोर हाथ में कम रेखाएं जीवन भर संघर्ष बने रहने का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति सीधे, मेहनती तथा ईमानदार होते हैं। बड़ी आयु में इनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। नरम हाथ क्रियात्मक होने पर निपुण, जल्दबाज, चालाक, अवसर देख कर कार्य करने वाले सफल होते हैं। ये भी निर्णय शीध्र लेते हैं। जीवन में ऐसे व्यक्ति क्रान्ति करते हैं। मस्तिष्क रेखा पतली व एक या दोनों ओर शाखान्वित हो, अंगूठा पतला व लम्बा हो तथा अंगूठे का नाखून वाला भाग सांप के मुख की आकृति का अर्थात् आगे से नुकीला हो तो व्यक्ति बुद्धिमान, व्यवहारिक, अल्पायु में ही सब सुखों से सम्पन्न हो जाता है।
= नरम कोमल हाथ
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ऐसे हाथ छूने में चिकने व दबाने में कोमल होते हैं। गुदगुदे होने पर ऐसे हाथ
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विशेष फलदायक होते हैं। नरम व गुदगुदे होने पर यदि ऊपर से चिकने भी हों तो हाथ का मूल्य बहुत अधिक बढ़ जाता है। अतः हाथ जितना नरम, कोमल व गुदगुदा होगा, व्यक्ति का स्तर उतना ही ऊंचा हो जाता है। इस प्रकार के हाथ नवाबों, राजाओं, बड़े घरों की स्त्रियों, व्यापारियों तथा सभी वर्गों में पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को रोग अधिक होते हैं। इनको गर्मी-सर्दी अधिक लगती है। ऐसे व्यक्तियों में सहनशीलता अधिक होती है, अतः उसी समय विरोध करते हैं, जब किसी बात की हद हो जाती है। अधिक कहा-सुनी होने पर इन्हें बहुत बुरा लगता है और तब इनसे स्पष्ट व रूखा जवाब सुनने को मिलता है।
कोमल हाथ वाली स्त्रियों की मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा मिली हो तो हर तीसरे वर्ष सन्तान उत्पन्न हो जाती है और जीवन रेखा गोलाकार होने की दशा में सन्तान की संख्या भी अधिक होती है। ऐसे व्यक्तियों की कमर में दर्द रहता है। कोमल हाथ वाले व्यक्ति आराम तलब होते हैं। ये बुद्धिमान तथा अधिक लिहाज वाले होते हैं। भाग्य रेखा में दोष होने पर ऐसे व्यक्ति देर से सफलता प्राप्त करते हैं। क्योंकि ये स्पष्ट रूप से विरोध नहीं कर सकते, फलस्वरूप जीवन में रुकावट आती है और नुकसान उठाते हैं। कोमल हाथ वाले व्यक्ति अधिक वासना प्रिय होते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को वृद्धावस्था में रोगों का सामना करना पड़ता है। इन्हें वृद्धावस्था में मूत्ररोग, हृदयरोग, फेफड़ों की बीमारियां, रक्तचाप, वायुरोग आदि रहते हैं।
कोमल हाथ वाले व्यक्तियों को अचानक द्रव्यप्राप्ति के अवसर प्राप्त होते हैं, जैसे लाटरी, सट्टा, उपहार, विवाह आदि अवसर पर लाभ, सन्तान से धन लाभ, पैतृक सम्पत्ति व इष्ट मित्रों से लाभ इत्यादि। ऐसे व्यक्ति अपने व्यवहार से कहीं भी घुल-मिल जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में कम बोलने, चुप रहने, अधिक मिलनसार न होने वालों को अचानक द्रव्य प्राप्ति के अवसर तो आते हैं, परन्तु मित्रगण आदि से लाभ नहीं होता।
मस्तिष्क रेखा स्वतन्त्र होने की दशा में आपत्ति के समय अनिष्ट की आशंका से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।
= कठोर हाथ
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कठोर हाथ दो प्रकार के होते हैं। एक तो देखने में या छूने में बिल्कुल लकड़ी जैसे लगते हैं। दूसरे हाथ अधिक कठोर नहीं होते, परन्तु इनका गठन सुन्दर और मजबूत होता है। इन्हें हम मजबूत हाथ भी कहते हैं। ऐसे हाथ अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होते हैं। अंगूठा कम खुलने या सख्त होने की दशा में कठोर हाथ अधिक दोषपूर्ण होता है, किन्तु अंगूठा लम्बा और पतला हो तो इस दोष से मुक्ति हो जाती है। अंगूठा खुलने
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की दशा में इन हाथों में खराब फलों में कमी हो जाती है।
कठोर हाथ वाले व्यक्तियों को संघर्ष अधिक करना पड़ता है और अपने किए हुए कार्य का फल अपेक्षाकृत कम मिलता है। अधिक कठोर होने पर इन्हें संघर्ष तो अधिक करना ही पड़ता है, जीवन में मानसिक शान्ति भी नहीं मिलती। ऐसे व्यक्ति मेहनती, स्वभाव के सख्त व अनुशासित होते हैं। इनका स्वास्थ्य अच्छा होता है। या. तो ये बीमार ही नहीं पड़ते या जब बीमार होते हैं तो लम्बे समय तक चलते हैं। कठोर हाथ में प्रायः रेखाएं कम देखने में आती हैं। अत: थोड़े भी दोष का प्रभाव इनमें अधिक होता है। ऐसे व्यक्तियों को दूसरों से सहयोग नहीं मिलता, परिवार या माता-पिता से भी ऐसे व्यक्ति कम लाभ उठाते हैं। अपने परिश्रम के द्वारा ये अपने परिवार की नींव तो मजबूत कर जाते हैं, परन्तु अपनी उन्नति से उन्हें सन्तुष्टि नहीं होती। मरते दम तक इन्हें काम करना पड़ता है तो भी नकद कम बचता है और सम्पत्ति अधिक होती है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में अनेक परिवर्तन होते हैं और इन्हें अनेक स्थान भी बदलने पड़ते हैं। हाथ कठोर होने पर मस्तिष्क रेखा अधिक लम्बी या दोषपूर्ण हो तो ऐसे व्यक्ति अपनी बुद्धि का लाभ कम उठा पाते हैं।
मध्यायु के पश्चात् ही इन्हें पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्तियों में सहनशीलता की कमी होती है। जीवन रेखा सीधी होने पर तो विशेष रूकावट और संघर्ष करना पड़ता है। रेखाएं सुन्दर और हाथ दोषपूर्ण न होने की दशा में कुछ समय तक हो सकता है कि सट्टे आदि कार्य से लाभ हो, लेकिन अन्त में हानि ही होती है। ऐसे व्यक्तियों को आगे आने वाली घटनाओं का कई बार पता लग जाता है, परन्तु स्वयं उसका लाभ नहीं उठा पाते। शुक्र उठा होने पर इनका जीवन देर से अर्थात् 35 और 43 वर्ष के बाद ही बनता है। जीवन रेखा दोहरी होने की दशा में ऐसे व्यक्ति उत्तम कोटि के दस्तकार होते हैं।
हाथ अधिक कठोर न होने पर यदि भाग्य रेखा निर्दोष होकर शनि की ओर गई हो, शनि की उंगली विशेष लम्बी हो तो ऐसे व्यक्तियों को बाग-बगीचे आदि में विशेष रूचि होती है। ऐसे व्यक्ति पेड़-पौधों को रूचि लेकर पालते हैं और इसी कार्य में अधिक सफल होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की भाग्य रेखा मोटी होती है।
कठोर हाथ वाले व्यक्ति भावुक होते हैं। फलस्वरूप यौन सम्बन्ध में भी इन्हें अशान्ति रहती है। ऐसे व्यक्तियों को कामवासना की सन्तुष्टि न होने पर मस्तिष्क में तनाव बना रहता है। कठोर हाथ में भाग्य रेखा मोटी होकर यदि बीच में ही समाप्त होती हो तो जिस आयु में यह रेखा समाप्त होती है, उस आयु में इनको नपुंसकता का आभास होता है, परन्तु यदि उसी आयु में मस्तिष्क रेखा में बड़ा द्वीप हो तो थोड़े समय के लिए कमजोरी रहती है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर ऐसे
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व्यक्तियों को शीघ्र-पतन का रोग हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों के परिवार में सभी व्यक्तियों का स्वभाव कठोर होता है।
ऐसे व्यक्ति साहसी होते हैं और हमेशा ही कमजोर का पक्ष लेते हैं। ये उग्र देवताओं की उपासना करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति को सौम्य सात्विक देवताओं की उपासना करनी चाहिए, इससे मानसिक शान्ति व विशेष लाभ होता है। ___ कठोर हाथ होने पर अंगूठा कम खुलने की दशा में व्यक्ति को विशेष रूप से मानसिक अशान्ति रहती है। स्त्री होने पर ऐसी स्त्रियों को स्नायु रोग हो जाता है। ऐसी स्त्रियां अधिक महसूस करने वाली होती हैं। ये दूसरों के लिए कही गई बात अपने लिए समझकर झगड़ा कर लेती हैं। वैसे ये सरल हृदय होती हैं और समझाने व मनाने पर शीघ्र ही मान जाती हैं। ___जीवन रेखा में द्वीप या टूटी होने की दशा में ऐसे व्यक्तियों की रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन कराना पड़ता है। रीढ़ की हड्डी में दर्द, हड्डी खिसकना आदि रोग होते हैं। कुछ भी हो ऐसे व्यक्ति मेहनती, सरल-हृदय, कठोर, उग्र तथा मानसिक रूप से अशान्त पाये जाते हैं। चमसाकार हाथ यदि कठोर हो तो ऐसे व्यक्ति जल्दबाज होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान अधिक महसूस करने वाली तथा लापरवाह होती है। बड़ी आयु में सन्तान से भी ऐसे व्यक्तियों का विरोध रहता है। मां-बाप से भी इनके विचार नहीं मिलते। ऐसे व्यक्तियों के मां-बाप लालची होते हैं और सत्तान को नियंत्रण में रखना पसन्द करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की पहली सन्तान को शिक्षा में रूकावट होती है। ऐसा उस दशा में होता है, जबकि सन्तान का जन्म 30 वर्ष की अवस्था से पहले हो। यह रूकावट इनके घर के वातावरण में चिड़चिड़ापन होने के कारण होती है। ऐसे व्यक्ति साहसी होते हैं तथा सदैव ही कमजोर का पक्ष लेते हैं। ये उग्र देवताओं की उपासना करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति को सौम्य एवं सात्विक देवताओं की उपासना करनी चाहिए, इनसे मानसिक शान्ति व विशेष लाभ होता है।
कठोर हाथ वाले व्यक्तियों को रोग बहुत कम होते हैं, तो भी इन्हें कमर दर्द, गुर्दे व जिगर की बीमारियां देखने में आती हैं। इनका पेट असन्तुलित रहता है अतः पेट में कोई न कोई रोग पाया जाता है, चाहे कब्ज ही क्यों न हो। जीवन रेखा के आरम्भ में दोष होने पर इन्हें पेचिश, संग्रहणी, अपच आदि रोग पाये जाते हैं। मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा पास, या जीवन रेखा सीधी होने पर ऐसे व्यक्तियों को खांसी, नजला या दमें जैसा रोग हो जाता है।
व्यापारिक हाथ =
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वास्तव में बनावट की दृष्टि से व्यापारिक हाथ कोई विशेष प्रकार का हाथ
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नहीं होता। किसी भी प्रकार के हाथ में निम्न विशेषताएं होने पर हाथ को व्यापारिक हाथ कहा जा सकता है। ऐसे हाथ तीन श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं।
उत्तम व्यापारिक हाथ
ऐसे हाथ बड़े, चौड़े, गुलाबी, न विशेष मोटे, न विशेष पतले, ग्रह सभी समान या उन्नत, उंगलियों के आधार हथेली के पास समान, कम से कम तीन उंगलियों के आधार, समान होते हैं। नाखून न विशेष लम्बे न छोटे, व्यापारिक हाथ की मुख्य विशेषताऐं हैं। ऐसे हाथ चाहे कोमल हों या कुछ कठोर, छोटे हों या बड़े, महानता का सूचक होते हैं। प्रायः ऐसे हाथ कठोर नहीं होते। इनमें भाग्य रेखाएं एक से अधिक होती हैं और सभी स्पष्ट होती हैं, परन्तु ये रेखाएं किसी भी रेखा पर रुकती नहीं । ऐसे हाथ भारी, चौड़े, गुदगुदे या चिकने होते हैं। इस प्रकार के हाथ व्यक्ति की महानता के सूचक हैं। जिस वंश में भी ऐसे व्यक्ति पैदा होते हैं, वह वंश भी प्रख्यात होता है। आमतौर से इनकी पहली दो तीन पीढ़ियां धनी होती हैं। ऐसे व्यक्तियों को स्वास्थ्य, स्त्री, धन और परिवार का भरपूर सुख मिलता है। जीवन रेखा घुमावदार, निर्दोष, मस्तिष्क रेखा मंगल या चन्द्रमा की ओर तथा निर्दोष होने पर, हृदय रेखा भी निर्दोष और बृहस्पति की उंगली तक हो तो ऐसे व्यक्ति देश के महान् व सम्मानित व्यापारी होते हैं। ये निरन्तर सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। ऐसे व्यक्ति केवल अपने आपको ही नहीं बल्कि परिवार, समाज, देश आदि सभी का मान बढ़ाते हैं । मध्यम व्यापारिक हाथ
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चित्र: 5
ऐसे हाथों में शनि व सूर्य और बृहस्पति की उंगलियों के आधार सम होते हैं। कोई एक उंगली सरल होती है। दो उंगलियां सरल होने पर गुणों में वृद्धि हो जाती है । हाथ चाहे पतला हो, जीवन रेखा घुमावदार व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होनी चाहिए। भाग्य रेखा व सूर्य रेखा की उपस्थिति इन हाथों में आवश्यक नहीं हैं। गहरी भाग्य रेखा की दशा में गहरापन समाप्त होने की आयु के पश्चात् ही उन्नति होती है। भाग्य रेखा पतली व जीवन रेखा से दूर होने पर प्रारम्भ से ही व्यापार में धीरे-धीरे उन्नति होती है। भारी होने पर उपरोक्त लक्षण हों तो शीघ्र ही अच्छी स्थिति प्राप्त करने का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों को मध्यम वर्ग के कार्य पसन्द आते हैं। जैसेसिलाई, छोटे कारखाने, आढ़त आदि ।
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साधारण हाथ
इन हाथों में उंगलियां टेड़ी-मेड़ी, जीवन रेखा गोलाकार परन्तु, अधुरी, टूटी-फूटी भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा कहीं सुन्दर व कहीं दोषपूर्ण, सभी प्रकार के रंग, अंगूठा छोटा व कम खुलने वाला, कभी-कभी सीधा व चौड़ा, उंगलियां लम्बी या मध्यम, ग्रहों के स्थान एकाध उठे-शेष साधारण पाए जाते हैं।
इस श्रेणी के व्यक्ति निम्न स्तर के कार्य करते हैं, जैसे राज, बढ़ई, धोबी, घास बेचना, कबाड़े का काम, ठेला लगाकर कोई काम करना, साइकिल रिपेयरिंग इत्यादि।
अन्य प्रकार के हाथ व हाथों के रंग
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गुलाबी हाथ
गुलाबी हाथ देखने में या तो हल्के लाल रंग के लगते हैं या फिर सफेद जैसे होते हैं, परन्तु पूर्णतया सफेद नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्ति सात्विक, सरल हृदय व छल कपट से रहित होते हैं। किसी को धोखा देना इनके बस की बात नहीं। ये सतोगुणी देवताओं की उपासना करते हैं। दूसरों के साथ इनके सम्बन्ध स्पष्ट एवं रूचिकर होते हैं। क्रोध भी इन्हें कम आता है। हाथ में अन्य लक्षणों के अनुसार अन्य बातों का निर्णय कर लेना चाहिए। इस प्रकार के व्यक्तियों से दूसरों को हानि नहीं होती, लाभ ही होता है। इनमें दया भावना अधिक होती है और ये यथाशक्ति दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। अत्यधिक प्रभु चिन्तन करने वाले, साधु स्वभाव के एवं उच्च कोटि के सामाजिक कार्य करने व समाज का निर्णय करने वालों के हाथ गुलाबी होते हैं।
पीला हाथ
ऐसे हाथ देखने में एकदम सफेद जैसे लगते हैं, परन्तु रंग में पीलापन होता है। शरीर में खून की कमी हो या नहीं, तो भी हाथ पीला या सफेद नज़र आता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में निराश रहते हैं और इन्हें प्रत्येक कार्य में सफलता के लिए विशेष संघर्ष करना पड़ता है। पारिवारिक जीवन में ऐसे व्यक्तियों को विशेष अशान्ति रहती है। सन्तान के विवाह, परिवार के व्यक्तियों से निर्वाह तथा सम्बन्धियों से सम्बन्धों के विषय में इन्हें निराशा रहती है। हाथ के अन्य लक्षण सुन्दर होने पर रंग सफेद या पीला हो तो फलों में परिवर्तन हो जाता है। फिर भी ऐसे व्यक्तियों को उतनी सफलता
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नहीं मिलती, जितनी कि हाथ के अन्य लक्षणों के अनुसार मिलनी चाहिए । अतः उपरोक्त दृष्टिकोण को लेकर ही फल का निर्णय करना चाहिए। वस्तुतः ऐसे व्यक्ति हतोत्साही, आलसी व वासना प्रिय होते हैं।
लाल हाथ
हाथ देखने में स्पष्टतया लाल होते हैं। नाखूनों का रंग देखकर इसका स्पष्ट निर्णय हो जाता है। हाथ का रंग लाल होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता होती है और क्रोध अधिक आता है तथा देर तक रहता है। ऐसे व्यक्तियों के शरीर में पित्त की प्रधानता होती है, अतः ऐसे व्यक्तियों को शराब आदि की लत नहीं डालनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति कोई भी आदत पड़ने पर आसानी से छोड़ नहीं सकते। लम्बा हाथ होने पर यदि लचीला भी हो तो खर्च की अधिक आदत होती है, परन्तु हमेशा ही अधिक खर्च के कारण मानसिक संघर्ष चलता रहता है। जीवन रेखा में दोष या भाग्य रेखा के पास होने पर, न चाहते हुए भी अधिक खर्च करना पड़ता है। जीवन में कुछ अवसर ऐसे भी आते हैं जबकि इनका एकत्रित किया हुआ सारा धन खर्च हो जाता है।
ऐसे व्यक्ति इस विषय में सतर्क होते हैं, परन्तु मजबूरी में ऐसा होता है। ऐसे व्यक्तियों की पत्नी व सन्तान का स्वभाव भी तेज होता है। अन्य बातें हाथ के अन्य लक्षणों के अनुसार ही पायी जाती हैं। ऐसे व्यक्तियों का विरोध अधिक होता है। जहां तक सम्भव हो इन्हें क्रोध से बचना चाहिए। रेखाएं अच्छी या निर्दोष होने पर इस प्रकार के मुकद्दमें आदि में जीत होती है। इन हाथों में पित्त के रोग, जैसे अल्सर, शरीर में जलन, आंखों के रोग देखने में आते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कोई न कोई लत अवश्य होती है।
नीला हाथ
कभी-कभी हाथ के रंग में हल्का नीलापन देखने में आता है। इस प्रकार के व्यक्तियों का जिगर खराब होता है या अत्यधिक शराब पीने से भी हाथ के रंग में नीलापन होता है। ऐसे व्यक्ति यदि इस प्रकार की आदत नहीं छोड़ते तो मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अतः इस प्रकार की आदतों से इन्हें सावधान रहना चाहिए। तम्बाकू आदि अधिक खाने से भी हाथ में नीलापन उभर आता है।
गहरा लाल या काला हाथ
ऐसे व्यक्तियों मे क्रोध व उग्रता अधिक होती है और इन्हें कोई न कोई आदत, जैसे शराब पीना आदि अवश्य पायी जाती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में निराश रहते हैं। धन कमाने की ओर इनका ध्यान अधिक होता है, अतः इस कार्य में गलत साधनों
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का प्रयोग करते हैं। इन्हें संघर्ष भी अधिक करना पड़ता है और जीवन में रुकावट ही रुकावट चलती है। ऐसे व्यक्तियों को जेल का भी डर होता है। हाथ में अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर ये जेल भी जाते हैं। काले हाथ वालों की सन्तान निकम्मी होती है और सन्तान की संख्या भी अधिक होती है। रेखाओं में दोष होने पर इन्हें आरम्भ में सन्तान सम्बन्धी बाधा होती है। हाथ उत्तम प्रकार का होने पर व्यवसायिक कार्य में सफलता मिल जाती है। जीवन में कई बार ऐसे समय आते हैं जबकि कमाया हुआ धन बराबाद हो जाता है। अपना काम निकालने के लिए ऐसे व्यक्ति उचित-अनुचित सब प्रकार के उपाय करते हैं। ये बलात्कार व अप्राकृतिक मैथुन भी करते देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति झूठे या चापलूस होते हैं। बिना बात झगड़ा करते हैं। ये व्यक्ति दूसरे की तारीफ करके व फंसाने में माहिर होते हैं और कई चोरी करते देखे जाते हैं। यदि हाथ पतला हो तो इन्हें जीवन भर सफलता नहीं मिलती, अनेक झंझट साथ लगे रहते हैं और अन्त में असफलता ही हाथ लगती है। ऐसे व्यक्ति क्रूर देवताओं की उपासना में बहुत शीध्र सफल होते हैं। ____ काले रंग का हाथ देखने में कठिनाई होती है। व्यक्ति का रंग काला होने पर हाथ का रंग भी काला होता है, अत: इसका निर्णय सावधानी से करना चाहिए। काले व्यक्ति के हाथ की नाखूनों से ही इसकी ठीक पहचान हो पाती है। काला हाथ होने पर उंगलियां मोटी, टेडी, भाग्य रेखा मोटी, बुध की उंगली तिरछी, मस्तिष्क रेखा का अन्त मंगल पर होने की दशा में, ऐसे व्यक्तियों को जेल यात्रा करनी पड़ती है। ऐसे व्यक्ति जब भी जेल जाते हैं, कारण असामाजिक कार्य ही होता है। अतः अन्य लक्षणों का सोच-समझकर विश्लेषण करने के पश्चात् ही इस प्रकार के फल कहने चाहिएं। मृत्यु दण्ड प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के हाथ गहरे लाल भी देखे जाते हैं। इन्ही लोगों में से कुछ गोली, छुरा-चाकू, लाठी, तेज रफ्तार की गाड़ी व तेज जलधारा से मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
दाग़-धब्बे वाला हाथ
हाथ में कभी-कभी काले व लाल दाग-धब्बे दिखाई देते हैं। ऐसे दाग अधिक गहरे होने पर व्यक्ति के खून में दोष होता है। ऐसे व्यक्तियों को सुजाक, आतशक जैसे भयानक रोग पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति स्नायु सम्बन्ध में कमजोर होते हैं। हृदय और मस्तिष्क रेखा एक होने की दशा में ऐसी बातें अवश्य ही देखने में आती हैं। ऐसी स्त्रियों को मासिक धर्म के रोग होते हैं।
कभी-कभी सारे हाथ में ही सफेद व लाल रंग के छोटे-छोटे धब्बे नजर आते हैं। ये धब्बे स्पष्ट नहीं होते और न ही देखने में अप्राकृतिक लगते हैं। ऐसे धब्बे होने
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पर व्यक्ति को धन लाभ तथा स्त्री को सन्तान लाभ होता है। स्त्री के हाथ में ऐसे लक्षण गर्भाधान के समय उपस्थित होते हैं, साथ ही व्यक्ति को आर्थिक लाभ भी होता है। अत: इस प्रकार के धब्बे गुण हैं। कुछ धब्बे बताये हुए काले तथा लाल धब्बों की अपेक्षा देखने में बिल्कुल अलग होते हैं। रोग सूचक धब्बे हाथ में कहीं-कहीं और विशेष बड़े देखे जाते हैं।
ठण्डा हाथ
ठण्डे हाथ ऐसे व्यक्तियों के होते हैं, जिनके शरीर में खून की कमी होती है। ऐसे व्यक्ति घबराते अधिक हैं तथा इनका रक्तचाप भी लो होता है। ऐसे व्यक्तियों को यौन सम्बन्धी कमजोरी होती है। स्त्री होने की दशा में इन्हें गर्भाशय के रोग, जैसे श्वेत-प्रदर, बच्चेदानी खिसकना, गर्भाशय में रसौली, छाती में दर्द आदि रोग देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति की कामशक्ति का निरन्तर ह्रास होता जाता है। ऐसे व्यक्ति की निम्न रक्तचाप के कारण बहू-मूत्र रोग हो जाता है, परन्तु मधुमेह नहीं होता।
गरम हाथ
हाथ छूने पर कभी-कभी अप्राकृतिक रूप से गरम होता है। गरम होने पर यह बीमारी का लक्षण है। कई व्यक्तियों के हाथ स्वास्थ्य अच्छा होने के बावजूद भी गरम रहते हैं। परन्तु ऐसे हाथ अधिक गरम नहीं होते। इस प्रकार के व्यक्ति धनी होते हैं
और शीघ्र ही उन्नति करते हैं। अत्यधिक गरम हाथ वाले व्यक्ति कामुक होते हैं। इनके पेशाब में जलन रहती है या वीर्य में अम्लपित्त का प्रभाव पाया जाता है। विशेष गरम हाथ शरीर में अम्ल या पित्त की अधिकता के कारण होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को चाय, अण्डे, मछली, मांस जैसी गरम वस्तुओं तथा शराब, तम्बाकू आदि से दूर रहना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु अधिकांश नस फटने से होती है।
खाली हाथ
जिन व्यक्तियों के हाथों में हथेली के मध्य में गहरा गड्ढा होता है, उन्हें खाली हाथ वाले व्यक्ति कहते हैं। ऐसे व्यक्तियों के गले में खुश्की व पेट के रोग होते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़े होते हैं। दूसरों का मजाक तो बना सकते हैं, परन्तु अपना मजाक होने पर इन्हें बुरा लगता है। ऐसे व्यक्ति कभी कम और कभी ज्यादा बोलते हैं। इनके दांत खराब होते हैं और पैर में प्राय: चोट लगती है। ये अधिक सोचने वाले होते हैं। आर्थिक दृष्टि से ये देर से सफल होते हैं, परन्तु इनकी सफलता से परिजनों तथा इनके मित्रों को भी लाभ होता है। ये व्यक्ति दयालु तथा दानवीर होते हैं, चाहे इनके पास कुछ भी देने के लिए न हो, इनका मन अपना सब कुछ दान
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देने को चाहता है, जिस कारण ये कभी-कभी स्वयं बहुत परेशान रहते हैं, परन्तु दूसरों को परेशान देख कर इनका दिल दहल जाता है। छोटे बच्चों पर इन्हें अत्यधिक प्रेम आता है और बच्चों को ये अच्छी शिक्षा देते हैं, जिससे बच्चे इनका गुणगान करते
अंगठा
हाथ की बनावट से जातक की प्रकृति, चरित्र या स्वभाव का अध्ययन करने में अंगूठे को वही स्थान प्राप्त है, जो मुखाकृति के अध्ययन में नाक को। अंगूठा जातक की स्वाभाविक इच्छा शक्ति का प्रतीक है, जबकि मस्तिष्क रेखा से उसकी मानसिक-शक्ति का ज्ञान होता है। पूरा अंगूठा तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता हैप्रेम, तर्क और इच्छा-शक्ति। प्रेम का स्थान अंगूठे के मूल में होता है, जिसको शुक्र का क्षेत्र घेरे रहता है। दूसरे पर्व से तर्क का विचार होता है और प्रथम से इच्छा शक्ति की जानकारी प्राप्त होती है। जो अंश छोटा हो, जातक में उसी के गुणों की कमी होती है।
अंगूठे मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- लचकदार और दृढ़ जोड़ वाले। लचकदार अंगूठा वह होता है जो अपनी गांठ पर ऐसा लचकदार होता है कि सरलता से उसका ऊपरी भाग पीछे की ओर मुड़ जाए।
चित्र : 6 लचकदार अंगूठे के स्वामी स्वभाव से अदृढ़ होते हैं। वे रूढ़िवादी नहीं होते और खुले दिल के होते हैं। जैसी परिस्थितियां सामने आयें, वे अपने आपको उन्हीं के अनुकूल बना लेते हैं। उनका स्वभाव हठी । भी नहीं होता, यदि मस्तिष्क रेखा सीधी न होकर नीचे की ओर झुकाव लेती हो तो। यदि मस्तिष्क रेखा सीधी हो तो वे अधिक लौकिक रीति के अनुसार काम करने वाले बन जाते हैं। लचकदार अंगूठे वाले तन, । मन, धन से उदार हृदय होते हैं। दृढ़ जोड़ वाले अंगूठे वालों के मुकाबले चित्र : 7 ये लोग अधिक फिजूल खर्च करने वाले होते हैं। वे देते अधिक हैं, लेते कम हैं।
अंगूठा जितना ही हाथ के किनारे के निकट हो, उतना ही जातक में वस्तुओं को रोककर रखने की प्रवृत्ति होती है। जो लोग कंजूस होते हैं, उनके अंगूठे हाथ के किनारे से अधिक निकट होते हैं।
लचकदार अंगूठे वाले किसी भी बात में क्षणभर में निर्णय कर लेते हैं, परन्तु दृढ़ जोड़ के अंगूठे वाले बिना पूर्णरूप से सोच-विचार किये किसी निर्णय पर नहीं
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पहुंचते। हां, एक बात है कि यदि किसी ने लचकदार अंगूठे वाले से कोई कृपा की मांग की हो तो वह उस मांग को तुरन्त पूरा कर देगा, परन्तु यदि मांगने वाले ने कुछ सोच-विचार का समय उसे दे दिया तो सम्भव है, वह अपने वचन से बदल जाये। दृढ़ जोड़ वाले अंगूठे के जातकों में यह विशेषता होती है कि वह किसी की मांग को अस्वीकार कर देता है। परन्तु यदि सोच-विचार कर उसे मांग उचित लगी तो वह उसे स्वीकार कर लेता है। परन्तु एक बार जब वह अपने निर्णय पर पहुंच जाता है, तो कोई कुछ भी कहे, वह उसे नहीं बदलता।
इस प्रकार दृढ़ जोड़ वाले अंगूठे का स्वामी अधिक दृढ़, निश्चित और स्थिर स्वभाव का होता है और जितना ही उसके अंगूठे का प्रथम पर्व बड़ा हो उतनी ही अधिक इच्छा शक्ति की वृद्धि उसमें होती है। इस प्रकार के अंगूठे वाले सरलता और शीघ्रता से मित्र नहीं बनाते। यदि रेल यात्रा कर रहे हों तो अपने आप ही वे सहयात्रियों से घुलमिल नहीं जाते। इसके विपरीत लचकदार अंगूठे वाले अपरिचित व्यक्तियों से शीघ्र ही घुलमिल जाते हैं। लोग उनके प्रति शीघ्र आकर्षित हो जाते हैं। कभी-कभी तो वह अपने मीठे स्वभाव और उदार हृदयता के कारण धोखा भी उठा बैठते हैं।
जब अंगूठा अपने दूसरे पर्व पर या मूलस्थान पर लचकदार हो तो जातक अपने आपको व्यक्तियों के नहीं, परिस्थितियों के अनुकूल बना लेता है। वह उनसे ऊपर उठने का प्रयत्न नहीं करता, बल्कि अपने आपको समझा लेता है कि जैसा समय आ गया है, उसी के अनुकूल चलना उचित होगा।
गदा के आकार का अंगूठा वह होता है जिसका अन्त गदा के समान चौड़ा हो। इस प्रकार के अंगूठे वाले जहां तक इच्छा-शक्ति का प्रश्न है, निम्न श्रेणी के होते हैं। वह अत्यन्त निष्ठुर और हठी होते हैं। यदि किसी बात के विरूद्ध हों तो क्रोध में अन्धे हो जाते हैं। वे अपने ऊपर नियन्त्रण खो बैठते हैं और आवेश में आकर हिंसात्मक कार्य कर डालते हैं। अधिकतर हत्यारों के हाथ के अंगूठे गदा की आकृति के पाये जाते हैं। ऐसे अंगूठे के स्वामी किसी अपराध की योजना बनाकर कार्यान्वित नहीं करते, क्योंकि उनमें अधिक सोच-विचार करने की क्षमता नहीं होती।
आकृति के आधार पर हम अंगूठों का वर्गीकरण निम्न प्रकार कर सकते हैं-- लम्बा अंगूठा
लम्बा अंगूठा व्यक्ति में मानव-सुलभ गुणों का परिचायक है। ऐसे व्यक्ति उदार, शांत, बुद्धिमान, शौकीन, मानव-गुण सम्पन्न एवं विशाल हृदय होते हैं। यदि अंगूठा लम्बा होकर बृहस्पति की उंगली के द्वितीय पोर तक जाता हो तो ऐसे व्यक्ति जज व निर्णायक होते हैं। इन व्यक्तियों में निर्णय व नियन्त्रण शक्ति उत्तम होती है। अतः कामवासना या अन्य कुत्सित भावना को नियंत्रित करने की इन जैसी शक्ति दूसरे व्यक्तियों में नहीं देखी जाती। ऐसे व्यक्तियों को महामानव कहा जा सकता है। ये
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दूसरे के लिए बुरी बात सोच भी नहीं सकते, बुरा करना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे व्यक्ति जीओ और जीने दो के सिद्धान्त वाले होते हैं, परन्तु इनमें अहम की भावना होती है।
अंगूठा लम्बा होने पर यदि मस्तिष्क रेखा निर्दोष और बुध की उंगली व उसका नाखून उत्तम हो तो ऐसे व्यक्ति विशेष कुशल निर्णायक एवं न्यायमूर्ति होते हैं। किसी बात को बहुत शीघ्र समझकर दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं। इनकी परख बहुत उत्तम होती है। इनके दिए हुए निर्णय में संशोधन की गुंजाइश नहीं होती। उलझी से उलझी बात का सार अतिशीघ्र लेते हैं। अतः अंगूठा लम्बा होना हाथ व मानवता के मूल्यों में वृद्धि करता है। ऐसे व्यक्ति आवेश या भावुकता के वशीभूत होकर कोई कार्य नहीं करते। सोच-समझ कर हानि-लाभ का निर्णय लेकर ही किसी कार्य को करते हैं। ये पूर्णतया बुद्धिवादी होते हैं। प्रबन्ध शक्ति व ग्रहण शक्ति इनमें उत्तम कोटि की होती है। ऐसे व्यक्ति समय के पाबन्द, जुबान के पक्के व अनुशासित होते हैं।
छोटा अंगूठा
छोटा अंगूठा व्यक्ति में ज्ञान की कमी व पशुत्व होने का चिन्ह है। ऐसे व्यक्ति क्रोधी, वहमी, जल्दबाज, अकडू, छोटा काम करने वाले, अधिक मेहनत करने वाले आदि होते हैं। ऐसे व्यक्ति के घर का वातावरण ठीक नहीं रहता। अंगूठा छोटा होने पर यदि मोटा भी हो तो परिवार के व्यक्तियों से विरोध चलता रहता है। भावुकता में आकर ऐसे व्यक्ति अपनी सम्पत्ति आदि छोड़ बैठते हैं, लेकिन सहायता का वचन देने पर ये किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति की सहायता करते हैं। ऐसे व्यक्ति की पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, क्योंकि ये अधिक वासनात्मक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की पत्नी को गर्भपात का सामना करना पड़ता है। ये जिद्दी या अधिक बहस करने वाले होते हैं। मस्तिष्क रेखा में थोड़ा भी दोष होने पर इनकी आदत गाली बकने वाली होती है। स्त्री व बच्चों पर हाथ उठाने में इन्हें देर नहीं लगती। ये बच्चों को छोटी-छोटी बात पर मारते व गाली बकते हैं।
अंगूठा छोटा होने पर पतला हो, उंगलियां पतली हों तो व्यक्ति में विवेक बढ़ कर उपरोक्त दुर्गुणों में कमी हो जाती है, फिर भी कुछ न कुछ ऊपर बताए दुर्गुण रहते ही हैं।
मोटा अंगूठा
मोटे अंगूठे के गुण, छोटे अंगूठे से लगभग मिलते-जुलते हैं। ऐसे व्यक्ति भी क्रोधी, जल्दबाज व सीधे होते हैं और दूसरे का हस्तक्षेप कम पसन्द करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को क्रोध जल्दी आता है और देर तक रहता है। जब तक बात साफ नहीं
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होती, तब तक मस्तिष्क में रोष बना रहता है।
मोटा अंगूठा यदि लम्बा भी हो तो ऐसे व्यक्ति झगड़ा कम पसन्द करते हैं, परन्तु सिर पर आ जाने पर हिम्मत से लड़ने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति किसी पक्ष अथवा विपक्ष में बोलना पसन्द नहीं करते, परन्तु यदि वास्तव में अन्याय होता है तो चिल्ला-चिल्ला कर न्याय का पक्ष लेने वाले होते हैं।
ऐसे व्यक्ति के गृहस्थ जीवन में कोई न कोई परेशानी खड़ी रहती है। सम्बन्धी, मित्र आदि में भी इनका विरोध होता है। किसी बच्चे का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। घर में खर्च अधिक रहता है। ऐसे व्यक्ति संतान संख्या पर भी नियन्त्रण नहीं रखते। उंगलियां पतली होने पर इस विषय में अवश्य ही सोचते हैं।
कठोर या न झुकने वाला अंगूठा
ऐसा अंगूठा लम्बा, मोटा, किसी भी प्रकार का हो सकता है, परन्तु यह पीछे की ओर नहीं मुड़ता। इस प्रकार का अंगूठा होने पर व्यक्ति मेहनती, ईमानदार व दृढ़ प्रतिज्ञ होते हैं। ऐसे व्यक्ति कोई भी निश्चय करने पर उसे मरते दम तक पूरा करने वाले होते हैं। हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर ये किसी भी कार्य को पूरा करके ही दम लेते हैं। ऐसे व्यक्ति खुलकर विरोध करने वाले होते हैं, अतः इनका भी विरोध होता है। ये स्वनिर्मित व संघर्ष के पश्चात् जीवन बनाने वाले होते हैं और निरन्तर सफल होते चले जाते हैं। घर में ऐसे व्यक्ति का व्यवहार अच्छा नहीं होता, पत्नी व बच्चों को दबा कर रखते हैं। इनकी सन्तान भी जिद्दी व स्वभाव की सख्त होती है। पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। अंगूठा पतला व लम्बा होने पर उपरोक्त लक्षण में पर्याप्त अच्छे गुणों का समावेश हो जाता है। मोटा व छोटा अंगूठा होने पर व्यक्ति में दुर्गुण अधिक आ जाते हैं।
न झुकने वाला अंगूठा मोटा व छोटा भी हो तो ऐसे व्यक्ति अपमान का बदला अवश्य लेते हैं तथा मौके की तलाश में रहते हैं।
पतला व लम्बा होने पर व्यक्ति उन्नतिशील, भाग्यशाली, अपने काम की ओर ध्यान रखने वाले, दूसरों का हस्तक्षेप सहन न करने वाले और निरन्तर उन्नति की ओर बढ़ने वाले होते हैं। अन्त में ये बहुत सफल होते हैं। सख्त व लम्बा अंगूठा फौज के अफसरों के हाथ में देखा जाता है। ऐसे व्यक्ति सत्यनिष्ठ, कर्त्तव्यनिष्ठ और वफादार होते हैं।
झुकने वाला (नरम व लचीला) अंगूठा.
पीछे की ओर मुड़ने वाला व नरम अंगूठा सुलभ गुणों का परिचायक है। ऐसे व्यक्ति सबसे प्रेम करने वाले होते हैं। परन्तु जिससे ये नाराज हो जाते हैं, उससे जीवन
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भर नहीं बोलते। ये उससे बिगाड़ते भी नहीं। उसे बातचीत करने का अवसर नहीं देते, ऐसे व्यक्ति 20 वर्ष की आयु तक भावुक होते हैं और हृदय शीघ्र द्रवित हो जाता है। उस स्थिति में यह आंसू बहाने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति कोई बात छिपाकर नहीं रख सकते। अपने मन की बात कह कर इनके सभी भेद लेना बहुत आसान है। उस दशा में ये अपने गुप्त रहस्य भी कह डालते हैं। इनका जीवन खुली किताब होता है। ऐसे व्यक्ति संघर्षशील जीवन व्यतीत करने के पश्चात् सुखी होते हैं और पूर्णतया स्वनिर्मित होते हैं। ये भावुक, विद्वान व दयालु होते हैं और व्यर्थ की बात पसन्द नहीं करते। मस्तिष्क रेखा अच्छी होने पर इनमें सहनशीलता अधिक होती है।
ऐसे व्यक्ति झगड़ा पसन्द नहीं करते। व्यर्थ के झगड़ों में पड़ना इनके वश की बात नहीं। हमेशा ही स्पष्ट बात कहने से घबराते हैं। परन्तु यदि कहनी ही पड़े तो स्पष्टवक्ता होते हैं। ऐसे व्यक्तियों से रिश्तेदार, नौकर, मित्र आदि सभी लोग लाभ उठाते हैं और ये यथाशक्ति सभी की सहायता करने वाले होते हैं। किसी भी पक्ष को नाराज नहीं करते। निर्णय देते समय ऐसे व्यक्ति ऐसा निर्णय देते हैं जो दोनों पक्षों को मान्य होता है। बीच-बचाव करके समझौता कराने के गुण ऐसे व्यक्तियों में विशेषता देखे जाते हैं। हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर हों तो ये दूध का दूध, पानी का पानी कर देते हैं। दूसरों के प्रभाव में ये शीघ्र आ जाते हैं और वहमी होते हैं। विश्वास करते हैं तो ये हानि भी उठाते हैं। ऐसे समाज में जहां इनके विचारों में समानता नहीं होती, ये अलग हट जाते हैं या उस समाज अथवा पार्टी का बहिष्कार कर देते हैं। सम्बन्धविच्छेद होने के पश्चात् न उधर जाते हैं, न ही कभी उस विषय में सोचते हैं। सिद्धान्त के विषय में ये दृढ होते हैं, अपने जीवन के नियम व सिद्धान्तों का निश्चित रूप से पालन करते हैं। मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर इन्हें बरदाश्त कम होता है। अत: विचार विषमता होने पर कटु आलोचना करने वाले होते हैं। आरम्भ में ऐसे व्यक्ति खर्चीले और जल्दबाज होते हैं। दीन व हीन व्यक्ति के प्रति ये सदैव ही उदार होते हैं तथा पात्रता को न देखते हुए सहायता करते हैं। कितना भी विरोध होने पर ये किसी से बिगाड़ते नहीं। बल्कि सम्पर्क कम कर देते हैं या उस वातावरण से दूर हट जाते हैं। परन्तु यदि किसी कारणवश बिगड़ भी जाए, तो जीवनभर बोलचाल या मेलजोल होने की नौबत नहीं आती। हां, क्षमा मांगने पर क्षमा अवश्य कर देते हैं।
स्त्रियों में भी उपरोक्त गुण होते हैं। ऐसी स्त्रियां किसी बात को महसूस अधिक करती हैं। उदार व दयालु होती है। अतः दयावश अन्य व्यक्तियों के द्वारा हानि सहन करती हैं। दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आने से ये कई बार कई प्रकार की हानि उठाती हैं। ये जल्द ही प्रसन्न और जल्द ही नाराज हो जाती हैं। अन्ततोगत्वा प्रसन्न ही रहती हैं। ऐसे व्यक्ति जहां भी जाते हैं, इन्हें प्रेम व सौहार्द का वातावरण मिलता है। विचारों
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के भी ये क्रांतिकारी होते हैं। किसी से प्रेम या आस्था होने पर दूसरे सभी चाहे बुरा कहें, अपने मुंह से उसे उस समय तक बुरा नहीं कहते जब तक स्वयं उसकी कोई बुराई आंखों से देख न लें या उनके अनुभव में उसके दुर्गुण न आ जाएं। स्वयं देखने पर धीरे-धीरे सम्बन्ध समाप्त कर देते हैं। ऐसे व्यक्तियों में सहनशीलता व स्पष्टवादिता दोनों की ही हद होती है। रेखाओं में दोष न होने पर ये बहुत सफल होते हैं। इस प्रकार के अंगूठे के साथ यदि मस्तिष्क रेखा मंगल पर जाती हो तो कठोर होते हैं। यदि यह रेखा चन्द्रमा पर जाती हो तो भाव-विह्वल, महामानव और एकान्त प्रिय होते
अंगूठा कम खुलने वाला
ऐसा अंगूठा हथेली के साथ प्रायः 30° या 45° के लगभग कोण बनाने वाला होता है। 90° से कम खुलने वाला अंगूठा, कम खुलने वाला ही माना जाता है। अंगूठे का कम खुलना भी एक दोषपूर्ण लक्षण है। अंगूठा कम खुलने की दशा में व्यक्ति देर से सफल होता है। वास्तव में अंगूठे के कम खुलने पर हाथ के मूल्य पर प्रभाव पड़ता है। कितना भी अच्छा हाथ हो, अंगूठा कम खुलने पर उसके अच्छे गुणों का प्रभाव देर से होता है। अतः अंगूठा कम खुलना हाथ के मूल्य में हानि करता है। हाथ के दोषपूर्ण लक्षण व रोग-सम्बन्धी निर्देश भी अंगूठा कम खुलने की दशा में अधिक प्रभावशाली होते हैं अर्थात् हाथ में थोड़ा भी दोष होने पर उनका प्रभाव अनुमान से अधिक हो जाता है।
ऐसे व्यक्ति सीधे, छलहीन, विश्वास करने वाले, दूसरों पर निर्भर करने वाले, मिजाज के सख्त व क्रोधी और स्पष्टवक्ता होते हैं। इनके प्रत्येक कार्य में रुकावट पड़ती है। एक स्थान पर भी ऐसे व्यक्ति नहीं रह सकते। इनकी पढ़ाई में भी रुकावट पड़ती है। होता सब इनके अपने गुणों के कारण ही है। इन व्यक्तियों को स्थायित्व देर से प्राप्त होता है। देखा जाता है कि ये 30 वर्ष की आयु के पश्चात् ही उन्नति करते हैं क्योंकि ये थोड़ी-सी बात पर ही अधिक अपमान महसूस
चित्र:8 करने वाले होते हैं और काम बदलते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों की अपने जीवन साथी से कम बनती है, अत: गृहस्थ जीवन भी शान्तिपूर्ण नहीं रहता। बच्चों का स्वास्थ्य भी बचपन में ठीक नहीं रहता। बच्चे भी क्रोधी व जिद्दी होते हैं और सभी बच्चे
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आरम्भ में पढ़ाई में ध्यान नहीं देते। पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता । उसे कोई न कोई रोग अवश्य चलता ही रहता है। पति से भी कम बनती है और उनसे अलग रहना पड़ता है, चाहे परिस्थितिवश ही सही। किसी काम धन्धे के विषय में विचार करते समय देखना चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों को पहले नौकरी ही करनी चाहिए और ये नौकरी करते भी हैं। ये अधिक धनी नहीं होते और न ही अधिक नकद बचा सकते
हैं।
अंगूठा कम खुलने पर यदि छोटा भी हो तो दूसरे के प्रभाव में आकर इनमें चरित्र दोष आ जाता है और जीवन बरबाद कर बैठते हैं। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर हो तो एक गलती को कई बार दोहराने वाले देखे जाते हैं। अंगूठा कम खुलने पर यदि भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी हो और शुक्र उन्नत हो तो चरित्र दोष के कारण तबाही हो जाती है। उधार देकर ऐसे लोग मांगते नहीं। बात समझदारी की करते हैं और कार्य मूर्खों जैसे। अपनी बू में रहते हैं और एकदम घबरा जाते हैं। ठोकर खाने के बाद गलतियां कम करते हैं और जीवन सुचारु रूप से चलने लगता है। हाथ सख्त होने पर अंगूठा कम खुलता है और भाग्य रेखा गहरी हो तो भाग्य रेखा की समाप्ति के समय ये पुंसत्व में कमी महसूस करते हैं। यह कमी इतनी बढ़ जाती है कि अपने आपको नपुंसक समझने लगते हैं ।
स्त्रियों के हाथ में उपरोक्त लक्षण होने पर ऐसी स्त्रियों को स्नायु विकार हो जाता है। शुक्र व चन्द्रमा अधिक उठा होने पर, मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर होने पर या उसमें दोष होने पर इनको हिस्टीरिया के दौरे पड़ना आदि रोग पाये जाते हैं।
अंगूठा छोटा होने पर कम खुलता हो, उंगलियां टेड़ी मेड़ी हों तो ऐसे व्यक्ति का निवास गन्दे स्थान पर होता है। चारों ओर गन्दगी रहती है। जहां ये लोग बैठते हैं व काम करते हैं, वहां भी गन्दगी रहती है। हो सकता है कि कूड़ाघर या गन्दानाला हो । उंगलियां मोटी होने पर इनकी सन्तान में स्वास्थ्य व चरित्र - दोष पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों के बच्चे टायफाइड, दौरे पड़ना, टांग टूटना, दांत खराब होना, आंख कमजोर होना आदि रोगों से पीड़ित रहते हैं। व्यक्ति के जीवन के हर क्षेत्र में अंगूठा कम खुलना ऋणात्मक प्रभाव रखता है और रेखाओं की दशा अच्छी होने के समय तक जीवन में अनेक प्रकार की कमी चलती रहती है। अंगूठा लम्बा होने पर कम खुलता हो तो व्यक्ति का क्रोध पर नियन्त्रण होता है। ऐसे व्यक्ति उन्नति करते हैं तथा परिवार व समाज में पूर्ण सम्मान प्राप्त करते हैं।
टोपाकार अंगूठा
कभी-कभी अंगूठे की अन्तिम पोर एक गांठ का रूप ले लेता है या यह बहुत
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छोटा होता है तो यह लक्षण भी हाथ में दोषपूर्ण लक्षण है। ऐसे व्यक्ति हाथ पतला होने पर जीवन के किसी क्षेत्र में भी सन्तुष्टि प्राप्त नहीं करते । इनकी पत्नी का स्वास्थ्य खराब रहता है या दो विवाह होते हैं। ऐसे व्यक्ति की पत्नी को प्रदर तथा कमर में दर्द रहता है। सन्तान का स्वास्थ्य खराब रहता है या उसमें चरित्रदोष की सम्भावना रहती । है। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान लापरवाह व स्वतन्त्र मस्तिष्क होती है चित्र : 9
और पढ़ने की ओर ध्यान नहीं देती। हाथ भारी होने पर ऐसे व्यक्ति उन्नति करते हैं, परन्तु इनके क्रोध की कोई सीमा नहीं होती। अत्यधिक स्पष्ट वक्ता ही नहीं, कठोर बोलने वाले होते हैं। अतः इनका सर्वत्र विरोध होता है। इनसे परिवार का कोई भी व्यक्ति या सम्बन्धी प्रसन्न नहीं रहता। उंगलियां सख्त होने पर तो उपरोक्त दुर्गुणों की हद हो जाती है। अंगूठा टोपाकार होकर मोटा भी हो तो कहना ही क्या। इनके अपने मित्रों से लगातार व अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते।
___ अंगूठा पतला होने की दशा में व्यक्ति में नियन्त्रण शक्ति पाई जाती है और उंगलियां भी पतली हों तो व्यक्ति में क्रोध आदि को छोड़कर अन्य विशेष दुर्गुण नहीं होते। उंगलियां सख्त या अंगूठा मोटा होने या मस्तिष्क रेखा मंगल रेखा से निकलने पर, ऐसे व्यक्ति हत्यारे होते हैं। अतः ऐसे व्यक्तियों को अधिक क्रोध न करने की सलाह देनी चाहिए अन्यथा इनके हाथ से किसी की हत्या की सम्भावना होती है। किसी न किसी सन्तान में भी उपरोक्त दुर्गुण पाये जाते हैं। लड़के की पत्नी व लड़के में भी आपस में नहीं बनती। मारा-पीटी होती रहती है। टोपाकार अंगूठा प्रत्येक काम में विघ्न उपस्थित करता है। शत्रुओं की संख्या अधिक होती है। ऐसे व्यक्ति शक्की व खुलेआम आलोचना करने वाले होते हैं। निश्चय ही ये सीधे औः सहायता करने वाले भी होते हैं। झूठी बात बरदाश्त करना इनके बस की बात नहीं और ताना आदि भी ये नहीं सुन सकते। .
स्त्री के हाथ में उपरोक्त लक्षण होने पर क्रोध में ऐसी स्त्रियां आत्महत्या का प्रयत्न करती हैं। अत्यन्त क्रोधी होती हैं। रूठ कर मायके चले जाना, क्रोध में आकर बच्चों को पीटना व अन्य नुकसान करना ऐसी स्त्रियों का स्वभाव होता है। छोटी-छोटी बातों पर तूफान खड़ा कर देती हैं। जीवन भर ऐसी स्त्रियों का गृहस्थ जीवन शान्तिपूर्ण नहीं रहता। ___ हाथ गुलाबी, मस्तिष्क रेखा छोटी (सूर्य के नीचे तक) उंगलियां पतली होने पर ऐसे व्यक्ति व्यवहारिक, आगे-पीछे का ख्याल रखने वाले होते हैं।
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H. K. S-3
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पतला अंगूठा
अंगूठा पतला होने पर व्यक्ति में नियन्त्रण शक्ति की । अधिकता होती है। ऐसे व्यक्ति क्रोध, भावुकता, वासना आदि
दुर्गुणों पर भली-भांति नियन्त्रण रखते हैं। अंगूठा पतला होकर लम्बा भी हो तो दिखावे का क्रोध करते हैं, ऐसे व्यक्ति
कहने-सुनने का बुरा नहीं मानते हैं। अगर इन्हें कोई बात चुभती चित्र : 10
भी है तो ये अपने मन में ही रखते हैं। ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान, स्वयं को देखकर चलने वाले, ईमानदार, दयालु व शीघ्र निर्णय लेने वाले होते हैं। अत: जीवन में लगातार सफल होते चले जाते हैं। अंगूठा छोटा व टोपाकार होने पर भी यदि पतला हो तो इनके दुर्गुणों में किसी हद तक कमी हो जाती है। झगड़े या क्रोध के समय भी मस्तिष्क पर नियन्त्रण रखते हैं। ये सोचकर व परिणाम को देखकर काम व बात करने वाले होते हैं। ये समयानुकूल चलने के कारण जीवन में कभी असफल नहीं होते। दिन-दूनी व रात चौगुनी उन्नति करने वाले होते हैं। ये गलती को बार-बार नहीं दोहराते। एक बार महसूस करने के बाद उस कार्य को दुबारा नहीं करते। ये उत्तरदायी, अच्छे प्रबन्धक, सबसे अच्छा व्यवहार करने वाले तथा समाज में अच्छा स्थान रखने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तियों का सभी सम्मान करते हैं। शुक्र सम, मस्तिष्क रेखा दोनों ओर शाखान्वित व हाथ का रंग गुलाबी हो तो ये वन्दनीय एवं देवतुल्य पुरुष होते हैं।
अधिक खुलने वाला अंगूठा
अगूंठा जब खुल कर हथेली से समकोण या अधिक कोण बनाता हो तो उसे हम अधिक खुलने वाला अंगूठा कहते हैं। ऐसे व्यक्ति सहज-गुणवान, बर्दाश्त करने वाले, धैर्य रखने वाले व महान होते हैं। अंगूठे का अधिक खुलना हाथ के मूल्य में वृद्धि करता है। चरित्र में होने वाले गुणों में इससे विशेषता आ जाती है और दुर्गुणों में कमी। अतः इस प्रकार के व्यक्ति लगातार व शीघ्र ही सफल होते देखे जाते हैं। ये क्रोधी नहीं होते। अन्य रेखाओं के प्रभाव से यदि कुछ समय तक क्रोध भी करें तो आगे चलकर इनका क्रोध पूर्णतया समाप्त हो जाता है। समाज में भी ऐसे व्यक्तियों को यथेष्ठ सम्मान मिलता है। ये किसी को भी गलत सलाह नहीं देते और ये जगतमित्र होते हैं। सभी से प्रेम करते हैं, शत्रुता किसी से भी नहीं होती। फलस्वरूप ऐसे व्यक्तियों के शत्रु नहीं होते। उदार होने के नाते पत्नी से अवश्य ही कुछ खटपट हो जाती है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति की पत्नी इन्हें अधिक सहायता करने व अधिक धन खर्च करने के लिए रोकती है। ये परोपकारी और धनी होते हैं। अपनी आवश्यकता को पूर्ण करके दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। अतः उपरोक्त लक्षण हाथ में उत्तम गुण माना
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जाता है। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान भी उदार, धनी, बुद्धिमान एवं सफल होती है। बृहस्पति की उंगली लम्बी होने पर ये महत्वाकांक्षी अधिक होते हैं। अतः स्व-कल्याण की अधिक चिन्ता करते हैं। परोपकार करने के साथ अपना भी पूर्ण ध्यान रखते हैं।
चपटा (चौड़ा) अंगूठा
कई बार अंगूठा गोलाकार न होकर चपटा होता है अर्थात् अंगूठे का ऊपर का पोर चपटा या अधिक चौड़ा होता है। ऐसे व्यक्ति को कोई न कोई आदत जैसे शराब या तम्बाकू पीना होती है। ये खर्च भी अधिक करते हैं व हाथ लाल होने पर ऐसे व्यक्ति रोज ही नशा करते हैं। किसी न किसी दु:ख के कारण ऐसे व्यक्तियों को प्रत्येक काम में रुकावट होती है। पढ़ाई, व्यापार आदि सभी कार्यों में असन्तुष्ट रहते हैं। इनकी मस्तिष्क रेखा अच्छी होने पर भी ये स्वयं की ओर अधिक ध्यान देने वाले नहीं होते। अतः इनके परिवार में सभी उन्नति कर जाते हैं। और ये पीछे रह जाते हैं। इसका कारण केवल इनके कुटेंव हैं। यदि ऐसे व्यक्ति इस प्रकार की आदतें छोड़ दें तो दूसरे व्यक्तियों से भी अधिक उन्नति करने वाले देखे जाते हैं। जब तक ये नशा नहीं करते हैं तब तक परम चतुर होते हैं, परन्तु नशा करने के बाद परम मूर्ख होते हैं। इस दशा में यदि कोई इनकी सहायता भी करना चाहे तो इनसे दूर हो जाता है। उंगलियां छोटी, पतली व हाथ भारी होने पर नियन्त्रित नशा करते हैं और जीवन में सफल होते हैं।
गांठदार व बिना गांठ का अंगूठा
अंगूठा गांठदार होने पर व्यक्ति में निर्णय शक्ति तीव्र होती है। इस प्रकार के अंगूठे के बीच की गांठ मोटी पाई जाती है। ये पूर्णतया सफल नहीं होते परन्तु गांठदार उंगलियां होने पर निश्चय ही सफलता प्राप्त करते हैं। अंगूठा गांठदार तथा उंगलियां बिना गांठ की हों तो साधारण सफलता प्राप्त करते हैं, विशेष नहीं, क्योंकि आलसी व दूसरों पर निर्भर रहने वाले होते हैं।
अंगूठा बिना गांठ का, एकदम चिकना व सुडौल हो तो ऐसे व्यक्ति कल्पनाशील होते हैं। सोचते अधिक हैं व काम कम करते हैं। खराब परिस्थितियों में ऐसे व्यक्ति शीघ्र घबरा जाते हैं और काम को अधूरा छोड़ देते हैं। ऐसे व्यक्ति कोमल शरीर वाले होते हैं। लोक-लाज से डरने वाले होते हैं। कल्पनाशील व्यक्तियों, कलाकारों व साहित्यकारों के हाथों में ऐसे अंगूठे देखने को मिलते हैं। ऐसे व्यक्ति लोकोपकारक, धार्मिक व शुभ चिन्तक होते हैं, परन्तु आलसी व राजसी आदत के होते हैं। हाथ से काम करना व साधारण खान-पान ऐसे व्यक्ति को पसन्द नहीं होता। साधारण नहीं खायेंगे, भूखे रह लेंगे, अतः ऐसे व्यक्ति देर में सफल होते हैं।
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दण्डाकार या गोल अंगूठा
दण्डाकार या गोल अंगूठा जोकि आगे से नुकीला न हो तो नीतिज्ञ होने का लक्षण है, परन्तु यह सन्तान सम्बन्धी परेशानी करता है। इनकी सन्तान लड़ती-झगड़ती रहती है । यदि भाग्य रेखा का झुकाव सूर्य की ओर हो तो निश्चय ही ऐसा होता है। ये परिश्रमी, अपने दिमाग से चलने वाले व सफल व्यक्ति होते हैं। आर्थिक दृष्टि से भी पतले अंगूठे वालों से किसी प्रकार पीछे नहीं रहते, लेकिन प्रत्येक कार्य में शीघ्रता का व्यवहार करते हैं। देर होने पर अशान्ति व नींद में बेचैनी अनुभव करते हैं।
दो अंगूठे
अंगूठे एक से अधिक संख्या में होना अच्छा नहीं है। ऐसे व्यक्ति क्रोधी तो नहीं होते, परन्तु शेष सभी लक्षण टोपाकार अंगूठे से मिलते-जुलते होते हैं। ऐसे व्यक्ति अनेक झंझट अपने सिर पर रखते हैं। जल्दबाज व बुद्धिमान होते हैं। ऐसे व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता। नौकरी में होने पर ऐसे व्यक्तियों पर विभागीय कार्यवाही भी होती है या इन्हें बीच में नौकरी बदलनी पड़ती है। व्यापार में होने पर विश्वास के कारण धोखा खाना पड़ता है। घर में भी ऐसे व्यक्ति का व्यवहार कि नहीं होता । आलोचना करना, बात-बात में टोकना, छोटी-छोटी बात में क्रोध करना आदि स्वभाव के होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान विद्वान होती है । सन्तान सम्बन्ध में भी ऐसे व्यक्ति कुछ न कुछ कमी अवश्य महसूस करते हैं। यदि मुख्य अंगूठा लम्बा हो तो दुर्गुणों में कमी होकर ये विद्वान व सफल होते हैं।
लम्बा व चौड़ा अंगूठा क्रोधी व बुद्धिमान व्यक्तियों का होता है, परन्तु ये व्यक्ति स्पष्टवक्ता, सिद्धान्तवादी व स्वतन्त्र विचारक होते हैं। अतः विचारों के विषय में इनकी खिचड़ी अलग पकती है । स्वतन्त्र मस्तिष्क होने के कारण अधिक समय तक सम्मिलित नहीं रह पाते, चाहे व्यापार हो या परिवार ।
उंगलियां
हाथ देखते समय उंगलियों का अध्ययन बहुत महत्व रखता है । उंगलियों का भली-भांति निरीक्षण करना चाहिए, तत्पश्चात् फलादेश देना चाहिए।
सीधी उंगलियां
किसी भी व्यक्ति के हाथ में सीधी उंगलियां होना एक अच्छे गुण की निशानी है । यदि व्यक्ति की सारी उंगली सीधी हों तो व्यक्ति धनी, सफल, सरल हृदय व
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निरन्तर उन्नति करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के मार्ग में रुकावटें कम आती हैं। प्रकृति इनका अधिक साथ देती है। अन्य रेखाएं भी अच्छी होने पर या उंगलियों के आधार समतल होने पर ऐसे व्यक्ति बहुत शीध्र व विशेष उन्नति करते देखे जाते हैं।
उंगलियां टेढ़ी होने पर यदि हाथ उत्तम कोटि का हो तो ऐसे व्यक्ति अन्य ढंग से खोज कार्य करते हैं और शीध्र ही अपना जीवन बना लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों के प्रत्येक कार्य क्रान्तिकारी होते हैं।
दो या अधिक उंगलियों के आधार यदि समान हों तो व्यक्ति के जीवन में उन्नति के अधिक अवसर उपस्थित होते हैं। यदि तीन या चार उंगलियों के आधार नीचे से बिलकुल समतल अर्थात् सरल रेखाओं में हों तो ऐसे व्यक्ति धन, देश व समाज में अपनी गिनती रखते हैं। हाथ की उंगलियों के पोरों से जीवन के वर्षों की गणना की जाती है। अतः इस सिद्धान्त के अनुसार हाथ के जिस पोर पर आड़ी रेखा स्पष्ट रूप से होती हैं, व्यक्ति को उस आयु में किसी न किसी दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। यदि सभी उंगलियों में 3 के स्थान पर 4 पोर हो तो यह जेल यात्रा का निश्चित लक्षण है।
उंगलियों में छेद होना क्रान्तिकारी होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति भी कार्य में अपना महत्व दर्शाते हैं। ये दबकर नहीं रहते, स्वतन्त्र विचारों के व स्पष्टवक्ता होते हैं। उंगलियों में छिद्र होना, हाथ के चमसाकार होने का प्रमुख लक्षण है। अतः ऐसे व्यक्ति विविध विषयों के ज्ञाता होते हैं, चाहे दक्षता किसी एक विषय में ही हो।
उंगलियां सीधी होने के साथ-साथ यदि नुकीली भी हों तो यह व्यक्ति के चरित्र में कलात्मकता का चिन्ह है। ऐसे व्यक्तियों का मस्तिष्क कल्पनाशील, विचारशील तथा प्रकृति प्रेमी होता है। मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर ऐसे व्यक्ति पढ़ाई में अधिक रूचि नहीं लेते। नुकीली उंगलियां होने के साथ-साथ हाथ भी कठोर हो तो परिवार में पेटदर्द, सिर में भारीपन, दौरे पड़ना, टांगों में दर्द रहना आदि बीमारियां किसी न किसी को अवश्य पाई जाती है। ___दोनों हाथों को सामान्य रूप से सीधा रखने पर जिस उंगली का पोर दूसरी उंगलियों के पोर की अपेक्षा अधिक उभरा दिखाई देता है, यह उस उंगली के ग्रह सम्बन्धी विशेष महत्व का लक्षण है। जैसे बृहस्पति की उंगली का पोर उभरा होने पर अहम्, बातचीत में गम्भीरता और महत्वाकांक्षा, शनि की उंगली का पोर उभरा होने पर धन की लालसा, अध्यात्म विषय में जिज्ञासा तथा रहस्य जानने की अभिलाषा, सूर्य का पोर उभरा होने पर प्रतिष्ठा, यश, आकांक्षा तथा सबसे सुन्दर व्यवहार व चिन्तनशीलता तथा बुध की उंगली का पोर उभरा होने पर वक्तृत्व शक्ति में संक्षिप्तता, सुन्दर व प्रभावशाली गुणों का द्योतक है। सत्य तो यह है कि इनके कहने की शैली विचित्र होती है।
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छोटी उंगलियां
इस प्रकार की उंगलियों वाले व्यक्ति निजी लाभ की ओर अधिक ध्यान देने वाले होते हैं। ये पहले स्वयं के विषय में सोचते हैं तथा बाद में समाज आदि के विषय में सोचते हैं। उदार भावनाओं का विचार करने वाले होते हैं। हाथ उत्तम होने पर पतली व छोटी उंगलियों वाले व्यक्ति समझदार, विवेक से खर्च करने वाले तथा हर परिस्थिति को अपने नियन्त्रण में रखने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति अधिक सन्तान पैदा करना पसन्द नहीं करते तथा व्यर्थ में घूमना, इधर-उधर समय बिताना या दूसरों पर निर्भर रहना इनको पसन्द नहीं होता। ऐसे व्यक्ति वही काम करते हैं जो इन्हें लाभप्रद लगता है। ऐसे व्यक्तियों के पास नकद पैसा अधिक पाया जाता है।
शिक्षा के विषय में सोचते समय ये पहले शिक्षा के मूल्य की ओर ध्यान देते हैं। अतः इस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते हैं, जिसमें आगे चलकर लाभ हो। प्रायः ऐसे व्यक्ति व्यापारिक शिक्षा में प्रवेश करते हैं।
इनके मित्र अधिक नहीं होते। मित्र बनाते समय भी ऐसे व्यक्ति यह ध्यान रखते हैं कि भविष्य में इनसे लाभ ही होना चाहिए। जिन स्थानों पर या जिन व्यक्तियों से इनको हानि होती है, वहां से ये दूर ही रहते हैं। ऐसे व्यक्ति मित्रों से लाभ उठाते
हैं।
लम्बी उंगलियां
लम्बी उंगलियों वाले व्यक्ति उदार, शान्त, निश्चिन्त, परिवार की सहायता करने वाले, चरित्रवान व दयालु होते हैं। ऐसे व्यक्ति जगत मित्र होते हैं। ये अपना काम छोड़कर मित्रों के लिए घूमते रहते हैं। भाग्य रेखाएं अधिक होने पर ऐसे व्यक्ति यदि धनी भी हों तो उदार, दानी व दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं।
लम्बी उंगलियों वाली स्त्रियां शीघ्र ही दूसरों के प्रभाव में आ जाती हैं, अतः चरित्र सम्बन्धी हानि उठाने का डर रहता है। ऐसी स्त्रियों को पुरुषों से अधिक नहीं मिलना-जुलना चाहिए।
लम्बी उंगलियों वाला व्यक्ति धन की ओर अधिक ध्यान नहीं देता परन्तु बृहस्पति विशेष उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति मोटी रिश्वत खाने वाले होते हैं। उंगलियां लम्बी होने के साथ-साथ यदि पतली भी हों तो व्यक्ति काफी बुद्धिमान होता है। लम्बी उंगलियों वाला व्यक्ति अपने कार्य को बहुत ही उत्तरदायित्व के साथ पूर्ण करता है। उंगलियां पतली होने पर ऐसे व्यक्ति नया तरीका निकालकर अपने कार्य की देखभाल करने वाले होते हैं। वास्तव में लम्बी उंगलियों वाला व्यक्ति सच्चा मानव कहलाया जा सकता है। शुक्र उठा हुआ होने पर व्यक्ति में कामवासना अधिक होती है, परन्तु लम्बी उंगलियों
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वाले कामवासना को दबा कर रखते हैं। अतः ऐसे व्यक्तियों को कलंक बहुत कम लगता हैं। ये सफाई पसन्द होते हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पत्ति आदि देर से ही बना पाते हैं, क्योंकि धन देर से बचता है। अंगूठा बड़ा होने पर इस गुण में और विशेषता आ जाती है। लम्बी उंगलियां होने पर यदि अंगूठा भी लम्बा हो तो ऐसे व्यक्ति सत्य संकल्प वाले होते हैं।
लम्बी उंगलियां होने पर यदि शनि की उंगली अधिक लम्बी, चन्द्रमा या शनि विशेष उन्नत हो तो ऐसे विरक्त प्रवृत्ति के होते हैं। इन्हें अपने परिवार सन्तान, पत्नी या किसी से भी कोई विशेष लगाव नहीं होता। मानव-मात्र से प्रेम करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सहानुभूति कम बुद्धि वाले व्यक्तियों के प्रति अधिक देखी जाती है। ये शान्त स्वभाव ही होते हैं। परिवार में विशेष दायित्वपूर्ण स्थान होने पर ये स्वयं हानि उठा लेते हैं।
मोटी उंगलियां
उंगलियों का मोटा होना कम बुद्धिमान होने का लक्षण है। उंगलियां जितनी ही मोटी होंगी व्यक्ति में उतना ही कम बौद्धिक विकास पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति वहमी, क्रोधी, दयालु, सरल, तानाशाह, जल्दबाज व चिड़चिड़े होते हैं। हाथ दोषपूर्ण होने पर ऐसे व्यक्ति चोर, विशेष क्रोधी, कत्ल करने वाले होते हैं। फौज या मेहनत के कार्य करने वाले जैसे किसान, मजदूर आदि के हाथों में मोटी उंगलियां ही पाई जाती हैं। ऐसे व्यक्ति परिणाम की चिन्ता नहीं करते। क्रोध आने पर या मन में निश्चय होने पर उचित या अनुचित विचारे बिना कार्य कर डालते हैं।
उंगलियां मोटी होने पर यदि अंगूठा छोटा हो तो ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दबाज होते हैं। इन्हें जल्दबाजी से हानि ही होती है। भाग्य रेखा अन्य रेखाओं की अपेक्षा मोटी हो तो ऐसे व्यक्ति बुरी तरह से बरबाद हो जाते हैं। अंगूठा कम खुलना इस दोष को
और अधिक बढ़ा देता है। भाग्य रेखा दो या दो से अधिक होने पर या भाग्य रेखा की स्थिति जीवन रेखा से दूर होने पर इतनी परेशानी नहीं होती। ऐसे व्यक्ति लिहाज तो करते हैं, परन्तु स्पष्टवक्ता होते हैं, अतः इन्हें कोई श्रेय नहीं मिलता। बृहस्पति की उंगली छोटी होने पर निश्चित ही ऐसा कहा जा सकता है। ___मोटी उंगलियों वाले व्यक्ति ईमानदार, अनुशासित व मेहनती होते हैं। नौकर होने पर ये अपना काम समाप्त करने पर ही सांस लेते हैं। बात को बार-बार कहना या सुनना पसन्द नहीं करते, फलस्वरूप घर में बिना बात के झगड़ा खड़ा रहता है। ये सम्मान को बहुत अधिक महत्व देते हैं, अतः अपना इस्तीफा जेब में लिए घूमते हैं। अपनी ईमानदारी के खिलाफ ये कुछ भी नहीं सुन सकते। ये अति भावुक होते हैं। थोड़ी देर में प्रेम व्यवहार व थोड़ी देर में ही कहा-सुनी की नौबत आ जाती है। कोई
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भी बात मस्तिष्क में आने पर या किसी घटना के घटने पर लम्बे समय तक उस विषय में सोचते रहते हैं।
उंगलियां मोटी व लम्बी, बृहस्पति के नाखून बराबर, अंगूठा चपटा, चौड़ा व लम्बा हो तो ऐसे व्यक्ति क्रोधी व स्पष्टवक्ता होते हैं तथा इनकी आर्थिक स्थिति भी उत्तम होती है। इनके विचार अपनी सन्तान व माता-पिता से नहीं मिलते। इन्हें जायदाद सम्बन्धी मुकद्दमें लड़ने पड़ते हैं और ये लम्बे समय तक चलते हैं। इनकी सन्तान घर छोड़ कर भागती है। उंगलियां कम खुलने वाली या लचीली हों तो भागे हुए बच्चे देर से वापस लौटते हैं।
पतली उंगलियां
मोटी उंगलियों की अपेक्षा पतली उंगलियों का होना मानवता व श्रेष्ठ बुद्धि का लक्षण होती हैं। ऐसे व्यक्ति सतर्क, बुद्धिमान, अच्छे-बुरे को सोचकर चलने वाले, हर प्रकार का ज्ञान रखने वाले, किसी चीज की गहराई से छानबीन करने वाले तथा दयालु होते हैं। इनमें मानव सुलभ गुण पाये जाते हैं। ये क्रोधी भी नहीं होते। समय के अनुसार व्यवहार करना इनके चरित्र का प्रमुख गुण है। मजाक भी ये इस प्रकार से करते हैं कि दूसरों को बुरा न लगे अन्यथा चुप ही रहते हैं। उंगलियां जितनी ही पतली होती हैं, व्यक्ति में उतना ही अधिक बौद्धिक विकास देखा जाता है। इनमें वासनात्मक लक्षण होने पर भी ये गलत काम नहीं करते, क्योंकि बदनामी से डरते हैं। पतली होने के साथ-साथ उंगलियां छोटी भी हो तो सोने पे सुहागे का काम करती हैं। पतली उंगलियों वाले व्यक्ति समाज में विशेष स्थान रखते हैं। पत्नी को नौकरी कराना या पत्नी का पुरुषों में बैठना आदि बिल्कुल पसन्द नहीं करते। ऐसे व्यक्ति स्वयं भी अनुशासित होते हैं और दूसरों को भी अनुशासन में रखना पसन्द करते हैं। लेन-देन, व्यवहार, बातचीत सभी कुछ सोच समझकर करने वाले होते हैं। ये एक बार सम्बन्ध बनाने के पश्चात् बिगाड़ते नहीं। हर व्यक्ति से इनके सम्बन्ध स्थायी होते
उंगलियां पतली व लम्बी होने पर व्यक्ति आदर्शवादी, सदैव दूसरों की हित-कामना करने वाले, व्यवहारिक, मधुर, लेन-देन में स्पष्ट, दूसरों को प्रोत्साहित करने वाले, बीमारी, विद्या व शादी आदि के सम्बन्ध में सहायता, दूसरों के हित के लिए औषधालय, स्कूल आदि की स्थापना करने वाले होते हैं। बृहस्पति की उंगली सूर्य की उंगली से लम्बी हो तो ये अत्यधिक सम्मान प्राप्त करने वाले होते हैं। शनि की उंगली सीधी व लम्बी हो तो प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन, संस्था का निर्माण या शास्त्रों का पुनरोद्धार करने वाले होते हैं। सूर्य व शनि की उंगलियां बराबर होने पर ये समाज के लिए धरोहर
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छोड़ कर जाते हैं।
बुध की उंगली सूर्य की उंगली के तीसरे पोर से लम्बी होने पर परिवार व समाज के लिए और अधिक विशेषता उत्पन्न करती है। बुध की उंगली छोटी, टेढ़ी और पतली हो तो व्यक्ति सामान्य से अधिक चालाक होता है।
कोमल या लचीली उंगलियां
जो उंगलियां स्वाभाविक रूप से खुलने पर पीछे की ओर मुड़ जाती हैं तथा नरम होती हैं, उन्हें लचीली उंगलियां कहा जाता है। उंगलियां लचीली होने पर व्यक्ति बुद्धिमान व सहनशील होता है। लचीली उंगलियां मोटी हों तो मोटेपन के कारण दुर्गुणों में कमी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति सभी से प्रेम करते हैं, परन्तु यदि किसी के प्रति इनका सद्भाव न रहे तो यह जीवन भर उसकी शक्ल देखना भी पसन्द नहीं करते, सम्बन्ध पूर्णतया समाप्त कर लेते हैं। वैसे ये दयालु स्वभाव के व उदार होते हैं। इस दशा में यदि मस्तिष्क रेखा में दोष हो या जीवन रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो या जीवन रेखा की कोई शाखा चन्द्रमा पर जाती हो तो इनके परिवार में से कोई न कोई व्यक्ति घर छोड़ कर भागता है या कुछ समय के लिए बिना सूचना दिए कहीं चला जाता है। जीवन रेखा के अन्त में बड़ा द्वीप होने पर भी ऐसा फल कहा जा सकता है। उंगलियां पतली व लचीली होने पर घर छोड़कर जाने वाले शीध्र ही लौट आते हैं।
कठोर या न झुकने वाली उंगलियां
इस प्रकार की उंगलियां व्यक्ति के चरित्र में विचारों की स्थिरता, स्पष्टवादिता, क्रोध व लगन का समावेश करती हैं। हाथ अच्छा होने पर व्यक्ति में गुण और दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति में क्रोध, विचारों में विशेष दृढ़ता अर्थात् जिद्द की सूचना देता है।
अंगूठा भी यदि झुकने वाला न हो तो ये मन में जो भी निश्चय कर लेते हैं, उसे किसी भी मूल्य पर पूरा करके ही छोड़ते हैं। ये विचारों, व अनुशासन के सख्त होते हैं तथा कोई गलती होने पर माफ नहीं करते। घर में इनका एक छत्र साम्राज्य होता है। किसी में भी इनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं होती और न ही यह अपने कार्य में किसी को हस्तक्षेप पसन्द करते हैं। हाथ में बुद्धिमत्ता के लक्षण होने पर ये बुद्धिमान व सफल होते हैं तथा मूर्खता व निम्न कोटि के चिन्ह होने पर असफल, क्रोधी, झगड़ालू या इस प्रकार के पाये जाते हैं। अंगूठा यदि खुलता भी कम हो और उंगलियां भी सख्त हों तो ये काम में अड़ने वाले होते हैं। अंगूठा अधिक खुलने पर या लचीला होने पर इस प्रकार के गुणों में कमी हो जाती है अर्थात् थोड़ी बहुत सहनशीलता आदि गुण भी व्यक्ति में आ जाते हैं।
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प्रथम उंगली लम्बी
अंगूठे के पास की प्रथम उंगली तर्जनी, या बृहस्पति की उंगली कहलाती है। इसके छोटे-बड़े का ज्ञान करने के लिए इसकी तुलना सूर्य की अर्थात् तीसरी उंगली से की जाती है। सूर्य की उंगली बड़ी होने पर यह बड़ी और छोटी होने पर छोटी मानी जाती है। सूर्य की उंगली से आधा इंच या पौन इन्च छोटी होने पर ही यह छोटी मानी जाती है।
बृहस्पति की उंगली या प्रथम उंगली सूर्य की उंगली से लम्बी होने पर व्यक्ति में उदारता, सात्विकता, उत्तरदायित्व तथा महत्वाकांक्षा आदि गुण पाये जाते हैं। किए हुए कार्यों का भी इनको श्रेय मिलता है और यश प्राप्त करते हैं। ये सात्विक तथा उत्तम कार्य करने वाले होते हैं। हाथ भारी, मांसल, गुलाबी अर्थात् उत्तम प्रकार का होने पर समाज में उत्तम स्थान ग्रहण करते हैं। इनकी सन्तान भी विशेष योग्य होती है। इनका कोई बच्चा मंत्री या इस प्रकार का पद ग्रहण करता है। नहीं तो समाज में किसी न किसी रूप में विशेष सम्मान तो प्राप्त करता ही है। बृहस्पति की उंगली लम्बी होने पर व्यक्ति धार्मिक व व्यवहारिक होते हैं। ये कोई भी अनैतिक कार्य नहीं करते, ये नहीं चाहते कि कोई भी इनके किए हुए कार्य पर टीका-टिप्पणी करे। अतः बृहस्पति की उंगली लम्बी होना एक विशेष उत्तम गुण है। इनको जीवन साथी का पूर्ण सुख प्राप्त होता है। उसकी आदत व स्वभाव भी ठीक होता है।
प्रथम उंगली छोटी
बृहस्पति की उंगली या प्रथम उंगली सूर्य की उंगली से छोटी होने पर अधिक खराब होती है। पतले या दोषपूर्ण हाथ में बृहस्पति की उंगली अधिक छोटी होने पर व्यक्ति अनैतिक कार्य करने वाले तथा सम्मानहीन होते हैं। दुराचारी, चोर, लफंगे व बदमाश व्यक्तियों के हाथ में बृहस्पति की उंगली अधिक छोटी होती है। छोटी से तात्पर्य है, इसका शनि की उंगली के ऊपर के (अन्तिम) पोर के आसपास होना है। जब उंगलियां आपस में सटी हुई हों, समाज में दूषित कर्म करने वालों के हाथों में ऐसे लक्षण होते हैं।
प्रथम उंगली छोटी होने पर व्यक्ति साधारणतया स्पष्टवक्ता व क्रोधी होते हैं। विशेष छोटी होने पर अधिक दयालु व उदार होते हैं, परन्तु ये किसी से भलाई नहीं पाते। इनके कार्य की आलोचना की जाती है। इनके साथ बैठने वाले भी इनकी आलोचना करते हैं, जिसका कारण व्यक्ति का अधिक स्पष्टवादी होता है। घर के झगड़ों के कारण ऐसे व्यक्ति अक्सर साधु बन जाते हैं। इनके घर में झगड़े का मुख्य कारण स्त्रियां होती हैं।
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बृहस्पति की उंगली छोटी न होकर यदि तिरछी हो तो भी व्यक्ति को परिवार या सन्तान की परेशानी रहती है । सन्तान या तो नालायक होती है या मां-बाप की परवाह नहीं करती या परिवार के किसी व्यक्ति से कोई न कोई कलह का कारण बना रहता है। शनि की उंगली का झुकाव बृहस्पति की उंगली की ओर होने पर यदि बृहस्पति की उंगली विशेष छोटी हो और बुध की उंगली तिरछी हो तो व्यक्ति चोरी, बदमाशी आदि के द्वारा पेट भरने वाले होते हैं। शुक्र उठा होने पर स्त्री के चक्कर में रहते हैं। लेकर भाग जाना, उनसे अनैतिक कार्य कराना आदि दोष होते हैं। गंदा व्यवसाय जैसे शराब, गांजा, अफीम आदि के द्वारा गुजारा करते हैं। अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर और अधिक दोष पाये जाते हैं।
दूसरी उंगली
दूसरी उंगली या शनि की उंगली सूर्य की उंगली से आधा इन्च लम्बी होने पर यह लम्बी मानी जाती है। शनि की उंगली विशेष लम्बी होना उत्तम लक्षण है। ऐसे व्यक्ति संगीतप्रिय, कलाकार, एकांतवासी तथा ईश्वर चिन्तन में रूचि रखने वाले, जानवरों से प्रेम करने वाले, तथा निर्माणकर्त्ता होने पर सुन्दर वस्तु बनाने वाले, बाग-बगीचे आदि में रूचि रखने वाले होते हैं। शुक्र व चन्द्रमा विशेष उन्नत होने पर या मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर होने पर व्यक्ति में साहित्य, कला, नाच-गान, संगीत सम्बन्धी विशेषता पाई जाती है।
शनि की उंगली सीधी होने पर यदि इसके बीच का पोर अन्य पोरों की अपेक्षा लम्बा हो तो व्यक्ति ज्योतिषी होता है। शनि की उंगली बिल्कुल सीधी व लम्बी होने पर व्यक्ति धनी, सरल चित्त, ईश्वर प्रेमी व एकान्त में रहना पसन्द करते हैं। ईश्वर प्रेमी न होने पर पति-पत्नी एकान्त में रहना पंसद करते हैं। ये सफल होते हैं तथा इन्हें धन सम्बन्धी विशेष रूचि होती है और धनी रहते हैं । साधु होने पर महान सम्मान प्राप्त करते हैं। शनि की उंगली तिरछी होना व्यक्ति के लिए मानसिक अशान्ति का संकेत करती है। शनि की उंगली का आधार अन्य उंगलियों के बराबर हो तो व्यक्ति को प्रत्येक कार्य में अपेक्षाकृत शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। शनि की उंगली लम्बी होने पर शुक्र मुद्रिका उंगलियों से दूर हो तो व्यक्ति गायन, नृत्य तथा साहित्य में रूचि रखता है तथा इनसे लाभ प्राप्त करता है। कभी-कभी ऐसे व्यक्ति न्यायाधीश भी देखे जाते हैं।
मंगल रेखा निर्दोष व पूर्ण होने की दशा में यदि शनि की उंगली लम्बी हो, भाग्य रेखा मोटी हो तो व्यक्ति खेती, बागवानी आदि के व्यापार से अपार धन-सम्पत्ति प्राप्त करता है। शुक्र प्रधान होने पर यदि शनि की उंगली लम्बी हो तो ऐसे व्यक्ति
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नाचने में रुचि रखते हैं। ये पुरुष होने पर स्त्री के और स्त्री होने पर पुरुष के कपड़े पहनने में विशेष प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। हाथ सुन्दर होने पर इस प्रकार की कला से प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। शनि की उंगली पर तिल होना धनी होने का लक्षण है। इनको अग्नि-पथ होता है। ऐसे व्यक्ति पृथ्वी से सम्बन्धित व्यापार जैसे खनन, कोयला आदि करते देखे जाते हैं।
तीसरी उंगली
तीसरी उंगली या सूर्य की उंगली सीधी होने पर व्यक्ति में आत्मसम्मान, प्रसिद्धि या महत्व की भावना अधिक पाई जाती है। दोनों हाथों में यदि केवल सूर्य की उंगली ही सीधी हो तो ये धन की अपेक्षा सम्मान को अधिक महत्व देते हैं। सूर्य की उंगली विशेष लम्बी होने पर व्यक्ति में भविष्य चिन्तन की वृद्धि हो जाती है, तथा सूर्य की उंगली तिरछी होने पर सम्बन्धियों के कारण से विरोध तथा मन-मुटाव रहता है। इनको सम्बन्धियों की सहायता अधिक करनी पड़ती है, नहीं तो उनके विरोध का सामना करना पड़ता है। सूर्य की उंगली बड़ी होने की दशा में व्यक्ति कपड़े आदि की दुकानदारी या कमीशन का कार्य करने वाला होता है तथा शनि की उंगली भी सीधी होने पर ये उत्तम कोटि के साहित्यकार पाए जाते हैं। सूर्य की उंगली पर तिल हो तो व्यक्ति को पहले बदनामी और बाद में प्रसिद्धि प्राप्त होती है। सामाजिक कार्य कर्ताओं के हाथ में सूर्य की उंगली उत्तम होती है।
सूर्य व बृहस्पति की उंगलियां बराबर होने पर व्यक्ति साधु स्वभाव के होते हैं। यह लक्षण उत्तम कोटि के सन्यासियों में पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति सभी से उदासीन होते हैं। न किसी से विशेष प्रेम होता है और न ही वैमनस्य। हाथ में सचरित्रता व ईश्वर प्रेम के विशेष लक्षण होने पर सूर्य की उंगली बृहस्पति की उंगली के बराबर हो तो ऐसे व्यक्ति उत्तम कोटि के साधक होते हैं और ज्ञान मार्ग का अनुसरण करते हैं। इन्हें पूर्ण प्रभु कृपा प्राप्त होती है।
सूर्य व बृहस्पति की उंगलियां बराबर होने पर यदि शुक्र उठा, जीवन रेखा सीधी या इसी प्रकार के वासनात्मक होने के अन्य कारण हों तो ऐसे व्यक्ति विशेष चरित्रहीन होते हैं। भाग्य रेखा में दोष अर्थात् विशेष मोटी या द्वीपयुक्त, जीवन रेखा सीधी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर वेश्यावृत्ति करने वालों का लक्षण है।
सूर्य व बृहस्पति की उंगलियां बराबर होना गृहस्थ सुख में बाधक है। इनके जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है या अविवाहित रहते हैं।
चौथी उंगली चौथी उंगली या बुध की उंगली का अध्ययन हाथ में विशेष महत्व रखता है।
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अत: हाथ देखते समय इसका अध्ययन भी विशेष बारीकी से करना चाहिए। बुध की उंगली कुछ न कुछ तिरछी अवश्य ही होनी चाहिए। यह उंगली अधिक सीधी होने पर व्यक्ति सरल होते हैं। बुद्धिमान होते हुए भी अवसर के अनुसार आचरण नहीं कर पाते। ये समय के अनुसार अपने आपको ढालने में असमर्थ होते हैं।
बुध की उंगली विशेष सीधी होने से विवाह में रूकावट होती है। ये 29-30 वर्ष की आयु में शादी करते हैं। यदि विवाह रेखा उंगलियों के तथा हृदय रेखा के पास हो तो विवाह शीघ्र होता है। बुध की उंगली पर तिल होना व्यक्ति को चोरी से हानि का संकेत है।
बुध की उंगली विशेष तिरछी होने पर किसी एक रिश्तेदार से विशेष मन-मुटाव व विरोध रहता है। यदि प्राकृतिक रूप से हाथ खुलने पर बुध की उंगली अन्य उंगलियों से अलग रहती हो तो ऐसे व्यक्ति सम्बन्धियों से उदासीन रहते हैं, उनमें विशेष रूचि नहीं रखते और न ही उनसे विशेष प्रेम होता है। उनसे सहयोग आदि प्राप्त होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इनके समक्ष कई बार जेल जाने के कारण उपस्थित होते हैं। विशेषतया सूर्य की उंगली की दूसरी गांठ से यह अलग हो तो ऐसा निश्चित कहा जा सकता है।
चौथी या बुध की उंगली (छोटी)
कई बार हाथ में बुध की उंगली विशेष छोटी अर्थात् सूर्य की उंगली के दूसरे पोर के मध्य तक देखी जाती है। बहुत छोटी बुध की उंगली व्यक्ति की उन्नति में रुकावट का कारण बनती है। ऐसे व्यक्तियों की आदत इधर-उधर करने की होती है, यदि ये लेखक हों तो अनेक पुस्तकों से सामग्री की चोरी करके अपनी पुस्तक लिख मारते हैं। यह लक्षण स्त्रियों के हाथ में विशेष दोषपूर्ण लक्षण है। ऐसी स्त्रियां इधर की उधर लगाकर लड़ाई-झगड़ा कराने वाली होती हैं तथा बहुत ही आसानी से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करके दूसरों के गृहस्थ जीवन को अशान्त कर देती हैं। कई बार बुध की उंगली बहुत ही छोटी देखी जाती है। इसकी लम्बाई लगभग एक या डेढ़ इन्च की होती है। ऐसी उंगली व्यक्ति को बुरी आदत से बचाने का गुण रखती है। बुरी आदत कुछ समय तक होने पर भी ये उनके आदी नहीं होते।
बुध की उंगली छोटी होने के साथ टेढ़ी भी हो तो ऐसे व्यक्ति गुप्तचर होते हैं और अपने कार्य में विशेष दक्ष होते हैं। इन्हें इस कार्य में सम्मान मिलता है। बुध की उंगली छोटी होने पर यदि बृहस्पति की उंगली छोटी हो तो व्यक्ति अपनी जुबान का पाबन्द नहीं होता, परन्तु यदि हृदय व मस्तिष्क रेखाएं समानान्तर हैं तो उपरोक्त दुर्गुण नहीं पाये जाते। ये कई बार या तो अपमान सहन करते हैं या कोई
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असम्मानजनक कार्य करते हैं।
चौथी या बुध की उंगली (टेढ़ी)
बुध की उंगली तिरछी होने पर व्यक्ति चालाक, समय के अनुसार चलने वाला, अपना काम निकालने में चतुर, दूरदर्शी, कर्तव्यनिष्ठ, दूसरों पर निर्भर न रहने वाला, तार्किक व अपना भला-बुरा समझने वाला होता है। ऐसे व्यक्तियों को 32-33 वर्ष की आयु में मानसिक परेशानी होती है। हाथ पतला व रेखाओं में दोष होने पर ऐसे व्यक्तियों पर चोरी या चरित्रहीनता का लांछन लगता है। वैसे भी ये झूठ अधिक बोलने वाले व कामचोर होते हैं। हृदय रेखा में दोष हो या हाथ पतला हो तो व्यक्ति को बिना मतलब झूठ बोलने की आदत होती है।
तिरछी बुध की उंगली का नाखून छोटा होने पर व्यक्ति में बौद्धिक विशेषता पाई जाती है। ये गूढ़ से गूढ़ विषय का सार एकदम निकाल लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों की बुद्धि सरस्वती या बृहस्पति की तरह प्रखर होती है। बुध की उंगली टेढ़ी होने पर मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी हो तो दूसरों से हानि नहीं होती। उधार में गई हुई या डुबी हुई रकम वापस मिल जाती है। ये दिन-प्रतिदिन उन्नति करते हैं। किसी का विश्वास करना ये जानते ही नहीं। दूसरों पर निर्भर रहने वाले या विश्वास करने के अन्य लक्षण होने पर कुछ समय तक ये ऐसा जरूर करते हैं, परन्तु बाद में यह बात बिल्कुल समाप्त हो जाती है। बुध की उंगली टेढ़ी होने पर यदि इसका नाखून भी चौकोर हो और मस्तिष्क रेखा मंगल पर हो तो व्यक्ति उच्च कोटि के तार्किक होते हैं और वकील बनते हैं। ऐसे वकील फौजदारी में अधिक रूचि रखते हैं। मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा की ओर जाने की दशा में ये सिविल के मुकद्दमे लेते हैं। यदि बुध की उंगली गांठदार हो तो तर्क उत्तम कोटि का होता है। इनमें झूठी बात को सत्य सिद्ध करने का गुण पाया जाता
बुध की उंगली टेढ़ी होने पर शनि व सूर्य की उंगलियों के बीच में अन्तर होना, मस्तिष्क रेखा का मंगल से निकल कर मंगल क्षेत्र पर जाना, सामने के दांत विशेष बड़े होना, हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलना या हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होना, प्रत्येक उंगली में चार पोरो के चिन्ह होना जेल यात्रा करने के संकेत हैं। कोई एक भी लक्षण होने पर जेल यात्रा का भय होता है। एक से अधिक लक्षण होने पर निश्चित ही जेल यात्रा होती है।
बुध की विशेष टेढ़ी उंगली होने पर यदि हाथ छोटा, मोटा व निम्न कोटि का हो, उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी हों तो व्यक्ति झूठ बोलने वाला व चोर होता है। हृदय रेखा जंजीराकार हो, शनि पर गई हो, हाथ काला हो या भाग्य रेखा आदि से अन्त तक अत्याधिक पतली हो तो भी व्यक्ति चोर व धोखेबाज होता है।
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बुध की उंगली विशेष टेढ़ी होने पर व्यक्ति बोलने वाला होता है। साहित्यकारों में बुध की उंगली तिरछी, हृदय रेखा दोषपूर्ण, शुक्र व चन्द्रमा उठे हों तो ये श्रृंगार-साहित्य का निर्माण करते हैं। इस दशा में हाथ में विशेष भाग्य रेखा होना अनिवार्य है। हाथ आदर्शवादी होने पर आदर्श सहित्य का निर्माण होता है।
शनि व सूर्य की उंगली (बराबर)
शनि व सूर्य की उंगलियां बराबर या लगभग बराबर होने पर व्यक्ति में विशेष गणों में वृद्धि करती हैं। इनको आगे होने वाली घटनाओं का पता लग जाता है अर्थात् इनमें अन्तर्ज्ञान विद्यमान होता है। फलस्वरूप जुआ, सट्टा या व्यापार का सट्टा आदि कार्य करने में रूचि रखते हैं। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर ये इस कार्य से लाभ नहीं उठा पाते अन्यथा ऐसे कार्य से इनको अचानक व अत्यधिक धन लाभ होता है। शनि व सूर्य की उंगलियां बिल्कुल सीधी होने पर व्यक्ति बहुत धनी, विख्यात् व सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। दोनों उंगलियां सीधी होने पर हाथ की उत्तमता सूर्य की भांति प्रकाशमय होती है। दोनों उंगलियों के आधार समान होने पर ऐसे व्यक्ति सफल व्यापारी व धनी होते हैं। आधार में समानता से तात्पर्य दोनों उंगलियों का आरम्भ लगभग एक सी उंचाई से होना होता है। ये उद्योग, एजेन्सी व ठेकेदारी के कार्य में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं। निश्चित ही है कि ये लगातार सफलता प्राप्त करते हैं और धनी बने रहते हैं।
शनि व सूर्य की उंगलियां नाखून की ओर से बराबर होने पर दो सूर्य रेखाएं हों, मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा व भाग्य रेखा में त्रिकोण हो तो इनको जुए, सट्टे, लाटरी आदि से अचानक व अत्यधिक धन लाभ होता है। मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा एक होने की दशा में भी अचानक धन प्राप्ति होती है, परन्तु बड़ा सट्टा लगाने पर शनि व सूर्य की उंगलियां बराबर होने पर यदि अंगूठे के नीचे शुक्र रेखा हो और त्रिकोण से निकली हो तो पैतृक परम्परा या गोद से लाभ होता है। दोनों उंगलियां बराबर होने की दशा में यदि विवाह रेखा निर्दोष होकर विशेष लम्बाई लिए हो और बृहस्पति तक या बृहस्पति की ओर जाती हो तो ससुराल या किसी प्रेमी से धन का लाभ होता है। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर इनके अन्तर्ज्ञान से दूसरे लाभ उठाते हैं, स्वयं को इसका लाभ नहीं मिलता।
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नाखून
नाखून व्यक्ति की अनेक मनोवृत्तियों और रोगों के विषय में महत्वपर्ण सूचन
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देते हैं। अतः हाथ को देखते समय नाखूनों का अध्ययन भी बहुत आवश्यक है। नाखूनों का अध्ययन उनके रंग, रूप, लम्बाई, मोटाई, आकार और अन्य बनावट के विषय में सूक्ष्म रूप से कर लेना चाहिए। इस लक्षण से हमें कई विशेष जानकारियां मिलती हैं। प्रत्येक नाखून अपना विशेष महत्त्व रखता है। ग्रह या उंगली के लक्षण देखते समय नाखून का लक्षण भी उससे मिलाना आवश्यक हो जाता है।
नाखूनों के रंग
श्वेत नाखून व्यक्ति में स्नायु-दोष का लक्षण है। इनका रक्त चाप कम होता है । इन्हें सिर दर्द रहता है। यदि सिर के पिछले भाग में लगातार दर्द रहता हो तो ऐसे व्यक्तियों को लकवा होने का डर रहता है। स्नायु विकार होने के समय नाखूनों का रंग बिल्कुल सफेद हो जाता है। कई बार इस प्रकार का रंग व्यक्ति में किसी दूसरी आत्मा का प्रभाव होने पर भी देखा जाता है, इनको नींद कम आती है और घबराते अधिक हैं।
हृदय रोग होने पर नाखूनों का रंग सफेद होता है। बीमारी की अवस्था में खून की कमी होने पर नाखून पतले हो जाते हैं और दबाने पर दब जाते हैं। हृदय रोग से ग्रस्त व्यक्ति के नाखून ऊबड़-खाबड़ तथा प्रेत-बाधा या अल्प-निद्रा रोग में ये केवल सफेद होते हैं। आकार में विकार नहीं आता । चलने-फिरने से हृदय में पीड़ा का अनुभव करने वालों के नाखून हल्के सफेद होते हैं। इस रोग को एन्जायना कहते हैं। हृदय में छेद होने पर नाखून बीच में से ऊंचा हो जाता है।
नाखून का रंग लाल होने पर व्यक्ति क्रोधी होता है। इनके शरीर में पित्त का प्रभाव अधिक होता है। इनको कोई आदत नहीं डालनी चाहिए अन्यथा ये उसके आदी हो जाते हैं और छोड़ने में कठिनाई होती है। इन्हें खट्टी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। अधिक गरम पेय पदार्थ भी इनके स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं। लाल नाखून वाले व्यक्ति क्रोधी होते हैं। साथ में अन्य क्रोध के लक्षण होने पर ये विशेष क्रोधी पाये जाते हैं।
अधिक धूम्रपान करने वालों के नाखून धुएं जैसे हो जाते हैं। यह रक्त में निकोटीन बढ़ जाने का लक्षण होता हैं। ऐसे लक्षण का प्रभाव हृदय पर पड़ता है। इनको धूम्रपान कम कर देना चाहिए या बन्द कर देना चाहिए अन्यथा शरीर में कई रोग घर कर लेते हैं।
लम्बे नाखून
ऐसे व्यक्ति सीधे-सादे तथा भावुक होते हैं, इन्हें किसी भी विषय में तीव्र रूचि नहीं होती है। शरीर के अनुपात से लम्बे होने पर ऐसे व्यक्तियों की कमर में दर्द रहता
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है। इन्हें मियादी बुखार बार-बार होता है। भाग्य रेखा गहरी होने पर यदि नाखन विशेष लम्बे हों तो कैंसर, ट्यूमर, गॉल ब्लेडर (पित्ताशय) में पथरी आदि की सम्भावना रहती है।
छोटे नाखून
छोटे नाखून व्यक्ति में बुद्धिमत्ता व सतर्कता का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति जल्दबाज होते हैं परन्तु, बुद्धिमान होने के कारण सफल ही रहते हैं। बचपन में इनका गला खराब रहता है। इनकी प्रबन्ध शक्ति अच्छी होती है।
चौड़े नाखून
चौड़े नाखून वाले व्यक्ति खुले दिल के, बुद्धिमान व सावधान होते हैं। खुले दिल के होने के साथ-साथ इनमें किसी बात को बहुत बारीकी से जानने का गुण
होता है। ये जुबान के सच्चे होते हैं। मगर लम्बे समय तक एक काम नहीं कर सकते। उपाय अपाय को सोच कर कार्य करने वालों के नाखून चौड़े होते हैं। इनके स्वभाव में थोडी गरमी पायी जाती है, परन्तु अनायास ही किसी व्यक्ति से बिगाड़ते नहीं। इनकी छाती में दर्द की शिकायत
रहती है। कभी-कभी रीढ़ की हड्डी में भी दर्द रहता चित्र-11 है, जिसका कारण झटका लगना होता है। अधिक चौड़े चित्र-12 और फैले हुए नाखून होने पर व्यक्ति की मस्तिष्क की नस फटने का डर रहता है। चौड़े नाखून यदि सख्त भी हों तो ऐसे व्यक्ति क्रोधी होते हैं।
पतले नाखून
नाखूनों की मोटाई कम होने पर नाखून पतले कहे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य कमजोर रहता है। मस्तिष्क में काम का दबाव होने से इनके सिर में दर्द रहने की शिकायत रहती है। इनका स्वभाव भूलने का होता है। ये आलसी होते हैं और नींद अधिक आती है। शरीर में दर्द और भूख की शिकायत भी इन्हें होती है। खट्टे व चटपटे पदार्थो में यह विशेष रूचि रखते हैं।
मोटे नाखून
नाखूनों का मोटा या मजबूत होना अच्छे स्वास्थ्य के चिन्ह हैं। सुदृढ़ । नाखून वाले व्यक्ति शरीर व स्वास्थ्य के सुदृढ़ होते हैं। इन्हें लम्बे समय तक रहने वाली बीमारियां नहीं होती।
चित्र-13
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H.K. S-4
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नाखूनों में चन्द्र
नाखूनों के पीछे की ओर सफेद भाग देखा जाता है, यह अर्ध चन्द्राकार होता है । ऐसे व्यक्तियों का भार अवश्य बढ़ता है। भाग्य रेखा पतली होने के समय से इनका भार बढ़ना आरम्भ हो जाता है और जिस समय तक यह चन्द्र दिखाई देते रहते हैं, भार बढ़ता ही रहता है। जीवन रेखा सीधी होने पर व्यक्ति अधिक मोटा हो जाता है। अधिक बड़ा चन्द्र व्यक्ति में हृदय की कमजोरी का लक्षण है, इनको घबराहट बहुत होती है। अर्ध चन्द्र व अपूर्ण रेखा भी शरीर का भार बढ़ने का लक्षण है। चन्द्र रहित नाखून
नाखून छोटे अर्थात कम लम्बे होने पर उनमें सफेद चन्द्र का अभाव होता है। ये भी दुर्बल स्नायु के होते हैं व हृदय कमजोर होता है । परन्तु यदि नाखून मोटे व दबाने पर सख्त हों तो उपरोक्त रोगों का भय नहीं रहता ।
नाखूनों में दाग
नाखूनों में सफेद दाग भी स्नायु दुर्बलता का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति प्रेमी और साधारण झूठ बोलने वाले होते हैं। बचपन में अधिक वीर्यपात के कारण भी नाखूनों में इस प्रकार के दाग हो जाते हैं। सूर्य की उंगली पर सफेद दाग होने पर व्यक्ति को सम्मान लाभ होता है। बृहस्पति पर लेखन सम्बन्धी व शनि पर धन सम्बन्धी लाभ होता है।
नाखूनों में काले दाग व्यक्ति की मृत्यु की सूचना देते हैं। इनको मस्तिष्क में शीघ्र ठेस पहुंचती है। स्त्री मरने, सन्तान भाग जाने या उसकी मृत्यु होने पर धन नाश होने या सम्मान पर प्रहार होने पर नाखूनों में काले दाग पैदा हो जाते हैं ।
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नाखूनों में काले दाग शारीरिक कष्ट का चिन्ह हैं। यदि ऐसे दाग नाखून के आरम्भ अर्थात् चन्द्र के स्थान पर हों तो मृत्यु जैसे कष्ट का सूचक है।
नालीदार (रेखायुक्त) नाखून
प्रायः नाखूनों में नालियां बन जाती हैं। ये नालियां नाखूनों के बीच गहराई हो जाने का परिणाम होती हैं। लम्बे समय तक पेट में गैस या कब्ज रहने के पश्चात् इस प्रकार की नालियां बनती हैं। मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे दोषपूर्ण होने पर अंगूठे के नाखून में इस प्रकार की नालियां या रेखाएं मधुमेह का निश्चित लक्षण है।
नाखून में कभी-कभी काली धारियां भी देखी जाती हैं। ऐसे व्यक्तियों के पेट गैस बनती है तथा आगे चल कर इन्हें गुर्दे के रोग हो जाते हैं। अंगूठे में इस प्रकार का काली धारी होने पर व्यक्ति को सिर में दर्द की शिकायत रहकर उसके मस्तिष्क
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की कोई छोटी नाड़ी फट जाती है, उसी के फलस्वरूप इस प्रकार काली धारी अंगूठे के नाखून में बनती है। यह धारी कुछ मोटी व स्पष्ट होती है। ऐसे व्यक्तियों को गुर्दे के रोग होने का डर रहता है। धारियां छूने पर चिकनी तथा नालियां खुरदरी अनुभव होती हैं।
लम्बे संकरे नाखून
जब नाखून बहुत संकरे हों तो रीढ़ की कमजोरी की ओर संकेत करते हैं। यदि वे बहुत बड़े व पतले हों तो यह समझना चाहिए कि रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गयी है और शरीर निर्बल हो गया है।
भद्दे नाखून
चित्र-14
कुछ व्यक्तियों के नाखून कटे-फटे से अथवा भद्दे से होते हैं। ये ऊबड़-खाबड़ से दिखाई देते हैं। इन्हें पेशाब में फास्फेट जाता है। इन्हें रोगों की सम्भावना रहती है। खून की कमी इसमें प्रधान कारण है। कई बार नाखूनों के अन्त में अर्थात् बाहर की ओर धुंधली काली-सफेद-सी धारी दिखाई देती है। ऐसे व्यक्तियों को हृदय रोग हो जाता है।
चपटे नाखून
यदि नाखून बहुत चपटे दिखाई दें और ऊपरी अन्त पर मांस से उखड़े नज़र आयें तो पक्षाघात का खतरा होता है। यह ख़तरा और भी अधिक हो जाता है यदि वे सीप की आकार के होकर मूल स्थान की दिशा में नुकीले हों। जब इन नाखूनों में चन्द्र के कोई चिन्ह न हों तो यह समझना चाहिए कि रोग बढ़ गया है।
चतुष्कोणाकार नाखून
चित्र - 15
नाखूनों की लम्बाई व चौड़ाई बराबर होने पर ऐसे व्यक्ति उन्नति करने वाले होते हैं, परन्तु प्रारम्भिक जीवन में इन्हें संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इनका लाभ और हानि बराबर होता है, परन्तु सन्तान के कार्य करने के पश्चात् विशेष सफलता मिलती है। इनकी मनोवृत्ति मिली-जुली होती है। ऐसे व्यक्ति अच्छी बातों को ग्रहण करने वाले होते हैं, परन्तु क्रोध आने पर गुणों की टोपी उतार कर अलग रख देते हैं। बड़ी उम्र में इनका क्रोध बहुत कम हो जाता है। इस प्रकार स्नेह में भी ये व्यक्ति अविचारी पाए जाते हैं। आचार व व्यवहार में समान होते हैं। महसूस भी करते हैं और हंसते भी हैं। इनका गला थोड़ा बहुत खराब होता है। वृद्धावस्था में नजला या कफ का प्रभाव देखा जाता है। ये साधारणतया शरीर से ठीक रहते हैं।
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त्रिकोणाकार नाखून
कभी-कभी नाखून की बनावट त्रिकोणाकार देखी जाती है। ऐसे नाखून आगे से चौड़े तथा पीछे की ओर बहुत नुकीले हो जाते हैं। इस प्रकार नाखून की आकृति त्रिकोणाकार जैसी बन जाती है। ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान, हसमुख व जल्दबाज होते हैं। त्रिकोणाकार नाखून होना व्यक्ति की मानसिक दक्षता का लक्षण है। इनको गले व नाक के रोग देखे जाते हैं।
बृहस्पति या प्रथम उंगली का नाखून
हाथ में प्रथम उंगली या बहस्पति का नाखन व्यक्ति की मानसिक प्रवृत्तियों का मुख्य लक्षण है। बृहस्पति की दोनों उंगलियों के नाखून छोटे-बड़े अवश्य ही होने चाहिए, नहीं तो व्यक्ति की ग्रहण शक्ति कम होती है। जितना ही अधिक अन्तर बृहस्पति की दोनों उंगलियों के नाखूनों में होता है, उतना ही व्यक्ति भाग्यशाली, समझदार व चालाक होता है और उन्नति भी अधिक करता है।
। बृहस्पति के दोनों नाखून सम होने पर व्यक्ति सीधा होता है। इनमें ग्रहण शक्ति कम होती है। किसी भी बात को देर से समझते हैं और बृहस्पति का नाखून छोटा होने पर व्यक्ति में प्रबन्ध शक्ति अधिक होती है। मस्तिष्क रेखा एक से अधिक होने पर या मस्तिष्क रेखा दोनों ओर से शाखाकार होने पर ये उद्योगपति या बड़े प्रबन्धक होते हैं। बृहस्पति का नाखून गोल होने पर व्यक्ति के गले में दोष पाया जाता है। अन्य दोष होने पर इनको सांस की नली का दमा हो जाता है।
शनि या दूसरी उंगली का नाखून
शनि का नाखून चौकोर, सुन्दर व छोटा होने पर व्यक्ति में मानव सुलभ गुणों की विशेषता पाई जाती है। ये पेड़-पौधों व पशु-पक्षियों सहित जीव मात्र से प्रेम करते हैं। खेती, बागवानी व फुलवारी का इन्हें विशेष शौक होता है। ये व्यक्ति अध्यात्म व दर्शन में रूचि रखते हैं।
सूर्य या तीसरी उंगली का नाखून
सूर्य या तीसरी उंगली का नाखून चौकोर होने पर ऐसे व्यक्ति दस्तकार होते हैं। चौड़ा होने पर इनकी रूचि साहित्य की ओर जाती है।
बुध या चौथी उंगली का नाखून
इंसान की मानसिक रूचि व चरित्र की जानकारी के विषय में बुध की उंगली का नाखून विशेष महत्व रखता है। बुध का नाखून छोटा, चौकोर व सुन्दर होने की
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नाखून
दशा में व्यक्ति बुद्धिमान, तार्किक, वक्ता, कल्पनाशील, शोध कार्य करने वाले तथा किसी विषय में दक्षता प्राप्त करने वाले होते हैं। बुध की उंगली का नाखून चौकोर होने पर व्यक्ति कानून सम्बन्धी विद्या का अध्ययन करता है। लम्बा होने पर व्यक्ति एकाउन्ट्स या साहित्य में रूचि रखता है। ऐसे बच्चे क्या, क्यों, कैसे, इस प्रकार के प्रश्न करने वाले होते हैं। बुध का नाखून छोटा होने पर राजनीति में विशेष रूचि होती है तथा हाथ में अन्य लक्षण होने पर चुनाव लड़ता है। ये सफल राजनीतिज्ञ होते हैं।
अंगूठे का नाखून
अंगूठे का नाखून दोनों हाथों में एक जैसा हो तो व्यक्ति वंश परम्परा के अनुसार जीवन यापन करते हैं। बायें हाथ में अंगूठे का नाखून बड़ा व दायें का छोटा हो तो नये ढंग से जीवन निर्माण करते हैं। दायें हाथ में बड़ा व बायें में छोटा होने पर संघर्षशील होते हैं व अपना कमाया हुआ धन विश्वास व स्नेह के कारण दूसरों की सहायता में खर्च करने वाले होते हैं। ये 35 वर्ष के बाद धन-सम्पत्ति व सम्मान प्राप्त करते हैं तथा एकाग्रता से कार्य करने वाले होते हैं। ये स्वयं तथा समाज के लिए विशेष उदार होते हैं। जबकि दायें हाथ में नाखून छोटा होने पर व्यक्ति चालाक व निजी स्वार्थ आगे रखते हैं। दायां हाथ कर्ता होने के कारण अधिकतर व्यक्तियों के इसी हाथ के नाखून बड़े होते हैं।
दो या अधिक नाखूनों का समन्वय
बुध व शनि का नाखून छोटा व चौकोर होने पर व्यक्ति में धार्मिक गुणों का अधिक समावेश होता है। इस सम्बन्ध में व्यक्ति विशेष ख्याति प्राप्त करता है तथा लेखक होने पर सत्-साहित्य का निर्माण करता है। बुध व बृहस्पति की उंगलियों के नाखून छोटे व चौकोर हों तो व्यक्ति में व्यवहार व चरित्र सम्बन्धी गुण अधिक पाये जाते हैं। बुध व सूर्य का नाखून छोटा व चौकोर होने पर व्यक्ति रसायन व आयुर्वेद के ज्ञाता होते हैं।
नाखून का महत्व शोध या मनोविज्ञान की दृष्टि से केवल सुन्दर व उत्तम हाथ में होता है। निकष्ट हाथों में निकष्ट कोटि के गुण पाये जाने के कारण नाखूनों का विशेष महत्व नहीं होता। उस समय अंगूठे के नाखूनों से केवल व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों व रोग के विषय में जाना जाता है।
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ग्रहों का संक्षिप्त विवरण
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हाथ में उंगलियों के नीचे उभरे हुए स्थान ग्रह कहलाते हैं। इस प्रकार तर्जनी उंगली के नीचे बृहस्पति, मध्यमा के नीचे शनि, अनामिका के नीचे सूर्य और कनिष्ठा उंगली के नीचे बुध का स्थान होता है। अंगूठे के नीचे वाला स्थान शुक्र का स्थान है और शुक्र के सामने हथेली के दूसरी ओर चन्द्रमा है। बृहस्पति के नीचे, बृहस्पति व शुक्र के बीच में मंगल और इनके सामने बुध और चन्द्रमा के बीच में भी मंगल का स्थान है। एक मंगल को हम बृहस्पति का मंगल और दूसरे को बुध का मंगल कहते हैं। इस प्रकार किसी ग्रह के साथ जो उंगली होती है, उस उंगली को भी हम उस ग्रह की उंगली कहते है। हाथ में रेखाएं न होने पर हम व्यक्ति के भाग्य का निर्णय ग्रहों के अनुसार करते हैं। इस प्रकार हाथ में सात मुख्य ग्रह होते हैं- सूर्य, चन्द्र, शनि, शुक्र, बुध, मंगल और बृहस्पति। ग्रहों के ये नाम यूनानी विद्वानों ने दिये थे और उनके अनुसार इनके क्षेत्र भी इनसे प्रभावित रहते हैं। विभिन्न ग्रहों से हम निम्नलिखित विषयों का ज्ञान करते हैं1. शुक्र- प्रेम, कामुकता और उत्तेजना। 2. मंगल- जीवन शक्ति, साहस, झगड़ना। 3. बुध- मानसिक भावनाऐं, व्यापार, विज्ञान। 4. चन्द्र- कल्पना, रोमांस, परिवर्तनशीलता। 5. सूर्य- प्रतिभा फलीभूत होना, सफलता। 6. बृहस्पति- महत्वाकांक्षा, अधिकार, प्रभुत्व।
माशांना 7. शनि- संकोच, उदासीनता, गम्भीरता।
ग्रहों के उत्तम होने पर उपरोक्त प्रकार के गुणों में भी उत्तमता पाई जाती है तथा ग्रहों के बैठे या गांठ तीखी न होने पर व्यक्ति में उपरोक्त गुणों में कमी देखी जाती है। गुणावगुण को प्रदर्शित करने वाली रेखाएं तथा
चित्र : 16 हाथ में ग्रह क्षेत्र ग्रहों का होने पर व्यक्ति में उन लक्षणों की विशेषता पायी जाती है। एक गुण को दूसरे गुण द्वारा काटने पर कमी व एक द्वारा समर्थन व दूसरे गुण द्वारा विरोध होने पर गुण सामान्य रूप से या साधारण परिमाण में व्यक्ति में होते हैं। साथ ही ग्रह सम्बन्धी उंगली का सरल या तिरछा होना ग्रह के समर्थन में गुण या दोष का द्योतक है, जैसे सूर्य की उंगली सीधी होने पर यदि सूर्य उत्तम है और साथ ही सूर्य रेखा भी है तो व्यक्ति के जीवन में विशेष प्रसिद्धि व प्रभुता
पंगत बारात्मक
कारात
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के अवसर आते हैं। इस प्रकार से ग्रह उन्नत होने, उंगली तिरछी या मोटी होने पर व टूटी-फूटी सूर्य रेखा होने पर, व्यक्ति के जीवन में प्रसिद्धि व बदनामी दोनों के ही अवसर उपस्थित होते हैं। ___इस प्रकार ग्रहों की उत्तमता व निकृष्टता देखकर रेखाओं व अन्य लक्षणों के साथ इनका समन्वय करना एक उत्तम विवेचना का प्रमाण है। इससे फलों में पुष्टि ही नहीं वरन् उत्तम परिणाम की गारन्टी हो जाती है।
कभी-कभी एक ग्रह दूसरे ग्रह की ओर झुका हुआ होता है। अर्थात् ग्रह अपनी उंगली के नीचे न होकर दूसरे ग्रह की ओर अधिक झुका पाया जाता है। इस प्रकार से झुकने वाले ग्रह में या जिस दूसरे ग्रह की ओर यह गया है, एक-दूसरे के गुण सम्मिलित हो जाते हैं। जैसे बुध का सूर्य की ओर झुकना व्यक्ति में बुद्धिमत्ता व चरित्र दोनों का ही परिचायक है। सूर्य की ओर जाने से व्यक्ति के होने वाले कार्य में बौद्धिक विशेषता होने का लक्षण है।
ग्रहों का स्वरूप उत्तम होने पर यदि उंगलियां भी उत्तम हैं तो इस प्रकार उंगलियों में गिने जाने वाले वर्ष, जो कि आगे चल कर बताये जायेंगे, उत्तम तथा भाग्योदय कारक रहते हैं। ग्रह उत्तम न होने पर यदि उंगलियां भी तिरछी हो तो उस उंगली पर पड़ने वाले वर्षों का फल अच्छा नहीं रहता। साथ ही व्यक्ति में ग्रह सम्बन्धी विशेषताएं भी कम हो जाती हैं।
उंगली के पोरों पर हम वर्षों की गणना करते हैं। इसकी गणना बुध की उंगली के हथेली के साथ वाले पोर को एक मान कर अंगूठे के अन्तिम अर्थात् नाखून वाले पोर को 15 तक गिनते हैं। 15 के बाद बायें हाथ की बुध की उंगली के हथेली के साथ वाले पोर से 16 गिनते हुए अंगूठे के अन्तिम पोर तक 30 वर्ष तक की गिनती की जाती है। इस प्रकार से पुनरावृत्ति 45 से 60 या 75 तक होती है। यदि दायें हाथ में बुध की उंगली सीधी न होकर तिरछी हो या इसमें आड़ी रेखाएं हैं, बुध का ग्रह भी उन्नत नहीं है तो व्यक्ति की जीवन में 1, 2, 3 वर्ष जैसे 31, 32, 33, 61, 62, 63 आदि वर्ष दोषपूर्ण और समस्या-कारक होते हैं। ___ इसके अतिरिक्त ग्रह अपने स्वतन्त्र फल भी वर्षों में करते हैं। अतः फलादेश बताते हुए आयु के साथ इन वर्षों का भी समन्वय कर लेना चाहिए। हाथ में जिस वर्ष में उंगली में आड़ी रेखाएं होती हैं वह वर्ष चिन्ता, मृत्यु या अनेक प्रकार के कष्टों का पाया जाता है। यदि उपरोक्त ग्रह भी दोषपूर्ण हैं, उंगली तिरछी भी हो तो विशेष कष्ट का सामना करना पड़ता है।
ग्रहों के स्वतन्त्र वर्ष1. शनि- 19, 34, 35, 36, 37, 38, 39, 72, 73, 74 ।
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2. शुक्र- 15, 25, 26, 27, 43, 52, 53, 54, 55, 57, 581 3. सूर्य- 5, 6, 14, 22, 44, 50 । 4. चन्द्रमा- 2, 4, 24, 54 । 5. बुध- 3, 6, 17, 20, 21, 23, 29, 30, 31, 32, 33, 59, 62, 69 । 6. मंगल- 1, 14, 18, 48, 56 । 7. गुरू- 15, 16,80 । 8. राहू- 40, 41, 42, 44 । 9. केतू- 7,21, 42, 48 ।
ग्रहों के साथ हाथ में मंगल व शनि के क्षेत्र भी होते हैं। शनि का क्षेत्र शनि की उंगली से नीचे मणिबन्ध से लेकर शनि की उंगली तक माना जाता है। यह क्षेत्र जितना ही कम कटा-फटा, कम रेखाओं वाला, उर्ध्व रेखाओं से युक्त, गड्ढे, धब्बे, दाग आदि लक्षणों से रहित होता है, उतना ही व्यक्ति भाग्यशाली होता है।
दूसरा क्षेत्र हृदय व मस्तिष्क रेखा के बीच में मंगल क्षेत्र कहा जाता है। मंगल क्षेत्र जितना ही कम कटा-फटा व स्पष्ट होता है व्यक्ति का जीवन भी उतना ही शान्त व निर्विघ्न रहता है। हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होने पर इनके ऊपर का भाग ही मंगल क्षेत्र कहलाएगा। इस प्रकार ग्रहों के फल आदि देखकर अन्य लक्षणों से समन्वय करके इसके प्रभाव व फल का निश्चय कर लेना चाहिए।
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बृहस्पति ग्रह बृहस्पति ग्रह पहली उंगली या तर्जनी उंगली के मूल स्थान में स्थित है (देखें चित्र-17) । यदि वह सुविकसित हो तो व्यक्ति में दूसरों पर प्रभुत्व जमाने की, शासन करने की, नेतृत्व और संगठन करने की तथा किसी उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने की आकांक्षा होती है। ये सदगुण तभी होंगे जब मस्तिष्क रेखा सुस्पष्ट और लम्बी हो। यदि मस्तिष्क रेखा निर्बल हो या किसी प्रकार दूषित हो तो सुविकसित बृहस्पति क्षेत्र व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक घमण्ड भर देता है और वह स्वयं ही अपने गुण-गान करने वाला बन जाता है। परन्तु यदि बृहस्पति ग्रह अच्छा हो और हाथ में कोई दोष न हो तो जातक को सदाचरण और
आत्मविश्वास से आशातीत सफलता प्राप्त होती है। व्यक्ति को जीवन में सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाने वाले गुण जितने बृहस्पति ग्रह में होते हैं, उतने किसी
चित्र : 17 बृहस्पति ग्रह 71
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अन्य ग्रह में नहीं होते ।
बृहस्पति ग्रह को अकारात्मक समझना चाहिए जबकि व्यक्ति का जन्म 2 नवम्बर और 20 दिसम्बर के बीच में और 29 दिसम्बर तक हुआ हो। ये व्यक्ति स्वभाव से महत्वाकांक्षी, निर्भीक और दृढ़ निश्चय वाले होते हैं। वे जो कुछ करते हैं, उसमें विरोध की परवाह नहीं करते। वे उसे पूर्ण एकाग्रता से करते हैं, वे सत्यनिष्ठ और उच्च सिद्धान्तवादी होते हैं और जो विश्वास उनके ऊपर किया जाता है, उसको पूर्ण करते हैं। वे धोखाधड़ी का घोर विरोध करते हैं, चाहे उनकी योजना नष्ट ही क्यों न हो जाए, वे धोखाधड़ी करने वालों का भण्डाफोड़ करके ही दम लेते हैं।
वे सफल व्यापारी बनते हैं और अपनी योग्यता से उच्चतम शिखर पर पहुंच जाते हैं। वे सरकारी कार्यालय में उत्तरदायित्व के उच्च पद योग्यता के साथ सम्भालते हैं। वे राजनैतिक क्षेत्र में कम प्रविष्ट होते हैं, क्योंकि पार्टीबाजी और उससे सम्बन्धित योजनाऐं उनके स्वभाव के विपरीत होती हैं।
अपना व्यवसाय और जीवन वृत्ति चुनने में वे स्वतन्त्र होते हैं। वे यह जरूरी नहीं समझते कि जो व्यवसाय उनके पिता कर रहे हैं, उसी में स्वयं भी लग जायें । यही कारण है कि अपने आरम्भिक जीवन में वे अपने माता-पिता के लिये चिन्ता का विषय बनते हैं। उनके माता-पिता के लिए यही उचित है कि ऐसे व्यक्ति को अपना व्यवसाय चुनने में पूर्ण स्वतन्त्रता दे दें।
इस प्रकार के व्यक्तियों में सबसे बड़ा दोष यह होता है कि वे अपने काम में इतना उत्साह और जोश दिखाते हैं कि सीमा को पार कर जाते हैं। इसके कारण प्रायः उन्हें हानि उठानी पड़ती है और वे अपने एक लक्ष्य को छोड़कर दूसरे लक्ष्य की ओर दौड़ने लगते हैं। परन्तु यदि मस्तिष्क की रेखा सुस्पष्ट हो और सीधी करतल को पार करती हो तो उत्तरदायित्व का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं, जिसके उच्चतम शिखर पर वे न पहुंच जायें।
बृहस्पति पर क्रास, अधिक रेखाएं व चतुष्कोण हों तो व्यक्ति को टान्सिल, गला सूखना या गले में गरमराहट सी होना आदि बीमारियां होती हैं। जीवन रेखा में बृहस्पति के नीचे दोष होने पर ऐसा निश्चित ही कहा जा सकता है। बृहस्पति के नीचे चतुष्कोण या अन्य प्रकार की कोई रेखा हो तो ऐसे व्यक्तियों को कोई चीज गले में अटक जाती है। जिन व्यक्तियों की मृत्यु मछली का कांटा या गले में कुछ फंसने व सांस घुटने के कारण होती है, उनके हाथ में ऐसे ही लक्षण पाये जाते हैं।
बृहस्पति पर चतुष्कोण व्यक्ति को हर खतरे से बचा कर रखता है। ऐसे व्यक्ति को अपने सम्मान का डर लगा रहता है, परन्तु उसकी मान हानि का अवसर जीवन में कभी नहीं आता। ऐसे व्यक्तियों को ससुराल अच्छी मिलती है। उससे लाभ होना या न होना मस्तिष्क रेखा की दशा पर निर्भर करता है। मस्तिष्क रेखा अच्छी होने
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पर ऐसे व्यक्ति ससुराल से लाभ प्राप्त करते हैं।
बृहस्पति ग्रह पर त्रिभुज, लोकहित के लिए कार्य करने वाले, जैसे रियासतों या राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के हाथों में पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति राजदूत, गवर्नर आदि होते हैं।
बृहस्पति पर तारा होने पर अन्तिम समय में दाम्पत्य सुख की हानि होती है। अतः जीवन साथी का विछोह व पक्षाघात होने की सम्भावना हो जाती है। यह मस्तिष्क में रसोली होने का भी लक्षण है।
बृहस्पति के नीचे मंगल क्षेत्र की ओर, हृदय व मस्तिष्क रेखा के बीच की गहरी रेखा विशेष धनी होने के लक्षण हैं। हाथ उत्तम होने पर, दोनों हाथों में यह रेखा करोड़पति होने का लक्षण है।
बृहस्पति ग्रह का अन्य ग्रहों के साथ मिलने पर निम्न फलादेश कहना चाहिए1. बृहस्पति तथा शनि- उद्योग आदि में विशेष योग्यता, ईश्वर चिन्ता, ज्योतिष | 2. बृहस्पति तथा शुक्र- सौन्दर्य में रूचि आदि ।
गतिरोध ।
3. बृहस्पति तथा चन्द्र- कलाकारिता, मानसिकता, 4. बृहस्पति तथा बुध- रासायनिक पदार्थ, लेखन, गले के रोग, प्रबन्धक आदि । 5. बृहस्पति तथा सूर्य- किसी कार्य में विशेष दक्षता ।
ऐसे व्यक्ति अपने मुंह से किसी की तारीफ नहीं करते, अतः इस प्रकार के व्यक्ति की पत्नी हमेशा ही इनके व्यवहार से असन्तुष्ट रहती है। प्रेम होते हुए भी ये अपने जीवन-साथी की प्रशंसा नहीं करते। अपने मतलब के बाद मुंह फेर लेते हैं। हां, दूसरों के सामने अवश्य प्रशंसा करते हैं। उनकी आवश्यकता आदि का भी ध्यान रखते हैं। शुक्र विशेष उठा होने पर ऐसे व्यक्ति अपने गृहस्थ के विषय में उदासीन होते हैं और घर को होटल समझना, देर से आना या शीघ्र घर से निकल जाना तथा पत्नी की आवश्यकताओं का ध्यान न रखना आदि मनोवृत्ति भी ऐसे व्यक्तियों में पायी जाती है । ऐसे व्यक्तियों की भाग्य रेखा मोटी व उंगलियां छोटी होती हैं। ये अनेक प्रकार के लफडे करने वाले होते हैं। पत्नी के विरोध करने पर उसका अपमान कर देते हैं या पत्नी को दबा कर रखते हैं।
शनि ग्रह
शनि ग्रह दूसरी उंगली के मूल स्थान में स्थित होता है (देखें चित्र - 18)। इस ग्रह के मुख्य गुण हैं- एकान्तप्रियता, बुद्धिमानी, चुपचाप दृढ़ निश्चय करना, गम्भीर विषयों का अध्ययन करना और भाग्य पर अंधविश्वास । यदि यह ग्रह बिल्कुल विकसित न हो तो व्यक्ति में छिछोरापन आ जाता है। यदि यह क्षेत्र सीमा से अधिक विकसित हो तो उसके गुणों में इतनी वृद्धि आ जाती है कि वे अवगुण बन जाते हैं।
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शनि ग्रह को अकारात्मक तब समझना चाहिए जब व्यक्ति का जन्म 21 दिसम्बर और 21 जनवरी के बीच हुआ हो और कुछ हद तक यदि जन्म 28 फरवरी तक हुआ हो।
इन तारीखों में जन्म लेने वाले लोग बलवान इच्छाशक्ति और मस्तिष्क के होते हैं। परन्तु अपने जीवन में अपने आपको एकांकी और दूसरों से अलग पाते हैं।
भाग्य और परिस्थितियों के हाथों में वे खिलौने के समान होते हैं और बलवान इच्छा शक्ति होने पर भी वे उनपर अधिकार पाने में चित्र 8 शनि यह असमर्थ रहते हैं। स्वभाव से वे स्वतन्त्र विचार के होते हैं और उन्हें अपने ऊपर दूसरों का नियन्त्रण पसन्द नहीं आता। यदि उनके प्रति कोई स्नेह या सहानुभूति दिखाऐ तो वे उसके लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं, परन्तु, क्योंकि वे अपने आपको सबसे अलग पाते हैं, इसलिए उन्हें विश्वास नहीं होता कि उसका कोई ख्याल करता है। प्रेम और कर्त्तव्य के सम्बन्ध में उनका ऐसा विचित्र दृष्टिकोण होता है कि जो भी उनके निकट आना चाहता है, उसको सनकी समझने लगते हैं। अपने को धार्मिक न दिखाते हुए भी वे धार्मिक होते हैं और सदा जनसाधारण के लिए भलाई का काम करने के प्रयत्न में संलग्न रहते हैं। अपने जीवन के उत्तरदायित्वों को वे ऐसे गम्भीर रूप से लेते हैं कि परिणामस्वरूप वे निराशावादी हो जाते हैं। यदि धार्मिक होते हैं तो धर्मान्ध हो जाते हैं और अपने धार्मिक विचारों का विरोध सहन नहीं कर सकते। अध्यात्म और गुप्त विद्याओं में उनको आन्तरिक रूप से रूचि होती है, परन्तु इसमें भी वे सीमाओं का उल्लंघन कर जाते हैं।
वे चतुर और बौद्धिक व्यक्तियों के प्रति आकर्षित होते हैं। वे गम्भीर विचारक होते हैं, परन्तु अपने विचारों के प्रति विरोध को वे सहन नहीं कर सकते। वे प्रायः उच्च और उत्तरदायित्व के पदों पर आसीन होते हैं, परन्तु यह सब होते हुए भी सदा भाग्य पर अंधविश्वास रखते हैं। वे यही समझते हैं कि जो कुछ भी है वह विधाता की इच्छानुसार है और यदि उनके द्वारा हजारों आदमी नष्ट-भ्रष्ट हो जाये तो भी वे यही समझते हैं कि विधाता की ऐसी ही इच्छा थी। यदि कर्तव्य की वेदी पर उन्हें अपना बलिदान देना पड़े तो वे अपना जीवन दे देने में जरा भी संकोच नहीं करते।
ऊपर दी हुई तारीखों में जन्म लेने वाले जातक विचित्र स्वभाव और दृढ़ आचरण के होते हैं। उनसे लोग स्नेह भी करते हैं और भयभीत भी रहते हैं।
शनि ग्रह पर अधिक रेखाएं हों तो व्यक्ति में विशेष सोचना, निराश रहना आदि.
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लक्षण पाये जात है। शनि व मंगल उत्तम होने पर व्यक्ति खनन, सर्वे, पर्वत या वन सम्बन्धी कार्य, साहसिक कार्य, अग्नि सम्बन्धी कार्य या अनुसंधान कार्य करने वाले होते हैं। साथ ही शनि क्षेत्र अधिक कटा-फटा होने की दशा में व्यक्ति को जीवन भर शान्ति नहीं मिलती। कोई न कोई झंझट जीवन में चलता रहता है।
शनि ग्रह पर सीढ़ी जैसी रेखाएं होने पर व्यक्ति को गठिया रोग हो जाता है, ऐसे व्यक्तियों के दांतों में खून आने की शिकायत रहती है या पायरिया हो जाता है। इस दशा में यदि शनि ग्रह अधिक उन्नत हो तो दांत टूट जाते हैं और वायु विकार रहता है। शनि स्थान पर यदि दो रेखाएं हृदय रेखा को काटें तो ऐसे व्यक्ति को कोई चौपाया पशु लात या सींग मारता है, जिससे व्यक्ति को काफी कष्ट उठाना पड़ता
शनि पर्वत पर तिल होने से सांप के काटने का खतरा रहता है। यदि जीवन रेखा से आकर कोई रेखा बृहस्पति मुद्रिका को काटती है तो, इन्हें सांप से अवश्य ही सावधान रहना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को स्वप्न या प्रत्यक्ष में सांप अधिक दिखाई देते हैं और इन्हें अग्नि और बिजली से भी भय रहता
शनि ग्रह पर यदि हृदय रेखा में त्रिकोण हो तो व्यक्ति उस आयु में सम्पत्ति का निर्माण करते हैं, परन्तु यदि यह त्रिकोण स्वतन्त्र हो तो आध्यात्मिक रूचि होती है। ऐसे व्यक्ति की आत्म-शक्ति विशेष उन्नत होती है। अन्त में ऐसे व्यक्ति सन्यासी हो जाते हैं। शनि की उंगली लम्बी होने पर निश्चय ही यह फल कहा जा सकता है। शनि पर त्रिकोण व शनि की उंगली टेढ़ी हो तो व्यक्ति खनन कार्य करते हैं।
शनि पर चतुष्कोण (देखें चित्र-19) हो तो ऐसे व्यक्तियों को अग्नि से भय होता है तथा कई बार बिजली के झटके लगते हैं। अतः इनको इससे सावधान रहना चाहिए। चतुष्कोण दांत भी खराब फल करता है, साथ ही आत्मशक्ति के उदय होने का चिन्ह है। परन्तु त्रिकोण जैसा फल यह चतुष्कोण नहीं करता। ऐसे व्यक्ति तन्त्र-मन्त्र आदि के जानकार होते हैं। हाथ में जितनी ही उत्तम रेखाएं निर्दोष होंगी, व्यक्ति को इस सम्बन्ध में अधिक फलदायक होंगी। शनि उन्नत होने के बजाय यदि बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति खनिज-लोहे आदि का व्यापार करते हैं। यदि शनि ग्रह दोनों ओर बृहस्पति व सूर्य ग्रहों से दब गया हो तो ऐसे व्यक्तियों को तेल या पेट्रोल, तिलहन के व्यापार से लाभ होता है। शनि ग्रह उत्तम होने पर व्यक्ति को पहले नौकरी करनी पड़ती है, परन्तु इस विषय में अन्य लक्षणों को भी समझ
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लेना चाहिए ।
सूर्य ग्रह
सूर्य ग्रह तीसरी उंगली या अनामिका के नीचे स्थित होता है। यदि सूर्य ग्रह बड़ा और सुविकसित हो तो कीर्ति व प्रसिद्धि और प्रतिभा सम्पन्न होने का परिचायक होता है। इसका बड़ा और सुविकसित होना सौभाग्य का चिन्ह है। इस ग्रह के गुणों से प्रभावित व्यक्ति चाहे कलाकार हो, सुन्दर वस्तुओं के प्रति रूचि रखता है। ये लोग व्यवहारिक जीवन में सफल होने में सुन्दर भवन बनवाते हैं और उसके चारों तरफ बाग-बगीचे बनाते हैं। ये अत्यन्त उदार हृदय के होते हैं और साथ ही साथ शौकीन तबीयत और खुश मिजाज होते हैं और दूसरे से भी वैसा ही व्यवहार चाहते हैं।
सूर्य बैठा, उंगली तिरछी या सूर्य पर अधिक कटी-फटी रेखाएं होने पर व्यक्ति बदमिजाज, अधिक दिखावा करने वाला तथा झगड़ालू होता है। सूर्य पर अधिक रेखाएं होने पर यदि हाथ अच्छा हो तो व्यक्ति अधिक व्यस्त रहता है और व्यस्तता के कारण उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। हाथ उत्तम न होने के कारण व्यर्थ की व्यस्तता अपने सिर पर लादे रहते हैं।
अच्छे सूर्य ग्रह वाले व्यक्ति शिल्प कला, खाने-पीने व कपड़े आदि का व्यापार करने वाले होते हैं। हाथ में सूर्य व शनि अच्छा होने से सूर्य की उंगली तिरछी हो तो व्यक्ति खेती में अधिक रूचि लेते हैं और यदि दोनों उंगलियां भी सीधी हो तो वे विशेष सफलता प्राप्त करते हैं । चमसाकार हाथ वाले व्यक्ति खाने-पीने के व्यापार में अधिक रूचि लेते हैं। सूर्य व बृहस्पति उत्तम होने पर भी व्यक्ति खाने-पीने सम्बन्धी वस्तुओं का कारखाना लगाते हैं। बुध उत्तम होने पर औषधि सम्बन्धी कार्य में रूचि लेते हैं। सूर्य व शुक्र उत्तम होने पर सिनेमा या होटल, ड्रामा कम्पनी सम्बन्धी कार्य करते हैं। सूर्य उत्तम तथा सूर्य की उंगली सीधी तथा निर्दोष सूर्य रेखा होने पर सर्कस व उपरोक्त धन्धे में व्यक्ति को अच्छी सफलता मिलती है और विख्यात होता है।
चित्र: 20 सूर्य ग्रह
भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकलकर शनि पर जाने की दशा में अगर सूर्य उत्तम हो व सूर्य रेखा हो तो व्यक्ति राजनेता होता है। मध्यम हाथ होने पर किसी ट्रेड यूनियन आदि में भाग लेते हैं। सूर्य पर वृत्त होना यशस्वी व बहुत धनी होने का लक्षण है। वृत्त होने पर यदि सूर्य ग्रह के नीचे हृदय रेखा में दोष और सूर्य रेखा में भी दोष हो तो व्यक्ति की आंख में दोष होने का संकेत होता है। सूर्य पर जितनी खड़ी रेखाएं
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होती हैं, व्यक्ति के उतने ही आय के साधन पाये जाते हैं, लेकिन यदि हाथ पतला हो तो घर में उतने ही व्यक्ति कमाने वाले होते हैं। सूर्य पर त्रिकोण होने पर व्यक्ति उदार व सम्पत्ति का निर्माण करने वाले होते हैं। खेती होने पर ट्यूबवैल और अन्न मशीनें लगाते हैं। जितने त्रिकोण हो उतने.ही सम्पत्ति निर्माण करते हैं या एक ही सम्पत्ति को बार-बार बनवाते हैं। सूर्य ग्रह पर तिल हो तो पहले बदनामी और बाद में प्रसिद्धि का कारण होता है। ऐसे व्यक्ति धनी भी होते हैं।
ऐसे व्यक्ति दृढ़ आचरण के होते हैं और उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है। यदि परिस्थितियों के वशीभूत होकर उन्हें गरीबी का जीवन व्यतीत करना पड़ता है तो उस दशा में भी वे अपने व्यक्तित्व में सबसे भिन्न होते हैं। मन से वे अत्यन्त सहानुभूति पूर्ण होते हैं। हालांकि कभी-कभी दूसरों को अच्छा काम करने के लिए विवश करने में उनको अपने इस गुण को छिपाना पड़ता है। असत्यवादी और दुराचारी लोगों के लिए उनके मन में कोई सहानुभूति नहीं होती, चाहे वे उनके बच्चे ही क्यों न हों। ऐसे व्यक्ति निष्ठावादी होते हैं और अपने मित्रों की सब प्रकार से सहायता करने को सदा तैयार रहते हैं। वे जितनी अधिकता से प्रेम करते हैं, उतनी ही अधिकता से नफरत भी करते हैं। उन्हें मध्य का रास्ता पसन्द नहीं आता। या तो वे इस किनारे पर होते हैं या दूसरे किनारे पर। ऐसे व्यक्ति आर-पार की लड़ाई लड़ते हैं।
बुध ग्रह बुध ग्रह चौथी उंगली अर्थात् कनिष्ठा उंगली के मूल स्थान में स्थित होता है। (देखें चित्र-21) हाथ देखते समय बुध ग्रह के विषय में जानकारी बहुत महत्व रखती है। बुध ग्रह व्यक्ति में परख, बुद्धिमत्ता, चालाकी, दुर्गुण, जेल, षड़यन्त्र, खोज आदि विषयों का पारिचायक है।
उन्नत बुध यदि अधिक रेखाओं से कटा-फटा न हो, साथ ही बुध की उंगली लम्बी अर्थात् सूर्य की उंगली के तीसरे पोर से आगे निकली हो तो बुध उत्तम माना जाता है। ऐसे व्यक्ति विशेष बौद्धिक क्षमता वाले होते हैं तथा बुद्धि के बल पर विशेष उन्नति करते हैं। वैज्ञानिक, व्यवसायी, राजनेता, वक्ता, साहित्यकार, शोधकर्ता व तार्किक व्यक्तियों के हाथ में बुध उत्तम प्रकार का होता हैं। उत्तम प्रकार के हाथ में ही बुध उपरोक्त गुणदाता होते हैं। रेखाओं में दोष होने या हाथ उत्तम न होने पर उत्तम बुध व्यक्ति में बौद्धिक विकास का लक्षण तो है, परन्तु उसका प्रभाव उल्टा होता है। ऐसे व्यक्ति चोरी, ब्लैक मार्केट, षडयन्त्र करने वाले तथा समाज विरोधी कार्य करने वाले होते हैं।
ये झठ बोलने में दक्ष होते हैं। अतः तर्कशक्ति का उपयोग झूठ की ओर हो जाता है। हाथ उन्नत न होने पर यदि बुध की उंगली भी टेढ़ी हो तो फिर कहना
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ही क्या। ऐसे व्यक्ति साधारण रूप से तो कोई कार्य कर ही नहीं सकते, मस्तिष्क में हमेशा ही शैतानी भरी रहती है। समाज के दुश्मन होते हैं और हर प्रकार का कार्य करने के लिए तत्पर रहते हैं।
बृहस्पति की उंगली छोटी होने पर सम्मान से गिरे हुए कार्य भी करते हैं। इस प्रकार के लक्षण होने पर मस्तिष्क रेखा जितनी अच्छी होती है, व्यक्ति असामाजिक कार्य करने में उतना ही चतुर होता है। चोरी भी करते हैं और पकड़ में भी नहीं आते। विशिष्ट प्रकार से षडयन्त्र करने वाले व्यक्ति के हाथ में इस प्रकार के चिन्ह होते हैं। हाथ उत्तम होने पर मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी हो, बुध उन्नत व बुध की उंगली तिरछी हो तो ऐसे व्यक्ति भी विशेष बुद्धिमान होते हैं। वकील, डॉक्टर, बड़े अधिकारी तथा पत्रकार, उच्च कोटि के वक्ता इसी श्रेणी में आते हैं। इनकी परख शक्ति उच्च कोटि की होती है। ऐसे व्यक्ति कार्य कुशल होते हैं।
चित्र: 21 बुध ग्रह
बुध उन्नत होने पर मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा समानान्तर हो तो हाथ में अन्य लक्षण अच्छे होते हैं, और सूर्य रेखा हो तो खोजकर्त्ता होते हैं। प्रत्येक कार्य में मस्तिष्क का प्रयोग करके अपना नया अन्दाज निकाल लेते हैं और आश्चर्यजनक रूप से सफल होते हैं। अतः वैज्ञानिक तथा शोध करने वाले विद्यार्थी इसी श्रेणी में आते हैं। बुध का उत्तम होना व्यक्ति में परिमार्जित बुद्धि का लक्षण होता है, लेकिन यदि हाथ दोषपूर्ण हो तो निकृष्ट ध्येय के लिए प्रयोग की जाती है। कुछ उन्नत होने पर बुध की उंगली सूर्य की उंगली के तीसरे पोर से आगे निकलने व बुध का नाखून छोटा होने पर सोने पे सुहागे का कार्य करता है। ऐसे व्यक्ति हरी वस्तुओं, हरे रंग के वस्त्रों में अधिक रूचि रखते हैं। बुध उन्नत होने पर सूर्य या चन्द्रमा भी उन्नत हों तो ऐसे व्यक्ति औषधि आदि के ज्ञान में दक्ष होते हैं।
बुध का नाखून छोटा व मस्तिष्क रेखा दोहरी या बुध की उंगली टेढ़ी और मस्तिष्क रेखा बृहस्पति के पास निकली हो तो जौहरी या परख का कार्य करने वाला होता है। बृहस्पति उन्नत होने पर ये उत्तम कोटि के प्रबन्धक व ऊंचे पदों पर काम करने वाले होते हैं। बुध पर तिल होना एक विशेष लक्षण है। उत्तम हाथ में यह पत्रकार, लेखक होने का लक्षण होता है, परन्तु निम्न कोटि के हाथ होने पर व्यक्ति झूठ बोलने वाले व चोर होते हैं।
बुध पर तीन खड़ी रेखाएं होने पर इनका कोई पुत्र या स्वयं डाक्टर या रसायन शास्त्र के ज्ञाता होते हैं। इन्हें औषधियों का अधिक ज्ञान होता है।
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चन्द्र ग्रह चन्द्र ग्रह बुध की उंगली के नीचे, मंगल व कलाई के बीच में होता है (देखें चित्र-22)। हथेली जिस स्थान पर कलाई के पास मिलती है, उस स्थान पर अंगूठे के दूसरी ओर चन्द्रमा स्थित है। चन्द्रमा का सम्बन्ध कल्पना से है।
यहां यह बात विशेष रूप से जानने की है कि चन्द्रमा अधिक उठा, तीखा या अधिक बैठा हानिकारक होता है। उन्नत होने पर यह अन्य ग्रहों से विशेष दीखता है। अधिक उन्नत होने के कारण गुण, दुर्गुणों में बदल जाते हैं तथा अधिक बैठा होने के कारण भी उपरोक्त गुणों में या तो कमी होती है या अधिकता। अतः यह साधारण होना ही श्रेयष्कर होता है।
चित्र-22 चन्द्र ग्रह उत्तम चन्द्रमा व्यक्ति में सौन्दर्य, प्रशंसा की भावना, कलात्मकता एवं सौन्दर्य प्रसाधन में रुचि का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति सन्तुलित मस्तिष्क के होते हैं, परन्तु इनमें कल्पना की भावना अवश्य देखी जाती है। उत्तम कोटि के कवियों में चन्द्रमा उत्तम होता है, परन्तु अधिक उठा हुआ नहीं। ये सौन्दर्य के प्रतीक की उपासना करते हैं।
अति उन्नत चन्द्रमा होने पर व्यक्ति में कल्पना अधिक आ जाती है। अत: ये कल्पना और वासना प्रिय होते हैं। कभी-कभी यह भावना पागलपन तक पहुंच जाती है। हाथ में अन्य रेखाओं में दोष होने पर निश्चय ही ऐसे व्यक्ति पागलखाने तक जाते हैं। स्त्रियों में यह दोष पाए जाने पर आत्महत्या का प्रयत्न करती हैं, अन्यथा सोचती अवश्य हैं। अन्य लक्षण होने पर यदि चन्द्र अत्यधिक उठा हुआ हो तो आत्महत्या कर ही लेती हैं।
इसमें कोई शंका नहीं कि ये मानसिक रोगी होते हैं। ये आवश्यकता से अधिक वहमी होते हैं। मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का जोड़ भी लम्बा हो तो फिर क्या कहना। ये सोचते हैं कि फलां काम ऐसे होगा, फलां काम वैसे होगा, मैं पागल हूं, मुझ पर जादू कर दिया गया है, वह मुझ पर मरती है, मैं नपुंसक हो जाऊंगा आदि-आदि।
जीवन रेखा में द्वीप बड़ा होने पर इन्हें टी.बी. या जलोदर जैसा रोग हो जाता है। ये विशेष कामुक होते हैं और अति भावुक होने के कारण इनमें यौन शिथिलता आ जाती है। शीघ्र पतन, स्वप्न दोष, श्वेत प्रदर, हिस्टीरिया आदि रोग विकार इनमें देखे जाते हैं। इन्हें अधिक यौन चिन्तन न करके ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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चन्द्रमा सम होने पर व्यक्ति सन्तुलित मस्तिष्क का होता है। कल्पना तो होती है, परन्तु उसमें मस्तिष्क का भी प्रयोग होता है। ऐसे व्यक्ति यदि विवेकशील हों तो वास्तव में ही प्रगति करते हैं। ईश्वर चिन्तन में इनकी विशेष रूचि देखी जाती है और इस सम्बन्ध में उपलब्धियां भी प्राप्त होती हैं। इस दशा में यदि धनुषाकार चन्द्र रेखा चन्द्रमा पर हो तो ऐसे व्यक्ति सिद्धियां प्राप्त कर लेते हैं।
चन्द्रमा पर क्रास का निशान होने पर व्यक्ति को जल में डूबने का भय रहता है और साधारण झूठ बोलने की आदत होती है। ग्रह के बीचों-बीच क्रास हो तो व्यक्ति को गठिया रोग होता है, परन्तु यह क्रास बड़ा होना चाहिए। __ चन्द्रमा पर जाली जैसा चिन्ह होना व्यक्ति में यौन चिन्तन या स्नायु दुर्बलता पैदा करता है। ऐसे व्यक्ति जीवन साथी के बिना नहीं रह सकते। अत्यधिक भावुक होने पर ये पुंसत्वहीन हो जाते हैं।
चन्द्रमा पर अधिक रेखाएं, व्यक्ति के पेट में खराबी, वायु विकार, अधिक कामुकता, अधिक भावुकता, वीर्यदोष, स्वप्नदोष व प्रदररोग होता है।
चन्द्रमा पर त्रिकोण ऐसे व्यक्ति के हाथों में पाया जाता है जो कि गुप्त विद्या या जादूगरी का जानकार हो। मन्त्र-तन्त्र के ज्ञाताओं के हाथ में भी ऐसे लक्षण पाये जाते हैं। त्रिकोण स्वतन्त्र व स्पष्ट होने पर व्यक्ति को जुआ, सट्टा या लाटरी आदि से अचानक धन प्राप्त होता है। जीवन रेखा से निकल कर कोई रेखा सीधी व स्पष्ट रूप से चन्द्रमा पर जाती हो तो उसे हम चन्द्र रेखा कहते हैं।
मंगल ग्रह
मगल ग्रह का स्थान हाथ में दो जगह होता है। एक तो अंगूठे के पास बृहस्पति के नीचे, दूसरा बुध की उंगली के पास बुध के नीचे। पहला स्थान यदि बड़ा हो तो अकारात्मक होता है और उसका महत्व अधिक हो जाता है। यदि व्यक्ति का जन्म 21 मार्च और 21 अप्रैल के बीच में हो और यदि 28 अप्रैल तक हो। कुछ हद तक होता है। वर्ष का यह भाग भचक में मंगल का भाव सकारात्मक कहलाता है।
दूसरा स्थान नकारात्मक होता है और उसका महत्व अधिक होता है। यदि व्यक्ति का जन्म 21 अक्टूबर और 21 नवम्बर के बीच में हो और यदि जन्म 28 नवम्बर तक हो तो कुछ हद तक होता है वर्ष का यह भाग भचक में मंगल का भाव नकारात्मक कहलाता है।
मंगल का सम्बन्ध व्यक्ति के साहस, क्रोध, धैर्य, निष्ठा, खेती, पेट विकार आदि से है। अत: मंगल उठा होने पर उपरोक्त गुण पाये जाते हैं। परन्तु पेट में विकार रहता है। जो व्यक्ति प्रायः राजसेवा में होते हैं, उनके हाथ में उठा हुआ मंगल होता है। ऐसे व्यक्ति अति निष्ठावान होते हैं। अतः राज्यसेवा में उनका स्थान सेना, पुलिस,
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जल सेना या इस प्रकार के पदों पर होता है। उनकी उंगलियां भी मोटी देखी जाती हैं। ये मस्तिष्क का प्रयोग कम ही करते हैं। साथ ही जिद्दी, क्रोधी, साहसी, लगन वाले आदि होते हैं। स्पष्टवक्ता होते हैं और गलत बात को भी सहन नहीं करते।
हृदय रेखा का अन्त बृहस्पति पर हो तो ऐसे व्यक्ति महान, साहसी, सत्यवादी, आन पर मरने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के हाथ गुलाबी होते हैं। इनके मकान या सम्पत्ति पर झगड़ा पाया जाता है। मंगल अधिक उठा होने पर व्यक्ति के विवाह में रुकावट होती है। विवाह देर से होता है या सम्बन्ध होकर टूटता है। ऐसे व्यक्तियों को मूंगा पहनना चाहिए। मंगल उठा होने पर इसका विशेष फल 1 1/2, 4, 8, 12, 14, 28 व 48 वर्ष में देखा जाता है।
___ मंगल उत्तम होने पर व्यक्ति यदि भावुक भी हो तो आत्महत्या जैसी घटनाएं नहीं करता। मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर व्यक्ति स्पष्टवक्ता, झगड़ालू , बेहद चिड़चिड़े व क्रोधी स्वभाव के होते हैं। मस्तिष्क रेखा सुन्दर होने पर साहसी, बर्दाश्त न करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति दबते नहीं। सत्य का अन्ततः पालन करते हैं। जुबान के पक्के होते हैं, सच्चे व स्वाभिमानी होते हैं। परन्तु मस्तिष्क रेखा अधिक सुन्दर होने पर ये बेहद चालाक देखे जाते हैं। इनका मकान ऊंची जगह पर होता है तथा यह कार्य भी समतल भूमि से ऊंचे पर ही करते हैं।
मंगल पर क्रास होने पर बवासीर हो जाती है। यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो निश्चय ही ऐसा कहा जा सकता है। मस्तिष्क रेखा में अन्य दोष होने पर ये अपनी स्मृति को कमजोर समझते हैं। विशेष दोष होने पर बड़ी आयु में इनकी स्मृति कमजोर भी हो जाती है। ___मंगल पर काला या लाल दाग होने पर इनकी मृत्यु विष से होने की सम्भावना होती है। मंगल पर तारा होने पर क्रोध अधिक आता है और झगड़ों में मार-पीट व चोट लगती है। मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो यह भी सम्भावना होती है कि इनके हाथ से किसी की हत्या हो जाये।
मंगल पर अधिक रेखाएं होने पर पेट में गैस, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। फलस्वरूप धातु विकार होते हैं। सिर में दर्द रहता है। चन्द्रमा उन्नत हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। सर्दी का असर नाक व गले में बना रहता है। मंगल पर चतुष्कोण होने पर जेल का डर भी होता है। कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ती है। मंगल पर त्रिकोण होने पर उच्चकोटि के गणितज्ञ होते हैं। इन्हें सेना या शोध कार्य में सम्मान मिलता है।
शुक्र ग्रह
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शुक विस्तार की दृष्टि से साथ सबसे बड़ा का है। यह अट का का
शुक्र विस्तार की दृष्टि से हाथ में सबसे बड़ा ग्रह है। यह अंगूठे के नीचे,
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जीवन रेखा के भीतर की ओर स्थित होता है। शुक्र की लम्बाई चौड़ाई, गठन व आकार का मानसिक स्थिति व स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। शुक्र जब अन्य ग्रहों से ऊंचा तथा सुडौल दिखाई देता हो तब इसे हम उन्नत मानते हैं, और हाथ को शुक्र प्रधान हाथ बोलते हैं। निश्चय करने के लिए अंगूठे को हथेली के साथ लगाकर शुक्र की स्थिति का पता चल जाता है। इस अवस्था में शुक्र स्पष्ट रूप से उठा हुआ या बैठा हुआ, जिस भी स्थिति में होता है, पता चल जाता है।
शुक्र अधिक उठा, अधिक बैठा, अधिक सुडौल गठन वाला या अधिक ढीला अच्छा नहीं माना जाता। शुक्र की स्थिति हाथ में मध्यम ही होनी चाहिए अन्यथा यह व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक कमजोरियों का कारण होता है, जिनके प्रभाव से व्यक्ति को जीवन बनाने में देर लगती है। उठा हुआ शुक्र बेहद दोषपूर्ण होता है। यह व्यक्ति को किसी भी तरह से सन्तोष प्रदान नहीं करता। ऐसे व्यक्ति 43 वर्ष की आयु तक अपने जीवन से असन्तुष्ट देखे जाते हैं और सम्यक उन्नति नहीं कर पाते।
हाथ उत्तम होने पर जीवन रेखा गोलाकार, भाग्य रेखा पतली व जीवन रेखा से दूर या संख्या में अनेक, साथ ही मस्तिष्क रेखा उत्तम प्रकार की होने पर व्यक्ति जीवन में उन्नति तो कर जाता है, परन्तु मानसिक सन्तोष 43 या 45 वर्ष की आयु के बाद ही मिल पाता है।
चित्र-23 शुक्र का सम्बन्ध सौन्दर्य पिपासा, कामवासना, गुर्दे व पुंसत्व शक्ति से होता है। अतः उपरोक्त बातों के विषय में विचार करते समय शुक्र का भली-भांति निरीक्षण आवश्यक है।
उत्तम शुक्र व्यक्ति में कई गुणों का संकेत करता है। उत्तम शक्र न अधिक उन्नत, न अधिक बैठा, चौड़ा व कटी-फटी रेखाओं से रहित होता है। ऐसे व्यक्ति स्वनिर्मित, सन्तुलित मस्तिष्क, सतर्क, सौन्दर्य प्रशंसक, साहित्यिक रूचि वाले, विशेषतया कवि या कलाकार होते हैं। ये जीवन में उन्नति करते हैं। हाथ के अन्य लक्षणों को देखकर अन्य बातों का भी पता लगा लेना चाहिए।
बहुत अधिक उन्नत शुक्र विशेष दोषपूर्ण होता है। अतः शुक्र से सम्बन्ध रखने वाले विषयों की अधिकता पाई जाती है जोकि गुणों के स्थान पर दोषों में परिवर्तित हो जाती हैं। यह शुक्र व्यक्ति की उन्नति में बाधक होता है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में 14, 44, 59 व 61 वर्ष बहुत ही झंझट पूर्ण रहते हैं। ये सौन्दर्य पिपासु, अति कामुक, श्रृंगार व अश्लील साहित्य पसन्द करने वाले, वहमी, सतर्क, स्वादिष्ट भोजन करने वाले व सुगन्ध प्रिय होते हैं। बहुत अधिक उठे शुक्र वाला व्यक्ति किसी का भी विश्वास नहीं करता। परन्तु
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जीवन में मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा होने पर आरम्भ में विश्वास करता है और धोखा खाता है, परन्तु जोड़ का समय निकलने पर ऐसा नहीं होता। इस दशा में यदि भाग्य रेखा मोटी हो और हृदय रेखा भी गहरी हो तो ऐसे व्यक्ति विश्वास के कारण या यौन सम्पर्क के कारण बरबाद होते देखे जाते हैं। अंगूठा कम खुले या मोटा हो तो पूर्णतया बरबाद हो जाते हैं और जीवन में कई बार ऐसी गलतियां करते देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति स्त्रियों के चक्कर में अधिक आते हैं, अतः स्त्री होने पर पुरुष और पुरुष होने पर स्त्री इनकी विशेष कमजोरी होती है।
शुक्र उन्नत होने पर, उंगलियां लम्बी हों तो व्यक्ति मस्त होते हैं। घर की परवाह नहीं करते। अधिक समय मित्रों या बाहर समाज में बिताते हैं। ये समाज में बैठकर ऐसे कार्य कर लेते हैं जो इनके कुल या वंश के अनुरूप नहीं होते।
शुक्र पर तिल व्यक्ति के जीवन के विषय में अनेक सूचनाएं देता है। इस तिल से व्यक्ति के गुर्दे में पथरी होने की भविष्यवाणी की जा सकती है। जिस हाथ में शुक्र पर तिल होता है, उसके दूसरी ओर गुर्दे में यह दोष होता है। इनके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तथा घर में अनबन रहती है और अन्त में बिना साथी के ही रहना पड़ता है। स्त्री होने पर उसके पेट तथा गर्भाशय में रोग देखा जाता है। पुरुष होने पर ऐसा फल इनकी पत्नी के लिए कहा जा सकता है। कुछ भी हो, अन्त में तिल व्यक्ति को धनी बनाता है। यदि शुक्र पर उल्टी तरफ अर्थात् हथेली के दूसरी तरफ तिल हो तो ऐसे व्यक्ति की मां, दादी, पत्नी और अन्त में किसी सन्तान की पत्नी के स्वास्थ्य में दोष रहता है। ___ इसी तिल के फल से 25 वर्ष से भाग्योदय आरम्भ होता है व तत्पश्चात् आगे बढ़ते रहते हैं। शुक्र उठा या बैठा कैसा भी हो सकता है, परन्तु अन्य लक्षणों से इसका समन्वय अवश्य ही कर लेना चाहिए। शुक्र के ऊपर एक दूसरी रेखा को काटने वाली रेखाएं यदि जाली का निशान बनाती हो तो व्यक्ति अत्यधिक विलासी होते हैं। प्रतिदिन विलासरत होते हैं; अन्यथा उचाट व बेचैनी का आभास होता है।
शुक्र पर तारे का चिन्ह होने पर व्यक्ति 35 या 40 वर्ष के पश्चात् पूर्णतया नपुंसक हो जाता है। दोनों हाथों में होने पर इस सम्बन्ध में कोई शंका नहीं रहती। इस प्रकार शुक्र के फलादेश का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के सम्बन्ध में विशेष महत्व है। अत: भली-भांति सोचकर तथा अन्य लक्षणों से समन्वय करने पर ही फल कहना चाहिए।
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मुद्रिकाएं
एसी गोलाकार रेखाएं, जो ग्रह को पूर्णतया घेर लेती हैं, मुद्रिकाएँ कहलाती है। मुद्रिका का अर्थ अंगूठी से है। अतः अंगूठी के आकार की किसी भी रेखा को मुद्रिका कहा जा सकता है।
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== बृहस्पति मुद्रिका । बृहस्पति मुद्रिका बृहस्पति की उंगली के नीचे बृहस्पति के तीन तरफ पायी जाती है। बृहस्पति के नीचे हाथ के किनारे से निकलकर व मुड़कर जीवन रेखा या मस्तिष्क रेखा पर मिलने वाली रेखा भी बृहस्पति मुद्रिका कहलाती है।
1. बृहस्पति मुद्रिका 2. शनि मुद्रिका 3. सूर्य मुद्रिका 4. राहू रेखा (क-ख) 5. शुक्र रेखाएँ 6. राहू रेखा (ग) 7. शुक्र रेखाएँ 8. मणिबंध व चन्द्र पर त्रिकोण
यह रेखा शुरू से गहरी व आगे से पतली होती चित्र : 24 है। समान मोटाई की होने पर दोषपूर्ण मानी जाती है। मुद्रिकाएं सभी लाभकारी होती हैं और व्यक्ति में तत्व सम्बन्धित विशेषता पैदा करती हैं, यदि ये टूटी-फूटी द्वीपयुक्त व अन्य किसी दोष से युक्त हों तो व्यक्ति में ग्रह सम्बन्धी अवगुण उत्पन्न करती हैं। मुद्रिकाएं उंगली के अधिक पास होना भी अच्छा नहीं माना जाता है। अतः मुद्रिकाएं जितनी ही दोषरहित व दूर होती हैं, उत्तम मानी जाती हैं।
बृहस्पति मुद्रिका अनेक हाथों में दो या तीन भी देखी जाती हैं। ऐसे व्यक्ति मनस्वी, ईमानदार, गम्भीर व साधक होते हैं। बृहस्पति मुद्रिका ट्टी होने पर व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा व अधिक सोचने वाला हो जाता है। उंगली के निकट मुद्रिका
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होने पर व्यक्ति किसी ऐसे रसायनज्ञ के सम्पर्क में आता है जो सोना या कीमती धातुएं बनाना जानता हो। इस प्रकार के ज्ञान रखने वालों के हाथों में भी यह मुद्रिका उंगली के पास ही होती है।
बृहस्पति मुद्रिका जीवन रेखा की ओर जाने वाली हो तो व्यक्ति पर पूर्ण गुरू कृपा होती है। हाथ सुन्दर होने पर अपनी साधना में सफलता प्राप्त करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों के वंश में कोई न कोई पूर्वज धर्मशाला, स्कूल या ऐसा निर्माण किसी तीर्थ स्थान पर कराते हैं।
बृहस्पति मुद्रिका को जब कोई रेखा जीवन या मस्तिष्क रेखा की ओर से काटती हो तो व्यक्ति को किसी के काटने या ज़हरीले इन्जैक्शन से हानि होने की सम्भावना रहती है। बृहस्पति पर चतुष्कोण होने पर इस प्रकार के भय से रक्षा हो जाती है अन्यथा मृत्यु हो जाती है।
हृदय रेखा बृहस्पति मुद्रिका पर जाकर मिलती हो तो ऐसे व्यक्ति अपने किसी सम्बन्धी, जैसे साली, भाभी, चाची, मामी आदि सम्बन्धों में अनैतिक सम्पर्क स्थापित कर लेते हैं। ऐसे सम्बन्ध क्रियात्मक होते हैं।
बृहस्पति मुद्रिका के साथ हाथ में अन्तर्ज्ञान के लक्षण जैसे अन्तर्ज्ञान रेखा, चन्द्र रेखा या डमरू आदि होने पर व्यक्ति ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, तन्त्र-मन्त्र, सम्मोहन आदि का ज्ञाता होता है। ऐसे व्यक्ति वंश प्रभाव से ही धार्मिक होते हैं। पीढ़ियों से ही इनके घर में पूजा, उपासना होती है।
बृहस्पति मुद्रिका टूटी-फूटी या पूरी न होने पर इनका कोई रिश्तेदार जीवन भर धन सम्बन्धी परेशानी में रहता है। अनेक बार सहायता करने पर भी उसकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता।
= शनि मुद्रिका = शनि मुद्रिका शनि की उंगली के नीचे पाई जाती है। सुन्दर व दोष रहित होने पर यह मुद्रिका आध्यात्मिक प्रगति का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति शिव उपासना में रूचि लेते हैं। इनकी रूचि आयु के साथ बढ़ती रहती है और अन्तिम आयु में गहनता को प्राप्त होती है। शनि मुद्रिका टूटी हुई होने पर आग व बिजली से भय रहता है।
यह मुद्रिका शनि की उंगली के पास व अधूरी हो तो व्यक्ति का वंश विधवा से विवाह के पश्चात् चलता है। इस प्रकार की अधूरी शनि मुद्रिका भील आदि जातियों के हाथों में अधिक देखी जाती है। देखें चित्र-251
चित्र: 25
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= सूर्य मुद्रिका =
सूर्य उंगली के नीचे सूर्य ग्रह को घेरती हुई गोलाकार रेखा का नाम सूर्य मुद्रिका
thic
यह मुद्रिका धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्यिक एवं व्यक्तिगत प्रतिभा का लक्षण है। सूर्य रेखा भी हाथ में होने पर यह अधिक उत्तम फल प्रदान करती है। दो सूर्य रेखाएं होने पर ऐसे व्यक्ति अत्यन्त प्रतिभाशाली और सतोगुणी देवता की उपासना करने वाले, प्रेमी व धार्मिक विचारों के होते हैं।
बुध या सूर्य के नीचे हृदय रेखा में द्वीप या अन्य दोष होने पर सूर्य मुद्रिका भी दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति के नेत्रों में दोष की पुष्टि करती है, परन्तु ऐसे व्यक्ति
चाहे अन्धे ही क्यों न हों, अति प्रतिभाशाली होते हैं। चित्र : 26 सूर्य मुद्रिका
टूटी व उंगलियों के पास होने पर इसके फलों में कमी देखी जाती है अन्यथा यह हाथ में उत्तम लक्षण है। (देखें चित्र-26)।
= शुक्र मुद्रिका
शनि व सूर्य को एक साथ घेरने वाली रेखा को शुक्र मुद्रिका कहते हैं। यह हाथ में विशेष लक्षण माना जाता है। ऐसे व्यक्ति धनी व रसिक होते हैं। इनकी प्रकत्ति वासनात्मक होती है। शुक्र मुद्रिका टूटी-फूटी या उंगलियों के पास हो तो चरित्र दोष का लक्षण मानी जाती है। हाथ में अन्य वासना वृद्धि के लक्षण होने पर टूटी या उंगलियों के पास होने वाली शुक्र मुद्रिका इसमें कई गुना वृद्धि करती है।
उंगलियां मोटी, हृदय रेखा उंगलियों के पास, हृदय रेखा जंजीराकार, शुक्र पर जाली, जीवन रेखा सीधी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप व चन्द्रमा पर अधिक रेखाएं होने पर दोषपूर्ण शुक्र मुद्रिका वाले व्यक्ति वासना के कीड़े होते हैं। कामान्धता में उचित, अनुचित का विचार नहीं करते।
__ शुक्र मुद्रिका निर्दोष व उंगलियों से दूर होने पर व्यक्ति साहित्य सृजन में रूचि लेने वाले उच्च कोटि के लेखक होते हैं। ऐसे लेखक अपने ही मूड में होते हैं। दस दिन लिखते हैं और चार दिन की छुट्टी करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि इनका
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कार्य निरन्तर नहीं चलता । इन्हें कोई न कोई बीमारी भी देखने में आती है।
शुक्र मुद्रिका हृदय रेखा उंगलियों के पास होने पर यदि मंगल रेखा हो या शुक्र से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा पर मिलती हो या भाग्य रेखा में निर्दोष प्रभावित रेखा हो, तो व्यक्ति को पुरूष होने पर स्त्री और स्त्री होने पर पुरूष से लाभ होता है। यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्तियों का विवाह दूसरों के द्वारा ही किया जाता है। ऐसे पुरूष स्त्री की कमाई खाने वाले होते हैं। हाथ पतला, काला या दोषपूर्ण होने पर अपनी स्त्री से भी अनैतिक कार्य कराने वाले होते हैं।
चतुष्कोण
चार रेखाओं से मिलकर बनी आकृति को चतुष्कोण कहते हैं। स्वतन्त्र होने पर ही यह उत्तम माना जाता है। चतुष्कोण सदैव ही रक्षा करते हैं। अतः जिस रेखा या ग्रह पर इसकी स्थिति होती है, उससे सम्बन्धी दोष से रक्षा करता है। चतुष्कोण में दोष होने पर संकटों से रक्षा करता है। परन्तु दोष न होने पर यह गुणों में वृद्धि व लाभ का लक्षण है।
किसी भी रेखा में दोष होने पर वह दोष चतुष्कोण से ढका हुआ हो तो उसका फल केवल आभास मात्र ही होता है, अर्थात् समस्याएं तो आती हैं, परन्तु हानि नहीं होती। निर्दोष रेखा में चतुष्कोण उस आयु में धन-सम्पत्ति या प्रेम, जैसी भी दशा हो, वृद्धि कर देता है। बृहस्पति पर चतुष्कोण बीमारी, सम्मान, गले के रोग, अचानक आने वाले खतरे और जहर आदि मसलों में रक्षा करता है। ऐसे व्यक्ति को ससुराल से लाभ होता है। सूर्य पर यह प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला व कलंक मिटाने और नेत्र ज्योति को निर्दोष रखने वाला होता है। ___ बुध पर चतुष्कोण अपकीर्ति या किसी षडयन्त्र से रक्षा का संकेत है। यह वक्तृत्व या लेखन शक्ति में वृद्धि करता है। चन्द्रमा पर चतुष्कोण जल से रक्षा और धार्मिक रूचि का लक्षण है। चन्द्रमा पर अधिक रेखाएं होने पर व्यक्ति को बेहोशी, जलोदर, हिस्टीरिया, स्वप्नदोष आदि रोग पाये जाते हैं। परन्तु चन्द्रमा पर चतुष्कोण होने पर इन रोगों से रक्षा होती है। मृत्यु के कारण नहीं बनते।
शुक्र पर चतुष्कोण होने पर वीर्य, जिगर, स्वास्थ्य-रक्षा व पारिवारिक सम्बन्धों में मधुरता का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति स्वास्थ्य की परवाह करते हैं और अपने परिवार में सद्भावना से रहते हैं। इनकी स्मरणशक्ति उत्तम होती है।
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जीवन रेखा में अन्दर की ओर चतुष्कोण मुकद्दमे बाजी का लक्षण है। जीवन रेखा मे जितने ही चतुष्कोण भीतर की ओर होते हैं व्यक्ति को उतने ही मुकदमे लड़ने पड़ते हैं। बाहर की ओर चतुष्कोण होने पर उस आयु में रोग, दुर्घटनाओं आदि में रक्षा होती है। जीवन रेखा के अन्त में चतुष्कोण हो तो अन्तिम आयु में स्वास्थ्य ठीक रहता है। मंगल रेखा में दोष होने पर यदि चतुष्कोण हो तो जीवन साथी के स्वास्थ्य या उसकी मृत्युभय से रक्षा का चिन्ह है। अंगूठे के मंगल पर यह चिन्ह होने पर पेट विकार व चिड़चिड़े स्वभाव से रक्षा करता है। ऐसे व्यक्ति मेल-जोल से रहते हैं और इन्हें सम्पत्ति के झगड़ों में विजय प्राप्त होती है।
बुध के नीचे वाले मंगल पर यह चिन्ह सरकार या किसी अन्य के द्वारा हड़प की गई सम्पत्ति वापस मिल जाती है।
___ मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर यदि चतुष्कोण से आच्छादित हो तो उस समय परेशानी तो आती है, परन्तु रक्षा हो जाती है। इस प्रकार का संकट स्वास्थ्य, धन या अन्य किसी भी प्रकार का हो सकता है। दोष न होने पर यदि मस्तिष्क रेखा में चतुष्कोण हो तो उस समय नये कार्य से लाभ होता है या धन की बरबादी से रक्षा होती है। इस आयु में परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ रहता है, परन्तु विशेष दोष जैसे मृत्यु नहीं होती है। मस्तिष्क रेखा के अन्त में चतुष्कोण होने पर मस्तिष्क में अन्त तक वकार नहीं आता ।
भाग्य रेखा का चतुष्कोण व्यक्ति को धन लाभ कराता है या इस प्रकार की हानि से रक्षा करता है। जिस आयु में चतुष्कोण भाग्य रेखा के दोनों ओर हो तो सम्पत्ति जीवन में महत्व रखती है और चतुष्कोण के आकार की ही होती है। हृदय रेखा पर चतुष्कोण, मानसिक ठेस, हृदय रोग आदि से रक्षा करता है। यही चतुष्कोण यदि शनि के नीचे हो तो ऐसे व्यक्ति को दांत के रोग होते हैं और बिजली या आग से रक्षा होती है। शनि क्षेत्र में चतुष्कोण धन में वृद्धि व संचय का लक्षण है। मंगल क्षेत्र में होने पर झगड़ों से रक्षा व निश्चितता का लक्षण है।
त्रिकोण
त्रिकोण-अर्थ की दृष्टि से स्पष्ट है कि तीन रेखाओं से घिरी हुई आकृति को त्रिकोण कहते हैं। यह उत्तम लक्षण माना जाता है। रेखाएं दोषपूर्ण होने की दशा में त्रिकोण दोषों से रक्षा करता है एवं निर्दोष होने पर अत्यन्त लाभ का कारण होता है। यह जितना ही सुन्दर, छोटा एवं स्वतन्त्र होता है, उतना ही उत्तम माना जाता है।
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अन्य रेखाओं से मिलकर बनने वाले त्रिकोण का भी फल यद्यपि अच्छा होता है, परन्तु इतना लाभकारी नहीं होता।
जीवन रेखा में दोष होने की दशा में यदि इस पर त्रिकोण हो तो उस आयु में होने वाले रोग या दुर्घटनाओं से रक्षा होती है। जीवन रेखा में त्रिकोण सम्पत्ति निर्माण का एक उत्तम चिन्ह है। निर्दोष व गोलाकार जीवन रेखा में त्रिकोण होने पर व्यक्ति उत्तम तथा बड़ी सम्पत्ति का निर्माण करता है। इनके बनाये हुए निर्माण इनकी पीढ़ी में अपना महत्त्व रखते हैं। इन्हें पैतृक सम्पत्ति भी प्राप्त होती है। ये अपने पैरों पर खड़े होकर जीवन निर्माण करते हैं। दोषपूर्ण स्थान पर त्रिकोण होने से रोग, मृत्यु आदि खतरों से रक्षा होती है।
शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर उस आयु में अनेक प्रकार के झंझट व संकट जीवन में आते चित्र : 27 त्रिकोण हैं। यदि यह स्थान किसी त्रिकोण से आच्छादित हो तो संकट तो आते हैं। परन्तु रक्षा हो जाती है। निर्दोष मस्तिष्क रेखा में त्रिकोण होने पर व्यक्ति निरन्तर उन्नति करने वाले व भाग्यशाली होते हैं। जिस आयु में मस्तिष्क रेखा में छोटा व स्वतन्त्र त्रिकोण होता है, उस समय धन व प्रतिष्ठा का लाभ होता है।
दो त्रिकोण मस्तिष्क रेखा के दोनों ओर होकर चतुष्कोण का आकार निर्मित करते हों (देखें चित्र-27) तो मानसिक व आर्थिक परेशानियों से रक्षा होती है, धन लाभ नहीं होता।
जब हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा एवं जीवन रेखा पर एक ही आयु में स्वतन्त्र कोण होते हैं; तब अचानक धन लाभ होता है या तो किसी कारोबार में विशेष लाभ होकर धनी हो जाते हैं अथवा सट्टे, जुए या लाटरी आदि से विपुल धन या सम्पत्ति प्राप्त होती है। ____ मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा, हृदय रेखा अथवा किसी भी मुख्य रेखा के आरम्भ में त्रिकोण उस विषय के दोषों का निवारण तो करता ही है, साथ ही जीवन भर उस विषय में सन्तोष, सम्पन्नता व पूर्णता देता है। अन्य लक्षणों से भी इस विषय में समन्वय कर लेना चाहिए। जैसे जीवन रेखा के आरम्भ व अन्त में द्वीप जीवन भर कष्टकारक व समस्यापूर्ण फलों का लक्षण है। उसी प्रकार जीवन रेखा के आरम्भ व अन्त में त्रिकोण जीवन में सुख सम्पन्नता व मानसिक शान्ति की गारन्टी करता है। जीवन रेखा में दोनों ओर के त्रिकोण सन्तान, जीवन साथी तथा धन का पूर्ण सुख
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देते हैं व दीर्घायु कारक हैं। मस्तिष्क रेखा के आरम्भ का त्रिकोण यदि बृहस्पति व मंगल के मध्य में हो तो जीवन भर बुद्धि, धैर्य व साहस रहता है। मंगल से मस्तिष्क रेखा त्रिकोणयुक्त निकली हो तो साहसिक काम करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति राजद्रोह, षड़यत्र आदि कार्यों में भाग लेते हैं व बच निकलते हैं। बृहस्पति से निकली मस्तिष्क रेखा आरम्भ में त्रिकोणयुक्त हो तो व्यक्ति को स्वावलम्बी, निर्भीमानी, कर्तव्य परायणता व समाज को नई दिशा देने वाला तथा फिर भी समाज से अलग रहने वाला बनाता है। मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों से भी यह त्रिकोण रक्षा करता है।
भाग्य रेखा में स्वतन्त्र त्रिकोण आर्थिक लाभ का द्योतक है। जब भाग्य रेखा में अनेक त्रिकोण होते हैं तो व्यक्ति का भाग्योदय होकर प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। भाग्य रेखा के दोनों ओर त्रिकोण जब एक चतुष्कोण का आधार बनाते हैं तो उस आयु में व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण करता है। यह सम्पत्ति इन्हें जीवन में विशेष प्रतिष्ठा व लाभ देती है।
हृदय रेखा में जितने त्रिकोण ऊपर की ओर होते हैं, व्यक्ति उतनी ही सम्पत्तियां निर्माण करता है। हृदय रेखा में शनि के नीचे त्रिकोण होना भी उस आयु में सम्पत्ति निर्माण, सन्तान के द्वारा विशेष ख्याति व लाभ प्राप्त करने का चिन्ह है।
अनेक बार शनि के नीचे हृदय रेखा में मस्तिष्क
रेखा की ओर त्रिकोण का आकार होता है। यह द्वीप का फल करता है। इस त्रिकोणाकार द्वीप की तीनों भुजाएं हृदय रेखा के समान मोटी होती हैं। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर यह त्रिकोण हार्निया, गर्भाशय रोग, पौरुष ग्रन्थी व गुर्दे आदि अंगों में रोग का लक्षण है (देखें चित्र - 28 ) इसे द्वीप ही कहते हैं, त्रिकोण नहीं । हृदय रेखा में नीचे की ओर जाने वाले अन्य त्रिकोण उस आयु में मानसिक वेदना से रक्षा करते हैं। कभी-कभी तो इस आयु में ऐसा आघात होता है कि व्यक्ति आत्महत्या की बात सोचने लगता है, परन्तु हृदय रेखा का यह भाग त्रिकोण से आच्छादित होने पर रक्षा हो जाती
चित्र : 28 द्वीप
है।
हृदय रेखा का त्रिकोण, मकान, बगीचे, धर्मशाला, जमीन व पैतृक परम्परा से प्राप्त होने वाले धन का भी लक्षण है। अन्य रेखाएं जितनी सुन्दर होती हैं, उतना ही अधिक फल कहना चाहिए। हाथ में जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर इनकी पैतृक सम्पत्ति तो होती है, परन्तु उससे कोई विशेष लाभ नहीं होता ।
शनि के नीचे हृदय रेखा में ऊपर की ओर पाये जाने वाले त्रिकोण व्यक्ति को
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बाग-बगीचे या खेती-बाड़ी से प्रेम का द्योतक हैं। अवसर मिलते ही ऐसे व्यक्ति खेती-बाड़ी या बगीचे का कार्य करते हैं, अन्यथा अपने रहने के स्थान पर ही फूल-पौधे आदि लगाकर अपनी इच्छा को पूरा कर लेते हैं।
बृहस्पति पर स्वतन्त्र त्रिकोण होने पर यदि छोटा अर्थात् प्रबन्धकर्ता हाथ हो तो व्यक्ति किसी बड़े उद्योग का स्वामी या प्रबन्धक होता है। ऐसे व्यक्ति के आधीन सैंकड़ों आदमी काम करते हैं। उद्योगपति के हाथ में यह त्रिकोण होने पर ये बहुत बड़े उद्योग के स्वामी होते हैं। यदि ऐसे व्यक्ति राजनीति में रूचि रखते हैं तो राजनीति में ख्याति प्राप्त करते हैं व प्रशासन में होने पर मन्त्री, राजदूत आदि पदों पर कार्य करते हैं। ये लोक हित के कार्य करने वाले होते हैं, इनकी सन्तान भी योग्य व उच्च पदों पर कार्य करती है।
शनि पर त्रिकोण, ज्योतिषी, सामुद्रिक, तन्त्र-मन्त्र व गुप्त विधाओं का ज्ञाता होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति अध्यात्मिक रूचि रखते हैं, इन्हें शिव, रूद्र, गणेश या हनुमान की उपासना में रूचि होती है। हाथ पतला व काला होने पर ये भूत-प्रेत या भैरव आदि की उपासना करते देखे गये हैं।
सूर्य पर स्वतन्त्र त्रिकोण होने पर व्यक्ति शिल्पज्ञ होते हैं। वैज्ञानिक, वैद्य, मकान बनाने वाले राज व ऐसे व्यक्तियों के हाथों में यह त्रिकोण पाया जाता है। यह त्रिकोण ख्याति प्राप्त कराने वाला होता है। इनके विचार गम्भीर व ठोस होते हैं। जो कहते हैं, वही करते हैं। . बुध पर त्रिकोण, वैज्ञानिक, व्यवसायी, वक्ता व सट्टा लगाने वालों के हाथों में मिलता है। रसायन के ज्ञाता व वैद्यों के हाथों में भी बुध पर त्रिकोण पाया जाता
है
मंगल पर त्रिकोण व्यक्ति को दृढ़ निश्चयी, जिद्दी, उत्तम सैनिक या सेना में पदाधिकारी बनाता है। ऐसे व्यक्ति उच्च कोटि के गणितज्ञ तभी होते हैं, जबकि बुध अच्छा हो। सूर्य रेखा उत्तम होने पर चिन्ह अन्तर्ज्ञान-सम्पन्न होने का लक्षण है। हाथ में शोध या मानसिक दक्षता के लक्षण होने पर इन्हें विशेष ख्याति प्राप्त होती है। बुध के नीचे मंगल पर त्रिकोण होना शल्यकार्य में दक्षता का लक्षण है। शल्यकार्य का तात्पर्य चीर-फाड़ आदि कार्यों से है।
बृहस्पति के मंगल पर त्रिकोण होने पर उच्च पदस्थ सेनाधिकारी अथवा राजकीय व्यक्तियों से सम्पर्क रहता है। बृहस्पति उत्तम होने पर यह सेना में उच्च पदस्थ अधिकारी बनाता है। शुक्र पर त्रिकोण होने पर व्यक्ति की स्मृति व स्वास्थ्य श्रेष्ठ होता है। चन्द्रमा पर त्रिकोण आध्यात्मिक रूचि का संकेत है। ऐसे व्यक्ति गुप्त विद्या, जैसे जादूगरी आदि के ज्ञाता होते हैं।
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मस्तिष्क रेखा में बुध के नीचे त्रिकोण लाभ के बदले हानि करता है। ऐसे व्यक्ति को सांस फूलने का रोग होता है (देखें चित्र - 29 ) । भाग्य रेखा के आरम्भ में पाये जाने वाला त्रिकोण भी बचपन में माता-पिता में से किसी एक का वियोग करा देता है । इसी त्रिकोण की कोई शाखा लम्बी होकर चन्द्रमा की ओर जाती है तो परिवार या मामा के वंश में किसी की हत्या या असामयिक मृत्यु होती है। वास्तव में य त्रिकोण के आकार का द्वीप होता है। जैसा कि चित्र - 28 में दिखाया गया है। '
जीवन मस्तिष्क व हृदय रेखा को भाग्य रेखा, बुध या सूर्य रेखा काटती हैं। इस प्रकार भी त्रिकोणों का निर्माण होता है, जैसा कि चित्र - 30 में दिखाया गया है । इस प्रकार दस त्रिकोण बनते हैं। इन त्रिकोणों का भी हाथ में महत्व है और भाग्य व व्यक्ति के मन पर इनका प्रभाव होता है। इसका फल निम्न प्रकार होता है - ऐसे त्रिकोण निर्दोष होने पर उत्तम व सफल होने का लक्षण है। दोषपूर्ण होने पर भी ये त्रिकोण झंझटों से रक्षा करते हैं।
चित्र: 29
1. ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान, राजनीतिज्ञ, धनी व व्यापारी प्रवृत्ति के होते हैं । (चित्र - 30 में अ)।
00
2. यह त्रिकोण व्यक्ति को वैभवशाली बनाता है | कटा-फटा होने पर भी झंझटों को कम करता है। और निर्दोष होने पर सार्वजनिक क्षेत्र में सफलता व प्रतिष्ठा का द्योतक है। (चित्र - 30 - ब ) |
3. यह त्रिकोण हाथ में होने पर सम्पत्ति, सवारी व परिवार का सुख प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्तियों को विरोधियों से कोई हानि या अपने कार्य में विघ्न उपस्थित नहीं होता। कटा-फटा होने की दशा में इनको
लार/ह
१४ रा
चित्र: 30
धन, मित्र व परिवार की ओर से चिन्ता रहती है और ऋण के कारण जायदाद बेचना व गिरवी रखना आदि कार्य भी करने पड़ते हैं। रेखाएं निर्दोष और हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा के बीच का भाग स्पष्ट अर्थात् कम रेखाओं वाला हो तो व्यक्ति धनी व मान्य होते हैं। (चित्र - 30 में से)।
4. ऐसे व्यक्तियों में व्यापार सम्बन्धी स्वाभाविक ज्ञान होता है। ये बोलने में
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चूक
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चतुर और व्यवहार में निपुण होते हैं। दोषपूर्ण होने पर यह त्रिकोण स्वभाव में चिड़चिड़ापन, व्यापार में हानि, विशेषतया साझे में किये जाने वाले कार्य में झंझट व राजनीतिक प्रतिष्ठा में हानि का लक्षण है। (चित्र - 30 में द) ।
5. यह त्रिकोण निर्दोष अर्थात् कटा-फटा न होने पर सुख, शान्ति, प्रसिद्धि, परिवार में किसी की मृत्यु का द्योतक हैं। काम-धन्धे में परेशानी, पढाई में रूकावट, धन व गृहस्थ जीवन में अशान्ति, किसी का विद्रोह या पढ़ाई छूटना या बार-बार स्थानान्तरण इसी का फल है। ऐसे व्यक्तियों का स्वास्थ्य खराब रहता है । इनके सर में भी कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी चलती है। (चित्र 30 में य) ।
6. भूमि या व्यापार आदि कार्य घर में होते हैं। ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी और फिर व्यापार करते हैं। तथा इन्हें इन धन्धों में भी रूकावट होती है। ये साइकिल, किसी अन्य सवारी, मकान या पेड़ से गिरते हैं। ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं और संकट के बावजूद भी आगे बढ़ते हैं। समस्याएं होने पर भी जीवन में ख्याति प्राप्त करते हैं। जेल व अभिनन्दन दोनों ही होते हैं (चित्र - 30 में ल) उपरोक्त दोषपूर्ण फल त्रिकोण कटा फटा होने की दशा में ही घटित होते हैं।
7. यह त्रिकोण व्यापार में सफलता का द्योतक हैं ( चित्र - 30 में व ) ।
8. यह मान-प्रतिष्ठा का द्योतक हैं (चित्र - 30 में ह ) ।
9. यह त्रिकोण उत्तम होने पर धन व सम्पत्ति का कारक व रोगों का लक्षण है (चित्र - 30 में से ) ।
डमरू
यह मस्तिष्क व हृदय रेखा के बीच में एक बड़ा गुणा का निशान होता है, जो बड़े अफसरों, ज्योतिषियों, अध्यात्मिक गुण सम्पन्न व्यक्तियों या किसी संस्था के पदाधिकारियों के हाथों में पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति धनी व प्रतिष्ठित होते हैं । दोषपूर्ण होने पर यह भीख मांगने का लक्षण है। यदि यह चिन्ह दोनों ओर रेखाओं से न मिला अर्थात् स्वतन्त्र हो तो ऐसे व्यक्ति मन्त्रशक्ति या ज्योतिष विद्या में ख्याति प्राप्त करते हैं और इस विद्या के माध्यम से विपुल धन भी अर्जित करते हैं। इसका विशेष फल उसी दशा में होता है, जबकि इसकी स्थिति ठीक शनि के नीचे हो, नहीं तो केवल घुटनों में चोट आदि का भय रहता है।
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सितारा
तान रेखाओं के एक बिन्दु पर काटने से जो आकृति बनती है, उसे सितारा कहते हैं। हाथ में इस लक्षण की उपस्थिति बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होती है। जहां भी इस प्रकार का चिन्ह पाया जाता है, वहां दुर्घटना, असामयिक मृत्यु, मानसिक ठेस, विछोह, तलाक आदि की सूचना देता है। एक बात विशेष रूप से ध्यान रखने की है कि सितारा उस दशा में ही अधिक प्रभावशाली होता है जबकि यह बड़ी रेखाओं से मिलकार न बना हुआ हो और स्वतन्त्र हो। सितारों के निर्माण में छः किरणें होनी आवश्यक
किसी रेखा में सितारे के चिन्ह होने पर यदि उसको एक ओर कोई रेखा आच्छादित करती हो तो यह सितारे के फल को एक तिहाई कर देता है। यदि दोनों ओर ऐसी रेखाएं सितारे को ढकती हों तो फल में बहुत कमी हो जाती है, अर्थात् इसका फल 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है। सितार चतुष्कोण या त्रिकोण के अन्दर हो तो दोषपूर्ण फल में 90 या 95 प्रतिशत तक कमी होकर घटना का आभास मात्र ही होता है।
बृहस्पति पर सितारा प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाता है। सिर में चोट, गले का आपरेशन या गले में कुछ फंसने से मृत्यु का लक्षण है। रक्षात्मक चिन्ह होने पर खतरों से रक्षा हो जाती है। शनि पर सितारा आग, बिजली, गोली या लकवे से भय का लक्षण माना जाता है। सूर्य पर सितारा होने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा को एक आघात के बाद प्रसिद्धि मिलती है। यहां यह चिन्ह यश, धन और सुख की वृद्धि करता है। बुध पर सितारा होने पर व्यक्ति चालाक, गुण्डा व षड़यन्त्र करने वाला होता हैं। ऐसे व्यक्तियों को विष से हानि की सम्भावना होती है। चन्द्रमा पर सितारा जल में डूबने या मानसिक आघात से मृत्यु का लक्षण है। भाग्य रेखा में सितारा होने पर जीवन साथी का सुख जीवन भर नहीं मिलता। ऐसे व्यक्ति कई-कई विवाह करने पर भी सख नहीं पाते। चन्द्रमा पर सितारा व मस्तिष्क रेखा में भी इस प्रकार का कोई चिन्ह हो तो व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। जीवन रेखा के आरम्भ में सितारा होने पर बचपन में माता-पिता की मृत्यु हो जाती है। इन के दादा-दादी व नाना-नानी की मृत्यु भी असामयिक होती है, मस्तिष्क रेखा में भी सितारा हो तो सामूहिक मृत्यु का लक्षण है। जीवन रेखा से निकल कर कोई रेखा बृहस्पति की ओर जाती हो और उसमें सितारा हो तो परिवार में ऐसे व्यक्ति की मृत्यु होती है, जिसके कंधों पर घर का गुजारा चलता है, जिसके कारण परिवार को पतन का मुंह देखना पड़ता है। बुध या सूर्य की उंगली के नीचे हृदय रेखा में सितारा हो तो दुर्घटना में आंख की हानि होती है। विवाह रेखा में सितारा होने पर जीवन साथी की मृत्यु, विछोह या तलाक हो जाता है। मस्तिष्क रेखा के
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अन्त में सितारा होने पर व्यक्ति स्मृतिहीन हो जाता है, विशेषतया वृद्धावस्था में ऐसे फल होते हैं। इन्हें वृद्धावस्था में लकवा आदि बीमारियां होती हैं। मंगल रेखा में सितारा किसी दुर्घटना से मृत्यु का लक्षण है। इस दशा में कई-कई विवाह. करने पर भी जीवन साथी का सुख नहीं मिलता।
वास्तव में सितारा एक दोषपूर्ण लक्षण है। सितारे के साथ अन्य लक्षण भी हाथ में उपस्थित हों तो उनके साथ इसका समन्वय कर लेना चाहिए। बड़ी रेखाओं के कटने से जो सितारे की आकृति बनती है, उसका प्रभाव इतना घातक नहीं होता, जितना कि स्वतन्त्र रूप से बने हुए सितारे का। अतः निर्णय करने के पश्चात् ही इस प्रकार के अनिष्ट फल कहने चाहिए, अन्यथा मानसिक आघात पहुंचकर अनपेक्षित घटनाएं हो सकती हैं।
मस्तिष्क रेखा अधिक दोषपूर्ण, हृदय रेखा टूटी-फूटी या दोषपूर्ण या हाथ में स्नायु विकार के अन्य लक्षण होने पर बहुत सोच समझकर बुरे फल कहने चाहिए, अन्यथा घबराकर या तो व्यक्ति पागल हो जाता है या घटनाओं को सोच कर परेशान रहता है। इस दशा में कई बार आत्महत्या की घटनाएं भी देखी जाती हैं।
तिल
हाथ में तिलों की उपस्थिति फलादेश के विषय में अपना अलग महत्व रखती है। तिल का ठीक किसी रेखा पर होना अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे तिल शरीर-विकार का निर्देष करते हैं। अत: रेखाओं में तिल की ठीक स्थिति का निर्णय करना आवश्यक है। ग्रहों पर तिल प्रभावकारी होते हैं, जबकि उगलियों के तिल कम प्रभाव करते हैं। ग्रहों में तिल होने पर निम्न प्रकार के फल देखने में आते हैं
शनि पर तिल
शनि या शनि की उंगली पर तिल होने पर व्यक्ति को धनी होने का योग होता है। यदि हाथ दोषपूर्ण और रेखाओं में भी दोष हो तो व्यक्ति का जन्म निम्न कोटि के वंश में होता है और उन्हें चोरी करने की आदत होती है। ठीक शनि पर तिल अग्नि या बिजली से हानि की सूचना है। ऐसे व्यक्ति को स्वप्न या प्रत्यक्ष में सांप अधिक दिखाई देते हैं। हाथ में अन्य लक्षण जैसे बृहस्पति मुद्रिका को किसी रेखा के द्वारा काटने या मस्तिष्क रेखा की शाखा बुध पर जाने पर सांप काटता है।
शुक्र पर तिल
शुक्र पर तिल व्यक्ति के विलासी होने का चिन्ह है। ये मध्यायु में धनी हो जाते हैं। जीवन साथी का सुख भी इन्हें कम मिलता है। उनसे अनबन रहना या उसका
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स्वास्थ्य ठीक न रहना आदि फल होते हैं। इनकी पत्नी अधिक बहस करने वाली होती है। जिस हाथ में तिल हो उससे दूसरी ओर के गुर्दे में पथरी हो जाती है। अत: इस सम्बन्ध में सावधानी रखनी चाहिए। इन्हें गर्म वस्तुएं, शराब आदि का त्यागकर अधिक पानी का सेवन करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति सिनेमा या होटल सम्बन्धी कार्य करते देखे जाते हैं।
बृहस्पति पर तिल
बृहस्पति पर तिल धनी होने का संकेत है। धनी होने के समय व परिमाण का अनुमान रेखाओं या अन्य विशेषताओं से करना चाहिए। बृहस्पति की उंगली पर तिल भी इसी बात का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति समाज में सम्मान प्राप्त करते हैं और स्वात्माभिमानी होते हैं।
सूर्य पर तिल
जिस व्यक्ति के सूर्य या सूर्य की उंगली पर तिल होता है, वह प्रसिद्ध होता है, परन्तु आरम्भ में बदनामी मिलती है। सूर्य पर तिल यश, धन और सुख की वृद्धि करता है। ये व्यापारी एवं सत्य के अनुगामी होते हैं। विशेष भाग्य रेखा होने पर पुस्तकें लिखते हैं। इन्हें अचानक धन मिलने की भी सम्भावना होती है।
बुध पर तिल
बुध या उसकी उंगली पर तिल चोरी से हानि का निर्देश करता है। हाथ सुन्दर होने पर ऐसे व्यक्ति भाषण कला में निपुण होते हैं और निकृष्ट होने पर चुगलखोर व चोर होते हैं। - चन्द्रमा पर तिल
चन्द्रमा पर तिल होने से व्यक्ति को ससुराल अच्छी मिलती है, परन्तु लाभ नहीं होता। लाभ के अन्य लक्षण हाथ में उपस्थित होने पर ससुराल से लाभ भी होता है। इनकी शिक्षा में रुकावट व कभी न कभी विदेश जाने के अवसर आते हैं। ये धनी होते हैं। यह तिल गुर्दे में पथरी का लक्षण है और इन्हें भी अपने जीवन साथी के वियोग की सम्भावना होती है।
अंगूठे के पास वाले मंगल पर तिल
अगूठे के पास वाले मंगल पर तिल सिर में चोट व जीवन रेखा में दोष होने पर सिर में भयंकर पीड़ा का लक्षण है। ये स्वभाव के कठोर होते हैं और इन्हें तेज बुखार होता है।
बुध के नीचे मंगल पर तिल हो तो व्यक्ति की सम्पत्ति का अधिग्रहण सरकार द्वारा कर लिया जाता है, नहीं तो कोई दूसरा, चाहे परिवार का ही कोई सदस्य हो,
H.K. S-6
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उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर लेता है।
जीवन रेखा पर तिल
जीवन रेखा में शनि के नीचे तिल और जीवन रेखा दोषपूर्ण हो तो लकवे की सम्भावना रहती है। इनका जिगर खराब होता है और मृत्यु का कारण जिगर या लकवा ही होता है। सेना में होने पर ऐसे व्यक्तियों को गोली से मरने या इस प्रकार का भय उपस्थित होता है। इन्हें फूड पॉयजनिंग का भी भय होता है। जीवन रेखा अधिक दोषपूर्ण होने पर इनके परिवार में किसी न किसी को, जिसमें सन्तान भी सम्मिलित है, घबराना, दौरे पड़ना या इसी प्रकार का कोई रोग देखा जाता है। जीवन रेखा में सूर्य के नीचे तिल नेत्रदोष का संकेत है।
अन्य स्थान पर तिल
आख में तिल व्यक्ति की दृष्टि में विशेष आकर्षण पैदा करता है। ये पुरुष होने पर स्त्रियों और स्त्री होने पर पुरुषों को आकर्षित करते हैं। ये जातक धनी, शांत स्वभाव व सभी से प्रेम करने वाले होते हैं।
दोनों कन्धों पर तिल होने पर व्यक्ति सम्पत्ति-निर्माण तो करता ही है, पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्ति का स्वामी भी होता है।
दायें हाथ की ओर गले पर तिल हो तो व्यक्ति का जीवन विवाह के बाद बनता है। ये विवाह के एक वर्ष या 6-7 वर्ष बाद तक उन्नति करते देखे गये हैं। इनके जीवन साथी भाग्यशाली होते हैं, परन्तु आपस में विचार विषमता रहती है। गले में बांई ओर तिल होने पर स्वनिर्मित होते हैं। इन्हें पानी में डूबने या ऊपर से गिरने का भय बना रहता है।
गले में ठीक बीचों-बीच सामने की ओर तिल होने पर व्यक्ति में आत्मशक्ति होती है। ऐसे व्यक्ति लम्बे समय तक बीमार रहकर मृत्यु प्राप्त करते हैं।
दोनों जंघाओं पर तिल होने से सवारी सुख होता है। ऐसे व्यक्ति के हाथ में विशेष भाग्य रेखा अवश्य होती है या यह कह सकते हैं कि विशेष भाग्य रेखा वाले व्यक्तियों की जंघाओं पर तिल होते हैं। पेट पर तिल वाले व्यक्ति अधिक खाने वाले होते हैं। अंगूठे के बीच के पोर पर जो (यव) जैसा चिन्ह होने पर उपस्थेन्द्रीय पर तिल होता है। स्तन के पास तिल होने पर व्यक्ति की सन्तान योग्य होती है। हथेली में शनि क्षेत्र में तिल हो तो धनी बनाता है।
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क्रास या गुणा (x) का चिन्ह ।
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जब दो रेखाएं एक दूसरे को काटती हैं तो गुणा का चिन्ह बनता है। यही चिन्ह गुणा कहलाता है। यह अनिष्ट सूचक है और स्वतन्त्र होने पर अधिक बुरा फल करता
बृहस्पति पर गुणा का चिन्ह सिर में चोट व ससुराल अच्छी मिलने का योग है। सूर्य पर हो तो बदनामी का कारण होता है।
बुध पर गुणा होने पर व्यक्ति झूठा, बेईमान व चालबाज होता है। बुध की उंगली के हथेली के साथ वाले पोर पर यह चिन्ह होने पर षड़यन्त्र करने वाला होता है और अन्तिम पोर पर यह अविवाहित रहने का संकेत है।
अंगूठे के पास वाले मंगल पर गुणा का चिन्ह बवासीर का लक्षण है। मस्तिष्क रेखा पर शनि के नीचे होने पर ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है। स्त्रियों के हाथों में यह चिन्ह होने पर बवासीर की शिकायत इन्हें प्रजनन समय में होती है। ऐसी स्त्रियों के दांतों में भी कोई न कोई रोग होता है और दांत गिरना, पायरिया, दांत टूटना आदि दोष देखे जाते हैं।
शुक्र पर गुणा का चिन्ह प्रायः प्रेम सम्बन्धों का लक्षण है। मंगल पर गुणा का चिन्ह होने पर मस्तिष्क रेखा में भी दोष हो तो, स्मृति में दोष की सम्भावना रहती
हृदय व मस्तिष्क रेखा के बीच में गुणा का चिन्ह धनी होने का लक्षण है। यदि यह बिल्कुल ही स्वतन्त्र अर्थात् दोनों ओर किसी रेखा को न छूता हो तो व्यक्ति में अन्तर्ज्ञान क्षमता का लक्षण है। यह ज्योतिषी होने का प्रमुख लक्षण है।
चन्द्रमा पर गुणा का चिन्ह, पानी में डुबने का भय और गठिया रोग की सम्भावना उत्पन्न करता है। अन्य रेखाओं के काटने पर भी चन्द्रमा पर कोई क्रास बनता हो तो भी पानी में डूबने का भय रहता है। अतः सावधान रहने की चेतावनी देनी चाहिए।
विवाह रेखा में गुणा का चिन्ह होने पर पति-पत्नि में से एक की मृत्यु हो जाती है। हृदय रेखा में सूर्य के नीचे गुणा का चिन्ह होने पर आंख पर चोट लगती है और किसी प्रेमी से विछोह होता है। हृदय रेखा पर शनि के नीचे गुणा का चिन्ह होने पर गुर्दे या हार्निया का रोग होता है और अण्डकोष में चोट लगती है। ऐसी स्त्रियों को प्रजनन में कष्ट होता है।
किसी भी मुख्य रेखा में गुणा का चिन्ह होना अशुभ सूचक है। इससे उस आयु में स्वास्थ्य, धन या मानसिक कठिनाई उपस्थित होती हैं। जीवन रेखा में होने पर स्वयं
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या सन्तान को स्वास्थ्य कष्ट, मस्तिष्क रेखा में होने पर धन व मानसिक कष्ट होता है। हृदय रेखा में होने पर यह रोग व मानसिक ठेस का संकेत है।
जाली
खड़ी और आड़ी रेखाओं के काटने पर जाली का चिन्ह बनता है। यह भी हाथ में अशुभ लक्षण है।
बुध के ऊपर जाली व्यक्ति के चरित्र में झूठ, चालाकी, धोखेबाजी आदि अवगुणों का समावेश करती है। यदि इनके हाथ में भाग्य रेखा आरम्भ से अन्त तक बहुत ही पतली हो तो षड़यन्त्रकारी होते हैं। अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर ऐसे व्यक्ति उच्च कोटि के मक्कार होते हैं। चन्द्रमा पर जाली का चिन्ह जलोदर, स्वप्न दोष या स्वप्न अधिक आने का लक्षण है। ऐसी स्त्रियों को दौरे, बेहोशी आदि के रोग होते हैं। शुक्र पर जाली व्यक्ति को वासना प्रिय बनाती है। ऐसे व्यक्तियों को सहवास के बिना नींद नहीं आती। अन्त में इन्हें पुंसत्व में कमजोरी महसूस होती है। इस सम्बन्ध में अन्य लक्षण भी मिला लेना चाहिए। शनि पर जाली या सीढ़ी जैसी रेखाएं दांतों में रोग व गठिया का निश्चित लक्षण है।
धब्बे या गड्ढे
हाथ या रेखाओं में कभी-कभी काले या लाल रंग के धब्बे देखे जाते हैं और अनेक बार रेखाओं में गड्ढे भी होते हैं। ऐसे धब्बे आकार में बड़े हों तो व्यक्ति को रक्त विकार, आतशक व सुजाक जैसे रोगों की ओर संकेत करते हैं। ____ मस्तिष्क रेखा में छोटे-छोटे धब्बे या गड्ढे उस आयु में जीवन में अशान्ति का द्योतक हैं। इस आयु में विशेष व्यय, हानि, जैसी घटनाएं होती हैं। यदि इस प्रकार के गड्ढे मस्तिष्क रेखा में लगातार कुछ समय तक रहें तो जातक उस आयु के पश्चात् ही उन्नति करते हैं। इस दौरान ऐसे व्यक्ति को कार्य में हानि, रोग या आघात होता है और काम बदलना पड़ता है।
जीवन रेखा में इस प्रकार के गड्ढे या धब्बे किसी रोग की सूचना देते हैं। जिस आयु तक ये धब्बे या गड्ढे जीवन रेखा में होते हैं उस आयु तक व्यक्ति सफल नहीं होता। जिस समय तक ये लक्षण जीवन रेखा में रहते हैं, न तो सुख मिलता है और न ही वह अपने जीवन की प्रगति से सन्तुष्ट होता है।
कभी-कभी हाथों में सफेद धब्बे देखने में आते हैं। इनका रंग हाथ के रंग से विशेष भिन्न होता है और ये सारी हथेली पर होते हैं। यह धन या सन्तान लाभ का
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लक्षण है। पुरुषों को धन और स्त्रियों को सन्तान का योग उस समय कहा जा सकता
मणिबन्ध
कलाई में एक से लेकर चार-पांच तक की संख्या में रेखाएं होती हैं। इन्हें मणिबन्ध कहते हैं। ये रेखाएं जितनी स्पष्ट होती हैं, व्यक्ति उतना ही भाग्यशाली होता है। तीन मणिबन्ध स्पष्ट व पूर्ण देखने में आते हों तो जातक योगी या उत्तम साधक होते हैं।
मणिबन्ध पर बड़े द्वीप के साथ जीवन रेखा सीधी हो तो पितदोष का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति का वंश नहीं चलता। उनको या उनके भाई-बहिन को भी वंश दोष रहता है, सम्भव है, सभी को ऐसा हो। हाथ में विशेष दोषपूर्ण लक्षण होने पर वंश समाप्त हो जाता है।
कई बार मणिबन्ध मुड़ कर हथेली के ऊपर चन्द्रमा के पास आता है और इससे एक त्रिकोण जैसी आकृति बनती है। यह भी वंश दोष का निश्चित लक्षण है।
चित्र-31 मणिबंध रेखाएं
हाथ में दो प्रकार की रेखाएं पाई जाती हैं। 1. मुख्य रेखाएं। 2. गौण रेखाएं।
मुख्य रेखाओं में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा, भाग्य रेखा, स्वास्थ्य रेखा (जिसे अन्तर्ज्ञान रेखा भी कहते हैं) होती हैं।
गौण रेखाओं में सूर्य रेखा, मंगल रेखा, चन्द्र रेखा, विलासकीय रेखा आदि रेखाएं होती हैं।
इन रेखाओं के अतिरिक्त मुख्य रेखाएं किसी ग्रह विशेष को घेरे हुए लगती हैं, उन्हें हम मुद्रिकाएं कहते हैं। हाथ में अभी तक तीन मुद्रिकाएं विशेष रूप से देखी गई हैं। पहली बृहस्पति मुद्रिका, दूसरी सूर्य मुद्रिका और तीसरी शनि मुद्रिका उल्लेखनीय
उपरोक्त रेखाओं के अतिरिक्त हाथ में मणिबन्ध होते हैं। यह रेखाएं कलाई और
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काधार
हाथ के जोड़ पर पाई जाती है और तीन संख्या तक होती हैं।
हाथ देखते समय जितना हम रेखाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हैं उतना ही फल कहने में आसानी रहती है। - हाथ देखते समय निम्न बातों का मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए
1. कौन सी रेखा कहां से निकलकर कहां गई है।
2. किस स्थान पर रेखा टूटी हुई, झुकी हुई, टेड़ी, मोटी या पतली है।
3. कौन सी रेखा किस स्थान पर किसी दूसरी रेखा से कटती है अथवा कोई रेखा उस पर आकर मिलती या उसे छूती है।
___4. कौन सी रेखा किस स्थान पर त्रिकोण, . चतुष्कोण या किसी रेखा के बिल्कुल नजदीक कोई दूसरी पतली रेखा तो नहीं जा रही है। इस पतली रेखा का हाथ के फलादेश पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इन रेखा विशेष को हम कुठार रेखा के नाम से जानते हैं। 5. यह भी देखना होगा कि कुल मिलाकर
चित्र-32 रेखाएं लम्बी, छोटी, मोटी, पतली या किसी विशेष प्रकार की हैं।
6. कुछ रेखाएं निरर्थक रूप से हाथ में देखी जाती हैं। इन रेखाओं का हाथ में कोई महत्व नहीं होता है। ये केवल कल्पनाशील होने का लक्षण है।
= रेखाओं के विषय में साधारण जानने योग्य बातें - हाथ में उपस्थित चारों मुख्य रेखाओं की लम्बाई पूर्ण होने पर व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। यदि इनमें से किन्हीं दो या तीन रेखाओं में एक ही आयु में गम्भीर दोष हो तो मृत्यु हो जाती है। केवल जीवन रेखा को ही जीवन की लम्बाई के विषय में उत्तरदायी नहीं कहा जा सकता। जीवन रेखा का दोष केवल व्यक्ति की उस आयु में अन्य समस्याएं देने वाला होता है, जिसका वर्णन जीवन रेखा के विषय में बताते समय कर दिया गया है।
जीवन रेखा अपूर्ण होने की दशा में, यह रेखा जिस आयु में समाप्त होती है, उसके पश्चात् कफ व उदर विकार रहते हैं, परन्तु धन, सुख व सम्पत्ति की दृष्टि से समृद्धि प्राप्त होती है। अपूर्ण जीवन रेखा की आयु तक प्रत्येक कार्य में विघ्न रहता
है।
इसी प्रकार मस्तिष्क रेखा यदि जीवन रेखा से पूर्व समाप्त होती है तो स्मृति कमजोर हो जाती है, किन्तु हाथ सुन्दर, सुडौल, भारी व कोमल होने पर व्यक्ति को अपनी स्मृति से विशेष प्रयोजन नहीं रह जाता या उसकी आवश्यकता कम होती है
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कहने का तात्पर्य यह है कि मस्तिष्क पर अधिक जोर दिए बिना ही व्यक्ति को समुचित लाभ प्राप्त होता रहता है। ___ हृदय रेखा यदि आयु से पहले पूर्ण हो तो व्यक्ति को गृहस्थ सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनकी सन्तान इन्हें उतना सहयोग नहीं देती, जितना कि इन्हें मिलना चाहिए या ये आशा करते हैं। सन्तान के स्वभाव, परिस्थितियों, धन आदि के विषय में व्यक्ति को लम्बे समय तक चिन्ता रहती है।
भाग्य रेखा समय से पहले समाप्त हो तो व्यक्ति को धन सम्बन्धी चिन्तन चलता रहता है। हाथ अच्छा होने पर या तो बड़ा परिवार होने के कारण खर्च ज्यादा रहता है या किसी कार्य अथवा सम्पत्ति में व्यय के कारण धन के विषय में थोड़ा-बहुत विचार चलता रहता है। हाथ अच्छा न होने पर व्यक्ति के आय के साधन समाप्त हो जाते हैं और उसे दूसरों की ओर देखना पड़ता है। अपूर्ण भाग्य रेखा के विषय में यह सोचना आवश्यक है कि यह हृदय रेखा पर मिलने से पहले ही समाप्त हो जाती है या हृदय रेखा से थोड़ा आगे चलकर या भाग्य रेखा समाप्त होने की आयु के पश्चात् कोई दूसरी भाग्य रेखा निकल कर आगे तो नहीं चलती है। (चित्र-32)
यदि कोई दूसरी भाग्य रेखा समाप्ति के पश्चात् आगे जाती हो तो काम बदलकर या किसी अन्य साधन से व्यक्ति को आय होती रहती है। जिस हाथ में बहुत सी रेखाओं का जाल-सा बिछा रहता है, वह मनुष्य स्नायु या शरीर से कमजोर रहता है और अधिक श्रम नहीं कर सकता तथा निरर्थक चिन्तन में लगा रहता है। यदि हाथ में अधिक रेखाएं न हों तो मनुष्य परिश्रम से थकता नहीं, परन्तु मुख्य रेखाएं छोड़कर रेखाओं का बिल्कुल न होना आलस्य की निशानी है।
रेखाओं के विषय में कुछ अन्य बातें
रखाएं जितनी अधिक सुडौल और पतली होती हैं, व्यक्ति उतना ही भाग्यवान होता है। रेखाएं साधारण तथा मोटी होने पर व्यक्ति का जीवन देर से बनता है और उसके स्वभाव में भी कई प्रकार की अपूर्णतायें पाई जाती हैं। मस्तिष्क, हृदय व जीवन रेखा में से दो रेखाएं, यदि किसी एक ही आयु (स्थान) पर टूटी हो तो यह योग महान संकट या मृत्यु का द्योतक होता है।
किसी एक रेखा की समाप्ति की आयु पर व्यक्ति को विशेष असुविधा तथा कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जैसे भाग्य रेखा एकदम समाप्त होने पर व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं रहता। इस आयु में कार्य में रुकावट होती है, मन में अनिश्चितता व निराशा का वातावरण बना रहता है व दाम्पत्य जीवन में विघ्न आता है, कार्य में रूचि नहीं रहती। यह स्थिति कुछ समय बाद स्वतः ही दूर हो जाती है।
चारों मुख्य रेखाओं में द्वीप होने की दशा में व्यक्ति का जीवन आराम से व्यतीत नहीं होता। हाथ बड़ा या भारी होने पर जीवनयापन होता रहता है, परन्तु कठिनाईयां
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तथा मानसिक विकृतियां सामने आती रहती हैं। ऐसी अवस्था में परिजनों का स्वास्थ्य खराब रहना, जैसे हृदय, लकवा आदि समस्याएं आती रहती हैं। इनके अध्ययन में विघ्न होता है। ऐसे व्यक्ति वहमी होते हैं तथा ज्योतिषियों, जादू टोना करने वालों के चक्कर में पड़े रहते हैं। ये कन्जूस भी होते हैं और खर्च भी करते रहते हैं। यह भी कहते हैं कि हम विश्वास नहीं करते और विश्वास भी करते हैं। कुछ समय के लिए सन्तुष्ट हो जाते हैं परन्तु फिर वैसा ही करते हैं। देवी-देवताओं की शरण में भी जाते हैं। तात्पर्य यह है कि न ही किसी को बाकी छोड़ते हैं और न ही किसी का विश्वास करते हैं। थोड़ी देर में रूठना और थोड़ी देर में मान जाना इनकी आदत होती है।
चारों मुख्य रेखाओं में दोष होने की दशा में सन्तान का जीवन भी कठिनाईयों और उलझनों से भरा होता है। यदि सभी रेखाएं निर्दोष तथा पूर्ण हों तो सन्तान बुद्धिमान, भाग्यशाली व महानता प्राप्त करती है। जितनी ही रेखाएं विशिष्ट होती हैं, सन्तान उतनी ही महान् होती चली जाती है।
__ चारों रेखाओं में एक ही आयु में दोष हो और उंगलियों में उस वर्ष वाले पोरों में आड़ी रेखाएं हों तो निश्चय ही कार्य में हानि, मृत्यु या दुर्घटना होती है (देखें चित्र-33)। व्यक्ति की उस उंगली का टेढ़ा होना भी घटना की निश्चितता को प्रकट करता है। ___ हाथ में जो भी रेखा अधूरी होती है, मनुष्य के जीवन में उसी रेखा से सम्बन्धित आकांक्षाओं की तीव्रता पायी जाती है, जैसे भाग्य रेखा से भाग्योदय, मस्तिष्क रेखा से शिक्षा, हृदय रेखा से प्रेम और जीवन रेखा से स्वास्थ्य। व्यक्ति उसी आकांक्षा को पूर्ण करने में सबसे अधिक ध्यान देता है। यह अन्य लक्षणों पर निर्भर करता है कि यह आकांक्षा व्यक्ति पूरी कर पाता है या नहीं।
चारों रेखाओं में से एक भी टूटी होने पर ऑपरेशन होता है। अंग विशेष का पता दूसरे लक्षणों को देखकर लगाया जा सकता है। चारों रेखाएं एक साथ टूटी होने पर दुर्घटना में मृत्यु होती है तथा इनके सम्बंधी इनके पास देर से पहुंच पाते हैं या कभी-कभी मृत्यु का पता भी नहीं चल पाता।
हाथ पतला या कठोर, उंगलियां मोटी आदि खराब लक्षण हाथ में हों तो दोषपूर्ण रेखा का प्रभाव व्यक्ति के पूर्व जीवन में ही हो जाता है। भारी तथा सुन्दर हाथ में यदि दोषपूर्ण रेखाएं हों तो उनका प्रभाव व्यक्ति की उत्तर आयु में होता है।
चारों रेखाएं लम्बी होने की दशा में यदि एक भी रेखा छोटी हो तो बड़ी आयु में कम्पन हो जाता है।
चारों रेखाएं यदि अन्त में द्विभाजित अथवा त्रिभाजित हों तो सुख का कारण बनती हैं, परन्तु अन्त में कुछ न कुछ कमी अवश्य ही रहती है। जीवन साथी बहुत अच्छा मिलता है, मगर उसका स्वास्थ्य भी नरम रहता है। पत्नी का स्वभाव कुछ लालची होता है। सन्तान भी इन्हीं के अनुरूप होती है। रहन-सहन, खान-पान तथा यात्राओं पर अधिक व्यय होता है। फलस्वरूप अनुकुल आय होने पर भी खर्च
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अधिक होता है तथा कभी देनदारी और कभी धन संचय रहता है।
चारों रेखाएं लम्बी होने की दशा में जीवन साथी का कद लम्बा होता है। पत्नी साधारणतया ठीक लम्बाई की होती है तथा चारों रेखाएं मोटी होने पर जीवन साथी का कद छोटा होता है। पत्नी विशेष छोटी होती है।
सभी रेखाएं या अधिकतर रेखाएं अगर दो-दो (डबल) हों तो व्यक्ति विलम्ब से सफलता प्राप्त करता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति घर छोड़ कर बाहर नहीं जाना । चाहता, परन्तु स्थायित्व के पश्चात् लगातार सफलता मिलती है।
सभी रेखाएं नजदीक में दोहरी होना अच्छा लक्षण नहीं है। जातक को जीवन भर संघर्ष करना पड़ता है। सफलता तो मिलती है, परन्तु अशान्ति बनी रहती है। हाथ की बनावट का भी इस लक्षण पर अधिक प्रभाव
चित्र-33 पड़ता है।
जिस हाथ में जो भी रेखा, संख्या में दो होती हैं, उस सम्बन्ध में स्वयं तथा आने वाली सन्तान में विशेषता पाई जाती है, जैसे हृदय रेखा दो होने पर आपसी प्रेम, मस्तिष्क रेखा से काम में बौद्धिक विशेषता, दोहरी जीवन रेखा होने पर परिवार बड़ा या दीर्घायु होना तथा भाग्य रेखा दो होने पर आर्थिक स्थिति उत्तम रहती है। इसके लिए भी चित्र : 33 देखें।
तीन मुख्य रेखाएं यदि जीवन रेखा के निकास के स्थान पर मिलें तो व्यक्ति के उत्तरार्द्ध अर्थात् 50 वर्ष की आयु के आस-पास प्रायः दुर्घटना, कलेश, अशान्ति व हानि होती है। जीवन भर व्यक्ति को इसका दु:ख रहता है। यह हाथ में बहुत ही खराब लक्षण होता है। जो व्यक्ति दिवालिया होते हैं, उनके हाथ में प्रायः यह लक्षण पाया जाता है। एक हाथ में यह योग होने पर इसका फल गम्भीर न होकर साधारण होता है। यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग हो तो भी फल में आधी कमी हो जाती है। दोनों हाथों में उपरोक्त योग होने पर यदि जीवन रेखा अधूरी है तो इसका भयंकर परिणाम सामने आता है। ऐसे व्यक्ति को कन्धे या हंसली की हड्डी में चोट लगती है या अन्य दोष रहता है।
__ हाथ जितना भारी, सुन्दर, मांसल, कोमल, उंगलियां जितनी पतली व छोटी होती है, उतना ही हाथ में बुरी रेखाओं का प्रभाव कम होता है। अंगूठा जितना लम्बा होता है, उतना ही व्यक्ति बुद्धिमान, बुद्धिजीवी व सन्तुलित मस्तिष्क का होता है तथा जातक जीवन में आने वाली समस्याओं का सफलता पूर्वक मुकाबला करने में समर्थ होता
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हाथ में आयु गणना
हाथ में आयु गणना का आधार मस्तिष्क रेखा को माना गया है। उंगलियों के आधार से मस्तिष्क रेखा पर लम्ब डालकर इस पर आयु की गणना की जाती है। इसी प्रकार जीवन रेखा में भी आयु गणना मस्तिष्क रेखा को आधार मानकर की जा सकती है। मस्तिष्क रेखा पर एक कागज रख कर उस पर आयु के चिन्ह लगाकर उसे परकार की भांति घुमाते हुए यदि जीवन रेखा पर जमा दिया जाए तो आयु के कागज पर लगाए गए चिन्ह, जीवन रेखा पर उसी आयु का निर्देश करेंगे। यह गणना विधि सर्वाधिक सुरक्षित व सरल सिद्ध हुई है। चित्र 34 द्वारा यह स्थिति पूर्णतया समझ में आ जाएगी।
इस प्रकार के लम्ब उंगलियों के हथेली पर मिलने के स्थान से, उंगलियों की चौड़ाई के मध्य बिन्दु तथा दो उंगलियों के जोड़ के मध्य बिन्दु से डाले जाते हैं।
___मस्तिष्क रेखा पर आयु गणना बृहस्पति की उंगली का मध्य बिन्दु
17 वर्ष बृहस्पति व शनि की उंगली का मध्य बिन्दु
30 वर्ष शनि की उंगली का मध्य बिन्दु
35 वर्ष शनि व सूर्य की उंगली का मध्य बिन्दुसूर्य की उंगली का मध्य बिन्दु
45 वर्ष सूर्य व बुध की उंगली का मध्य बिन्दु
50 वर्ष उपरोक्त नाप के द्वारा दो बिन्दुओं के बीच शेष वर्षों की गणना बहुत आसानी से की जा सकती है, परन्तु इतना ध्यान रखना चाहिए कि मस्तिष्क रेखा को स्वास्थ्य रेखा जिस बिन्दु पर काटती है, मस्तिष्क रेखा का 58 वर्ष माना जाता है। यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा की ओर झुकी होने पर इसे सीधी समझ कर गणना करनी चाहिए और जीवन रेखा की तरह से इस पर भी चिन्ह लगा लेना चाहिए।
हृदय रेखा पर आयु गणना बुध की उंगली के मध्य बिन्दु पर
17 वर्ष बुध व सूर्य की उंगली के मध्य बिन्दु पर
25 वर्ष सूर्य की उंगली के मध्य बिन्दु पर
35 वर्ष
40 वर्ष
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शनि व सूर्य की उंगली के मध्य बिन्दु पर
40 वर्ष शनि की उंगली के मध्य बिन्दु पर
50 वर्ष बृहस्पति व शनि की उंगली के मध्य बिन्दु पर
56 वर्ष बृहस्पति की उंगली के मध्य बिन्दु पर
100 वर्ष पहले की तरह हृदय रेखा पर भी लम्ब डाल कर गणना करनी चाहिए और मुड़ी हृदय रेखा होने पर सीधी माननी चाहिए।
भाग्य रेखा पर आयु गणना
भाग्य रेखा पर आयु गणना हथेली के सबसे पास मणिबन्ध को आधार मान कर करनी चाहिए। इसमें मणिबन्ध से एक इन्च की दूरी पर 21 वर्ष की आयु मानी जाती है। अंगूठे को हथेली से मिलाकर उसकी हथेली से मिलने वाली गांठ से भाग्य रेखा पर लम्ब डालने से 24 वर्ष की आयु आती है। इस प्रकार भाग्य रेखा पर आयु निम्न प्रकार से माननी चाहिएप्रथम मणिबन्ध से एक इंच ऊपर
21 वर्ष अंगूठे की हथेली से जोड़ की गांठ का मध्य बिन्दु
24 वर्ष मस्तिष्क रेखा द्वारा भाग्य रेखा को काटने वाला बिन्दु
35 वर्ष हृदय रेखा द्वारा भाग्य रेखा को काटने वाला बिन्दु
50 वर्ष शनि की उंगली हथेली के पास वाले पोर तक
100 वर्ष प्रायः देखा जाता है कि (भाग्य रेखा शनि की उंगली पर जाने की दशा में) भाग्य रेखा को हृदय रेखा 50 वर्ष की आयु में ही काटती है।
जीवन रेखा पर आयु गणना
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि मस्तिष्क रेखा को सीधी मानकर उस पर गणना के चिन्ह लगाकर परकार द्वारा जीवन रेखा पर चाप लगाने से वही आयु आती है जो कि मस्तिष्क रेखा पर आती है, अर्थात् जीवन रेखा को मस्तिष्क रेखा के स्थान पर फैला कर पूर्व नियमानुसार गणना करने से ठीक आयु आती है। यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि जिस बिन्दु से स्वास्थ्य रेखा या भाग्य रेखा, स्पष्ट रूप से जीवन रेखा से निकलती है, वह जीवन रेखा का 69 वां वर्ष माना जाता है।
उपरोक्त आयु गणना के साथ उंगलियों के पोर पर वर्ष गणना के अवलम्बन करने पर हस्तरेखाविद् आसानी से समय या आयु की गणना कर सकता है।
एक अन्य ढंग से भी समय का अनुमान लगाया जाता है। इसमें निम्न प्रकार से गणना की जाती है
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दायें हाथ में हथेली का मध्य
-जन्म का मास शुक्र के पर्वत पर
-दूसरा मास बृहस्पति के पर्वत पर
-तीसरा मास शनि के पर्वत पर
-चौथा मास सूर्य के पर्वत पर
-पांचवा मास बुध के पर्वत पर
-छठा मास बायें हाथ में बुध के पर्वत पर
-सातवां मास सूर्य के पर्वत पर
-आठवां मास शनि के पर्वत पर
-नौवां मास बृहस्पति के पर्वत पर
-दसवां मास शुक्र के पर्वत पर
-ग्यारहवां मास हथेली के मध्य में
-बारहवां मास जिस पर्वत पर अधिक रेखाएं, क्रास या जाली आदि दोषपूर्ण चिन्ह होते हैं, उनसे सम्बन्धित मास कष्टकारक रहता है।
उंगलियों पर वर्ष गणना, आयु गणना . दायें हाथ की बुध की उंगली के हथेली के पास वाले पोर से एक वर्ष की गणना करते हुए अंगूठे के अन्तिम पोर तक 15 वर्ष गिनने चाहिए, और बायें हाथ में बुध की उंगली के हथेली के पास वाले पोर से 16 वर्ष से लेकर अंगूठे के पोर तक 30 वर्षों की गणना हो जाती है। उपरोक्त प्रकार से पुनर्गणना करके 60 वर्ष तथा आगे गणना की जा सकती है।
जिन पोरों पर आड़ी, मोटी रेखाएं होती हैं, वे वर्ष जीवन में विशेष अनिष्ट घटना के सूचक होते हैं। जैसे- किसी की मृत्यु व दुर्घटना आदि। जीवन में 29, 30, 34, 35, 37, 39, 40, 44, 45, 49 व 50 वर्ष नेष्ट फलकारक होते हैं। इन वर्षों में इन आड़ी रेखाओं का प्रभाव अधिक व दुसरे वर्षों में कम होता है।
ना
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जीवन रेखा
जीवन रेखा जितनी ही गोल, सुडौल, देखने में सुदृढ़ तथा दोषमुक्त होती है, उतनी ही अच्छी कहलाती है। यह धन, सन्तान, जीवन साथी व सुखी परिवार के लिए उत्तम फलदायी होती है। दूसरी ओर यह जितनी पतली, कम गहरी, कहीं से मोटी, कहीं से पतली, गोलाकार न होकर आड़ी रेखाओं से कटी-फटी, काली, लाल आदि होती है, उतना ही व्यक्ति को जीवन में धन, स्वास्थ्य तथा दूसरी समस्यायें घेरे रहती हैं। हाथ में जीवन रेखा का विश्लेषणपूर्वक विचार करना अति आवश्यक है। जीवन रेखा में चतुष्कोण व त्रिकोण खतरों से रक्षा करते हैं। साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि मनुष्य के जीवन में ऐसी घटनाएं अवश्य होंगी। 1. जीवन रेखा 2. जीवन रेखा का निकास बृहस्पति से 3. जीवन रेखा का निकास मंगल से। 4. जीवन रेखा का अन्त चन्द्रमा की ओर
जीवन रेखा में त्रिकोण 6. जीवन रेखा से नीचे की ओर रोमांच 7. जीवन रेखा से ऊपर की ओर रोमांच 8. जीवन रेखा के साथ कुठार रेखा
छोटी-छोटी रेखाएं जीवन रेखा को अन्दर अर्थात् चित्र-34 मंगल या शुक्र की ओर से आकर काटती या छूती हों तो व्यक्ति को अधिक जिम्मेदारी के कारण मानसिक चिन्ता रहती है। यदि ये रेखाएं गहरी हों तो परिवार वालों से दुश्मनी आदि रहती है। पतली होने से बाहर के व्यक्ति विरोध करते हैं।
जीवन रेखा लहरदार होकर शुक्र के स्थान को अधिक घेरती हो तो भी व्यक्ति को कुछ समय आराम व कामयाबी मिलती रहती है और कुछ समय असफलता का मुंह देखना पड़ता है। जब तक जीवन रेखा अच्छी नहीं हो जाती, तब तक इस प्रकार की उथल-पुथल चलती रहती है।
जीवन रेखा दोनों हाथों में समान सुन्दर हो तो यह निश्चय ही शुभ लक्षण है। दूसरी रेखाएं भी यदि सुन्दर व निर्दोष हों तो कहना ही क्या। जीवन रेखा यदि न सीधी हो और न गोलाकार तो ऐसे व्यक्ति का जीवन मध्यम श्रेणी का होता है। सन्तान अधिव नहीं होती।
जीवन रेखा दोनों हाथों में एक जैसी गोलाकार अथवा सीधी हो तो जीवन में
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कम हेर-फेर होता है। जिस आयु में जीवन रेखा में अन्तर आरम्भ होता है, अर्थात् जीवन रेखा अच्छी हो जाती है, उस आयु में जीवन में भी उत्थान होना आरम्भ हो जाता है। जब-जब जीवन रेखा में लाल निशान होता है, मृत्यु का खतरा उपस्थित करता है। धन का अपव्यय, मुकदमा, दुर्घटना, रिश्तेदारी में मृत्यु आदि कष्ट सामने आते हैं।
=निर्दोष जीवन रेखा (गोलाकार) =
जीवन रेखा जितनी सुडौल, दोष रहित तथा गोलाकार होकर शुक्र को घेरती है, उतनी ही उत्तम मानी जाती है। उतना ही जीवन में धन, सन्तान, पद, पत्नी, परिवार का सुख कराती है। जीवन में सुख का बाहुल्य होता है और सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे व्यक्ति का वंश बड़ा होता है। जीवन रेखा में जितना दोष होता है, उतना ही परिवार सीमित होता है। निर्दोष जीवन रेखा स्वास्थ्य को भी निर्दोष रखती है। ऐसी जीवन रेखा अन्य दोषों को भी कम करती है। उत्तम जीवन रेखा के साथ एक से अधिक भाग्य रेखा और ग्रह उठे हुए हों तो व्यक्ति दानी होता है। अन्य लक्षणों से दान के परिणाम का पता किया जाता है। ऐसे व्यक्ति के पूर्वज महान होते हैं।
जीवन रेखा जितनी गोलाकार होती है, व्यक्ति का भार बढ़ता जाता है। समय का अनुमान भाग्य रेखा से लगाना होता है। जिस समय से भाग्य रेखा का पतली होना आरम्भ है, उसी आयु से व्यक्ति का भार बढ़ना आरम्भ होता है। गोलाकार जीवन रेखा होने पर सन्तान अधिक होती है तथा दो सन्तानों के बीच का अन्तर भी कम होता है जीवन रेखा एक हाथ में सीधी व एक हाथ में गोल हो तो पूर्व पीढ़ी से अधिक स्थिति में सुधार होता है। बायें हाथ से पूर्वजों तथा दायें हाथ से स्वयं की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। ___ गोलाकार जीवन रेखा वाले व्यक्ति धन एकत्रित करने में बहुत होशियार होते हैं। इनके पास धन आदि की अधिकता होती है। साथ ही ये बहुत चतुर प्रवृत्ति के होते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा भी अच्छी हो तो बहुत सूझ-बूझ से धन खर्च करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति माता-पिता के भक्त होते हैं तथा सभी की सहायता करते हैं।
गोलाकार जीवन रेखा वाले व्यक्ति बहुत ही उत्तरदायी होते हैं। अत: स्थायित्व प्राप्त करने के बाद ही शादी करना पसन्द करते हैं, परन्तु ऐसे व्यक्ति का विवाह माता-पिता के द्वारा शीघ्र ही किया जाता है। __समकोण व चमसाकार हाथ में जीवन रेखा गोलाकार हो व मस्तिष्क रेखा भी अच्छी हो तो इनके भाग्य का प्रभाव सारे परिवार पर पड़ता है। यदि ये उन्नति करते
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हैं तो सारा परिवार उन्नति करता है तथा आपदाग्रस्त होते हैं तो सारे परिवार को आपत्ति का मुंह देखना पड़ता है। कभी-कभी तो सम्बन्धियों तथा मित्रों पर भी इसका प्रभाव देखा जाता है।
गोलाकार जीवन रेखा में त्रिकोण हो और साथ ही साथ हाथ में गोद सम्पत्ति आने का लक्षण हो तो पितृपक्ष से सम्पत्ति मिलती है। यदि यह त्रिकोण मस्तिष्क रेखा में हो तो मातृपक्ष से सम्पत्ति प्राप्त होने का योग होता है। मस्तिष्क रेखा सुन्दर, भाग्य रेखा ठीक, उंगलियां छोटी व पतली, हाथ चमसाकार या समकोण होने पर ऐसे जातक शीघ्र ही सम्पत्ति बना भी लेते हैं।
गोलाकार जीवन रेखा व भाग्य रेखा इससे दूर हो तो उसी समय तक शान्ति रहती है जब तक परिवार बढ़ता नहीं, परिवार बढ़ने पर खर्च भी बढ़ता है, परन्तु अतिरिक्त परिश्रम करके ये व्यय की पूर्ति कर लेते हैं।
दोषयुक्त जीवन रेखा
टूटी-फूटी, द्वीपयुक्त, सीधी, अधूरी, कहीं मोटी, कहीं पतली, कहीं लाल व कहीं काली जीवन रेखा को दोषयुक्त जीवन रेखा की संज्ञा दी जाती है । जीवन रेखा में जितना अधिक दोष होता है, स्वास्थ्य, धन, परिवार आदि को लेकर अशान्ति अधिक रहती है। जब तक जीवन रेखा में दोष रहता है, व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की कमी रहती ही है।
दोषयुक्त जीवन रेखा से परिवार बड़ा होकर छोटा होता है। ऐसे व्यक्ति को किसी से भी लाभ अथवा सहयोग प्राप्त नहीं होता । आपसी कलह, विरोध तथा परिवार -विग्रह से मन खिन्न रहता है। ससुराल से इनको कोई लाभ नहीं होता बल्कि ऐसा देखा जाता है कि ससुराल वाले ही इनसे लाभ उठाते हैं।
दोषपूर्ण जीवन रेखा की आयु में स्वयं या पत्नी को किसी न किसी प्रकार का शारीरिक दोष रहता है। ऐसा देखा गया है कि इस समय में स्त्रियों को गर्भाशय सम्बन्धी विकार, मासिक धर्म के दोष या प्रदर आदि रोग रहते हैं। सन्तान या तो उस समय होती नहीं अर्थात् यदि होती भी है तो लड़कियों की संख्या ही अधिक रहती है तथा इस समय में जन्मी हुई सन्तान का स्वास्थ्य भी कुछ समय तक ठीक नहीं
रहता ।
उपरोक्त जीवन रेखा यदि कठोर हाथ में हो तो पेट, गुर्दा, दमा आदि रोग शरीर में उत्पन्न करती है, तथा नरम हाथ में जिगर, मधुमेह, टी. बी. या प्लूरिसी आदि रोगों का संकेत है। दोषपूर्ण जीवन रेखा की आयु में यदि शुक्र ग्रह उन्नत हो तो लड़कियां अधिक होती हैं तथा जीवित भी अधिक रहती हैं। इस आयु में व्यक्ति की वासना
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में वृद्धि होती है। दोषपूर्ण जीवन रेखा की अवस्था में यदि मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी हो तो आसानी से जीवन-यापन होता रहता है, कठिनाई आती अवश्य है, परन्तु वह आसानी से दूर हो जाती है। दोषपूर्ण जीवन रेखा वाले व्यक्ति कुछ समय तक अपनी पत्नी से असन्तुष्ट रहते हैं, परन्तु बाद में सम्बन्ध ठीक हो जाते हैं। अधिक दोष होने पर व्यक्ति बीमार रहता है तथा बीमारी के बाद उसका शरीर भारी हो जाता है। दोष यदि कोमल हाथ में हो तो वीर्य दोष होता है, कठोर हाथ में होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द, दमा व खांसी का रोग रहता है।
आरम्भ में दोषपूर्ण जीवन रेखा होने पर लड़की की ससुराल वाले लालची होते हैं, दामाद यद्यपि ठीक होता है, तब भी वह अपने मां-बाप की अधिक सुनता है, जिससे लड़की को ससुराल में परेशानी बनी रहती है। बहन के विषय में भी ऐसा कह सकते हैं। दोषपूर्ण जीवन रेखा वाले व्यक्ति का गृहस्थ जीवन भी शान्ति से नहीं बीतता। पति-पत्नी एक दूसरे पर लांछन लगाते हैं। दोनों ही स्वभाव से चिड़चिड़े होते हैं। घर से बाहर समाज में इनका स्वभाव प्रायः ठीक ही देखा जाता है।
जीवन रेखा दोष पूर्ण होने पर यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकली हो, तो बाल्यकाल में स्वयं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता अर्थात् बचपन में कई बार बीमार होते हैं। यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा के बीच में चतुष्कोण हो तो भयंकर कष्टों से बार-बार रक्षा होती है। __ जीवन रेखा के साथ यदि हृदय रेखा तथा शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो स्त्री होने पर मासिक धर्म से आंखों में रोग तथा शरीर में भारीपन रहता है। इनको गर्भपात होते हैं व पुरूष होने पर ये कुटेंव से अपना पेट तथा जिगर खराब कर लेते हैं। आरम्भ में जीवन रेखा दोषपूर्ण, साथ ही मस्तिष्क रेखा में झुकाव या कोई रेखा मंगल से आकर जीवन रेखा को काटती हुई बृहस्पति के नीचे मस्तिष्क रेखा पर मिले तो इनके बच्चे को पोलियो हो जाता है, स्वयं को भी शरीर का कोई अंग मारे जाने का डर रहता है। जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर एक या दो सन्तान रहती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो सन्तानहीन रहते हैं। जीवन तथा मस्तिष्क रेखा यदि बायें हाथ में दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का जन्म अशिक्षित परिवार में होता है व जन्म के समय उसके परिवार में अकाल, मृत्यु, बीमारी, झगड़े व अधिक खर्चे आदि रहते हैं। जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर मस्तिष्क रेखा बृहस्पति से उदय हुई हो और साथ ही भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रूकी हो तो व्यक्ति व्याभिचारी होता है।
जीवन रेखा का निकास जीवन रेखा का निकास बृहस्पति, मंगल या इन दोनों के मध्य से ही होता है।
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निकास का प्रभाव जीवन रेखा के फल पर अवश्य पड़ता है। खमदार जीवन रेखा का निकास शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा से होता है।
बृहस्पति से निकलने वाली जीवन रेखा
जब जीवन रेखा बृहस्पति से उदय होती है तो व्यक्ति में उच्च विचार, सभ्यता, स्वात्माभिमान, स्वतन्त्र शासन की प्रवृति, स्वतन्त्र व्यक्तित्व आदि गुण पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति न किसी के बीच में बोलते हैं और न । ही यह पसन्द करते हैं कि कोई इनके बीच में हस्तक्षेप करे (देखें चित्र - 35 ) 1
मंगल से उदित जीवन रेखा
मंगल से निकलने पर जीवन रेखा वैसे तो कभी दुःख व कभी सुख देने वाली होती है, परन्तु ये चिड़चिड़े स्वभाव के, क्रोधी, शंकालु तथा चुनौती देने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति लालची भी होते हैं और पेट में अम्ल का प्रभाव पाया जाता है। इन्हें तानाशाही पसन्द होती है। ये कभी-कभी चर्म रोग से पीड़ित भी देखे जाते हैं। इनके जन्म लेने के बाद परिवार में व्यय वृद्धि होती है तथा उतार-चढ़ाव आते हैं। आरम्भ में रोगी होते हैं।
बृहस्पति और मंगल के बीच से उदित जीवन रेखा
इस जीवन रेखा में मंगल और बृहस्पति दोनों का ही प्रभाव पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति उन्नति करने वाले, शान्त और क्रोधी अर्थात् समय के अनुसार बर्ताव करने वाले होते हैं। ये किसी भी प्रकार का छोटा या बड़ा कार्य निःसंकोच कर सकते हैं, अतः शीघ्र ही उन्नति कर जाते हैं।
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चित्र-35
H. K. S -7
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जीवन रेखा का अन्त
जीवन रेखा का अन्त शुक्र, चन्द्रमा या इन दोनों के बीच होता है। शुक्र व चन्द्रमा के मध्य में अन्त होने पर साधारण फल देने वाली जीवन रेखा होती है। जीवन रेखा के आकार तथा उसकी बनावट एवं गुणों के अनुसार ही इसका फल कहना चाहिए। परन्तु जो जीवन रेखा चन्द्रमा पर जाकर समाप्त होती है, उसका फल भिन्न होता है।
चन्द्रमा पर जीवन रेखा का अन्त
जीवन रेखा जितनी ही सीधी होकर चन्द्रमा पर जाती है, व्यक्ति को उत्तरोत्तर उतना ही स्त्री, धन व सन्तान का सुख होता जाता है। ऐसे व्यक्तियों को अन्त में ही सुख मिल पाता है।
जीवन रेखा चन्द्रमा पर जाने की दशा में हाथ टेड़ा- मेड़ा, पतला और उंगलियां तिरछी हों तो ऐसे व्यक्ति इधर-उधर घूमकर गुजारा करने वाले होते हैं। उंगलियां मोटी तथा भाग्य रेखा गहरी हो तो खेती का योग होता है, किन्तु जमीन एक स्थान पर नहीं रहती । खेत कहीं और घर कहीं पर होता है।
चित्र - 36
जीवन रेखा गोलाकार होकर चन्द्रमा पर जाए तो परिवार बड़ा होने के कारण अशान्ति रहती है और चिन्ता का कारण बनता है। कोई सम्बन्धी भी इनकी चिन्ता का कारण बना रहता है। ऐसे व्यक्ति जायदाद की कमी महसूस करते हैं। चाहे कितने ही मकान हों, परिवार तथा कारोबार अधिक होने से सदैव ही स्थान की तंगी महसूस करते हैं। जीवन रेखा सर्वश्रेष्ठ वही मानी जाती है, जो बृहस्पति व मंगल के मध्य से उदय होकर पूर्ण रूप से शुक्र को घेरती हुई मणिबन्ध की ओर जाती है। ऐसी जीवन रेखा धन, सन्तान, सवारी, स्वास्थ्य, जीवन साथी तथा माता-पिता का पूर्ण सुख कराने वाली होती है। इस रेखा का अन्त मणिबन्ध के पास शुक्र व चन्द्रमा के बीच होता है।
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सीधी जीवन रेखा
सीधी रेखा अधिकतर हाथों में पायी जाती है। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि जीवन रेखा आरम्भ में अर्थात् 35 वर्ष की आयु तक अधिक सीधी पाई जाती है, परन्तु कहीं-कहीं पूरी जीवन रेखा में ही सीधापन होता है।
उस
जिस आयु तक जीवन रेखा सीधी होती है, समय में स्वास्थ्य, सन्तान की चिन्ता, कर्ज - कलह व रोग आदि चलते रहते हैं । इस दशा में व्यक्ति के कार्य का पूरा मूल्य भी उसे नहीं मिल पाता अर्थात् जितना वह काम करता है, उस अनुपात से पारिश्रमिक नहीं मिलता ( जीवन रेखा में सीधापन होने से शारीरिक पीड़ा, पेट विकार, यकृत विकार व वासनात्मक प्रवृत्ति की अधिकता पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति चाहते हुए भी ब्रह्मचर्य से नहीं रह सकते इनका कोई भी कार्य बिना रूकावट के सम्पन्न नहीं होता। ये बातूनी, गलत कार्य करने वाले, स्थाई न रह कर कार्य बदलने वाले, स्वयं कुआं खोद कर पानी पीने वाले होते हैं।
चित्र-37
इन्हें क्रोध आने पर गाली देने की आदत होती है। घरेलू जीवन में अप्रसन्नता रहती है। मगर कभी-कभी पत्नी की तारीफ करने में मास्टर देखे जाते हैं। ये छोटे दिल के व बहुत जल्द घबराने वाले होते हैं। डटकर संघर्ष करते हैं और संघर्ष करना इन्हें बुरा भी नहीं लगता ।
इनकी सन्तान योग्य होती है। हाथ सुदृढ़ होने पर सन्तान आज्ञाकारी होती है, पढ़ने में रुचि भी रखती है, इसके बावजूद उनमें से कोई एक संतान अयोग्य भी निकलती है। कोमल हाथ होने की अवस्था में सन्तान का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
यदि सीधी जीवन रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो प्रजनन में कष्ट का सामना करना पड़ता है। गर्भपात, रक्त स्त्राव, गर्भाशय की नली बन्द हो जाना आदि दोष पाये जाते हैं। भाग्य रेखा भी यदि मोटी हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। जीवन रेखा सीधी होने पर व्यक्ति के पेट में खराबी
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चित्र-38
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होती है, इन्हें कब्ज, पेट में अम्ल आदि का प्रभाव होता है।
जीवन रेखा आधी या आधी से अधिक सीधी होने पर जीवन भर स्वास्थ्य चिन्ता लगी रहती है। कमर दर्द, सिर भारी, पेट खराब, भूख कम या अधिक लगना आदि चलता रहता है। इस समय में सन्तान या तो होती नहीं, यदि होती भी है तो कन्या। उसका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। सन्तान का न होना पत्नी के स्वास्थ्य अर्थात् गर्भाशय में रोग होने के कारण पाया जाता है। समय बीत जाने पर रोग स्वयं ठीक हो जाता है। स्त्री होने की दशा में यदि जीवन रेखा सीधी और मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो पति के वीर्य में दोष पाया जाता है।
जीवन रेखा दोष पूर्ण तथा सीधी होने पर पत्नी का स्वास्थ्य तो खराब रहता ही है, उसकी मृत्यु भी पहले हो जाती है। यह रेखा स्वयं की कभी-कभी दो शादियां भी करा देती है। अन्य लक्षणों से ऐसा निश्चित कर लेना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों की पत्नी टी.वी., संग्रहणी या प्रजनन दोष के कारण मृत्यु को प्राप्त होती हैं। यह पत्नी का स्वभाव तेज होने का लक्षण भी है। ____ अच्छी मस्तिष्क रेखा, उपरोक्त वर्णित जीवन रेखा का दोष दूर करती है, परन्तु जीवन रेखा थोड़ी भी सीधी होने की दशा में कुछ समय तक झंझट अवश्य करती है।
मस्तिष्क रेखा अच्छी होने की अवस्था में काम आराम से चलता रहता है। शुक्र विशेष उन्नत होने पर व्यक्ति अतिवासना प्रिय होता है। दूसरे लक्षण जैसे हृदय रेखा, उंगलियों के पास एवं इसका अन्त शनि और बृहस्पति की उंगली के बीच होने पर तो ये कामांध होकर अनेक प्रकार के कुकर्म कर डालते हैं, जो जीवन में अपकीर्ति का कारण होते हैं।
सीधी जीवन रेखा होने की दशा में पहली सन्तान यदि लड़की होती है तो ठीक है, पुत्र होने पर उसकी आयु कम होती है। यदि भाग्य रेखा में भी द्वीप हो तो ऐसा निश्चित है।
__ इस समय में मां का स्वभाव पत्नी के स्वभाव के अनुकल नहीं पाया जाता है। विवाह के पश्चात् मां व स्वयं में विरोध रहता है। इनके बच्चों के रंग में अन्तर होता है तथा उन्हें टान्सिल, गला या नाक के रोग होते हैं।
जीवन रेखा सीधी होकर यदि पतली हो तो उसे अधूरी जीवन रेखा समझना चाहिए। यह टी.वी. या प्लूरिसी का लक्षण होती है।
सीधी जीवन रेखा वाले व्यक्ति को किसी दुर्घटना में चोट लगती है। पिता या पति का स्वभाव सख्त होता है और बाद में नरम हो जाता है। इन्हें पितृ-दोष होता
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है, ऐसी दशा में यदि सन्तान सम्बन्धी परेशानी हो तो गया श्राद्ध या पितृ कर्म से शान्ति सम्भव है।
जीवन रेखा पहले गोलाकार, फिर सीधी तथा फिर गोलाकार हो तो जिस समय में यह सीधी होती है, उस समय में भारी परेशानियां आती हैं। सन्तान उस समय में नहीं होती, दो बच्चों के बीच अन्तर रहता है।
जीवन रेखा सीधी होने पर यदि शुक्र प्रधान, भाग्य रेखा हृदय पर रुकी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा सीधी शनि पर गई हो तो व्यक्ति में चरित्र सम्बन्धी कमियां होती हैं। जीवन रेखा का दोष निकलने पर चरित्र में अपने आप सुधार होता है। ऐसे व्यक्ति को हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो रोग होने के कारण चरित्र दोष नहीं रहते या कहते देखे जाते हैं कि इनके पापों के फलस्वरूप ही ऐसी वजह है। इन्हें सुजाक, आतशक, पेशाब का रोग आदि पाये जाते हैं। यदि हृदय रेखा में सूर्य के नीचे व मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो गुदा मैथुन करने वाले होते हैं। स्त्री होने की दशा में अधिक सन्तान होना, मासिक धर्म का रोग, प्रदर होने से आंखों में कमजोरी व सिर में भारीपन होता है। जीवन रेखा का दोष समाप्त होने पर स्वास्थ्य ठीक हो जाता है।
शुक्र रेखाएं यदि अच्छी हों तो परिवार में गोद का हक स्वयं किसी को आता है। इनके वंश में कोई न कोई सन्तानहीन अवश्य होता है। जीवन रेखा सीधी होने पर यदि उसकी शाखा चन्द्रमा पर गई हो तो उनका कोई बच्चा घर से भाग जाता है। ऐसा बच्चा स्वयं भाग जाता है, उसको कोई लेकर नहीं भागता।
= अधूरी जीवन रेखा।
जीवन रेखा जब आरम्भ होकर बीच में ही पूरी हो जाती है तो अधूरी जीवन रेखा कहलाती है (देखें चित्र-39)।
अधूरी जीवन रेखा कई बार आधी, अधिक या उससे कम भी देखी जाती है। अधूरी जीवन रेखा के बहुत से फल सीधी रेखा से मिलते हैं तो भी इसमें कुछ अन्तर पाया जाता है। यह लक्षण हाथ में उत्तम नहीं माना जाता है। इसमें व्यक्ति को परेशानियां, दिमागी अशान्ति तथा असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है। जिस समय तक जीवन रेखा अधूरी हो उस आयु तक कोई न कोई परेशानी चलती रहती है। धन प्राप्त करने में कठिनाइयां सन्तान का स्वास्थ्य कमजोर, मृत्यु का डर, नरम हाथ होने पर टी. बी. का डर, सख्त कठोर हाथ होने पर गुर्दे के रोग आदि लक्षण पाये जाते हैं।
ऐसे व्यक्ति चतुर तो होते हैं, लेकिन इन्हें चालाकी में सफलता नहीं मिलती।
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ये धार्मिक और ईश्वर से डरने वाले और रूढ़िवादी होते हैं; घबराते शीघ्र है व गरम स्वभाव के होते हैं। ये स्वतः मज़ाक करते हैं, परन्तु दूसरों के मज़ाक पर चिढ़ जाते हैं। मस्तिष्क रेखा यदि निर्दोष हो तो इस फल में कमी करती है। इनका स्वभाव अधिक एहसास करने वाला होता है। छोटी-छोटी बात का बतंगड़ बना देना इनके लिए बहुत आसान होता है । जीवन में अधिक परिवर्तन, अधूरी जीवन रेखा के समय पूरी होने के पश्चात् ही देखने में आता है। अच्छी भाग्य रेखा, भारी हाथ तथा अच्छी मस्तिष्क रेखा होने पर इस दोष में कमी आ जाती है अर्थात् व्यक्ति का जीवन यापन सरलता एवं सुगमता से चलता है, तो भी कोई न कोई मुसीबत जीवन में खड़ी रहती है । जीवन रेखा आरम्भ में पतली होकर निकले और बीच में समाप्त हो गयी हो व उसी स्थान से दूसरी जीवन रेखा आरम्भ हुई हो या अधूरी जीवन रेखा पतली होकर टूट गई हो तो सन्तान, धन और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। मस्तिष्क रेखा सुन्दर हो तो सन्तान तो होती है, लेकिन उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। ऐसे व्यक्तियों को नौकरी अवश्य करनी पड़ती है। इनका सीमित परिवार होता है और इनका कोई भी कार्य बिना रूकावट व बगैर परेशानी के नहीं हो पाता है। इन्हें जो आदत पड़ जाती है, वह छोड़ना भी चाहें तो भी नहीं छूटती है। इस दशा में यदि मंगल उठा हो तो मूंगा पहनना चाहिए।
चित्र - 39
जीवन रेखा एक हाथ में पूरी तथा एक हाथ में अधूरी हो तो सफलता के साथ उलझनें अवश्य रहती हैं। यदि काम करने वाले हाथ में पूरी तथा दूसरे हाथ में अधूरी हो तो पिता के अनुपात में व्यक्ति अधिक सफल तथा योग्य होता है। ऐसी दशा में अपने परिवार में जवान की मौत होती है व सम्पत्ति में अड़चन आ जाती हैं। यदि ये कोई भवन बनाते हैं तो वह अधूरा ही रहता है। जहां ऐसे व्यक्ति रहते हैं, वहां झगड़ा या किसी पड़ोसी से दुश्मनी चलती रहती है। अधूरी जीवन रेखा हाथ में होना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। नरम हाथ में यदि अधूरी जीवन रेखा हो तो क्षय रोग, प्लूरिसी आदि का भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति नाजुक मिजाज होते हैं, अधिक मेहनत नहीं कर सकते। यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो शिशुपन में खुराक ठीक न मिलने की वजह से स्वास्थ्य खराब रहता है।
हाथ कठोर होने पर इन लक्षणों से व्यक्ति को आंतों के रोग, पेचिश, जिगर खराब होना, गुर्दा खराब होना इत्यादि रोग पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति खराब स्वास्थ्य
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को कम महसूस करते हैं जब कि नरम हाथ वाले स्वास्थ्य के दोषों को अधिक महसूस करते हैं। अधूरी जीवन रेखा होने पर यदि मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो तो शरीर बहुत भारी हो जाता है। कभी-कभी छाती में दर्द रहता है। इनके परिवार तथा रिश्तेदारों में भी ऐसा पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति का शरीर बेडौल हो जाता है व आयु का प्रभाव वासनात्मक प्रवृत्ति, यौन रोग जैसे, शीघ्रपतन या धातु जाना, ऐसे रोग भी पाये जाते हैं। इनकी जीवन साथी का भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।
हाथ यदि चौड़ा, भारी या सख्त हो तो ऐसे व्यक्तियों को सेना या पुलिस में काम करने का अवसर मिलता है। यदि विशेष भाग्य रेखा हाथ में हो तो फौज में किसी ऊंचे पद पर कार्य करने वाला होता है। यह बात विशेषतया बताने की है कि ऐसे व्यक्ति गोली लगने से बचते हैं। मस्तिष्क रेखा या भाग्य रेखा दोषपूर्ण हो तो अधरी जीवन रेखा होने की दशा में ये गोली का शिकार होकर शहीद होते हैं। इनके वंश में भी पहले कोई न कोई किसी अस्त्र-शस्त्र से मृत्यु को प्राप्त होता है।
ऐसे व्यक्ति सर्वप्रिय होते हैं, परन्तु इन्हें जीवन भर कुछ न कुछ अशान्ति बनी रहती है। ये कई बार अपना निवास स्थान बदलते हैं। इनका कारोबार कुछ समय तक ठीक तथा कुछ समय तक रूक-रूक कर चलता है। मां का स्वास्थ्य नरम तथा स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। मां के अपने जीवन में भी कोई न कोई अशान्ति रहती है। चाहे पिता के स्वभाव अथवा स्वास्थ्य के विषय में ही क्यों न हो। ऐसी जीवन रेखा मां, बाप, स्वयं तथा पत्नी का ऑपरेशन करा देती है। इन्हें परिवार के लिए त्याग करना पड़ता है, परन्तु इसका श्रेय इन्हें नहीं मिलता। इस कारण भी इनमें अशान्ति तथा पश्चाताप बना रहता है।
ऐसे व्यक्तियों को नौकरी अवश्य करनी पड़ती है। नौकरी में भी ये सन्तुष्ट नहीं रह पाते। अपने स्वभाव के कारण किसी से बिगाड़, काम अधिक व अनचाही जगह पर स्थानान्तरण आदि कोई न कोई कारण इनकी नौकरी में असन्तुष्टि का बना रहता
ऐसे व्यक्तियों को जेल का डर भी बना रहता है। ससुराल वालों से भी, ऐसे व्यक्तियों की नहीं बनती। सास या साली से भी मानसिक शान्ति, स्वास्थ्य या अन्य कारण से नहीं बनती।
ऐसे व्यक्तियों के परिवार में बच्चों विशेषतया लड़कों की कमी रहती है। यदि सन्तान न हो तो इनके स्वयं के वीर्य में तथा स्त्री होने पर इनके गर्भाशय में दोष रहता है। भाग्य रेखा गहरी होने पर सन्तान का कष्ट अवश्य देखा जाता है। अधूरी जीवन रेखा की दशा में वीर्य में अम्ल का प्रभाव भी रहता है। इनके बच्चे स्वास्थ्य की दृष्टि से कमजोर होते हैं।
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दोहरी जीवन रेखा
हाथ में जीवन रेखा के साथ एक-दूसरी समानान्तर जीवन रेखा भी देखने में आती है। कई बार यह रेखा पूरी की पूरी जीवन रेखा के साथ चलती है और कभी आरम्भ से शुरू होकर कुछ समय तक या मध्य से आरम्भ होकर कुछ समय तक रहती है। फल कहने से पहले हमें भली-भांति निर्णय कर लेना चाहिए कि जिस रेखा का हम फल बता रहे हैं, वह वास्तव में जीवन रेखा ही है । इस दूसरी जीवन रेखा की मोटाई मुख्य जीवन रेखा जैसी ही होती है । (चित्र - 40 )
दोहरी जीवन रेखा यदि यह निर्दोष है तो जीवन में सुख, शान्ति, धन, प्रतिष्ठा देती है तथा खतरों से रक्षा करती है । इस दशा में यदि हाथ का आकार चौड़ा, भारी व मांसल हो तो विपुल धन, सम्पत्ति प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में असाधारण उन्नति करने वाले व अपने पूरे परिवार के लिए वरदान सिद्ध होते हैं ।
यदि जीवन रेखा अन्त में दोहरी हो तो जिस आयु में दोहरी जीवन रेखा का समय आता है, व्यक्ति उन्नति करना शुरू करता है। यदि जीवन रेखा आरम्भ में अन्दर की ओर दोहरी हो तो उस रेखा के समाप्त होने के पश्चात् ही मनुष्य जीवन में उन्नति कर सकेगा और यदि जीवन रेखा के भीतर की ओर अन्त में जीवन रेखा दोहरी हो तो दोहरी जीवन रेखा का समय आरम्भ होने पर ही अधिक उन्नति होती है। ऐसी जीवन रेखा सन्तान उत्पत्ति में बाधक होती है। दोनों जीवन रेखाएं मिलकर यदि एक बड़ा द्वीप बनाती हैं तो स्वयं या कोई रिश्तेदार हवाई दुर्घटना से बचता है। दोनों हाथों में ऐसा हो तो यह स्वयं के साथ घटित होती है।
चित्र - 40
यदि जीवन रेखा अन्त में दोनों ओर से दोहरी हो तो व्यक्ति को किसी से व्यापार में सहयोग मिलता है या ऐसे व्यक्ति किसी दूसरे के आश्रित रहकर पलते हैं । अन्त में ऐसे व्यक्ति बहुत धनी हो जाते हैं तथा दूसरे के ही द्वारा बढ़ते हैं । दोहरी जीवन रेखा वाले व्यक्ति विवाह के बाद तरक्की करते हैं। यदि इनकी भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रूकी हो तो यह कई बार विदेश यात्रा भी करते हैं, नहीं तो विदेश यात्रा का फल इनकी सन्तान को होता है। दो से अधिक जीवन रेखा होने पर व्यक्ति सफल तो अधिक होता है, लेकिन उसके जीवन में अधिक अड़चनें और खतरे आते हैं। दो जीवन रेखाओं में से एक यदि बृहस्पति व एक मंगल से निकले तो व्यक्ति दो
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स्वभाव का पाया जाता है, जैसे क्रोधी एवं स्वाभिमानी, लेकिन प्रायः देखने में आता है, ये बहुत चालाक होते हैं । दोहरी जीवन रेखा वाले व्यक्ति कुलीन होते हैं व जीवन भर अपने कुल की मर्यादा को आंच नहीं आने देते हैं।
VAA
तीन जीवन रेखाएं होने पर स्वाजातीय प्रतिष्ठित वंश में पैदा होते हैं। बात अधिक करते हैं तथा क्रोधी प्रकृति के होते हैं । दोहरी जीवन रेखा वाले व्यक्ति स्वास्थ्य की अधिक परवाह करते देखे जाते हैं। इसी कारण यह अधिक वासना पसन्द करते हैं। जीवन रेखा और हृदय रेखा दोनों ही दोहरी हों तो व्यक्ति को जीवन साथी से अधिक प्रेम होता है और इनका जीवन साथी सुन्दर होता है। स्वयं का स्वभाव बहुत क्रोधी व जीवन साथी सीधा और मलीन और मेहनती होता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन साथी को देवता के समान मानते हैं और उसके बिना एक दिन भी नहीं रह सकते। उसकी मृत्यु के बाद यह बहुत जल्दी ही मर जाते हैं। यदि जीवन रेखा में किसी प्रकार का दोष नहीं है तो बच्चे बिल्कुल भी लापरवाह नहीं होते। इनके किसी बच्चे के दांत पर दांत है। दांत पर दांत होना भाग्यशाली होने का चिन्ह माना जाता है। ऐसे बच्चे इस तरह उन्नति करते हैं कि परिवार में इनका नाम होता है। इनमें किसी प्रकार की गन्दी आदत नहीं होती। दोहरी जीवन रेखा वाले व्यक्तियों के एक से अधिक आय के साधन पाये जाते हैं।
चित्र - 41
दोनों जीवन रेखाओं में से यदि किसी एक जीवन रेखा में दोष हो और दूसरी जीवन रेखा में कोई दोष न हो तो स्वास्थ्य तथा धन सम्बन्धी विपत्ति आती है, लेकिन बिना किसी विशेष कष्ट दिये टल जाती है। यदि दोनों ही जीवन रेखाएं एक ही समय में दोषपूर्ण हों तो परिस्थिति सचमुच सोचनीय होती है, साथ ही मस्तिष्क रेखा में भी इस समय में दोष होने पर गम्भीरता से सोचने की आवश्यकता होती है।
उस समय व्यक्ति के ऊपर अवश्य ही बड़ी विपत्ति आती है, परन्तु दोहरी जीवन रेखा का स्वभाव खतरों से रक्षा करना है। अतः ऐसे व्यक्ति धैर्य से उस समय को काट जाते हैं । दोहरी जीवन रेखा में एक लाल या काली हो तो उस व्यक्ति को शराब की आदत होती है। ऐसा व्यक्ति शराब का अत्याधिक आदी होता है।
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मोटी जीवन रेखा =
पूरी जीवन रेखा के आकार को देखते हुए कई बार यह अन्य रेखाओं की अपेक्षा अधिक मोटी होती है। इस प्रकार की जीवन रेखा हृदय, मस्तिष्क व भाग्य रेखा की तुलना में गहरी व चौड़ी होती है। मोटी जीवन रेखा वास्तव में व्यक्ति के लिए कष्टकारक ही होती है। यह हाथ में अच्छा लक्षण नहीं माना जाता है। इसके साथ यदि दूसरी रेखाएं भी मोटी हों तो इसका फल अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होता है। कभी-कभी जीवन रेखा पूरी मोटी न होकर बीच में से कुछ भाग में ही मोटापन लिए होती है। जीवन में यह समय कष्ट और मानसिक अशान्ति का होता है।
जिस आयु में जीवन रेखा मोटी होती है, उस समय स्वास्थ्य, धन, सन्तान आदि की परेशानी रहती है। इसी समय में यदि मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो सन्तान की मृत्यु, और स्वयं को भी पेट का रोग एवं अम्ल-पित्त रोग होता है। जितने समय तक जीवन रेखा में लगातार मोटापन पाया जाता है, उस समय तक सन्तान नहीं होती है। यदि पहले सन्तान हो तो दूसरी सन्तान होने के समय में अन्तर रहता है। स्वयं को झंझट, स्थान परिवर्तन, मुकद्दमे आदि अनेक प्रकार के कष्ट इस समय में देखने में आते हैं। जीवन रेखा मोटी होने पर यदि मस्तिष्क रेखा मोटी हो तो जीवन आसानी से नहीं बीतता, झंझट अधिक रहते हैं, जायदाद सम्बन्धी मुकद्दमे होते हैं व झगड़ों में चोट आती है।
- स्त्री के हाथ में जीवन रेखा मोटी होने पर उसका स्वास्थ्य कमजोर व स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। अनबन रहती है। सन्तान के विषय में इन्हें चिन्ता रहती है तथा सन्तान को श्वेत प्रदर व कमर दर्द रहता है। ___ जीवन रेखा यदि आरम्भ में कुछ समय तक मोटी हो और मस्तिष्क रेखा में भी दोष हो तो शरीर में किसी न किसी प्रकार का दोष पाया जाता है जैसे कोई अंग बढ़ना, हकलाना, तुतलाना या कम्पवायु आदि। यह समय सन्तान के लिए ठीक नहीं होता। इस आयु में सन्तान नहीं होती परन्तु मस्तिष्क रेखा यदि अच्छी हो तो सन्तान तो होती है परन्तु स्त्री होने की दशा में स्वयं को या पुरुष होने की दशा में पत्नी को प्रजनन कष्ट होता है। जीवन रेखा का दोष निकलने के पश्चात् ही शान्ति मिलती है।
ऐसे व्यक्ति क्रोधी तथा जिद्दी होते हैं। जरा-सी बात पर बिगड़ पड़ते हैं तथा अधिक क्रोध करना इनकी आदत होती है। जीवन रेखा मोटी होने की आयु में यदि भाग्य रेखा न हो व हाथ सख्त हो तो लड़ाई-झगड़ा होता रहता है। मस्तिष्क रेखा मंगल से निकल कर यदि मंगल पर गई हो तो ऐसा व्यक्ति महान लड़ाकू होता है।
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विशेषतया यदि अंगूठा मोटा व कम खुलने वाला हो तो और भी बुरा होता है। ऐसे व्यक्तियों को सिर फुट्टा कहा जाता है। ये छोटी-सी बात पर क्रोधित होकर नीच कर्म करने वाले होते हैं, कत्ल करने से भी नहीं हिचकते, ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए।
जीवन रेखा मोटी होने पर यदि अंगूठा अधिक खुले तो शरीर बहुत भारी हो जाता है। जीवन रेखा भारी होने के साथ-साथ हृदय रेखा भी मोटी हो और मस्तिष्क रेखा अच्छी हो तो धन तो रहता है परन्तु परिवार बड़ा होने के कारण खर्चा अधिक होता है। परिवार उन्नति करता है तथा बच्चे बुद्धिमान होते हैं। इनको कमर तथा हृदय का रोग होता है।
जीवन रेखा मोटी, पतली, मोटी व फिर पतली इस प्रकार की हो तो जीवन में परिवर्तन होता रहता है। इसी के साथ यदि उस आयु में मस्तिष्क रेखा भी मोटी, पतली हो तो जब दोनों रेखाओं में एक साथ मोटापन या पतलापन होगा तो जीवन में उन्नति होगी तथा एक रेखा में मोटापन व दूसरी में पतलापन होने पर परेशानी रहती है।
जिन हाथों में रेखाएं कम होती हैं, उनमें केवल जीवन रेखा तथा मस्तिष्क रेखा के मोटे-पतलेपन या झुकाव आदि का ही अध्ययन किया जाता है, क्योंकि उन हाथों में किसी प्रकार का थोड़ा-सा भी दोष बड़ा महत्व रखता है जो किसी महत्वपूर्ण घटना का सूचक होता है।
पतली जीवन रेखा
ऐसी जीवन रेखा भाग्य, मस्तिष्क व हृदय रेखा की तुलना में पतली होती है। अधिक पतली जीवन रेखा से भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता । कठोर हाथ हो तो पेट खराब होता है और नरम हाथ में फेफड़ों में विकार पाया जाता है, ये रोग वंशानुगत होते हैं।
आरम्भ में पतली जीवन रेखा अस्वस्थता की चेतावनी देती है, साथ ही यह पारिवारिक कलह, विवाह में देरी, पत्नी की ओर से असन्तुष्टी, या उसके कारण घर में कलह आदि का लक्षण है। स्वयं मां-बाप में से एक से चुप रहता है या उनसे अलग रहता है। ऐसे व्यक्ति स्वनिर्मित होते हैं। यदि विशेष दोष हो या हाथ अधिक कठोर व खुरदरा हो तो कितना भी विद्वान होने पर जीवन में कदाचित् ही उन्नति कर पाता है। जीवन भर कुछ न कुछ असन्तोष अपने जीवन के विषय में बना ही रहता है। ऐसे व्यक्ति कुटेंव के कारण अपने पेट और आतें खराब कर लेते हैं।
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= देर से आरम्भ होने वाली जीवन रेखा
ऐसी जीवन रेखा मस्तिष्क रेखा से बृहस्पति के नीचे से आरम्भ न होकर आगे से आरम्भ होती है (चित्र-42)।
देर से आरम्भ होने वाली जीवन रेखा वाले व्यक्ति स्पष्ट वक्ता, घूम-फिरकर काम करने वाले, देर से । स्थायित्व प्राप्त करने वाले तथा बचपन में दु:खी होते हैं। इन्हें मां-बाप का सुख नहीं मिलता।
हाथ कठोर व खुरदरा होने पर दोष भी अधिक बढ़ जाते हैं तथा कोमल, सुन्दर व मखमली हाथ होने पर दोषों में कमी आती है। यह जीवन रेखा भी दोषपूर्ण जीवन रेखा कहलाती है। दोषपूर्ण जीवन रेखा के सभी सिद्धान्त इस स्थान पर भी उस समय जब तक कि यह आरम्भ नहीं होती, लागू किये जा सकते हैं। इस
चित्र-42 लक्षण के साथ मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो गले में थायराइड ग्रन्थी में दोष का लक्षण है।
जीवन रेखा में कुठार रेखा
कुठार रेखा जीवन रेखा के पास बिल्कुल सटी हुई पतली रेखा का नाम है। यह रेखा छोटी या पूरी जीवन रेखा के साथ बाहर या भीतर किसी भी ओर हो सकती है। कई स्थानों पर एक ही साथ बाहर और भीतर दोनों ओर कुठार रेखा देखी जा सकती है। यह एक बड़ा दोष माना जाता है (चित्र-43)
जब तक कुठार रेखा जीवन के साथ चलती है, उस समय में व्यक्ति को शान्ति, स्थायित्व, धन में अधि कता आदि बिल्कुल नहीं मिल पाते। नियमानुसार यदि व्यक्ति धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन करें तो चिंता से मुक्ति व शान्ति प्राप्त की जा सकती है।
ऐसे व्यक्तियों के पेट मे अम्ल का प्रभाव पाया चित्र-43 जाता है, फलस्वरूप, खट्टापन या जलन आदि पेट में महसूस होती रहती है। अधिक
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दोष होने पर यह अल्सर का रूप धारण कर लेती है।
जिस समय तक कुठार रेखा चलती रहती है, उस समय तक व्यक्ति पर कुछ न कुछ देनदारी अवश्य बनी रहती है। नौकरी में भी परेशानी रहती है। कुठार रेखा होने के साथ-साथ, यदि मस्तिष्क रेखा पर भाग्य रेखा रुकती है, तो व्यक्ति पर कोई घातक हमला भी होता है। सेना में होने पर ऐसे व्यक्ति गोली इत्यादि से तो बचते रहते हैं लेकिन आपस में दुश्मनी के कारण छुरे आदि से वार होने की सम्भावना होती है। कई बार गलतफहमी में भी ऐसा हो जाता है। हाथ में अन्य अच्छे लक्षण होने पर मृत्यु नहीं होती।
कुठार रेखा के साथ यदि मस्तिष्क रेखा भी मोटी-पतली हो तो भयंकर दुर्घटना होती है। पेट या टांग का आपरेशन कराना पड़ता है। यह अंग-भंग का भी मुख्य लक्षण है। यदि कुठार रेखा के द्वारा जीवन रेखा पर एक लम्बा द्वीप बनता हो तो पेट का आपरेशन या फेफड़ों में प्लूरिसी के भय का लक्षण है। स्त्री हाथ में कुठार रेखा कमर में दर्द, मासिक धर्म में विकार, श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर आदि दोषों का लक्षण है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर गुर्दे खराब हो जाते हैं।
कुठार रेखा के साथ-साथ भाग्य रेखा में भी दोष हो अर्थात् भाग्य रेखा मोटी, टूटी हुई, कई टुकड़ों से मिलकर बनी हो या भाग्य रेखा जीवन रेखा के समीप आती हुई या मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो दाम्पत्य जीवन के लिए ये अच्छे लक्षण नहीं हैं। गृहस्थ जीवन में कलह, विछोह, तलाक आदि घटनाएं घटित होती हैं। हृदय रेखा की शाखा, यदि उसी आयु में मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो निश्चित रूप से जीवन साथी की मृत्यु या तलाक हो जाता है। अन्य रेखाओं में सुधार होने पर दाम्पत्य जीवन में सुख रहता है। हाथ पतला होने पर यदि कोई अन्य दोष हो,
चित्र-44 जैसे भाग्य रेखा का हृदय रेखा पर रुकना आदि भी हो तो जीवन साथी की टी. बी. आदि भयंकर रोग से मृत्यु हो जाती है।
स्त्रियों के हाथ में ऐसे लक्षण होने पर स्वयं तथा जीवन साथी का स्वभाव तेज होता है और कुठार रेखा के रहने तक असन्तोष बना रहता है।
ऐसे व्यक्तियों को सन्तान सम्बन्धी चिन्ता भी रहती है। इनके बच्चे पढ़ने में ध्यान नहीं देते और शिक्षा सुचारू रूप से प्राप्त नहीं कर पाते। उनकी शिक्षा में रुकावट आती है तथा बचपन में स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।
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कुठार रेखा होने पर घर में सास या किसी दूसरी स्त्री के कारण वातावरण कलहपूर्ण व अशान्त रहता है। यदि कोई दूसरी स्त्री घर में नहीं हो तो पति या पत्नी के द्वारा ही जीवन में अशान्ति का माहौल रहता है। आयु के अंतिम पड़ाव पर ऐसे व्यक्ति जीवन साथी के बिना नहीं रहते।
= मुड़ी हुई जीवन रेखा ।
जब जीवन रेखा इस प्रकार की हो कि उसमें एक मोड़ दिखाई पड़े तो वह मुड़ी हुई जीवन रेखा कहलाती है। जीवन व मस्तिष्क रेखा मिली होने पर, देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि जीवन रेखा का उदय मस्तिष्क रेखा से ही शनि के नीचे से हुआ है (देखें चित्र-45) परन्तु जब मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकलती है और जीवन रेखा कुछ दूरी तक मस्तिष्क रेखा के समानान्तर चल कर, मोड़ खाकर मस्तिष्क रेखा से अलग होती है। ऐसी रेखा को मुड़ी हुई जीवन रेखा कहते हैं, ऐसी जीवन रेखा दोनों हाथ में कम ही देखी जाती हैं। प्रायः एक ही हाथ मे ऐसी रेखा देखने में आती है तथा एक पिता की एक ही सन्तान के हाथ में यह रेखा पाई जाती है। दोनों हाथों में ऐसे लक्षण होने पर यह विशेष फलकारी होती है।
चित्र-45 __ ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में विशेष सफलता प्राप्त करने वाले होते हैं। साधारण हाथों में यदि अन्य लक्षणों के साथ-साथ मुड़ी हुई जीवन रेखा हो तो व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पहले के मुकाबले में तीन गुनी अधिक अच्छी होती है। अत: यह लक्षण आर्थिक दृष्टि से बहुत ही उत्तम माना जाता है। दोनों हाथों में मुड़ी हुई जीवन रेखा होने पर तो अभूतपूर्व आर्थिक स्थिति होती है। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति देर से स्थायित्व प्राप्त करते हैं, किन्तु भाग्य रेखा व अन्य लक्षण अच्छे होने पर आरम्भ से ही स्थायित्व प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत धनी रहते हैं। परन्तु मुड़ाव का समय निकलने के पश्चात् ही यह सब उपलब्धियां दिखाई पड़ती हैं। जिस समय तक मुड़ाव रहता है रुकावट, परेशानी, धन की कमी, विरोध तथा रोग आदि का सामना करना पड़ता है।
ऐसे व्यक्ति क्रोधी, सीधे, लापरवाह , स्वतन्त्र विचारों के व परिवार के लिए त्याग करने वाले होते हैं। ये किसी पर निर्भर रहना पसन्द नहीं करते। आरम्भ में नौकरी करते हैं तथा अवसर मिलते ही व्यापार में चले जाते हैं। ये इरादे के पक्के होते हैं।
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स्त्री होने पर ऐसी स्त्रियां स्वतन्त्र, जिद्दी, पति के चरित्र पर शक करने वाली, अधिक बोलने वाली, साधारण तथा रोगणी होती हैं। इनके पति इनमें रुचि नहीं लेते। ऐसे पुरुषों को घर से बाहर रहने की आदत होती है या परिस्थिति-वश घर से बाहर रहते हैं। ऐसी स्त्रियां अपने सास-ससुर के साथ रहना पसन्द नहीं करती और अपने पति को अलग रहने की सलाह देती हैं। ये छोटी बातों को भी अधिक महसूस करने वाली होती हैं। आरम्भ में दाम्पत्य जीवन मोड़ की आयु तक कलहपूर्ण रहता है। ऐसे व्यक्तियों का स्वयं का स्वास्थ्य, मध्य आयु में ठीक नहीं रहता तथा इसका प्रभाव इनके एक बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इनके आने वाली पीढ़ी में लम्बाई अपेक्षाकृत अधिक पाई जाती है। इस लक्षण के अलावा कान व पेट में दोष, घुटनों में दर्द, पत्नी को गर्भाशय दोष व स्वयं को अण्डकोष में दर्द आदि रोग पाये जाते हैं। हाथ कठोर होने पर यदि मुड़ी हुई जीवन रेखा गोलाई में न होकर सीधी हो तो कमर की हड्डी में दोष होता है। प्रायः देखा गया है कि कमर की हड्डी अपने स्थान से खिसक जाती है तथा उसका आपरेशन कराना पड़ता है। वस्तुतः ऐसे व्यक्तियों के शरीर में कैल्शियम की कमी रहती है। बुढ़ापे में इनकी कमर झुक जाती है।
टूटी हुई जीवन रेखा
जीवन रेखा का टूटना एक दोष है। यह लक्षण विशेष शारीरिक कष्ट का संकेत करता है। यदि टूटी जीवन रेखा के साथ, किसी दूसरी रेखा में भी कोई दोष हो तो भयंकर रोग होता है। ट्टी जीवन रेखा से सारे शरीर में दर्द रहता है। ऐसे व्यक्तियों के शरीर में वायु रोग की प्रधानता होती है। इसके साथ-साथ यदि मस्तिष्क रेखा में भी दोष हो तो शरीर भारी हो जाता है तथा सिर में भारीपन बना रहता है। यदि कठोर हाथ में जीवन रेखा टूटी हुई हो तो, विशेषतया जब जीवन रेखा शनि के नीचे ट्टी हो तो रीढ़ की हड्डी में टी.बी. या कोई अन्य रोग पाया जाता है। जीवन रेखा टूट कर या बीच में पूरी होकर शुक्र की ओर जाती हो तो शरीर बहुत दुबला होता है। इस दशा में सन्तान का स्वास्थ्य भी कमजोर रहता है। टूटी जीवन रेखा से अचानक मृत्यु होना तथा अपने परिवार में वंश दोष होना भी पाया जाता है। जीवन रेखा यदि अन्त में टूटी हो और मस्तिष्क रेखा में विशेष दोष हो तो बुढ़ापे में कम्पन वायु विकार हो जाता है और कमर झक जाती है (चित्र-46)।
यह रेखा स्त्री और पुरूष दोनों के लिए समान फलदायी होती है। ____ जीवन रेखा टूटी होने पर यदि जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा हो तो ऐसे व्यक्ति शर्मीले, घर में झूठ बोलने वाले, घर छोड़ कर जाने की इच्छा
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करने वाले होते हैं। ऐसे लड़कों को शराब पीने, लड़कियों के पीछे घूमने व अधिक बात करने की आदत हो जाती है। ये पिता से घबराते हैं और अन्तिम आयु में इसका अपेन्डिसाइटिस का ऑपरेशन होता है। जिस आयु में जीवन रेखा टूटी होती है, उस आयु में मुश्किल से मुश्किल कठिनाइयां तथा मानसिक परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। कई बार देखने में आया है कि ये उस आयु में दिवालिया तक हो जाते हैं। यदि दूसरे लक्षण भी खराब हैं, तो बहुत बुरा होता है।
स्त्रियों के हाथ में टूटी जीवन रेखा हो तो अति काम वासना या अधिक बच्चे होने के कारण आंखे खराब हो जाती हैं- इन्हें मासिक धर्म के रोग तथा सिर में भारीपन पाया जाता है। मासिक धर्म का रोग शादी के बाद स्वतः ठीक हो जाता है। ऐसी स्त्रियां चित्र-46 विवाह के पश्चात् शरीर से भारी होने लगती हैं।
टूटी जीवन रेखा होने पर मस्तिष्क रेखा यदि बहुत अच्छी हो तो व्यक्ति में प्रपंच व छल-कपट की मात्रा बढ़ जाती है। हृदय रेखा में दोष, उंगलियां छोटी, हाथ में बृहस्पति की उंगली विशेष छोटी हो तो ऐसे व्यक्ति की चाल-ढाल व बातचीत में भी धोखा और बदमाशी होती है। धोखे से ही कमाने वाले जैसे तस्करी, चोरी तथा गलत कामों की दलाली आदि करते हैं। ये प्रपंची होते हैं, मगरमच्छ के आंसू एक मिनट में ही बहाकर दिखा सकते हैं, तथा स्त्रियों के प्रति इनकी रुचि वासनात्मक होती है। इनकी पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। यदि हृदय की रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है तो वह पहले ही साथ छोड़ जाती है। उसका स्वभाव तेज व गर्भाशय के रोग होने से गर्भ आदि गिरने की शिकायत पाई जाती है। इससे सन्तान सुख में भी बाधा आती है। यदि सन्तान हो तो उनमें लड़कियों की संख्या अधिक होती है। पत्नी सुस्त, जिद्दी तथा बहस करने व लड़ने वाली होती है। ऐसे व्यक्ति स्वयं भी पत्नी की कम सुनते हैं।
यदि जीवन रेखा टूट कर एक दूसरे के ऊपर चढ़ी हो, अर्थात् टूटने से पहले ही दूसरा भाग आरम्भ होता हो तो यह थोड़े संघर्ष का ही संकेत देती है। शेष इससे धन, सन्तान आदि सभी प्रकार का सुख रहता है। यह पेट के ऑपरेशन का भी लक्षण होता है। यदि टूटी जीवन रेखा, किसी चतुष्कोण के द्वारा आच्छादित हो तो दोषपूर्ण फल केवल नाम मात्र का होता है और थोड़े समय के लिए ही ऐसे व्यक्ति परेशानी भुगतते हैं। अन्त में इन्हें सुख प्राप्त होता है।
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जीवन रेखा बृहस्पति के नीचे टूटी हुई
ऐसी जीवन रेखा में दोष होने पर बच्चे के गले में रोग, स्वंय में भी अपेन्डिसाइटिस या आंतो के रोग पाये जाते हैं। कोई बच्चा तुतला कर बोलता है । सन्तान को चोट लग कर हड्डी आदि भी टूटती है। ऐसे व्यक्तियों के बच्चे रोते बहुत हैं तथा उनके कान में बीमारी होती हैं। स्त्री होने की दशा में इन्हें गर्भपात अधिक होते हैं। जिस हाथ में जीवन रेखा टूटी हो, उससे दूसरे कन्धे में चोट आती है।
जीवन रेखा शनि के नीचे टूटी हुई
इस प्रकार की जीवन रेखा रीढ़ की हड्डी में रोग या फेफड़े के रोग का संकेत करती है। (चित्र - 47)। हाथ यदि कठोर हो तो रीढ़ की हड्डी में टी. बी. या उसकी एक हड्डी अपने स्थान से खिसक जाती है। जीवन रेखा पतली होकर टूटी हो और दोनों टूटे हुऐ भाग एक बहुत पतली रेखा से जुड़ते हो तो ऐसे व्यक्ति गोली से बचते हैं। यदि ये सेना में नौकरी करते हैं तो निश्चय ही यह फल कहा जा सकता है। इनके वंश में भी कोई आकस्मिक मृत्यु या कत्ल होता
है।
ate
चित्र - 47
जीवन रेखा सूर्य के नीचे या अन्त में टूटी हुई
इस अवस्था में आंखे कमजोर व उसमें मोतिया बिंद उतर आता है। बुढ़ापे में कमर झुक जाती है। यदि भाग्य रेखा में दोष हो तो एक भाई धोखा देता है। ऐसे व्यक्ति के परिवार में अशान्ति ही रहती है तथा परिवार में इनका पत्नी से सदैव झगड़ा होता रहता है, जिससे इनके मन में अशान्ति रहती है ।
जीवन रेखा में द्वीप
जीवन रेखा जब बीच में से फट कर जौ (यव) के दाने जैसा चिन्ह बनाती
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H. K. S-8
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है तो यह द्वीप कहलाता है। (चित्र-48)।
किसी भी रेखा में द्वीप होना अच्छा लक्षण नहीं है। इस प्रकार से जीवन रेखा द्वीप-युक्त होने पर उस समय में परेशानी, रोग, कर्ज, सन्तान का विछोह आदि की समस्याएं जीवन में आती हैं।
जीवन रेखा का द्वीप जितना खराब फल आरम्भ तथा अन्त में करता है, उतना दूसरे स्थान पर नहीं करता। इससे बीमारी, मृत्यु, परिवार के झगड़े तथा अन्य नुकसान होना पाया जाता है। इस समय में शरीर ढीला, पेट में वायु का प्रभाव, वासनात्मक प्रवृत्ति आदि दोष देखे जाते हैं। इस अवस्था में सन्तान या तो होती नहीं और होती भी है तो लड़कियों की संख्या अधिक होती हैं। पत्नी को प्रजनन कष्ट होता है। कई बार दो सन्तानों के बीच में अधिक अन्तर देखा जाता है। हाथ सख्त होने पर जीवन रेखा में द्वीप हो तो गुर्दा, अपेन्डिसाइटिस आदि रोग या पौरुष ग्रन्थि का ऑपरेशन कराना पड़ता है। चित्र--48
जीवन रेखा में कहीं भी द्वीप हो, यदि उस द्वीप को कोई रेखा ढक लेती है तो बुरा फल कम होता है, केवल थोड़ी-सी मानसिक अशान्ति होकर ही खराब फल की समाप्ति हो जाती है, परन्तु यह दूसरी रेखा जीवन रेखा से बिल्कुल पास सटी हुई नहीं होनी चाहिए, यदि द्वीप चतुष्कोण से ढका हो तो फल नगण्य रह जाता है। जीवन रेखा में यदि गोल द्वीप हो, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो उस
अवस्था में आंखें खराब हो जाती हैं। आंखों का ऑपरेशन, अन्धापन, रतौन्धी आदि रोगों की सम्भावना रहती है।
जीवन रेखा के आदि और अन्त में द्वीप हो तो सारा जीवन कष्टमय रहता है, इन्हें बचपन में मां-बाप का सुख नहीं मिलता। जीवन रेखा में द्वीप होने पर यदि हाथ कोमल हो और हृदय रेखा में भी द्वीप हो तो टी. बी. हो जाती है। इसके साथ यदि शुक्र या चन्द्रमा आदि विशेष उठे हुए हो या शन व चन्द्रमा पर अधिक रेखाएं हों तो आंतों में टी. बी. होती है।
स्त्री के हाथ में इस प्रकार का द्वीप होने पर चित्र-49
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उसको गर्भाशय सम्बन्धी रोग पाये जाते हैं, गर्भाशय या पित्ताशय का ऑपरेशन होता है या कभी-कभी नाभि या हार्निया भी होता है। शरीर ढीला तथा प्रदर का प्रकोप होता है।
जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप होना =
जीवन रेखा में बृहस्पति के नीचे द्वीप हो और उससे कोई रेखा निकल कर बृहस्पति या शनि पर जाती हो तो गले में खुश्की या छाले, टॉन्सिल तथा बचपन में डिप्थीरिया आदि रोग होते हैं। द्वीप के साथ-साथ यदि जीवन रेखा भी दोष-पूर्ण हो तो किसी बच्चे या स्वयं को तुतलाने या हकलाने की शिकायत पाई जाती है। जिस अवस्था में यह द्वीप होता है, उस अवस्था में सन्तान का सुख नहीं होता तथा इनके वंश में कोई संतानहीन रहता है। यह लक्षण ऐसे व्यक्तियों में पाया जाता हैं, जिन्हें पित-दोष होता है। वंश के न चलने या सन्तान न होने में किसी प्रकार का दोष होना पितृ-दोष के ही कारण होता है।
जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा दोनों के आरम्भ में द्वीप हो गया हो और दोनों का जोड़ लम्बा या दोनों जुड़ कर मोटी हो गई हों तो कान का आपरेशन या कान में किसी प्रकार का दोष होता है। वृद्धावस्था में ऐसे व्यक्ति के कान बिल्कुल खराब हो जाते हैं। . दोनों हाथों में यदि आरम्भ में बड़ा द्वीप हो तो वंश चलाने में परेशानी आती हैं। गर्भपात होता है या लड़कियां ही पैदा होती हैं।
. जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप का आकार पानी की बूंद जैसा हो तो यह परजात योग होता है। ऐसे व्यक्ति को आयु भर कुछ न कुछ परेशानी लगी रहती है।
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= सूर्य के नीचे जीवन रेखा में द्वीप
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यह द्वीप आंखों में कमजोरी पैदा करता है। द्वीप के स्थान पर यदि काला धब्बा हो तो बड़ी आयु में काला मोतिया उतरने से अन्धा होने की नौबत आ जाती है। मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो ऑपरेशन होने पर भी आंख ठीक नहीं हो पाती।
जीवन रेखा के अन्त में बड़ा द्वीप हो तो व्यक्ति को मां-बाप में से एक का ही सुख प्राप्त होता है।
इस द्वीप को यदि बाहर से कोई रेखा आकर छूती
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चित्र-50
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या काटती हो तो बचपन में उस व्यक्ति के पिता या अन्य किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है।
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== जंजीराकार जीवन रेखा
जीवन रेखा पतली होकर छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर यदि जंजीर की आकृति बनाती हो तो शरीर में कोई न कोई दोष जैसे तुतलाना, स्नायु विकार, कम्पन, गूंगापन, फेफडे खराब होना आदि पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वास्थ्य की ओर तो ध्यान देते हैं, परन्तु सफाई के मामले में लापरवाह होते हैं। इनका कोई न कोई अंग भी बढ़ जाता है। हाथ भारी, जीवन रेखा गोलाकार व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर दोषपूर्ण फल लेश मात्र होते हैं। ___ अन्त में यदि जीवन रेखा जंजीर द्वीप युक्त या जर्जरित हो तो बड़ी आयु में स्वास्थ्य खराब व धन की स्थिति भी खराब हो जाती है। इनकी कमर झुक जाती है और सुनना बन्द हो जाता है। यदि इस दशा में वृत्ताकार द्वीप जीवन रेखा में हो तो आंखों से अन्धे भी हो जाते हैं। यह निर्णय अवश्य कर लेना चाहिए कि इस अवस्था में व्यक्ति मर तो नहीं जायेगा।
== जीवन रेखा में रोमांच
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जीवन रेखा गोलाकार व दोष रहित होने की दशा में छोटी-छोटी रेखाएं जीवन रेखा से निकल कर शनि की ओर जाती हैं। ये रेखाएं जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण फल प्रदान करती हैं। (चित्र-51)
जिस आयु में ऐसी रेखाएं निकलती हैं उस अवस्था में विशेष फलकारक होती हैं। जैसे सन्तान उत्पत्ति, धन-लाभ, पदोन्नति आदि। इन रेखाओं की लम्बाई 1/6 इन्च, कोई-कोई एक इंच या कभी-कभी एक शनि पर्वत पर भी जाती हुई देखी जाती है। विशेष भाग्य रेखा नहीं होने पर भी इन छोटी रेखाओं से वही उपलब्धि होती है जो किसी महत्वपूर्ण भाग्य रेखा से। जो हाथ रेखाओं के जाल से रहित होते हैं, उनमें इन रेखाओं का भी बहुत महत्व होता हैं व जिन हाथों में रेखाएं बहुत अधिक
चित्र-51
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होती हैं, उनमें ये रेखाएं साधारण फल करती हैं।
कुछ रोमांच जीवन रेखा के अन्दर से निकल कर शुक्र की ओर जाते हैं। ऐसी रेखाएं उस आयु में हानि का लक्षण होती हैं। यह धन, सन्तान व पद की हानि का संकेत है। परन्तु ऐसा ही रोमांच जब एक इन्च से लम्बा हो तो शुभ माना जाता है तथा उस आयु से उन्नति का द्वार खोल देता है। एक ही आयु में यदि ऊपर और नीचे रोमांच निकलते हों तो हानि व लाभ का लेखा बराबर रहता है। जैसा है, वैसा ही समय रहता है। यदि इस प्रकार की रेखा दो इन्च या अधिक लम्बी हो तो यह भाग्य रेखा कहलाती है। ऐसे व्यक्ति धनी होते हैं ।
एक ही स्थान से दो रोमांच रेखाएं एक बाहर शनि की ओर तथा दूसरी भीतर शुक्र की ओर जाती हो तो, शनि की ओर जाने वाला रोमांच लम्बा होने पर लाभ तथा भीतर शुक्र की ओर जाने वाला लम्बा होने पर हानि का कारण होता है । परन्तु यह हानि या लाभ उस मात्रा में नहीं होते, जितना कि रोमांच एक ओर होने पर होते हैं।
चित्र - 52
द्विभाजित जीवन रेखा
जीवन रेखा शुक्र में द्विभाजित होना
जीवन रेखा जिस समय मस्तिष्क रेखा से अलग होती है, उस समय यदि यह दो भागों में बंट जाए तथा चिमटे जैसी आकृति बनाए (चित्र - 53 ) तो इसे द्विभाजित रेखा माना जाता है।
। यह वास्तव में द्वीप होता है। यहां विशेष रूप से यह ध्यान देने की बात है कि दोनों भाग एक-सी मोटाई के होने चाहिएं। इस द्विभाजन से जीवन रेखा में सीधापन आ जाता है। यह लक्षण
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चित्र - 53
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हाथ में होने पर पहला गर्भपात हो जाता है या सन्तान की मृत्यु होती है, लड़की होने पर मृत्यु नहीं होती, लेकिन उसका भी स्वास्थ्य बचपन में अच्छा नहीं रहता। उसे सर्दी, पेट तथा दस्त आदि की शिकायत रहती है। यदि कोई विशेष दोष मस्तिष्क रेखा में हो तो सन्तान पैदा होने में रुकावट होती है।
इस लक्षण में यदि कोई शाखा सीधी बृहस्पति पर जाती हो व एक जीवन रेखा की गोलाई का निर्माण करती हो तो यह प्रथम सन्तान को तो हानि करती है, परन्तु ऐसे व्यक्ति जीवन में शीघ्र अधिक
चित्र-54 उन्नति करते देखे जाते हैं। उनकी लगभग सभी
इच्छाएं पूर्ण होती हैं। अन्त में इनको बिना जीवन साथी के रहना पड़ता है।
जीवन रेखा बीच में द्विभाजित
इस प्रकार की जीवन रेखा उन्नति कारक तो होती है किन्तु पहाड़ या हवाई जहाज से गिरकर बचने की भी निशानी है। यह बड़ी उम्र . में कान के पर्दे की खराबी का सूचक हैं। बाकी के फल दोहरी जीवन रेखा जैसे होते हैं। (चित्र-55)
।
चित्र-55
जीवन रेखा की शाखा चन्द्रमा पर
जीवन रेखा के अन्त में उससे निकल कर कोई रेखा यदि चन्द्रमा पर या चन्द्रमा की ओर जाती हो तो यह रेखा व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन का द्योतक होती है (चित्र-56)।
ऐसे व्यक्ति जन्मभूमि से दूर अपना मकान या सम्पत्ति आदि बनाते हैं तथा मृत्यु भी जन्म स्थान से
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चित्र-56
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दूर ही होती है। इनके परिवार में से कोई व्यक्ति घर छोड़ कर चला जाता है, हाथ अच्छा होने पर वापिस आ जाता है। स्वयं की स्त्री या लड़की भी घर छोड़कर जा सकती है। यदि उंगलियां अधिक लचीली या अधिक सख्त हों तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति वृद्धावस्था में धनी हो जाते हैं।
जीवन रेखा अन्त में द्विभाजित होकर यदि उसकी शाखाएं चन्द्रमा पर जाती हों तो व्यक्ति नौकरी से जीवन यापन करते हैं।
चित्र-57
मस्तिष्क रेखा
यह रेखा हथेली के बीचो-बीच, हथेली के दो भाग करती हुई देखी जा सकती है। इसका आरम्भ बृहस्पति, मंगल या दोनों के बीच से और अन्त मंगल, चन्द्रमा या दोनों के बीच होता है। मस्तिष्क रेखा जितनी सीधी होती है, उत्तम मानी जाती है। लम्बी मस्तिष्क रेखा भी उत्तम नहीं मानी जाती है। जो मस्तिष्क रेखा बुध की उंगली के आरम्भ तक समाप्त हो जाती है, बहुत उत्तम होती है। यदि यह निर्दोष भी हो तो सोने पे सुहागे का काम करती है। मस्तिष्क रेखा में या दोनों ओर द्विभाजन इसके गुणों में वृद्धि कर देता है। साथ ही यदि मस्तिष्क रेखा से छोटी-छोटी रेखाएं, जिन्हें हम रोमांच कहते हैं, निकलकर हृदय रेखा की ओर जायें तो ये मस्तिष्क रेखा की शक्ति को अनन्त गुना बढ़ा देती है। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा विज्ञानवेत्ताओं, भविष्यवक्ताओं, आविष्कारकों तथा मनस्वी व्यक्तियों के हाथों में पाई जाती हैं। ये व्यक्ति अपने मस्तिष्क के द्वारा परिवार, समाज या देश में आश्चर्य जनक परिवर्तन करने वाले होते हैं।
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1. अन्त में दोहरी जीवन रेखा
2. मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा से जुड़ा 3. मस्तिष्क रेखा का निकास बृहस्पति से
4. मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से
5. मस्तिष्क रेखा का अन्त मंगल पर 6. दोहरी मस्तिष्क रेखा
7. मस्तिष्क रेखा में छोटी दो रेखाएं
8. मस्तिष्क रेखा में रोमांच नीचे की ओर
9. भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास
10. मस्तिष्क रेखा में रूकी भाग्य रेखा
11. मस्तिष्क रेखा का अन्त चन्द्रमा पर 12. आरम्भ में द्विभाजित जीवन रेखा
मस्तिष्क रेखा में किसी भी प्रकार का दोष जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करता है। मस्तिष्क रेखा तथा
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चित्र - 58 जीवन रेखा का जोड़ भी लम्बा नहीं होना चाहिए, यह भी मस्तिष्क रेखा के गुणों में कमी कर देता है। मस्तिष्क रेखा को एकदम झुकना
या मुड़ना भी नहीं चाहिए ( चित्र - 59 ) | यदि मस्तिष्क रेखा धीरे-धीरे झुक कर चन्द्रमा की ओर जाती हो तो उत्तम मानी जाती है परन्तु यही मस्तिष्क रेखा एकदम झुक या मुड़कर चन्द्रमा पर जाए तो दोषपूर्ण मानी जाती है। अतः सभी प्रकार से इनके गुणों और दोषों को देखने के पश्चात् तथा अन्य रेखाओं के साथ समन्वय करने के पश्चात् ही फल कहना चाहिए। मस्तिष्क रेखा हाथ में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यदि हम इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण रेखा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
चित्र - 59
निर्दोष मस्तिष्क रेखा
मस्तिष्क रेखा जितनी ही निर्दोष और सीधी होती है, व्यक्ति उतना ही स्वतन्त्र मस्तिष्क वाला होता है तथा जीवन बिना किसी संकट के आगे बढ़ता जाता है। ऐसे व्यक्ति समझदार व धनवान होते हैं। किसी के प्रभाव में आना या दब कर चलना इनके बस की बात नहीं (चित्र - 60 ) । बिना किसी आर्थिक एवं मानसिक सहायता
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चित्र-60
के ही निजी आत्मबल से उन्नति करते हैं। यदि अन्य रेखा में कोई दोष न हो तो निरन्तर उन्नति करते जाते हैं। अन्य रेखाओं के दोष को भी निर्दोष मस्तिष्क रेखा कम कर देती है। कितना भी दोष होने पर ऐसे व्यक्ति जीवन-यापन आसानी से करते रहते हैं।
ऐसे व्यक्ति पढ़ने में होशियार होते हैं, समय खराब नहीं करते। यदि जीवन रेखा गोलाकार भी हो तो अध्ययन का समय बहुत ही सुन्दर बीतता है। छात्रवृत्ति या परीक्षा में असाधारण स्थान प्राप्त करते हैं। शुक्र उठा हो या भाग्य रेखा मोटी होने पर बुद्धिमान । तो होते ही हैं, परन्तु लापरवाही या अन्य व्यसनों में फंसने से शिक्षा की ओर ध्यान नहीं देते। भाग्य रेखा, जीवन रेखा के पास या मोटी होने पर आर्थिक स्थिति खराब होने से अध्ययन में विध्न अवश्य पड़ता है। उत्तम मस्तिष्क रेखा के साथ जीवन रेखा में कोई दोष हो तो स्वयं के बच्चों की शिक्षा में रुकावट होती हैं, वर्ष खराब करते हैं, विषय बदलते हैं या जो विषय वह पढ़ना चाहते हैं, वह इनको नहीं मिल पाता। गहरी या टूटी भाग्य रेखा भी शिक्षा में रुकावट का लक्षण है।
ऐसे व्यक्ति आत्मविश्वासी होते हैं। ये व्यापार आदि में किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाते। बहुत सोचकर, हानि-लाभ को देखकर ही किसी काम को आरम्भ करते हैं। ऐसे व्यक्ति जिस एक स्थान पर बैठ जाते हैं, सोच विचार कर कार्य कर लेते हैं, शीघ्र नहीं बदलते। विशेष उत्तम मस्तिष्क रेखा होने पर व्यक्ति कठोर, घमण्डी, स्वार्थी, अभिमानी, अविश्वास करने वाले, चालाक तथा शक्की होते हैं। अत: बहुत अच्छी मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हाथ में यदि हाथ भी उसी के अनुसार उत्तम नहीं है तो दोष माना जाता है। उत्तम मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति प्रेम विवाह कभी नहीं करते। ये प्रेम करते हैं, परन्तु अपनी प्रेमिका को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं। अतः ऐसे कम ही व्यक्ति प्रेम विवाह करते देखे गये हैं। इनको ससुराल अच्छी तथा पत्नी सुन्दर मिलती है। पत्नी बहुत संवेदनशील व बुद्धिमान होती है तथा विवाह भी इनकी सहमति से ही होता है।
मस्तिष्क रेखा उत्तम होने पर यदि जीवन रेखा में दोष हो तो कई कार्य बदलने पड़ते हैं। मस्तिष्क रेखा उत्तम, जीवन रेखा टूटी, अधूरी, सीधी, शुक्र को काटती और
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हृदय रेखा में दोष हो तो प्रपंच व बहाने करने वाले और आलसी होते हैं तथा दूसरों को माध्यम बना कर गलत काम करते रहते हैं। जितनी उत्तम मस्तिष्क रेखा होती है, उतना ही व्यक्ति चालाक, शक्की, परीक्षा लेने व अविश्वास करने वाले होते हैं। इनका हाथ बहुत सावधान होकर देखना चाहिए, क्योंकि ये पहले परीक्षा करते हैं।
मस्तिष्क रेखा बहुत उत्तम होने पर हृदय रेखा और जीवन रेखा में द्वीप, उंगलियां छोटी व बृहस्पति की उंगली विशेष छोटी हो तो व्यक्ति धोखा देकर पैसा कमाते हैं। ब्लैक मार्केट, तस्करी, झूठे, चालाक, मक्कार एवं नीच प्रवृत्ति के कार्य करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति बुद्धि का अपव्यय करते हैं और कठिनता से पकड़ में आते हैं।
दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा
__ मस्तिष्क रेखा जब मोटी, पतली, लाल, काली, द्वीपयुक्त, टूटी, झुकी, अधिक लम्बी, देर से शुरू होने वाली व अधिक पास से दोहरी हो तो दोषपूर्ण कहलाती है। उपरोक्त दोष जब शनि की उंगली के नीचे हो तो अधिक प्रभावकारी सिद्ध होते हैं, अन्यथा साधारण प्रभाव होता है। प्रायः कोई भी दोष उस आयु में प्रभाव करता है, जब वह मस्तिष्क रेखा में होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी भी दोष की पुनरावृत्ति जीवन में तीन बार होती है, अतः जिस आयु में कोई दोष मस्तिष्क रेखा पर आता है, उसी में उसका प्रभाव जीवन में विशेष रूप से होता है। जीवन के वे वर्ष जिनमें पूर्ण फल घटित होते हैं- 29, 30, 34, 35, 37, 39, 40, 44, 45, 49, 50, 54, 55, 59, 60 हैं। ___ यदि कोई दोष उपरोक्त आयु के आस-पास या मस्तिष्क रेखा में विशेष स्पष्ट न हो तो ऊपर दिए हुए वर्षों में ही प्रभावकारी होता है। मस्तिष्क रेखा दोहरी हो तो प्रत्येक अच्छा या बुरा फल जीवन में अनेक बार घटित होगा, नहीं तो प्रत्येक दोष तीन बार तक घटित हो सकता है। मस्तिष्क रेखा A T में जिस आयु तक दोष होता है, उस समय कर्जदारी, धन हानि, अपव्यय, मुकद्दमेबाजी, किसी की मृत्यु, 1 बीमारी, विवाह जैसे खर्चे, परिवार में कलह, बच्चे को AT स्वास्थ्य दोष, स्वयं को रोग आदि घटनाएं होती हैं (चित्र-61)। 1. मोटी पतली जीवन रेखा 2. टूटी जीवन रेखा 3. मस्तिष्क रेखा में रुकी भाग्य रेखा 4. समानान्तर भाग्य रेखा
चित्र-61
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5. मस्तिष्क रेखा में लम्बा द्वीप
6. मस्तिष्क रेखा में छोटा द्वीप
7. राहु रेखा से बना द्वीप
8. मोटी मस्तिष्क रेखा 35 वर्ष तक
9. चतुष्कोण के द्वारा जुड़ी मस्तिष्क रेखा
10. दो मस्तिष्क रेखाओं के द्वारा बनाया गया द्वीप
11. द्वीप युक्त व टूटी हुई रेखा
12. हृदय रेखा में द्वीप
13. चन्द्रमा से सूर्य के नीचे मस्तिष्क रेखा में रुकी भाग्य रेखा
14. सटी हुई भाग्य रेखा,
15. अन्त में द्विभाजित हृदय रेखा ।
मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो, जब भी बुखार होता है, तेज होता है और बेहोशी तक की नौबत आ सकती है। मस्तिष्क रेखा छोटी-छोटी रेखाओं द्वार काटे जाने या उसमें क्रास होने पर भी ऐसा ही होता है। जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा हो तो निश्चित ही ऐसा होता है। दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा को राहु आदि कोई अन्य मोटी रेखा काटती हो तो उस आयु में किसी निकट सम्बन्धी की मृत्यु होती है।
मस्तिष्क रेखा में दोष समकोण, कौणिक व चमसाकार आदि उन्नत हाथों में हो तो इनके सम्बन्धियों और साझेदारों को भी इस समय में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि आत्महत्या व घर छोड़ने का विचार व्यक्ति कर बैठता है। हाथ कठोर व अंगूठा कम खुलता हो तो इस दोष के प्रभाव में कई गुना वृद्धि हो जाती है। इस समय जीवन रेखा में भी दोष हो तो बहुत अधिक परेशानी आती है, चारों ओर से ही व्यक्ति परेशानियों में घिर जाता है, कभी उन्नति तथा कभी अवन्नति होती रहती है । उतार-चढ़ाव अधिक आते हैं, कुछ समय खाली भी रहना पड़ता है। परिवार में किसी की मृत्यु भी इस आयु में होती है ।
दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति अस्थिर मस्तिष्क, भावुक, धार्मिक, दयालु पाये जाते हैं। क्षण में कुछ सोचते हैं और क्षण में कुछ। उंगलियां लम्बी हों तो दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आते हैं, अन्यथा जिद्दी होते हैं और गलत बात पर भी अड़ने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति के साथ अधिक समय तक प्रेम-पूर्ण वातावरण नहीं रह सकता, फलस्वरूप इनके सम्बन्ध किसी से भी स्थायी नहीं रहते, ये किसी से भी सहयोग न मिलने की शिकायत करते रहते हैं। भावुक होने के कारण अपनी बात तथा आप बीती घटनाएं, दुःख के साथ सुनाते हैं और पत्र लिखते समय विस्तार से कहानी बयान करते हैं। इनमें सहन शक्ति कम होती है, अतः थोडे दुःख को भी बहुत बढ़ा कर दिखाने की आदत होती है। जरा-सी परेशानी में ही परिवार में कलह कर देते हैं।
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यदि हृदय रेखा में थोड़ा भी दोष हो तो बीमारी में हाय-हाय मचा देते हैं।
मस्तिष्क रेखा के आरम्भ में दोष या जीवन रेखा के साथ उसका जोड़ लम्बा हो तो ऐसे व्यक्तियों की निर्णय शक्ति दोष के समय तक उत्तम नहीं होती। दोष समाप्त होने के पश्चात् यह भी दूर हो जाती है। ये काम में कभी शीघ्रता तो कभी शिथिलता करते हैं। एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि जोड़ लम्बा होने पर स्वतन्त्र रूप से कोई भी कार्य करने में हिचकिचाते हैं। क्रोध करने के पश्चात् पछताते अवश्य हैं। मस्तिष्क रेखा में दोष जैसे अधिक टूटी रेखा, द्वीप या झुकाव हो तो व्यक्ति क्रोध में कांपने लगता है और मानसिक सन्तुलन खो देता है। दोनों हाथों में ऐसा दोष न होने पर प्रभाव एक तिहाई ही रहता है। ऐसे व्यक्ति का एक हाथ हो तो पूरा फल देता है।
मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर, यदि उसे छोटी-छोटी रेखाएं काटती हों तो सिर में भारीपन तथा स्मृति कमजोर होती है। ऐसे व्यक्तियों को मानसिक अशान्ति रहती है। जिस आयु में मस्तिष्क रेखा में यह दोष होता है, स्मृति की कमी महसूस होती है, तत्पश्चात् यह स्वतः ही ठीक हो जाती हैं और इनका आत्मविश्वास भी ठीक हो जाता है। वास्तव में आत्मविश्वास न होना ही इसका कारण है।
मस्तिष्क रेखा में दोष होना उत्तम लक्षण भी है। ऐसे व्यक्ति सहृदय, ईश्वर का भजन करने वाले, विश्वासी एवं मानवसुलभ गुणों वाले होते हैं, परन्तु अधिक दोष होने पर ये चंचल एवं विश्वास रहित हो जाते हैं और ईश्वर भजन में अधिक समय तक आस्था नहीं रख पाते तथा कुछ समय के पश्चात् फिर चिन्ता आरम्भ करते देखे जाते हैं। बार-बार ऐसा होने के बाद इनकी आस्था दृढ़ होने लगती है, फलस्वरूप अधिक समय तक ईश्वर चिन्तन करने लग जाते हैं तो भी इनका चिन्तन-भजन निरन्तर नहीं चलता। क्षण-क्षण में ये अपने विचार बदलते हैं, अत: विशेषतया दोष के समय किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाते।
मस्तिष्क रेखा टूटने पर नीचे या ऊपर से दूसरी मस्तिष्क रेखा टूटे हुए भाग को ढक कर चलती हो तो दोष तो करती है, लेकिन विशेष अनिष्ट कारक नहीं होती। इस समय मानसिक सन्ताप, रोग, सम्बन्धी या अन्य मित्र की रुष्टता या अलगाव से मस्तिष्क में आघात-प्रत्याघात होते रहते हैं। विशेषतया ऐसे सन्ताप निरर्थक ही होते हैं। व्यक्तिगत रूप से कोई हानि नहीं होती। दोनों हाथों में यह लक्षण होने पर मिर्गी, प्रेत-व्याधि आदि की सम्भावना रहती है।
मस्तिष्क रेखा टूटने की दशा में; हृदय रेखा की कोई शाखा टूटे स्थान पर मिलती हो या कोई भाग्य रेखा गहरी होकर वहां रुकती हो तो किसी प्रेमी का विछोह या जीवन साथी की मृत्यु होती है।
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मस्तिष्क रेखा टूटी हो और दोनों भाग सितारे के द्वारा जुड़े हों तो यह मस्तिष्क में सन्निपात या विशेष रोग का लक्षण है। दोनों हाथों में होने पर मृत्यु हो जाती है। एक हाथ में चतुष्कोण व एक में सितारा हो तो आत्महत्या करने से बचता है। हृदय रेखा मोटी हो व मस्तिष्क रेखा में दोष के साथ, यदि जीवन रेखा मे कोई दोष हो तो स्वप्न में बड़बड़ाता है और नींद में उठकर चल देता है ।
दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा (आरम्भ में)
मस्तिष्क रेखा में निकास से लेकर बृहस्पति के नीचे तक दोष, जीवन रेखा से मिलने पर अधिक लम्बा जोड़ या अन्य रेखाओं से उलझी हुई होने पर यह दोषपूर्ण कहलाती है (चित्र - 62 ) ।
इन व्यक्तियों की निर्णय शक्ति कमजोर होती है तथा किसी भी कार्य के लिए ये दूसरों पर निर्भर करते हैं। यहां तक देखा गया है कि कोई भी काम जैसे कुछ खरीदना, व्यापार, किसी से बात-चीत या कोई अन्य कार्य होने पर किसी साथी की आवश्यकता होती है। उनकी आदत आज का काम कल पर छोड़ने की होती है तथा कभी जल्दबाजी करते हैं तो कभी देरी । दोष की आयु में, आर्थिक कठिनाई रहती है और किसी भी कार्य में
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चित्र - 63
चित्र - 62
सफलता आसानी से नहीं मिलती। ऐसे व्यक्ति कुछ न कुछ वहमी अवश्य होते हैं। उंगलियां मोटी होने पर उपरोक्त दोषों की मात्रा बढ़ जाती है। इनके कान में कोई न कोई रोग जैसे कान में खुश्की, पीप, मैल अधिक आना आदि देखे जाते हैं। इनका स्वास्थ्य बचपन में ठीक नहीं रहता, पेट के रोग, बुखार, टायफाइड, चिड़चिडापन, जिगर, तिल्ली, पेट बढ़ना, पीलिया और सिर दर्द आदि बीमारियां रहती हैं। यदि दोष कुछ देर तक चलें तो ऐसे व्यक्तियों को बचपन में खुराक ठीक से न मिलने से शारीरिक कमजोरी रहती है और
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दोष समाप्त होने पर स्वास्थ्य में सुधार हो जाता है। जिस आयु तक यह दोष रहता है, जीवन में अशान्ति ही अशान्ति रहती है। इनका गला नाजुक होता है और यदि जीवन रेखा में कोई दोष या मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा का अन्तर कम अर्थात् दोनों पास-पास आ गई हों तो सांस की नली या फेफड़ों का दमा हो जाता है। नजला-जुकाम के विषय में इनको बहुत सावधानी रखनी चाहिए।
= शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष
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यह दोष विशेषतया व्यक्ति के स्वास्थ्य के विषय में विचारणीय है। इनके कई अन्य फल भी होते हैं, परन्तु दूसरी रेखाओं के साथ समन्वय करने पर स्वास्थ्य के विषय में इस दोष के चिन्तन का परिणाम बहुत ही ठोस निकलता है। यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है तथा जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रभाव डालता है। यदि मस्तिष्क रेखा में दोष है तो जीवन की हर घटना पर इसका प्रभाव पड़ता है (चित्र-64)।
शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष होने के साथ, यदि जीवन रेखा के प्रारम्भ अर्थात् बृहस्पति के नीचे दोष हो तो व्यक्ति के कन्धे या आस-पास के भाग में कोई न कोई बीमारी पाई जाती है। यदि जीवन रेखा के बिल्कुल आरम्भ में ही कोई दोष हो तो गले पर इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन रेखा के मध्य में दोष होने पर व्यक्ति के पेट, भोजन नली,
आंतें तथा रीढ़ की हड्डी में इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन रेखा के उत्तरार्द्ध में इसका प्रभाव व्यक्ति के फेफड़ों, हृदय आदि पर पड़ता है, अर्थात् उपरोक्त अंगो में बीमारी पाई जाती है। हाथ में कहीं भी नेष्ट लक्षण होने के साथ यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो उसके उपरोक्त लक्षणों के आधार पर बताए गए दोषों
चित्र-64 की पुष्टि की जा सकती है। हृदय रेखा में यदि शनि के नीचे और मस्तिष्क रेखा में शनि के ऊपर कोई दोष होने पर गुर्दा, हार्निया, अपैन्डिक्स, दांत रोग एवं अण्डकोषों में बीमारी पाई जाती है। स्त्रियों में यह लक्षण दांत एवं गर्भाशय विकार का लक्षण है। हृदय रेखा टूटी होने पर यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो हृदय रोग होता है और शुक्र या चन्द्रमा उठा होने पर मानसिक विकृति हो जाती है। इसी प्रकार स्वास्थ्य के विषय में सोचते समय हमें मस्तिष्क रेखा के दोष का प्रभाव अवश्य
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देख लेना चाहिए। किसी भी रेखा में थोड़ा दोष होने पर यदि ऐसा लगता है कि रोग का प्रभाव कम होगा, तो उस दशा में शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में होने पर उसका फल कई गुना बढ़ जाता है एवं उस रोग की निश्चितता का अनुमान होता है।
मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर व्यक्ति का जिगर एवं पैनक्रियाज ग्रन्थियों की कार्यशक्ति कमजोर होती है। इन्हें अधिक बैठकर काम नहीं करना चाहिए तथा अपने जिगर का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो मधुमेह होने की पूर्ण सम्भावना होती है। शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में झुकाव व जीवन रेखा थोड़ी भी सीधी होने पर ऐसा होता है। स्वयं को तथा परिवार में भी किसी को यह रोग पाया जाता है। इसी से रक्त-चाप, जलोदर, जालीदार फोड़ा, पेशाब अधिक तथा गरम आना, शरीर में दर्द, वायु प्रबल होना, पिण्डलियों में दर्द, बेहोशी, आधाशीशी दर्द जैसा कष्ट होता है। ऐसे व्यक्तियों को चिकनाई वाले पदार्थ नहीं पचते, अतः इनसे बचते रहना चाहिए।
कोमल हाथों में रोग शीघ्र तथा कठोर हाथ में देर से होते हैं। रोग का कारण व्यक्ति अपने पूर्व कर्म को मानता है और भाग्य को ही इस विषय में दोष देता है। शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा से कोई रेखा निकल कर नीचे की ओर जाती हो तो व्यक्ति की ऐडी में दर्द, गुप्तांग में भगन्दर रोग होते हैं। ऐडी के दर्द का कारण हड्डी बढ़ना होता है। ऐसे व्यक्तियों को अधिक नमक पसन्द होता है और उसी कारण हड्डी बढ़ जाती है। शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में तिल हो तो व्यक्ति के गुप्तांग में फोड़ा होता है, वैसे ही मस्तिष्क रेखा में कहीं भी तिल हो तो बड़ी आयु में लकवे का लक्षण है।
स्त्री के हाथ में उपरोक्त लक्षण के साथ जीवन रेखा के आरम्भ में दोष होने पर गर्भपात के कारण सन्तान की सम्भावना देर से होती है। यदि जीवन रेखा सीधी भी हो तो प्रजनन कष्टमय होता है। जीवन रेखा अधूरी होने पर तो निश्चित रूप से ऐसा कहा जा सकता है। इस दशा में व्यक्ति का जिगर किसी न किसी रूप में दोष पूर्ण पाया जाता है तथा बहुत सम्भावना होती है कि उसकी मृत्यु जिगर दोष से ही हो, आयु लम्बी हो तो निश्चय ही ऐसा होता है।
मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप या अन्य दोष होने पर, तथा चन्द्र की ओर एकदम झुकी होने पर एवं शुक्र पर्वत उठा हो तो मस्तिष्क में विकार आ जाता है।
मस्तिष्क रेखा का निकास (जीवन रेखा से कम जुड़ा हुआ )
इस लक्षण में, मस्तिष्क व जीवन रेखा आपस में अधिक दूर तक जुड़ी अर्थात्
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सम्मिलित या उलझी हुई नहीं होनी चाहिए। अधिक दूरी की परिभाषा हम लगभग डेढ़ इंच में करते हैं। डेढ़ इंच जुड़ी होने पर मस्तिष्क रेखा जीवन से अलग होती हो तो इसका फल दोषपूर्ण होता है, जबकि जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा का बिना अधिक जोड़ के निकास गुणकारी है। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा केवल छूकर जीवन रेखा से निकलती है। (चित्र-65)।
ऐसे व्यक्ति समझदार, प्रत्येक कार्य को सोच-समझकर करने वाले, जिम्मेदार तथा क्रियात्मक होते हैं और शीघ्र निर्णय लेते हैं। उपरोक्त लक्षण अधिक रेखा वाले हाथों में हो तो विचार करने व उसे क्रियान्वित करने में कुछ समय अवश्य लगाते हैं, परन्तु क्रियात्मक हाथ में सदैव ही शीघ्र निर्णय कर लिए जाते हैं। अधिक रेखा वाले व्यक्ति भी एक से अधिक भाग्य रेखा, अगूंठा व उंगलियां पतली व छोटी, दोनों और द्विजिव्हाकार मस्तिष्क रेखा होने पर शीघ्र व ठीक निर्णय लेने वाले होते हैं। ये स्वतन्त्र निर्णय लेने वाले व उत्तरदायित्व निभाने वाले होते हैं। फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति जीवन
चित्र-65 में प्रगति करते हैं।
स्त्रियों के हाथ में यह लक्षण होने पर तथा हाथ भी कोमल हो तो प्रत्येक दूसरे वर्ष में सन्तान हो जाती है। जीवन और मस्तिष्क रेखा दोष रहित हो तो पति-पत्नी का आपस में बहुत प्रेम रहता है, हृदय रेखा भी निर्दोष या दोहरी हो तो साथी के जरा भी रुखा बोलने पर इन्हें बहुत दु:ख होता है। अन्त तक इनके सम्बन्ध मधुर बने रहते हैं और जीवन सुखी रहता है। एक दूसरे का विछोह इन्हें किसी भी मूल्य पर सहन नहीं होता।
इस प्रकार से छूकर निकलने वाली मस्तिष्क रेखा सीधी मंगल की ओर जाती हो, तथा जीवन रेखा गोलाकार व भाग्य रेखा पतली हो या हाथ भारी हो तो व्यक्ति अतुल सम्पत्ति पैदा करता है और अपने वंश में नए साधनों के द्वारा ऐश्वर्य और प्रतिभा उत्पन्न करता है।
ऐसी मस्तिष्क रेखा जो चन्द्रमा की ओर जाए एवं जीवन रेखा गोलाकार हो, हाथ चौड़ा, भारी हो, छोटा व सुन्दर हो तो ऐसे व्यक्ति अत्यन्त व्यवहार कुशल होते हैं। इनके धन व सम्मान में वृद्धि होती रहती है। अभिवृद्धि को प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति महामानव होते हैं, हृदय रेखा सुन्दर होकर शनि के नीचे पूर्ण होती हो अथवा बृहस्पति को छूती हो तो देवतुल्य सम्मान प्राप्त करते हैं व बहुचर्चित होते हैं। केवल
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छूकर निकली हुई मस्तिष्क रेखा बुध या सूर्य की ओर जाती हो और जीवन रेखा भी गोलाकार हो तो ऐसे व्यक्ति लेखन अथवा सम्पर्क स्थापित करने में चमत्कारिक सफलता प्राप्त करते हैं।
मस्तिष्क रेखा का निकास (जीवन रेखा से अलग) =
इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा बृहस्पति पर्वत के नीचे, जीवन रेखा से अलग होकर आरम्भ होती है। इस की दूरी अधिक से अधिक 1/4 इन्च या 1/6 इन्च होती है। इससे अधिक दूर निकली हुई मस्तिष्क रेखा का फल अच्छा नहीं होता। यह जितनी नजदीक से निकली होती है और जीवन रेखा से अलग होती है तो अच्छी मानी जाती है। यदि ऐसी मस्तिष्क रेखा, चतुष्कोण या किसी रेखा से बिना जुड़ी हो तो अति उत्तम होती है (चित्र-66)
जीवन रेखा से बृहस्पति पर जाने वाली शाखा के द्वारा अथवा जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा के द्वारा जुड़ी होने पर दोषपूर्ण नहीं मानी जाती। ऐसी मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के निकास के पास से ही निकलती हो तो यह अतुलनीय होती है, परन्तु ऐसा कम ही देखा जाता
है।
ये व्यक्ति स्वतन्त्र विचारों के, बुद्धिमान, शीघ्र विश्वास करने वाले व आरम्भ में शीघ्र घबराने वाले होते हैं। मध्यायु के पश्चात् घबराने का दोष इनमें नहीं रहता। इस लक्षण के साथ उंगलियों की लम्बाई भी अधिक हो तो विश्वास
चित्र-66 की मात्रा बढ़ जाती है, जोकि भाग्योदय में रुकावट बन कर सामने आती है। यदि भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो ऐसे व्यक्ति कई बार धोखा खाते हैं। ये शर्माल, अधिक एहसान मानने व लिहाज करने वाले होतेर और स्पष्ट रूप से किसी बात को नहीं कहते। किसी को उधार देकर मांगते नहीं, जिन पर विश्वास करते हैं, उसे परिवार का सदस्य मान लेते हैं। अत: ये जब भी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करते हैं, हानि उठाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को 35 वर्ष की आयु तक साझे में व्यापार नहीं करना चाहिए और यदि परिस्थितिवश करना भी पड़े तो दूसरे साझियों के साथ सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए अन्यथा लाभ के बदले हानि ही हाथ लगेगी। ऐसे हाथों
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में यदि रेखाएं कम हों या हाथ कौणिक अर्थात उंगलियां अंगूठे की ओर झुकी हुई हों तो जल्दबाज होते हैं। फलस्वरूप सावधानी से कार्य न करने के कारण हानि उठाते हैं परन्तु स्थायित्व प्राप्त करने के पश्चात ये पूर्ण आत्म विश्वासी सिद्ध होते हैं।
ऐसी स्त्रियां स्पष्ट वक्ता, हिम्मतवाली, व निडर होती हैं। यदि भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी हो व उंगलियां लम्बी हो तो दूसरे के प्रभाव में शीघ्र आती हैं। यदि कोई व्यक्ति थोड़ी भी सहानुभूति से बात करे तो उस पर पूर्ण विश्वास कर लेती हैं।
ऐसे व्यक्ति चरित्र में विश्वास करते हैं, अपने मन में दूसरे का प्रभाव होने पर भी इन्हें चरित्र-दोष नहीं होता। इनके अच्छे मित्र होते हैं व यथासम्भव मित्रता निभाते हैं, किसी से बदला लेने की भावना नहीं होती। यदि विशेष रूप से स्त्रियों के हाथ में जीवन रेखा में दोष हो तो थोड़ी-सी बात में बुरी तरह घबरा जाती हैं, जैसे पति का रात देर से घर आना या कोई समाचार अचानक सुनना आदि।
मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा से अलग होकर निकले तो व्यक्ति बचपन में अधिक बीमार होते हैं व जलने से या ऊपर से गिर कर बच जाना इत्यादि घटनाएं होती हैं। यदि जीवन रेखा में विशेष दोष हो तो बचपन में निमोनिया, पाचन शक्ति व जिगर खराब रहता है तथा उपरोक्त रोगों के कारण कई बार बहुत अधिक बीमार हो जाते
मस्तिष्क रेखा गोलाकार हो तो निमोनिया कई बार होता है। ऐसे बच्चे शरारती एवं प्रखर बुद्धि वाले होते हैं। मस्तिष्क रेखा द्विभाजित होने पर होशियार एव उत्तम विद्यार्थी सिद्ध होते हैं
यह मस्तिष्क रेखा मंगल पर या उसकी ओर जाए तो इनकी छाती पर तिल होता है। यह इनकी किसी योग्य सन्तान के होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति नौकरी अवश्य करते हैं। कर्ज नहीं ले सकते, क्योंकि इससे इनके मस्तिष्क में तनाव रहता है। साझे में काम भी इन्हें अच्छा नहीं लगता।
ऐसा देखा जाता है कि कुछ रोग जैसे दमा, हृदय रोग आदि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलते जाते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग हो तो स्वयं को ऐसे रोग होने पर भी सन्तान को ये रोग नहीं लगते। ऐसे व्यक्ति की मस्तिष्क रेखा द्विभाजित हो तो जैसे-जैसे चिन्ता करते हैं, भारी होते जाते हैं और सफलता मिलती जाती है। काम करने में चतुर होते हैं। उंगलियां जितनी पतली होती हैं, यह सफलता व बुद्धिमत्ता का लक्षण होता है। जीवन रेखा गोलाकार होने पर ऐसे व्यक्ति यथा शक्ति अपने प्रभाव से व धन से दूसरों की सहायता करते देखे जाते हैं। इस लक्षण के साथ मस्तिष्क रेखा मोटी-पतली होने पर अधिक सोने वाले होते हैं। खाना खाने के बाद आलस्य आता है, हाथ कोमल हो तो आलसी होने के कारण अधिक सोने की आदत
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होती है।
मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होकर निकली हो अर्थात इसकी दूरी जीवन रेखा से 3/4 इन्च या उससे अधिक हो तो यह व्यक्ति में अति आत्मविश्वास, जिसे हम घमण्ड कहते हैं, पैदा करती है। ऐसे व्यक्ति लापरवाह होते हैं, अपने जीवन निर्माण की भी चिन्ता नहीं करते। ये स्वछन्द विचारों के होते हैं व किसी की परवाह न करना, बात काटने पर निरादर कर देना, इनके लिए कोई विशेष बात नहीं होती। शनि की उंगली लम्बी या शनि उन्नत हो तो व्यक्ति एकान्त पसन्द होता है, भाग्य रेखा भी शनि पर हो तो झगड़ा तथा विरोध पसन्द नहीं होता। ऐसे व्यक्ति विरोधियों से दूर जाकर खुले में मकान बनाकर रहते हैं। परवाह कम करने से ऐसे पति-पत्नी में मनोमालिन्य बना रहता है, वे न तो एक-दूसरे का पक्ष ले सकते हैं और न तारीफ ही कर सकते हैं, फलस्वरूप अनायास ही विरोध रहता है। इनकी स्पष्टवादिता या कटुवाशक्ति नौकरी में भी झगड़े का कारण बनती है। इनका गला सूखता है व नींद कम आती है। स्त्री के हाथ में यह लक्षण होने पर इन्हें शादी के बाद परेशानी होती है। ऐसे व्यक्तियों में आत्मविश्वास देर से पैदा होता है। यदि शुक्र भी उन्नत हो तो जीवन में सफलता भी देर से मिलती है।
= मस्तिष्क रेखा का निकास (बृहस्पति से)
।
बृहस्पति ग्रह आत्मसम्मान, महत्वकांक्षा, प्रौढ़ता व शासन का प्रतीक है। हाथ में बृहस्पति उन्नत होने पर व्यक्ति सचरित्र, महत्वाकांक्षी तथा शासकीय प्रवृत्ति के होते हैं। इसी प्रकार जिन लोगों की मस्तिष्क रेखा बृहस्पति से निकलती है, उन व्यक्तियों में स्वभावतः ही उपरोक्त सभी गुण आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति पुरुषार्थ से जीवन बनाते हैं (चित्र-67) तथा स्वयं के गुणों में निरन्तर वृद्धि करने वाले होते हैं। इनका मस्तिष्क शब्द कोष होता है व ग्रहण-शक्ति अच्छी होती है। ये बैद्धिक त्रुटियां नहीं करते। संयोगवश यदि कोई गलती कभी कर जाएं तो पुनरावृत्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठता। महत्वाकांक्षा की विशेष भावना इनमें पाई जाने के कारण अध्ययन के समय ये गुट बना कर रहते हैं। रुढ़िवादिता इन्हें बिल्कुल पसन्द नहीं होती, अतः अपने परिवार वालों से इनका विरोध बना रहता है। अध्ययन में तो ये निपुण होते हैं, परन्तु मेहनती नहीं होते।
ऐसे व्यक्तियों की उंगलियां मोटी हों तो आत्म-सम्मान के कारण झगड़े आदि रहते हैं तथा मस्तिष्क रेखा की कोई शाखा मंगल पर जाती हो तो कत्ल जैसे लांछन भी जीवन में लगते हैं। यह सब, सम्मान अथवा महत्वाकांक्षा के कारण ही होता है।
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सुधारवादी दृष्टिकोण के कारण इनके चरित्र में धीरे-धीरे सुधार होता जाता है। यदि मस्तिष्क रेखा में कोई दोष जैसे लाल या काली न हो तो समय आने पर ऐसे व्यक्ति स्वयं पैरों पर खड़े हो जाते हैं। उंगलियां पतली होने पर उपरोक्त दोषपूर्ण फल नहीं होते। ये स्वाभिमानी होते हैं, झुकना पसन्द नहीं करते और छोटी सी बात को भी बहुत महसूस करते हैं। कभी-कभी यहां तक नौबत आती है कि छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा कर बैठते हैं। यदि इनके गृहस्थ-सम्बन्ध में ज़रा भी त्रुटि हो तो छोटी सी बात पर ही अपमान महसूस कर जाते हैं जैसे यदि पत्नी बिना कहे कहीं चली जाए तो ये उसे लेने जाएं, ऐसा प्रश्न ही नहीं उठता। थोड़ा भी विरोध आपस में होने पर, दूसरे को ही झुकना पड़ता है। ऐसी स्त्रियां रोने में तेज, अड़ने वाली, शुरू में डरने वाली तथा बाद में बहादुर होती हैं। इन्हें छोटे काम करने में लज्जा अनुभव होती है।
चित्र-67 कभी-कभी आत्मसम्मान की मात्रा यहां तक बढ़ जाती है कि यदि गलत बात मुंह से निकल जाए तो उसी पर अड़ जाते हैं। छोटा काम नहीं करने के कारण स्थायित्व देर से प्राप्त होता है क्योंकि जब तक इनकी रुचि का कार्य नहीं मिलता, तब तक ये अपने आपको स्थायी महसूस नहीं करते और लगातार काम बदलने की सोचते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों की भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकली हो तो स्त्री लोलुप होते हैं।
ये मिलनसार व दृढ़ निश्चयी भी होते हैं। जिससे इनका परिचय या मित्रता हो जाती है, जीवन भर निभाते हैं, मित्रता होती भी अधिक व्यक्तियों से है। स्वयं से कोई गलती या अपराध होने पर क्षमा मांगने में देर नहीं करते और यदि कोई व्यक्ति गलती करके इनसे क्षमा मांगे तो क्षमा भी कर देते हैं। ऐसे व्यक्तियों की हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा यदि एक-दूसरे के समानान्तर हो तो बदले की भावना रहती हैं, जिसके पीछे पड़ते हैं, उन्हें जड़ से उखाड़ देते हैं। परोपकारी, व्यवहारिक व मानवोचित्त गुण होने के साथ ही जैसे के साथ तैसा व्यवहार करने वाले होते हैं।
ऐसे व्यक्ति झगड़े में कम पड़ते हैं और यदि किसी झगड़े में आ भी जाते हैं तो उसका निपटारा भी स्वयं ही कर देते हैं। मुकद्दमें लड़ने में यदि डिकरी भी हो जाए तो ऐसे व्यक्ति उन्हें क्षमा मांगने पर छोड़ देते हैं। पैसा देने या अन्य कोई वायदा ये करते हैं तो उसका पूर्णतया पालन करते हैं, चाहे अपना काम बन्द करके भी करना पड़े। अत: बाजार में इनकी साख होती है। मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर ये लम्बे
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समय तक किसी बात को नहीं भूल सकते और अवसर आने पर बदला लिए बगैर नहीं छोड़ते। ऐसे व्यक्ति अपने शत्रु को जान से नहीं मारते, जीवित रखकर मुकाबला करते हैं या अहसान से मारते हैं। उत्तरदायित्व अधिक अनुभव करने के कारण ऐसे व्यक्ति उस समय तक विवाह नहीं करते जब तक ये अपने पैरों पर खड़े न हो जाएं। अतः अपनी शादी तक रोक देते हैं तथा आदर्श पसन्द या अन्य किसी करण से इनकी शादी में कई बार विध्न पड़ता है।
= मस्तिष्क रेखा का निकास (मंगल से) ==
___मंगल ग्रह का सम्बन्ध वीरता, शौर्य, धैर्य व नृशंसता आदि से है। अत: मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलती हो तो निश्चय ही उपरोक्त गुणों में वृद्धि करती है। गुणों की अतिशयता होने पर व्यक्ति में घमण्ड, लड़ाई-झगड़ा करने की आदत, अपने आपको बहुत अधिक समझना आदि दोष पैदा हो जाते हैं। ये शरीर प्रधान होते हैं, बुद्धि प्रधान नहीं। मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर व्यक्ति में येन-केन-प्रकरण बदला लेने की भावना पाई जाती है। क्रोध में ऐसे व्यक्ति, नैतिक व मानसिक नियन्त्रण खो बैठते हैं, अतः देखा गया है कि इनके हाथ से अनहोनी हो जाती है (चित्र-68) मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलने पर पूरा मस्तिष्क ही, मंगल से प्रभावित होता है, जो व्यक्ति में कई प्रकार के दुर्गुणों का कारण होता है।
ये व्यक्ति निडर एवं वीर होते हैं तथा इनकी आदतें दूसरों को चुनौती देने वाली होती हैं, फलस्वरूप झगड़ा जीवन भर चलता रहता है। इन्हें अपनी आदत पर नियन्त्रण रखना चाहिए। यदि यह आदत न हो तो सुखी रहते हैं। हृदय रेखा में द्वीप, उंगलियों के पास अंगूठा छोटा, मोटा या गांठदार होने पर, उंगलियां तिरछी या मोटी, हाथ का रंग लाल आदि लक्षण राज्य विप्लवकारियों या हत्यारों में पाये जाते हैं। मस्तिष्क रेखा स्वयं मंगल से निकल कर, यदि इसकी कोई शाखा मंगल पर जाती हो तो भी व्यक्ति ऐसा ही होता है। यहां यह विशेष रूप से देखने की बात है कि हाथ के लक्षणों के अनुसार व्यक्ति में जितना अधिक बौद्धिक विकास होता है। उतना ही उपरोक्त दुर्गुणों में कमी आ जाती है। हत्या प्रायः ऐसे व्यक्ति करते हैं, जिनमें कार्य के परिणाम सोचने की शक्ति लुप्त हो जाती है या बदले की भावना होती है। ऐसे व्यक्तियों की हृदय व मस्तिष्क रेखाएं समानान्तर होती हैं। इससे व्यक्ति में लगन व बदले की भावना बढ़ती है। सैनिकों के हाथों में ऐसे ही लक्षण होते हैं। अंगूठा लम्बा व पतला होने पर ऐसे व्यक्ति सैनिक क्रान्ति करने में सफल होते हैं, अन्यथा मृत्यु का सामना करते हैं। अग्नि से जल कर मरने वालों के हाथों में भी ऐसे ही चिन्ह होते हैं। गोली का
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शिकार भी ऐसे ही व्यक्ति होते हैं।
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मस्तिष्क रेखा, मंगल से निकल कर मंगल पर जाती हो, इसके आरम्भ में त्रिकोण जैसा कोई द्वीप हो और हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा के समानान्तर हो तो ऐसे व्यक्ति अपने शत्रु को मार कर ही सुख की सांस लेते हैं, नहीं तो इनका अपना जीवन मौत जैसा रहता है। ऐसे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। ये आस्तीन के सांप होते हैं। इनसे मित्रता और शत्रुता दोनों ही हानिकारक होती हैं। इनको उधार देना अपने आपको खतरे में डालना है। ये जल्दबाज और दूसरों पर बात ढ़ाल कर कहने वाले होते हैं। इनकी बात काटना भी इन्हें एक प्रकार से चुनौती देना है। बृहस्पति उन्नत होने पर, ऐसे व्यक्ति मौके पर तो चुप हो जाते हैं, परन्तु बाद में उसी बात को लेकर सम्मान के ग्राहक बन जाते हैं। यदि हाथ में इस अवस्था में लाली हो तो जेल जाने या कत्ल करने वाले, दुष्चरित्र व गुण्डे होते हैं। यह अवश्य देख लेना चाहिये कि पहले बताये हुए अपराधियों के गुण, जैसे उंगलियां व अंगूठा मोटा आदि इनके हाथ में हैं या नहीं ? यदि उंगलियां पतली हों तो इन गुणों में काफी कमी हो जाती हैं। अंगूठा लचीला या लम्बा हो तो दुर्गुण और भी कम हो जाते हैं। हाथ गुलाबी होने पर तो व्यक्ति के चरित्र में दया की मात्रा बढ़ जाती है। लाल हाथ होने पर अंगूठा छोटा हो तो भी व्यक्ति में क्रोध की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है। घृणा या क्रोध आने पर घर छोड़ देते हैं, नहीं तो घर छोड़ने की धमकी तो अवश्य ही दे देते हैं।
चित्र - 68
मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर यदि मंगल उठा हुआ हो और भाग्य रेखा गहरी हो तो मांस, शराब, अण्डे आदि सेवन करने वाले होते हैं। भाग्य रेखा आगे चलकर पतली होने पर उस आयु में मांस मक्षण छोड़ देते हैं, तो भी समाज या मित्रों में बैठकर कभी-कभी मांस आदि खा लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों का जन्म भी ऐसे घरों में होता है, जहां इस प्रकार के खाद्यों का प्रयोग किया जाता है। भाग्य रेखा फिर मोटी होने पर फिर मांसादि का प्रयोग करते हैं। मंगल रेखा से मस्तिष्क रेखा निकलती हो, यदि हृदय रेखा में दोष हो और मस्तिष्क रेखा के समानान्तर हो तो, राह चलते झगड़ा मोल लेने वाले होते हैं।
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मस्तिष्क रेखा का अन्त (चन्द्रमा पर)
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चन्द्रमा कल्पना शक्ति, सौम्य विचार, कलात्मकता एवं भावनात्मक बुद्धि का प्रतीक है। ललित कला का सम्बन्ध भी उन्नत चन्द्रमा से होता है, मस्तिष्क रेखा का अन्त दो प्रकार से चन्द्रमा पर होता है। एक तो एकदम मुड़कर चन्द्रमा पर जाती है, दूसरे धीरे-धीरे चन्द्रमा के आस-पास या चन्द्रमा पर समाप्त होती है। इनमें पहली मस्तिष्क रेखा दोष-पूर्ण मानी जाती है। इसमें चन्द्रमा के पर्वत में पाये जाने वाले गुणों की अधिकता होती है जो जीवन में कई कमियों का कारण बन जाती है। दूसरे प्रकार की मस्तिष्क रेखा एक सुन्दर गुण है। साहित्यकार, कलाकार, ललित कला के पारखी आदि व्यक्तियों के हाथ मे दूसरे प्रकार की रेखा ही पाई जाती है। भावुकता तो इनमें होती है, परन्तु यह निश्चित मात्रा तक होती
चित्र-69 है, अतिशय नहीं। यहां दूसरे प्रकार की रेखा के विषय में विचार किया जाएगा।
जिनकी मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति भावुक, अधिक महसूस करने वाले, कल्पनाशील, बातें अधिक व काम कम करने वाले, बहुत शीघ्र रोने वाले तथा त्यागी होते हैं। मस्तिष्क रेखा का चन्द्रमा पर जाना वैसे तो उत्तम है, परन्तु क्रियात्मक रूप से ऐसे व्यक्ति समाज के योग्य नहीं होते। ये अतिमानव एवं कल्पनाशील होते
हैं। हृदय रेखा बृहस्पति पर और मस्तिष्क रेखा अलग या लम्बी हो, हृदय रेखा पर द्वीप हो, हाथ कोमल हो तो भावुकता की मात्रा किसी हद तक अधिक बढ़ जाती है। ____ यदि मस्तिष्क रेखा में मोटाई नहीं हो तो धीरे-धीरे चन्द्रमा पर जाने वाली मस्तिष्क रेखा वाला व्यक्ति, मिलनसार तथा मानव-गुण सम्पन्न ही नहीं बल्कि देवोचित गुण वाला होता है। उंगलियां और अंगूठा पतला हो तो इनके फल में बहुत वृद्धि हो जाती है। मुकद्दमा या झगड़ा
करना इन्हें पसन्द नहीं होता। शान्तिप्रिय तथा चित्र-70
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अपनी धुन के पक्के होते हैं। व्यापारी एवं बुद्धिजीवी व्यक्ति के हाथ में ऐसे ही लक्षण पाये जाते हैं। ये दिन प्रतिदिन उन्नति करने वाले होते हैं। इनके विपरीत मस्तिष्क रेखा यदि एकदम मुड़कर चन्द्रमा पर जाए ( चित्र - 70 ) तो विशेष कल्पना करने वाले व विचार के स्थिर नहीं होते। कभी कुछ सोचते हैं तो कभी कुछ। वहमी भी होते हैं। हाथ में ज्यादा रेखाएं एवं शुक्र प्रधान हाथ होने पर वहम और कल्पना दोनों अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत देर में सफल होते हैं। ये स्वभाव के पहले तेज होते हैं और बाद में शान्त हो जाते हैं। द्वीप युक्त होने पर मस्तिष्क रेखा अन्त में व्यक्ति को चिड़चिड़ा या कम बोलने वाला बना देती है।
मस्तिष्क रेखा एक हाथ में चन्द्रमा पर तथा दूसरे हाथ बुध की ओर गई हो तो संसार त्याग की भावना रहती है। स्वभाव से ही त्यागी होते हैं। हृदय रेखा दोष-हीन, भाग्य रेखा पतली, उंगलियां लम्बी हों तो निश्चय ही ऐसा होता है। शुक्र ग्रह उन्नत या भाग्य रेखा मोटी होने पर ये वहमी व आलसी होते हैं। बृहस्पति की उंगलियां यदि छोटी हों तो भी त्यागी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी आदत से मजबूर होकर त्याग करते हैं, परन्तु यश इन्हें नहीं मिलता । त्याग के विषय में सोचते हुए यह देखना आवश्यक है कि व्यक्ति की अवस्था भी त्याग करने की है ? यदि त्याग करने की शक्ति ही नहीं हो तो त्याग की भावना का कोई महत्व नहीं होता । (चित्र - 71) धनी
चित्र - 71
न होने पर यथा शक्ति ही त्याग करते हैं। धनी होने पर धर्मशाला, शिक्षालय, औषधालय आदि बनवाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के हाथ में सूर्य की उंगली के नीचे मत्स्य रेखा पाई जाती है।
मस्तिष्क रेखा का अन्त (चन्द्रमा पर एकदम मुड़कर )
कभी-कभी मस्तिष्क रेखा एकदम मोड़ खा कर नीचे की ओर झुक जाती है। हम इसे झुकी मस्तिष्क रेखा कहेंगे। झुकने के बाद मस्तिष्क रेखा का झुकाव या तो चन्द्रमा की ओर होता है या लम्बी होने पर यह चन्द्रमा पर पहुंच जाती है, (चित्र - 72 ) ।
ऐसे व्यक्ति बहुत भावुक होते हैं। छोटी-छोटी बात महसूस करना, जरा सी बात को बड़ा बना देना इनकी आदत होती है। यदि मस्तिष्क रेखा में कोई अन्य दोष जैसे
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शनि के नीचे टूटी रेखा या द्वीपयुक्त आदि हो तो सारा जीवन ही अशान्तिपूर्ण रहता
दोनों हाथों में इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा होने पर व्यक्ति अत्याधिक भावुक होते हैं, हृदय रेखा में द्वीप आदि लक्षण पाये जाने पर ऐसे व्यक्ति
आत्महत्या तक कर लेते हैं। मस्तिष्क रेखा यदि एकदम मुड़ कर धीरे-धीरे चन्द्रमा की ओर उतरी हो तो दोषपूर्ण के बजाए उत्तम होती है, ऐसे व्यक्ति कवि, लेखक आदि होते हैं, परन्तु एकदम, मस्तिष्क रेखा का झुकाव हो जाना भारी दोष माना जाता है। ऐसे व्यक्ति प्रेम सम्बन्ध टने, बेमेल विवाह होने, परिवार में क्लेश आदि घटनाएं होने पर आत्महत्या तक कर लेते हैं, हृदय रेखा भी
चित्र-72 टूटी हो तो इनके आत्म-सम्मान को ठेस लगने पर भी आत्महत्या कर लेते हैं।
स्त्रियों के हाथों में ऐसे लक्षण बहुत खराब होते हैं। स्त्रियां तो पहले ही पुरुषों से अधिक भावुक होती हैं, इनके साथ कोई भी अपमानजनक घटना होने पर आत्महत्या करते देर नहीं लगती, अन्यथा सोचती तो अवश्य ही हैं। यह देख लेना चाहिए कि भाग्य रेखा के आरम्भ में कोई बड़ा द्वीप तो नहीं है या भाग्य रेखा, जीवन रेखा के पास तो नहीं आ गई है, क्योंकि भाग्य रेखा के उपरोक्त लक्षणों से परिवार में क्लेश व अशान्ति का भयंकर रूप देखने में आता है। सोचते समय ऐसे व्यक्ति एकाग्रचित हो जाते हैं, फलस्वरूप इनके साथ दुर्घटना आदि की घटनाएं अधिक होती हैं। यदि जीवन रेखा व हृदय रेखा निर्दोष हो तो इसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है, परन्तु जिस आयु में यह झुकाव होता है, उसमें किसी सम्बन्धी की मृत्यु, धन हानि, स्वयं को या परिवार में रोग आदि की घटनाएं अवश्य घटित होती हैं।
मस्तिष्क रेखा में एकदम झुकाव होने पर परिवार के किसी व्यक्ति में चरित्र दोष भी पाया जाता है। यदि भाग्य रेखा भी मोटी हो तो व्यक्ति को स्वयं के लिए भी इस प्रकार का फल कह देना चाहिए।
मस्तिष्क रेखा का अन्त (मंगल पर)
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पचास प्रतिशत व्यक्तियों के हाथों में मस्तिष्क रेखा का अन्त मंगल पर होता है। सीधी मंगल पर जाने की दशा में मस्तिष्क रेखा लम्बी हो जाती है, यह तो इतना
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चित्र-73
अच्छा नहीं माना जाता, परन्तु मस्तिष्क रेखा अधिक लम्बी न होकर निर्दोष भी हो तो उत्तम प्रकार की मस्तिष्क रेखा मानी जाती है। (चित्र-73)।
ऐसे व्यक्तियों में कर्तव्य-शक्ति बहुत होती है। ये दूरदर्शिता से कार्य करने वाले होते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा से अलग भी हो तो ऐसे व्यक्ति सरल प्रकृति व विश्वास करने वाले होते हैं। इस गुण के कारण इन्हें हानि भी होती है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति दूसरों पर अधिक निर्भर रहते हैं। जीवन रेखा अधिक गोल हो या भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर हानि के अवसर नहीं आते। बुध की उंगली का तिरछा होना व उसका नाखून छोटा
ST होना भी बुद्धिमता में वृद्धि करता है और हानि के अवसरों में कमी कर देता है।
ऐसे व्यक्ति शान्ति-प्रिय होते हैं, झगड़े में नहीं पड़ते परन्तु कोई झगडा सिर पर आ पड़े तो अन्त तक हिम्मत से लड़ते हैं और शत्रु को हरा कर ही दम लेते हैं। अंगूठा छोटा एवं मोटा हो तो बदला लेने की भावना पाई जाती है तो भी अपने आप किसी झगड़े में नहीं कूदते और कोई झगड़ा सिर पर आ पड़ने पर किसी भी कीमत पर ब्याज सहित चुकाते हैं।
ऐसे व्यक्ति कोमल और कठोर, दोनों प्रकार के होते हैं। पति-पत्नी में बिना किसी बात के अनबन रहती है। ये शक भी करते हैं और प्रेम भी। एक-दूसरे के बिना भी नहीं रह सकते। भाग्य रेखा में द्वीप, जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का जोड़ अधिक हो तो निश्चित रूप से ऐसा कह सकते हैं। शुक्र उन्नत होने पर इनके जीवन साथी कम वासनात्मक होते हैं, यह भी अशान्ति का एक कारण होता है। मस्तिष्क रेखा मंगल पर जाने की दशा में, यदि हाथ का गठन सुदृढ़ हो तो अन्तिम अवस्था तक यौन दृढ़ता व वासनात्मक मस्तिष्क बना रहता है।
ये व्यक्ति दृढ निश्चयी होते हैं। जिससे मित्रता करते हैं, अन्त तक निभाते हैं। चलते में जान-पहचान करना इनके लिए मामूली बात है। इसी प्रकार शत्रुता को भी अन्त तक भूलते नहीं, जब तक शत्रु क्षमा याचना नहीं कर लेता, चैन से न बैठते हैं, न बैठने देते हैं।
यदि मस्तिष्क रेखा बृहस्पति से उदय हो तो विशेष रूप से मानव सुलभ सद्गुणों का द्योतक है। मस्तिष्क रेखा बृहस्पति से उदय होकर मंगल पर जाए तो उधार लेकर
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मारते नहीं है, भले ही स्थिति ठीक न होने से देर हो, परन्तु जब भी अवसर मिलता है, अपना उधार चुकाते हैं।
मस्तिष्क रेखा का अन्त (सूर्य पर) =
एक से अधिक मस्तिष्क रेखाएं होने पर कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि मस्तिष्क रेखा सूर्य पर चली जाती है (चित्र-74)। ऐसे व्यक्ति सद्गुणों से युक्त, उत्तम विचार वाले, बुद्धिजीवी और सम्मान अर्जित करने वाले होते हैं। ये किसी भी कार्य को जल्दबाजी से नहीं करते। स्वभाव के गरम तथा नेत्रों के कमजोर होते हैं। ऐसे व्यक्ति ठेकेदारी या एजेन्सी का कार्य करते हैं। रेखाओं में दोष हो तो घमण्डी होते हैं।
-~-7
चित्र-74
==मस्तिष्क रेखा का अन्त (बुध पर या उसकी ओर)===
कभी-कभी मस्तिष्क रेखा स्वयं या उसकी कोई शाखा बुध पर जाती है या मस्तिष्क रेखा का झुकाव बुध की ओर होता है, इससे व्यक्ति में बुद्धिमत्ता का विकास होता है (चित्र 75)। ऐसे व्यक्ति सद्गुणों से परिपूर्ण, विचारक, बात को अधिक बारीकी से जानने वाले एवं सफल होते हैं। अंगूठा छोटा या कठोर होने की दशा में क्रोधी होते हैं। ___ मस्तिष्क रेखा की एक शाखा बुध की ओर या मस्तिष्क रेखा एक हाथ में बुध की ओर तथा दूसरे हाथ में चन्द्रमा पर हो तो सन्यास लेने की
--- चित्र-75
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प्रबल इच्छा होती है अन्यथा इस विषय में सोचते अवश्य हैं। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा दायें हाथ में हो तो इनकी सन्तान और बायें हाथ में होने पर स्वयं लेखक अथवा पत्रकार होते हैं।
लम्बी मस्तिष्क रेखा
मस्तिष्क रेखा की सही लम्बाई बुध की उंगली के आरम्भ तक है। यहां से आगे मस्तिष्क रेखा लम्बी मानी जाती है (चित्र - 76 ) ।
मस्तिष्क रेखा बुध वाले मंगल के मध्य या उसके नीचे की ओर उतर जाए अथवा चन्द्रमा के मध्य या नीचे मणिबन्ध के समीप तक पहुंचे तो लम्बी कही जाती है। निर्दोष होने पर तो यह उत्तम होती है, परन्तु दोषपूर्ण होने पर ठीक नहीं मानी जाती है।
चित्र - 76
अधिक लम्बी मस्तिष्क रेखा की दशा में अधिक विचार करने की आदत होती है परन्तु इनका चिन्तन व्यर्थ न होकर किसी विषय को लेकर ही होता है। ये बहुत लम्बे भविष्य की बातें सोचा करते हैं।
मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर व्यक्ति वहमी हो जाता है। हां! नहीं! होगा ! या नहीं होगा ? ऐसे प्रश्नों को सुलझाने में ही बहुत समय निकल जाता है। शुक्र भी उठा हो तो वहम की सीमा बढ़ जाती है। अधिक मस्तिष्क लम्बी रेखा होने पर यदि चन्द्रमा और शुक्र दोनों उन्नत हों तो वहम की सीमा पागलपन तक पहुंच जाती है।
मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर ऐसे व्यक्ति बहादुर होते हैं, परिस्थितियों का मुकाबला हिम्मत से करते हैं, घबराते नहीं हैं। इन्हें अपनी आदत पर नियन्त्रण होता है, जैसा चाहते हैं, वैसा ही जीवन यापन करते हैं, परन्तु एक बार पक जाने आदत होने पर बदलने में कठिनाई होती है। ये नियम व कानून के अनुसार कार्य करते हैं। इन्हें किसी भी कार्य के लिए कठिनाई से ही सहमत किया जा सकता है और सहमत होने पर किसी भी प्रकार की शंका इनके मस्तिष्क में नहीं रहती। ऐसे व्यक्ति बड़ी-बड़ी
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बातें सोचते हैं। किसी भी बात को बड़ी गहराई से जानते हैं या विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं।
=== छोटी मस्तिष्क रेखा।
मस्तिष्क रेखा की आदर्श लम्बाई बुध व सूर्य की उंगली के मध्य तक होती है। इससे छोटी होने पर मस्तिष्क रेखा छोटी कहलाती है, परन्तु शनि व सूर्य की उंगली के मध्य या इसके आसपास तक जाने वाली मस्तिष्क रेखा छोटी ही मानी जाती है। यह एक प्रकार का दोष है और जीवन में कमियों का लक्षण है (चित्र-77)
छोटी मस्तिष्क रेखा में दोष भी हो तो गजब हो जाता है। यह दोष व्यक्ति को चारित्रिक पतन की ओर ले जाता है। चरित्र के विषय में इनका कोई ईमान, धर्म नहीं होता। ये गन्दी कल्पना करने वाले, अधिक सोचने वाले, मूर्ख और जिद्दी होते हैं। थोड़ी बात को अधिक मानते हैं और प्रपंच करते हैं। प्रायः इनमें कोई न कोई खराब कुटेंव रहती है, फलस्वरूप धन की कमी भी ऐसे व्यक्ति महसूस करते हैं। ये व्यक्ति शीघ्र ही घबराते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा अधिक छोटी तथा मुड़ी हुई सी हो तो ये डरपोक भी होते हैं और जरा से धड़ाके या शोर से घबराहट के कारण इनका दिल धड़कने
चित्र-77 लगता है।
स्त्रियों के हाथ में मस्तिष्क रेखा छोटी हो तो जल्दबाज, सोचकर काम न करने वाली व शीघ्र प्रभाव में आने वाली होती हैं, यदि हृदय रेखा की छोटी-छोटी शाखाएं मस्तिष्क रेखा की ओर आती हों तो भावुकता की हद हो जाती है। ऐसी स्त्रियों को यदि इन्हें किसी पर-पुरुष से प्रेम है तो प्रेम के वशीभूत होकर घर, पति व बच्चों को छोड़कर प्रेमी के साथ भाग जाती हैं।
मस्तिष्क रेखा छोटी होने की दशा में हृदय रेखा के समानान्तर व भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकली हो तो ऐसे व्यक्ति अव्वल दर्जे के कामुक होते हैं। हृदय रेखा उंगलियों के पास होने पर किसी न किसी व्यक्ति से इनके सर्वविदित अनैतिक सम्बन्ध रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से वासनापूर्ति करते हैं, फलस्वरूप इनका पेट खराब हो जाता है।
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दोहरी मस्तिष्क रेखा =
हाथ में कभी-कभी एक के स्थान पर दो मस्तिष्क रेखाएं भी होती हैं। ये हाथ विशेष प्रकार के होते हैं। यदि हाथ में विशेष गुण जैसे गोलाकार जीवन रेखा, छोटी व सीधी उंगलियां, हाथ कोमल व भारी आदि भी हों तो ऐसे व्यक्ति कुल दीपक होते हैं। दोनों मास्तष्क रेखाएं निर्दोष भी हों तो व्यक्ति आरम्भ से ही प्रखर बुद्धि व
धनी होता है। (चित्र-78)। इनमें दोष होने पर, दोष निकलने की आयु के बाद ही उन्नति कर पाते हैं।
कभी-कभी दो मस्तिष्क रेखाओं तथा भाग्य रेखा से मिल कर एक लम्बा द्वीप बन जाता है। यह दोहरी मस्तिष्क रेखा और द्वीप का फल भी करता है। जहां ऐसे व्यक्ति जैसे ही उन्नति करते हैं, वैसे ही इनके पेट का ऑपरेशन, मस्तिष्क विकार जैसे नींद
न आना, पैर में चोट लगना, आपरेशन या गर्भाशय ./
__ में रसोली होने का खतरा भी बढ़ जाता है। बुढ़ापे में चित्र-78
ऐसे व्यक्तियों की या तो स्मृति चली जाती है या स्त्री होने की दशा में दौरे आदि की शिकायत हो जाती
.
दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर, दूसरी मस्तिष्क रेखा देर से आरम्भ होती है तो उसके आरम्भ होने की आयु के बाद ही व्यक्ति को सफलता व उन्नति प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति का मस्तिष्क स्थिर नहीं होता, दुविधा रहती है।
दोहरी मस्तिष्क रेखा जब भाग्य रेखा से कटती है तो एक त्रिकोण बनता है। यह त्रिकोण द्वीप का फल देता है। त्रिकोण की आयु समाप्त होने के पश्चात् ही, ऐसे व्यक्ति जीवन में सफल होते हैं।
चित्र-79
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शाखान्वित मस्तिष्क रेखा। शाखान्वित मस्तिष्क रेखा दो प्रकार से हाथों में देखने में आती है। एक तो मस्तिष्क रेखा से ही छोटी या बड़ी शाखाएं निकलकर इधर-उधर जाती हैं। दूसरे प्रकार से, मस्तिष्क रेखा स्वयं दो भागों में विभक्त हो जाती है (चित्र-80)। इनका भेद ध्यान से देखने पर आसानी .. से किया जा सकता है। दोनों ही प्रकार की मस्तिष्क रेखाएं लगभग एक-सा फल प्रदान करती हैं। द्विभाजन होने पर मस्तिष्क रेखा के ही दो भाग हो जाते हैं, और दोनों भागों की मोटाई लगभग एक-सी होती है, दोनों । भाग लम्बे या छोटे कैसे भी हो सकते हैं। ऐसा देखने में आया है कि आरम्भ में मस्तिष्क रेखा द्विभाजन होने । पर, इसकी शाखाएं लम्बी नहीं होती, परन्तु अन्त में द्विभाजित होने वाली रेखा का द्विभाजन लम्बा या छोटा
चित्र-80 किसी भी प्रकार का हो सकता है।
मस्तिष्क रेखा से निकलने वाली छोटी शाखाएं रोम जैसी पतली होती हैं। मोटी शाखाएं, मस्तिष्क रेखा से निकलने पर यदि मस्तिष्क रेखा की मोटाई पर उससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो तो ये अलग रेखाएं मानी जाती हैं। मुख्य मस्तिष्क रेखा की मोटाई कम होती हो तो, इसे मस्तिष्क रेखा की शाखा माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों में कर्तव्यशक्ति अधिक होती हैं और ये अपने ही मस्तिष्क से अपने ही पैरों पर खड़े होकर धन व श्रेय अर्जित करते हैं। किसी के दबाव में रहना
पसन्द नहीं करते। ऐसे व्यक्ति किसी भी बात को . चित्र-81
अधिक महसूस करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास आसानी से हो जाता है।
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= मस्तिष्क रेखा में छोटी-छोटी शाखाएं
मस्तिष्क रेखा से जिस आयु में शाखा निकलती है, उस आयु में व्यक्ति शिक्षा ग्रहण करता है या किसी प्रतियोगिता में भाग लेता है। यदि बृहस्पति उत्तम अर्थात
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उन्नत या कम रेखा वाला, जीवन रेखा एवं भाग्य रेखा निर्दोष हो तो सफलता मिलती है। उस समय कार्य में भी परिवर्तन उपस्थित होता है। नौकरी में होने पर स्थानान्तरण होता है, व्यापारी होने पर किसी के साझे में व्यापार किया जाता है या कोई अन्य कार्य किया जाता है (चित्र-82)।
मस्तिष्क रेखा से कोई शाखा निकल कर यदि बुध के नीचे हृदय रेखा पर मिली हो तो जहर से मृत्यु की सम्भावना रहती है। दोनों रेखाएं एक शनि तथा एक बुध के नीचे हो तो जो भी गहरी होती है अर्थात् बुध की रेखा गहरी होने पर जहर से या सांप के काटने से तथा शनि की रेखा गहरी होने पर पानी या आग से मृत्यु होती है।
___ मस्तिष्क रेखा से बुध पर यदि गहरी रेखा जाती हो तो ऐसे व्यक्ति शुद्ध विचार वाले तथा विद्वान होते हैं। इन्हें बड़ी आयु में धन वृद्धि, सन्तान वृद्धि, जायदाद
वृद्धि व रोग निवारण होता है। ऐसे व्यक्तियों को गृहस्थ चित्र-82
संचालन का व्यवहारिक ज्ञान होता है। जिनकी हृदय व मस्तिष्क रेखा को बुध या शनि के नीचे कोई अन्य रेखा काटती हो और यह रेखा गोलाकार न हो तो ऐसे व्यक्ति लम्बी बीमारी के बाद कष्ट से मृत्यु प्राप्त करते हैं। इन्हें जहर, सांप, बिच्छू या जहरीले इन्जैक्शन लगने का भी योग होता है।
मस्तिष्क रेखा में शाखा होने पर व्यक्ति की रूचि आध्यात्मिक होती है। ये कमीशन एजेन्ट या ठेकेदारी का कार्य भी करते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा से कोई मोटी शाखा हृदय रेखा पर मिले तो भी व्यक्ति ठेकेदारी करता है, बृहस्पति उन्नत होने पर इस ठेकेदारी का सम्बन्ध सरकार से होता है।
मस्तिष्क रेखा में रोमांच (नीचे की ओर) ==
मस्तिष्क रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं हृदय की ओर न जाकर नीचे की ओर जाती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे कोई भी दोष हो तो अत्याधिक दुष्प्रभावकारी होता है, इस प्रकार, ये नीचे जाने वाली रेखाएं भी मस्तिष्क रेखा का दोष मानी जाती हैं और शनि की उंगली के नीचे निकलती हों तो व्यक्ति के पैर की एडी में दर्द रहता है। जिसका कारण पैर की हड्डी बढ़ना होता है। ऐसे व्यक्तियों को नमक अधिक पसन्द होता है जिसके कारण पैर की हड्डी बढ़ जाती है (चित्र-83)।
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यदि ऐसी ही रेखाएं शनि के नीचे से निकल कर अंगूठे वाले मंगल की ओर जाती हों तो स्वयं या भाई-बहन या सन्तान को पैर में कोई न कोई दोष पाया जाता है। बुद्धिमान होते हुए भी इनके व्यवहार को लोग कम पसन्द करते हैं और बड़ी आयु में इनका व्यवहार स्वतः ही ठीक हो जाता है। यदि शनि के अलावा, दूसरे स्थान से ऐसी रेखाएं निकलकर नीचे की ओर जाती हो तो मानसिक परेशानी का कारण होती हैं तथा रोग से सम्बन्ध रखती हैं।
देर से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा
ऐसी मस्तिष्क रेखा जो जीवन रेखा के अन्दर या उसके ऊपर से आरम्भ न होकर शनि की उंगली के नीचे से आरम्भ होती हैं - (चित्र - 84 ) । कभी-कभी यह दूसरी मस्तिष्क रेखा के साथ होती है जो इसको ढके रहती है । यह भी मस्तिष्क रेखा का दोष है। अतः दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के फल जो शनि के नीचे दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा पर लागू होते हैं, यहां भी कहे जा सकते
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हैं।
चित्र - 83
चित्र - 84
देर से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा होने पर स्वयं या सन्तान की जिव्हा में कोई न कोई दोष, तुतलाना या हकलाना अवश्य होता है। दोनों हाथों में यह लक्षण होने पर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है। जीवन रेखा भी दोषपूर्ण हो तो इस प्रकार का दोष अधिक प्रबल रूप में होता है। इनकी सन्तान के कान में भी दोष पाया जाता है। इनके जीवन साथी का स्वास्थ्य आरम्भ में कमजोर रहता है। किसी बच्चे को पोलियो का डर होता है, परन्तु इसके लिए जीवन रेखा के आरम्भ में दोष होना आवश्यक है। ऐसे व्यक्तियों पर किसी भी मादक द्रव्य का प्रभाव शीघ्र व अधिक होता है तथा देर से तरक्की करते हैं। इन्हें आरम्भ में हर काम में रुकावट आती है और कुछ न कुछ दिक्कतें तो जीवन भर आती ही रहती हैं। यदि
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यह लक्षण दोनों हाथों में हों तो आरम्भ में बच्चों का स्वास्थ्य कमजोर व स्वभाव क्रोधी होता है।
यदि कोई दूसरी मस्तिष्क रेखा देर से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा को ढकती हो तो 35 वर्ष या उस आयु में जिसमें कि यह ढकी जाती है, अनेक परेशानियां, रोग आदि उस दौरान जीवन में आते हैं। यह लक्षण दोनों हाथों में होने पर स्वयं को रोग, दौरे पड़ना, टांग में चोट लगना, टायफाइड व घर में किसी की मृत्यु, सम्पत्ति विनाश या उसमें झगड़ा आदि फल घटित होते हैं। केवल बाएं हाथ में होने पर, पत्नी को या फिर परिवार में उपरोक्त घटनाएं घटित होती है।
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= मोटी मस्तिष्क रेखा ।
मस्तिष्क रेखा अन्य रेखाओं से मोटी दिखाई देने पर, मोटी मस्तिष्क रेखा कहलाती है। यह भी मस्तिष्क रेखा का दोष है। जितनी अधिक यह मोटी होती है उतनी ही अधिक दोषपूर्ण मानी जाती है (चित्र-85)। मस्तिष्क रेखा अनेक बार पूरी मोटी न होकर इसका कुछ भाग मोटा देखा जाता है। जिस आयु तक यह मोटी होती । है, उसी समय तक व्यक्ति को अशान्ति रहती है। इसके ठीक होने पर जीवन साधारण रूप से चलने लगता है। साधारणतया ही रेखाएं मोटी हों तो मस्तिष्क रेखा भी साधारण मस्तिष्क रेखा की तरह से फल देती हैं। मस्तिष्क रेखा का कुछ भाग मोटा तथा कुछ पतला होना भी दोष ही है। अतः दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के सभी फल यहां भी लागू होते हैं।
ऐसे व्यक्ति क्रोधी, चिड़चिड़े, साधु प्रवृत्ति, सरल स्वभाव के व ईमानदार होते हैं, फलस्वरूप जीवन में कई बार धोखा खाते हैं। इन्हें अधिक सोचने की आदत होती है, परन्तु मस्तिष्क पर ज्यादा भार पड़ने या कोई अधिक दुःख होने पर ये असामान्य रूप से घबराते हैं और नींद कम आने लगती है। इनमें काम की परवाह न करना, बार-बार काम बदलना, खर्च अधिक करना तथा कोई न कोई कुटेंव जैसे जुआ आदि की आदत पाई जाती है, परन्तु यह फल दोष की आयु तक ही होता है।
मस्तिष्क रेखा मोटी, उंगलियां मोटी तथा मस्तिष्क रेखा में दोष या मंगल से निकली हो या इसमें कोई रेखा मंगल से आकर मिली हो तो सन्तान या किसी भी
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व्यक्ति से इन्हें सन्तोष प्राप्त नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों के साथ प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।
मोटी मस्तिष्क रेखा परिवार, धन, स्त्री, स्वास्थ्य, निवास, शिक्षा आदि में असन्तोष का कारण बनती है। ऐसे व्यक्तियों का मस्तिष्क साधारण होता है। मोटी मस्तिष्क रेखा सीधी होकर बुध की उंगली तक हो तो मस्तिष्क तो अच्छा होता है, किन्तु अन्य दोष पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को खट्टे पदार्थ पसन्द होते हैं जबकि इससे इन्हें हानि होती है। इनके जीवन साथी का स्वास्थ्य कमजोर रहता है।
मस्तिष्क रेखा मोटी होने पर मंगल उठा हो तो इनके जीवन में झगड़े बहुत होते हैं। घर, मित्रों व रिश्तेदारों से झगड़ा रहता है। जहां जाते हैं, विरोध होता है क्योंकि ये कड़वा बोलते हैं। मस्तिष्क रेखा आरम्भ में मोटी होने पर, इनके परिवार वाले इनकी पत्नी को कटु-वचन कह कर तंग करते हैं।
मोटी मस्तिष्क रेखा के साथ, यदि उंगलियां भी मोटी हों तथा अंगूठा कम खुलता हो तो व्यक्ति के निवास के आसपास का वातावरण अच्छा नहीं होता। ऐसे व्यक्ति जहां भी रहते हैं, वातावरण में कोई न कोई कमी महसूस करते ही हैं, विशेषतया उस समय तक जब तक कि मस्तिष्क रेखा में मोटापन होता है। इनका निवास भी तंग स्थान पर गली के अन्दर होता है और मकान के पास कूड़ा घर आदि बना होता
= पतली मस्तिष्क रेखा =
मस्तिष्क रेखा अन्य रेखाओं की तुलना में पतली होने पर पतली मानी जाती है। यह भी मस्तिष्क रेखा का दोष है। पतली मस्तिष्क रेखा के दोषपूर्ण होने पर दोष के परिणाम बढ़ जाते हैं और दोषपूर्ण न होने पर विशेष कष्ट कारक नहीं होती।
ऐसे व्यक्ति वहमी, दार्शनिक तथा धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं, यदि यह रेखा निर्दोष होकर चन्द्रमा की ओर जाती हो तो धार्मिक प्रवृत्ति बढ़ जाती है और वहम, अन्धविश्वास में बदल जाता है, फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति कर जाते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा पतली व दोषपूर्ण हो और चन्द्रमा की ओर जाती हो तो ऐसे व्यक्तियों को वहम या पागलपन आदि रोग हो जाते हैं।
मस्तिष्क रेखा पतली होकर सीधी व निर्दोष हो तो बदमाश होता है। हाथ लाल या काला हो तो बड़े-बड़े षड़यंत्र करने वाला होता है। उंगलियां पतली होने पर यह विशेषता बढ़ जाती है। जहां पर ध्यान देने की बात है, ऐसी मस्तिष्क रेखा विशेष सीधी होनी चाहिए।
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टूटी मस्तिष्क रेखा
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टूटी मस्तिष्क रेखा एक दोष है, अत: दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के विषय में बताये गये लगभग सभी फल यहां भी लागू हो सकते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे टूटे तो विशेष रूप से हानिकारक होती है। हमें यह ध्यान से देखना होगा कि मस्तिष्क रेखा किस प्रकार से टूटी हुई है (चित्र-86)। यदि मस्तिष्क रेखा के । दोनों भाग एक-दूसरे को ढक लेते हैं, टूटी मस्तिष्क रेखा को कोई दूसरी रेखा ढकती है, या टी मस्तिष्क रेखा किसी चतुष्कोण या त्रिकोण से ढकी जाती है तो यह परेशानी तो करती है लेकिन विशेष हानि नहीं करती। हाथ भारी होने पर दोषपूर्ण फलों में कमी होती है। यहां टूटी मस्तिष्क रेखा का तात्पर्य किसी लक्षण के द्वारा बिना जुड़ी रेखा से है।
इस आयु में व्यक्ति को भारी मानसिक परेशानी, बीमारी, कर्ज तथा अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि मस्तिष्क रेखा बिल्कुल ही टूट जाती है और उसके दोनों सिरों को कोई रेखा या अन्य ऊपर बताए हुए लक्षण ढकते नहीं हों व दोनों हाथों में ये लक्षण हों तो ऐसे व्यक्तियों को इस अवस्था में नये जीवन का आरम्भ करना पड़ता है। परिवार में या किसी सम्बन्धी के साथ भयंकर दुर्घटना होती है। पति या पत्नी की मृत्यु की सम्भावना रहती है। टूटी हुई मस्तिष्क रेखा की आयु में यह विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है कि पत्नी को प्रजनन नहीं होना चाहिए अन्यथा बहुत सम्भावना होती है कि प्रजनन समय में पत्नी की मृत्यु हो जाए। जिसका कारण प्रजनन समय में अति रक्तस्राव होता है। मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे ट्टी हो तो ऐसे दोष विशेष रूप से देखने में आते हैं।
चित्र-86
= टेड़ी मस्तिष्क रेखा
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मस्तिष्क रेखा में ऊपर या नीचे झुकाव होना बहुत बड़ा दोष माना जाता है। दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के सभी फल इस लक्षण के साथ लागू किये जा सकते हैं। जिन हाथों में कम रेखाएं होती हैं, उनमें यह लक्षण बहुत प्रभावकारी सिद्ध होता है। नगण्य-सा झुकाव भी इस आयु में आशातीत प्रभाव करता है। झुकाव का स्थान किसी
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त्रिकोण आदि से ढका हुआ हो तो बुरे फल में कमी होती है, फल तो होता है, परन्तु उसके कारण बरबादी या मृत्यु जैसी घटनाएं नहीं होती।
ऐसे व्यक्तियों का आचरण अच्छा होता है। जब तक ये अपने मूड में होते हैं, ठीक पेश आते हैं, अन्यथा कुत्ते की तरह काटते हैं, और बाद में रंज करते हैं। एक से अधिक बार पूछने पर ही ये किसी बात का उत्तर देते हैं। घर में ऐसे व्यक्ति व्यवहार के अच्छे सिद्ध नहीं होते, जबकि घर के बाहर इनका व्यवहार उत्तम होता है। ऐसे स्वभाव के व्यक्ति वकील, दुकानदार, स्पीकर या जज बहुत ही खराब माने जाते हैं। इन्हें घरेलू जीवन में शान्ति नहीं मिलती। थोड़ा सा भी काम न होने पर उदास होना या किसी पर बरस पड़ना या घर छोड़ देना इनका स्वभाव होता है।
रेखाएं कम होने पर यदि मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे टेढ़ी हो तो इस आयु में दुर्घटना से, ऐसे व्यक्ति को बहुत सावधान रहना चाहिए। प्रायः दुर्घटना हो जाती है। इस समय में कई प्रकार की परेशानियां आकर मानसिक अशान्ति का कारण बनती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि यह दोष शनि के नीचे हो तो विशेषतया 3435 वां वर्ष इनके लिए, आग में तप कर निकलने जैसा होता है। इस आयु में आर्थिक दबाव के कारण व्यक्ति ऋणी हो जाता है।
= मस्तिष्क रेखा में द्वीप ==
मस्तिष्क रेखा में द्वीप भी मस्तिष्क रेखा का एक दोष है। अत: दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के साथ इसे भी जोड़ा जा सकता है। मस्तिष्क रेखा में द्वीप होने पर (विशेषतया शनि के नीचे) हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर, शुक्र, चन्द्रमा या दोनों उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति सनकी होते हैं। व्यर्थ की बातें सोचा करते हैं जैसे, वह मर जायेंगे, यह
काम ऐसे होगा, अमुक व्यक्ति मुझ पर फिदा है, वह मुझे मारना चाहता है, मेरे घर में भूत-प्रेत है आदि। वास्तव में ये सब बातें गलत होती हैं। परेशानी बढ़ने पर, घबराहट होने या वातावरण उलझनपूर्ण लगने पर मस्तिष्क में गरमी बढ़ने से ऐसा होता है। (चित्र-87)। ___ मस्तिष्क रेखा में द्वीप होने पर सिर में भारीपन या दर्द रहता है, जिसका कारण पेट में खराबी होता है। ये अधिक देर तक नहीं पढ़ सकते, थोड़ी देर बैठने पर ऊब जाते हैं तथा बाहर
चित्र-87
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घूमने के पश्चात् या किसी दूसरे कार्य में मन लगाने के पश्चात्, फिर दोबारा रुककर पढ़ाई करते हैं।
मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर यदि भाग्य रेखा में बड़ा द्वीप हो और शुक्र तथा चन्द्रमा उन्नत हों तथा भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकलकर, हृदय रेखा पर रुकती हो, जीवन रेखा टूटी हो या उपरोक्त कोई दो या अधिक लक्षण हों तो व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से वीर्यपात करते हैं। ये पढ़ाई में पहले ठीक होते हैं
और बाद में रुचि न लेने के कारण अच्छे नहीं रहते। ऐसा महसूस करते हैं कि इसी गलती के कारण इनकी पढ़ाई में रुकावट होती है या मस्तिष्क में कमजोरी आई हुई है। ऐसे व्यक्तियों को जब भी बुखार होता है, तेज
चित्र-88 होता है। इन्हें नशा नहीं करना चाहिए, नशा भी तेज होता है और इनके जीवन में ऐसी घटनाएं भी होती है जब कोई भूल से इन्हें नशीली चीज खिला देता है।
= मस्तिष्क रेखा के अन्त में द्वीप
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मस्तिष्क रेखा के अन्त में अर्थात् बुध के नीचे द्वीप हो तो यह व्यक्ति के जिगर में खराबी करता है। इस प्रकार का कष्ट 52-53 वर्ष की आयु के पश्चात् ही बढ़ता है। मस्तिष्क रेखा में द्वीप न होकर कोई त्रिकोण का आकार बनता हो तो यह चलते समय सांस फूलना या फेफड़ों में खराबी होने के लक्षण है। यह द्वीप केवल स्वास्थ्य के लिए ही फल बताता है (चित्र-89)। ___ मस्तिष्क रेखा के अन्त में यदि बड़ा द्वीप हो तो व्यक्ति के किसी न किसी से अनैतिक सम्बन्ध रहते । हैं। ऐसे सम्बन्ध कभी जीवन के आरम्भ में 30-32 वर्ष की आयु में भी देखे जाते हैं लेकिन अन्त में तो निश्चित ही होते हैं। यह लक्षण रखैल रखने का है।
ऐसे व्यक्तियों की आंखों में भी किसी न किसी प्रकार का रोग रहता है। यहां यह बात विशेष रूप से देखने की है कि ये द्वीप ऐसी रेखाओं से मिलकर बनते हैं जिनकी मोटाई मौलिक मस्तिष्क रेखा से कुछ ही कम होती है। इस दशा में मस्तिष्क रेखा की कोई शाखा
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चित्र-89
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बुध वाले मंगल पर गई हो तो ऐसे सम्बन्ध किसी नजदीकी से होते हैं। यह अवश्य कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति रखैल या उप-पत्नी रखते हैं।
= मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप
यह द्वीप मस्तिष्क रेखा में सूर्य की उंगली के नीचे पाया जाता है (चित्र-90)। यह व्यक्ति की आंख में रोग का लक्षण है। यदि हृदय रेखा में भी सूर्य की उंगली
के नीचे कोई द्वीप हो या वहां बाहर से कोई रेखा आकर हृदय रेखा को छूती हो तो निश्चित ही आंखों में दोष हो जाता है। यह द्वीप यदि गोलाकार अर्थात् वृत्त के आकार का हो तो व्यक्ति अन्धा हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की आंख में बाहर से आकर कोई चीज लगती है। सूर्य व शनि की उंगली के बीच मस्तिष्क रेखा में बड़ा द्वीप हो तो इस आयु में व्यक्ति के मस्तिष्क पर बड़ा भार पड़ता है या तो ये उदासीन हो जाते हैं या पागल
अन्यथा मस्तिष्क में रसौली या खून का जमाव होकर | --1
लकवा हो जाता है। यह देखने की बात है कि द्वीप चित्र-90
के दोनों ओर की रेखाएं मस्तिष्क रेखा जैसी या मौलिक मोटाई से कुछ कम मोटी होनी चाहिए।
मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप
इस सम्बन्ध में मस्तिष्क रेखा में, शनि के नीचे दोष में बहुत कुछ बताया गया है, परन्तु द्वीप के विषय में इस स्थान पर वर्णन करना आवश्यक है, क्योंकि दोष एक साधारण लक्षण है और द्वीप एक विशेष। अतः । द्वीप के विषय में विशेष रूप से ज्ञान रखने की । आवश्यकता है।
शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में कोई भी दोष विशेषतया रोग के विषय में निर्देश करता है (चित्र-91)। अतः जब किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के विषय में अध्ययन करना हो तो यह विशेष रूप से देखना चाहिए कि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे कोई दोष
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तो नहीं है ? इसका अन्य रेखाओं या अन्य लक्षणों के साथ समन्वय करने के पश्चात् फल कहने से बहुत ही अच्छे परिणाम हाथ लगते हैं। उदाहरण के लिए शनि के नीचे दोष के साथ मंगल पर अधिक रेखाएं हाने पर सेट खराब होता है, शनि पर अधिक रेखाएं हाने से वायु विकार, गठिया, किसी भी रेखा में सूर्य के नीचे दोष होने पर आंखों में कमजोरी, हृदय रेखा में शनि के नीचे कोई दोष होने से हर्निया, पौरूष ग्रन्थि, गर्भाशय, या अण्डकोष में बीमारी, चन्द्रमा या शुक्र अधिक उठा होने पर वीर्य सम्बंधी रोग या स्नायु विकार होता है।
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== मस्तिष्क रेखा के आरम्भ या बृहस्पति के नीचे द्वीप===
इस द्वीप का निर्णय करना कठिन होता है क्योंकि किन्हीं अन्य रेखाओं में उलझे होने, जोड़ अधिक होने या अन्य कारणों से यह अन्य रेखाओं से मिल जाता है। अतः ध्यान पूर्वक देखकर ही इसका निर्णय लेना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति आपत्ति के समय शीघ्र घबरा जाते हैं तथा पढ़ने में कमजोर एवं मिजाज के चिड़चिड़े होते हैं। यह द्वीप बड़ा होने पर मस्तिष्क रेखा में यदि कोई दूसरा भी दोष हो तो एकदम भोंदू होते हैं। इस अवस्था । में, यदि भाग्य रेखा स्वतन्त्र रूप से निकली हो तथा मोटी हो तो ऐसे व्यक्ति व्यवहार के अच्छे नहीं होते। ये किसी की नहीं सुनते और मनमानी करते हैं व माता-पिता के साथ सहयोग नहीं करते। मित्रों में रहना, अधिक खर्च करना, जिम्मेदारी महसूस न करना, घर में सद्-व्यवहार न करना आदि दोष ऐसे व्यक्तियों में 12 पाये जाते हैं। कई बार तो ये दोष बहुत अधिक बढ़ जाते हैं। चित्र-93
मस्तिष्क रेखा के आरम्भ में द्वीप और उससे कोई रेखा निकल कर बृहस्पति या जीवन रेखा की ओर जाती हो तो यह लक्षण शिक्षा में थोड़ी बहुत रुकावट करता है। इस प्रकार के द्वीप से गले, कान या कान के ऊपर, मस्तिष्क का ऑपरेशन अवश्य होता है। कभी-कभी इस द्वीप से डिम्बाश्य या अण्डकोष में या तो रोग होता है या ये अंग अविकसित होते हैं।
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== जंजीराकार मस्तिष्क रेखा। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा द्वीप से मिलकर बनी हुई दिखाई देती है। यहां भी दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के सभी लक्षण लागू होते हैं।
ऐसे व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़े, कठोर व अपने ही मिजाज के होते हैं। इनका अपने मस्तिष्क पर नियन्त्रण नहीं होता। काम जिम्मेदारी से करने पर भी स्वभाव के कारण श्रेय नहीं मिलता, क्योंकि ये कार्य करके बखान करते हैं। ऐसे व्यक्ति ठोकर लगने पर भी नहीं सम्भलते। होशियार होते हैं साथ ही जिद्दी भी और रूखा व स्पष्ट बोलने की आदत होती है, फलस्वरूप देर से सफल होते हैं तथा इनके सम्बन्ध भी स्थाई नहीं होते और चिड़चिड़ेपन के कारण प्रत्येक कार्य में रुकावट आती है।
जंजीराकार मस्तिष्क रेखा होने पर यदि जीवन रेखा टूटी हुई हो, बुध की उंगली तिरछी एवं भाग्य रेखा मोटी हो तो ऐसे व्यक्ति धोखेबाज होते हैं। दूसरों को फंसाकर अपना काम निकालते हैं और लेकर देना नहीं जानते। ऐसे व्यक्तियों से अधिक आत्मीयता व व्यवहार हमेशा हानिकारक होते हैं। यह वायदे के बिल्कुल पक्के नहीं होते, आजकल करते रहते हैं, न ही साफ जवाब देते हैं, न ही मना करते हैं और न उस काम को करते ही हैं। इनको अधिक गम या खुशी होने पर स्नायु दोष हो जाता है। मस्तिष्क पर बोझ पड़ने, अधिक पूजा करने व ठेस लगने आदि से मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
मस्तिष्क रेखा जंजीर की तरह व बुध या सूर्य के नीचे अन्य रेखाओं में भी दोष हो या लाल हो तो सिर में दर्द व आंखों में खराबी होती है। यह दोष वास्तव में वंशानुगत होता है, परिवार में कई व्यक्तियों को ऐसा रोग देखा जाता है। स्त्रियों में ऐसा रोग, अधिक सन्तान या गर्भपात होने से होता है।
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= टेड़ी-मेड़ी मस्तिष्क रेखा । टेडी-मेड़ी मस्तिष्क रेखा, टेड़ी-मेड़ी ही होती है। दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के सारे फल यहां भी लागू होते हैं (चित्र-94)।
विशेषतया किसी भी आदत के पक्के होने पर, ऐसे व्यक्ति वह आदत छोड़ने में कठिनाई महसूस करते हैं। इनका कोई भी कार्य लम्बे समय तक ठीक नहीं चल पाता। ऐसा देखा गया है कि इनके काम छ: महीने ठीक और छः महीने खराब
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चलते हैं। ऐसे व्यक्ति मौसमी कार्य जैसे गन्ने का क्रेशर, भट्टा, अनाज का थ्रेशर, चूने की भट्टी, बर्फ के कारखाने आदि के कार्य करते हैं।
== मस्तिष्क रेखा को काटने वाली रेखाएं
एसी दो प्रकार की रेखाएं हाथों में देखने में आती हैं। एक तो लम्बी रेखाएं जो जीवन रेखा या उसकी ओर से आकर मस्तिष्क रेखा को काट कर आगे निकल जाती हैं या मस्तिष्क रेखा पर रुक जाती हैं। इन्हें हम राहु रेखा भी कहते हैं। दूसरे प्रकार की रेखाएं छोटी होती है जो केवल मस्तिष्क रेखा को ही स्थान-स्थान पर काटती हैं (चित्र-95)।
जीवन रेखा से निकलने वाली रेखाएं मस्तिष्क रेखा पर मिलकर त्रिकोण बनाती हैं, यह बहुत ही खराब होती हैं। यदि ये मोटी हो तो उस आयु में झगड़े, बीमारी, मृत्यु, स्थान परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न करती हैं।
मस्तिष्क रेखा को यदि स्थान-स्थान पर छोटी-छोटी रेखाएं काटती हों तो ऐसे व्यक्ति के सिर में दर्द रहता है तथा इन्हें ऐसा अनुभव होता है कि स्मृति कमजोर हो गई है या होती जा रही है। वास्तव में होता भी ऐसा ही है, परन्तु अधिक महसूस करने के कारण भी ऐसा लगता है, परन्तु व्यक्ति जितना
इस विषय में सोचता है, स्मृति उतनी कमजोर नहीं चित्र-95
होती।
मस्तिष्क रेखा पर तिल
मस्तिष्क रेखा पर तिल या काला या लाल धब्बा हो तो ऐसे व्यक्ति की पत्नी के मस्तिष्क में दोष होता है। वह पागल जैसी होती है। जिस आयु में मस्तिष्क रेखा में तिल होता है, उस आयु में कष्ट का कारण होता है।
शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में तिल होने पर पत्नी की मृत्यु, बहस्पति के नीचे होने पर स्वयं को या बच्चे को रोग तथा सूर्य के नीचे तिल होने पर बड़ी उम्र में आंख में काला मोतिया होता है। मस्तिष्क रेखा में बुध के नीचे तिल होने पर बुढ़ापे में लकवा या जहर का डर रहता है। जहर का अर्थ भोजन खाने के पश्चात् जहर
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बनने से भी है। इसमें जहरीला इन्जैक्शन लगना, जहरीले जानवर द्वारा काटना भी सम्मिलित है। यह बहुत सावधानी के साथ निर्णय करना चाहिए कि तिल वास्तव में रेखा पर ही हो। आसपास होने पर इस प्रकार का फल नहीं होता या हल्का-सा प्रभाव होकर रह जाता है। बाएं हाथ में होने पर इस लक्षण का प्रभाव पत्नी या परिवार के व्यक्तियों पर घटित होता है, परन्तु दाएं हाथ में होने पर स्वयं तथा सन्तान पर देखा जाता है। दोनों हाथों में होने पर यह विशेषतया स्वयं के ऊपर ही लागू होता है और वंशानुगत दोष माना जाता है।
भाग्य रेखा
किसी भी रेखा को, जो शनि की ओर जाती है, भाग्य रेखा कह सकते हैं। हाथ में भाग्य रेखा चन्द्रमा, जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा से निकल कर सीधी शनि की उंगली की ओर जाती है। कभी-कभी भाग्य रेखा किसी मंगल या शनि क्षेत्र से निकल कर शनि पर जाती है। (चित्र-96)। भाग्य रेखा मणिबन्ध से निकल कर बिना रुके और बिना टूटे शनि की उंगली तक पहुंचती हो तो बहुत ही उत्तम मानी जाती है परन्तु ध्यान रहे कि कोई भी छोटी भाग्य रेखा, जीवन रेखा के आरम्भ के एक इंच बाद निकल कर शनि की ओर जानी आवश्यक है, अन्यथा उत्तम से उत्तम भाग्य रेखा भी उत्तम फल देने में असमर्थ होती है, परन्तु दमदार जीवन रेखा में इस भाग्य रेखा की जरूरत नहीं होती और एक से अधिक भाग्य रेखाएं होने पर भी जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलना आवश्यक नहीं। हाथ में जितनी ही अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं या एक ही उत्तम भाग्य रेखा होती है, मनुष्य उतना ही भाग्यशाली, सम्पत्ति वाला व सफल होता है। हाथ चौड़ा, भारी, गुदगुदा, नरम और चिकना होना भाग्य रेखा के फल में उत्तमता उत्पन्न करता है। 1. उत्तम भाग्य रेखा 2. शाखान्वित भाग्य रेखा 3. भाग्य रेखा का निकास जीवन रेखा से 4. भाग्य रेखा का निकास जीवन रेखा से अलग 5. भाग्य रेखा का निकास चन्द्रमा से 6. भाग्य रेखा का निकास मंगल से 7. भाग्य रेखा का निकास भाग्य रेखा से 8. भाग्य रेखा का निकास मस्तिष्क रेखा से
चित्र-96
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9. भाग्य रेखा का निकास हृदय रेखा से 10. भाग्य रेखा से सटी भाग्य रेखा 11. प्रभावित रेखा में द्वीप 12. चन्द्रमा पर भाग्य रेखा में द्वीप
चित्र-96 का ब्यौरा
चन्द्रमा व दोनों मंगल क्षेत्रों से निकली हुई भाग्य रेखा का प्रभाव उस आयु में आरम्भ होता है, जिसमें कि शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है। शनि क्षेत्र में प्रवेश की आयु से पहले वह प्रभावित रेखा का कार्य करती है। पतले हाथों में बहुत अच्छी भाग्य रेखा दरिद्रता का लक्षण है। हाथ जितना भारी और कोमल होता है, उत्तम भाग्य रेखा उतना ही श्रेष्ठ फल प्रदान करती है।
उत्तम भाग्य रेखा
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बहुत अच्छी भाग्य रेखा, जीवन रेखा इसके पास शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से उदय होकर सीधी शनि की उंगली तक जाने वाली मानी जाती है (चित्र-97)।
___ यह रेखा जितनी ही पतली, जीवन रेखा से दूर तथा निर्दोष होती है, उत्तम होती है। अच्छी भाग्य रेखा के साथ जीवन रेखा से कोई भाग्य रेखा शनि स्थान के नीचे से निकलना परम आवश्यक है, अन्यथा भाग्य रेखा उतना उत्तम फल प्रदान नहीं करती, परन्तु भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर यह अनिवार्य नहीं है।
उत्तम भाग्य रेखा वाले व्यक्ति जिस घर में जन्म लेते हैं, वह दिन पर दिन प्रगति करते हैं, रूके हुए काम तथा झंझट दूर होकर विषम परिस्थितियां भी सुगम
हो जाती हैं, ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है, धन व सौभाग्य चित्र-97
बढ़ता जाता है। इन्हें धन, स्त्री, सन्तान, सम्पत्ति आदि का सुख मिलता है। (चित्र-98) ऐसे व्यक्ति महत्वाकांक्षी, प्रतिष्ठित, प्रसिद्ध, कुल के मुख्य पुरुष, भरणपोषण करने वाले, नौकरों को सुख देने वाले तथा सम्मानित होते
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ऐसी रेखा बहुत कम व्यक्तियों के हाथों में पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति धूल में पैदा होकर भी ख्याति प्राप्त करते हैं। यह असाधारण मानव होने का लक्षण है।
अन्य रेखाएं दोषपूर्ण होने पर यदि भाग्य रेखा बहुत अच्छी हो और हाथ भी उत्तम हो तो इन्हें लगातार सफलता मिलती जाती है। अन्य दोषों के कारण कष्ट तो
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प्राप्त होते हैं, परन्तु संघर्ष व बल से सफलता प्राप्त होती हैं। इस दशा में किसी के याद दिलाने पर इतना अवश्य कह देते हैं कि हमारी ईश्वर ने मदद की है। अन्य रेखाओं में दोष होने के कारण, इन्हें मानसिक शान्ति तो नहीं मिलती, परन्तु जो सोचते हैं पूरा हो जाता है। .
पतला हाथ होने पर अच्छी भाग्य रेखा लाभप्रद नहीं होती, उल्टा हानि करती है, तो भी इन्हें रोटी अवश्य मिलती रहती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों को लड़ाने, बिना मतलब झगड़े बाजी में पड़ने, निरर्थक बहस करने तथा दूसरों को समझाने आदि कार्यों में अपना समय बरबाद करते हैं। नशीली वस्तुओं के सेवन तथा वेश्यागमन आदि से भी अपना जीवन खराब करते देखे जाते हैं। ___ अच्छी भाग्य रेखा वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी। अच्छा रहता है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर स्वास्थ्य खराब तो रहता है, परन्तु कोई विशेष नहीं। एक सुन्दर भाग्य रेखा होने पर अंगूठे के मूल में जितनी मोटी रेखाएं होती हैं, व्यक्ति उतने ही काम बदलता है या उतने ही काम एक साथ करता है। सूर्य पर पाई जाने वाली रेखाओं से भी यही अनुमान लगाया जाता है। भाग्य रेखा उत्तम होने पर व्यक्ति का जिससे भी विशेष सम्पर्क हो, जैसे कोई प्रेम-मित्रता आदि होते =1 हैं, बड़े काम पर लगे होते हैं या बड़े घर के होते हैं। चित्र-98 हाथ यदि थोड़ा भी कठोर हो तो ऐसे व्यक्ति टेक्नीकल काम करने वाले और कोमल होने पर बौद्धिक कार्य करने वाले जैसे क्लर्क, वक्ता, एकाउन्टेन्ट आदि होते हैं। बुध का नाखून चौकोर होने पर हाथ से सभी ग्रह उठे हों तो सलाहकार या अध्यापक का कार्य करते हैं। मस्तिष्क रेखा में अन्य शाखाएं हों और हाथ कोमल हो तो राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले होते हैं।
समकोण हाथ में अच्छी भाग्य रेखा, अत्याधिक गुणकारी होती है। ऐसे व्यक्ति धनी-मानी तथा प्रतिष्ठित होते हैं।
उत्तम भाग्य रेखा यदि मोटी हो तो व्यक्ति शोषण करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति के साथ मिलकर व्यापार नहीं करना चाहिए। ये लोभी होते हैं और दूसरे का धन हड़प कर के धनी बनते हैं।
भाग्य रेखा जीवन रेखा के साथ घूम कर शुक्र को घेरती हो तो ऐसे व्यक्ति व्यापार ही करते हैं, परन्तु यदि चन्द्रमा की ओर मुड़ती हो तो नौकरी करते हैं। इसकी शाखाएं दोनों ओर जाने पर व्यापार तथा नौकरी दोनों ही करते हैं।
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उत्तम भाग्य रेखा वाले व्यक्ति आरम्भ से ही स्थायी होते हैं। इनके जीवन में अधिक उलट-फेर नहीं होते और प्रत्येक परिवर्तन नई आशा व उन्नति लेकर आता
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शाखान्वित भाग्य रेखा =
मूल भाग्य रेखा से कभी-कभी नई शाखाएं निकलती हैं या स्वयं ही भाग्य रेखा दो या अनेक भागों में विभक्त हो जाती हैं। इस प्रकार की भाग्य रेखा को शाखान्वित भाग्य रेखा कहते हैं (चित्र-99)।
जिस आयु में भाग्य रेखा से शाखा निकलती है, उस समय के दौरान कार्य में परिवर्तन, उन्नति, नौकरी में तरक्की, व्यापार में लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति हर . समय नई-नई बातें सोचते रहते हैं। उत्तम हाथ होने पर दिन-प्रतिदिन प्रगति करते जाते हैं। ____ भाग्य रेखा से कोई रेखा निकल कर सूर्य पर जाती है, उस आयु में व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है, जिससे उसकी प्रसिद्धि होती है और यदि कोई शाखा बृहस्पति पर गई हो तो वह उच्च पद प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति जो भी इच्छा करते हैं, वह पूरी हो जाती
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भाग्य रेखा से बुध पर गई हुई शाखा व्यापार सम्बन्ध में उन्नति का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति उत्तम सलाहकार होते हैं। ये स्वयं इन्जीनियर, टेक्नीकल काम करने वाले तथा अपने कार्य के विशेषज्ञ होते हैं। हाथ जितना ही उत्तम कोटि का हो फल भी उसी के अनुसार कहना चाहिए।
भाग्य रेखा पर शनि के नीचे अर्थात् अन्त में शाखा हो तो बहुत उत्तम लक्षण है। किसी भी आयु में इसका फल हो सकता है। अन्य रेखाओं में जब भी उन्नति के लक्षण आरम्भ होते हैं, तभी यह द्विभाजन अपना चमत्कार दिखाता है। ऐसे व्यक्ति पहले कितने भी दुःखी रहे हों बुढ़ापे में अवश्य ही धन, सन्तान व सम्पत्ति का सुख प्राप्त करते हैं और बुरे दिनों को शीघ्र ही भूल जाते हैं। इस प्रकार के द्विभाजन से आगे होने वाली घटनाओं को जानने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है और कम से कम छ: महीने पहले ही किसी घटना का आभास हो जाता है।
जब भाग्य रेखा शनि के नीचे तीन भागों में विभक्त होकर त्रिशूल बनाती हो तो ऐसे व्यक्ति शिव उपासक होते हैं।
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== जीवन रेखा से निकलने वाली भाग्य रेखा ==
जावन रेखा से भाग्य रेखा का निकलना तो स्पष्ट है, परन्तु कुछ हाथों में भाग्य रेखा किसी और स्थान से निकलती है और इसका सम्बन्ध किसी अन्य रेखा के द्वारा जीवन रेखा से होता है। इस प्रकार की भाग्य रेखा सम्मिलित फल प्रदान करती है (चित्र-100)।
जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर व्यक्ति पूर्णतया स्वनिर्मित होते हैं। ये न्याय से धन कमाते हैं। भाग्य रेखा पतली होने पर निश्चय ही यह गुण होता.. है। इन्हें अपना जीवन निर्माण करने की सतत आकांक्षा रहती हैं और इस दिशा में सतत प्रयत्न करते हैं। ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी करते देखे जाते हैं तथा बाद में अवसर मिलने पर व्यापार में आ जाते हैं। ये आत्म विश्वासी तथा परिवार से प्रभावित होते हैं, फलस्वरूप ऐसे कार्य नहीं करते जिससे इनकी या इनके परिवार ---17 की प्रतिष्ठा को आंच आती हो, परन्तु भाग्य रेखा निर्दोष
चित्र-100 होनी आवश्यक है। साथ ही यह देख लेना चाहिए कि बृहस्पति की उंगली, सूर्य की उंगली से अधिक छोटी तो नहीं है। भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर, यदि बृहस्पति की उंगली भी छोटी हो तो सम्मान से गिरकर भी कार्य कर डालते हैं तथा लांछन एवं चरित्र की परवाह नहीं करते। ऐसे व्यक्ति परोपकारी होते हैं, यदि उंगलियां अधिक छोटी व पतली नहीं हों तो कोई न कोई परोपकार का कार्य अवश्य करते देखे जाते हैं। भाग्य रेखा निर्दोष होने पर ये किसी संस्था के अवैतनिक सदस्य या पदाधिकारी भी होते हैं जिन्हें सामाजिक कार्यों में रुचि होती है।
ऐसे व्यक्ति दूसरों को देखकर, अपना काम बन्द करके उस प्रकार का कार्य नहीं करते क्योंकि चलते हुए काम को छोड़कर दूसरा कार्य आरम्भ करना ठीक नहीं समझते। किसी भी प्रकार का जोखिम उठाना इनकी आदत नहीं होती, परन्तु स्वतन्त्र जीवन के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहते हैं। किसी से दबकर काम करना या किसी के सामने हाथ फैलाना इनके बस की बात नहीं।
जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर, व्यक्ति का अधिकांश चरित्र उसके अपने मस्तिष्क से नियन्त्रित रहता है। यद्यपि ये परिवार से प्रेम करते हैं, लम्बे समय तक परिवार की सेवा एवं उसके लिए त्याग भी करते हैं व सम्मिलित परिवार चलाते हैं,
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तो भी काम करने का इनका अपना ही ढंग होता है। ये नहीं चाहते कि सम्मिलित परिवार टूट जाए परन्तु भाग्य रेखा टूटने पर परिवार से अलग होना पड़ता है। बृहस्पति की उंगली छोटी हो तो इन्हें अपने त्याग व सेवा का भी श्रेय नहीं मिलता।
ऐसे व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से जीवन बनाते हैं और इस कार्य के लिए इन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता है। भाग्य रेखा जैसे-जैसे पतली होकर जीवन रेखा से दूर होती जाती है, इनकी आर्थिक स्थिति सुधरती जाती है। देखा गया है कि ऐसे व्यक्तियों का जीवन 35 वर्ष की आयु के पश्चात् ही सन्तोषजनक हो पाता है। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि भाग्य रेखा उत्तम हो तो धन तो कमाते हैं, परन्तु हानि या व्यय के कारण बचा नहीं पाते।
यदि भाग्य रेखा ऊपर से शाखायुक्त हो तो किसी मकान से गिरते हैं। ऐसे व्यक्तियों की गर्दन पर बाईं ओर तिल होता है। कभी-कभी तिल के स्थान पर मस्सा आदि का चिन्ह भी देखा जाता है जोकि इस लक्षण की मुख्य पहचान व पुष्टि है।
ऐसे व्यक्तियों की अन्य रेखा में विशेष दोष न हो तो धनी होते हैं। साथ ही यह भी कहना होगा कि इनकी स्थिति धीरे-धीरे अपने पुरुषार्थ से ही सुधरती है। एकदम कोई बहुत बड़ा परिर्वतन किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही आता देखा जाता है जैसे तीन रेखाओं में एक ही आयु में त्रिकोण या भाग्य रेखा से दो सूर्य रेखाएं निकलने आदि पर। इन व्यक्तियों के मंगल क्षेत्र में चतुष्कोण होने पर साइकिल, मोटर साइकिल या मकान की सीढ़ियों से गिरते हैं। ये सट्टा, जुआ या लाटरी में रूचि लेते हैं। दोनों हाथों में भाग्य रेखा, जीवन रेखा से निकले तो इनके पिता भी स्वनिर्मित होते हैं और इन्हें भी जीवन में संघर्ष करना पड़ता है।
जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा, जीवन रेखा के समीप चलकर कुछ दूर तक जाती हो तो इस आयु के पश्चात् ही जीवन में सफलता मिल पाती है। ऐसे व्यक्तियों के परिवार वाले माता-पिता आदि लालची होते हैं और परिस्थिति वश उनकी सहायता करनी पड़ती है।
== भाग्य रेखा का जीवन रेखा के पास से निकलना
इस प्रकार की भाग्य रेखा, जीवन रेखा के पास से निकल कर शनि पर जाती है, परन्तु इसका उदय जीवन रेखा से अलग होता है और किसी रेखा के द्वारा जीवन रेखा से इसका सम्बन्ध नहीं बनता (चित्र-101)।
यह बात बहुत ही ध्यान से देख लेनी चाहिए कि यह भाग्य रेखा, किसी मोटी
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या पतली रेखा के द्वारा जीवन रेखा से तो सम्बन्धित नहीं है अन्यथा इसका फल जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा जैसा ही होता है।
जिस आयु तक यह भाग्य रेखा मोटी होती है उस आयु तक ये व्यक्ति लापरवाह देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को विश्वास-पात्र मित्र मिलते हैं, जिनसे इन्हें लाभ होता है, क्योंकि स्वयं भी मित्र के लिए त्याग करते। हैं और उनके परिवार को अपना परिवार समझते हैं। ये नये मार्ग का निर्माण करके चलते हैं फलस्वरूप परिवार में होने वाले कार्य के अतिरिक्त कोई नया धन्धा करते हैं। इन्हें दूसरों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती तो भी इनसे सम्बन्धित व्यक्ति इन्हें सहयोग देने को तैयार रहते हैं। मस्तिष्क रेखा भी जीवन रेखा से अलग हो तो निश्चय ही किसी का सहयोग नहीं लेते या इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
चित्र-101 ऐसे व्यक्ति स्वतन्त्र आदत के होते हैं। मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा से अलग हो, अंगूठा कम खुलता हो या मोटा व झुकने वाला न हो तो ये स्वतन्त्र के स्थान पर स्वछन्द स्वभाव के होते हैं। जिस समय तक भाग्य रेखा मोटी होती है, उस समय
तक अपने माता-पिता के लिए सिर-दर्द होते हैं। किसी बात को न मानना, अपनी चलाना, दूसरे की बुराई करना तथा आलोचना करना, क्रोध आने पर अपमान कर देना, इनका स्वभाव होता है।
स्वतन्त्र भाग्य रेखा की स्थिति साधारणतया जीवन रेखा से दूर ही होती है। अत: सिद्धान्ततः इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी ही रहती है। इनका सारा परिवार उन्नति करता है एवं घर में कई-कई आय के साधन पाये जाते हैं।
यदि यह भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती चित्र-102
हो तो ये छोटी आयु में ही विदेश चले जाते हैं। यहां यह ध्यान रखने की बात है कि भाग्य रेखा दोनों हाथों में ही मस्तिष्क रेखा पर रुकनी चाहिए, और ठीक एक ही बिन्दु पर नहीं रुकनी चाहिए। यदि भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा पर एक बिन्दु पर रुकती हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है, ऐसे व्यक्तियों की बृहस्पति की उंगली छोटी होती है।
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H.K.S-11
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स्वतन्त्र मस्तिष्क रेखा होने पर, यदि मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर हो तो एक साथ कई-कई कार्य करते देखे जाते हैं। कुछ भी हो, ये अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने की दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील होते हैं और कर भी लेते हैं।
इस दशा में यदि भाग्य रेखा पूरी की पूरी मोटी हो व ग्रह उठे हों तो व्यक्ति बहुत लोभी होता है। ऐसे व्यक्ति के साझे में व्यापार नहीं करना चाहिए क्योंकि जिसके साथ व्यापार करते हैं, उसे चूसकर अपना घर भर लेते हैं, परन्तु ध्यान रहे कि यह भाग्य रेखा, हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा पर न रुक कर सीधी पार हो जानी चाहिए। ये चोर व सीना जोर होते हैं।
स्वतन्त्र मस्तिष्क रेखा के साथ अंगूठा चौड़ा हो, मस्तिष्क रेखा से अधिक दूर से निकलने पर व्यक्ति का स्वभाव घमंडी व उग्र होता है। ऐसे व्यक्ति अति स्पष्ट वक्ता व हाथ कोमल होने पर आलसी होते हैं। हाथ मजबूत होने पर आलसी तो नहीं होते परन्तु इधर-उधर घूमकर समय बरबाद करते हैं। किसी की शिक्षा मानना इनके स्वभाव के विपरीत होता है।
अंगूठा लचीला, लम्बा व पतला हो, उंगलियां पतली, छोटी व सरल तथा भाग्य रेखा पतली होने पर लक्षणों की अधिकता के अनुसार व्यक्ति में सुधार होता जाता है।
भाग्य रेखा का शनि क्षेत्र से निकलना
हाथ में शनि का क्षेत्र शनि की उंगली के नीचे कलाई तक होता है। इस क्षेत्र से निकली हुई भाग्य रेखा बहुत ही उत्तम श्रेणी की मानी जाती है। देखने में आया है कि यह भाग्य रेखा चन्द्रमा के आस-पास से न निकल कर ऊपर से निकलती
(चित्र - 103 ) । यह देर से आरम्भ हुई, भाग्य रेखा
जैसी होती है। इसका कोई भी सम्बन्ध जीवन रेखा से नहीं होता अर्थात यह किसी रेखा या अन्य चिन्ह के द्वारा जीवन रेखा से नहीं जुड़ती व 24 से 26 वर्ष की आयु में आरम्भ होती है। इस प्रकार की भाग्य रेखा को हम शनि क्षेत्र से निकली भाग्य रेखा कहते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत ही प्रगतिशील, गणमान्य, धनी व महान होते हैं। इस भाग्य रेखा के आरम्भ होने की आयु से ही, ये उन्नति आरम्भ करते हैं। इन्हें अपना जीवन स्वयं बनाना पड़ता है। भाग्य रेखाएं ऐसे हाथों में एक से अधिक हों तो बहुत ही धनवान होते हैं व
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चित्र-103
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योग्यता से ही उन्नति करते हैं तथा इन्हें किसी की सहायता की कभी आवश्यकता नहीं पड़ती तो भी दूसरे व्यक्ति अनायास ही इनकी सहायता करते हैं। ये कुल-दीपक होते हैं।
ऐसे व्यक्ति स्वयं तो महान होते हैं। इनके मित्र या सम्बन्धी सभी धनी, प्रभावशाली, आनन्द से रहने वाले एवं प्रतिष्ठित होते हैं। यह भाग्य रेखा एक विशेष प्रकार की भाग्य रेखा होती है जो बहुत ही कम हाथों में पाई जाती है। उन्नति की दृष्टि से इनके गुणों का बखान नहीं किया जा सकता, हाथ की उत्तमता के अनुसार ऐसे व्यक्ति अतुलनीय उन्नति कर सकेंगे, ऐसा कहना चाहिए।
भाग्य रेखा का मस्तिष्क रेखा से निकलना
कई बार भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा से उदय होकर शनि की ओर जाती है। देखा जाता है कि ऐसे हाथों में जीवन रेखा या अन्य स्थान से उदित होने वाली भाग्य रेखा भी होती है। चमसाकार, समकोण, आदर्शवादी हाथों में तो भाग्य रेखा की आवश्यकता ही नहीं होती, ऐसे हाथ भाग्य रेखा के न होने पर भी उसी प्रकार फल देते हैं (चित्र-104)। ___हाथ में मुख्य भाग्य रेखा न होने पर केवल मस्तिष्क रेखा से ही भाग्य रेखा का उदय ह्ये तो यह बहुत ही महत्व की हो जाती है। यदि हाथ व अन्य चित्र-104
लक्षण ठीक हो तो पहले की भांति सुचारू रूप से चलता रहता है, परन्तु विशेष उन्नति इस भाग्य रेखा के निकलने की आयु से ही करते हैं। इसका फल 35 वर्ष के पश्चात् व उस आयु से होता है, जिसमें यह रेखा मस्तिष्क रेखा से निकलती है। ____ हाथ में यह उत्तम लक्षण माना जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने ही मस्तिष्क और अपने ही ढंग से कार्य करके धन व प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। हाथ में दूसरे लक्षण भी ठीक हों तो बहुत ही योग्य और प्रगतिशील
सिद्ध होते हैं तथा विलक्षण व मिलनसार होते हैं। जिस --
आयु में मस्तिष्क रेखा से यह रेखा निकलती है, उस
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आयु से भाग्योदय होकर व्यक्तिगत उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। उस आयु में ये कोई ऐसा कार्य करते हैं, जो इन्हें बहुत सफल बना देता है। इस समय से पहले कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। ऐसे हाथों में दूसरी भाग्य रेखा भी हो तो पहले भी इन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं परन्तु नई भाग्य रेखा के उदय की आयु से विशेष प्रगति करते हैं।
भाग्य रेखा का चन्द्रमा से निकलना
यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इसमें भाग्य रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होती है। सिद्धान्ततः यदि इसमें कोई दोष न हो तो जीवन रेखा से दूर होने के कारण उत्तम भाग्य रेखा मानी जाती है (चित्र-106)।
यह देखना चाहिए कि यह भाग्य रेखा, हृदय या मस्तिष्क रेखा पर न रुकी हो और चलते हुए जीवन रेखा के पास न गई हो अन्यथा कष्ट कारक सिद्ध होती है। साथ ही यह पतली भी होनी चाहिए। निर्दोष अवस्था में यह बहुत उत्तम लक्षण माना जाता है। यहां भी जीवन रेखा से शनि के नीचे कोई छोटी भाग्य रेखा निकलना आवश्यक है, इस प्रकार की भाग्य रेखा का फल उसी आयु से आरम्भ होता है, जिससे कि यह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है। चन्द्रमा से निकलने वाली भाग्य रेखा प्रायः
चित्र-106 जीवन रेखा के पास देखी जाती है। इस दशा में यह खराब फल देती है। यदि यह मस्तिष्क रेखा पर विशेषतया सूर्य के नीचे रुकती हो तो ज्यादा खराब फल देती है। ऐसे व्यक्ति 44 वर्ष की आयु तक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाते। अनेक काम बदलने के बाद भी हानि उठाते हैं। हृदय रेखा पर रुकने पर भी व्यक्ति को स्थायित्व देर से मिलता है क्योंकि ये निजी हितों के प्रति लापरवाह होते हैं और दूसरों के प्रभाव में शीघ्र ही आते हैं। अतः देर से ही अपने पैरों पर खड़े हो पाते हैं। चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर निर्दोष होकर, यदि शनि पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति मस्त स्वभाव के होते हैं व अंगूठा सख्त या कम खुलने वाला हो तो मनमानी करने वाले होते हैं। इनकी निर्णय शक्ति उत्तम होती है परन्तु यदि हाथ में अधिक रेखाएं हो तो अधिक देर तक सोचने की प्रवृत्ति होती है और निर्णय भी स्पष्ट नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों
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को दूसरों से स्वाभाविक ही सहायता मिलती है।
भाग्य रेखा का मंगल से निकलना
हाथ में मंगल दो स्थानों पर होता है । अंगूठे के पास और बुध की उंगली के नीचे। कभी-कभी अंगूठे वाले मंगल से भाग्य रेखा निकलकर, शनि की ओर जाती हुई देखी जाती है। वैसे तो यह भाग्य रेखा ही होती है, परन्तु देखने में ऐसी नहीं लगती। अतः सूक्ष्म निरीक्षण करके, इसका निर्णय कर लेना चाहिए। देखा गया है। कि बुध के मंगल से निकल कर कोई भाग्य रेखा शनि पर नहीं जाती । (चित्र - 107) |
इस प्रकार की भाग्य रेखा, बृहस्पति मुद्रिका का भी कार्य इसी स्थान पर करती है। यदि ऐसे व्यक्तियों को धर्म में विशेष रुचि हो तो ये इस विषय में अच्छी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें गुरूत्व शक्ति की प्राप्ति साधनावस्था में हो जाती है। यह लक्षण आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। साधारण साधकों के हाथों में ऐसे लक्षण नहीं मिलते। हाथ में दूसरे आध्यात्मिक लक्षणों को देखकर विशेषता व आयु का पता लगाया जा सकता है।
मंगल से भाग्य रेखा निकलने पर बड़ी आयु में संघर्ष के साथ जीवन बनता है, फिर भी ऐसे व्यक्ति अच्छी उन्नति कर जाते हैं।
मंगल से निकली भाग्य रेखा, यदि शनि पर जाती हो तो व्यक्ति चलती सवारी या जानवर आदि से टकराकर चोट खाता है। ये किसी वृक्ष से भी गिरते हैं। सटटे के काम में इन्हें हमेशा हानि होती है। इन्हें जीवन में टायफाइड बुखार एक से अधिक बार होता है।
चित्र - 107
मंगल से निकलकर भाग्य रेखा, शनि पर गई हो और हाथ भी भारी हो, जीवन रेखा निर्दोष व मस्तिष्क रेखा उत्तम हो तो व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण या क्रय के पश्चात् उन्नति करता है । पगड़ी पर ली हुई, खरीदी हुई या बनाई हुई सम्पत्ति इन्हें यहीं फल देती है । गोद या बख्शीश (दान) में प्राप्त हुई सम्पत्ति का भी यही फल होता है।
भाग्य रेखा का भाग्य रेखा से निकलना
अनेकों हाथों में भाग्य रेखा मुख्य भाग्य रेखा से निकलती हुई देखी जाती है।
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यह एक उत्तम लक्षण होने पर अचानक भाग्योदय होने का सूचक है। जिस आयु में यह रेखा भाग्य रेखा से निकलती है, कोई न कोई उत्तम कार्य किया जाता है जो कि पूरे जीवन को स्थायी कर जाता है। इस आयु से व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से जीवन यापन भी आरम्भ कर देता है। (चित्र 108 ) ।
भाग्य रेखा से भाग्य रेखा निकलने या भाग्य रेखा के होते हुए दूसरी भाग्य रेखा होने या शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यह जरूरी नहीं कि जिस आयु में भाग्य रेखा निकलती है, उसी आयु में लाभ भी हो, इसका फल जीवन में उससे पहले या बाद में या आयु भर मिलता रहता है। किन्तु मस्तिष्क रेखा, सूर्य रेखा या जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा का चमत्कार उसी आयु में प्रकट होता है, जिसमें यह निकलती है।
भाग्य रेखा से निकल कर भाग्य रेखा पहली भाग्य रेखा के साथ चलती हो या भाग्य रेखा के साथ कोई दूसरी भाग्य रेखा बिल्कुल सटी हुई हो तो उस आयु में कोई समानान्तर यौन सम्बन्ध या विवाह होता है। ऐसी भाग्य रेखा शुक्र उन्नत नहीं हो तो उस आयु में कार्य में उन्नति का लक्षण है, परन्तु जीवन व मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो और हृदय रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर नहीं मिलनी चाहिए। शुक्र सम होने पर दोहरे आय के साधन होते हैं, परन्तु शुक्र उन्नत होने पर दो स्त्रियां रखने का लक्षण हैं।
भाग्य रेखा का हृदय रेखा से निकलना
अनेक हाथों में भाग्य रेखा, हृदय रेखा से निकल कर शनि पर जाती है । देखा जाता है कि इसके साथ मुख्य भाग्य रेखा भी व्यक्ति के हाथ में होती है। मुख्य भाग्य रेखा में कोई दोष जैसे मस्तिष्क या हृदय रेखा पर रुकना आदि हो तो व्यक्ति 3540 या 50 वर्ष अर्थात् मुख्य भाग्य रेखा की आयु बीतने पर ही उन्नति करते हैं। हृदय रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर इसका फल 50 वर्ष की आयु के पश्चात प्राप्त होता है। हाथ में श्रेष्ठ मुख्य भाग्य रेखा होने पर, ऐसी भाग्य रेखाएं भी हो तो व्यक्ति विदेश व्यापार, विदेश यात्रा या नए कार्य के द्वारा लाभान्वित होता है। ऐसी भाग्य रेखाएं हाथ में अधिक भी देखी जाती हैं। ये रेखाएं जितनी पतली और सुडौल होती
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हैं, उत्तम मानी जाती हैं (चित्र-109)।
शनि पर इस प्रकार की रेखाएं अधिक संख्या में हों, और कटी-फटी हों तो व्यक्ति को गठिया रोग व अल्पायु में दांत खराब हो जाते हैं।
भाग्य रेखा, हृदय रेखा से निकल कर शनि स्थान पर जाती हो तो ऐसे व्यक्ति जीवन के उत्तरार्ध में उन्नति करते हैं। उसके बाद जीवन में सुख रहता है परन्तु हाथ उत्तम व जीवन रेखा घुमावदार होनी चाहिए। ये पहले भी उन्नति तो करते हैं परन्तु अधिक प्रगति इसके बाद ही होती है। जितनी भाग्य रेखाएं हृदय रेखा से निकली। होती हैं, उतने ही व्यापार या आय के साधन होते हैं।
चित्र-109 शनि के नीचे हृदय रेखा से भाग्य रेखा निकली हो तो ठेकेदारी, सटटा या आढ़त का काम जरूर होता है। ये भाग्य रेखाएं सम्पत्ति होने का निश्चित लक्षण हैं। जमीदारों व ऊंचे ओहदेदारों के हाथों में ऐसे चिन्ह होते हैं। शनि के नीचे त्रिकोण की आकृति इन भाग्य रेखाओं द्वारा बनती हो तो उस आयु में व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण करता है।
भाग्य रेखा का सूर्य रेखा से निकलना
कई बार सूर्य रेखा से भाग्य रेखा निकल कर शनि स्थान पर जाती हुई देखी जाती हैं। हाथ का आकार सुन्दर हो तो यह बहुत ही अच्छा लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों का भाग्योदय अचानक होता है तथा ये जीवन में ऐसा कोई कार्य करते हैं जिससे इनकी प्रसिद्धि होती है (चित्र-110)।
जीवन रेखा गोलाकार व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर धन कमाने का नया साधन आरम्भ होता है
और इसके बाद इनका जीवन पहले से सुगम हो जाता है। जो कार्य इस आयु में आरम्भ होता है, उसमें बड़ी सफलता मिलती है। इसकी उत्तमता हाथ पर निर्भर करती है। इस विषय में आयु का निर्णय भाग्य रेखा की उस आयु से लगाना चाहिए, जहां से यह रेखा, सूर्य रेखा से निकलती है। मस्तिष्क रेखा से पहले निकलने पर 35 वर्ष से पहले तथा मस्तिष्क रेखा और
हृदय रेखा के बीच से निकलने पर 35 वर्ष के पश्चात चित्र-110
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ही भाग्योदय होता है। मस्तिष्क या जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर, यदि सूर्य रेखा से भाग्य रेखा निकलती हो तो उस-उस आयु में यह लाभ होता है।
= जीवन रेखा से छोटी भाग्य रेखाएं निकलना =
जीवन रेखा का विस्तारपूर्वक अध्ययन करते समय जीवन रेखा से छोटी-छोटी पहली रेखाएं, जिन्हें हम रोमांच भी कह सकते हैं, शनि पर या शनि की ओर जाती देखी जाती हैं। ये रेखाएं छोटी या बड़ी दोनों प्रकार की होती हैं। कई बार तो ये शनि पर पहुंचती हैं और कई बार छोटी-छोटी रोम जैसी 1/4 इन्च लम्बी होती हैं। ये भाग्य रेखाएं बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। छोटी रेखाएं अस्थायी रूप में लाभ करती हैं तथा लम्बी रेखाएं स्थायी रूप से जीवन को प्रभावित करती हैं। इनके अतिरिक्त भी भाग्य रेखा जीवन रेखा से ठीक शनि के नीचे से उदय होकर शनि की ओर जाती है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण और शक्तिशाली रेखा है, मुख्य भाग्य रेखा न होने पर इसका विशेष महत्व होता है। (चित्र-111)।
जिस आयु में ये भाग्य रेखाएं निकलती हैं, उस आयु में जीवन में परिवर्तन व विकास का द्योतक होती हैं। ये व्यक्ति को कारोबार में उन्नति, नौकरी में होने पर पदोन्नति तथा नये शिशु का शुभ जन्म आदि की शुभ सूचना भी देती हैं। कभी-कभी ऐसी छोटी भाग्य रेखाएं जीवन रेखा में अनेक होती हैं। ऐसे व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं तथा शीध्र व लगातार सफलता
चित्र-111 प्राप्त करते हैं।
इन रेखाओं की संख्या एक या दो होने पर, यदि शनि के नीचे जीवन रेखा से निकली हों और कुछ मोटी हों व शनि की उंगली तक जाएं तथा मुख्य भाग्य रेखा हाथ में न हो तो ये मुख्य भाग्य रेखा ही मानी जाती है। यदि ऐसी रेखाएं बिना रुके निर्दोष होकर सीधी शनि पर जाती हों तो मुख्य भाग्य रेखा से भी महत्वपूर्ण होती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे व्यक्ति के हाथ में मुख्य भाग्य रेखा न होने पर इस प्रकार की रेखाएं हों तो व्यक्ति मुख्य भाग्य रेखा की तुलना में अधिक भाग्यशाली होता है। यदि ये रेखाएं दो हों और दोनों ही निर्दोष होकर शनि पर पहुंचती हों तो बहुत ही उत्तम लक्षण है। ऐसे व्यक्ति आरम्भ से ही सम्पन्न होते हैं तथा इन रेखाओं के निकलने की आयु से विशेष उन्नति करते हैं। हाथ अच्छा होने पर यह विशेष लक्षण माना जाता है। ऐसे व्यक्ति न्याय से धन कमाने वाले और किसी अन्य
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देश के सहयोग से उद्योग स्थापित करने वाले होते हैं। इन्हें धन, वाहन, सम्पत्ति आदि सभी सुखों की उपलब्धि होती हैं। ये व्यापार सम्बन्ध में विदेश यात्रा करते हैं और ऐसे अवसर इनके जीवन में अनेक बार आते हैं।
भाग्य रेखा का अन्त शनि पर
भाग्य रेखा का अन्त शनि, बृहस्पति या सूर्य पर होता है। शनि पर गई हुई भाग्य रेखा दोष रहित हो तो बहुत उत्तम मानी जाती है। विशेष भाग्य रेखा के साथ हाथ गुलाबी और भारी हो । भाग्य रेखा चन्द्रमा या शनि क्षेत्र से निकलने की दशा में यह विशेष उत्तम व सुख और सौभाग्य का लक्षण है। इस लक्षण से हाथ के मूल्यांकन में वृद्धि हो जाती है (चित्र - 112)।
शनि पर गई हुई भाग्य रेखा होने पर यदि हाथ कुछ कठोर हो व शनि नीचे से नुकीला या ऊपर से उन्नत हो तो व्यक्ति की रुचि बगीचे, खेती आदि में होती है। शनि की
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चित्र - 113
चित्र - 112
उंगली होने पर तो ऐसा अवश्य ही होता है। यह भाग्य रेखा मोटी भी हो तो घर में खेती का कार्य होता है। बायें हाथ में भाग्य रेखा मोटी होने पर व्यक्ति के वंश तथा दायें हाथ में होने पर स्वयं का खेती का योग होता है, दोनों ही हाथों में भाग्य रेखा गहरी हो व हाथ अच्छा हो तो वंशानुगत कृषि कार्य पाया जाता है। शनि मुद्रिका होने पर भी खेती या खनन सम्बन्धी कार्य करते हैं। ऐसे व्यक्ति भूमि में खोद कर कुछ निकालने, पत्थर की रोड़ी बनाने या मिटटी या रेत आदि का कार्य करते हैं।
भाग्य रेखा का अन्त बृहस्पति पर
मुख्य भाग्य रेखा का अन्त बृहस्पति पर बहुत कम देखने को मिलता है या तो यह भाग्य रेखा, जीवन रेखा से बृहस्पति के नीचे से निकल कर बृहस्पति पर जाती
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है या भाग्य रेखा ही शाखान्वित होकर बृहस्पति पर पहुंचती है।
__ जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलकर यदि बृहस्पति पर हो तो इच्छा रेखा कहलाती है, परन्तु ऐसी दो रेखाएं एक साथ होने पर भाग्य रेखाएं मानी जाती हैं। ऐसी दो रेखाएं होने पर व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं और 22/23 वर्ष की आयु में धनी हो जाते हैं।
मुख्य भाग्य रेखा बृहस्पति पर जाने की दशा में यह स्वाभाविक रूप से ही जीवन रेखा के पास आ जाती हैं अत: अशान्ति का कारण होती हैं। पारिवारिक क्लेश, मानसिक अशान्ति, झगड़े आदि इसके फल होते हैं। ऐसे व्यक्ति उत्तरदायित्व महसूस नहीं करते और सामीप्य की आयु तक घमंडी व असफल होते हैं। फलतः 35 वर्ष की आयु के पश्चात उन्नति करते हैं। ये स्वयं को बृहस्पति समझते हैं या बोलने की आदत कम होती है। यदि बृहस्पति अच्छा हो तो नौकरी ही करते हैं। नौकरी सम्मान-जनक होती है। इसमें इनके स्वतन्त्र अधिकार होते हैं एवं स्वामी की तरह से ही रहते हैं।
यदि भाग्य रेखा द्विभाजित होकर एक शाखा बृहस्पति पर जाए तो ऐसे व्यक्ति सफल, सम्मानित व उच्च पदस्थ होते हैं, परन्तु इसकी एक शाखा शनि पर जाना आवश्यक है।
= भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर
यह पहले भी दर्शाया जा चुका है कि भाग्य रेखा जितनी ही जीवन रेखा से दूर होती है उत्तम मानी जाती है परन्तु साथ ही यह भी देखने की बात है कि यह किसी रेखा पर रुकी नहीं होनी चाहिए (चित्र-114)।।
मोटी भाग्य रेखा होकर सीधी शनि पर जाती हो तो अड़चनें और संघर्ष अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति कमाते तो हैं, परन्तु बचत कम कर पाते हैं। ये लोभी भी अधिक होते हैं। पतली एवं दूर होने पर भाग्य रेखा अत्यन्त उत्तम फलदायी होती हैं। इनका व्यय, आय से सदा कम रहता है।
भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकल कर सूर्य के नीचे मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो जीवन रेखा से दूर तो होती है, परन्तु अच्छा लक्षण नहीं मानी जाती है। ऐसे व्यक्ति देर से स्थायित्व प्राप्त करते हैं। ये चित्र-114 लापरवाह, दूसरों पर भरोसा करने वाले, अस्थिर मस्तिष्क वाले होते हैं। यदि ऐसी रुकी हुई भाग्य रेखा पतली हो तो इतनी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता, काम चलता रहता है, परन्तु विशेष भाग्योदय 44 वर्ष के पश्चात ही होता है।
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जीवन रेखा से भाग्य रेखा दूर होने पर आरम्भ में थोडी कठिनाई तो होती ही है परन्तु इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी चलती रहती है। ऐसे व्यक्ति स्वयं जीवन बनाते हैं। आरम्भ में कुछ संघर्ष करके अपने आप ही उन्नति की ओर अग्रसर होकर प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। ये बुद्धिमान, जिम्मेदार तथा आलोचक होते हैं, परन्तु इनकी आलोचना निरर्थक नहीं होती जो भी कहते हैं, नाप तोल कर सही बात कहते हैं।
भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास =
भाग्य रेखा निकास के स्थान से जीवन रेखा के पास आने पर अन्तर कम हो जाता है तो इस प्रकार की भाग्य रेखा को जीवन रेखा के पास आई हुई रेखा मानते हैं। कभी-कभी तो इसकी दूरी आधा या चौथाई इंच तक ही रहती है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं इस दोष के फल का लगभग निराकरण कर देती हैं
(चित्र-115)।
यह भाग्य रेखा जीवन में कई प्रकार के झंझट या उतार-चढ़ाव का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति लिहाज अधिक करते हैं। इनका परिवार किन्हीं कारणवश इक्कठा रहता है और इन्हें सह-परिवार के साथ निर्वाह करना होता है। कुछ और नहीं तो इन्हें अपने परिवार से लगाव अधिक होता है। चाहते या नहीं चाहते हुए भी इन्हें अपने परिवार की लगातार सहायता करनी पड़ती है, जिससे स्वयं के निर्माण की ओर ध्यान नहीं जाता। कई बार घर के किसी उत्तरदायी व्यक्ति की
मृत्यु होने से परिवार का भार कन्धों पर आने पर भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है।
चित्र-115
= पतली भाग्य रेखा =
अन्य रेखाओं के अनुपात में भाग्य रेखा पतली होने पर उत्तम लक्षण है। अधिकतर देखने में आया है कि भाग्य रेखा आरम्भ में मोटी होकर आगे जाकर ही पतली होती है। यह पहले भी बताया जा चुका है कि भाग्य रेखा जितनी पतली व जीवन रेखा से दूर होती है, व्यक्ति उतना ही धनवान व भाग्यशाली होता है। भाग्य रेखा जैसे-जैसे पतली होती जाती है, व्यक्ति के सुख, धन एवं मानसिक शान्ति बढ़ते चले जाते हैं। मोटी भाग्य रेखा लालच की भावना बढ़ाती है, परन्तु पतली भाग्य रेखा उदारता जैसे
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गुण पैदा करती है। एक बात ध्यान रखने की है कि मोटी भाग्य रेखा पतली होने पर अधिक प्रभावशाली होती है। आरम्भ से ही पतली भाग्य रेखा इतनी उत्तम नहीं मानी जाती (देखें, चित्र-116)। ___भाग्य रेखा बहुत पतली होने पर बुध की उंगली टेढ़ी व हृदय रेखा जंजीर की तरह से हो तो व्यक्ति धोखेबाज होता है। यहां विशेष रूप से यह ध्यान देने की बात है कि भाग्य रेखा निकास से अन्त तक एकदम पतली व इतनी पतली होनी चाहिए कि वह मिटी-सी दिखाई दे। बुध पर जाली या क्रास का चिन्ह होने पर भी व्यक्ति धोखेबाज़ व चालाक होता है। भाग्य रेखा मोटी से धीरे-धीरे पतली होने की दशा में ऐसा नहीं कहा जा सकता, चाहे दूसरे लक्षण मिलते हों। ऐसे व्यक्तियों को यही कहना पड़ेगा कि इनका भाग्योदय भाग्य रेखा पतली होने के समय से आरम्भ होगा।
पतली भाग्य रेखा वाले व्यक्ति साधु-प्रकृति के होते हैं। भले ही कुसंग में पड़ कर कुछ समय तक इनके चरित्र में दोष रहे। मगर साधारणतया सरल प्रकृति के ही होते हैं। इनमें बौद्धिक विशेषताएं पाई जाती हैं। अखाद्य पदार्थ जैसे मांस, भांग व मदिरा आदि सेवन की आदत इन लोगों को नहीं होती, न ही इनमें चरित्र
चित्र-116 दोष होता है। ये शान्त स्वभाव, परोपकारी व दयालु होते हैं तथा बनाव श्रृंगार आदि भी पसन्द नहीं करते हैं।
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= टूटी भाग्य रेखा
भाग्य रेखा टूटी होना इसका एक दोष है। यह उस आयु में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असन्तोष का लक्षण है। भाग्य रेखा, हाथ में 5 प्रकार से टूटी हुई पाई जाती
1. टुकड़े अलग-अलग होकर दो या अधिक खण्ड हो जाते हैं (चित्र-117)। 2. दो टुकड़े टूट कर एक दूसरे को ढकते हैं अर्थात् एक टुकड़े की समाप्ति के पूर्व दूसरा टुकड़ा प्रारम्भ होता है। 3. दो टुकड़ों को कोई तीसरा टुकड़ा ढक लेता है। 4. जब टूटी भाग्य रेखा के साथ एक दूसरी भाग्य रेखा चलती है और एक में दोष अर्थात टूटी हुई व दूसरी निर्दोष होती है।
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5. जब एक भाग्य रेखा समाप्त होकर उससे काफी आगे चलकर दूसरा टुकड़ा आरम्भ होता है।
टूटी भाग्य रेखा के दोनों टुकड़े एक जैसे गहरे हों तो यह हाथ में बहुत खराब लक्षण है। इससे जीवन में महान संकट उपस्थित होता है। पति-पत्नी दोनों जिददी होते हैं व इसी कारण से तलाक हो जाता है। भाग्य रेखा जब टूट-टूट कर चलती हो तो जीवन साथी से विछोह हो जाता है। 1. जब भाग्य रेखा टूट कर अलग-अलग टुकड़ों में विभक्त होती है तो कार्य पूर्णतया रुक जाता है तथा कुछ समय पश्चात पुनः आरम्भ होता है। 2. जब भाग्य रेखा टूट कर टुकड़े एक-दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं तो भी झंझट या परेशानी रहती है। 3. तीसरे प्रकार के लक्षण जिसमें दो टुकड़ों को तीसरी रेखा ढकती है, झंझट तो रहता है, परन्त किसी दसरे चित्र-117 व्यक्ति के बीच में पड़ने से पुनः सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। 4. चौथी प्रकार का लक्षण होने पर यदि एक भाग्य रेखा पूरी तथा एक टूटी हो तो केवल परेशानी आती है, कोई बड़ी घटना नहीं होती। 5. पांचवी प्रकार का लक्षण होने पर व्यक्ति की आय वृद्धि रूक जाती है।
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= भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा =
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चन्द्रमा या उसकी ओर से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा पर मिलती हो तो इसे प्रभावित रेखा कहते हैं। इनकी संख्या हाथ में एक या अधिक भी होती है। कभी-कभी जब भाग्य रेखा टूटती है तो उसके ऊपर वाले टूटे हुए भाग का झुकाव चन्द्रमा की ओर होता है। ऐसे भाग्य रेखा के टुकड़े प्रभावित भाग्य रेखा का ही कार्य करते हैं। (चित्र-118)।
प्रभावित रेखा पतली और छोटी होने पर इसका सूक्ष्म दर्शन अति आवश्यक है, अन्यथा फल गलत होने की सम्भावना रहती है अतः सावधान होकर इसका निर्णय करना चाहिए।
चित्र-118
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प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात भाग्य रेखा पर इसका जैसा भी प्रभाव पड़ता है अर्थात् भाग्य रेखा के स्वरूप में कितनी कमजोरी या पुष्टता आती है, उसके अनुसार
ही प्रभावित रेखा का फल होता है।
__ कई बार प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात भाग्य रेखा टूट जाती है या प्रभावित रेखा भाग्य रेखा को काट देती है (चित्र-119)। इस दशा में प्रभावित रेखा का प्रभाव भाग्य रेखा पर अच्छा नहीं होता।
भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा के गठन में कोई अन्तर न होकर गठन वैसा ही रहता हो या इसमें पुष्टता आती हो तो उत्तम फल कारक होती है जबकि प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात्
भाग्य रेखा में दोष आता हो (चित्र-119) तो भाग्य चित्र-119
रेखा पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता, यह समस्याकारक होती है।
== समानान्तर व सटी हुई भाग्य रेखा =
कभी-कभी भाग्य रेखा के साथ दूसरी सटी हुई रेखा देखने में आती है (चित्र-120)। यदि यह रेखा सटी हुई न होकर 1-2 मि.मी. से अधिक दूर हो तो दूसरी भाग्य रेखा मानी जाती है। बिल्कुल पास होने पर यह भाग्य रेखा तो होती ही है परन्तु चरित्र की दृष्टि से अच्छी मानी जाती है। हृदय रेखा से अलग रेखा का चरित्र सम्बन्धी दोषपूर्ण फल नहीं होता।
भाग्य रेखा के साथ सटी हुई इस प्रकार की रेखा उस आयु में किसी सम्पर्क, सम्बन्ध या विवाह का लक्षण है, परन्तु इसका निर्णय जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा की उत्तमता पर निर्भर करता है। हृदय रेखा की कोई शाखा उस आयु में मस्तिष्क रेखा पर नहीं मिलनी चाहिए, अन्यथा लाभ के बदले कार्य में रुकावट व हानि होगी। हाथ के लक्षणों के अनुसार यदि व्यक्ति वासनाप्रिय हो तो समानान्तर सम्बन्ध होते हैं । यह
चित्र-120 ध्यान रखना आवश्यक है कि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण या हाथ आदर्शवादी होने पर
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अपने सम्मान पर ठेस लगने के डर से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करते तो भी इस आयु में काम - रुचि बढ़ जाती है।
हृदय रेखा में द्वीप या हृदय रेखा का अन्त शनि या शनि और बृहस्पति की उंगली के बीच होने पर उपरोक्त प्रकार की दोहरी भाग्य रेखा उस आयु में समानान्तर यौन सम्बन्ध व जोरदार बदनामी का निर्देश करती है। इस दशा में यदि हृदय रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं मस्तिष्क रेखा की ओर गईं हों या भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखाएं मिली हों तो, ऐसी स्त्रियां पति को छोड़कर प्रेमी के साथ चली जाती हैं चाहे पहले पति से सन्तान ही क्यों न हो। इसका उद्देश्य केवल वासना पूर्ति होता है। हृदय रेखा उंगलियों के पास व हृदय रेखा में रोमांच भी हो तो ये कामांध होती हैं।
भाग्य रेखा में द्वीप
वैसे तो किसी भी रेखा में द्वीप एक दोषपूर्ण लक्षण है, परन्तु भाग्य रेखा में द्वीप विशेष महत्व रखता है। इसमें यह अधिक दोषपूर्ण फल करता है । ऐसे व्यक्ति को शरीर, धन, जीवन साथी व परिवार सम्बन्धी परेशानी जीवन भर थोड़ी-बहुत रहती हैं। द्वीप के समय में तो अत्याधिक अशान्ति रहती है। कभी-कभी इस समय आत्महत्या या घर छोड़ कर चले जाने का विचार भी मस्तिष्क में आता है (चित्र 121 ) । भाग्य रेखा में दो प्रकार के द्वीप पाए जाते हैं। एक
तो सामान्य द्वीप जो भाग्य रेखा को चीर कर बनते हैं। दूसरे ऐसे द्वीप होते हैं जो अन्य रेखाओं, प्रभावित रेखा या जीवन रेखा की शाखा आदि से मिल कर बनते हैं । इसका आकार चतुष्कोण जैसा होता है परन्तु यह द्वीप का ही फल करता है। हाथों में यह अधिकतर 18 से 23 वर्ष तक देखा जाता है । परन्तु किसी-किसी हाथ में 28/29 वर्ष की आयु तक भी होता है। यह द्वीप किन्ही अन्य रेखाओं द्वारा कटा हो तो अधिक दोषपूर्ण होता है । यही उत्तम हाथों में सुन्दर व कटा हो तो श्रेष्ठ फल कारक होता है। इसे इस दशा में यौनि मुद्रा कहते हैं । इस द्वीप की आकृति देखने में सुन्दर हो तो यह अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होता है। साधारणतया दोनों प्रकार के द्वीपों के फल में कोई विशेष अन्तर नहीं है।
चित्र - 121
भाग्य रेखा में द्वीप होने पर जीवन साथी के चरित्र पर शंका रहती है। कभी-कभी इस बात का एक-दूसरे को पता भी होता है। शादी से पहले ऐसे व्यक्तियों का किसी
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से सम्पर्क रहता है। ऐसे व्यक्ति हस्तमैथुन करते हैं। इनके भाई, बहन, बहनोई आदि का चरित्र भी शंकापूर्ण होता है। ऐसे व्यक्तियों की ससुराल का परिवार बड़ा होता
== भाग्य रेखा के आरम्भ में द्वीप =
भाग्य रेखा के आरम्भ में द्वीप छोटा, बड़ा कैसा भी होने पर बचपन में ऐसे व्यक्ति के परिवार का कोई न कोई उत्तरदायी व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है और इनके पैदा होने के पश्चात् घर की स्थिति संकटपूर्ण हो जाती है (चित्र-122)। __दोनों हाथों में भाग्य रेखा का निकास द्वीप से हो और मस्तिष्क रेखा के ठीक आरम्भ में द्वीप हो तो ऐसे व्यक्ति दूसरों से पैदा होते हैं। इनका पिता वह नहीं होता जिससे इनकी माता विवाह करती हैं। यह परजात योग है। एक को छोड़कर अन्य के साथ विवाह करने वाली तथा चरित्रहीन स्त्रियों के हाथों में भी यही चिन्ह होते हैं। यह द्वीप अन्य रेखाओं से मिलकर बना हुआ होता है। यह गोल या किसी भी प्रकार का हो सकता है।
इस प्रकार के द्वीप से पत्नी या पति के चरित्र में दोष पाया जाता है। विवाह सम्बन्ध भी मधुर नहीं रहते। जिस आयु तक यह द्वीप रहता है, काम में परेशानी, विवाह में रुकावट, विवाह होने पर जीवन साथी के स्वास्थ्य में दोष रहता है। यह भाग्य रेखा का एक मुख्य दोष है, अत: दोषपूर्ण भाग्य रेखा के सभी फल यहां लागू होते हैं। इसका कुछ न कुछ प्रभाव जीवन भर रहता है। यदि इस द्वीप को कोई रेखा काटती हो तो उस आयु में रोटी के लाले पड़ जाते हैं। स्थान परिवर्तन, हानि, किसी की मृत्यु या ऑपरेशन आदि की घटनाएं होती हैं। यह समय जीवन में सबसे अधिक कष्ट-कारक होता है। जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर सब समस्याएं हल हो जाती हैं और द्वीप का दोषपूर्ण फल कम हो जाता है। ऐसे व्यक्ति अन्तिम जीवन में रोगी रहते हैं।
भाग्य रेखा के आरम्भ में बड़ा द्वीप :
चित्र-122
भाग्य रेखा के आरम्भ में द्वीप के विषय में पहले भी लिखा जा चुका है,
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परन्तु यह द्वीप एक विशेष प्रकार का द्वीप होता है। यह भाग्य रेखा में बना हुआ नहीं होता वरन् अन्य रेखाओं से मिलकर त्रिकोण, चतुष्कोण या अन्य प्रकार के आकार का निर्माण, भाग्य रेखा के आरम्भ में हो जाता है । यह महत्वपूर्ण लक्षण है। यह द्वीप भाग्य रेखा में कभी-कभी तो 28 वर्ष की आयु तक देखा जाता है (चित्र - 123) अन्यथा साधारणतया चमसाकार हाथों में तो यह पाया ही जाता है । इस द्वीप का सबसे अधिक दोषपूर्ण फल उस आयु में होता है, जिसमें इसकी चौड़ाई सबसे अधिक होती है। तत्पश्चात् जैसे-जैसे यह पतला होता जाता है, दोषपूर्ण फलों का प्रभाव कम होता जाता है। जिस आयु तक यह द्वीप होता है, व्यक्ति अपने कार्य, व्यवहार, आदत व घरेलू वातावरण में कुछ न कुछ अशान्ति अनुभव करता रहता है।
चित्र - 123
यदि इस द्वीप की बनावट सुन्दर हो तो यह अधिक हानि नहीं करता । सुन्दर होने की दशा में भी यदि भीतर से किन्हीं रेखाओं के द्वारा कटा-फटा हो तो अधिक हानिकारक होता है। इस द्वीप के बीच से होकर भाग्य रेखा न जाती हो अर्थात् यह द्वीप भाग्य रेखा के एक ओर बना हो व कई दूसरी रेखाएं भी इसे न काटती हों तो इसे यौनि चिन्ह कहते हैं, परन्तु इसकी आकृति सुन्दर होनी आवश्यक है । ऐसा होने पर यह उत्तम लक्षण होता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में बहुत सफल होते हैं जो सोचते हैं पूरा हो जाता है परन्तु कुछ कठिनाइयों के बाद ।
चन्द्रमा पर भाग्य रेखा में द्वीप
चन्द्रमा से निकलने वाली भाग्य रेखा यदि किसी द्वीप से निकली हो तो यह दोषपूर्ण प्रभावित रेखा जैसा फल देती है (चित्र 124 ) । व्यापार, साझेदारी व प्रेम सम्बन्धों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है । ऐसे व्यक्तियों का कोई न कोई प्रेम सम्बन्ध होता है और इसमें बदनामी होती है। भाग्य रेखा में शनि पर द्वीप या दोष होने पर प्रेमी नीचे स्तर का, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर प्रेमी मध्यम स्तर का और भाग्य रेखा उत्तम होने पर प्रेमी का स्तर उन्नत प्रकार का होता है। इस लक्षण से बदनामी अवश्य
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चित्र - 124
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मिलती है। हाथ काला होने पर ये नीच व चरित्रहीन स्त्रियों से शारीरिक सम्बन्ध रखने वाले होते हैं। हृदय रेखा, बृहस्पति की ओर जाती हो, भाग्य रेखा में द्वीप व हाथ थोड़ा भी लाल या काला हो तो निम्न स्तर के व्यक्ति से प्रेम सम्बन्ध बताना चाहिए। भाग्य रेखा में चन्द्रमा के पास द्वीप होने पर व्यक्ति उच्च स्तर की स्त्रियों से प्रेम करता है और भाग्य रेखाएं एक से अधिक होने पर प्रेमी या प्रेमिका का स्तर ऊंचा होता
उपरोक्त लक्षणों से साझे का व्यापार हो तो परेशानी आती है क्योंकि इनवा साझीदारी स्वभाव की दृष्टि से अच्छा नहीं होता। अन्त में झगड़ा होकर साझा टूटना है और हानि हाथ लगती है। चन्द्रमा पर भाग्य रेखा में द्वीप होने पर यदि इसमें कोई अन्य दोष जैसे मोटी मस्तिष्क रेखा या भाग्य रेखा हृदय रेखा में रुकी हो तो ऐसे व्यक्तियों को अपने प्रेमियों से सहयोग नहीं मिलता। वे अपना काम निकालने के पश्चात् कोई सम्बन्ध नहीं रखते। ऐसा प्रेम केवल स्वार्थपूर्ति के लिए होता है।
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भाग्य रेखा के मध्य या अन्त में द्वीप
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भाग्य रेखा के मध्य में द्वीप होने पर जीवन साथी के चरित्र में दोष होता है व इनको इस विषय में पता भी होता है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो ये अपने साथी को उसके प्रेमी के साथ देख लेते हैं। ऐसी बात इन व्यक्तियों को बहुत खटकती है, परन्तु जानते हुए भी इसका विरोध नहीं कर सकते, अतः परेशान रहने के सिवाय कोई चारा नहीं रहता।
भाग्य रेखा के बिल्कुल पास चलकर कोई रेखा कई बार लम्बा द्वीप बनाती है। लम्बा होने के बावजूद यह द्वीप का ही फल देता है (चित्र-125)। इस आयु
में कार्य, स्वास्थ्य व धन हानि की समस्याएं जीवन में आती हैं। इनके पेट में अम्ल रहता है। कई बार पित्ताशय की पथरी भी इस द्वीप से होती है। शनि की उंगली के नीचे व हृदय रेखा के ऊपर भाग्य रेखा के अन्त में बड़ा द्वीप हो व मस्तिष्क रेखा, शनि के नीचे दोषपूर्ण हो तो घर में जवान मृत्यु का संकेत है। यह मृत्यु किसी सन्तान की भी हो सकती है। जीवन रेखा से कोई छोटी रेखा शुक्र की ओर जाने या हृदय रेखा की शाखा, मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर उपरोक्त फल निश्चित
रूप से होता है। भाग्य रेखा का अन्त. जब इस प्रकार चित्र-125
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का हो कि वह हृदय रेखा से मिलकर एक द्वीप का आकार बनाये तो ऐसे व्यक्ति का अपने परिवार के लोगों से विरोध रहता है तथा यह सैद्धान्तिक मतभेद जीवन भर रहता है और राजनीति में भाग लेने पर इनके अपने दल के साथ मतभेद रहते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रसिद्धि तो प्राप्त कर जाते हैं, परन्तु उतनी सफलता नहीं मिलती. जितनी कि इन्हें मिलनी चाहिए। अन्त में गले की बीमारी से इनकी मृत्यु होती है।
= मस्तिष्क रेखा पर रुकी भाग्य रेखा
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किन्हीं हाथों में भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकी देखी जाती है। यह अच्छा लक्षण नहीं माना जाता। गोलाकार जीवन रेखा या अन्य भाग्य रेखा इसके दोष को कम कर देती हैं। मोटी भाग्य रेखा का मस्तिष्क रेखा पर रुकना बहुत घातक होता है। इसके साथ यदि उसी आयु में अर्थात् 35 वर्ष या जिसमें यह मस्तिष्क रेखा को छूती है, अन्य रेखाओं में भी दोष हो तो जीवन में अनेक उलट-फेर व अवांछित घटनाएं होती हैं। भाग्य रेखा पतली होकर मस्तिष्क रेखा पर रुकने की दशा में इतनी हानि नहीं करती, जितनी कि मोटी होकर करती है (चित्र-126)। इस अवसर पर अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जिसका निर्णय हाथ में उपस्थित , अन्य लक्षणों द्वारा कर लेना चाहिए। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा में रुकने पर व्यक्ति बौद्धिक गलतियां करने वाला होता है। ऐसी गलतियां जीवन में कई बार होती हैं। एक समय जीवन में ऐसा भी आता है कि जब इन गलतियों की हद हो जाती है। फलस्वरूप नौकरी छूटना, जेल, झगड़ा, सम्मान को आंच, आत्महत्या, बीमारी आदि घटनाएं घटती हैं। ये लापरवाह होते हैं और अपने काम को सतर्कता से नहीं चित्र-126 करते। यही बातें इनके अन्य व्यवहार में पाई जाती हैं। देख कर खर्च न करना, किसी बात को अधिक महसूस करना, व्यर्थ के झगड़े में पड़ना या स्पष्ट रूप से किसी का विरोध हो जाता है। ये सहृदय, प्रेमी व ईमानदार तो होते हैं, परन्तु अपने व्यवहार या अन्य कारणों से इन्हें उचित श्रेय नहीं मिलता।
जब भाग्य रेखा मोटी होकर मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो और जीवन रेखा सीधी हो तो 35 वर्ष की आयु तक थोड़ी बहुत उन्नति करने के बाद इनकी उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं, परन्तु यदि जीवन रेखा गोलाकार हो और मस्तिष्क रेखा से निकलकर
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कोई भाग्य रेखा आगे जाती हो तो 35 वर्ष के बाद ही प्रगति करते हैं।
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भाग्य रेखा को काटने वाली रेखाएं।
सभी हाथों में भाग्य रेखा, मस्तिष्क व हृदय रेखा द्वारा काटी जाती है, परन्तु फल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन अन्य खासतौर पर मंगल या जीवन रेखा से आने वाली रेखाओं द्वारा भाग्य रेखा कटती हो तो अनिष्ट कारक लक्षण है (चित्र-127)।
__ मंगल से आरम्भ होकर कोई रेखा भाग्य रेखा को काटती हुई हृदय रेखा के पास पहुंचती हो तो उस आयु में किसी की मृत्यु या धन हानि करती है। यदि यही रेखा भाग्य रेखा को काटती हुई मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो अधिक दोषपूर्ण होती है। इस आयु में स्थान । परिवर्तन, किसी की मृत्यु, झगड़ा या बीमारी आदि कोई. फल देखा जाता है। कुछ मोटी होने पर इसी रेखा को राहू रेखा कहते हैं।
मस्तिष्क रेखा से निकलकर जब भाग्य रेखा हृदय रेखा की ओर बढ़ती है तो उस समय यदि हृदय रेखा
की कोई शाखा भाग्य रेखा को काटती हो तो कार्य । में हानि या अनहोनी घटना होती है। यह शाखा जितनी अधिक मोटी होती है, उतना ही अधिक दोषपूर्ण फल देती है। इस आयु में चोट लगने या किसी दुर्घटना की।
चित्र-127 सूचना देती है। काम छूटना, घर से दूर ट्रान्सफर तथा धन की चिन्ता इस आयु में देखी जाती हैं। बहुत-सी रेखाएं भाग्य रेखा को काटती हों तो भी व्यक्ति एक स्थान पर स्थायी रूप से नहीं रहता, इधर-उधर आता जाता रहता है।
एक बात विशेष रूप से देखने की है कि यदि हाथ में रेखाएं अधिक हों तो पतली रेखाओं का प्रभाव नहीं के बराबर होता है। इस दशा में केवल मोटी रेखा द्वारा काटे जाने पर ही उपरोक्त प्रकार के फल कहने चाहिएं। हाथ में अधिक रेखाएं होने पर इसके समर्थन में दूसरे लक्षण भी मिला लेने चाहिए। कम रेखाएं होने पर यह रेखा महत्वपूर्ण फल प्रदान करती है।
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अधूरी भाग्य रेखा
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हाथ देखते समय एक बात विशेष रूप से विचारणीय है कि जब दो या तीन
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मुख्य रेखाएं एक ही आयु में पूर्ण होती हों तो उस समय व्यक्ति को मृत्यु योग होता है। इसी प्रकार जब भाग्य रेखा चलते-चलते एकदम रुक जाती हो अर्थात् बीच में पूरी हो जाती हो तो उस समय कुछ परेशानियां खड़ी करती है। यही भाग्य रेखा अधूरी भाग्य रेखा कही जाती है। यदि इस आयु में मस्तिष्क या अन्य रेखाओं में भी दोष हो तो घटना का स्वरूप प्रखर होता हैं, परन्तु हाथ जितना भी भारी होता है, परेशानी उतनी ही कम हो जाती है। (चित्र-128)।
भाग्य रेखा जिस आयु में पूरी होती है, उसमें भी मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा में दोष हो तो जीवन बरबाद हो जाता है। कर्ज, काम छूटना, स्वास्थ्य खराब होना,
जीवन साथी की बीमारी या मृत्यु, हानि, मुकद्दमेबाजी में हार आदि फल होते हैं। यह निश्चित ही है कि इस आयु में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन उन्नति के लिए होता है, परन्तु आरम्भ में कष्ट कारक होता है। इस समय व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ होता है। किसी समस्या का कोई हल उसे नहीं सूझ पड़ता।
इस रेखा के साथ जीवन रेखा में दोष, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, शुक्र प्रधान होना, जीवन रेखा का शुक्र को कम घेरना आदि लक्षण हों तो ऐसे
व्यक्ति अप्राकृतिक यौन क्रिया की अतिशयता के चित्र-128
कारण पुंसत्व खो बैठते हैं। स्त्रियों के हाथों में उपरोक्त लक्षण होने पर इन्हें श्वेत-प्रदर या रक्त-प्रदर होता है, दौरे पड़ना, सिर भारी, पेट में जलन आदि रोग रहते हैं।
ऐसे पुरुषों को स्खलन के समय दर्द होता है व पेट में वायु विकार रहता है। ऐसे दोष कोमल हाथों में ही अधिक देखे जाते हैं। अन्य लक्षणों को देखकर इसका निश्चित विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए।
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भाग्य रेखा रहित हाथ
हाथ भारी होने पर रेखाएं जितनी ही पतली, सुडौल व दोष रहित होती हैं, उतना ही व्यक्ति सुखी, धनवान, स्वस्थ तथा गुण सम्पन्न होते हैं। कुछ हाथों में भाग्य रेखा होती ही नहीं। ऐसी दशा में अन्य रेखाओं के लक्षणों के द्वारा फल का निर्णय किया जा सकता है। समकोण, दार्शनिक, चमसाकार व आदर्शवादी हाथों में भाग्य रेखा न होने पर ये हाथ उस प्रकार से फल देते हैं, जैसा कि भाग्य रेखा की उपस्थिति में होता है। वास्तव में इन हाथों में भाग्य रेखा की आवश्यकता ही नहीं है। ऐसे हाथों
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में सूर्य रेखा, बुध रेखा आदि न हो तो भी ये हाथ पूर्ववत् फल प्रदान करते हैं। हां! यह देखने की आवश्यकता अवश्य है कि मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा तथा जीवन रेखा उत्तम कोटि की हैं या नहीं ? जितनी ही अन्य रेखाएं उत्तम होती हैं, व्यक्ति उतना ही भाग्यशाली होता है। भाग्य रेखा होने की स्थिति में यदि जीवन रेखा से, शनि के नीचे से पतली भाग्य रेखा निकलती हो, जीवन रेखा के आरम्भ में दो भाग्य रेखाएं बृहस्पति पर जाती हों, जीवन रेखा से शनि के नीचे दो भाग्य रेखाएं निकली हों तो ये मुख्य भाग्य रेखा से कहीं उत्तम फल देने वाली होती हैं। इन रेखाओं की उपस्थिति में मुख्य भाग्य रेखा उन्नति के स्थान पर रुकावट का लक्षण है। इस प्रकार से भाग्य रेखा का उत्तम हाथ में न होना ही अपेक्षाकृत लाभकर है।
हाथ पतला, जीवन और मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि भाग्य रेखा नहीं हो तो सब कुछ होते हुए भी ऐसे व्यक्ति दुःखी रहते हैं। जीवन में यश, आराम व शान्ति नहीं मिलती, अपनी गलतियों से ही दुःखी होते हैं। ऐसे व्यक्तियों का कारोबार भी बराबर नहीं चलता। ये मजदूरी जैसा छोटा कार्य, जैसे बर्तन मांजना, फेरी लगाना, कपड़े धोना आदि कार्य करते हैं। इनके हाथ भी निकृष्ट कोटि के होते हैं।
पतला हाथ होने पर उंगलियां टेढ़ी हों तो ये चोर व चुगलखोर होते हैं। स्वास्थ्य खराब रहता है और परिवार से दूर रहना पड़ता है। जीवन में सब तरह के गलत कार्य जैसे भाग जाना, स्त्री बेचना, झूठा खाना, अपनी पत्नी को किसी से मिलाना या बहन के दूत का कार्य आदि करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की मां बहन भी दुराचारिणी होती हैं। ऐसे हाथों में रेखाएं बहुत कम होती हैं। कठोर हाथों में उपरोक्त लक्षण अधिक प्रभावकारी होते हैं। रेखाएं कम होने पर इनमें दोष भी हो तो कहना ही क्या ?
हृदय रेखा
हृदय रेखा का स्थान हाथ की मुख्य रेखाओं में है। यह हथेली के ऊपर के भाग में उंगलियों के पास होती है। यह रेखा बुध की उंगली के नीचे से उदय होकर बृहस्पति की उंगली के नीचे या आस-पास समाप्त होती है। यह आयु रेखा भी कहलाती है, हृदय रेखा का विचार व्यक्ति के मानसिक गुणों व वंशानुगत चरित्र के सम्बन्ध में किया जाता है। अतः जब हम किसी व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं, उस दशा में हृदय रेखा का निरीक्षण आवश्यक होता है। यह रेखा जितनी ही स्पष्ट व सुडौल होती है, उतनी ही उत्तम मानी जाती है (देखे चित्र - 128 ) ।
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1. दोहरी हृदय रेखा
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2. हृदय रेखा का निकास मंगल से
3. हृदय रेखा का निकास बुध से
4. हृदय रेखा का अन्त शनि के नीचे
5. हृदय रेखा का अन्त शनि पर
6. हृदय रेखा का अन्त शनि व बृहस्पति की उंगलियों के बीच 7. हृदय रेखा का अन्त बृहस्पति की उंगली पर
8. हृदय रेखा का बृहस्पति को देखना
9. हृदय रेखा का अन्त सीधा बृहस्पति पर
चित्र - 129
10. हृदय रेखा में द्वीप शनि पर व बृहस्पति पर । (चित्र -129) हृदय रेखा से कतिपय बीमारियों का भी आभास मिलता है। यह किसी व्यक्ति के प्रेम, आर्थिक हानि, शनि की साढ़ेसाती आदि का दर्पण है। अन्य सभी रेखाएं समीप से दोहरी होने पर दोषपूर्ण मानी जाती हैं, परन्तु हृदय रेखा के पास से दोहरी होना अर्थात् इसके साथ सटी हुई कोई दूसरी रेखा होना गुण माना जाता है। यह अवश्य ही देख लेना चाहिए कि वह रेखा टूटी-फूटी न हो । टूटी-फूटी या द्वीपयुक्त होने पर यह भी दोषपूर्ण मानी जाती है। हृदय रेखा के साथ एक ही समानान्तर रेखा समीप में बहुत कम देखी जाती हैं, प्राय: छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं। ये टुकड़े भी दोषपूर्ण नहीं माने जाते। ऐसे टुकड़े एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं। एक-दूसरे पर न चढ़ कर यदि ये मुख्य रेखा सहित टूट जाते हों तो दोषपूर्ण होते हैं।
उत्तम हृदय रेखा
हृदय रेखा का सम्बन्ध जैसा कि बताया जा चुका है कि व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों से हैं। अतः किसी व्यक्ति की मानसिक विकृति या दृढ़ता, हृदय रेखा को देखकर जानी जा सकती है। यह जितनी ही निर्दोष होती है, व्यक्ति सहृदय, दूरदूर्शी, शान्त, मृदुभाषी, सद्व्यवहार करने वाला, दूसरों की स्त्री व धन की लालसा न करने वाला होता है। अन्य रेखाओं में दोष न होने पर यदि हृदय रेखा भी उत्तम हो तो वास्तव में ही गुणों को चार चांद लग जाते हैं, इनका मानसिक चिन्तन व कार्य दक्षता उच्च कोटि की होती है। अन्य रेखाओं से प्रभावित होकर इन गुणों में कमी या प्रखरता आती है। उत्तम हृदय रेखा टूटी-फूटी, द्वीपयुक्त, जंजीराकार, काली, लाल, अधिक झुकी हुई नहीं होती । हृदय रेखा वही सर्वोत्तम होती है, जो निर्दोष व उंगलियों से दूर
हो ।
निर्दोष हृदय रेखा के साथ बुध की उंगली टेढ़ी हो तो व्यक्ति स्पष्टवक्ता होता
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१२क
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है। ऐसे व्यक्ति किसी भी बात को गुप्त नहीं रख सकते। निर्दोष हृदय रेखा वाला व्यक्ति मन से भी निर्दोष होता है, उसे यह पता नहीं होता कि क्या कहना है, क्या नहीं ?
निर्दोष हृदय व मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा पर त्रिकोण का आकार बनाती हो व हाथ उत्तम होने पर व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण करते हैं। ये अपने वंश का उद्धार करते हैं। स्वयं न तो अच्छा खाते हैं, न पहनते हैं, परन्तु सन्तान व परिवार के लिए उदारता से धन खर्च करते हैं। उपरोक्त दशा में भाग्य रेखाएं एक से अधिक होने पर मरने के पश्चात् विपुल धन सम्पत्ति छोड़ कर जाते हैं। इनका जीवन संघर्षमय रहता है परन्तु इनकी सन्तान व परिवार इनके संघर्ष का आनन्द लेते हैं। ऐसी स्त्रियों के चरित्र में थोड़ा सा दोष रहता है, परन्तु अन्य लक्षणों से समन्वय करने के बाद ही इस प्रकार का फल कहना चाहिए।
दोषपूर्ण हृदय रेखा
हृदय रेखा में द्वीप, टूटी-फूटी, मोटी, पतली, काली, लाल, उंगलियों के पास होना आदि इसके दोष कहलाते हैं। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति में चरित्र या कार्य सम्बन्धी अनेक प्रकार की कमियां रहती हैं। दोषपूर्ण हृदय रेखा वाले व्यक्ति जो भी कार्य करते हैं, यह विश्वास नहीं होता कि ये उसे कर लेंगे, न ही ये अकेले किसी कार्य को करने का साहस ही करते हैं, अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जब तक हृदय रेखा दोषपूर्ण रहती है, किसी न किसी को साथ लेकर चलना पड़ता है। यदि साथ का व्यक्ति चालाक हो तो इनके सीधेपन तथा विश्वास का अनुचित लाभ उठाकर इन्हें हानि पहुंचाता है।
दोषपूर्ण हृदय रेखा से व्यक्ति में रोग, क्रोध, स्वभाव में चंचलता, अधिक सोचने की आदत, क्षण में प्रसन्न व क्षण में क्रोध, किसी से घुल जाना या किसी का पूर्णतया बहिष्कार करना आदि लक्षण पाये जाते हैं। इनमें किसी न किसी प्रकार का व्यावहारिक असन्तुलन रहता ही है । फलस्वरूप किसी का विरोध व किसी से प्रेम रहता है। इनके सम्बन्ध भी स्थायी नहीं रहते। ज़रा सी बात पर रो पड़ना, अधिक भावुकता की बात करना, गुड़ से मीठा या नीम से कड़वा रहना, ऐसे व्यक्तियों की विशेषताएं हैं।
हृदय रेखा बुध से निकल कर बृहस्पति पर गई हो व दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का स्वभाव अस्थिर होता है। ये कभी शान्त तो कभी उग्र होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान में रेखा का प्रभाव होता है। यदि सन्तान को ढंग से प्रशिक्षण नहीं दिया गया तो उनमें संगति के प्रभाव से अनेक प्रकार की कुटेंव आ जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों की
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सन्तान आरम्भ में गैर जिम्मेदार व चिन्ता का कारण होती है।
दोषयुक्त हृदय रेखा होने पर व्यक्ति को गाली देने की आदत होती है। हाथ में रेखाएं कम हो तो यह आदत अधिक होती है। अंगूठा छोटा और उंगलियां मोटी होने पर अच्छा फल नहीं देती। क्रोध में होकर बच्चों को पीटते हैं और पत्नी को डांटते तथा मारते भी हैं।
टूटी हृदय रेखा
हृदय रेखा का टूटना हाथ में एक मुख्य दोष है। टूटी हृदय रेखा विशेषतया हृदय रोग के बारे में सूचित करती है, जबकि इसके टुकड़े एक-दूसरे से दूर हों। टुकड़े जब एक-दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं तो मानसिक आघात होता है, परन्तु उससे रक्षा हो जाती है (चित्र-130)। दोनों हाथों में इस प्रकार का दोष किसी की मृत्यु या भयकर रोग का लक्षण है, परन्तु उस आयु में अन्य मुख्य रेखा में भी दोष होना आवश्यक है अन्यथा साधारण फल होता है। यदि हृदय रेखा टूटकर उसका एक भाग मस्तिष्क रेखा पर मिला हो तो भी विशेष दोषपूर्ण होती है। __जब कभी हृदय रेखा टूटकर मस्तिष्क रेखा की ओर जाती है तो धन हानि व मानसिक आघात होता
na
टूटी हृदय रेखा वाले व्यक्तियों को शोर-शराबा पसन्द नहीं होता। अचानक घबराहट या अचानक कोई सूचना मिलने से इनके दिल की धड़कनें बढ़ जाती
चित्र-130 हैं और अन्त में जाकर यह हृदय रोग का स्थान ले लेती है। हृदय रेखा में दोष का अन्य लक्षणों के साथ भी समन्वय कर लेना चाहिए। हृदय रेखा टूटने पर, भाग्य रेखा जिस आयु में पतली या समाप्त होती है। उस आयु में व्यक्ति का वजन बढ़ने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को भार पर नियन्त्रण रखना चाहिए, क्योंकि वजन बढ़ने पर हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है।
सूर्य के नीचे हृदय रेखा टूटी होने पर व्यक्ति की आंखों में दोष पाया जाता है। एक हाथ में दोष होने पर उसके दूसरे भाग की आंख में दोष होता है।
- दोहरी हृदय रेखा
हाथ में अन्य रेखाओं के साथ बिल्कुल सट कर चलने वाली रेखाएं कुठार
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रेखाएं मानी जाती हैं। यह दोष पूर्ण लक्षण है परन्तु हृदय रेखा के साथ सटकर चलने वाली दूसरी हृदय रेखा दोषपूर्ण न होकर उत्तम मानी जाती हैं। इसे दोहरी हृदय रेखा कहते हैं (चित्र 131 ) । पूरी दोहरी हृदय रेखा बहुत कम देखने को मिलती है, हृदय रेखा के साथ छोटे या बड़े टुकड़े तो अधिकतर देखे जाते हैं। इस प्रकार के टुकड़े भी उत्तम फल देते हैं, परन्तु पूरी हृदय रेखा श्रेष्ठता अधिक प्रदान करती है।
चित्र - 131
दोहरी हृदय रेखा वाले व्यक्ति अपने जीवन साथी या प्रेमी को ईश्वर के समान मान देते हैं। प्रेम, सम्मान आदि में इनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता । ईश्वर में भी इनकी अपूर्व श्रद्धा होती है। ऐसे व्यक्ति आदर्शवादी होते हैं और पत्नी, गुरू, हितैषी व पूज्य व्यक्तियों की थोड़ी सी भी निन्दा या अपमान सहन नहीं कर सकते। जिस संस्था में ऐसे व्यक्ति काम करते हैं उस संस्था के मुख्य संस्थापक की आलोचना भी इन्हें पसन्द नहीं होती ।
ऐसी स्त्रियां पति की सेवा में दत्तचित्त होती हैं। ऐसे व्यक्ति प्रेम साधना में बहुत ही शीघ्र उन्नति कर जाते हैं।
भावुक होने के कारण ऐसे व्यक्ति थोड़े कष्ट को अधिक मानते हैं और दूसरों का दुःख भी नहीं देख सकते।
इनके जीवन साथी सुन्दर, सच्चरित्र, महत्वाकांक्षी और घर बनाने वाले होते हैं। विवाह के बाद इनके जीवन में अधिक उन्नति होती है। ऐसे व्यक्ति उत्तरोत्तर प्रगति करते हैं।
हृदय रेखा का निकास
हृदय रेखा, मंगल, बुध या दोनों के बीच से ही निकलती है। पूर्णतया मंगल या बुध से निकली हुई हृदय रेखा अच्छी नहीं होती, किन्तु मंगल और बुध के मध्य से निकली हुई हृदय रेखा उत्तम मानी जाती है ऐसी हृदय रेखा यदि दोष रहित हो तो ज्यादा अच्छा रहता है।
हृदय रेखा का मंगल से निकलना
मंगल से निकली हुई हृदय रेखा व्यक्ति में क्रोध, जल्दीबाजी, बुखार व खून
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की कमी का लक्षण है। खून की खराबी जैसे फोड़ा, फुन्सी, दाद आदि का प्रभाव इनको होता है। मंगल से निकली हुई हृदय रेखा दोषपूर्ण भी हो तो उपरोक्त दोष अधिक होते हैं। हृदय रेखा में दोष हो तो आंखों में दोष पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों के वंश में सूरजमुखी सन्तान होने की सम्भावना होती है। सूरजमुखी न होने पर आंखें छोटी, तिरछा देखना या पलकें झपकना आदि होते हैं। स्वयं व सन्तान के चरित्र में भी कोई न कोई दोष होता है। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान कुसंगति में पड़कर घर छोड़ कर भागती है। इनका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है व घबराहट अधिक होती है (चित्र-132)। मंगल से निकली हुई हृदय रेखा मोटी व शाखा रहित हो तो व्यक्ति दया-हीन होते हैं, ये मांस, मदिरा जैसे
चित्र-132 अभक्ष्य आहार करते हैं। मंगल से निकली हृदय रेखा उंगलियों के आधार से बहुत नीचे हो तो व्यक्ति उपरोक्त दुर्गुण होते हुए भी किसी न किसी विषय में पारंगत होते हैं।
=== हृदय रेखा का बुध से निकलना
मगल से निकलने की अपेक्षा बुध से निकली हुई हृदय रेखा कितनी भी दोषपूर्ण क्यों न हो, अच्छी ही होती है। ऐसे व्यक्ति शान्त स्वभाव के होते हैं। इन्हें परिवार का सुख होता है। इनकी सन्तान चरित्रवान ही होती है, थोड़ी-बहुत कमी चाहे उनमें हो। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर स्वयं तथा सन्तान में वासनात्मक प्रवृत्ति अधिक होती है। अत: ठीक संगति न मिलने पर थोड़ा-बहुत चरित्र विकार पाया जाता है।
बुध से निकली हुई हृदय रेखा आरम्भ में मोटी हो तो हकलाहट या तुतलाहट जैसा थोड़ा बहुत दोष होता है। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। अन्य लक्षण देखकर शेष अनुमान लगाना चाहिए।
हृदय रेखा का अन्त शनि के नीचे।
इस प्रकार हृदय रेखा शनि की उंगली के नीचे जाकर एकदम समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति उदासीन होते हैं। दूसरे की, अर्थात् स्त्री हो तो पुरुषों की और पुरुष. हो तो स्त्रियों की आलोचना करते हैं। (देखें चित्र-133)।
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ऐसे व्यक्ति सच्चे और सहृदय होते हैं। अपनी बुराई या भेद की बातें इनके सामने बताकर कोई भी इनकी गोपनीय से गोपनीय बात भी पूछ सकता है परन्तु ये आदर्शवादी होते हैं। प्रौढ़ावस्था में इन्हें पुरुष हो तो स्त्री से और स्त्री हो तो पुरुष जाति से घृणा हो जाती है । आरम्भ में ऐसे व्यक्ति प्रेम आदि के कारण बदनाम होते हैं और अन्त में किसी गुण के कारण प्रसिद्ध होते हैं। यह बदनामी इन्हें व्यर्थ ही मिलती है, इनकी इसमें कोई गलती नहीं होती।
चित्र - 133
बुध उंगली का नाखून छोटा व बृहस्पति की दोनों उंगलियों के नाखूनों में अन्तर अर्थात् छोटे-बड़े हों तो ऐसे व्यक्ति जो भी आलोचना करते हैं, सत्यतापूर्ण एवं तथ्यों पर आधारित होती है । ऐसे व्यक्ति स्थान, मकान, कला, प्रकृति, प्रेमी, यहां तक कि ईश्वर में भी कमी महसूस करते हैं और यह वास्तव में सच होती है। ये अपने मस्तिष्क के द्वारा सत्य का अनुसंधान करते हैं। हाथ में विशेष भाग्य रेखा हो तो कई खोजें जैसे उपन्यास, साहित्य, संगीत, ज्योतिष या इस प्रकार की कोई गवेषणा करते हैं। हृदय रेखा शनि के नीचे रुकने पर, हाथ में अधिक भाग्य रेखाएं या पतली भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर हो तो व्यक्ति ऐसी सम्पत्ति का निर्माण करते हैं जो इनके वंश में अद्वितीय होती है । सोच-सोच कर व किस्तों में यह सम्पत्ति बनाई जाती है और इसके पूरा होने में वर्षों लगते हैं। इनकी जीवन रेखा से शनि के नीचे छोटी भाग्य रेखा भी निकलती हो तो सम्पत्ति निर्माण पूरे जीवन भर की योजना होती है और जीवन भर होने पर भी अधूरी रह जाती है।
हृदय रेखा शनि के नीचे रूक कर उंगलियों से अधिक दूर नहीं हो तो ऐसे व्यक्ति स्त्री होने पर पुरुषों और पुरुष होने पर स्त्रियों के द्वारा पीटे जाते हैं। यद्यपि इनका कोई दोष इसमें नहीं होता । हृदय रेखा उंगलियों से दूर होने पर केवल लांछन भर आता है । ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान व मनस्वी होते हैं। ऐसे व्यक्ति पचड़े में नहीं पड़ते, अतः इनका कोई दोष होने का प्रश्न ही नहीं उठता। दूसरों के कहने अथवा प्रभाव में आकर कुछ न कुछ गलत कर डालने का ही यह फल होता है। हाथ उत्तम होने पर यदि हृदय रेखा शनि के नीचे समाप्त होती है और उंगलियों से दूर होकर मस्तिष्क रेखा के पास हो तो व्यक्ति मेहनती, सात्विक तथा अनेकों का पालन करने वाले व प्रसिद्ध होते हैं।
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हृदय रेखा का अन्त शनि पर =
इस दशा में हृदय रेखा मुड़कर ठीक शनि पर्वत पर उंगली के पास समाप्त होती हो तो व्यक्ति चरित्र के शुद्ध नहीं होते। शुक्र उन्नत या जीवन रेखा सीधी या जीवन रेखा शुक्र को काटने पर यह वृत्ति और अधिक बढ़ जाती है। यदि इस दशा में शुक्र से कोई रेखा निकल कर जीवन रेखा को काटती हुई चन्द्रमा के पर्वत या मणिबन्ध की ओर जाती हो तो ऐसे व्यक्ति मां-बहन, बेटी पर भी बुरी भावना रखने वाले होते हैं (चित्र-134)। हाथ लम्बा, बृहस्पति की उंगली लम्बी या बृहस्पति बहुत अच्छा होने पर ऐसे व्यक्ति मान-हानि से डर कर कोई गलत काम नहीं करते, फिर भी इस प्रकार का चिन्तन रहता ही है। अंगूठा मोटा, उंगलियां मोटी होने पर इनमें पाश्विकता होती है। अतः जबरदस्ती करना या पशु की तरह यौनरत
चित्र-134 होना आदि लक्षण होते हैं।
हृदय रेखा शनि पर होने पर, इनमें दोष भी हो और शुक्र उठा हो तो ऐसे व्यक्ति पुरुष होने पर स्त्री और स्त्री होने पर पुरुषों का पीछा करते हैं। लड़कपन में ऐसी बातें बहुत देखी जाती हैं। हृदय रेखा काली या लाल होने पर भी इसी प्रकार की मनोवृत्ति होती है। चरित्र के सम्बन्ध में ऐसे व्यक्तियों का विश्वास नहीं करना चाहिए। व्यवहार के मीठे परन्तु मतलबी होते हैं। अपने सम्बन्धियों, मित्रों व पड़ोसियों को भी चरित्र के विषय में क्षमा नहीं करते। मस्तिष्क रेखा हृदय रेखा के समानान्तर, अंगूठा कम खुलने या मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलने पर, ये अपना काम निकालने के बाद हत्या तक कर देते हैं। ऐसे व्यक्तियों के मित्र भी दुष्चरित्र होते हैं। इस दशा में हाथ काला, बुध की उंगली विशेष टेढ़ी हृदय रेखा जंजीराकार होने पर, चोरी, चरित्रहीनता आरोपों में जेल यात्रा करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान भी ऐसी ही होती हैं।
हृदय रेखा का अत शनि और बृहस्पति की उंगली के बीच में
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इस लक्षण को बहुत बारीकी से देखना चाहिए। इसमें हृदय रेखा, बृहस्पति और
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शनि की उंगली के ठीक बीचों-बीच जाती है। ध्यान से देखना चाहिए कि यह रेखा बृहस्पति की उंगली के पास तो नहीं जाती? क्योंकि बृहस्पति की उंगली के पास जाने वाली व इस हृदय रेखा में अन्तर तो सूक्ष्म है, परन्तु फल बिल्कुल विपरीत होते हैं। अतः यहां पहचान के विषय में सावधानी की आवश्यकता है। ऐसे व्यक्ति चरित्रहीन होते हैं। (चित्र-135)।
हृदय रेखा उपरोक्त प्रकार की होने के साथ शुक्र उन्नत होना चरित्र की दृष्टि से किसी भी प्रकार से ठीक नहीं होता। बुध की उंगली टेढ़ी या हाथ में अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर ऐसे व्यक्ति जेल यात्रा करते हैं। बलात्कार, नकली स्त्री बनकर किसी को ठगने आदि के कारणों से जेल यात्रा होती है। ऐसे व्यक्ति स्त्रियों के कपड़े पहनने में आनन्द अनुभव करते हैं
चित्र-135 तथा स्त्रियां पुरुषों के कपड़े पहनकर प्रसन्न होती हैं।
इस प्रकार की हृदय रेखा होने पर स्त्रियां जिनके साथ विवाह करती हैं, उन्हें तंग करती रहती हैं। पति को अपने दबाव में रखती हैं तथा उसके साथ दुराव करती हैं। इन स्त्रियों में वासनात्मक भावना बहुत अधिक होती है। ये अन्य व्यक्तियों को देखकर आनन्द का अनुभव करती हैं। बिना कारण या छोटी बात के लिए पुरुषों से झगड़ा करना इनके लिए कोई लज्जा की बात नहीं। ऐसी स्त्रियां कुटनी का कार्य करती हैं परन्तु इस दशा में बुध की उंगली टेढ़ी होना आवश्यक है।
== हृदय रेखा का अंत बृहस्पति की उंगली के पास =
इस लक्षण का निर्णय बारीकी से देखकर करना। चाहिए क्योंकि बृहस्पति और शनि के बीच गई हुई व बृहस्पति की उंगली के पास गई हुई रेखाएं देखने में एक जैसी लगती हैं, जबकि इनके फलों में बहुत अन्तर होता है (चित्र-136)। बृहस्पति की उंगली के पास जाने वाली हृदय रेखा सच्चारित्रता, दानवीरता, जिम्मेदारी, सत्यनिष्ठा, चरित्र एवं आदर्श में विश्वास पर दु:ख, कायरता आदि गुणों का द्योतक है। ये निरन्तर उन्नति ही करते हैं व हृदय एवं मस्तिष्क से सरल होते
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इस प्रकार की हृदय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा का अन्तर अधिक, हाथ बड़ा, लाल, गुलाबी या छोटा हो तो दानी होते हैं। इनमें अपनी सामर्थ्य या उससे अधिक दूसरे की सहायता करने का गुण होता है। हृदय और मस्तिष्क रेखा निकट होने पर ऐसे व्यक्ति उन्हीं की सहायता करते हैं, जो वास्तव में सहायता के पात्र होते हैं, परन्तु हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होने पर पात्रता का विचार नहीं करते, जो भी याचक बनकर इनके सामने आता है यथाशक्ति प्रभाव या धन से उसकी मदद करते हैं। हाथ में अन्य सुन्दर लक्षण जैसे जीवन रेखा गोल, भाग्य रेखा एक से अधिक आदि हों तो ऐसे व्यक्ति कुएं, धर्मशाला व अनाथालय जैसे सामाजिक और धार्मिक कार्यों में खुले दिल से दान देते हैं। ऐसे हाथ लम्बे, छोटे, समकोण, चमसाकार ही होते हैं और हृदय रेखा में दोष होने पर भी ऐसे व्यक्ति दानी होते हैं, ये साधारण रहन-सहन व उच्च विचारों में विश्वास रखते हैं। अपना कार्य दूसरे की सुविधा व असुविधा देख कर करते हैं, अत: कुशल कार्यकर्ता व आदर्श मानव होते हैं। ऐसे हाथों में संसार छोड़कर सन्यासी बनने की भावना होने पर सर्वस्व दान कर देते हैं।
हृदय रेखा का अंत बृहस्पति की ओर अर्थात हृदय रेखा का बृहस्पति को देखना
इस दशा में हृदय रेखा न तो किसी अन्य स्थान पर जाती है और न ही बृहस्पति पर। यह शनि की उंगली के नीच थोड़ी आगे निकल कर बृहस्पति की परिधि के पहले ही समाप्त हो जाती है और ऐसा लगता है कि जैसे बृहस्पति पर गई हो (चित्र-137)।
ऐसे व्यक्ति शंकालु होते हैं। स्त्रियों के हाथों में । यह लक्षण होने पर ऐसी स्त्रियां पति के विषय में शंकाएं। करती हैं कि इनका पति इन्हें प्यार नहीं करता परन्तु यह शंका ही होती है। पुरुष भी ऐसा ही सोचते हैं। भाग्य रेखा मोटी होने की आयु तक इस प्रकार की शंका विशेषरूप से रहती है। फलस्वरूप गृहस्थ जीवन मधुर नहीं रहता। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक बात में अपना समर्थन चाहते हैं, क्योंकि इन्हें अपने पर पूर्ण विश्वास नहीं होता। स्त्री होने पर, ऐसी स्त्रियां पूछती हैं कि भोजन कैसा बना है ? नमक ठीक है कि नहीं? इसी प्रकार चित्र-137
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पुरुषों के विषय में भी यही कहा जा सकता है।
ऐसे व्यक्ति जीवन साथी का ध्यान रखते हुए यौन-क्रियारत होते हैं और उसकी सन्तुष्टि के विषय में समर्थन चाहते हैं। भाषण देने के बाद पूछते हैं कि भाषण सुन्दर था या नहीं? उसके बच्चे कितने सुन्दर हैं ? उनमें गलती है, सुधार हो सकता है? कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे व्यक्ति की छोटे-छोटे कार्यों में भी यही प्रवृत्ति रहती हैं। ऐसी बातें केवल इसलिए पूछते हैं कि इनमें मनुष्यता अधिक होती है और ये नहीं चाहते कि इनसे ऐसे कार्य हों जो दूसरों को अच्छे न लगे। इनकी बात सुनने के बाद समर्थन इन्हें अच्छा और सुनकर बात काटने या चुप रहने की दशा में बुरा महसूस करते हैं। भावुक होने के कारण ये कभी-कभी शीघ्रपतन अनुभव करते हैं। इस दशा में जब इनकी पत्नी शिकायत करती है तो इन्हें बुरा लगता है।
हृदय रेखा का अंत सीधा बृहस्पति पर
___ यह रेखा सीधी बृहस्पति पर पहुंचती है। निर्दोष हृदय रेखा बृहस्पति पर गई हो तो व्यक्ति जीवन में उन्नति करते हैं, उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हैं और स्त्री, सन्तान व धन का सुख प्राप्त करते हैं। आर्थिक स्थिति का अनुमान हाथ में उपस्थित अन्य लक्षणों को देखकर लगाना चाहिए (चित्र-138)। ___ दोषयुक्त हृदय रेखा बृहस्पति पर जाती हो तो ऐसे पुरुष अपनी पत्नी में इतने गुण देखना चाहते हैं, जितने आकाश में तारे और इतने गुण होने सम्भव नहीं होते, फलस्वरूप इनका गृहस्थ जीवन निराशापूर्ण रहता है। छोटी-छोटी बातों पर नुक्ता-चीनी, टोकना, बात काटना इनके लिए साधारण-सी बात है। इनके विचार के व्यक्ति बहुत कम मिलते हैं परन्तु हृदय रेखा समानान्तर होने पर ऐसे व्यक्तियों को अपने जैसी आदतों का कोई न कोई मिल ही जाता है जिससे इनकी
7 मित्रता रहती है और इनकी आदतों को समर्थन मिलता
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रहता है।
दोषपूर्ण हृदय रेखा सीधी बृहस्पति पर जाती हो तो ऐसे व्यक्तियों की अपनी पसन्द होती है विशेषतया विवाह के विषय में इनकी पसन्द निराली होती है। इनका जीवन साथी शत प्रतिशत इनकी अपनी पसन्द का होना चाहिए। ये चाहते हैं कि इनकी जीवन संगनी एक पुतले के समान साथी के रूप में मिले जो इनकी जायज और नाजायज
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बात को मानें और हां कहे। इस विषय में ऐसे व्यक्ति पहले ही दूसरों को बता देते हैं कि इनका जीवन साथी ऐसा होना चाहिए। साथ ही घोषणा कर देते हैं कि उसकी आदत इसके विपरीत हुई तो उसे ठीक करके ही दम लेंगे। फलस्वरूप विवाह के पश्चात् विचार वैमनस्य रहता है।
=
सूर्य पर (अर्थात छोटी हृदय रेखा)
ऐसी हृदय रेखा, सूर्य की उंगली के नीचे पूरी हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को गरमी बहुत अधिक लगती है। इन्हें तेज धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए। हृदय रेखा सूर्य पर पूरी होना धार्मिक प्रवृति का द्योतक है, परन्तु आर्थिक स्थिति जीवन भर डांवाडोल रहती है (चित्र-139)।
इनका हृदय कमजोर रहता है। अच्छी जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा इसके दोषों को कम करती है परन्तु पूर्णतया निराकरण नहीं होता। इनकी पत्नी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता, उन्हें प्रजनन कष्ट, खून की कमी, आंख में रोग या दिल की बीमारी होती है। इस प्रकार का लक्षण ठीक नहीं होता, ऐसी स्त्रियां बहुत लोभी होती हैं और लोभवश प्राण तक ले लेती हैं, इनसे बचकर रहना चाहिए। हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा की ओर जाती हो या मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो, और सूर्य की उंगली
तक हो तो 34 या 35 वर्ष की आयु में जीवन साथी चित्र-139
की मृत्यु हो जाती है। मृत्यु का कारण प्रजनन कष्ट,
सिर में चोट या हृदय गति मन्द होना होता है। जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप हो तो इन्हें गले का ऑपरेशन कराना पड़ता है। लम्बी मस्तिष्क रेखा के साथ हृदय रेखा सूर्य की उंगली तक हो तो घर में प्रेम नहीं मिलता। इसी कमी को पूरा करने के लिए बाहर चक्कर लगाते हैं। ऐसे व्यक्ति घर से उदासीन होकर पड़ोसियों, रिश्तेदारों, जानकारों आदि के घर जाकर अपना दिल बहलाया करते हैं।
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= हृदय रेखा उंगलियों के पास
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हृदय रेखा का उंगलियों के पास होना दोषपूर्ण होता है। उंगलियों के पास होने का तात्पर्य हृदय रेखा का उंगलियों के आधार की गांठों के ठीक ऊपर से होकर जाना है (चित्र-140)।
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H.K.S-13
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हृदय रेखा जितनी ही उंगलियों की गांठों के नीचे होती है। व्यक्ति में उदारता, सौहार्द, बुद्धिमत्ता एवं मानव सुलभ गुणों का समावेश करती है और उंगलियों के पास होने पर इसके विपरीत गुण पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति चरित्रहीन, कामुक व कामचोर प्रकृति के होते हैं। इन्हें यौन चिन्तन में आनन्द प्राप्त होता है।
__उंगलियों के पास हृदय रेखा दोषपूर्ण भी हो। तो चरित्र दोष तो होता ही है, वायु विकार भी रहता है। छाती में दर्द, क्षयरोग, खून की कमी, जिगर की । खराबी और दांतों मे रोग देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति -V की सन्तान भी वासनाप्रिय होती है। सन्तान को जिगर के रोग, निमोनिया व मियादी बुखार जीवन में कई बार होते हैं। इनकी सन्तान स्वभाव की तेज व माता-पिता के नियन्त्रण में रहने वाली नहीं होती।
हृदय रेखा उंगलियों के पास होने पर व्यक्ति धोखे-बाज, व्याभिचारी, अविश्वसनीय और जुबान
चित्र-140 के पक्के नहीं होते। इन्हें घर पर देर से पहुंचने की आदत होती है। उपरोक्त प्रकार की हृदय रेखा दोषपूर्ण होने के साथ जीवन रेखा में भी दोष हो तो ये पाबन्द तो होते ही नहीं, अनेक बार याद दिलाने पर काम करते हैं। बृहस्पति की उंगली छोटी होने पर ऐसे व्यक्ति इस प्रकार के कार्य भी करते हैं, जो सम्मान से गिरे हुए होते हैं। हृदय रेखा शनि पर या बृहस्पति व शनि की उंगली के बीच में जाने की दशा में सिद्धान्तहीन होते हैं, अपनी वासना पूर्ति उचित या अनुचित ढंग से करते हैं।
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== हृदय रेखा में द्वीप
हृदय रेखा में द्वीप एक दोष है। हृदय रेखा में द्वीप केवल उस विशेष समय को प्रभावित करता है। जिसमें आत्मविश्वास व निर्णय शक्ति की कमी, विचारों का हल्कापन, शरीर में रोग तथा अनेक प्रकार की मानसिक उथल-पुथल का संकेत है (चित्र-141)।
हृदय रेखा का अधिक सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक भावों से है। हाथ में उपस्थित दूसरे लक्षणों से समन्वय कर ऐसी बातों का निर्णय करना चाहिए जैसे हृदय रेखा में द्वीप व्यक्ति में निर्णय शक्ति एवं मानसिक दृढ़ता की कमी बताता है, यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा या शुक्र उठा हो तो इसकी मात्रा अधिक होती
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है। हृदय रेखा में द्वीप, मस्तिष्क रेखा निर्दोष एवं शुक्र उन्नत नहीं हो तो निर्णय शक्ति तो निर्बल होती है, परन्तु इतनी नहीं, द्वीप की आयु में थोड़े समय के लिए घबराहट होती है, बाद में ठीक रहता है। द्वीपयुक्त हृदय रेखा होने पर बुध की उंगली का नाखून छोटा हो तो भी इस लक्षण में बहुत कमी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति भावुक होने के साथ बुद्धिमान भी होते हैं, फिर भी इन्हें मानसिक ठेस अवश्य लगती है। हृदय रेखा की स्थिति उंगलियों से दूर हो तो उपरोक्त फल केवल एक चौथाई रहते हैं।
चित्र-141 . हृदय रेखा में द्वीप होने पर जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा, शुक्र उन्नत व मस्तिष्क रेखा में द्वीप हो तो व्यक्ति वहमी होते हैं। थोड़ी भी अप्रिय घटना होने पर बहुत दुःखी हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरों पर विश्वास अधिक करते हैं और उन पर निर्भर भी रहते हैं।
तो उपरोक्त फल कवल
-
हृदय रेखा में बुध के नीचे द्वीप
हृदय रेखा में सूर्य या बुध के नीचे द्वीप या अन्य कोई विशेष दोष हो तो व्यक्ति की आंखों में खराबी का लक्षण है (चित्र-142)। हृदय रेखा में बुध या सूर्य के नीचे कोई विशेष दोष देखने के बाद अन्य लक्षणों के द्वारा भी आंखों में बीमारी का निश्चय करना चाहिए, यदि मस्तिष्क रेखा में भी शनि के नीचे दोष हो तो इस विषय में कोई शंका नहीं रह जाती। हृदय रेखा में बुध या सूर्य के नीचे दोष होने पर शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो आंखों में कोई न कोई रोग जैसे पानी आना, बाल होना, दु:खना आदि की बीमारियां होती हैं। बुध के नीचे दोष, व्यक्ति की पास की दृष्टि में दोष का लक्षण है। ये लक्षण 17-18 वर्ष की आयु से आरम्भ होते हैं। मस्तिष्क रेखा के आरम्भ में द्वीप होने पर जिगर
- रोग का कारण, जीवन रेखा के आरम्भ व मस्तिष्क रेखा
चित्र-142 में शनि के नीचे दोष होने पर, उदर रोग का कारण होता है। शुक्र उन्नत या मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप या जीवन रेखा सीधी होने पर अति कामुकता, अधिक
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बच्चे पैदा होने या प्रदर के कारण आंखें खराब होती हैं। दोनों हाथों में यह दोष हो तो वंशानुगत या जन्म से ही आंखों में रोग होते हैं।
दोनों हाथों में बुध के नीचे द्वीप आदि चिन्ह होने पर व्यक्ति के परिवार में भी किसी न किसी को आंखों का रोग होता है। परिवार का अभिप्राय अपने तथा मामा के वंश से है। इन्हें बड़ी आयु में काले मोतिया का ऑपरेशन, अन्धा या काना होने की सम्भावना होती है। बुध के नीचे हृदय रेखा में द्वीप व शुक्र उन्नत हो तो प्रेम सम्बन्ध का लक्षण है। यदि इस द्वीप को बाहर से आकर कोई रेखा भी छूती हो तो निश्चय ही प्रेम सम्बन्ध होता है।
हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप
यह द्वीप भी आंखों के दोषों को निश्चित करता है। शनि के पर्वत पर अधिक रेखाएं या मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर अवश्य ही आंखों में दोष होता है। सूर्य के नीचे हृदय रेखा में द्वीप दूर की नजर के लिए अच्छा नहीं माना जाता ( चित्र - 143 ) । अतिशय - कामुकता; पित्त या जिगर दोषपूर्ण होने के कारण आंखों में खराबी पाई जाती है । इसी लक्षण से सिर में भारीपन भी रहता है। एक बात विशेष ध्यान रखने की है कि हृदय रेखा में दोष होने पर मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो तो कुछ समय के लिए ही आंखों में दोष पैदा होते हैं। कालान्तर में आंखें ठीक हो जाती हैं। सूर्य के नीचे हृदय रेखा में दोष के साथ यदि मस्तिष्क रेखा में भी दोष हो तो सिर दर्द के कारण आंखें खराब होती हैं, जिससे काला मोतिया उतरने का डर रहता है। ऐसे व्यक्तियों को साइनस का रोग पाया जाता है। इन्हें नाक से दूध पीना, सूत्र- नेति करना, बादाम रोगन पीना लाभकर रहता है। ऐसे व्यक्तियों को पेट
में खराबी, नजला-जुकाम आदि का उपचार यथा समय व यथा शक्ति कराना चाहिए। स्त्रियों में आंखों के दोष, प्रजनन के समय में कोई गड़बड़, अधिक रक्त स्राव, दौरे या सिर में चोट लगने से होता है। हाथ में अधिक दोष जैसे प्रत्येक रेखा में विशेष दोष, मस्तिष्क रेखा अधिक दोषपूर्ण या जीवन रेखा टूटी हो तो मस्तिष्क में रसौली या कैंसर होने के कारण आंखें खराब हो जाती हैं। हृदय रेखा टूट कर मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे दोष हो तो अधिक रोने के कारण आंखों
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चित्र - 143
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में दोष होता है। सूर्य या बुध के नीचे कोई वृत्ताकार द्वीप चाहे यह कई रेखाओं के द्वारा ही बना हो या बाहर की ओर से कोई रेखा सूर्य या बुध के नीचे छूती हो (चित्र - 144 ) और मस्तिष्क रेखा में दोष व जीवन रेखा के आरम्भ में दोष हो तो पूर्णतया अन्धा होने का लक्षण है।
कई बार हृदय रेखा पर त्रिकोण का आकार भी बुध या सूर्य के नीचे देखा जाता है (चित्र - 145 ) । यह आकार निर्दोष हृदय रेखा पर होता है। वास्तव में यह द्वीप होता है और आंखों में विशेष दोष का लक्षण है। हृदय रेखा में नीचे की ओर होने पर यह अधिक प्रभावशाली होता है।
क
-
धे
चित्र - 144
हृदय रेखा मंगल से निकलने पर यदि सूर्य के नीचे द्वीप हो तो भी आंखों में दोष होता है। यह दोष पित्त के कारण आंखें खराब होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों के घर में तिरछा देखने वाले (भैंगे), एक आंख बन्द करके देखने वाले या सूर्यमुखी व्यक्ति होते हैं। सन्तान पर भी इसका प्रभाव देखा जाता है। ऐसे व्यक्तियों के चरित्र में किसी न किसी प्रकार का दोष भी होता है। हृदय रेखा, सूर्य के नीचे द्वीपयुक्त होने से सन्तान की आंखें कमजोर होती हैं। हाथ पतला होने पर अधिकतर बच्चों को चश्मे का प्रयोग करना पड़ता है और भारी हाथ होने पर एक या दो चश्मे लगाते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा में कोई दोष नहीं हो
चित्र - 145
तो कुछ समय के लिए ऐसा होकर आंखें ठीक हो जाती हैं।
सूर्य रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप
यह द्वीप भी आंखों के दोषों को निश्चित करता है। शनि पर्वत पर अधिक रेखाएं या मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर अवश्य ही आंखों में दोष होता है ( चित्र - 146 ) ।
सूर्य रेखा में हृदय रेखा के नीचे द्वीप, दूर की नजर के लिए अच्छा नहीं माना
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जाता। अतिशय- कामुकता, पित्त या जिगर दोषपूर्ण होने के कारण आंखों में खराबी पाई जाती है। इसी कारण से सिर में दर्द, भारीपन भी रहता है। उपरोक्त रोगों में सुधार होने पर यह रोग दूर हो जाता है।
स्त्रियों में आंखों के दोष प्रजनन के समय में कोई गड़बड़, अधिक रक्तस्राव, दौरे या सिर में चोट लगने से होता है। हाथ में अधिक दोष जैसे प्रत्येक रेखा में विशेष दोष, मस्तिष्क रेखा अधिक दोषपूर्ण या जीवन रेखा टूटी हो तो मस्तिष्क में रसौली या कैंसर
होने के कारण आंखें खराब हो जाती हैं। उन्नत शुक्र चित्र-146
होने पर, हृदय रेखा में द्वीप होने पर व्यक्ति का प्रेम सम्बन्ध होने का लक्षण है। हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप हो तो इन व्यक्तियों का प्रेम ऐसे व्यक्ति से होता है जो पूर्व परिचित नहीं होते। अपरिचित व्यक्तियों के एक-दूसरे को देखने मात्र से जो प्रेम होता है, उसके भी यही लक्षण हैं। यह प्रेम वास्तविक होता है और पूर्ण प्रेम का रूप ले लेता है। परन्तु ऐसे व्यक्तियों को एक-दूसरे पर शंका रहती है। अन्य लक्षणों द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि ऐसा प्रेम स्थायी रहेगा अथवा नहीं।
कई बार हृदय रेखा पर त्रिकोण का आकार भी बुध या सूर्य के नीचे देखा जाता है। यह आकार निर्दोष हृदय रेखा पर होता है। वास्तव में यह द्वीप होता है तथा आंखों में विशेष दोष का लक्षण है। हृदय रेखा में नीचे की ओर दोष होने पर यह. अधिक प्रभावशाली होता है।
== हृदय रेखा में शनि के नीचे द्वीप
हृदय रेखा में शनि के नीचे दो प्रकार के द्वीप मिलते हैं। एक तो हृदय रेखा में ही शनि के नीचे होते हैं, दूसरे इसमें मस्तिष्क रेखा की ओर त्रिकोण के आकार के होते हैं। हृदय रेखा के ऊपर के द्वीप दांतों के रोगों के लिए विचारणीय हैं जबकि मस्तिष्क रेखा की ओर वाले द्वीप गुर्दे, हर्निया, अण्डकोष या पौरुष ग्रन्थि के रोगों के लिए विचारणीय हैं (चित्र-147)।
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चित्र-147
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हृदय रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर दांतों
में कीड़ा लगना, खून जाना, गरम या ठण्डा लगना आदि रोग होते हैं। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे झुकाव या मोटापन इस लक्षण की पुष्टि करते हैं।
हृदय रेखा में शनि के नीचे द्वीप या मस्तिष्क रेखा की ओर त्रिकोण के आकार होने पर, हाथ भी कोमल हो तो पेशाब अधिक आना, पौरुष ग्रन्थि बढ़ना या अण्डकोष में चोट
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चित्र - 149
होता है। दांतों में रोग या बिजली से हानि इसके फल है।
चित्र - 148
पर
लगना आदि घटनाएं होती हैं। हाथ कठोर होने या जीवन रेखा में दोष होने एपेन्डिसाइटिस, शुक्र पर तिल होने पर गुर्दे में पथरी या बंध्याकरण आदि का ऑपरेशन होता है। ऐसे व्यक्ति भी प्रेम सम्बन्ध में पड़ते हैं परन्तु ऐसे सम्बन्ध अभिमान के कारण समाप्त हो जाते हैं। हृदय रेखा में शनि के नीचे कभी-कभी एक चतुष्कोण देखा जाता है। यह चतुष्कोण किन्हीं अन्य रेखाओं या विशेष भाग्य रेखा के द्वारा बना होता है, जो चतुष्कोण न होकर द्वीप ही
हृदय रेखा के अन्त में बृहस्पति पर द्वीप
चित्र - 150
हृदय रेखा के अन्त अर्थात् बृहस्पति पर द्वीप गले की बीमारी का लक्षण है । इस द्वीप के साथ जीवन रेखा के आरम्भ में भी दोष हो तो गले का ऑपरेशन करना पड़ता है। इससे टान्सिल या डिप्थीरिया होने की सम्भावना रहती है (चित्र - 150 ) |
हृदय रेखा में लगातार दो द्वीप हों तो भी गले में विशेष दोष का लक्षण है। इस दशा में हृदय
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व मस्तिष्क रेखाएं समीप हों तो सांस की नली का दमा होता है। ऐसे व्यक्तियों को खाते समय प्रायः कोई चीज अटक जाया करती है। मोटी रेखाओं से बना होने पर इनके गले में कोई चीज अटकने से मृत्यु होती है जैसे मछली का कांटा या हड्डी आदि । कभी-कभी यही दो द्वीप चश्मे का आकार बनाते हैं। कोई विशेष रोग न होने पर ऐसे व्यक्तियों का गला नाजुक होता है अर्थात् शीघ्र खराब होता है।
मोटी हृदय रेखा
इस प्रकार की हृदय रेखा अन्य रेखाओं की अपेक्षा मोटी देखने में आती है। कभी-कभी तो यह बहुत ही मोटी देखी जाती है अर्थात् इसकी मोटाई अन्य रेखाओं से लगभग दो गुनी तक होती है।
ऐसे व्यक्ति निर्दयी, क्षुद्र हृदय, लोभी तथा लोभ के वशीभूत होकर गलत कार्य करने वाले होते हैं। क्रोधी तो होते ही हैं, क्रोध के अन्य लक्षण होने पर तो इन दुर्गुणों की हद हो जाती है। जीवन व मस्तिष्क रेखा उत्तम होने पर आर्थिक स्थिति तो अच्छी रहती है परन्तु इनकी किसी से बनती नहीं और न ही इनके हाथ से किसी का भला होता है।
द्विभाजित हृदय रेखा
चित्र - 151
बुध के नीचे आरम्भ में द्विभाजित हृदय रेखा
हृदय रेखा आरम्भ में द्विभाजित होने पर यह द्वीप का कार्य करती है। इसका आकार त्रिकोण जैसा होता है। परन्तु यह द्वीप ही होता है (चित्र - 152 ) । जिस आयु तक द्विभाजन होता है, व्यक्ति को गृहस्थ जीवन व अन्य सम्बन्धों
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चित्र - 152
में परेशानी रहती है। शरीर व धन का कष्ट भी रहता है। अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर विछोह या तलाक
तक हो जाता है। इस प्रकार के द्विभाजन की
दोनों शाखाएं समान मोटाई की होती हैं।
शाखाएं समान मोटाई
की न होने पर भी फल तो यही होता है,
परन्तु अधिक प्रभाव नहीं होता ।
अन्त में द्विभाजन
अन्त में द्विभाजन दो प्रकार का होता है। एक तो जिस स्थान पर हृदय रेखा समाप्त होती है, वहीं पतली होकर द्वि-जिव्हाकार हो जाती है। ये जिव्हाएं पतली तथा छोटी होती है (चित्र - 154) । यह उत्तम लक्षण है। ऐसा व्यक्ति साधारणतया जीवन भर उन्नति की ओर अग्रसर होता जाता है और निर्मल हृदय व सच्चरित्र होता है। उतार-चढ़ाव तो जीवन में आते हैं परन्तु प्रभु कृपा से सभी बाधाएं पार हो जाती हैं। यह अन्य रेखाओं की तरह हृदय रेखा का गुण है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठ मानव व मानसिक रूप से प्रफुल्ल होते हैं।
दूसरे प्रकार के द्विभाजन में शाखाएं लम्बी और मोटी होती हैं। यह द्विभाजन न होकर हृदय रेखा की शाखाएं ही होती हैं। कई बार एक शाखा शनि पर व दूसरी बृहस्पति पर जाती है या मस्तिष्क रेखा पर मिलती है । मस्तिष्क रेखा पर मिलने की दशा में यह दोषपूर्ण
होती है और बृहस्पति पर जाने की दशा में व्यक्ति में अविश्वास की भावना पैदा
चित्र - 153
चित्र -- 154
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करती है। ऐसे व्यक्ति हर कार्य में अपना समर्थन चाहते हैं।
शनि के नीचे द्विभाजन अण्डकोष, गुर्दे, हर्निया व गर्भाशय के रोगों का लक्षण है। इस प्रकार की शाखाओं का वर्णन यथा स्थान पर दिया गया है। इस प्रकार की दोनों शाखाएं बराबर मोटी व लम्बी होती हैं। इन शाखाओं में बृहस्पति पर द्वीप गले के रोग या गले के कैन्सर और शनि पर कटि से जंघा तक होने वाले रोगों का लक्षण
= हृदय रेखा या उसकी शाखा मस्तिष्क रेखा पर
यह लक्षण हाथ में तीन प्रकार से पाया जाता है1. हृदय रेखा की कोई मोटी या पतली शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है। इनमें मोटी शाखा अधिक दोषपूर्ण फल करती है (चित्र-155) । 2. हृदय रेखा ही टूट कर मस्तिष्क रेखा पर मिलती है (चित्र-156) । 3. हृदय रेखा की कोई शाखा निकल कर मस्तिष्क रेखा की ओर तो जाती है परन्तु उस पर मिलती नहीं, यह अपेक्षाकृत कम हानिकारक होती है।
इन रेखाओं का प्रभाव उसी आयु में होता है जब ये हृदय रेखा से निकलती हैं, परन्तु मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर इसका फल, जिस आयु में यह हृदय रेखा से निकलती है और जिस आयु में मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, उसी अनुसार होता है। हृदय रेखा की शाखा का मस्तिष्क रेखा पर मिलना।
चित्र-155 अत्यन्त महत्वपूर्ण लक्षण है। किसी भी समस्या पर विचार करते समय यह लक्षण देखना अनिवार्य है। जिस आयु में हृदय रेखा की कोई शाखा या हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, उस समय महान कष्ट, विपत्ति, मानसिक कष्ट, धन हानि, रोग, विछोह, मुकद्दमे, मृत्यु या इस प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं। घटनाओं का ज्ञान हाथ में उपस्थित अन्य लक्षणों से भी करना चाहिए। हृदय रेखा से 2-3 या 4 शाखाएं मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो व्यक्ति को जीवन भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है, पूरे जीवन चैन की सांस नहीं मिलती। एक के बाद दूसरी समस्या चलती रहती है। यह पूर्व जन्म कृत किसी जघन्य पाप का लक्षण है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं, पतला अंगूठा या गोलाकार जीवन रेखा होने
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पर दोषपूर्ण फलों में कमी होती है।
हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर व्यक्ति का भाव पक्ष अधिक क्रियाशील होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की राय लेकर काम करते हैं और भावुक होते
मस्तिष्क रेखा की शाखा, हृदय रेखा पर मिलने पर उसी आयु में जीवन रेखा में दोष हो तो रोग, भाग्य रेखा में दोष होने पर काम धन्धे में परेशानी या जीवन साथी से विछोह अथवा जीवन साथी को रोग का सामना करना पड़ता है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष व जीवन रेखा से कोई उल्टी रेखा निकलने पर या जीवन रेखा टूटने पर भारी बीमारी, मृत्यु, चोट या दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। जिस आयु में हृदय रेखा से शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है व्यक्ति गम्भीर रूप से परेशान रहता है। धन, सम्पत्ति, बीमारी आदि में उसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त तंग हो जाती
चित्र-156
हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा के निकास स्थान पर मिलती हो (चित्र-157)। तो ऐसे व्यक्ति जीवन में भारी गलतियां करते हैं। इस आयु में दिवालियापन, किसी सन्तान आदि की मृत्यु, रोजगार डूब जाना आदि की घटनाएं होती हैं। 50 या 56 वर्ष 1 की आयु में तो यह योग जीवन में कोई ऐसी घटना ! छोड़ जाता है, जिसे याद करके व्यक्ति जीवन भर रोता रहता है। निश्चय ही यह लक्षण उन व्यक्तियों के हाथों में पाए जाते हैं, जिन्हें पूर्व कर्मानुसार कोई विशेष दुःख भोगना पड़ता है। इस आयु में सम्बन्धियों से झगड़ा, सन्तान मृत्यु, दुर्घटना आदि की घटनाएं होती हैं। मस्तिष्क रेखा शाखान्वित होने पर व्यक्ति कठिनाइयों को पार कर जाते हैं। मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर जाने की दशा में इस दुर्घटना के पश्चात् व्यक्ति का भी अन्त समीप समझना चाहिए।
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चित्र-157
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हृदय रेखा स्वयं मुड़कर या उसकी कोई शाखा मंगल या शुक्र पर जाती हो तो ससुराल में किसी व्यक्ति से जोरदार झगड़ा होता है (चित्र-158) कभी-कभी मुकद्दमे की नौबत भी आती है। ससुराल से हमारा तात्पर्य सास, ससुर, साला, मामा आदि से है। ऐसे व्यक्ति, इन सम्बन्धियों को कम प्रेम करते हैं और उनके यहां आना-जाना भी कम होता है। भाग्य रेखा, हृदय रेखा पर मिलने की दशा में अन्य लक्षणों के समन्वय से जो फलादेश होते हैं वे यथा स्थान बता दिये गये हैं। यहां इतना ही कहा जा सकता है कि किसी भी आयु में दोषपूर्ण फल का जितना अनुमान होता है, इस लक्षण की उपस्थिति में अनेक गुना वृद्धि कर देती है।
चित्र-158
रोमांचित हृदय रेखा।
रोमांच ऊपर की ओर
हृदय रेखा से छोटे-छोटे रोमांच (छोटी व महीन रेखाएं) निकल कर सूर्य या बृहस्पति अर्थात् ऊपर की ओर जाती हों तो व्यक्ति भाग्यशाली, महत्वाकांक्षी एवं गुण-सम्पन्न होता है। हाथ जितना उत्तम कोटि का होता है, उनका प्रभाव उतना ही अधिक पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों की सब इच्छाएं पूरी होती हैं। ये सन्तान या शिष्यों के कारण विशेष ख्याति प्राप्त करते हैं और अन्तिम जीवन सुख शान्ति से बीतता है।
रोमांच नीचे की ओर
हृदय रेखा से छोटी रेखाएं निकलकर मस्तिष्क रेखा की ओर जाती हों तो ऐसी हृदय रेखा रोमांचित हृदय रेखा कहलाती हैं (चित्र-159)। ऐसी रेखाओं की लम्बाई 1/8 इन्च से अधिक नहीं होनी चाहिए। कई बार बाहर से आने वाली रेखाएं भी रोमांच जैसी लगती हैं। इस प्रकार की रेखाएं या तो मिलने के स्थान पर पतली होती हैं या इनकी मोटाई एक जैसी होती हैं जबकि रोमांच निकास के स्थान पर मोटे और अन्त में पतले होते हैं।
ऐसे व्यक्ति भावुक व प्रेमी होते हैं। स्त्रियों के हाथों में यह लक्षण अतिशय भावुकता
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का चिन्ह है। जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा अलग व उंगलियां लम्बी हों तो ऐसा लक्षण स्त्रियों के लिए घातक होता है। ऐसे व्यक्ति से जीवन साथी या प्रेमी का बिछोह सहन नहीं होता। प्रेम के मामले में ये बहुत कच्चे होते हैं, जीवन साथी से बिछुड़ने पर वैराग्य ले लेते हैं और स्त्रियां रो-रोकर जीवन का अन्त कर लेती हैं। ऐसी स्त्रियां थोड़ी-सी बात पर अधिक हंसती हैं और इसी प्रकार छोटी-सी बात पर चिन्ता अधिक भी करती हैं। ये सौन्दर्य पिपासु, गुण ग्राहक होती हैं अतः गुणवान । व्यक्तियों पर बलिहारी होना इनका स्वाभाविक गुण है । और ऐसे व्यक्ति प्रेम-पाश में बहुत शीघ्र बंधते हैं। भाव
चित्र-159 या स्नेहातिरेक में ऐसी स्त्रियों को मर्यादा का ध्यान नहीं रहता फलस्वरूप बदनाम हो जाती हैं। यद्यपि इनका प्रेम वासना पूर्ति के लिए नहीं होता, परन्तु अपने प्रेमी या जीवन साथी की प्रसन्नता के लिए सभी कुछ सहन करती हैं क्योंकि इनमें समर्पण भाव अधिक होता है।
ऐसी स्त्रियां परिणाम की परवाह किए बिना प्रेमी के साथ भागने में भी संकोच नहीं करती, फलस्वरूप बदनामी, लांछन या प्रताड़ना का भाजन बनती हैं। ऐसे हाथों. का रंग काला होता है।
. ऐसे व्यक्तियों में तन्मयता होती है । यदि ईश्वर की ओर तन्मय हो तो सानिध्य प्राप्त हो जाता है, अर्थात् उच्च कोटि के सन्त हो जाते हैं और विरह साधना के द्वारा ही सफल होते हैं। असफल होने की दशा में आत्म हत्या करने तक को तैयार रहते हैं।
टेढ़ी या झुकी हुई हृदय रेखा
हृदय रेखा में झुकाव या टेढ़ापन व्यक्ति के पैरों में थकान, नींद अधिक आना, कमर दर्द व बड़ी आयु में कमर में झुकाव होने का लक्षण है। ऐसी स्त्रियों को प्रजनन समय में दोष होता है या अधिक सन्तान होने के कारण कमर झुक जाती है। हृदय रेखा गोलाकार होकर शनि के नीचे अधिक झुकी हो तो बड़ी आयु में व्यक्ति कुबड़ा हो जाता है। इस लक्षण से स्वयं को, पत्नी या माता को शारीरिक रोग रहता है।
हृदय रेखा सूर्य की उंगली के नीचे गोलाकार होकर झुकी हो तो व्यक्ति अनेक बार विदेश यात्रा करते हैं। इस दोष के साथ मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा के अन्य
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लक्षण भी फल कहने से पहले देख लेने चाहिए। यह झुकाव न होकर गोलाई होती है, जिसकी अधिक गहराई सूर्य के नीचे देखने में आती है।
= हृदय रेखा में त्रिकोण आदि
त्रिकोण जितना ही छोटा व स्वतन्त्र होता है, अधिक फल देने वाला होता है। बड़ी रेखाओं से मिलकर बना हुआ त्रिकोण इतना उत्तम फल नहीं देता। हृदय रेखा
में जितने त्रिकोण होते हैं, व्यक्ति उतने ही मकान, बगीचे, धर्मशालाओं या सम्पत्तियों का निर्माण करता है। हाथ की उत्तमता व भाग्य रेखाओं के फल पर त्रिकोण की उत्तमता का निर्णय किया जाता है। अतः हाथ की सामर्थ्य के अनुसार ही इसका फल बताना चाहिए।
हृदय रेखा में नीचे की ओर त्रिकोण (चित्र-160)। उस आयु में व्यक्ति की किसी मानसिक ठेस, बीमारी या हानि से रक्षा करता है।
हृदय रेखा में चतुष्कोण होने पर, उस आयु में चित्र-160
व्यक्ति के स्वभाव व सम्मान को ठेस लगती है परन्तु
_ विशेष हानि न होकर केवल दुःख ही होता है। शनि के नीचे हृदय रेखा में त्रिकोण (चित्र-161) 54 या 56 वर्ष की आयु में सम्पत्ति-निर्माण का लक्षण है। इस समय बनाई हुई सम्पत्ति सुख सुविधा से सम्पन्न होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे हाथों में जीवन रेखा अधूरी या टूटी नहीं होनी चाहिए अन्यथा फल में कमी या देरी होती है।
हृदय रेखा में सूर्य के नीचे त्रिकोण, मकान बनाने वालों के हाथों में होते हैं। हाथ में रेखाएं कम होने - पर यह त्रिकोण यदि छोटा भी हो तो मकान का आकार बहुत बड़ा होता है। अनेक बार सूर्य के नीचे लगातार कई त्रिकोण देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति या तो कई सम्पत्ति बनाते हैं या अनेक बार करके एक ही सम्पत्ति का निर्माण करते हैं। जीवन रेखा में शीन के नीचे भाग्य रेखा निकलने या शाखान्वित मस्तिष्क रेखा होने पर ये पास की जमीन को पूर्व निर्मित सम्पत्ति में मिलाकर
चित्र-161
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उसको बड़ा कर लेते हैं। कुछ भी हो सम्पत्ति का स्वरूप साधारण से बड़ा एवं सुन्दर होता है। जीवन रेखा, भाग्य रेखा व मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर व्यक्ति को सम्पत्ति बनाने में अड़चनों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति एक बार सम्पत्ति बनाकर दूसरी बार सम्पत्ति बनाने के पक्ष में नहीं होते, परन्तु फिर निर्माण करते हैं। भाग्य रेखा के आरम्भ में बड़ा द्वीप हो तो भी ऐसी भावना रहती है, जिसके कारण निर्माण में परेशानियां होती हैं।
हृदय रेखा में नीचे की ओर एक के बाद एक त्रिकोण हों तो व्यक्ति को जीवन में धीरे-धीरे करके मधुरता प्राप्त होती है, संकटों से रक्षा व जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति होती है। हृदय रेखा के ऊपर की ओर लगातार त्रिकोण हों तो जीवन में विशेष सुख प्राप्त होता है। ऊपर की ओर त्रिकोण होने पर उसी आयु में नीचे की ओर भी त्रिकोण हो तो जीवन में विशेष सुख का कारण बनता है जैसे घर में किसी भाग्यशाली सन्तान का जन्म लेना या धन लाभ होना आदि। ऐसे व्यक्तियों के एक से अधिक आय के साधन होते हैं।
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हृदय रेखा में तिल ।
हृदय रेखा में शनि के नीचे तिल हो तो हृदय कमजोर, आग का भय व वृद्धावस्था में लकवे का डर रहता है। सूर्य रेखा के नीचे हृदय रेखा में तिल होने पर आंख चले जाने का भय रहता है। ऐसे व्यक्ति वृद्धावस्था में अन्धे हो जाते हैं। सूर्य रेखा के नीचे हृदय रेखा में तिल बदनामी का भी लक्षण है। हृदय रेखा में बुध के नीचे तिल, आंखों में दोष, बदनामी, जहर से भय व चोरी आदि घटनाओं की चेतावनी देता है। यह तिल अच्छा लक्षण नहीं माना जाता। ऐसे व्यक्ति अधिक बहस करते हैं और झूठ को सच सिद्ध करने में कुशल होते हैं।
उभय रेखाएं
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जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का लम्बा जोड़
बहुत से हाथों में जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा दूर तक आपस में जुड़ी होती हैं। कभी-कभी तो यह जोड़ दो इंच तक देखा जाता है, परन्तु सवा या डेढ़ इंच होने
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पर हम इसे लम्बा मानते हैं। यह जोड़ उसी दशा में हानि कारक होता है, जबकि यह मोटा, द्वीपयुक्त या जर्जरित होता है, पतला, सुडौल, देखने में एक रेखा जैसा लगने वाला जोड़ विशेष हानिकर नहीं होता। इस दशा में जीवन या मस्तिष्क रेखा देर से आरम्भ हुई मानी जाती है (चित्र-162)।
यह जोड़ हाथ में जिस आयु तक होता है, अच्छा नहीं माना जाता। कुछ भी करने के बावजूद व्यक्ति इस समय तक सफल नहीं होता और न ही उसे किसी कार्य में सन्तोष प्राप्त होता है, कोई न कोई समस्या उस आयु तक सामने खड़ी ही रहती
1. जीवन व मस्तिष्क रेखा का लम्बा जोड़ 2. सम्मिलित हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा 3. सम्मिलित भाग्य व जीवन रेखा 4. इच्छा, भाग्य या बृहस्पति रेखा 5. मत्स्य रेखा 6. शुक्र या स्मृति रेखाओं में द्वीप 7. कुत्ता काटने वाली रेखाएं 8. शनि की उंगली में जाने वाली भाग्य रेखा 9. अंगूठे के मूल से शुक्र रेखाएं 10. भाग्य रेखा में चन्द्रमा पर तिल 11. भाग्य रेखा व प्रभाव रेखा में द्वीप 12. मस्तिष्क रेखा व राहु रेखा से बना द्वीप 13. अन्तर्ज्ञान रेखा को काटती प्रभावित रेखाएं 14. भाग्य रेखा के आरम्भ में त्रिकोणात्मक द्वीप
चित्र-162 15. मस्तिष्क रेखा में बुध के नीच त्रिकोण
__ इस जोड़ का प्रमुख लक्षण व्यक्ति के कान में खराबी होना है। जिस हाथ में यह जोड़ होता है उससे दूसरी ओर कान में पीप आना, मैल आना, खुश्की रहना, कान का पर्दा खराब होना या इस प्रकार की कोई न कोई व्याधि पाई जाती है। इस लक्षण को देखकर दोष का निर्णय कर लेना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति बचपन से स्वस्थ नहीं रहते, पेट, जिगर, सर्दी-बुखार आदि रोग 89 वर्ष तक परेशान करते रहते हैं। ये आरम्भ में होशियार व बीच में पढ़ाई में लापरवाह होते हैं, मस्तिष्क रेखा अच्छी होने पर भी अध्ययन में किसी न किसी प्रकार की रुकावट अवश्य देखी जाती है। एक-दो वर्ष खराब करते हैं या पढ़ाई बीच में छूट कर फिर आरम्भ होती है। ऐसे व्यक्ति किसी भी काम को जमकर लम्बे समय तक नहीं कर सकते। स्वास्थ्य के कारण अधिक परिश्रम या अध्ययन नहीं कर सकने से भी पढ़ाई में रुकावट आती है।
ऐसे विद्यार्थी दूसरे कार्यों में लगे रहते हैं, अपनी पुस्तकों को छोड़ कर अन्य
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पुस्तकें, नॉवेल, कहानियां आदि पढ़ते रहते हैं। फलस्वरूप अध्ययन में विध्न होता है। ये घबराते अधिक हैं, अतः परीक्षा काल में घबराहट या किसी रोग के कारण रूकावट उपस्थित होती है। ऐसे विद्यार्थी कुटेंव ग्रस्त होते हैं, प्रेम सम्बन्ध या अप्राकृतिक मैथुन आदि आदतें इन्हें बचपन में रहती हैं। इस कारण भी स्वास्थ्य में कमी व मस्तिष्क में थकान महसूस होती है। ऐसे व्यक्ति अपनी याददाश्त को कमजोर समझते हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता। जोड़ का समय निकल जाने के पश्चात् जिम्मेदार और अध्ययनशील रहकर सफलता प्राप्त करते हैं।
ऐसे व्यक्ति वहमी, आत्मविश्वासहीन व शीघ्र घबराने वाले होते हैं। किसी भी कार्य को समय पर नहीं करते, अवसर चूकने पर ही उसके पीछे दौड़ते हैं, फलस्वरूप इनके सोचे हुए कार्य से दूसरे ही लाभ उठाते हैं। ये किसी भी काम को जम कर लम्बे समय तक नहीं कर सकते, अत: जीवन में बार-बार काम या नौकरी बदलनी पड़ती है या दुर्भाग्यवश ही नौकरी छूट जाती है अथवा विचार न मिलने या नौकरी अस्थायी होने के कारण बदलनी पड़ती है। व्यापार में होने के कारण कुछ कठिनाई जैसे मशीन में खराबी, बिक्री ठीक न होना, अनुमान से अधिक लागत आना आदि झंझट भी होते हैं परन्तु झंझट समाप्त होकर काम ठीक चलने से पहले ही ये कार्य बदल देते हैं। इनकी आदत आज का काम कल पर छोड़ने की होती है। ऐसे व्यक्ति दीर्घ सूत्री होते हैं, आत्मविश्वास कम होने के कारण कोई भी निर्णय समय पर नहीं ले सकते और करें, न करें, क्या होगा, आदि में उलझे रहते हैं क्योंकि कोई भी काम अपने आत्मबल पर या अपने सहारे नहीं कर सकते। हर काम करने के लिए इन्हें किसी न किसी के साथ या समर्थन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए कुछ खरीदने के लिए बाजार जाना हो तो किसी साथी को लेकर जाते हैं। इसी तरह प्रत्येक कार्य में देरी होती है। इनके आलस्य में रति-प्रियता भी एक कारण होता है।
ऐसे व्यक्ति किसी बात को स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते और न ही अपने विचारों को ढंग से दूसरों के सामने रख ही सकते हैं। समय बीतने पर सोचते हैं कि अमुक बात इस प्रकार से कहनी चाहिए थी।
ऐसी स्त्रियां किसी बात को अनेक ढंग से समझती हैं। वहमी होती हैं और अपने पति पर शंका करती रहती हैं। रोने में तो ये मास्टर होती हैं। इनको मासिक धर्म का रोग, कान में खराबी, गर्भाशय के रोग, दौरे, बेहोशी, सिर में दर्द आदि के रोग होते हैं। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे विशेष दोष होने पर इन्हें भंयकर व गन्दे सपने आने से गर्भपात हो जाता है। लम्बी उंगलियां होने पर ऐसी स्त्रियां दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आती हैं और कभी-कभी दूसरों के प्रभाव में आकर जीवन खराब कर लेती हैं। इस दशा में जीवन रेखा भी दोषपूर्ण होनी चाहिए। ये भावुकतावश अपने पति
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को अपनी पहली गलतियां बता डालती हैं, फलस्वरूप गृहस्थ जीवन कटु और तलाक तक हो जाता है। ससुराल में जाने के पश्चात् इनके सामने कोई न कोई समस्या अवश्य होती हैं, जिसके कारण कुछ समय तक ससुराल में मानसिक अशान्ति रहती है। ऐसी स्त्रियां पलटकर जवाब नहीं देती, रोने लगती हैं। आरम्भ में ऐसा लगता है कि जैसे ये विवाह के पश्चात् फंस गई हों। भाग्य रेखा में दोष व हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर आने की दशा में या जीवन रेखा टूटी होने पर तलाक हो जाता है। ऐसी स्त्रियों के पति किसी दूसरी स्त्री के सम्पर्क में आने से इनकी ओर ध्यान नहीं देते। ये अच्छे कपड़े पहनना पसन्द करती हैं परन्तु अपने मन की इच्छा को किसी के सामने नहीं कहतीं । अन्याय होने पर ये अन्याय बर्दाश्त करती चली जाती है जिसका फल पागलपन, आत्महत्या या इस प्रकार की कोई दुर्घटना होती है।
जीवन रेखा सुन्दर व गोल होने पर इस दोष में बहुत कमी हो जाती है तो भी जोड़ के समय तक परेशानियां रहती हैं और कोई न कोई समस्या खड़ी रहती है। भाग्य रेखा व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर काम तो आराम से चलता है परन्तु स्वास्थ्य, परिवार या रोजगार की समस्या थोड़ी बहुत रहती है। जोड़ की आयु तक ऐसे व्यक्ति खर्चीले, लापरवाह और गैर जिम्मेदार होते हैं, अतः असफलता ही मिलती है। जोड़ लम्बा होने पर, अंगूठा कम खुलने व मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर इन्हें क्रोध में बेहोशी, कम्पन, पसीना या प्यास लगना देखा जाता है। इनकी हृदय गति क्रोध में बढ़ जाती है। बात काटने या क्रोध आने पर ये अपनी पत्नी पर हाथ उठा देते हैं।
ऐसे व्यक्ति मूडी होते हैं। नौकरी में होने पर ऐसे व्यक्ति अपने काम को सुचारू रूप से नहीं चला सकते। इन्हें अपने अफसरों के पीछे बकने की आदत होती है, फलस्वरूप इनके प्रति अफसरों का दृष्टिकोण अच्छा नहीं होता। ऐसे व्यक्ति अपनी सीट पर भी कम ही बैठते हैं। काम तो करते हैं, परन्तु देर से या बिगाड़ कर करते हैं। काम में गलतियां भी ऐसे व्यक्तियों से बहुत होती हैं। लिखेंगे कुछ लिखा जायेगा कुछ। स्वभाव ठीक न होने के कारण साथियों से भी मनमुटाव रहता है। अतः दफ्तर के काम में झंझट, रिपोर्ट खराब होना, बार-बार स्थानान्तरण आदि जोड़ की आयु तक होते हैं।
भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा में रुकी होने पर ऐसे व्यक्तियों के सामने अपने कार्य को सही प्रकार से नहीं करने के कारण विभागीय समस्याएं आती हैं। लापरवाही के कारण किये गये कामों के फलस्वरूप ये निलम्बित या बर्खास्त तक होते देखे जाते हैं । अतः इस प्रकार के व्यक्तियों को जब किसी जिम्मेदार जगह पर तैनात किया जाए तो इन्हें बहुत ध्यान देकर काम करना चाहिए। इनके हाथ से गलत काम हो जाना कोई बड़ी बात नहीं होती। ऐसे व्यक्ति की एक बात को कई बार पूछने की आदत
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होती हैं, तो भी शंका का समाधान नहीं होता। बार-बार पूछने के कारण भी कभी-कभी शंका पैदा हो जाती है और सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं। उंगलियां पतली, अंगूठा लम्बा, लचीला व पतला होने पर व्यक्ति सतर्क व मेहनती होता है। अतः उपरोक्त दोष कम होते हैं।
मस्तिष्क रेखा में थोड़ा भी दोष होने पर व्यक्ति किसी कार्य का विचार, कोई प्रण या मनौती करने के पश्चात् भूल जाते हैं। कभी-कभी देव दोष के कारण भी ऐसे व्यक्तियों को बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है।
जीवन रेखा एक हाथ में जुड़ी हुई तथा दूसरे में अलग होने पर व्यक्ति बहुत जिम्मेदार होते हैं परन्तु यह जोड़ लम्बा नहीं होना चाहिए। ये अपने वंश की उन्नति में विश्वास करते हैं। बृहस्पति बड़ा और भाग्य रेखा सुन्दर हो तो और भी अधिक दायित्व अनुभव करते हैं, किसी दायित्व को हाथ में लेने पर उसे पूरी तरह निभाते हैं। इस दशा में भी जीवन व मस्तिष्क रेखा के जोड़ की आयु समाप्त होने के पश्चात् ही जीवन बनता है। इनको मीठा बहुत पसन्द होता है, जबकि इससे हानि ही होती है। अधिक मीठा खाने से जिगर खराब हो जाता है और पेशाब, मधुमेह आदि रोग आ घेरते हैं, अतः ऐसे व्यक्तियों को मीठा अधिक नहीं खाना चाहिए ।
यह जोड़ लम्बा, पतला और सुन्दर हो तो इतना दोषपूर्ण फल नहीं करता। मोटा होने पर ही अधिक समस्याएं सामने आती हैं। पतला होने पर व्यक्ति को सिर दर्द रहता है, यह दर्द भयंकर होता है- इसे माइग्रेन ( आधा सीसी का दर्द) कहते हैं।
जोड़ लम्बा होने पर मस्तिष्क रेखा विशेष लम्बी, हाथ कठोर, मस्तिष्क रेखा के आरम्भ में द्वीप या मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति अध्ययन में ठीक नहीं होता । ग्रहण शक्ति कम होती है। अंगूठा कम खुलने पर ऐसे व्यक्ति या तो पढ़ते ही नहीं और पढ़ते हैं तो सालों तक एक ही कक्षा में रहते हैं। कई साल खराब करके शिक्षा अधूरी छोड़ते हैं। दोष निकलने या भाग्य रेखा व मस्तिष्क रेखा सुन्दर होने पर शिक्षा तो पूर्ण कर लेते हैं परन्तु व्यवधान अवश्य उपस्थित होता है।
ऐसे व्यक्तियों को पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ती है या परिवार में कोई ऐसी घटना होती है, जिसके कारण शीघ्र ही काम पर जाना पड़ता है। निर्दोष मस्तिष्क रेखा होने पर ये काम या नौकरी करने के साथ पढ़ते भी देखे जाते हैं। यह अवसर जोड़ का समय समाप्त होने पर ही आता है, इससे पहले रुकावट आती है या सफलता नहीं मिलती। जोड़ के समय व्यक्ति में अध्ययन रुचि नहीं होती, इधर-उधर बैठकर, सोकर तथा व्यर्थ की पुस्तकें पढ़कर अपना समय खराब करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को सन्तान जल्दी-जल्दी होती हैं और सन्तान को बचपन में सर्दी, नाक, गले, कान दर्द, बुखार या जिगर सम्बन्धी बीमारियां रहती हैं। बचपन में पेट
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खराब रहना, स्वप्न में बड़बड़ाना या बिस्तर में पेशाब करना आदि के दोष भी होते हैं। सन्तान का रंग व शक्ल एक जैसी नहीं होती। आधे बच्चे एक रंग व आकृति के और आधे दूसरी प्रकार के होते हैं। शिक्षा में भी इनके बच्चे प्रारम्भ में रुचि नहीं लेते। हाथ में अन्य लक्षण अच्छे होने पर आगे चलकर होशियार रहते हैं । इनके बच्चों में लम्बाई का भी यही हाल होता है। कुछ छोटे और कुछ कम लम्बे होते हैं। वैसे इनके बच्चे होशियार व चालाक होते हैं। बड़ा बच्चा सीधा, क्रोधी व लापरवाह और दूसरा तेज, चालाक व होशियार होता है। तीसरे बच्चे को कोई रोग जैसे, दौरे, आंख खराब या सांस जैसे रोग होते हैं। इनकी लड़कियों को मासिक धर्म सम्बंधी रोग पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के बच्चे 8 या 12 वर्ष की आयु तक स्वास्थ्य से कमजोर चलते हैं। लगभग हर बदलते मौसम में इनको बुखार आदि की शिकायत हो जाती है । किसी बच्चे के शरीर में गांठे भी रहती हैं, अधिकतर ऐसी गांठे गर्दन पर होती
हैं।
ऐसे व्यक्तियों के जीवन साथी का भी स्वास्थ्य ठीक नहीं होता । पुरुष होने पर इनकी पत्नी को प्रजनन कष्ट, मासिक धर्म व गर्भाशय के रोग, बेहोशी, अधिक लम्बा जोड़ होने पर दौरे आदि पड़ना देखा जाता है। कभी-कभी इन पर प्रेत-आत्मा का प्रभाव भी देखने में आता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इनकी पत्नी को स्नायु दोष होता है। ऐसी स्त्रियों को प्रजनन कष्ट के पश्चात् लम्बे समय तक कोई न कोई परेशानी रहती है और घर पर डाक्टर की निरन्तर कृपा बनी रहती है। यदि घर का वातावरण किसी स्त्री या पुरुष के कारण ठीक नहीं हो तो ऐसे व्यक्तियों की पत्नियों को न बोलने, अधिक सहन करने और मन में कुढ़ने के कारण स्नायु रोग हो जाते
हैं।
हृदयरेखा बृहस्पति पर जाने की दशा में भी पति-पत्नी का स्वभाव नहीं मिलता और मानसिक अशान्ति रहती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति शंका करते हैं। जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा होने पर यह संकट और बढ़ जाता है तथा अन्त तक व्यक्ति को जीवन साथी से अशान्ति रहती है। शुक्र उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति सदैव ही यौन सम्बन्ध में असन्तुष्ट रहते हैं क्योंकि ये अधिक वासना प्रिय होते हैं परन्तु इनके जीवन साथी को अधिक वासना की इच्छा नहीं होती । अधेड़ अर्थात् 40-45 वर्ष की आयु के पश्चात् इस प्रकार के झंझट बहुत अधिक देखने में आते हैं। पुरुष होने पर ऐसे व्यक्तियों की पत्नी अधिक सन्तान होने या देख लेने के डर से पति के पास नहीं जाती, फलस्वरूप पति इनसे असन्तुष्ट रहते हैं। स्त्री होने पर ऐसी स्त्रियां पति के चरित्र पर शंका करती हैं और उसकी गतिविधियों पर नजर रखती हैं। ऐसी स्त्रियों के पति
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के चरित्र में कोई न कोई दोष या खराब आदत अवश्य पाई जाती है और भी नहीं तो पति देर से घर पहुंचता है और पत्नी के प्रति उदासीन रहता है।
ऐसे व्यक्तियों के कान में दोष, सर्दी, जुकाम, खांसी, जिगर, नाक व पेट की बीमारियां पाई जाती हैं। अतः इस सम्बन्ध में इनको बहुत ही सावधान रहना चाहिए। ऐसे व्यक्ति बैठे-बैठे, पैर या कन्धे हिलाते हैं और बात करते समय विचित्र प्रकार की हरकतें करते हैं। यह सब, शरीर में वायु प्रधान होने के कारण होता है। इन्हें या इनकी पत्नी को जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द होता है।
एक हाथ में जोड़ लम्बा व एक हाथ में छोटा हो तो इनके बच्चों के सिर लम्बे होते हैं। इनके वंश में किसी न किसी को पैरों के रोग पाये जाते हैं। किसी के पैर में दोष जैसे पैर टूटना, लंगड़ा कर चलना, पैर छोटा होना आदि रहता है।
ऐसे व्यक्तियों को ससुराल गरीब मिलती है और रुकावट के पश्चात् विवाह होता है। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकी होने पर इनके दो विवाह होते हैं। ससुराल से इन्हें कोई लाभ नहीं होता। आरम्भ में ससुराल से कुछ न कुछ मन-मुटाव भी रहता है, फलस्वरूप कुछ समय तक वहां आना-जाना भी नहीं रहता।
जीवन रेखा टूटी, मस्तिष्क रेखा में दोष और हाथ उत्तम होने पर भी ऐसे व्यक्ति छोटी नौकरियां करते देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के परिवार वाले अपने-अपने दिमाग के होते हैं, एक-दूसरे को सहयोग नहीं देते और अपने-अपने कार्य में संलग्न रहते हैं। इन्हें किसी से सहायता नहीं मिलती। स्वयं ही अपने पैरों पर खड़े होकर चलना पड़ता है। वैसे ये सहृदय होते हैं, यदि इनकी परिस्थितियां अनुकूल हों तो दूसरों की सहायता भी करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को सम्पत्ति की समस्या भी रहती है। ये जन्म भूमि छोड़ देते हैं। सम्पत्ति बेचना, गिरवी रखना आदि की घटनाएं भी इनके जीवन में होती हैं। मस्तिष्क रेखा में दोष व बुध के नीचे मंगल पर तिल होने पर ऐसे व्यक्तियों की सम्पत्ति सरकार ले लेती है या पड़ोसी जायदाद का कुछ भाग दबा लेते हैं। किसान होने पर जमीन के झगड़े पाये जाते हैं। सम्पत्ति निर्माण करते समय भी ऐसे व्यक्तियों को कोई न कोई रुकावट आती है, जैसे पैसे का प्रबन्ध समय पर न होना, किसी कारण से चलता निर्माण बन्द होना, सामान न मिलना आदि। मुकद्दमा होने पर ऐसे व्यक्ति, जोड़ की आयु तक सफल नहीं होते। जीवन रेखा में चतुष्कोण होने पर मुकद्दमेबाजी अवश्य करनी पड़ती है। कोई सम्पत्ति खरीदते समय इन्हें सतर्क रहने की आवश्यकता है अन्यथा धोखा होने की सम्भावना रहती है।
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= हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा समानान्तर
बहुत से हाथों में हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर देखी जाती हैं। कई हाथों में तो शनि के पर्वत से लेकर बुध के पर्वत तक ही समानान्तर होती है। इस प्रकार की रेखा को हम समानान्तर हृदय व मस्तिष्क रेखा कहते हैं। यह आवश्यक नहीं कि दोनों में दूरी बिल्कुल समान ही हो, थोड़ा बहुत अन्तर होने पर भी ऐसी रेखाएं, समानान्तर ही मानी जाती हैं। जिन हाथों में हृदय रेखा शनि पर पूर्ण होती है या सीधी बृहस्पति पर जाती हैं, उनमें दोनों शाखाएं विशेषतया समानान्तर होती हैं।
हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होना व्यक्ति के चरित्र में गुण व दोष दोनों का ही परिचायक है। ऐसे व्यक्ति दृढ़ निश्चयी, किसी काम के पीछे पड़ने वाले होते हैं। जिस काम के पीछे पड़ते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं नहीं तो इनकी नींद हराम हो जाती है। यदि ये किसी सत्कार्य के लिए प्रयत्न करते हैं, तो किसी भी मूल्य पर उसे पूरा करते हैं, दुष्कर्म के विषय में भी यही दशा होती है। मित्रता होने पर ये किसी भी मूल्य पर मित्रता निभाते हैं और शत्रुता होने पर जब तक इनका शत्रु जीवित रहता है, एक सांस भी चैन की नहीं ले सकते। अतः उत्तम हाथ होने पर यह लक्षण गुणों और निकृष्ट होने पर दुर्गुणों का द्योतक है। ऐसे व्यक्ति शीघ्र उन्नति करते हैं। वास्तव में उपरोक्त लक्षण व्यक्ति का मानसिक विकार है, परन्तु सत्कार्य में लग कर यह उन्नति व प्रसिद्धि का कारण बनता है।
ऐसे व्यक्ति मिलनसार होते हैं। राह चलते से जान-पहचान करना इनकी आदत होती है। मित्रों में खर्चा भी करते हैं। ऐसे व्यक्तियों में मनुष्यता अधिक होती है और स्वार्थ व परमार्थ दोनों का ही ध्यान रखते हैं। दुष्ट के साथ दुष्ट तथा सज्जन के साथ सज्जन जैसा व्यवहार करते हैं। उंगलियां मोटी न होने पर क्षमा मांगने पर क्षमा भी कर देते हैं। ___इनका अपमान होने या किसी से खटकने पर जीवन भर उसे याद रखते हैं। ऐसे व्यक्ति एक गलती को अनेक बार करने के अभ्यस्त नहीं होते। यदि कोई व्यक्ति इन्हें पसन्द नहीं हो या किसी कारणवश घृणा उत्पन्न हो, तो जीवन भर उसका मुंह नहीं देखते। उदाहरण के लिए दाम्पत्य जीवन में साधारण-सी बात विशेषतया खटकने पर उसका परिणाम तलाक या विछोह हो जाता है। ये जिद्दी होते हैं, अत: विपक्ष को ही झुकना पड़ता है, टूट जायेंगे, मगर झुकेंगे नही। ये इनका सिद्धान्त होता है। अंगूठा न झुकने या कम खुलने पर, उंगलियां मोटी, हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा समानान्तर और हृदय रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो दस-दस बार तलाक
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होते देखा जाता है। अधिक दोष होने पर ऐसे व्यक्ति अपने जीवन साथी की जान भी ले लेते हैं। हाथ काला होने पर तो पिशाचत्व में कुछ भी शेष नहीं रहता।
ऐसे व्यक्तियों को कोई भी बात अधिक महसूस होती है अतः वंश न चलने, बदनाम होने या अधिक महसूस होने पर घर छोड़कर भाग जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं। मस्तिष्क रेखा को छूने पर हत्यारे होते हैं और जीवन में कई-कई हत्याएं कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति से झगड़ा श्रेयष्कर नहीं होता। क्रोध के समय इनके सामने बोलना या इनकी बात काटना मुसीबत को दावत देना है। ठण्डा होने पर इन्हें कुछ भी कहा जा सकता है। उस समय ये किसी बात को पूर्ण सहानुभूति व ध्यान से सुनते व अच्छा आचरण करते हैं।
बुध की उंगली का नाखून चौकोर, बृहस्पति के दोनों नाखूनों में अन्तर, मस्तिष्क रेखा की शाखा, हृदय रेखा पर या हृदय रेखा की ओर या मस्तिष्क रेखा दोनों ओर से द्विभाजित होने पर ऐसे व्यक्ति उत्तम कोटि के वैज्ञानिक, पत्रकार, इंजीनियर आदि होते हैं। ये शोध करते हैं। अन्य उत्तम लक्षण जैसे हाथ भारी व गुलाबी, सूर्य रेखा, बृहस्पति रेखा या शनि की उंगली लम्बी होने पर ये देश के गणमान्य एवं सम्मानित व्यक्ति होते हैं। इनकी लगनशीलता से देश धन्य होता है।
ऐसे व्यक्तियों का मस्तिष्क सदैव एक ओर ही काम करता है। अतः सड़क पर चलते समय ये कई दुर्घटना से बचते हैं। इनका नियोजन अपनी ही तरह का होता है। ये जीवन को जैसा बनाना चाहते हैं, बनाकर छोड़ते हैं, भाग्यवादी नहीं होते। अधिक सन्तान का भार भी ये सहन नहीं कर सकते, इच्छानुसार दो या तीन सन्तान होने पर आपरेशन करा लेते हैं या गर्भपात करा देते हैं। ऐसी स्त्रियां भी अधिक बच्चे पैदा करना पसन्द नहीं करती।
__हाथ गुलाबी व भाग्य रेखा पतली हो तो ये चरित्रवान होते हैं व कोई भी दोषपूर्ण आदत, यदि वंश के अनुसार नहीं हो तो इनमें नहीं पाई जाती। ऐसे व्यक्ति स्वतन्त्र मस्तिष्क के होते हैं और जाति, समाज, परिवार, पत्नी, माता, पिता किसी की परवाह नहीं करते। कोई भी बात जो इनके मस्तिष्क में ठीक जंचती है, किसी भी परिस्थति में उस पर अड़ जाते हैं। स्पष्ट वक्ता होने के कारण ऐसे व्यक्तियों का विरोध होता है। किसी से सहायता की इच्छा नहीं करते हैं और न ही मांगते हैं फलस्वरूप पूर्णतया स्वनिर्मित होते हैं। अपने पुरुषार्थ से ही जीवन में अच्छी उन्नति करते हैं।
ऐसे व्यक्ति का रिश्तेदारों, परिवार वालों, जाति वालों से, व राजनीति में होने पर पार्टी वालों से मतभेद रहता है। भाग्य रेखा पतली, हाथ नरम व अंगूठा अधिक खुलने पर, खुल कर विरोध तो नहीं करते परन्तु अपने मन में लम्बे समय तक बातें रखते हैं।
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काम करने का इनका अपना ही तरीका होता है। मस्तिष्क सुन्दर होने पर ये प्रत्येक कार्य को सरल व सुचारू बना लेते हैं। अतः शीघ्र सफल होते देखे जाते हैं। विश्वास करने का गुण तो इनमें होता ही है, परन्तु कार्य के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं करते। हो सकता है कि कुछ समय तक दूसरों के सहारे टिकें, अन्यथा स्वयं ही जी-जान से कार्य में जुट कर सफल होते हैं। क्रोध अधिक आने की प्रवृत्ति न हो तो सभी कठिनाइयों को बहुत आसानी से पार करते हुए चलते हैं।
हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर, भाग्य रेखा गहरी व मस्तिष्क रेखा लम्बी होने की दशा में ऐसे व्यक्ति कंजूस होते हैं। बहुत ही आवश्यक होने पर खर्च करते हैं अन्यथा नकद में विश्वास रखते हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण में उसकी सुन्दरता पर ध्यान नहीं देते। यदि इनका मकान गिरने वाला हो या मरम्मत मांग रहा हो तो जब तक चलता है ऐसे ही काम चलाते हैं, न ही खर्च करते हैं और न ही सम्पत्ति बनाते हैं।
हृदय व मस्तिष्क रेखा समान्तर होने पर, जीवन रेखा को छोटी रेखाएं काटती हों व भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास हो तो ऐसे व्यक्ति कम बोलने वाले और अधिक काम करने वाले होते हैं। इनके हाथों में अपने वंश की प्रतिष्ठा सुरक्षित ही नहीं रहती वरन् उसमें चार चांद लगते हैं। हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर यदि हाथ में उत्तम विशेष भाग्य रेखा हो तो अपने वंश में सबसे अधिक उन्नति करते हैं। ऐसे व्यक्ति वह कार्य करते हैं जो इनके वंश में किसी ने भी नहीं किया होता। वास्तव में ये लीक छोड़ कर चलने वाले सपूत होते हैं।
शुक्र प्रधान होने पर ऐसे व्यक्ति सौन्दर्य पिपासु होते हैं, यौन रुचि भी विशेष रूप से होती है, फलस्वरूप इस ओर ध्यान लगने पर दूसरी ओर का ख्याल नहीं रहता, अतः यह आदत जीवन में रुकावट बन कर खड़ी होती है क्योंकि ये पूर्णतया इसी के पीछे लग जाते हैं। ऐसे व्यक्ति अपना घर-बार, धन या प्रतिष्ठा सभी कुछ प्रेम में दांव पर लगा देते हैं।
बुध की उंगली टेढ़ी, हाथ काला, भाग्य रेखा मोटी और हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर हो तो ऐसे व्यक्ति डाका डालना, लूटना आदि काम करते हैं। ये आरम्भ में दयालु होते हैं, साथियों पर विश्वास करने या ज्यादा बर्दाश्त करते- करते धीरे-धीरे कठोर हो जाते हैं। इस प्रकार के फल जीवन रेखा को अधिक रेखाएं काटने, उंगलियां लम्बी, मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा से अलग तथा हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होने पर व्यक्ति के जीवन में होते हैं। हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर अत्याचार सहन करते-करते घृणा हो जाती है और हाथ विशेष कठोर होने पर या अंगूठा कम खुलने की दशा में प्रेम और सौहार्द, घृणा में बदल जाते हैं। परिवार, मां-बाप, सम्बंधियों, भाइयों आदि से भी ऐसे व्यक्ति सम्बन्ध तोड़
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लेते हैं, यहां तक कि उनकी शक्ल देखना भी पसन्द नहीं करते।
हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर व अंगूठा कम खुलने पर ऐसे व्यक्तियों को स्नायु रोग हो जाते हैं। मस्तिष्क रेखा लम्बी होने पर निश्चित रूप से ऐसा कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति मंत्र, सम्मोहन या ऐसी साधना में बहुत शीघ्र सफलता प्राप्त कर लेते हैं। इनके अधिक मित्र नहीं होते ।
भाग्य रेखा मोटी और जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा होने पर, ऐसे व्यक्तियों को अनेक स्थान परिवर्तन करने पड़ते हैं इसका कारण विरोध होता है । बृहस्पति की उंगली लम्बी या बृहस्पति उन्नत होने पर तो ये जेब में इस्तीफा लिए घूमते हैं। सम्मान पर ज़रा भी आंच आने पर फौरन इस्तीफा दे देते हैं, फलस्वरूप जीवन में स्थिरता देर से आती है। हाथ नरम, भाग्य रेखा सुन्दर, उंगलियां छोटी व पतली होने पर आरम्भ से ही स्थिर होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जितनी ही इनमें अधिक सहन शक्ति होती है उतनी अधिक उन्नति करते हैं। इनकी असफलता का मुख्य कारण इनका क्रोध ही होता है।
ये दूसरों पर निर्भर होकर जीना नहीं चाहते। अतः शीघ्र ही काम पर आ जाते हैं। व्यर्थ बैठ कर घर वालों की रोटी खाना पसन्द नहीं करते, अपने माता-पिता से भी पैसा मांगना पसन्द नहीं करते। अतः विद्यार्थी जीवन में भी कुछ न कुछ करते रहते हैं या सब कुछ छोड़कर पैसा कमाने की ओर ध्यान देते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने में मस्त रहने वाले होते हैं, परन्तु किसी का हस्तक्षेप अपने जीवन व विचारों में पसन्द नहीं करते।
स्त्री होने पर, ऐसी स्त्रियां अधिक बोलने वाली और थोड़ा भी क्रोध आने पर वातावरण खराब करने वाली होती हैं। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर, मस्तिष्क रेखा में दोष या मस्तिष्क रेखा झुक कर चन्द्रमा की ओर जाने की स्थिति में, चन्द्रमा या शुक्र उन्नत होने पर आत्महत्या कर लेती हैं। हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर, यदि मस्तिष्क रेखा में दोष, जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा होकर अंगूठा कम खुलता हो तो पागल हो जाती हैं। ऐसी स्त्रियां क्रोध में बच्चों को पीटने लगती हैं और फिर उनके साथ स्वयं भी रोती हैं। वैसे ये चरित्रशील, कम खर्च करने वाली व घर चलाने में निपुण होती हैं परन्तु इनके साथ सद्व्यवहार ही होना चाहिए। काला, पतला, टेढ़ा-मेढ़ा हाथ होने पर क्रोध में या शुक्र उठा होने पर यौन सन्तुष्टि के लिए दूसरों के साथ भाग भी जाती हैं या अपने पति की हत्या तक कर देती हैं। ऐसी स्त्रियों के पति भी क्रोधी होते हैं।
ऐसे व्यक्तियों की सन्तान उन्नति करने वाली, चरित्रशील व क्रोधी होती हैं। ऐसे बच्चों की स्मृति तीक्ष्ण होती है। बचपन में बहन-भाइयों में आपस में बिल्कुल नहीं बनती, यहां तक कि एक थाली में बैठकर भोजन नहीं कर सकते। बच्चों को नाक व गले के रोग अधिक होते हैं। हाथ के अन्य लक्षणों को देखकर इसका निर्णय कर
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लेना चाहिए।
हृदय व मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर अंगूठा कम खुलता हो या सडो तो ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् इनकी सन्तान में आपस में किसी बात को लेकर झगड़ा या मुकद्दमेबाजी होती है। __दोनों हाथों में इस प्रकार के लक्षण होने पर, इनके पिता सिद्धान्तवादी, सीधे व क्रोधी होते हैं। बड़ी आयु में उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। उनके घुटनों में दर्द व हृदय रोग या दमा आदि होता है। माता का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। उनको भी कुछ न कुछ कमी स्वास्थ्य की दृष्टि से रहती है।
दो गहरी रेखाएं, हृदय रेखा से मस्तिष्क रेखा पर मिलें तो समानान्तर हृदय व मस्तिष्क रेखा के प्रभाव को समाप्त कर देती हैं। ऐसे व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से भी निर्बल रहते हैं।
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समानान्तर हृदय व मस्तिष्क रेखा
हृदय और मस्तिष्क रेखा, किन्हीं हाथों में एक ही देखी जाती हैं। यह दो प्रकार की होती हैं, एक तो हृदय रेखा टूट कर मस्तिष्क रेखा के पास आकर इस प्रकार से मस्तिष्क रेखा पर मिलती है कि एक दिखाई देती हैं और दूसरे मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा प्राकृतिक रूप से होती ही एक हैं। हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होने पर कभी-कभी हृदय रेखा भी उपस्थित होती है। परन्तु यह पूर्ण न होकर इसका कुछ भाग ही होता है (देखें, चित्र-163)।
ऐसे व्यक्ति हाथ उत्तम होने पर बहुत सफल और दोषपूर्ण होने पर असफल या गलत काम करने वाले देखे जाते हैं। इनके मुंह में 32 दांत होते हैं। किन्तु एक दांत निकलवाना पड़ता है या खराब हो जाता है। ये चुप रहने वाले या बातूनी होते हैं। या तो बहुत मेहनत करते हैं या सुस्त पड़े रहते हैं। हाथ उत्तम होने पर ये नेक व्यवहार करने वाले देखे जाते हैं।
ऐसे व्यक्ति किसी बात को बहुत अधिक महसूस करते हैं। ये सतर्क होते हैं, अतः कोई भी जोखिम का कार्य जीवन में नहीं करते। दोनों हाथों में इस प्रकार का लक्षण होने पर व्यक्ति सफल परन्तु एक हाथ में होने पर तिकड़मबाज होते हैं। इनकी चालाकी को लोग पकड़ लेते हैं और अधिक समय तक तिकड़मबाजी ...1 नहीं चलती।
चित्र-163 233
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ऐसे व्यक्ति समय के अनुसार कोमल व कठोर होते हैं अर्थात् जैसा समय होता है, उसी प्रकार का व्यवहार करते हैं । स्वतन्त्र मस्तिष्क व स्पष्ट वक्ता होने के नाते दूसरों से इनकी कम बनती है। अंगूठा सुदृढ़, हाथ लम्बा व गुलाबी होने पर ये निश्चय के पक्के होते हैं। छोटी उंगलियों वाले अधिक स्वार्थी देखे जाते हैं, बिना स्वार्थ के बात-चीत करना भी पसन्द नहीं करते, हर कार्य में अपना ध्यान पहले रखते हैं। ऐसे व्यक्ति दान या परोपकार में विश्वास नहीं करते परन्तु गुलाबी हाथ हो तो परोपकारी होते हैं।
इनकी ध्यान शक्ति इच्छा होती है परन्तु अभ्यास निरन्तर नहीं चलता, फलस्वरूप देर से सफल होते हैं। जब सफलता होती है तो अभूतपूर्व होती है। ऐसे व्यक्ति भक्ति की ओर न जाकर, योग साधना की ओर बढ़ते हैं। हृदय और मस्तिष्क रेखा एक होने पर, यदि चन्द्रमा की ओर से कोई भाग्य रेखा का टुकड़ा मस्तिष्क रेखा को छूता हो तो 39 वर्ष की आयु में कोई प्रेम सम्बन्ध होता है। इस फल के लिए शुक्र उठा होना आवश्यक है। यह प्रेमी जीवन साथी की तरह से साथ लग जाता है, कभी-कभी तो ऐसे सम्बन्ध जीवन भर चलते देखे जाते हैं, परन्तु होते अनैतिक ही हैं।
काला हाथ होने पर ऐसे व्यक्ति दुनिया भर के ऐब करने वाले व चरित्रहीन होते हैं। मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से, अंगूठा मोटा व टोपाकार होने पर तो ये हत्यारे, मांस विक्रेता या इस प्रकार के कार्य करने वाले होते हैं । लेकर देना भी नहीं जानते। हाथ कोमल, भारी, चिकना, बड़ा व लम्बा हो तो दयालु होते हैं। समय पर नरम और समय पर कठोर होते हैं परन्तु इनको जब कोई बात चुभती है तो मरने के बाद ही मस्तिष्क से निकल पाती है। ऐसे व्यक्ति अपने शत्रु को जीवित नहीं देखना चाहते। ये स्पष्टवक्ता, सतर्क व चतुर होते हैं। मस्तिष्क रेखा में द्विभाजन, उंगलियां पतली या इस प्रकार के अन्य लक्षण होने पर अति चतुर होते हैं इन्हें स्वार्थी भी कहा जा सकता है।
इनके दोतों में रोग अवश्य पाया जाता है। यह इस लक्षण की एक मुख्य पहचान है, अतः इस लक्षण से दांतों में खराबी होना अति आवश्यक है। ऐसे व्यक्तियों में वीर्य विकार या यौन सम्बन्धी कमजोरी भी पाई जाती है। यह रोग मानसिक कमजोरी के कारण होता है, अतः जब भी मस्तिष्क पर दबाव होता है इस प्रकार की समस्या सामने आती है। इनके पैर में टखने के पास चोट लगती है, यह चोट साधारण नहीं होती। जीवन रेखा में दोष या अधूरी होने पर इन्हें सन्तान की परेशानी जैसे सन्तान न होना, पत्नी का गर्भपात आदि रहती है। इनकी पत्नी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता, बीमार चलती रहती है। इन्हें गर्भाशय की कमजोरी, श्वेत प्रदर या रक्त प्रदर, गर्भपात आदि रोग होते हैं और गर्भाशय के ऑपरेशन की सम्भावना रहती है। जीवन
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रेखा के आरम्भ में दोष होने पर, प्रथम सन्तान मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। ऐसा कहा जा सकता है कि इनकी पत्नी स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं होती। दोनों हाथों में इस प्रकार का दोष होने पर मां, दादी तथा एक पुत्रवधु को भी स्वास्थ्य चिन्ता रहती है। पति-पत्नी की आपस में बनती भी कम है। किसी न किसी बात पर तू-तू, मैं-मैं रहती है। बचपन में स्वयं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, नजला, खांसी, जिगर या दमा आदि रोग रहते हैं। इनका जीवन साथी जीवन भर साथ नहीं दे पाता, वृद्धावस्था में बिना जीवन साथी के रहना होता है।
रेखाओं में दोष या हाथ पतला होने पर ऐसे व्यक्ति हो सकता है कि कुछ समय तक नौकरी करें, अन्यथा व्यापार में ही जाते हैं। इन्हें पढ़ाई में भी रुकावट होती है। पत्नी का स्वभाव लोभी होता है। ऐसे व्यक्तियों की पत्नियां या तो बोलती नहीं या स्पष्टवक्ता होती हैं। इनके परिवार में सभी व्यक्ति समझदार होते हैं अतः एक-दूसरे के काम में दखल नहीं देते और न ही स्वतन्त्र होने के पश्चात् एक-दूसरे से ज्यादा सम्बन्ध ही रखते हैं। मां-बाप में से एक का स्वभाव चिड़चिड़ा व स्वास्थ्य नरम होता है। पिता या दादा को कई बार भारी हानि उठानी पड़ती है, परन्तु आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है। ऐसे व्यक्तियों के परिवार में अशान्ति विशेषतया स्त्रियों के कारण कलह रहता है। पुरुषों में भी कोई स्वार्थी व परिवार से उदासीन होता है। सम्मिलित कारोबार होने पर एक व्यक्ति अलग से धन इकट्ठा करता है। इन्हें तथा पिता को भाइयों के कारण कष्ट उठाना पड़ता है। यह परेशानी भाई के स्वार्थी होने, मृत्यु होने, परिवार पालने या बंटवारे सम्बन्धी हो सकती है।
ऐसे व्यक्ति मशीन का या तेल का व्यापार करते देखे जाते हैं। हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा का एक होना बहुत उत्तम लक्षण है परन्तु उत्तम हाथ में ही यह उत्तम फल प्रदान करता है। दोषपूर्ण हाथ में यह लक्षण विकार माना जाता है। ऐसे व्यक्ति काम करने वाले होते हैं तथा अपने काम को छोड़कर सामाजिक आदि कार्यों के चक्कर में नहीं पड़ते। पूरा ध्यान देकर ही किसी काम में लगते हैं।
इन्हें जीवन में एक या दो बार जेल जाने का डर भी होता है। ऐसे व्यक्तियों को पुलिस या अध्यापक होने पर मारपीट नहीं करनी करनी चाहिए अन्यथा इनके हाथ से किसी की मृत्यु की सम्भावना रहती है। अंगूठा छोटा, मोटा अथवा टोपाकार व मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से होने पर ऐसे व्यक्ति हत्यारे होते हैं। हत्या के अन्य लक्षण न होने पर देखा जाता है कि इनकी मोटर या अन्य वाहन जिसमें ये सफर करते हैं, से किसी की मृत्यु हो जाती है। यदि ऐसे व्यक्ति मोटर चलाते हैं तो मोटर उलटने या पहिया निकलने की घटनाएं अनेक बार होती हैं जिसमे इनके कन्धे, टांग या हंसली में चोट लगती है।
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इन हाथों में भाग्य रेखा विशेष रूप से बड़ी देखी जाती है। अत: विशेष भाग्य रेखा के सभी फल यहां लागू होते हैं। शनि व सूर्य की उंगली बराबर होने पर ऐसे व्यक्ति की रुचि सट्टे में होती है, क्योंकि जल्दबाज होने के कारण ये अपनी धन सम्बन्धी समस्या को शीघ्र ही हल करना चाहते हैं, परन्तु एक बात विशेष रूप से अनुभव की गई है कि यदि ये एक लाख रुपये से कम का सट्टा करें तो हानि होती है, इससे बड़े सट्टे में लाभ होता है।
हृदय और मस्तिष्क रेखा अधिक दूर ==
हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होना एक गुण है। ऐसे व्यक्ति को पूर्ण मनुष्य कहा जा सकता है। ये दयालु, दानी, उदार व विशाल हृदय होते हैं। उंगलियां लम्बी, हाथ गुलाबी तथा भाग्य रेखा पतली, विशेष भाग्य रेखा, भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर होने पर इस गुण में विशेष वृद्धि होती है। इनमें सहन शक्ति भी अधिक होती है।
अपने परिवार के विषय में ऐसे व्यक्ति उदार व सहनशील होते हैं, स्वयं हानि उठाकर भी परिवार का हित करते हैं। हृदय रेखा बृहस्पति की उंगली के पास हो तो भी इस गुण में वृद्धि हो जाती है, ऐसे व्यक्ति हर एक की मदद करते हैं। इसी उदारता के कारण ये नकद नहीं बचा पाते, सम्पत्ति ही अधिक होती है। इनके परिवार में सभी उदार-हृदय होते हैं, फलस्वरूप इनका सम्मिलित परिवार देर तक चलता है। दोनों हाथों में हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होने पर ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है। नौकरी करने पर कार्यालय में भी ऐसे व्यक्ति सहयोग से कार्य करते हैं। सन्यासी या गुरू होने पर अपने शिष्यों पर असीम प्रेम न्यौछावर करने वाले होते हैं। इनके शिष्य या सन्तान भी विशाल हृदय वाले होते हैं, आपस में वैमनस्य नहीं रखते।
हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर एक हाथ में अधिक हो तो परिवार में भाई या कोई अन्य स्वार्थी होता है, जिसके कारण सम्मिलित परिवार टूटने की नौबत आ जाती है, इन्हें यह बहुत महसूस होता है। ऐसे व्यक्ति सब कुछ अपने भाई के लिए छोड़ कर अलग हो जाते हैं या बंटवारे के समय स्वयं हानि उठाकर दूसरे भाइयों को लाभ देते हैं। इन्हें अति-मानव कहना चाहिए। मित्रों रिश्तेदारों व हर व्यक्ति से इन्हें हानि ही हाथ लगती हैं, कभी-कभी जानबूझकर भी हानि उठाते हैं।
___ अंगूठा लम्बा व उंगलियां पतली और छोटी होने पर समझदार होते हैं तथा उपरोक्त फलों में बहुत कमी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति में उदारता तो होती है परन्तु पात्रता भी
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साथ ही देखते हैं और परिस्थितियों का समन्वय करने के पश्चात् ही निर्णय लेते हैं। ये ईमानदार और सतर्क होते हैं।
= हृदय व मस्तिष्क रेखा पास-पास ।
हाथ में हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर कम होना एक विशेष लक्षण है। यह व्यक्ति के चरित्र, कार्यशीलता व मानसिक चिन्तन पर प्रभाव डालता है।
ऐसे व्यक्ति बहुत ही सतर्क, अत्याधिक क्रियाशील एवं प्रगति करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति पहले अपनी ही उन्नति में विश्वास करते हैं, तत्पश्चात् रिश्तेदारों व समाज की ओर ध्यान देते हैं। फलस्वरूप शीघ्र उन्नति करते देखे जाते हैं। ये बहुत ही उत्तरदायी होते हैं। ___ आर्थिक स्थिति ठीक हुए बिना या पूर्णतया पैरों पर खड़े हुए बिना ये विवाह नहीं करते। इन्हें कोई-कोई बात अधिक महसूस होती है और किसी का हस्तक्षेप भी अपने कार्य में सहन नहीं होता। इनके परिवार में प्रत्येक व्यक्ति इसी आदत का होता है। सब अपनी-अपनी व्यक्तिगत उन्नति करते हैं और पूरा परिवार ही उन्नति करता है। ___ऐसे व्यक्ति नकद धन संचय में विश्वास करते हैं। अतः समय मिलते ही धन इकटठा कर लेते हैं। भाग्य रेखा जिस आयु में पतली होनी आरम्भ होती है, ये धन बचाना आरम्भ करते हैं। भाग्य रेखाएं अधिक होने पर खर्च स्वभावतः ही अधिक होता है, तो भी ऐसे व्यक्ति बहुत देख भाल कर खर्च करते हैं। घर का खर्च अधिक होने पर व्यक्तिगत व्यय बहुत कम होता है।
ऐसे व्यक्ति जिससे सम्बन्ध बनाते हैं तोड़ते नहीं, बिगाड़ना भी पसन्द नहीं करते हैं, परन्तु कोई बात चुभने पर उदासीन हो जाते हैं। स्पष्ट रूप से तो नहीं बिगाड़ते, मगर मन से सम्बन्ध समाप्त कर देते हैं। अधिक मित्र या घुलना-मिलना भी इन्हें पसन्द नहीं होता। पत्र भी ये साधारणतया नहीं लिखते। जिस कार्य में इनका मन लग जाता है, उसी में पूर्णतया डूब जाते हैं, अतः कठिनाइयों के बावजूद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं । ऐसे व्यक्तियों का निश्चय बदला नहीं जा सकता, चाहे अध्ययन हो, चाहे प्रेम-विवाह का मामला।
ऐसे व्यक्ति के हाथ में भावुकता के लक्षण हों तो कार्य में असफल होने पर बहुत महसूस करते हैं और विशेष दोष होने पर आत्महत्या या जहर खाना आदि की घटनाएं इनके साथ होती हैं।
ऐसे व्यक्तियों के सम्बन्धी या मित्र भी अधिक नहीं होते क्योंकि धन व सम्बन्धों
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के विषय में ये बहुत ही अधिक सतर्क होते हैं। ये अपने से छोटे सदस्यों पर नियन्त्रण रखते हैं। अपनी बहन को घर से नहीं निकलने देते, छोटी-छोटी बात पर टोकते हैं
और समाज व व्यवहार के विषय में सावधान रहने की चेतावनी देते रहते हैं। ये स्वयं भी इसी प्रकार के होते हैं। कहने के पश्चात् ही इनका कार्य क्षेत्र समाप्त नहीं हो जाता, उस पर लगातार निगाह भी रखते हैं। ऐसे व्यक्तियों को क्रोध अधिक आता है, परन्तु मस्तिष्क रेखा लम्बी नहीं होने की दशा में प्रगट नहीं करते।
स्त्री होने पर उपरोक्त लक्षण तो पाये ही जाते हैं। ऐसी स्त्रियां घबराती बहुत हैं। मायके में पति के विषय में और ससुराल में माता-पिता या भाई-बहन के विषय में लगातार चिन्ता करती रहती हैं। शान्ति न इधर मिलती है, न उधर। ऐसी स्त्रियां समझदार, घर चलाने वाली, पैसा बचाने वाली व गृहलक्ष्मी होती हैं। किसी भी प्रकार की आदत ऐसी स्त्रियों में नहीं होती। हो सकता है कि कुछ समय तक भाग्य रेखा मोटी होने के कारण ससुराल की अपेक्षा माता-पिता को अधिक महत्व दें, परन्तु अन्त में विश्वास पात्र तथा उत्तरदायी होती हैं। ऐसी स्त्रियों को छोटी-छोटी बातें भी चुभती हैं और जरा सी बात पर रो देना इनकी आदत होती है। बुध की उंगली तिरछी होने पर ये हंसमुख होती हैं, परन्तु मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर ये केवल स्वयं ही मजाक करती हैं, दूसरों के मजाक करने पर बखेड़ा खड़ा कर देती हैं।
मस्तिष्क रेखा छोटी अर्थात् सूर्य की उंगली तक होने पर, शुक्र कम उन्नत, भाग्य रेखाएं अनेक, उंगलियां सीधी व सामान्य लम्बी होने पर व्यक्ति गणमान्य होते हैं। जिस समाज या वंश में ये जन्म लेते हैं, इनका महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्ति राजनीतिज्ञ होते हैं। वैसे तो सभी गुण इनमें होते हैं परन्तु किसी विशेष गुण के लिए विख्यात होते हैं।
हृदय और मस्तिष्क रेखा पास-पास होने पर इनके परिवार में सभी व्यक्ति चालाक व अपने ही कार्य में संलग्न होते हैं। एक हाथ में इसका अन्तर अधिक होने पर आधे व्यक्ति उदार व आधे चालाक देखे जाते हैं। यही दशा स्त्रियों की होती है। बोलने में थोड़ी तेज देखी जाती हैं और आभूषण व सम्पत्ति पर अधिक विश्वास होता है। ऐसे व्यक्तियों की पत्नी शरीर से भारी हो जाती हैं।
हृदय व मस्तिष्क रेखा अधिक पास होने पर सन्तान प्रखर बुद्धि होती हैं। छोटी आयु में ही इन्हें अपने पराये का ज्ञान हो जाता है अतः आपस में झगड़े होते हैं। इनकी स्मृति उत्तम होती है। ऐसे बच्चे विज्ञान या किसी विशेष विषय का अध्ययन करते हैं। लगन अधिक होती है और जल्दबाज होते हैं, कोई कार्य करने की बात मस्तिष्क में आने पर या किसी चीज की आवश्यकता महसूस होने पर बेचैम हो उठते हैं और
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जब तक वह कार्य पूरा नहीं हो जाता माता-पिता के लिए सिरदर्द बने रहते हैं। ऐसे बच्चों का स्वास्थ्य बचपन में ठीक नहीं रहता, इन्हें गला, पेट या फेफड़ों के रोग होते हैं। ऐसे बच्चे लोभी होते हैं, अतः जीवन में उन्नति करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को गले, नाक व फेफड़ों के रोग अधिक होते हैं। यदि विशेष परवाह अपने स्वास्थ्य के विषय में न करें तो इन्हें दमा हो जाता है। इनके पिता को या वंश में भी इस प्रकार के रोग होते हैं। परिवार में पैरों के रोग जैसे घुटने में दर्द, गठिया आदि भी देखने में आते हैं।
ऐसे व्यक्ति जिम्मेदारी अधिक नहीं उठाते। अतः परिवार की संख्या सीमित ही रहती है। जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा होने पर ऐसे व्यक्तियों की पत्नियों को गर्भाशय सम्बन्धी विशेष बीमारियों के कारण बेहोशी आदि फल होते हैं। गर्भपात के समय अतिस्राव भी जीवन में एक या दो बार होता है। कुछ भी हो ऐसे व्यक्ति वंश, घर व समाज के लिए वरदान सिद्ध होते हैं।
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अन्य महत्वपूर्ण रेखाओं का विस्तृत ज्ञान
= विशेष भाग्य रेखा =
हाथ में उंगलियों के पास, हृदय रेखा के ऊपर, बृहस्पति ,शनि व सूर्य के नीचे एक रेखा देखी जाती है (चित्र-164)। कई व्यक्ति इस रेखा को शुक्र-मुद्रिका
समझते हैं परन्तु यह शुक्र-मुद्रिका न होकर विशेष भाग्य रेखा होती है। यह रेखा सुख, प्रसिद्धि एवं समृद्धि का लक्षण है। यह हाथ का मूल्य बढ़ाने वाली और छोटी होने पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। बृहस्पति से सूर्य के नीचे तक इसकी स्थिति अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है और इसी दशा में यह सर्वोत्तम मानी जाती
शुक्र मुद्रिका, शनि की उंगली के पास से आरम्भ होकर सूर्य व बुध की उंगली के बीच जाती है। परन्तु
विशेष भाग्य रेखा मुड़ कर सूर्य की उंगली पर नहीं चित्र-164
___ जाती। कई बार टूटी शुक्र मुद्रिका का एक-भाग भी ऐसा ही लगता है। अतः सावधानी से इसका निर्णय कर लेना चाहिए। इसकी उपस्थिति में जंघा पर तिल होता है, यही इस लक्षण की पुष्टि
सूर्य, शनि व बृहस्पति पर विशेष भाग्य रेखा होने पर व्यक्ति में विशेषता रखते हैं और व्यक्तिगत गुणों। के आधार पर ही उन्नति करते हैं। खोज करने वाले लेखक, राजनीतिज्ञ व राजदूत आदि के हाथों में ऐसी ही रेखाएं देखी जाती हैं। ये रेखाएं उच्च पदस्थ सरकारी कर्मचारी, विशिष्ट पदों पर कार्य करने वाले, लिमिटेड कम्पनियों के प्रशासकों, सेना के अधिकारी व उद्योगपतियों के हाथों में पाई जाती हैं। इसके साथ गोलाकार जीवन रेखा, एक से अधिक भाग्य रेखाएं
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चित्र-165
H.K. S-15
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व हाथ सुन्दर भी हो तो कहना ही क्या? वस्तुतः यह रेखा अन्य सभी रेखाओं व लक्षणों का मूल्य बढ़ा कर कई गुना कर देती है।
ऐसे व्यक्तियों के हाथों में शुक्र रेखा जीवन रेखा के पास या जीवन रेखा को छूती हो (चित्र-165) तो ये नौकरी करते हैं। मध्यम-समकोण व चमसाकार हाथ नौकरी करने वालों के ही होते हैं, क्योंकि ऐसे व्यक्ति अपना जीवन स्वयं बनाते हैं
और अपने व्यक्तिगत गुणों से बिना किसी का सहारा लिए ही उन्नति करते हैं। अतः प्रारम्भ में नौकरी के बाद व्यापार करते हैं। मध्यम समकोण का तात्पर्य समकोण तथा कुछ दोषपूर्ण या मिश्रित समकोण हाथ से है।
विशेष भाग्य रेखा होने पर व्यक्ति की नौकरी का स्तर अपेक्षाकृत ऊंचा होता है, ये अपने कार्य में स्वतन्त्र होते हैं। प्रायः देखा जाता है कि इनके ऊपर कोई दूसरा अफसर या उच्च अधिकारी नहीं होता, यदि होता भी है तो वह इनके लिए रुकावट नहीं बनता, इनका व्यक्तित्व स्वतन्त्र होता है। बृहस्पति पर जीवन रेखा से रेखाएं जाने (चित्र--166) और भाग्य रेखाएं अनेक होने पर ऐसे व्यक्तियों की प्रत्येक इच्छा पूर्ण होती है। व्यापारियों के हाथों में ऐसा होने पर बड़े व्यापारी होते हैं। छोटा या प्रशासक हाथ होने पर ऐसे , व्यक्ति विभाग के प्रमुख अधिकारी जैसे डायरेक्टर, । चेयरमैन, स्वामी या प्रबन्धक होते हैं। बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी-सम्पन्न व्यक्तियों, नेताओं व पुलिस अफसरों के हाथों में भी ऐसी रेखाएं होती हैं।
इस रेखा की पुष्टि का चिन्ह जंघा पर तिल होता है। एक हाथ में यह रेखा होने पर उससे दूसरी ओर जंधा पर तिल पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों को वाहन का सुख मिलता है। विशेष भाग्य रेखा दोनों हाथों में -.. एक से अधिक होने पर इन्हें बार-बार वाहन बदलने की आदत होती है।
इन्हें एक्सीडेन्ट या जेल का भय भी होता है लेकिन जब तक हाथ में जेल जाने का कोई विशेष लक्षण नहीं हो, जेल जाने का फल नहीं कहना चाहिए। कई बार ऐसा देखा जाता है कि वारन्ट किसी दूसरे के नाम होता है और गिरफ्तारी इनकी हो जाती है, फलस्वरूप मानसिक परेशानी होती है और अन्त में जीत होती है। मंगल रेखा (चित्र-167) होने पर ऐसे व्यक्तियों के घरों में छापे पड़ते हैं। सार्वजनिक जीवन में ये राजनैतिक कारणों से जेल जाते हैं। व्यापारी होने पर जेल जाने का भय, टैक्स आदि कारणों से भी होता है। परन्तु इनके सम्बन्ध उच्च स्तर के व्यक्तियों से होते
चित्र-166
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हैं, अतः भय होकर भी रह जाता है, मान-हानि या सजा नहीं होती। इस प्रकार की घटनाएं जीवन में तीन बार तक होती है।
बुध की उंगली का नाखून छोटा व चौकोर हो तो विशेष भाग्य रेखा वाले व्यक्ति राजनैतिक जीवन में ख्याति प्राप्त करते हैं या तो ये चुनाव लड़ते हैं या योग्यता के आधार पर मनोनीत किये जाते हैं। निर्विरोध चुने जाने वाले व्यक्तियों के हाथों में भी ऐसी ही रेखाएं होती। हैं। ऐसे व्यक्ति किसी संस्था के प्रधान या मन्त्री होते I
हाथ निकृष्ट होने पर विशेष भाग्य रेखा हो तो अपने ही स्तर के व्यक्तियों में सम्मान प्राप्त करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं परन्तु हाथ उत्तम होने पर ऐसे व्यक्ति सेनानायक, शासन-शक्ति सम्पन्न, शोधकर्ता व असाधारण मानसिक दक्षता रखने वाले होते हैं। कलाकार, डाक्टर, प्रोफेसर, इन्जीनियर,
चित्र-167 वकील, सलाहकार, एडीटर आदि बौद्धिक-गुण कार्य को पूरे उत्तरदायित्व के साथ पूर्ण करते हैं और जिस कुल में पैदा होते हैं, उसका नाम ऊंचा करते हैं। चरित्रहीन या डाकू होने पर भी विशेषतया, सम्मान व ख्याति प्राप्त करते हैं यहां तक कि जेल में भी चौधरी ही रहते हैं। ऐसे व्यक्ति महत्वाकांक्षी. सद्भाव-सम्पन्न व परोपकारी होते हैं। कहा जा सकता है कि प्रभु ही इन्हें अधिकार सम्पन्न बनाते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को पड़ोसी, सम्बन्धियों व जाति या समाज, जहां ये काम करते हैं बहिष्कार, विरोध व तिरस्कार का सामना करना पड़ता है क्योंकि समाज इनके बढ़ते सम्मान व आर्थिक उन्नति से ईर्ष्या करता है परन्तु इनके समर्थक भी अधिक होते हैं, क्योंकि ये सदैव न्याय व सत्य का पक्ष लेते हैं।
इनका अपने परिवार के व्यक्तियों से भी विरोध रहता है, यद्यपि ये सभी की सहायता करते हैं परन्तु अन्त में उन पर प्रभाव जमाने में सफल हो जाते हैं। ये सिद्धान्तवादी, किसी बात को ठीक ढंग से सोचने वाले व अपने सिद्धान्त को कार्य रूप देने वाले होते हैं। अतः पुराने सम्बन्धों को रखते हुए भी नए समाज का सृजन कर लेते हैं। फलतः इनकी उन्नति के आरम्भ में बहुत कठिनाइयां व रुकावटें आती हैं। बड़ी आयु में ऐसे व्यक्ति-चिन्तन करते हैं क्योंकि मन व कर्म से सात्विक होते हैं। इस दशा में हाथ का रंग गुलाबी, मस्तिष्क रेखा में कोई दोष व अंगूठा लचीला होना अनिवार्य है।
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विशेष भाग्य रेखा होने पर बृहस्पति उन्नत व जीवन रेखा की कोई शाखा बृहस्पति पर जाती हो .. (चित्र-168) तो इनमें शासन करने का विशिष्ट गुण होता है। समय आने पर ऐसे व्यक्ति कुशल शासक सिद्ध होते हैं, इनके समर्थक अधिक होते हैं और हाथ अच्छा होने पर ये जनसमुदाय का हित सम्पादन करते
JLAT हैं। विशेष भाग्य रेखा वाले व्यक्ति को जीवन रेखा में दोष, टूटी या अधूरी रेखा होने पर क्रान्तिकारी स्वभाव के होते हैं और सेना या पुलिस में नौकरी करते हैं। विशेष भाग्य रेखा होने पर हाथ नरम, छोटा व
चित्र-168 एक से अधिक भाग्य रेखाएं हों तो व्यक्ति 25-26 वर्ष की आयु में ही अच्छा धन कमाने लगता है। नौकरी में होने पर इस आयु में अच्छी आय कर लेते हैं। हाथ में अधिक उत्तम लक्षण होने पर आय और भी अधिक होती है। यह भाग्य रेखा सूर्य की उंगली के नीचे तक पहुंचती हो तो व्यक्ति को तीन हजार रुपये प्रति मास तक की आय होती है और यदि शनि के नीचे तक ही हो तो बारह सौ रूपये से लेकर अट्ठारह सौ रूपये तक प्रतिमास आय रहती है। हाथ की उत्तमता व दोष के अनुसार इसमें कमी व अधिकता कर लेनी चाहिए। निर्दोष बुध रेखा होने पर ऐसे व्यक्ति व इनकी सन्तान धनी व व्यापारी होते हैं। व्यापारी होने पर ये दस, पन्द्रह या बीस हज़ार प्रति मास कमाते हैं। उपरोक्त उदाहरण के अनुसार समय के अनुकूल आय का अनुमान लगाया जा सकता है। सरकारी नौकरी में होने पर ऐसे व्यक्ति किसी बड़े अधिकारी या मन्त्री अदि के साथ कार्य करते हैं, ऐसी भाग्य रेखा होने पर व्यक्ति यदि चपरासी भी हो तो उसका सम्बन्ध किसी मन्त्री या इस स्तर के व्यक्ति से पाया जाता है। यह रेखा सम्मान का भी प्रतीक है।
विशेष भाग्य रेखा होने पर चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकल कर शनि पर जाती हो तो चुनाव लड़ते हैं। ऐसे व्यक्तियों का वंशानुगत धन्धा व्यापार होता है। भाग्य रेखा यदि हृदय रेखा पर रुकती हो तो जन-सम्पर्क का लक्षण है, जिसके कारण इनको लोकप्रियता व प्रसिद्धि प्राप्त होती है, धन का लाभ नहीं होता।
ऐसी भाग्य रेखा विशेष लम्बी होने पर व्यक्ति की रुचि साहित्य सृजन की ओर होती है। उच्च कोटि के लेखक व पत्रकारों के हाथों में भी यह रेखा पाई जाती है। मस्तिष्क रेखा, द्विभाजित या शाखान्वित होने पर ऐसे व्यक्ति साहित्य सृजन करते हैं। शुक्र या चन्द्रमा उन्नत होने पर श्रृंगार-साहित्य का निर्माण करते हैं। मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर या उसकी ओर हो, हाथ व उंगलियां लम्बी होने पर उत्तम, सैद्धान्तिक व लोकोपयोगी साहित्य का निर्माण करते हैं। ऐसे व्यक्तियों का साहित्य निश्चित रूप
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से ही समाज में सम्मान प्राप्त करता है। हाथ में दोष होने पर उत्तम और मध्यम दोनों प्रकार के साहित्य निश्चित रूप से ही समाज में सम्मान प्राप्त करता है। हाथ में दोष होने पर उत्तम और मध्यम दोनों प्रकार के साहित्य सृजन करते हैं।
बुध की उंगली तिरछी, बृहस्पति और बुध की उंगलियों के नाखून छोटे व चौकोर होने पर व्यवहारिक विशेषता पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति ज्योतिषी, वक्ता, उत्तम कोटि के आलोचक या पारखी होते हैं। बुध और शनि का नाखून छोटा होने पर धार्मिक, आत्म-ज्ञान या कृषि सम्बन्धी साहित्य का सृजन करते हैं।
शनि श्रेष्ठ व शनि की उंगली लम्बी होने की दशा में व्यक्ति धातु सम्बन्धी या आध्यात्मिक-साहित्य का निर्माण करते देखे जाते हैं।
कुछ भी हो ये कोई न कोई बौद्धिक विशेषता रखते हैं। रेखाओं में दोष होने पर दोष के अनुसार इनके स्वभाव में कोई न कोई लक्षण पाया जाता है, तो भी समय आने पर अपनी विशेषता प्रकट करते हैं।
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__ अन्तर्ज्ञान, स्वास्थ्य व बुध रेखा
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उपरोक्त तीनों नाम एक ही रेखा के हैं। यह रेखा अधिकतर हाथों में पाई जाती है। यह जीवन रेखा या चन्द्रमा के पास से निकल कर चन्द्रमा को एक ओर छोड़ती हुई, मस्तिष्क रेखा और कभी-कभी हृदय रेखा को भी काट कर आगे जाती है। जब यह मस्तिष्क रेखा से पहले ही समाप्त हो जाती है तो इसे अन्तर्ज्ञान रेखा या देवी-बुद्धि रेखा कहते हैं (चित्र-169)। मस्तिष्क रेखा को पार करके हृदय रेखा तक पहुंचने पर यही स्वास्थ्य रेखा कहलाती है। यही रेखा हृदय रेखा को काट कर सीधी बुध के पास जाती हो तो बुध रेखा या व्यापार रेखा कहलाती है। निर्दोष होने पर यह एक गुण है।
चित्र-169
= अफ्रज्ञान रेखा या देवी-बुद्धि रेखा
यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर बुध की ओर जाती हुई देखी जाती है और
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चित्र-170
मस्तिष्क रेखा पर या उससे पहले ही समाप्त हो जाती है। दोष पूर्ण होने पर यह उत्तम कोटि की मानसिक शक्ति का द्योतक है। ऐसे व्यक्तियों को आगे आने वाली घटनाओं का स्पष्ट पता लग जाता है। कभी-कभी यह रेखा चन्द्राकार भी होती है (देखें चित्र-170)।
इस रूप में यह और भी अधिक प्रभावशाली होती है। ये रेखाएं दो या तीन होने पर ऐसे व्यक्ति ईश्वर प्राप्ति के लिए अत्यन्त उत्सुक होते हैं। हाथ सुन्दर और निर्दोष व अन्तर्ज्ञान रेखाएं होने पर इन्हें साक्षात्कार के विषय में कोई शंका नहीं रहती। चन्द्रमा उन्नत होने पर ऐसे व्यक्तियों की भाव समाधि या चिन्तन के समय भावावेश या अश्रुपात
होता है। ऐसे व्यक्ति अत्यन्त प्रेमी व भावुक होते हैं। हाथ में भावुकता के अन्य लक्षण जैसे मस्तिष्क रेखा का अन्त चन्द्रमा पर या उसकी ओर, हृदय रेखा में रोमांच और मस्तिष्क रेखा में दोष आदि होने पर ये प्रेम साधना का मार्ग ग्रहण करते हैं। मंगल उन्नत, मस्तिष्क रेखा निर्दोष या उसका अन्त मंगल पर, मस्तिष्क रेखा के आदि और अन्त में द्विभाजन आदि बुद्धिवादी होने के लक्षण होने पर उपरोक्त रेखा
ज्ञान-योग की ओर ले जाती है। ऐसे व्यक्ति को लोग ) . 'गुरु जी' कहकर
चित्र-171 सम्बोधित करते हैं, चाहे उसकी ऐसी स्थिति हो या न हो, बृहस्पति मुद्रिका होने पर तो यह होता ही है। ऐसे व्यक्ति सहृदय, सच्चरित्र व साधक होते हैं। हर स्थिति में अंगूठा लचीला, लम्बा या पतला होना आवश्यक है। अंगूठे के मूल में अंगूठे को घेरती दो निर्दोष रेखाएं हों और चन्द्रमा पर अर्द्ध-वृताकार अन्तर्ज्ञान रेखा हो तो व्यक्ति समाधि में प्रवेश करता है। ऐसे व्यक्ति अदृश्य हो जाते हैं। मृत्यु के पश्चात् इनका शरीर लुप्त हो जाता है। ये समाधि में ही शरीर त्याग करते हैं। जमीन के बीच समाधि लेने
चित्र-172
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।
वालों के हाथों में यही लक्षण होते हैं। हाथ में आध्यात्मिक लक्षण न होने पर यदि इस प्रकार की दो रेखाएं जीवन रेखा से निकलकर बुध की ओर जाती हों। तो व्यकित को उत्तरोत्तर धनी बनाती है। (चित्र-171)। हाथ की सामर्थ्य अच्छी होने पर हवाई जहाज या पानी का जहाज खरीदते हैं।
अन्तर्ज्ञान रेखा होने पर शनि की उगली की दूसरी गांठ बड़ी हो तो व्यक्ति को ज्योतिष में रुचि होती है। अन्य लक्षण जैसे बृहस्पति मुद्रिका, मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा के बीच में क्रास (चित्र-172-73)। चिन्ह हाथ में उपस्थित होने पर व्यक्ति ज्योतिषी होता है। वैसे भी केवल अन्तर्ज्ञान रेखा होने पर इन्हें आगे होने वाली घटनाओं का ज्ञान स्वतः ही हो जाता है।
चित्र-173
स्वास्थ्य रेखा
अन्तर्ज्ञान रेखा ही मस्तिष्क रेखा से ऊपर निकलकर हृदय रेखा तक जाने पर स्वास्थ्य रेखा कहलाती है (चित्र-174)।
स्वास्थ्य रेखा का नहीं होना ही उत्तम है। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि जीवन रेखा में दोष होने पर जब व्यक्ति बीमार रहता है, तो यह रेखा हाथ में बन जाती है और सात साल तक रहकर स्वास्थ्य ठीक होने पर मिट जाती है। स्वास्थ्य रेखा निर्दोष होने पर इन्जीनियरिंग व गायन आदि में रुचि होती है। ऐसे व्यक्तियों को
रेडियो या टेलीविजन खरीदने, देखने या सुनने का शौक होता है। स्वास्थ्य रेखा दोषपूर्ण होने पर स्वास्थ्य सम्बन्धी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्तियों के जिगर में रोग, सिर में दर्द व पेट के रोग होते हैं। स्वस्थ्य रेखा लाल या काली होने पर कैंसर आदि भयानक रोग, इसमें द्वीप होने पर पेट का ऑपरेशन या सिर में चोट आदि की घटनाएं होती हैं। यहां एक बात विशेष रूप से वर्णन करने की है कि स्वास्थ्य रेखा का निकास जिस आयु में जीवन रेखा
से होता है, व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। जब भी मोटी चित्र-174
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CT
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भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकलती है, स्वास्थ्य खराब होता है। यदि स्वास्थ्य रेखा भी उसी स्थान से निकलती हो तो मृत्यु हो जाती है। दो मोटी भाग्य रेखाएं जीवन रेखा से निकलती हों तो पहले अवसर पर मृत्यु तुल्य कष्ट होता है व दूसरे अवसर पर उसकी मृत्यु हो जाती है। स्वास्थ्य रेखा जीवन रेखा के जिस स्थान से निकलती है, वहां 69 वर्ष की आयु मानी जाती है।
==बुध या व्यापार रेखा -
स्वास्थ्य रेखा जब हृदय रेखा को पार कर बुध की उंगली के नीचे तक पहुंचती है, तो इसका नाम बुध या व्यापार रेखा होता है (चित्र-175)। हाथ उत्तम व अन्य श्रेष्ठ लक्षण होने पर ऐसे व्यक्ति व्यापार में सफलता प्राप्त करते हैं। भाग्यवश चाहे इन्हें नौकरी करनी पड़े, परन्तु इनकी रुचि व्यापार में ही रहती है। व्यापार रेखा निर्दोष होने पर व्यक्ति कई राज्यों एवं देशों में व्यापार करता है। उत्तम व्यापार रेखा, सूर्य रेखा, अनेक भाग्य रेखाएं आदि लक्षण विदेश मन्त्रियों, राजदूतों आदि के हाथों में भी देखे जाते हैं। ये भी दूसरे देशों में रहकर अपने देश के व्यापार में उन्नति करते हैं। . श्रेष्ठ बुध रेखा बड़े-बड़े कारखानों के मालिकों के हाथों में भी होती है परन्तु यह अधिक मोटी या । । अधिक पतली न होकर निर्दोष होती है। दोषपूर्ण होने पर यह व्यक्ति को व्यापार, साझेदारी, उद्योग एवं स्वास्थ्य के विषय में चिन्ता का कारण होती है। जिस स्तर का हाथ होता है, उसी के अनुसार यह रेखा फल प्रदान करती है, अतः अन्य लक्षणों के साथ समन्वय करने पर ही इसका फल कहना उचित
चित्र-175
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मंगल रेखा
जीवन रेखा के समानान्तर अंगूठे की ओर चलने वाली रेखा को मंगल रेखा कहते हैं (चित्र-176)। यह रेखा जीवन रेखा से निकलकर स्वतन्त्र रूप से मंगल से उदय होती है। इस रेखा की मोटाई, निर्दोष होने पर, जीवन रेखा के समान या कुछ थोड़ी कम होती है।
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यह रेखा निर्दोष होने पर जीवन रेखा का सहारा मानी जाती है। जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर मंगल रेखा हो तो दोषों में कमी हो जाती है। अहितकर घटनाएं केवल मानसिक तनाव को छोड़कर अन्य फल नहीं देती-उदाहरणार्थ बीमार होने पर मंगल रेखा की उपस्थिति में बीमारी ठीक हो जाती है। शरीर में कोई दुष्प्रभाव छोड़कर नहीं जाती। दोषपूर्ण मंगल रेखा होने पर यदि जीवन रेखा में भी दोष हो तो कठिनाइयां अधिक आती हैं। जीवन रेखा के दोष से कठिनाइयों का जितना अनुमान होता है, मंगल रेखा
चित्र-176 में दोष होने पर उससे कहीं अधिक कठिनाइयों का सामना उस आयु में करना होता है। मंगल रेखा हाथ में तीन प्रकार से पाई जाती है
1.पहली प्रकार से जीवन रेखा से अलग होकर, यह रेखा निकलती है और इससे लगभग आधा या तीन चौथाई इन्च दूरी पर पूरी जीवन रेखा के साथ चलती है। ऐसी मंगल रेखा स्त्रियों या स्त्रियों से सम्बन्धित कार्यों जैसे श्रृंगार-सामग्री आदि से लाभ का लक्षण है।
2. दूसरे प्रकार की मंगल रेखा, मंगल से निकल कर जीवन रेखा से आधा इन्च या इससे भी दूरी पर होकर निर्दोष रूप में जीवन रेखा के साथ चलती है। यह मंगल रेखा केवल स्त्रियों से होने वाले लाभ का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों के किसी से अनैतिक सम्बन्ध देखे जाते हैं। ये सम्बन्ध लम्बे समय तक रहते हैं और लाभप्रद होते हैं। 3. तीसरे प्रकार की मंगल रेखा, जीवन रेखा के बिल्कुल आरम्भ से न निकलकर
बीच में कहीं से निकलकर जीवन रेखा से दूर होती हुई, शुक्र पर चली जाती है। ऐसी मंगल रेखा भूमि या सम्बन्धित व्यवसायों से लाभ होने के लक्षण हैं। ___ जीवन रेखा के आरम्भ से एक इन्च आगे, मंगल रेखा जैसी रेखा निकलकर शुक्र की ओर जाती है। यह
मंगल रेखा न होकर भाग्य रेखा होती है। इसका फल 2 जीवन में उत्तरोत्तर भाग्य व सुखवृद्धि होता है। ऐसे
व्यक्तियों का व्यावहार अपनी सम्पत्ति से मित्रवत् होता है। दोनों हाथों में होने पर यह अति श्रेष्ठ लक्षण है। (चित्र 177)इस रेखा का निकास जीवन रेखा से होता
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चित्र-177
मंगल रेखा दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति क्रोधी व स्पष्ट "248
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वक्ता होता है और इन्हें चुनौती देने की आदत होती है। निर्दोष मंगल रेखा व्यक्ति में शूरवीरता, निर्भयता आदि गुणों का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति जहां भी रहते हैं कोई न कोई झगड़ा साथ लगाए रखते हैं, क्योंकि इनमें सहनशक्ति नहीं होती। ऐसी स्त्रियां खाये बिना रह सकती हैं, मगर जवाब दिए बिना नहीं रह सकतीं। मंगल रेखा जीवन रेखा के पास होने पर विवाह शीघ्र होता है और ऐसे व्यक्ति अपनी पत्नी से सदैव सन्तुष्ट रहते हैं। यदि मंगल से कोई रेखा बहस्पति या शनि पर जाए तो भी विवाह शीघ्र ही होता है। ___ मंगल रेखा में दोष होने की दशा में हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क पर मिली हो या भाग्य रेखा में द्वीप हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। तथा एक से अधिक विवाह करने पर भी जीवन साथी का सुख नहीं मिलता। ऐसे व्यक्तियों को कभी-कभी दस-दस विवाह करने पड़ते हैं। मंगल रेखा में द्वीप हो या टेढ़ी हो या इसमें सितारा हो तो जीवन साथी की मृत्यु दुर्घटना, भयंकर रोग या आत्महत्या के द्वारा होती है। मंगल रेखा में द्वीप या दोषपूर्ण होने पर अन्य सभी रेखाओं में दोष हो तो जीवन का अन्त लम्बी बीमारी के पश्चात् होता है और जीवन भर कुछ न कुछ शरीरिक कष्ट लगा ही रहता है। ___ कोई गहरी रेखा मंगल से जीवन रेखा के आरम्भ से मिलती हो तो कोई दांत वाला जानवर जैसे कुत्ता, बन्दर आदि काटता है (चित्र-178)। इस दशा में बृहस्पति मुद्रिका कटी- फटी हो तो जहरीला इंजेक्शन लगता है। यही लक्षण सांप काटने या किसी जहरीले जानवर के काटने से भय का है। मंगल रेखा या स्वास्थ्य रेखा में शनि के नीचे द्वीप हो तो व्यक्ति का जिगर खराब होता है और पेट में रसौली के कारण ऑपरेशन होता है। दोषपूर्ण मंगल रेखा व्यक्ति के जीवन में कई अभावों की रचना करती है। इनके किसी सम्बन्धी को लगातार आर्थिक अभाव रहता है। अनेक प्रयत्न करने पर भी वह धन की दृष्टि से कमजोर ही बना रहता है।
हाथ पतला होने पर यह मंगल रेखा, जीवन रेखा के आरम्भ से निकले तो व्यक्ति अधिक कामुक होता है। मंगल रेखा दोषपूर्ण होने पर किसी अत्मीयजन की मृत्यु होती है। ___मंगल रेखा जीवन रेखा से जुड़ी हो तो ऐसे व्यकित किसी से लाभ नहीं उठा सकते। कोई स्त्री या पुरुष इनके जीवन में आता भी हो तो अपने अभिमानी स्वभाव के कारण उससे लाभ नहीं होता। जीवन रेखा के पास से मंगल रेखा निकलने पर व्यक्ति दूसरों से लाभ उठाते हैं। एक हाथ में ऐसा लक्षण होने पर किसी
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बच्चे व स्वयं को किसी स्त्री के कारण लाभ होता है।
मंगल रेखा होने पर निर्दोष राहू रेखा, हृदय रेखा तक गई हो, साथ में विशेष भाग्य रेखा और विवाह रेखा में त्रिकोण हो तो स्त्री होने पर पुरुष और पुरुष होने पर स्त्री से लाभ होता रहता है। इनके सम्बन्ध बड़े व्यक्तियों जैसे सेनानायक, राष्ट्रनायक, राष्ट्रपति आदि से रहते हैं। जासूस या चरित्रहीन होने पर ऐसी स्त्रियों के कारण कभी-कभी राष्ट्रपति या राष्ट्रनायकों को बदनाम होकर अपने पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
मंगल रेखा के आरम्भ, मध्य या अन्त में त्रिकोण हो तो भी दूसरों से लाभ होता रहता है।
हाथ में बृहस्पति मुद्रिका व मंगल रेखा हो, सूर्य रेखा, मस्तिष्क या हृदय रेखा से निकली हो, जीवन रेखा गोलाकार हो और भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकलकर शनि पर जाती हो तो पुरुष होने पर पुरुषों और स्त्री होने पर स्त्रियों से ही लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की सेवा करने वाले होते हैं। अंगूठे के नीचे शुक्र पर त्रिकोण से निकली हुई एक से अधिक शुक्र रेखाएं हों तो वसीयत या गोद से लाभ होता है (चित्र-179)।
पूरी व निर्दोष मंगल रेखा होने पर, जीवन रेखा घुमावदार हो तथा प्रभावित रेखा, भाग्य रेखा पर मिलती हो और अंगूठे के नीचे त्रिकोण सहित शुक्र रेखाएं हों तो स्त्री होने पर पुरुष और पुरुष होने पर स्त्री से लाभ रहता है।
मंगल रेखा व प्रभावित रेखा में तारा हो तो प्रेमी के कारण या तो मृत्यु का शिकार होना पड़ता है या दोनों की मृत्यु एक साथ होती है। अन्य दोषपूर्ण लक्षण देखकर यह निर्णय कर लेना चाहिए कि प्रेम में असफल होकर दोनों आत्महत्या तो नहीं कर लेंगे?
चित्र-179 मंगल रेखा होने पर, शुक्र प्रधान व उंगलियां लचीली या कठोर हों, हृदय रेखा बृहस्पति पर और भाग्य रेखा में प्रभावित रेखा हो तो व्यक्ति अपने प्रेमी को लेकर भाग जाते हैं। यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि हृदय रेखा बृहस्पति पर जाने की दशा में मस्तिष्क रेखा के समानान्तर हो जाती है और समानान्तर मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति जो भी विचार करते हैं, उसे किसी भी दशा में कार्य रूप में परिणित करते हैं। फलतः प्रेमी-प्रेमिका शीघ्र ही अपने ध्येय को पूर्ण करने की दिशा में भागने का विचार करते हैं। उंगलियां मोटी होने पर ये कोई न कोई बौद्धिक गलती करते हैं, अतः पकड़े जाते हैं। उंगलियां पतली व
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मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर दूर चले जाते हैं, पकड़ में नहीं आते।
मंगल रेखा होने पर शुक्र बैठा हुआ हो, हृदय रेखा, बृहस्पति पर, शुक्र रेखा जीवन रेखा से कोई भाग्य रेखा निकल कर शनि की ओर जाती हो और बृहस्पति मुद्रिका हो तो प्रेमी या प्रेमिका से लाभ होता है। ऐसे व्यक्तियों के सम्बन्ध सात्विक होते हुए भी, बदनामी मिलती है। शुक्र बैठा होने पर ये वासना प्रिय नहीं होते। प्रेम तो होता है, परन्तु वासना पूर्ति का विचार मन में भी नहीं आता, तो भी बदनाम तो हो ही जाते हैं। ___मंगल रेखा हो और सूर्य रेखा, जीवन रेखा से निकलकर सूर्य पर जाती हो तो सिनेमा, भूमि, खेती या खनन कार्य से बहुत लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति होटल का व्यवसाय भी करें तो लाभ होता है। शनि की उंगलियां लम्बी होने पर नाटक, अभिनय या लेखन से धन व सम्मान प्राप्त होता है। बृहस्पति मुद्रिका के साथ शनि की उंगली लम्बी होने पर गीता, भागवत, रामायण, बाईबिल आदि के लेखन व वाचन से लाभ होता है। मंगल रेखा पूरी होने की दशा में शनि की उंगली लम्बी, भाग्य रेखा गहरी या मंगल उन्नत हो तो बाग-बगीचें, फूल-फलों आदि से धन प्राप्त होता है।
मंगल रेखा, बुध की उंगली टेढ़ी व शुक्र पर अधिक रेखाएं हों तो भ्रमण, गाईड का कार्य, चढ़ाई चढ़ने, सैनिक शिक्षा, जानवर, पक्षी, सांप पालने या नाचने से लाभ होता है। मंगल रेखा होने पर शनि उन्नत, शनि की उंगली लम्बी, मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा के बीच सुन्दर क्रास हो तो जानवरों के प्रदर्शन, मन्त्र प्रभाव, हाथ के कला कौशल व चमत्कार आदि से धन व ख्याति प्राप्त होती है। मंगल रेखा पूरी, जीवन रेखा अधूरी और भाग्य रेखा टुकड़े-टुकड़े होकर आगे जाती हो, प्रभावित रेखा भी कुछ इसी प्रकार की हो तो साझेदारों के कारण चाहे ये परिवार के ही क्यों न हों, काम में रुकावट पड़ती है। ऐसे व्यक्ति स्वयं स्वभाव के तेज और झगड़े का कारण होते हैं। ___ मंगल से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा को बिना काटे इसके साथ चलती हो तो ऐसे व्यक्ति से लाभ होता है जो कठोर, कैदी या हत्यारे होते हैं। निर्दोष मंगल रेखा होने पर हृदय व मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हों तो धन व स्वास्थ्य की इतनी परेशानी नहीं होती, जितनी कि सिद्धान्त रूप में होनी चाहिए। मंगल रेखा में तिल होने पर सिर में चोट लगती है व भयंकर बुखार होता है। ऐसे व्यक्ति को विष का भय रहता है या कोई जहरीला जानवर काटता है। ये क्रोधी, किसी से न दबने वाले व खुलकर विरोध करने वाले होते हैं। ___ मंगल रेखा, जीवन रेखा के समीप होने पर, यदि बीच में काले दाग हों तो व्यक्ति को जहर दिया जाता है या वह स्वयं ही जहर खा लेता है। जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा अलग होने पर, आरम्भ में दोनों के बीच में चतुष्कोण हो तो व्यक्ति जहर खाता
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है। मगर बृहस्पति पर चतुष्कोण होने पर उसकी रक्षा हो जाती है। बृहस्पति पर पाया जाने वाला चतुष्कोण, व्यक्ति की प्रत्येक खतरे से रक्षा करता है।
राहु रेखा
साधारणतया मंगल से निकल कर, जीवन व भाग्य रेखा को काट कर मस्तिष्क रेखा को छूने या उसे भी काट कर हृदय रेखा तक जाने वाली रेखाएं, राहु रेखाऐ कहलाती हैं (चित्र-180, 181, 182)।
हाथ में इनकी संख्या एक से लेकर तीन-चार तक होती हैं। हाथ में अधिक रेखाएं होने पर ऐसी पतली रेखाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं। मोटी राहू रेखाएं अधिक महत्वपूर्ण
होती हैं।
ये रेखाएं दोषपूर्ण लक्षण हैं क्योंकि जिस आयु में मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा व जीवन रेखा को काटती है, उस आयु में परेशानी करती है। जीवन रेखा को काटने पर परिवार, सन्तान व स्वास्थ्य, भाग्य रेखा को काटने पर जीवन साथी को रोग व व्यापारिक चिन्ता तथा मस्तिष्क रेखा को काटने पर ये उस आयु में किसी सम्बन्धी की मृत्यु, हानि या बुखार का संकेत करती है। हृदय रेखा को छूने पर उस आयु में किसी प्रेमी
की मृत्यु या विछोह का संकेत है। चित्र-180
अनेक राहु रेखाएं होने पर व्यक्ति को हर दो या तीन साल के पश्चात् पतन का मुंह देखना पड़ता है और अन्तिम राहू रेखा की आयु के पश्चात् ही सांस आता है। राहू रेखा जितनी मस्तिष्क व जीवन रेखा के निकास के समीप होती है, उतनी अधिक दोषपूर्ण मानी जाती है। ___ मंगल से आकर मस्तिष्क रेखा पर रुकने वाली राहु रेखा मस्तिष्क रेखा को काट कर जाने की अपेक्षा अधिक हानिकर होती है और यदि यह मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा को काटने के बजाये, दोनों में ही रुकती हो तो अत्यन्त दोषपूर्ण होती है। यदि यह जीवन व
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मस्तिष्क रेखा के निकास के पास हो तो विशेष दोषपूर्ण फल प्रदान करती है। इस आयु में जीवन में ऊथल-पुथल, रोग, स्थान परिवर्तन, राजभय, मृत्यु, दुर्घटना आदि फल होते हैं। राहु रेखा थोड़ी भी दोषपूर्ण होने पर पतन की ओर ले जाती है। ऐसे व्यक्तियों को जेल का भय, दुर्घटना, या रोग आदि का सामना करना पड़ता है।
उत्तम हाथ में निर्दोष व लम्बी राहु रेखा, व्यक्ति को राष्ट्रीय सम्मान प्राप्ति की पुष्टि व विशेष उन्नति की सूचक होती है। इस प्रकार की निर्दोष राहु रेखाएं मन्त्रियों, बड़े व्यापारियों या शोधकर्ताओं के हाथों में पाई जाती हैं। निर्दोष राहु रेखा होने पर, यदि मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर हों तो ऐसे व्यक्ति नया अन्वेषण । करके राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करते हैं। इस दशा में राहु रेखा हाथ के मूल्य को बढ़ा देती है। मस्तिष्क रेखा शाखायुक्त, द्विभाजित या इससे भाग्य रेखाएं निकलने पर सम्मान प्राप्ति में कोई शंका नहीं रहती। नौकरी में होने पर कोई विशेष प्रमाण पत्र, सम्मान या पदक मिलता है, जो जीवन में महत्व रखता है। इनके सम्बन्ध सेना के बड़े अफसरों और मन्त्रियों जैसे बड़े व्यक्तियों -7 से होते हैं।
चित्र-182 ___ मस्तिष्क रेखा या इसकी शाखा बुध पर जाने की दशा में यदि राहु रेखा से बुध पर बड़ा द्वीप बनता हो तो व्यक्ति सम्मानित व शक्ति सम्पन्न होता है। ऐसे व्यक्ति मन्त्री होते हैं (चित्र-183)। राहु रेखा मामा के वंश के लिए अच्छी नहीं मानी जाती। ऐसे व्यक्तियों के मामा
के वंश में किसी व्यक्ति को सन्तान सुख नहीं होता। कोई युवावस्था में मरता है, सन्तान कन्या ही होती है या विवाह न करने के कारण सन्तानहीन रहते हैं। यह रेखा जितनी ही जीवन व मस्तिष्क रेखा के निकास के समीप होती है। उतना ही नाना के वंश में अधिक दोष होता है। कभी-कभी तो नाना का वश ही समाप्त "हो जाता है। निकास के समीप होने पर यह रेखा 18 वर्ष की आयु तक जीवन में दुःखद घटनाओं का लक्षण है। स्वयं या नाना के वंश में कोई बड़ी दुर्घटना जैसे किसी की मृत्यु, कत्ल आदि घटनाएं होती हैं, अधिक मोटी होने पर वंश समाप्त हो जाता है।
बाल्यावस्था में घर से दूर रहना, परिवार में धन चित्र-183
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हानि, अपने वंश में एक से अधिक विवाह, माता-पिता में से एक की मृत्यु या एक को स्वास्थ्य दोष, चाचा-चाची व बुआ आदि को वैधव्य जैसी घटनाएं ही इसके लक्षण हैं। प्रारम्भिक जीवन में ऐसे व्यक्तियों को सब प्रकार की रुकावटें आती हैं और 35 वर्ष की आयु के पश्चात् निरन्तर उन्नति करते देखे जाते हैं।
मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा, हृदय रेखा या जीवन रेखा में दोष होने पर यह रेखा दोषपूर्ण फलों में वृद्धि करती है। जैसे-जैसे इन रेखाओं में सुधार होता है, इसका फल भी उत्तम होता जाता है। उत्तम हाथ में निर्दोष राहु रेखा महानता की सूचक है। निर्दोष राहू रेखा होने पर व्यक्ति विनम्र और टूटी-फूटी होने पर क्रोधी होता है। मस्तिष्क रेखा, मंगल से निकली होने पर ऐसे व्यक्ति कत्ल तक कर देने की हिम्मत रखते हैं। लड़ाई के समय इनसे दूर रहना चाहिए। मोटी राहु रेखा वाले बाल्यकाल में झेंपू, भोंदू व शिक्षा में अच्छे नहीं होते ।
राहु रेखा व्यक्ति के पैरों में कमजोरी, टांगों पर किसी चीज़ का गिरना, घुटनों में वायु का प्रभाव होने से दर्द, शरीर में दर्द, बवासीर, आमाशय सम्बन्धी विकार, फोड़े-फुन्सी आदि का भी संकेत है। बचपन में ऐसे व्यक्ति बिस्तर में पेशाब या पखाना करते हैं। इस दशा में मस्तिष्क रेखा में दोष होना आवश्यक है। राहु रेखा वाले व्यक्तियों
की जीवनरेखा मोटी रेखाओं द्वारा काटे जाने पर परिवार
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में विरोध रहता है। इनको शंका होती है कि कोई
सम्बन्धी या परिवारी इन्हें बरबाद करने पर तुला हुआ है और जादू टोने आदि का सहारा लेता है। विशेषतया
स्त्रियां ऐसा अधिक सोचती हैं।
ऐसी स्त्रियों को गर्भाशय रोग, आंखों में कमजोरी, सिर में दर्द व स्तन रोग का भी सामना करना पड़ता है । इनको गर्भाशय में सूजन या मासिक धर्म के रोग रहते हैं। किसी सन्तान की बचपन में मृत्यु या रोगी रहना, चोरी से हानि, सिर में चोट और बवासीर आदि रोग देखने में आते हैं।
चित्र - 184
जीवन रेखा से निकल कर, मस्तिष्क रेखा में मिलने की दशा में राहु रेखा सीधी न होकर यदि कुछ गोलाकार हो तो अधिक दोषपूर्ण होती है ( चित्र - 184 ) | यह मस्तिष्क रेखा में मिलने पर एक त्रिकोण का आकार बनती है। इसको त्रिकोण न मानकर द्वीप माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों को राहू रेखा से होने वाले सभी खराब फल प्राप्त होते हैं जैसे टांग टूटना, कन्धे में चोट, चोरी से हानि, जादू-टोने का भ्रम, जीवन रेखा, दोषपूर्ण होने की स्थिति में स्वास्थ्य खराब, स्वयं को या पत्नी को दांतों में रोग आदि घटनाएं होती हैं।
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सेना में होने पर उपरोक्त राहू द्वीप वाले व्यक्ति गोली से बचते हैं। स्त्री होने पर स्वयं तथा पुरुष होने पर पत्नी को गर्भाशय रोग जैसे रसौली, गर्भपात, सूजन, रक्त में कमी आदि रहते हैं। जिस आयु में ऐसी राहु रेखा, हृदय रेखा में मिलती है, उस समय तक जीवन का अभ्युद्य नहीं होता। इनके वंश में कोई स्त्री विधवा रहती है व पुरुष के दो विवाह होने का योग होता है। ऐसे व्यक्ति स्वभाव के तेज स्पष्ट वक्ता व क्रोधी होते हैं। जिस आयु में यह मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, उस आयु में सन्तान की लापरवाही, असामाजिक कार्यों व व्यवहार के कारण चिन्ता रहती है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन साथी वृद्धावस्था तक साथ नहीं देते।
राहु रेखाएं पास-पास दो या तीन होने पर यदि निर्दोष भी हों और हाथ अच्छा हो तो ऐसे व्यक्ति राजनीति में ऊंचे पदों पर पाये जाते हैं। इन्हें राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त होता है। तीन राहु रेखाएं होने पर गोद की सम्पत्ति का भी लाभ प्राप्त होता है। दो या अधिक राहु रेखाओं से मिल कर मस्तिष्क रेखा में द्वीप बनता हो तो वंश में जवान मृत्यु का संकेत है, ऐसी दशा में कई मृत्यु भी होती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा टेढ़ी हो तो इसमें कोई शंका नहीं रहती।
राहु रेखा बुध तक जाती हो तो चालबाजी से सम्मान प्राप्त करते हैं। हाथ में मंगल रेखा होने पर साहसिक कार्य से, शनि की उंगली लम्बी व चन्द्रमा उन्नत होने पर संगीत, गायन या वादन से, विशेष भाग्य रेखा और उंगलियां लम्बी होने पर समाज सेवा से, बुध उन्नत व मस्तिष्क रेखा में दोनों ओर द्विभाजन होने पर बौद्धिक कार्य से, मस्तिष्क रेखा की शाखा चन्द्रमा की ओर जाने पर साहित्य सृजन के द्वारा, मस्तिष्क रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं निकलने व मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर होने पर किसी अनुसंधान कार्य से, सम्मान प्राप्त होता है। बुध की उंगली टेढ़ी व छोटी होने पर ऐसे व्यक्ति गुप्तचरी कार्य के द्वारा सम्मान प्राप्त करते हैं।
जिस आयु तक मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा को मोटी राहु रेखाएं काटती रहती हैं, उस आयु तक भाग्योदय नहीं होता, उस आयु के पश्चात् ही उन्नति कर पाते हैं तो भी जीवन भर इन रेखाओं का कुछ न कुछ प्रभाव बना रहता है।
राहु रेखा होने पर यदि जीवन रेखा की शाखा चन्द्रमा पर जाती हो या जीवन रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो व्यक्ति को विवाह के पश्चात् शान्ति नहीं मिलती। ऐसे व्यक्तियों के इनके जीवन साथी से विचार नहीं मिलते। ___ भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा पर रुकने के स्थान पर राहु रेखा मस्तिष्क रेखा को काटती हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। जीवन रेखा को आरम्भ में गहरी राहु रेखा काटती हो तो प्रारम्भ से ही सम्पत्ति या अन्य झगड़े या मुकद्दमें बाजी आरम्भ हो जाती हैं और पूरे जीवन भर इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं। भाग्य रेखा, हृदय रेखा में रुकी होने की दिशा में 50 वर्ष के पश्चात् ही ये झगड़े समाप्त हो
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पाते हैं।
भाग्य रेखा में द्वीप होने पर इसे गहरी राहु रेखा काटती हों तो जीवन साथी से विछोह या तलाक हो जाता है। ऐसी मोटी रेखा जब निर्दोष भाग्य रेखा को काटती है तो कार्य में परिवर्तन, नौकरी में होने पर अवांछित स्थानान्तरण आदि की घटनाएं होती हैं।
राहु रेखा की उपस्थिति में, पारिवारिक कलह के लक्षण होने पर पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती। इनके जीवन साथी को उसके परिवार का कोई विशेष व्यक्ति जैसे मां इत्यादि उल्टा-सीधा सिखाते हैं, फलस्वरूप परिवार में अशान्ति रहती है। __मंगल से दो राहु रेखाएं एक साथ पास-पास निकलकर जब शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा को छूती हो तो ऐसे व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं रहता है (चित्र-185)। शुक्र पर चन्द्रमा उन्नत या जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा हो और मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर वहम या सनक होती है। इन्हें भूत-प्रेत, छाया-पुरुष या किसी ऐसी बाहरी शक्ति का प्रभाव होता है। इनके कानों में बाहर से कोई आवाज सुनाई देती है और ये उसी के अनुरूप आचरण करने को बाध्य होते हैं। अपने आप बातें करना या ध्यान में कोई दिखाई देना, मस्तिष्क पर दूसरे का नियन्त्रण या प्रभाव मालूम होना आदि लक्षण इस दशा में प्रतीत होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को हठयोग साधना, त्राटक, भूतविद्या साधना या इस प्रकार की कोई उपासना नहीं करनी चाहिए अन्यथा पागल होने का डर रहता है। इन्हें अनुभव होने वाली घटनाएं लगभग सही होती। हैं और ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई इन्हें आगे होने वाली घटनाओं का सही-सही पता बता देता है। गायत्री मंत्र का जप, शिव उपासना या गंगा जल पीने से इन्हें लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति आलसी होते हैं। इस लक्षण में विशेषतया यह बात ध्यान देने की है कि राहु रेखा मस्तिष्क रेखा पर शनि के नीचे ही रुकती हो, दूसरे स्थान पर नहीं। उपरोक्त प्रकार की दो राहु रेखाएं मोटी हों और
चित्र-185 शनि के नीचे रुकें तथा जीवन रेखा आरम्भ में पतली या मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो अंग-भंग का लक्षण है। दुर्घटना में ऐसे व्यक्तियों
का अंग-भंग होता है। __इन्हें पेट में कष्ट, गुर्दे या मूत्र के रोग होते हैं। कई बार राहू रेखा, जीवन रेखा के आरम्भ से निकल कर मस्तिष्क रेखा के साथ चलकर 45 या 50 वर्ष की आयु के आस-पास मस्तिष्क रेखा को छूती या काटती है। यह रेखा दोहरी मस्तिष्क रेखा
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व राह रेखा का फल करती है। ऐसी रेखाएं प्रायः ऐसे व्यक्तियों के हाथों में पाई जाती हैं, जिनके घर में किसी न किसी को गन्दी आदत जैसे शराब पीना आदि होती है। आने वाली पीढियों में भी यह प्रभाव रहता है। स्त्रियों के हाथों में उपरोक्त लक्षण होने पर ऐसी स्त्रियों के पति चरित्र आदत व व्यवहार के ठीक नहीं होते। धन के सम्बन्ध में भी इन्हें परेशानी रहती है।
जीवन रेखा मोटी, पतली, फिर मोटी, फिर पतली होने पर शुक्र या चन्द्रमा उन्नत हो तो मस्तिष्क के रोग होते हैं। ऐसे व्यक्ति स्नायु विकार से ग्रस्त होते हैं। इनके सिर में इतना भयंकर दर्द होता है कि जैसे कोई छेद कर रहा हो। वास्तव में यह स्नायु रोग है। इनके मस्तिष्क में कोई रसोली या कैंसर आदि नहीं होता। स्नायु रोग के फलस्वरूप ही इस प्रकार का दर्द होता है। दो राहु रेखाएं होने पर इसे प्रेत-बाधा का कारण माना जाता है, जबकि यह रोग होता है।
राहु रेखा से बना हुआ त्रिकोणात्मक द्वीप स्त्री के हाथ में हो और जीवन रेखा में दोष, शुक्र उन्नत व अन्य वासनात्मक लक्षण हों तो ऐसी स्त्रियां बड़ी आयु के व्यक्तियों से लम्बे समय तक यौन सम्पर्क रखती हैं। स्त्रियों को यह लक्षण होने पर रक्त स्राव, गर्भपात आदि दोष भी पाये जाते हैं। मंगल रेखा होने पर ऐसी स्त्रियां अपने प्रेमियों से धन व सम्पत्ति का लाभ प्राप्त करती हैं, परन्तु इस दशा में अन्य रेखाओं में दोष नहीं होना चाहिए। चन्द्रमा से निकलकर मोटी भाग्य रेखा, हृदय रेखा पर रुकने, शुक्र अधिक उन्नत और हृदय रेखा सीधी बृहस्पति पर जाने की दशा में निश्चित ही ऐसी स्त्रियों के अनैतिक सम्बन्ध पाये जाते हैं। - इनके पड़ोसी, रिश्तेदार, परिवार, मकान मालिक आदि से झगड़े भी पाये जाते हैं। कोई सम्बन्धी इनसे विरोध करता है और बरबाद करने की योजना बनाता है। इनकी कन्या को ससुराल में आराम नहीं मिलता, लेन-देन के पीछे झगड़े रहते हैं और कन्या की ससुराल वाले उसे परेशान करते हैं। विशेष दोषपूर्ण लक्षण होने की दशा में तलाक, मृत्यु, आत्महत्या आदि की घटनाएं होती हैं। ___ राहु रेखा वास्तव में मुख्य रेखा न होकर गौण रेखा है। परन्तु फल के विषय में बहुत महत्वपूर्ण है। अतः भली-भांति देखकर व अन्य लक्षणों से समन्वय करने
चित्र-186 के पश्चात् इस रेखा का फल कहने से चमत्कारिक फल प्राप्त होते हैं। किन्हीं हाथों में शुक्र से निकलकर एक रेखा जीवन रेखा को काटती हुई चन्द्रमा
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पर जाती है। यह भी राहू रेखा कहलाती है (चित्र-186)। ऐसे व्यक्ति चरित्रहीन होते हैं। चरित्र सम्बन्धी गिरावट के विषय में इनका कोई स्तर नहीं होता है। मां, बहन, बेटी या अन्य पवित्र सम्बन्धों पर भी इनकी बुरी दृष्टि रहती है। ये शराबी, जुआरी होते हैं। हाथ पतला, काला मस्तिष्क व हृदय रेखा दोष-पूर्ण होने पर तो सभी कलाओं में पारंगत होते हैं।
मत्स्य रेखा
मत्स्य रेखा, सूर्य की उंगली के नीचे बने मछली के आकार को कहते हैं। कभी-कभी यह चतुष्कोण या बढ़े हुए त्रिकोण जैसी भी होती है (चित्र-187 व 188)। पूर्ण व निर्दोष होने पर यह स्पष्टतया पहचानी जाती है। जीवन रेखा के आरम्भ में इस प्रकार के चिन्ह को भी कई लोग मत्स्य रेखा कहते हैं। परन्तु हमारे विचार से यह मत्स्य रेखा न होकर द्वीप होता है, क्योंकि अनुभव के आधार पर इसके फल जीवन रेखा में द्वीप जैसे ही होते हैं। ___ मत्स्य रेखा की उपस्थिति व्यक्ति के धार्मिक अनुशासित, प्रख्यात, सहृदय व दानी होने का लक्षण हैं। ऐसे व्यक्ति धनी होने पर स्कूल, अस्पताल, धर्मशाला या इस प्रकार के कार्यों के लिए मोटा दान करते हैं। हाथ की उत्तमता व आर्थिक स्थिति के अनुसार
ही इसका फल कहना चाहिए। हाथ में भाग्य रेखाओं की संख्या अधिक, जीवन रेखा गोलाकार या अन्य उत्तम लक्षण होने पर व्यक्ति लाखों रुपया दान करते देखे जाते हैं। ये सम्पत्ति निर्माण भी करते हैं। जो भी इनके पास जाता है, उसकी सहायता अवश्य करते हैं, अत: यह लक्षण परोपकारी होने का है। ___ उंगलियां छोटी, हृदय व मस्तिष्क रेखा समीप होने पर उदार होते हुए भी उचित या अनुचित का विचार करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के द्वारा, पात्र को देखकर या
सही स्थान पर ही दान दिया जाता है। पहले परिवार 13-1
को सहायता देकर ही समाज के लिए दान करते हैं। चित्र-187
हाथ लम्बा उंगलियां लम्बी, हृदय व मस्तिष्क रेखा दूर होने पर पात्र-अपात्रादि का कोई विचार न करके उदारता से सहायता करते हैं। ऐसे ही व्यक्ति 'महादानी कहलाते हैं, कभी-कभी तो सर्वस्व ही दान कर देते हैं।
ऐसे व्यक्ति धार्मिक, भक्त व सच्चरित्र होते हैं। शुक्र अधिक उन्नत न होने पर विष्णु या राम के उपासक पाये जाते हैं और चन्द्रमा व शुक्र उन्नत होने पर कृष्ण
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के उपासक पाये जाते हैं, परन्तु मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर होने पर दुर्गा या वैष्णवी की सात्विक उपासना करते हैं।
ऐसे व्यक्ति पूर्व जन्म में भी सच्चरित्र एवं शुभ कार्य करने वाले होते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये स्वर्ग से आकर स्वर्ग में जाते हैं।
मोटी भाग्य रेखा, जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा व मस्तिष्क रेखा में दोष आदि लक्षण होने पर पहले ये नौकरी, फिर साझे में व्यापार और फिर स्वतन्त्र व्यापार करते देखे जाते हैं। ये स्वयं व इनका वंश निरन्तर उन्नति करता है और सन्तान में भी उपरोक्त गुण पाये जाते हैं।
विवाह रेखा
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यह रेखा बुध की उंगली व हृदय रेखा के निकास स्थान के बीच में हृदय रेखा के समानान्तर होती है (चित्र - 189 ) । अधिक मोटी, अधिक पतली, क्रास युक्त, टूटी, द्वीपयुक्त व मुड़कर हृदय रेखा पर मिली हुई होने पर यह दोषपूर्ण मानी जाती है। अनेक व्यक्ति विवाह रेखा को लेकर ही विवाहों की संख्या निर्धारित करते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं है, विवाह रेखा का अपना कोई स्वतन्त्र महत्व इस विषय में नहीं है। हाथ की अन्य रेखाओं में पाये जाने वाले लक्षणों के द्वारा ही इस विषय में जानकारी होती है। विवाह रेखा केवल सहायक लक्षण है।
चित्र - 188
विवाह रेखा दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति को विवाह सम्बन्धी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यह रेखा मुड़ कर हृदय रेखा पर मिलती हो तो ऐसे व्यक्तियों के जीवन साथी बीमार रहते हैं। विवाह रेखा में द्वीप, क्रास, सितारा आदि लक्षण होने पर मृत्यु या तलाक होता है। विवाह रेखा अन्त में द्विभाजित हो तो भी गृहस्थ जीवन में झंझटों का सामना करना पड़ता है । इस रेखा का स्वतन्त्र फल किसी भी दशा में नहीं कहना चाहिए। हाथ में अन्य लक्षणों के साथ समन्वय करने के पश्चात् ही फलों में निश्चितता होती है।
कभी-कभी विवाह रेखा, हृदय रेखा के समानान्तर चलकर विशेष भाग्य रेखा से मिल जाती है व कभी यह बृहस्पति की उंगली तक गई देखी जाती है। ऐसी विवाह रेखा निर्दोष होने पर ससुराल से धन लाभ कराती है। दोषपूर्ण होने पर ससुराल तो बहुत धनी होती है, परन्तु धन लाभ नहीं होता। विवाह रेखा टेढ़ी, मोटी, लम्बी व
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अधिक छोटी होने पर विवाह देर से होता है।
उपरोक्त बताये गये विवाह रेखा के दोषों में से कोई एक या दो होने पर भाग्य रेखा में द्वीप, प्रभावित रेखा में द्वीप व हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो व्यक्ति को । गृहस्थी का सुख नहीं मिलता। ऐसी दशा में या तो ।' तलाक हो जाता है या जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का जोड़ अधिक लम्बा होने पर, यदि भाग्य रेखा व विवाह रेखा में दोष हो तो भी तलाक या स्थायी विछोह होता है।
विवाह रेखा का हृदय रेखा पर मिलना या हृदय रेखा को काटकर मस्तिष्क रेखा पर मिलना दोषपूर्ण लक्षण है। यह भी विछोह, तलाक या जीवन साथी की मृत्यु का सूचक है।
चित्र-189 विवाह रेखा का मुड़कर उंगलियों की ओर जाना शुभ लक्षण है। जिन हाथों में इस प्रकार की विवाह रेखा होती है, उनका गृहस्थ जीवन सुखी रहता है। अन्य रेखा में दोष होने के फलस्वरूप कुछ समय तक अशान्ति तो रह सकती है परन्तु अन्ततोगत्वा जीवन सुखी ही रहता है, तथापि भाग्य रेखा टूटी या द्वीपयुक्त होने पर उपरोक्त फल नहीं कहना चाहिए। __विवाह रेखा दोषपूर्ण होने पर, मस्तिष्क रेखा का निवास मंगल से हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर व हृदय रेखा में द्वीप, जीवन रेखा सीधी या दोषपूर्ण, मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होने पर कोई दो या अधिक लक्षण हों तो पति-पत्नी के सम्बन्ध ठीक नहीं रहते। प्रभावित रेखा कटी-फटी, भाग्य रेखा में द्वीप, शुक्र अधिक उन्नत, शक्र पर तिल, जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा, मंगल से आई रेखाओं से जीवन रेखा कटी होना आदि गृहस्थ सुख, उत्तम होने के लक्षण नहीं हैं। शुक्र उठा हुआ व जीवन रेखा सीधी होने पर कामेच्छा अधिक होती है, इस कारण भी गृहस्थ जीवन में अशान्ति रहती है क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के जीवन साथी में कामेच्छा कम होती है। लापरवाही आदि आदतों या पति-पत्नी में विचार विषमता के कारण गृहस्थ जीवन में अशान्ति रहती है। अधिक दोष होने पर यह अशान्ति, विछोह, तलाक या मृत्यु में परिवर्तित होती है। . जीवन रेखा गोलाकार, भाग्य रेखा पतली व जीवन रेखा से दूर, विवाह रेखा निर्दोष व पतली और लम्बी, हृदय रेखा से कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर न मिलने, भाग्य रेखा निर्दोष, शुक्र सामान्य, विलासकीय रेखा नहीं होने, अंगूठा बड़ा, बृहस्पति की उंगली लम्बी, शनि व सूर्य की उंगलियां सीधी होने पर व्यक्ति को जीवन साथी का
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पूरा सुख होता है। जीवन रेखा अधिक गोलाकार होने की दशा में जीवन साथी का स्वास्थ्य तो नरम रहता है, परन्तु आपस में प्रेम रहता है और वह दीर्घायु होता है।
सूर्य रेखा, प्रभावित रेखा या इसके पास से निकलने पर ससुराल से धन लाभ होता है। जीवन रेखा, भाग्य व विवाह रेखा में त्रिकोण आदि शुभ लक्षणों से भी ससुराल से धन लाभ होता है।
विवाह रेखा, टुकड़े-टुकड़े होकर आगे बढ़ती हो तो भी गृहस्थ सुख में रुकावट होती है। विछोह व मिलन का क्रम रहता है। यदि विवाह रेखा द्विभाजित हो व प्रभावित रेखा भी हो तो ऐसे व्यक्तियों का दूसरों से सम्पर्क रहता है अर्थात् अपने जीवन साथी के अलावा भी दूसरों से यौन सम्पर्क रखते हैं। ___ विवाह रेखा की एक शाखा मुड़कर हृदय रेखा पर या लम्बी होकर मस्तिष्क रेखा पर मिली हो तो मार-पीट, आत्महत्या, प्रजनन, आग या जहर से मृत्यु को प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से या मंगल से कोई शाखा आकर मस्तिष्क रेखा को छूने, अंगूठा कम खुलने, मोटा व उंगलियां भी मोटी होने पर व्यक्ति क्रोध के वशीभूत होकर या झगड़े में अपने जीवन साथी की हत्या कर देते हैं। ऐसे व्यक्तियों की मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होता है।
विवाह की आयु के विषय में भाग्य रेखा के वर्णन के समय विस्तार से बताया गया है। भाग्य रेखा छोटी से पतली होने, उसमें सुन्दर प्रभावित रेखा मिलने, भाग्य रेखा का बाहर की ओर झुकाव व भाग्य रेखा के बड़े द्वीप का अन्त होने की आयु में विवाह होता है। अन्यथा इस आयु में कोई प्रेम सम्बन्ध हो जाता है। समय के विषय में विवाह रेखा कोई निर्देश नहीं करती। इस सम्बन्ध में व्यक्ति के सामाजिक कार्य व उसकी व्यक्तिगत स्थिति भी ध्यान में रखनी चाहिए।
बृहस्पति रेखा या इच्छा रेखा
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इस रेखा को इच्छा रेखा भी कहते हैं। यह रेखा जीवन रेखा से निकलकर बृहस्पति पर जाती है। कभी-कभी ये दो होती हैं। लम्बी व निर्दोष होना इनका गुण है (चित्र-190 तथा 191)। ____ यह रेखा अफसरों अर्थात् अधिशांसी व्यक्तियों के हाथों में पाई जाती हैं। ऐसे व्यक्ति उच्च स्तर अर्थात् चित्र-190 वायुसेना, जलसेना आदि में ऊंचे पदों पर होते हैं। यदि बहस्पति के नीचे से दो बृहस्पति रेखाएं निकलकर बृहस्पति पर जाती हों तो व्यक्ति बाईस वर्ष की आयु
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तक ही धनी हो जाते हैं।
कभी-कभी यह रेखा निराधार बृहस्पति पर निकल कर शनि की उंगली के नीचे तक जाती है (चित्र - 191 ) । हाथ उत्तम व अन्य उत्तम लक्षण होने पर यह करोड़पति होने का लक्षण है। यह रेखा बहुत कम हाथों में पाई जाती है, अतः सही निर्णय के पश्चात् ही इसका फल कहना चाहिए। देखने में यह मस्तिष्क रेखा का टुकड़ा लगती है।
ऐसे व्यक्तियों की प्रत्येक इच्छा पूर्ण होती है और निरन्तर आध्यात्मिक उन्नति करते देखे जाते हैं। स्वभावतः ही ये पूजा पाठ करने वाले, गुरू संरक्षण में रहने वाले, धार्मिक या अन्य साहित्य का अध् ययन व निर्माण करने वाले होते हैं। किसी भी स्तर के हाथों में होने पर यह उसे शासन व बड़प्पन का अवसर प्रदान करती है। साधारण व्यक्ति के हाथों में होने पर भी व्यक्ति समाज, मोहल्ले या जिस भी स्तर पर हो, सम्मानित होते हैं।
ऐसे व्यक्ति उत्तम सलाहकार होते हैं, स्वार्थवश किसी को गलत सलाह नहीं देते। ये अपने मस्तिष्क के आधार पर ही उन्नति करते हैं और अचानक भाग्योदय प्राप्त करते हैं।
एक साथ दो रेखाएं होने पर व्यक्ति में बचपन से ही शासन की योग्यता होती है और समय आने पर बहुत योग्य सिद्ध होते हैं। ऐसे व्यक्ति कुशल व उत्तरदायी होते हैं। साधक होने पर शीघ्र व अभूतपूर्व सफलता प्राप्त करते हैं। ये धर्म प्रवर्तक
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के रूप में प्रसिद्ध होते हैं और जनहित के कार्यों का सम्पादन करते हैं। ऐसे व्यक्ति महत्वाकांक्षी होते हैं परन्तु महत्वाकांक्षी जनहित में विलीन करके धन्य होते हैं। हाथ में विशेष भाग्य रेखा, द्विभाजित मस्तिष्क रेखा, लम्बी उंगलियां, एक से अधिक अन्तर्ज्ञान रेखाएं, गुलाबी व लम्बा हाथ आदि लक्षण भी हों तो मृत्यु के पश्चात् भी परम पुरुष के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे हाथों में भी दो बृहस्पति रेखाएं होती हैं।
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शुक्र रेखा
अगूठे के मूल में शुक्र के ऊपर अनेक छोटी-मोटी रेखाएं होती हैं, वैसे तो ये सभी शुक्र रेखाएं होती हैं परन्तु इनमें कुछ मोटी और कुछ पतली व टूटी-फूटी होती हैं। इन पतली व टूटी-फूटी रेखाओं से हमारा कोई तात्पर्य नहीं । अंगूठे के मूल में जितनी लम्बी व स्पष्ट रेखाएं होती हैं, शक्र रेखाओं के नाम से कारी जाती हैं (चित्र-193, 194 व 195)। ये रेखाएं स्थान परिवर्तन, नौकरी, कार में परिवर्तन साझीदारों की संख्या व जीवन के लिए किए जाने वाले व्यवसायों के संख्या का निर्देश करती हैं।
जितनी ही साफ होकर ऐसी रेखाएं जीवन रेखा के पास पहुंचता , उस संख्या में नौकरी, काम या साझियों की संख्या का निर्देश करती हैं। शुक्र रेखा निर्दोष होने पर व्यक्ति नौकरी अवश्य करते हैं। भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकलने की दशा में हाथ व्यापारिक, भाग्य रेखा मोटी तथा जीवन रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर व शुक्र रेखाएं हों तो नौकरी नहीं करने पर भी वेतन लेते हैं, चाहे अपने ही कार्य से निश्चित धन लेते हों या किसी कम्पनी के डायरेक्टर के नाते। रेखाएं अच्छी हों तो गोद या वसीयत से धन प्राप्त होता है। शुक्र रेखाएं एक से अधिक होकर अलग-अलग त्रिकोणों से निकली हों तो भी स्वयं या किसी सन्तान को गोद का योग होता है। ___ दोषपूर्ण शुक्र रेखाएं त्रिकोणों से निकलकर जीवन । रेखा के पास आती हों और मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो गोद का योग तो कराती हैं परन्तु ऐसे व्यक्ति जहां गोद लिये जाते हैं वहां किसी के स्वभाव के कारण परेशानी होती है। दोषपूर्ण शुक्र रेखाएं नौकरी व साझे के कार्य में भी अशान्ति का लक्षण है। ___ शुक्र रेखा निर्दोष होने पर सूर्य व शनि की उंगलियां बराबर लम्बी हों तो गोद का लाभ न मिलकर अचानक सट्टे या लाटरी से धन प्राप्त होता है। मस्तिष्क व हृदय
चित्र-193 रेखा सम्मिलित हो तो भी धन लाभ होता है।
शुक्र रेखा दोषपूर्ण न होकर निर्दोष व लम्बी हो तो साझेदारी में लम्बे समय तक कार्य चलता है। इसमें दोष होने पर साझेदारी में खटपट हो जाती है और बीच में
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ही साझा व कार्य छोड़ना पड़ता है।
शुक्र से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा को छूती हो तो व्यक्ति की साझादारी या प्रेम सम्बन्ध होता है। यदि यह रेखा मुड़ कर भाग्य रेखा के साथ जाती हो तो ऐसे सम्बन्ध लम्बे समय तक चलते हैं और कारोबार में उन्नति होती है।
शुक्र रेखा, भाग्य रेखा पर मिलकर यदि भाग्य रेखा में कोई दोष उत्पन्न नहीं करती हो या भाग्य रेखा आगे चलकर दोषपूर्ण नहीं हो तो भी साझादारी या सम्बन्ध लम्बे समय तक चलते हैं व उन्नति होती है। यदि शुक्र
चित्र-194 रेखा, भाग्य रेखा को काट देती हो तो प्रेम सम्बन्धों या साझेदारी में रुकावट होती है। शुक्र रेखा में द्वीप होने पर प्रेमी या साझी के स्वभाव के कारण अशान्ति रहती है। ऐसे व्यक्तियों को प्रेम में पहले ही बदनामी मिल चुकी होती है। अंगूठे के नीचे त्रिकोण होने पर यदि एक रेखा उससे निकलकर भाग्य रेखा में मिलती हो तो ऐसे व्यक्तियों का जीवन साथी या प्रेमी, धन, मकान आदि लेकर
आता है। __भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर, यदि शुक्र रेखाएं हों
और उनमें से एक या दो शुक्र रेखाएं दोषपूर्ण हों तो साझेदारी में कार्य करना होता है और किसी साझेदार के कारण परेशानी रहती है। - दूसरे प्रकार की रेखाएं शुक्र से निकल कर मंगल की ओर जाती हैं। ये भी शुक्र रेखाएं ही कहलाती हैं। ये रेखाएं निर्दोष व सुडौल होने पर व्यक्ति की स्मृति उत्तम होती है (चित्र-194)। इनमें किसी रेखा में द्वीप हो तो परिवार में किसी को स्नायु रोग या पागलपन होता
है। ये रेखाएं टूटी हों तो स्मृति कमजोर होती है, मस्तिष्क चित्र-195
रेखा में भी दोष हो तो यह प्रखर रूप में होता है। शुक्र रेखा का सम्बन्ध, व्यक्ति के जीवन में दूसरों से होने वाले लाभ व व्यापार में साझेदारी में लाभ से है। स्वतन्त्र रूप से इन रेखाओं का फल कहना उचित नहीं। हाथ में दूसरे उपस्थित लक्षणों के साथ समन्वय करने के पश्चात् इनका फल कहना चाहिए।
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( चन्द्र रेखा 0
यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर चन्द्रमा के पर्वत पर जाती है (चित्र-196)। निर्दोष होने की दशा में इन्हें धन, यात्रा व विदेश यात्रा का योग कराती है।
दोषपूर्ण होने पर ऐसे व्यक्ति मानसिक सन्तुलन की दृष्टि से ठीक नहीं होते। ये कल्पनाशील, अधिक विचारशील तथा अस्थिर मस्तिष्क के होते हैं। निर्दोष चन्द्र रेखा व्यक्ति के धनी होने का लक्षण है। चन्द्र रेखा निर्दोष होने पर जिस आयु में भाग्य रेखा में सुधार होता है, उस आयु में व्यक्ति धनी होना आरम्भ हो जाते हैं और अन्त में लाखों की सम्पत्ति अर्जित करते हैं। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये अन्त में अपने स्तर के अनुसार धनी रहते हैं। अन्य छोटी रेखाओं की तरह चन्द्र रेखा का भी अपना स्वतन्त्र महत्व नहीं होता, अत: हाथ के अन्य लक्षणों का समन्वय करके चन्द्र रेखा का फल कहना चाहिए।
चन्द्र रेखा होने पर, हाथ में विशिष्ट भाग्य रेखा व भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो व्यक्ति अनेकों बार विदेश जाते हैं। इनके कई संबंधी भी विदेश यात्रा करते हैं या विदेश में रहते हैं। एक हाथ में चन्द्र रेखा हो व भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा पर रुके तो स्वयं को बाहर जाने का योग न होकर सन्तान को होता है।
ऐसे व्यक्ति सहृदय व प्रेमी होते हैं। चन्द्र रेखा निर्दोष होने पर ये जीवन साथी के बिना नहीं रह सकते। जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर इनकी किसी सन्तान में चरित्र दोष जैसे दुराचार, चोरी या मद्यपान होता है। ऐसे व्यक्ति अन्तिम आयु में धनी होते हैं, परन्तु पूर्ण चन्द्र रेखा निर्दोष होने पर हाथ में अन्य उत्तम लक्षण भी हों तो प्रारम्भ से ही धन सम्पत्ति का योग होता है। चन्द्र रेखा देर से आरम्भ होने पर मध्यायु के बाद आर्थिक स्थिति सबल होती है।
जीवन रेखा से चन्द्र रेखा निकल कर गोलाकार होकर चन्द्र पर जाती हो या चन्द्र रेखा एक से अधिक हो तो भी व्यक्ति को अन्तर्ज्ञान होता है। ऐसे व्यक्तियो को आगे होने वाली घटनाओं का पता चलता रहता
चित्र-196
कभी-कभी चन्द्रमा पर एक अर्द्ध-चन्द्राकार रेखा भी देखी जाती है। यह रेखा
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भी चन्द्र रेखा ही कहलाती है। परन्तु इसका सम्बन्ध केवल अन्तीन से है। साधक होने पर तो ऐसे व्यक्ति सरलता से सिद्धियां प्राप्त कर लेते हैं, साधक नहीं होने पर भी इन्हें भविष्य में होने वाली घटनाओं का स्पष्ट ज्ञान रहता है। यह रेखा जीवनरेखा से निकल कर चन्द्रमा व मंगल के बीच में ही होती है।
सूर्य रेखा
जा भी रेखा सूर्य पर जाती है, सूर्य रेखा कहलाती है। इसका निकास जीवन रेखा, भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा व मंगल रेखा आदि से होता है। कई बार सूर्य रेखा एक-दो से अधिक भी देखी जाती है। इस रेखा का भी महत्व स्वतन्त्र नहीं है। यह रेखा हाथ के अन्य गुणों में वृद्धि करने वाली होती है (चित्र-197, 198 व 199)। सूर्य रेखा, जीवन रेखा से निकल कर सूर्य पर जाती हो, हाथ अच्छा भाग्य रेखाएं अनेक व विशेष भाग्य रेखा हो तो व्यक्ति प्रगतिशील, जनहित के कार्य करने वाला, नेता, राजनीति या यूनियनों में भाग लेने वाला होता है। इन्हें सिनेमा, होटल या जमीन खोदकर निकालने वाले पदार्थों से लाभ प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्तियों से जिनका विशेष सम्पर्क होता है, उनके हाथों में भी सूर्य रेखा होती है। डाक्टर, वैद्य, हकीम तथा सिनेमा सम्बन्धी कार्य करने वाले, वकील, पत्रकार व नेताओं के हाथों में इस प्रकार की सूर्य रेखा होती है। यहां एक बात ध्यान में रखने की है कि हाथ में अधिक रेखाएं होने पर केवल उन्हीं रेखाओं का फल होता है जो स्पष्ट व निर्दोष होती हैं, टूटी-फूटी व महीन रेखाओं का फल दब जाता है। __ जीवन रेखा से उदित सूर्य रेखा के साथ मंगल रेखा भी हो तो व्यक्ति धनी रहता है और भूमि सम्बन्धी कामों से विपुल धन सम्पत्ति अर्जित करता है। यदि जीवन रेखा के आरम्भ से कोई रेखा , बृहस्पति पर जाती हो तो इस फल में अनेक गुना वृद्धि करती है। स्वतन्त्र बृहस्पति रेखा होने पर तो ऐसे व्यक्ति करोड़पति होते हैं और जीवन में सभी प्रकार के सुख पाते हैं। __ भाग्य रेखा से सूर्य रेखा निकलने पर यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा में एक ही आयु में त्रिकोण हो तो उस आयु में लाटरी, जुए, सट्टे या अन्य कहीं से अचानक धन लाभ होता है। सूर्य रेखा में भी त्रिकोण
चित्र-197 266
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या एक से अधिक सूर्य रेखाएं हो तो कहना ही क्या? हाथ में अन्य लक्षणों को देखकर प्राप्त होने वाले धन का परिणाम कहना चाहिए। उपरोक्त प्रकार से धन प्राप्त नहीं हो तो कई साधनों से धन की विशेष आय होती है। मस्तिष्क रेखा निर्दोष, जीवन रेखा गोलाकार व विशेष भाग्य रेखा हो तो इस प्रकार की रेखाओं का फल अधिक या कम लक्षणानुसार होता है।
मस्तिष्क रेखा से सूर्य रेखा निकलने पर व्यक्तिगत गुण व योग्यता के आधार पर अचानक भाग्योदय होता है। इनका काम करने का अपना ढंग होता है तथा जिस आयु में यह सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा से निकलती है। उस समय में प्रसिद्धि व धन प्राप्त होता है। यदि सूर्य रेखाएं त्रिकोण से निकलती हों तो विपुल धन सम्पत्ति प्राप्त होती है। इस आयु में सम्पत्ति व व्यापार में भी लाभ होता है।
सूर्य रेखा का निकास मस्तिष्क रेखा से हो तो व्यक्ति को अपने किसी घर या अन्य सम्पत्ति में गड़े हुए धन का लाभ स्वयं को न होकर वंश में अन्य किसी को या किसी सन्तान आदि को होता है। __ हृदय रेखा से सूर्य रेखा निकलने की दशा में जीवन में 35 वर्ष की आयु के पश्चात् प्रकाश आता है। ऐसे व्यक्ति बड़ी आयु में विशेष उन्नति करते देखे जातेहैं। सूर्य रेखा दो होने पर इस आयु में हृदय रेखा में त्रिकोण भी हो तो सम्पत्ति व मकान का निर्माण होता है। ये सहदय, सच्चरित्र व धार्मिक होते हैं, और राम, विष्णु आदि की उपासना करते हैं।
कई बार सूर्य रेखा किसी भी मंगल से निकल कर सूर्य पर जाती है। यह सूर्य रेखा संघर्ष के पश्चात् उन्नति
T होने का लक्षण है। इस दशा में सम्पत्ति निर्माण के पश्चात् सम्मान प्राप्त होता है। इनके घरों में कलह रहता है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति घूमने-फिरने के शौकीन होते हैं, घर की ओर कम ध्यान देते हैं। इन्हें तीसरे या चौथे दिन बुखार होता है। जीवन में एक-दो बार ये टायफाइड से भी ग्रस्त होते हैं। ये 41 वर्ष की आयु के पश्चात् ही भाग्य निर्माण में सफल होते
चित्र-198
___ चन्द्रमा से सूर्य रेखा निकलने पर हाथ व रेखाएं निर्दोष हों तो आध्यात्मिक उन्नति का लक्षण है। अज्ञान रेखा भी होने पर इस सम्बन्ध में विशेष उन्नति होती है। ये पूर्ण ईश्वर अनुभूति की ओर बढ़ते हैं। ऐसे व्यक्ति योग व ज्ञान में भी विशेष रूचि रखते हैं। मस्तिष्क रेखा की शाखा या मस्तिष्क रेखा स्वयं चन्द्रमा की ओर जाने की दशा में मिश्रित ज्ञान के अनुयायी, ज्ञानी व भक्त होते हैं। ये ध्यान सिद्ध होते हैं और
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भाव समाधि आदि लक्षण जिन्हें सात्विक विकार कहा जाता है, इनमें प्रकट नहीं होते। हाथ में अन्य उत्तम लक्षण होने पर इन्हें अन्तिम आयु में विशेष अवस्था प्राप्त होती है। इनकी मस्तिष्क रेखा में कोई न कोई दोष अवश्य पाया जाता है। मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने की दशा में उपरोक्त फल नहीं होते। यह सम्पत्ति-लाभ जैसे किराये आदि की आय का लक्षण है।
चन्द्रमा से दो सूर्य रेखाएं निकल कर सूर्य पर जाती हों तो जीवन साथी बहुत सुन्दर व सुशील होता है, जबकि ऐसे व्यक्ति स्वयं साधारण होते हैं।
बुध रेखा से सूर्य रेखा निकले तो व्यक्ति व्यापार के माध्यम से धन व ख्याति अर्जित करते हैं। ऐसे लक्षण बड़े व्यापारियों व मिल मालिकों के हाथों में पाये जाते हैं। ये धनी व प्रसिद्ध होते हैं। मंगल से सूर्य रेखा निकलने पर यदि हृदय रेखा में द्वीप या अन्य विशेष दोष हो तो आंखों या हृदय में रोग होता है। बड़ी आयु में धन, प्रतिष्ठा व प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
सूर्य रेखा में द्वीप, गड्ढे या लाल व काले धब्बे हों तो जीवन में बदनामी का कारण उपस्थित करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को पत्नी की बदनामी के कारण परेशानी होती है। सूर्य रेखा, समकोण, चमसाकार, दार्शनिक व आदर्शवादी हाथों में विशेष फल करती है। सभी ग्रह उन्नत होने पर ऐसे व्यक्ति स्वतन्त्र आदत के होते हैं, किसी के अधीन रहकर कार्य नहीं कर सकते। अतः शीघ्र ही स्वतन्त्र व्यवसाय का प्रबन्ध कर लेते हैं। इन्हें आरम्भ में नौकरी अवश्य करनी पड़ती है, क्योंकि ये किसी का एहसान नहीं लेते और न ही किसी से उधार मांगते हैं।
दो सूर्य रेखाओं वाले व्यक्ति दयालु होते हैं। ऐसे व्यक्ति को स्वास्थ्य सम्बन्धी थोड़ी बहुत चिन्ता अवश्य रहती है। इनका भाग्योदय अचानक होता है।
सूर्य रेखा हृदय रेखा तक या इससे भी छोटी हो और उंगलियों की ओर से मोटी व नीचे से पतली हो तो छाती में चोट लगती है या दर्द रहता है। इनको हृदय रोग की पूरी सम्भावना रहती है। यह लक्षण 80 प्रतिशत हाथों में पाए जाते हैं। इसी प्रकार जौ की लम्बाई का टुकड़ा अधिक दोषपूर्ण फल करता है ।
चित्र - 199
सूर्य रेखा प्रभावित रेखा या इसके पास से निकलने पर जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा में त्रिकोण हो तो ससुराल से धन लाभ होता है। प्रभावित रेखा में त्रिकोण होने पर विशेष धन लाभ होता है या किसी विवाद के पश्चात् भाग्योदय होता है।
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मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर जब उससे एक या अधिक निर्दोष सूर्य रेखाएं निकलती हों तो उस आयु में व्यक्ति को प्रसिद्धि प्राप्त होती है और धन-सम्पत्ति का सुख होता है। इस आयु में एक आश्चर्यजनक बात घटित होती है कि जो व्यक्ति सदैव ही इनका विरोध करते हैं, वे इस आयु में इनका साथ देते हैं व प्रशंसा करते हैं। स्पष्टवक्ता होने के कारण आरम्भ में इनका विरोध होता हैं, परन्तु मध्य आयु में क्रोध कम हो जाने के कारण अपने शत्रुओं को वश में कर लेते हैं।
विलासकीय रेखा
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All
यह रेखा शुक्र से निकल कर गोलाकार रूप में बुध पर जाती है (चित्र-200)।
वैसे तो यह बहुत कम हाथों में देखने को मिलती है, परन्तु जहां होती है, इसका महत्व पण
प्रभाव होता है। हाथ उत्तम व अच्छे लक्षणों से युक्त
होने पर विलासकीय रेखा भी दोष रहित हो तो व्यक्ति
उत्तरोत्तर उन्नति करता है और विशेष धनी होता है।
दोषपूर्ण हाथ या रेखाएं होने पर व्यक्ति अन्तिम आयु
में धनी होते हैं। विलासकीय रेखा में दोष होने पर
भी वृद्धावस्था में ही धनी होते हैं। किसी भी
प्रकार की विलासकीय रेखा हाथ में होने पर व्यक्ति
के गृहस्थ सुख व यौन इच्छा सदा अपूर्ण रहती है।
ऐसे व्यक्ति कई विवाह करते हैं मगर किसी भी - -
जीवन साथी से या तो सुख प्राप्त नहीं होता या उसकी
मृत्यु हो जाती है। इनके प्रेम सम्बन्ध भी सफल नहीं होते, अन्त में निराशा ही हाथ लगती है। यौन सम्बन्ध में ये जीवन भर अपनी अपूर्ण लालसा लिए फिरते हैं।
विलासकीय रेखा होने पर यदि हृदय रेखा की एक से अधिक शाखाएं मस्तिष्क रेखा पर मिलती हों तो ऐसे व्यक्ति जीवन भर असन्तुष्ट व निराश रहते हैं। धन तो होता है फिर भी सन्तुष्टि नहीं होती, शान्ति नहीं मिलती। इनका सम्पर्क अनेकों से रहता है फिर भी सन्तुष्टि नहीं होती और न ही इनके सम्बन्ध लम्बे समय तक चलते हैं। कई-कई विवाह करने पर भी इन्हें अन्त में बिना जीवन साथी के ही जीवन निर्वाह करना पड़ता हैं। जीवन साथी के कारण ये जीवन भर अभागे रहते हैं।
चित्र-200
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