SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुख्य रेखाएं एक ही आयु में पूर्ण होती हों तो उस समय व्यक्ति को मृत्यु योग होता है। इसी प्रकार जब भाग्य रेखा चलते-चलते एकदम रुक जाती हो अर्थात् बीच में पूरी हो जाती हो तो उस समय कुछ परेशानियां खड़ी करती है। यही भाग्य रेखा अधूरी भाग्य रेखा कही जाती है। यदि इस आयु में मस्तिष्क या अन्य रेखाओं में भी दोष हो तो घटना का स्वरूप प्रखर होता हैं, परन्तु हाथ जितना भी भारी होता है, परेशानी उतनी ही कम हो जाती है। (चित्र-128)। भाग्य रेखा जिस आयु में पूरी होती है, उसमें भी मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा में दोष हो तो जीवन बरबाद हो जाता है। कर्ज, काम छूटना, स्वास्थ्य खराब होना, जीवन साथी की बीमारी या मृत्यु, हानि, मुकद्दमेबाजी में हार आदि फल होते हैं। यह निश्चित ही है कि इस आयु में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन उन्नति के लिए होता है, परन्तु आरम्भ में कष्ट कारक होता है। इस समय व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ होता है। किसी समस्या का कोई हल उसे नहीं सूझ पड़ता। इस रेखा के साथ जीवन रेखा में दोष, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, शुक्र प्रधान होना, जीवन रेखा का शुक्र को कम घेरना आदि लक्षण हों तो ऐसे व्यक्ति अप्राकृतिक यौन क्रिया की अतिशयता के चित्र-128 कारण पुंसत्व खो बैठते हैं। स्त्रियों के हाथों में उपरोक्त लक्षण होने पर इन्हें श्वेत-प्रदर या रक्त-प्रदर होता है, दौरे पड़ना, सिर भारी, पेट में जलन आदि रोग रहते हैं। ऐसे पुरुषों को स्खलन के समय दर्द होता है व पेट में वायु विकार रहता है। ऐसे दोष कोमल हाथों में ही अधिक देखे जाते हैं। अन्य लक्षणों को देखकर इसका निश्चित विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए। Ta भाग्य रेखा रहित हाथ हाथ भारी होने पर रेखाएं जितनी ही पतली, सुडौल व दोष रहित होती हैं, उतना ही व्यक्ति सुखी, धनवान, स्वस्थ तथा गुण सम्पन्न होते हैं। कुछ हाथों में भाग्य रेखा होती ही नहीं। ऐसी दशा में अन्य रेखाओं के लक्षणों के द्वारा फल का निर्णय किया जा सकता है। समकोण, दार्शनिक, चमसाकार व आदर्शवादी हाथों में भाग्य रेखा न होने पर ये हाथ उस प्रकार से फल देते हैं, जैसा कि भाग्य रेखा की उपस्थिति में होता है। वास्तव में इन हाथों में भाग्य रेखा की आवश्यकता ही नहीं है। ऐसे हाथों 196 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy